Saturday, 4 February 2017

गधे खाएंगे चमनप्राश..गाय लेगी हर्बल टॉनिक


 गधे खाएंगे चमनप्राश..गाय लेगी हर्बल टॉनिक

* अब  मवेशियों के उपचार में एलोपैथी दवाइयों से तौबा
दीपक परोहा
9424514521

 जबलपुर। आयुर्वेद एवं हर्बल टॉनिक्स अमूमन एक समय में आम आदमी की पहुंच के बाहर थी जिसको लेकर एक कहावत भी है क्या गधे चमनप्राश खाएंगे? जी हां अब कुछ ऐसी ही स्थिति बन रही है कि गधों का भी चमनप्राश खाने को मिलेगा और गाय -बैल तक हर्बल टॉनिक लेंगे,  ये  आश्चर्य जनक नहीं है। नाना जी देशमुख कृषि विश्व विद्यालय में मवेशियों के लिए हर्बल टॉनिक एवं मेडीशन निर्माण का प्रोजेक्ट शुरू हो गया है। गाय, बैल , घोड़ा,खच्चर, मुर्गी और बकरी तक के लिए दवाइयों का उत्पादन होगा।
  दरअसल एलोपैथी दवाइयां मानव स्वास्थ पर प्रतिकूल असर डालती है, इसके साइड इफैक्ट भी कई बार बेहद खतरनाक और घातक होते है। इसके चलते सामान्य स्वास्थ वर्द्धन  के लिए लोग  हर्बल औषधी का इस्तेमाल कर रहे है। अनुसंधान में यह सामने आया है कि इंसान की तरह मवेशियों एवं जानवारों को भी एलोपैथी दवाइयों के साइड इफैक्ट होते है। उनके दूध उत्पादन सहित अन्य क्षमताओं में गिरावट आती है। इसको ध्यान में रखते हुए नानाजी देशमुख  पशु चिकित्सा विश्व विद्यालय में जानवरों के लिए भी हर्बल मेडिशन तैयार करने की दिशा में कार्य शुरू किया  गया है।
 सस्ते हर्बल प्रोडक्ट लाएंगे
 नाना जी देश मुख पशु चिकित्सा विश्व विद्यालय गाय बैल सहित अन्य पालतू मवेशियों के लिए सस्ते हार्बल प्रोडक्ट एवं हर्बल मेडिशन लांच करने जा रहा है। इस प्रोजेक्ट की यहां शुरूआत कर दी गई है, मवेशियों में इसका असर और फायदे पर अनुसंधान कर लिया गया है। इसके बाद  एक कंपनी के साथ एमओयू भी  साइन किया गया है।  इस योजना के तहत विश्व विद्यालय सस्ता कच्चा माल उत्पादन करने के लिए अपनी जमीन में औषधी प्लांट की खेती करने जा रहा है। इसमें अश्व गंधा, सतावर, सफेद मूसली, हल्दी, तुलसी सहित अनेक तरह की औषधी प्लांट की खेती की जाएगी।
अनेक फार्मूले तैयार
जानकारी के अनुसार मवेशियों में होने वाली बीमारियों, पालतू गाय भैंस के  दूध की शक्ति एवं गुणवत्ता बढ़ाने के लिए औषधीय प्लांट से दवा एवं टॉनिक तैयार करने के कई फार्मूले पशु चिकित्सा विश्व विद्यालय ने इजाद कर लिए है। इसी तरह पॉल्ट्री फार्म के लिए ऐसे हर्बल दाने तैयार किए गए है जिससे खाने से मुर्गी जो अंडा देगा उसमें कोलस्ट्राल की मात्रा कम होगी। अंडे और अधिक शक्ति वर्धक होंगे। हर्बल मेडिशन के लिए विश्व विद्यालय द्वारा तैयार फार्मूला फिलहाल गुप्त रखा गया है। दरअसल विश्व विद्यालय अपने फार्मूले को पेटेन्ट कराना चाहता है।
उत्पादन का प्रस्ताव भेजा
 वानस्पतिक औषधी पौधे लगाने वाटिका तैयार करने का काम शुरू हो गया है अगले वर्ष तक विश्व विद्यालय मवेशियों के लिए कई तरह की दवाइयां तैयार कर लेगा तथा इससे मवेशियों को उपचार भी प्रारंभ कर दिया जाएगा। शासन को प्रस्ताव तैयार करके भी भेजा जा चुका है।
वर्जन***
 मवेशियों को होने वाली कई तरह की बीमारी के उपचार के लिए वनस्पतियों से दवाइयां हम तैयार करने जा रहे है। शक्तिवर्धक दवाइयों से मवेशियों के दुग्ध उत्पादन भी बढ़ेगा। पोल्ट्री एवं गोटरी के लिए मेडिशन तैयार की जाएगी।  इन औषधी के बिक्री से विश्व विद्यालय की आय में भी इजाफा होगा।
प्रयाग दत्त जुयाल
 कुलपति पशु चिकित्सा विश्व विद्यालय जबलपुर। 

