जबलपुर। पशु चिकित्सा महाविद्यालय में स्थापित वन्य प्राणी केन्द्र सिर्फ नाम का रह गया है। यहां शाकाहारी एवं मांसाहारी वन प्राणियों को उपचार के दौरान रखने के लिए ट्रांजिट हाउस तक नहीं है। बांधवगढ़, पन्ना, पेंच तथा कान्हा नेशनल पार्क के मध्य स्थित जबलपुर स्थित वन प्राणी केन्द्र से वन विभाग के बड़ी आशाएं थीं लेकिन जबलपुर में नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय हो जाने के बावजूद यहां ट्रांजिट हाउस तक नहीं बन पाया है जिसके परिणाम स्वरूप घायल और बीमार वन्य प्राणियों को अकाल मौत के मुंह में जाना पड़ता है। सिर्फ पशुचिकित्सालय महाविद्यालय ही नहीं वन अमने के पास भी ट्रांजिट हाउस नहीं है। केन्द्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण के नियमों के अनुसार चिड़िया को रखने के लिए तैयार होने वाले ट्रांजिट रूम के लिए 20 फुट लम्बा, चौड़ा और उंचा बाड़ा होना चाहिए। इसमें घायल परिंदे अथवा उसके असहाय बच्चों को तब तक रखा जा सकता है जब तक वह स्वयं प्राकृतिक वातावरण में जीवित रहने लायक न हो जाए। इसी तरह शाकाहारी प्राणी, हिरन, बारहसिंघा आदि के लिए 10 गुणित 10 फुट का बाड़ा होना चहिए। इसी प्रकार मांसाहारी जीव के लिए 20 गुणित 20 फुट का बाड़ा होना चाहिए। पशुचिकित्सा महाविद्यालय में ट्रांजिट हाउस की जगह कुछ पिंजरे भर मौजूद हैं। बकरी के साथ हिरन का बच्चा बरगी के जंगल में चरने गई बकरी के साथ पूर्व में हिरन का बच्चा आ गया था। इस नवजात हिरन के बच्चे को रखने एवं उपचार की बड़ी समस्या खड़ी हो गई थी। जबलपुर में अनेक बार लकड़बग्घा, हिरन, बारहसिंघा जैसे प्राणी घायल अवस्था मिल चुके हैं। इसके उपचार के लिए कम से कम महीना रखना आवश्यक था लेकिन आनन-फानन उन्हें बिना घाव भरे ही जंगल में छोड़ना पड़ा है। बाघ का इलाज संभव नहीं वन्य प्राणी केन्द्र में बाघ एवं तेन्दुए का इलाज हो सके इसके लिए वन विभाग ने कई करोड़ रुपए इस केन्द्र को दिए थे लेकिन यहां आज तक बाघ का इलाज संभव नहीं हो पाया है। दरअसल बाघ के उपचार के लिए उस पर शिकंजा कसने के लिए इस्क्यूंजर होना चाहिए लेकिन यह मशीन यहां नहीं है। यहां लाए जाने वाले बाघ को बेहद क्रूरतापूर्वक देशी शिकंजों से दबाकर रखा जाता है। बाहर जाते हैं उपचार के लिए हालत ये है कि नेशनल पार्क द्वारा अपने बाघ जैसे वन्य प्राणियों को उपचार के लिए यहां भेजना बंद कर दिया है। उनके उपचार के लिए चिकित्सकों को जंगल ही बुलाया जा रहा है। हाल ही में बांधवगढ़ में एक बाघिन को कॉलर आईडी के कारण गहरा जख्म हो गया था। उसकी प्लास्टिक सर्जरी जबलपुर के पशु चिकित्सकों ने जाकर की थी। वर्जन पशु चिकित्सा महाविद्यालय में वन्य प्राणी केन्द्र स्थापित हैं लेकिन ट्रांजिट हाउस नहीं हैं किन्तु उपचार के लिए वन्य प्राणियों को रखने के लिए व्यवस्थाएं और बेहतर करने की योजना हैं। वन विभाग का वन्य प्राणी ट्रांजिस्ट रूम जबलपुर में होना चाहिए। इससे वन प्राणियों को लम्बे समय तक रखकर उस पर अध्ययन एवं अनुसंधान किया जा सकेगा। एबी श्रीवास्तव , डायरेक्टर वन्य प्राणी केन्द्र पशु चिकित्सा महाविद्यालय वर्जन मेरे द्वारा जबलपुर पशु चिकित्सा महाविद्यालय में ट्रांजिट हाउस तैयार करने की अनेक बार मांग की जा चुकी है लेकिन विभाग अनसुनी कर देता है। जबलपुर सहित समीपस्थ जिलों में आए दिन वन्य प्राणी वाहनों, खदान, नहर तथा अन्य कारण से गंभीर जख्मी हो जाते हैं, लेकिन इन जख्मी जानवर