दीपक परोहा
9424514521
ग्लोबल वार्मिंग से स्कीन कैंसर से बचाव के लिए कवच तैयार
* अल्ट्रावायलेट प्रोटैक्टर लेयर इजाद की शिखा ने
* इस शोध आईआईटी मुम्बई ने बनाया रिसर्च एसोसियेट
जबलपुर। बिगड़े पर्यावरण के कारण ग्लोबल वार्मिंग जिस तेजी से बढ़ा है, उससे सूर्य की खतरनाक अल्टावॉयलेट रेज धरती में ज्यादा मात्रा में आ रही है। इससे कैंसर बढ़ा है। ओजोन लेयर कम होने पर सूर्य की खतरनाक विकिरण से बचाव के लिए साइंस कॉलेज की छात्रा शिखा चौहान ने पॉलिमर लेयर तैयार की है, जो अल्ट्रावायलेट किरणों के लिए कवच की तरह है।
ये लेयर पॉलीथिन मटेरियल की होने के बावजूद टॉक्सीन रहित है। इसको कई चरणों में विभिन्न संस्थाओं ने परख लिया है। खतरनाक अल्ट्रावायलेट रे को पॉलिमर लेयर पार नहीं होने देती है। इस मटैरियल को अल्ट्रावायलेट प्रोटैक्टर लेयर नाम दिया गया है। ये शोध विश्व में अनूठा है। इसके सूक्ष्म लेयर को चाहे तो लेप की तरह शरीर में चिपकाया जा सकेगा। इसको जेली की तरह उपयोग किया जा सकता है। इतना ही नहीं वस्त्र उद्योग में इसका उपयोग कर घातक किरणों से बचाव करने वाले वस्त्र भी भविष्य में तैयार किए जा सकते हैं।
सेना के लिए बेहद उपयोगी
ये शोध सेना के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकता है। लद्दाख एवं हिमालय के ग्लेशियर में तैनात फौजियों के सामने सबसे बड़ी समस्या हिम से परावर्तित होकर आने वाली अल्ट्रावायलेट रेस होती है जिसके प्रभाव से फौजियों की चमड़ी पर घातक असर होता है और वे कैंसर जैसी बीमारी के शिकार हो जाते है। अनेक पर्वतारोही इसी किरणों के कारण अपनी आंखे खो देते है। ऐसे में ये लेयर उनके लिए रक्षा कवच का काम करेगी। बर्फीले इलाके में रहने वाले लोग अपने घरों की खिड़की एवं दरवाजे में इसके पर्दे लगा सकते है। इसी तरह पायलेट अपने विमान के विन्डो में पॉलिमर लेयर चढ़ाई जा सकती है।
गहन परीक्षण हुआ
साइंस कॉलेज की इस छात्रा की रिसर्च को वैज्ञानिक संस्थाओं ने जांचा और परखा भी है। छात्रा द्वारा तैयार यूवीपीएल(अल्ट्रावायलेट प्रोटेक्टेड लेयर) को आईआईटी मुम्बई, ट्रिपल आईटीडीम जबलपुर, इंदौर ,कलकत्ता विश्व विद्यालय के वैज्ञानिकों ने परखा और ओके किया। इसक परिणाम है कि इस नव वैज्ञानिक को आईआईटी मुम्बई ने अपने यहां रिसर्च करने के लिए दो साल का अनुबंध कर रिसर्च एशोसियेट के पद पर चयन किया है। वे 14 जुलाई से आईआईटी में रिसर्च का कार्य प्रारंभ करेंगी। इस खोज के लिए उन्हें यंग साइंटिस्ट एवार्ड मिला है। मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान भी सम्मानित कर चुके है। उनकी रिसर्च का प्रकाशन होने के उपरांत उन्हें 28 से 1 दिसम्बर तक हांगाकांग में होने वाली इंटरनेशनल कांफ्रेंस में रिसर्च पेपर प्रजेंट करने का निमंत्रित किया गया है। उन्होंने ये अनुसंधान साइंस कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. अनिल बाजपेई के मार्गदर्शन में किया है।
वर्जन
मैने फिलहाल जो मैटेरियल बनया है, वह कार्बनिंग कम्पाउंड है जिसमें जिंक आॅक्साइड रहता है। ये मटैरियल अल्ट्रावायलेट किरणों को एब्जर्व कर लेता है जिससे शरीर को नुकसान नहंी है। ये हार्ड एवं जेली दोनों अवस्था में रह सकता है। इसका उपयोग पतली फिल्म के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है। आंखों की सुरक्षा के लिए इसको चश्मे पर भी चढ़ाया जा सकता है।
शिखा चौहान
युवा वैज्ञानिक, जबलपुर