खेत में खड़े होने पर मोबाइल से मिलेगी सॉइल रिपोर्ट


सॉइल मैपिंग एप जल्द ही होगा लांच
* खेत में खड़े होने पर मोबाइल से मिलेगी सॉइल  रिपोर्ट
 * मैपिंग का काम अभी बाकी
 जबलपुर। खेत में खड़े किसान, अपने घर और खलिहान में मौजूद किसान को अपने मोबाइल में सॉइल रिपोर्ट एक बटन दबाने पर मिल जाए। इसके लिए कृषि विश्व विद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा एप विकसित करने का काम किया जा रहा है, जो जल्द ही पूरा होने की संभावना है। इस एप को तैयार करने के लिए आवश्यक डाटा एवं तकनीक का एक हिस्सा तो जुटा लिया गया है लेकिन मैपिंग के लिए महत्वपूर्ण तकनीक में अभी कुछ समय लगेगा।
कृषि विश्व विद्यालय के वैज्ञानिकों की माने तो इस तकनीक के विकसित होने पर जल्द ही इसको प्रदेश सरकार द्वारा लांच किया जाएगा। इस प्रोजेक्ट पर कार्य करने के लिए शासन से राशि प्राप्त हो रही है। यह एप करीब दो माह पहले ही पूरी तरह बन कर तैयार हो जाना था लेकिन तकनीक समस्याओं के कारण इसमें अभी आधा काम बाकी है। कृषि विश्व विद्यालय एप को जल्द पूरा करने की कोशिश में लगा है।
 जीपीएस से जुड़ा
 इस एप के माध्यम से यदि किसान अपने खेत में खड़ा होकर एप का इस्तेमाल करता है तो गुगल नक्शे के आधार पर एप में जमीन की पहचान हो जाएगी और उस जमीन की सॉइल रिपोर्ट किसान के हाथ में होगी।  कृषि वैज्ञानिक चाहते है कि किसान एप में अपना जिला ,ब्लाक एवं खसरा नम्बर डाले तो वह जहां भी मौजूद होगा उसको अपनी जमीन की सॉइल रिपोर्ट मिल जाएगी। इस   रिपोर्ट के आधार पर वह अपनी खेती कर सकता है। लेकिन इस कार्य में सबसे बड़ी बाधा राजस्व नक्शे है। कृषि विश्व विद्यालय राजस्व नक्शे पूरी तरह से प्राप्त नहीं हुए है जिसके कारण अभी खसरा नम्बर डालने पर यह एप स्वाइल रिपोर्ट नहंी दे पा रहा है। इस एप की तकनीक विकसित करने के बाद इसको लांच किया जाएगा। एक बार एप लांच होने पर शीघ्र ही विभिन्न जिलों में कृषि विभाग से विभिन्न क्षेत्र की सॉइल  रिपोर्ट प्राप्त की जाएगी।
 अपडेट भी होगी रिपोर्ट
 सॉइल टेस्ट की रिपोर्ट समय समय पर अपडेट भी की जाएगी। एक दो साल में जमीन की मिट्टी में आने वाले बदलाव भी इस एप में दर्ज हो जाएगे।  जवाहर लाल नेहरू विवि जबलपुर के वैज्ञानिकों की मंशा है कि किसान अपनी जमीन के हिसाब से खेती करे। किस जमीन मेें कौन सी फसल की पैदावार अच्छी होगी उसको ज्ञात हो जाए। किसान को मिट्टी  (सॉइल) टेस्ट के लिए भटकना नहीं पड़ेगा।  किसान अपनी खेत की मिट्टी का परीक्षण घर बैठे कर सकता है लेकिन इसमें कुछ वक्त लगेगा।
 जबलपुर में एक ब्लाक
 में हुए सघन परीक्षण

सॉइल मैप तैयार करने के लिए कृषि विश्व विद्यालय के वैज्ञानिकों न एक ब्लाक का खसरा नम्बर के आधार पर मृदा परीक्षण कर उसकी रिपोर्ट तैयार कर चुके है। भविष्य की योजना है कि हर किसान के अपने खेत की रिपोर्ट उसे एप पर उलब्ध हो सके। जवाहर लाल नेहरू विवि जबलपुर के कृषि विशेषज्ञों ने इसके लिये जीपीएस के जरिए कैप विकसित कर लिया है लेकिन इसका अपडेट करना शेष है।