को रखने कोई व्यवस्था नहीं है। इसी तरह प्राणियों के बच्चों को भी संरक्षण प्रदान करने व्यवस्था नहीं है। मनीष कुलश्रेष्ठ, वन्य प्राणी विशेषज्ञ ---------------------------------------------------------- सेना को दुर्गम इलाके में रसद पहुंचाने तैयार होंगे एलएसव्ही जबलपुर। भारतीय सेना को ऊंचे पहाड़ी और दुर्गम स्थानों पर रसद पहुंचाने के लिए लाइट स्पेस्लिस्ट व्हीकल(एलएसव्ही) की जरूरत महसूस की जा रही है। व्हीकल फैक्टरी द्वारा एलएसव्ही तैयार करने प्रस्ताव तैयार किया है। इसको लेकर सहयोगी कंपनियों को भी आमंत्रित किया जा चुका है। इस व्हीकल के तैयार होने पर दुर्गम स्थलों पर तेजी से लाइट व्हीकल पहुंच कर रसद की आपूर्ति बेहतर तरीके से कर सकेंगे। अति दुर्गम स्थलों में अब भी रसद हैलीकाप्टर से ही पहुंचाई जा रही है। सूत्रों की माने तो व्हीकल फैक्टरी को ऐसे वाहन तैयार करने की डिमांड सेना से मिली है, इसको लेकर काफी समय से गहन तैयारी चल रही है। ये लाइट व्हीकल वर्तमान में सेना के लिए तैयार हो रहे एलपीटीए तथा स्टालियन से भी हल्के चाहिए। इन वाहनों का स्वरूप कैसा होगा, उसमें कितने एचपी का इंजिन होगा तथा कितना बडेÞ आकार का होगा इसको फिलहाल पूरी तरह गोपनीय रखा गया है। एलएसव्ही की कागज में डिजाइन तैयार की गई है। उल्लेखनीय है कि व्हीकल फैक्टरी में सेना के लिए वाहन उत्पादन के कार्य में काफी पिछड़ चुकी है। यहां वर्तमान सेना मारूति कंपनी की जिप्सी तथा टाटा कंपनी की 407 व्हीकल को उपयोग व्यापक पैमाने में करती है। जिप्सी एवं टाटा 407 को बुलेट प्रूफ बनाने का काम व्हीकल फैक्टरी के पास है। इसे आर्मड बनाने के लिए फैक्टरी इसका वजन काफी बढ़ा देती है लेकिन वहान के इंजन की क्षमता बेहतर होने के कारण आर्मड जिप्सी एवं टाटा 407 काफी सफल वाहनों की श्रेणी में हैं। इन वाहनों का इस्तेमान सेना गश्ती तथा सोल्जर के परिवहन के लिए भी करती है लेकिन सेना को ऐसे हल्के वाहनों की आवश्यकता है जो दुर्गम स्थानों में तेज गति से पहुंच सके। इसके लिए न्यू डिजाइन तैयार की जा रही है और इसको तैयार करना भी व्हीएफजे ने प्रस्तावित किया है। -------------------------------- ये होना नए मॉडल की विशेषता * 5-6 सैनिकों को ले जाने की क्षमता * सैनिक न होने पर रसद परिवहन * गश्ती में उपयोगी होना चाहिए * सुरक्षा की दृष्टि से बेहतर * गुणवत्ता के अंतराष्ट्रीय मापदण्ड के अनुरूप ---------------------------- सुलगते जीवन में इंद्रधुनषी रंग बिखरने प्रयास बेसहारा बालिकाओं का जीवन संवारने ‘ इंद्रधनुष- आओ रंग बिखेरे’ योजना शुरू जबलपुर। जबलपुर में पुलिस महानिरीक्षक महिला प्रकोष्ठ कार्यालय द्वारा ‘ इन्द्र धनुष -आओ रंग बिखेरे योजना ’ शुरू की गई है। इस योजना के नाम से जाहिर होता है कि इन्द्र धनुष की तरह सुन्दर और सभी रंग से खूबसूरत रचना बनाने संबंधी योजना है। जी हां समाज की एक ऐसी बालिका जिसके माता पिता नहीं है बेसहारा है, के जीवन में खुशियों के रंग बिखेरने की योजना है। प्रदेश में समुदायिक पुलिसिंग के तहत पुलिस महिला प्रकोष्ठ द्वारा ये योजना प्रारंभ की गई है। शहर में ऐसी बालिकाएं जो भीख मांग रही है या कहीं मजदूरी करके पेट की बाग बुझा रही है। उसका बपचन कहीं गुम है। बाला अवस्था सुलगता जीवन बना है और कू्रर समाज उस पर गिद्ध की तरह भूखी नजर गढाए है , उसको नोचने और खाने के लिए तैयार बैठा है,उसकी पहचान कर उसका भवष्यि सुरक्षित करने