9424514521
ग्लोबल वार्मिंग से स्कीन कैंसर से बचाव के लिए कवच तैयार
* अल्ट्रावायलेट प्रोटैक्टर लेयर इजाद की शिखा ने
* इस शोध आईआईटी मुम्बई ने बनाया रिसर्च एसोसियेट
जबलपुर। बिगड़े पर्यावरण के कारण ग्लोबल वार्मिंग जिस तेजी से बढ़ा है, उससे सूर्य की खतरनाक अल्टावॉयलेट रेज धरती में ज्यादा मात्रा में आ रही है। इससे कैंसर बढ़ा है। ओजोन लेयर कम होने पर सूर्य की खतरनाक विकिरण से बचाव के लिए साइंस कॉलेज की छात्रा शिखा चौहान ने पॉलिमर लेयर तैयार की है, जो अल्ट्रावायलेट किरणों के लिए कवच की तरह है।
ये लेयर पॉलीथिन मटेरियल की होने के बावजूद टॉक्सीन रहित है। इसको कई चरणों में विभिन्न संस्थाओं ने परख लिया है। खतरनाक अल्ट्रावायलेट रे को पॉलिमर लेयर पार नहीं होने देती है। इस मटैरियल को अल्ट्रावायलेट प्रोटैक्टर लेयर नाम दिया गया है। ये शोध विश्व में अनूठा है। इसके सूक्ष्म लेयर को चाहे तो लेप की तरह शरीर में चिपकाया जा सकेगा। इसको जेली की तरह उपयोग किया जा सकता है। इतना ही नहीं वस्त्र उद्योग में इसका उपयोग कर घातक किरणों से बचाव करने वाले वस्त्र भी भविष्य में तैयार किए जा सकते हैं।
सेना के लिए बेहद उपयोगी
ये शोध सेना के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकता है। लद्दाख एवं हिमालय के ग्लेशियर में तैनात फौजियों के सामने सबसे बड़ी समस्या हिम से परावर्तित होकर आने वाली अल्ट्रावायलेट रेस होती है जिसके प्रभाव से फौजियों की चमड़ी पर घातक असर होता है और वे कैंसर जैसी बीमारी के शिकार हो जाते है। अनेक पर्वतारोही इसी किरणों के कारण अपनी आंखे खो देते है। ऐसे में ये लेयर उनके लिए रक्षा कवच का काम करेगी। बर्फीले इलाके में रहने वाले लोग अपने घरों की खिड़की एवं दरवाजे में इसके पर्दे लगा सकते है। इसी तरह पायलेट अपने विमान के विन्डो में पॉलिमर लेयर चढ़ाई जा सकती है।
गहन परीक्षण हुआ
साइंस कॉलेज की इस छात्रा की रिसर्च को वैज्ञानिक संस्थाओं ने जांचा और परखा भी है। छात्रा द्वारा तैयार यूवीपीएल(अल्ट्रावायलेट प्रोटेक्टेड लेयर) को आईआईटी मुम्बई, ट्रिपल आईटीडीम जबलपुर, इंदौर ,कलकत्ता विश्व विद्यालय के वैज्ञानिकों ने परखा और ओके किया। इसक परिणाम है कि इस नव वैज्ञानिक को आईआईटी मुम्बई ने अपने यहां रिसर्च करने के लिए दो साल का अनुबंध कर रिसर्च एशोसियेट के पद पर चयन किया है। वे 14 जुलाई से आईआईटी में रिसर्च का कार्य प्रारंभ करेंगी। इस खोज के लिए उन्हें यंग साइंटिस्ट एवार्ड मिला है। मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान भी सम्मानित कर चुके है। उनकी रिसर्च का प्रकाशन होने के उपरांत उन्हें 28 से 1 दिसम्बर तक हांगाकांग में होने वाली इंटरनेशनल कांफ्रेंस में रिसर्च पेपर प्रजेंट करने का निमंत्रित किया गया है। उन्होंने ये अनुसंधान साइंस कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. अनिल बाजपेई के मार्गदर्शन में किया है।
वर्जन
मैने फिलहाल जो मैटेरियल बनया है, वह कार्बनिंग कम्पाउंड है जिसमें जिंक आॅक्साइड रहता है। ये मटैरियल अल्ट्रावायलेट किरणों को एब्जर्व कर लेता है जिससे शरीर को नुकसान नहंी है। ये हार्ड एवं जेली दोनों अवस्था में रह सकता है। इसका उपयोग पतली फिल्म के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है। आंखों की सुरक्षा के लिए इसको चश्मे पर भी चढ़ाया जा सकता है।
शिखा चौहान
युवा वैज्ञानिक, जबलपुर