 क्या होगा टेस्ट में
 इस एप में मिट्टी की जो रिपोर्ट प्राप्त होगी, उसमें 11 पाइंटों कीजानकरी होगी। इसमें मिट्टी में मौजूद पोषकतत्व पोटाश, नाइट्रोजन ( यूरिया), फास्फोरस सहित माइक्रो न्यूट्रेन्ट की जानकारी होगी। इसके अतिरिक्त जमीन की लवणीयता, क्षारीयता तथा अम्लीयता  की जानकारी भी होगी।  जमीन की पीएम वैल्यू की जानकारी एप में मिलेगी। मिटÞटी के प्रकार के हिसाब से उजप के संबंध में भी जानकारी दी जाएगी। ।

वर्जन

सॉइल मैपिंग का एप तैयार करने का काम तेजी से चल रहा है। हमने आधे से अधिक काम कर लिया। उम्मीद है कि जल्द ही एप लॉज कर लिया जाएगा। फिलहाल खसरा नम्बर प्राप्त करने मेंवक्त लग रहा है।
विजय सिंह तोमर
कुलपति कृषि विश्व विद्यालय 

बदनिन से विदेशी पर्यटक तक करवा रहे गोदना


 बदनिन से विदेशी पर्यटक तक करवा रहे गोदना
 * अनाज के बदले अब रूपए मांगे जाने लगे


 जबलपुर। बैगा जनजाति में गुदना बनाने वाली महिलाएं जिन्हें बदनिन कहा जाता है अब उनके पास पर्यटकों की भीड़ रहती है। गुदना आम टेटू बनाने की तुलना में भारी चुभव एवं दर्द पहुंचाने वाला होता है। इस गोदना की स्याही भी बदनिन ही तैयार करती हैं। पीड़ियों से काम करने वाली ये बदनिन गुदना की स्याही बनाने का तरीका अपने परिवार के ही सदस्यों को सिखाते हैं।
 समीपवर्ती आदिवासी बाहुल्य बैगा चक के हर गांव में एक दो बदनिन मौजूद होती है। दरअसल बैगा संस्कृति का एक हिस्सा गुदना है। हरेक आदिवासी महिलाओं के श्रंगार में गुदना प्रमुख होता है। जब लड़की जब 7-8  वर्ष की होती है तभी उसके माता पिता उसकी खूबसूरती लिए गुदना करते हैं। युवतियों में तो जबदस्त शौक होता है।
 बैगा जनजाति पर गहन अध्ययन करने वाले डॉ.वी चौरसिया ने बताया कि डिंडौरी जिले के आदिवासी इलाकों में गोदना परम्परा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। गोदने के आधार पर बैगा आदिवासी की उम्र व समाज की पहचान की जा सकती है।
आय का जरिया बना
 गोदना गोदने वाली बदनिन पहले अनाज के बदले ये महिला बैगाओं के शरीर पर गोदना बना देती थीं किन्तु  बैगा चक में कान्हा होकर आने वाले पर्यटकों के कारण वे भी अब गोदना के बदले रूपए लेने लगी हैं। देशी विदेशी पर्यटक उनसे गोदना बनवाते है। पर्यटकों से 50 से 100 रूपए तक मिल जाते है जबकि बैगा महिलाओं से अब भी उन्हें विशेष आमदनी नहीं हो पाती है।
ऐसे तैयार होती है स्याही
 गोदना बनाने वाली विशेष स्याही काले तिलों को अच्छी तरह भून कर कर उसका लौंदा बनाकर जलाया जाता है। जलने के बाद  प्राप्त स्याही को एक प्रकार की गोंद में मिलाकर पूरी तैयार कर ली जाती है। इसमें भिलवां रस, मालवन वृक्ष का रस या रामतिल में फेंट कर इस्तेमाल किया जाता है। गोदना बनाने के लिए  सुई में डुबो डिबो कर बदनिन विशेष प्रकार की आकृति एवं चिन्ह बनाकर गोदना करती है।
विदेशी संक्रमण का शिकार
 गोदना के दौरान होने वाले जख्म में अमूमन बैगा महिलाओं को इंफैक्शन नहीं होता है लेकिन पर्यटक अधिकांश इंफैक्शन का शिकार हो रहे है। हाल ही में पर्यटक को गोदना के बाद इंफैक्शन हो गया। इस पर गोदना करने वाली महिला ने ही जड़ी-बूटी से इलाज किया।
राजा से बचाने हुई प्रथा प्रारंभ
 बैगा में चलने वाली कथा के मुताबिक बैगा राजा कामुक प्रवृति का था। वह जिस लड़की का उपभोग करता था, उसके शरीर में गोदना की सुईसे निशान बना दिया करता था। राजा के चंगुल से बचने बैगाओं ने अपनी लड़कियों के शरीर में गोदना का निशान बनाने लगे। ऐसी भी धारणा है कि गोदना से चर्म रोग तथा गठिया बात जैसी बीमारी नहीं होती है।