की पहल नगर में प्रारंभ की गई है। योजना के तहत इस बेसहारा बालिका के जीवन में खुशियों के रंग भरने के लिए उसके लिए एक परिपालक की भी तलाश की जाएगी। इस परिपालक का बालिका को सहारा मिलने से वह भविष्य में सबल आत्मनिर्भर नारी बनकर पुरूष प्रधान समाज में सम्मान के साथ जीवन जी सकेगी। इस योजना का उद्देश्य है कि बालिका के जीवन में खुशियों के रंग भर जाए लेकिन वर्तमान व्यवस्था में यह सम्भव प्रतीन नहीं होता है कानून या किसी शासकीय कार्यक्रम से गुमनाम निराश्रित बालिका को सहारा मिल पाए। इस तथ्य को ही ध्यान में रखते हुए आईजी महिला प्रकोष्ठ प्रज्ञा ऋचा श्रीवास्तव एवं उनके अधीनस्थ इंस्पेक्टर सुरेखा परमार व अन्य ने एक ऐसी योजना शुरू करने की कल्पना को सकार रूप दिया जिसमें समाज के हर वर्ग, समाज सेवी संस्थाएं और सहृदय लोग के सामुहित प्रयास से निरापद बालिकाओं को सहारा मिल सके। इसमें शासकीय तंत्र का भी सहयोग रहेगा। प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह तो इस योजना का शुभारंभ करते वक्त बेहद भावुक हो उठे थे। बहरहाल जबलपुर में भविष्य की एक बड़ी योजना का बीजारोपण गत शुक्रवार को हो गया। योजना के संबंध में महिला इंस्पेक्टर सुरेखा परमार ने बताया कि बालकों एवं किशोरों/किशोरियों को संरक्षण देने के लिए कानूनी प्रावधान है। उनके लिए सेल्टर हाउस भी है। कई एनजीओ एवं समाजसेवी संस्थाएं कार्य भी कर रही है लेकिन इसके बावजूद इस दिशा में विशेष गति से कार्य नहीं हो पाए हैं। अनेक मामले में देखा गया कि ऐसी निराश्रित बालिकाओं को इनके किशोर होने के साथ ही 12-13 वर्ष की उम्र में ही बेंच दिया जाता है अथवा देह व्यापार के घिनौने काम में उतार दिया जाता है। अंधेरी दुनिया में ऐसी अनगिनत बालिकाएं मौजूद हैं। इस हालत में पहुंचने के पहले ही उन्हें आश्रय देने की जरूरत है। जबलपुर की समाज सेवी संस्थाओं को साथ लेकर निराश्रित बालिकाओं के संरक्षक या प्रतिपालक बनाए जाने का काम सौंपा गया है। दरअसल ये गोद लेने से थोड़ी भिन्न प्रक्रिया है। इसमें बालिकाआें के प्रति उनके संरक्षकों या प्रतिपालकों के दायित्व तय है। वे व्यक्ति अथवा संस्थाएं हो सकते हैं। इसके तहत उनके सुरक्षित आवासीय व्यवस्था, शिक्षा, भरणपोषण एवं स्वास्थ्य का दायित्व सौंपा गया है। वर्जन समाज में निराश्रित बालिकाओं को चिंहिंत किया जा रहा है। इसकेअतिरिक्त प्रतिपालक बनने वालों के आवेदन लिए जा रहे हैं तथा उनका पुलिस सत्यापन के उपरांत नोडल अधिकारी के टीम की मौजूदगी में उन्हें जवाबदारी दी जाएगी। निश्चित ही आने वाले समय में यह योजना से लाभांवित होने वाली बालिकाओं की संख्या बढ़ेगी। इसके अतिरिक्त ये योजना अन्य जिलों में भी लागू की जाएगी। योजना के तहत भविष्य में बेसहारा बालक को भी इसी तरह से संरक्षण प्रदान करने का विचार है। फिलहाल प्रदेश में सिर्फ जबलपुर में ये पहला प्रयास है। श्रीमती प्रज्ञा ऋचा श्रीवास्तव आईजी महिला प्रकोष्ठ प्रारंभिक चरण की स्थिति एक नजर में प्रतिपालक बालिकाएं मप्रवि महिला मंडल - 2 वनवासी चेतना आश्रम -1 एमपी सिंह, कंपनी कमांडर - 2 इंस्पेक्टर सुरेखा परमार -1 श्रीराम शर्मा एसएएफ -1 एमके पांडे -2 मनु खेत्रपाल -1 संध्या विनोदिया -2 सुजाता सिंह -1 गिरीश बिल् लौरे -1 रजनीश सिंह -1 -दावे-आपत्तियों के निराकरण में बरतें सतकर्ता --------------------------------------------------------------- - बांधवगढ़ में बसंत फिल्मांकन की रहेगी होड़ बीबीसी से तीन साल का करार जबलपुर। बांधवगढ़ में बसंत के महीने जहां पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी। इसके साथ ही यहां फोटोग्राफी भी जमकर होगी। बांधवगढ़ की बसंत फिल्मांकन में अच्छी कमाई होने वाली है। एक वर्ष में बांधवगढ नेशनल पार्क ने करीब एक करोड़ रूपए से अधिक फिल्मांकन में कमाए है। प्राप्त जानकारी के अनुसार बांधवगढ़ में देशी एवं विदेशी पर्यटकों द्वारा की जाने वाली छायांकन पार्क की बड़ी कमाई का जरिया रहता है। यहां देशी फोटोग्राफर से फिल्मांकन के प्रतिदिन 20 हजार प्रतिदिन तथा 40 हजार रूपए विदेशी फोटोग्राफर से प्रतिदिन लिए जाते है। इसके अतिरिक्त फिल्मांकन के लिए यदि हाथी उपलब्ध कराने के लिए 12 हजार रूपए प्रतिदिन लिया जाता है। फोटो ग्राफरों को जंगल के बसंत फिल्मांकन पर बेहद रूचि रहती है। यूं तो अन्य सीजन में भी फोटाग्राफी चलती है लेकिन बसंत में ज्यादा फिल्मांकन होता है। फिल्मांकन के लिए अनुमति पार्क में लम्बी सूटिंग के लिए बकायदा नेशनल पार्क अर्थाटी से अनुमति लेनी पड़ती है। सूत्रों की माने तो हॉल ही में बीबीसी को 100 दिन की सूटिंग की अनुमति मिली है। पार्क में बारिश के सीजन जून से अक्टूबर तक बंद रहता है। पार्क में सावन-भादों का फिल्मांकन एवं फोटो ग्राफी के लिए पूर्व में भी कई आवेदन आ चुके है लेकिन यहां बारिश में प्रवेश बंद रहता है जिसके कारण अधिकांश फोटोग्राफर बसंत का सीजन ही फोटोग्राफी के लिए पसंद करते है। इस सीजन में जंगल में जीवन खिल उठता है। बीबीसी से करार बीसीसी ने बांधवगढ़ में सौ दिन की शूटिंग की अनुमति मिल गई है। करार के तहत ये शूटिंग तीन साल चलेगी। बारिश में शूटिंग की अनुमति नहीं मिली है। मार्च महिने में 30 दिन बीबीसी बांधवगढ़ की शूटिंग करेगी। इसके बाद वर्ष 2016 तथा 2015 में भी मार्च माह में ही शूटिंग होगी। ये शूटिंग हाथी के साथ जिप्सी से की जाना है। हिडैन कैमरे का उपयोग होना है। ऐसी भी संभावना है कि रैनी सीजन के दस दिनों की शूटिंग की विशेष अनुमति बीबीसी को मिल सकती है। तीन साल होगी शूटिंग बीबीस ने इस वर्ष मार्च माह में शूटिंग करने का एडवांस भुगतान करीब 44 लाख रूपए कर दिया है। पार्क में पिछले वर्ष एक करोड़ से अधिक रूपए फिल्मांकन से अर्जित किए थे। इसके पूर्व भी पार्क में शूटिंग हो चुकी है। सीएच मुरली कृष्ण फील्ड डायरेक्टर बांधवगढ़ नेशनल पार्क दो वर्ष अगले दो वर्ष डेढ़ करोड़ रूपए में बसंत फिल्म --------------------------------------------------- दक्षिण भारत में भी बिकने लगी आदिवासी बालाएं डिंडौरी में लड़कियां बेंचने वाले दलाल ने खोला राज जबलपुर। आदिवासी जिले डिंडौरी और मंडला में आदिवासी बालाओं की तस्करी का कारोबार थम नहीं रहा है। यहां आदिवासी बालाओं को दिल्ली नोयड़ा और उत्तराखंड में बेचे जाने का अवैध कारोबार धडल्ले से चल रहा है। कई गिरोह पकड़े भी जा चुके है लेकिन गत 20 जनवरी को डिंडौरी पुलिस ने जब मानव दुर्व्यापार में जुड़े दो दलालों को पकड़ा तो पहली बार यह राज खुला कि आदिवासी बालाएं दक्षिण भारत में भी बिक रही है। दरअसल अपराधी बालाओं को मजदूरी के बहाने दूसरे राज्यों में ले जाकर बेंच रहे हैं, जिससे काफी समय तक पुलिस की निगाह में नहीं आते है। हाल ही में डिंडौरी जिले में चौकाने वाला मामला प्रकाश में आया जिसमें एक आदिवासी युवती को केरल में बेचने ले जाया जा रहा था जिसको पुलिस ने पकड़ा। पुलिस मामले की अब भी गहन जांच पड़ताल में जुटी है। जबलपुर के पड़ोसी जिले मंडला और डिडौंरी में मानव व्यापार का अवैध कारोबार पिछले एक दसक से चल रहा है। पुलिस के आला अफसरों का भी मानना है कि इस कारोबार पर पूरी तरह रोक नहीं लग पाई है। दूर- दराज के आदिवासी गांवों में बालाओं को काम धंधे में लगाने के बहाने उनके अभिभावकों को रकम देने के बाद दलाल ले जाते है और ये बालाएं बंधुआ मजदूर बना ली जाती है। इतना ही नहीं इनका दैहिक-शोषण भी होता है। तीन अपराध दर्ज डिंडौरी जिलें में बीते वर्ष आदिवासी युवतियों को बेचे जाने के तीन मामले पंजीबद्ध किए गए है। इसमें आरोपी भी पकड़े गए। इसी तरह मंडला जिले में दो मामले दर्ज हुए जबकि जबलपुर में मानव व्यापार का एक भी मामला दर्ज नहंी है जबकि यहां भी युवतियां छतरपुर एवं राजस्थान में बेची जाने की घटनाएं वर्ष 2014 में प्रकाश में आई है। विवाह के नाम पर अपहरण डिंडौरी में ही गत 20 जनवरी को समनापुर थाना में दो दलाल द्वारा मिलकर एक आदिवासी बाला को केरल बेंचने के लिए ले जा रहे थे जिन्हें पुलिस ने सुनियोजित तरीके से दबोचा। समनापुर पुलिस के अनुसार रामसहाय नामक दलाल जो कि लम्बे अर्से से आदिवासी बालाओं के बेंचने के मामले में संदिग्ध है। वह अपने साथी भले सिंह के सम्पर्क में आया। उसके साथी ने ने एक युवती का विवाह राम सहाय से कराने का झांसा दिया और उसको विवाह के बहाने डिडौंरी लेकर पहुंचा था तथा वहां से केरल ले जाकर बेचने की योजना थी लेकिन इसके पहले ही पुलिस ने दोनों को दबोच लिया। पुलिस ने इस मामले में अपहरण का मामला दर्ज किया है। केरल गई है टीम सूत्रों के अनुसार पुलिस को चौकाने वाली जानकारी आरोरियों से मिली है। उसके अनुसार डिंडौरी के अतिरिक्त मंडला से भी कई आदिवासी बालाएं केरल में बेंची जा चुकी है। केरल में आदिवासी बालाओं को खरीद कर दक्षिण भारत के बड़े शहरों में सप्लाई करने वाला गिरोह सक्रिय है। इस गिरोह की तलाश के लिए टीम केरल गई है। पुलिस इस मामले में संजीदगी से पड़ताल करे तो एक बड़ा नेटवर्क सामने आ सकता है। पुलिस मामले की जांच पड़ताल कर रही है। केरल भी पुलिस दल रवाना किया गया है। दरअसल मजदूरी के बहाने अधिकांश लड़कियों को बाहर ले जाया जाता है जिसके कारण उनके अपहरण की भी रिपोर्ट नहंी होती है। आदिवासी क्षेत्र में बालाओं को बेचे जाने कुप्रथा जैसे है। इसके लिए व्यापक सर्वे की जरूरत है लेकिन पुलिस की सख्ती के कारण काफी समय से ऐसी बड़ी घटना प्रकाश में नहीं आई है। मोहम्मद यूसूफ पुलिस अधीक्षक डिंडौरी ................................................................................................ समाज सेवा में समर्पित दंपत्ति दीपंकर और मिताली बैनर्जी ने दी शहर को विकलांग सेवा की नई राह जबलपुर। गैर सरकारी संगठन विकलांग सेवा भारतीय संस्था से जुड़ कर समाज के विकलांग बच्चों के कल्याण के लिए काम करने रही बैनर्जी दंपत्ति ने सिर्फ नि:शक्त बच्चों को समाज की मुख्यधारा में जोड़ने का समाज सेवी कार्य भर नहीं किया बल्कि इनके कार्य के प्रति लगन एवं सेवा भाव से समाज प्रेमी और लोगों को प्रेरणा मिली और जबलपुर में विकलांगों की सेवा क्षेत्र में एक क्रांति ने जन्म लिया। यही वजह है कि आज दर्जनों लोग इस क्षेत्र में सेवाभाव से कार्य कर रहे हैें। यदि विकलांग सेवा भारतीय संस्था की बात की जाए तो संस्था 1960 से मान्यता प्राप्त है। जबलपुर में सन् 1991 से ही सही मायने में समाज के सामने आई। जबलपुर में मानसिक रूप से मंद तथा मूक-बधिर बालक-बालिकाओं के लिए संस्था कार्यरत है। शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में 14 जनवरी 1991 में विकलांग सेवा भारती ने दो बच्चों के साथ काम करना शुरू किया। सन् 1994 से पूर्व सांसद जयश्री बैनजी के सुपुत्र दीपांकर बैनर्जी इस संस्था से जुड़ कर समाज के नि:शक्त बच्चों की सेवा कार्य में जुड़े तो संस्था ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और विकलांग बच्चों की सेवा के लिए बकायदा दो स्कूल संचालित होने लगे। वर्तमान में संस्था में लगभग 150 बच्चे हैं। इन विकलांग बच्चों को इस तरह संस्था में सक्षम बनाया जा रहा है कि यहां से पढ़ने एवं प्रशिक्षण पाने वाले अब सामान्य जीवन में स्वालम्बी बन चुके है। स्वयं का रोजगार कर रहे हैं या फिर किसी संस्था में पूरी जिम्मेदारी से नौकरी कर रहे है। संस्था को अपने उद्देश्यों में सफलता तक पहुंचाने में बहुत बड़ा योगदान दीपांकर बैनर्जी का है। दीपांकर बैनर्जी ने सिर्फ जबलपुर ही नहीं बल्कि प्रदेश में विकलांग बच्चों के कल्याण के लिए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। श्री बैनजी सन 2007 से लेकर 2014 तक आयुक्त नि:शक्तजन के पद पर रहे तथा नि:शक्तों के कल्याण के लिए अनेक कार्य किए। श्री बैनर्जी ने बताया कि मुझे बेहद खुशी मिलती है नि:शक्त बालक बालिकाओं के कल्याण के लिए कार्य करने में। मुझे इसके लिए अपनी माताजी का आर्शिवाद प्राप्त है। सर्वाधिक खुशी की बात है कि जबलपुर से हर बार दो-तीन विकलांग बालक बालिकाएं विकलांगों के लिए आयोजित ओलम्पिंक में भाग लेते है। इस वर्ष भी दो विकलांगों का जबलपुर से चयन हुआ है। संस्था के पुलिस लाइन तथा जार्ज टाउन स्कूल में दो प्रशिक्षण संस्थाएं संचालित की जा रही है। मिताली बैनजी का सहयोग अपने पति दीपांकर बैनर्जी के साथ समाज सेवा के कार्य में हमेशा उनकी धर्मपत्नी मिताली बैनर्जी का सहयोग रहा है। परिवारिक कामकाज के बाद जब भी समय निकलता है वे समाज सेवा के पुनीत कार्य में अपनी आहूति देती रही है। विकलांगों की सेवा में समर्पित उनके कार्य के चलते उसको विकलांग सेवा भारतीय संस्था में महत्वपूर्ण एवं जिम्मेदारी का सचिव पद सौंपा गया है। आज उनके नेतृत्व में विकलांग सेवा भारतीय संस्था उत्तरोत्तर प्रगति कर रही है और नित नए आयाम दिशा में स्थापित कर रही है। विकलांग सेवा भारतीय संस्थान के बालक बालिकाओं द्वारा उत्पादित सामग्री को लेकर मेला एवं कार्यक्रमों में लगने वाले स्टॉल में लोगों की भीड़ स्वयं बयान कर देती है कि उनको उच्च्चकोटी का और प्रतिस्पर्धा में खरे उतरने वाला प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिससे विकलांग समाज की मुख्यधारा में जुड़ने के बाद स्पर्धा में अव्वल रहें। .................................................................................................... 7771837888 शहर के आटो चालक स्मैक की गिरफ्त में स्मैक के अवैध कारोबार का मकड़जाल फैला जबलपुर। शहर में स्मैक का मकड़जाल जबदस्त तरीके से फैलता जा रहा है। स्मैक बढ़त
Sunday, 31 May 2015
ब्रिटिश हुकुमत की यादगार टॉउन हॉल गांधी प्रतिमा अनावरण के साथ बन गया गांधी भवन
जबलपुर। भारतीय इतिहास में ईस्ट इंडिया कम्पनी की लूट खसोट एवं भारतीय राजवाड़ों को हड़पे जाने से उपजे 1857 के विद्रोह बाद भारत में ब्रिटिश हुकुमत ेकी यादगार है टॉउन हॉल। दरअसल ब्रिटेश की महारानी विक्टोरिया के जुबली वर्ष पर उनकी चिरकालीन स्मृति में जबलपुर के राजा गोकुलदास राय बहादुर बल्लभ दास सेठ ने 30 हजार रूपए की लागत से भवन बनाकर ब्रिटिश कमिश्नर को 1890 में सौंपा था। इसका भवन को जनता के उपयोग के लिए बनाया गया था बाद में इसका संचालन नगर निगम के हाथों में आ गया। आजादी पूर्व के नगर पालिका इस भवन को नगर में होने वाले उत्सव एवं कार्यक्रमों के लिए उपयोग करती रही है। वर्षो तक इस ऐतिहासिक इमारत का नाम टाउन हाल रहा है। ये नाम देश प्रेमियों को ब्रिटिश हुकुमत की यादगार दिलाता रहा है। जबलपुर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को तो भी भी हाउन हाल नाम पसंद नहीं आया। ये इमारत ब्रिटिश साम्राज्ञी की स्मृति पर बनी जरूर लेकिन इस दौर में भवन कला का ये बेजोड नमूना रही है। फारसी और भारतीय स्थापत्य कला का मिला जुला नमूना है। भारतीय शैली से पत्थर की नींव तथा फारसी इंजीनियरिंग के आधार पर बेस स्थापित किया गया। इसकी दीवारे डेढ़ से दो फुट मोटी पक्के ईटों की थी। ईटों के बीच चूना और रेत की जुड़ाई तथा इसी का प्लास्टर है जो अब भी मौजूद है। बाहरी तथा भीतरी वास्तु सज्जा में फारसी गुम्बद, झरोके तथा आर्च का बहुतायत से उपयोग किया गया है। सिलालेख में उल्लेख है कि 1890 में तैयार हुए इस भवन की कीमत 30 हजार रूपए थी। 1962 में हुआ गांधी भवन इस ऐतिहासिक इमारत में आजादी के साथ ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की गतिविधियां शुरू हो गई थी। इसको ब्रिटिश शाासन की यादगार के साथ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की याद और स्मृति से जोड़नें की बात उठने लगी। तत्कालीन महापौर रामेश्वर प्रसाद गुरू ने भवन का कायाकल्प कराते हुए यहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा स्थापित की गई। इस प्रतिमा का अनावरण गांधीवादी तथा भू दान आंदोलन के महा नायक जय प्रकाश नारायण ने किया। जबलपुर का टाउन हाूॅल गांधी भवन हो गया। यहां स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वाचनालय तथा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उत्तराधिकारी संघ को एक रूम आवंटित है। इसके अतिरिक्त गांधी भवन को नगर निगम का वाचनालय स्थापित है। इसमें एतिहासिक गजट, एतिहासिक समाचार पत्र एवं पुस्तकों के भरमार है। यह वाचनालय जबलपुर एतिहास की अनमोल धरोहर है जिसमें ब्रिटिश हुकुमत के दौरान जारी होने वाले कई आदेश तथा गजट का व्यौरा मिलता है। वर्तमान हालत गांधी भवन के सामने खुले मैदान में महात्मा गांधी की प्रतिमा स्थापित है जिसपर गांधी जयंती तथा 30 जनवरी को कांग्रेसी तथा गांधी विचारधारा के लोग श्रद्धासुमन अर्पित करने आते है। पार्क की दीवार जर्जर हालत हो चली है। फुहारा तथा उसकी टंगी की हालत जर्जर है। टाउन हाल के चारों तरफ जबदस्त गंदगी व्याप्त है। गांधी की छत्रछाया में नशाखोरी विक्टोरिया अस्पताल के बाजू से स्थित टाउन हाल में गांधी की प्रतिमा तले उनकी छत्रछाया में जबदस्त तरीके से नशाखोरी चलती है। एविल तथा अन्य नशीले इंजेक्शन लगाने वाले तत्वों ने यहां डेरा जमाए रहते है। वाचनालय के रात्रि 8 बजे बंद हो जाने के बाद परिसर की दीवार कूंद कर नशेलची अपना डेरा जमा लेते हैं।
समाज से उपेक्षित बंदियों का रहनुमा
राजनीति से हटकर कार्य
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दीपक परोहा
9424514521
जबलपुर। कमलेश अग्रवाल वर्तमान में नगर निगम में पार्षद एवं मेयर इन काउंसिल सदस्य हैं और भाजपा के सक्रिय कार्यकर्ताओं में शुमार हैं। राजनीति से हटकर समाज सेवा भी कमलेश अग्रवाल अग्रवाल के जीवन का एक हिस्सा है लेकिन इसे चर्चा और सुर्खियों में रखने पर भरोसा नहीं करते हैं। समाज सेवा के क्षेत्र में कमलेश अग्रवाल ने एक अनूठा कार्य कर रहे है जिसपर किसी का ध्यान नहीं जाता है।
वे अपने इस कार्य से केन्द्रीय जेल जबलपुर में वर्षो से सजा काट रहे और अपने समाज और परिवार से उपेक्षित बंदियों के रहनुमा बन गए हैं। दरअसल जबलपुर केन्द्रीय जेल ही नहीं प्रदेश भर के जेल में सैकड़ों की संख्या में ऐसे बंदी हैं जिनकी सजा खत्म हो जाती है लेकिन आर्थिक परेशानियों ओर परिवार व अपने समाज की उपेक्षा के कारण अपना अर्थदण्ड जमा नहीं कर पाते हैं जिससे उन्हें सश्रम कारावास पूरा भुगतने के बाद भी अर्थदण्ड जमा न कर पाने के कारण कारवास भोगना पड़ता है। खासतौर पर जीवन कारवास की सजा प्राप्त बंदी इनमें शामिल हैं जिन्होंने 14 साल की सजा पूरी कर ली और आजाद होने का स्वप्न संजोए है लेकिन आर्थिक तंगी के कारण काल कोठरी में मुक्ति नहीं मिल पाती है। कैद के दिन बढ़ जाते है ऐसे में एक-एक घंटे उन्हें वर्ष समान लगते है। ऐसे बंदियों का अर्थदण्ड जमा करने का काम पिछले पांच साल से कमलेश अग्रवाल कर रहे है। इसके इस कार्य में उनके मित्र एवं परिवार का सहयोग मिलता है।
15 अगस्त को होती है थोक में रिहाई
कमलेश अग्रवाल जेल के अधिकारियों से संपर्क करके उन बंदियों के सम्बंध में पतासाजी करते हैं जिनको उनके परिवार वाले उपेक्षित कर चुके है। उनका सामाजिक बहिष्कार लगभग हो चुका है। उनसे मिलने जुलने कोई नाते रिश्तेदार नहीं आते हैं और वे अर्थदण्ड भरने की स्थिति में नहंी है। उनकी कुछ महीने या दिनों की सजा भी 15 अगस्त के मौके पर माफ करती है उन बंदियों का अर्थदण्ड श्री अग्रवाल स्वयं भरते हैं, और 15 अगस्त को थोक में रिहाई होती है। यूं तो प्रदेश भर के जेलों में ऐसे बंदियों की भरमार हैं लेकिन व्यक्ति की अपनी सीमाएं होती है। कमलेश अग्रवाल अपने सामर्थ के हिसाब से केन्द्रीय जेल जबलपुर के बंदियों को रिहा कराने में अपना योगदान देतें हैं। ये बंदी जबलपुर के कम बाहरी जिलों के ज्यादा होते है। उनकी रिहाई से कमलेश को राजनैतिक लाभ तो नहीं मिलता है लेकन मन में किसी को आजादी दिलाने का जो सकून महसूस करते हैं उसे वे अनमोल मानते है। कमलेश अग्रवाल की अपेक्षा है कि और शहर ही नहीं प्रदेश के भी और लोग इस तरह के कार्य के लिए आगे आए, जिससे धन के कारण कोई बेवजह एक दिन की भी सजा न काटे।
4 सौ से अधिक को रिहा कराया
श्री अग्रवाल ने अब तक 400 से अर्थिक बंदियों को रिहा करा चुके हैं। स्वयं एवं परिवार के सहयोग से करीब 4 लाख रूपए का अर्थदण्ड इन बंदियों के बदले भर चुके है। बंदियों को रिहा कराने के अतिरिक्त प्रतिवर्ष वे एक रक्तदान शिविर करते है जिसमें दो से तीन सौ लोग रक्तदान करते है। वे प्रतिवर्ष 31 दिसम्बर को वृद्धजनों के लिए भंडारे का आयोजन करते हैं। उन्होंने छात्र राजनीति से अपना राजनैतिक कैरियर शुरू किया। 45 वर्षीय श्री अग्रवाल 20 साल से सक्रिय राजनीति में है तथा दूसरी बार मेयर इन काउंसिल सदस्य नगर निगम में बने है। इसके अतिरिक्त भाजयुमों में विभिन्न पदों में रह चुके हैं।
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