Saturday, 17 October 2015

टीबी का अधूरा इलाज बेहद खतरनाक


डॉ. आरके बाधवा
नाक-कान-गला विशेषज्ञ
फोन-0761-2411993
जबलपुर के ख्यातिलब्ध नाक-कान-गला रोग विशेषज्ञ डॉ. आरके बाधवा की स्वयं के हॉस्पिटल में प्रतिदिन  मरीजों की भारी भीड़ लगी रहती है। उन्होंने असाध्य मामले में इलाज किया है, लेकिन उनका कहना है कि आज भी देश मे टीबी एक खतरनाक बीमारी है, जिसका पूर्ण इलाज बेहद आवश्यक है। अधूरा इलाज बेहद खतरनाक होता है जिससे मरीज को ड्रग रजिस्टेंट ट्यूबरक्लोसिस हो जाता है।
उन्होंने टीबी के संबंध में बताया कि देश में हर वर्ष टीबी के लाखों नए मरीज शिकार हो रहे हैं। करीब 26 लाख लोगों की हर वर्ष इस बीमारी से मौत होती है। टीबी भारत में 30 प्रतिशत जनसंख्या में फैला हुआ है। ये बीमारी शहर एवं देहात सभी जगह पाई जा रहा है। इस रोग में मृत्युदर में गिरावट आई है, लेकिन इसके बावजूद चिंताजनक स्थिति अब भी बनी है।
बीमारी के कारण के संबंध में आपने

Ñबताया कि माइक्रो बैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस के संक्रमण से बीमारी होती है। यदि टीबी का रोगी जिसने इसका इलाज नहीं कराया है अथवा अधूरा इलाज कराया है, वह रोगी बीमारी फैलाव का मुख्य कारण बनता है, लेकिन वर्तमान में अच्छी और असरकारक दवाइयां आने लगी हैं। दवाई के दो दिन सेवन करने के बाद बैक्टीरिया के फैलाव की ताकत 60 प्रतिशत कम हो जाती है। टीबी के मरीज को पौष्टिक आहार, हलका व्यायाम तथा योग करना चाहिए। टीबी के संक्रमण से बचाव के लिए नवजात शिशु को बीसीजी तथा साथ में डीपीटी का टीका लगवाना चाहिए। डॉ. बाधवा का कहना है कि टीबी के इलाज के चलते अधूरा इलाज कराने से ड्रग रजिस्टेंट ट्यूबरक्लोसिस हो जाता है। ऐसे में मरीज को कई बार दवाइयां असर नहीं करती हैं और लाइलाज बीमार में तब्दील हो जाता है। अमूमन गले में गिल्टी टीबी की बीमारी का सूचक होता है। 

एक यूनिट खून से बचेगी 3 की जान




 जबलपुर। एक यूनिट रक्त से डेंगू के तीन मरीज की जान बचाई जा सकती है। प्रदेश में मच्छर जनित रोग डेंगू के रोकथाम के लिए प्रचार प्रसार मुहिम में शासन ने रक्तदान को भी जोड़ा है। प्रदेश में वर्ष 2014-15  इस वर्ष जोरदार तरीके से डेंगू फैला है और मध्यप्रदेश में डेंगू से होने वाली मौतें तो अन्य राज्यों से कहीं अधिक है।
 प्रदेश में जहां डेंगू को प्रकोप बढ़ता जा रहा है, इसके साथ ही उतनी ही भ्रांतियां भी लोगों में बढ़ती जा रही है। डेंगू के टेस्ट के बिना ही निजी चिकित्सक भी हजारों रुपए की कीमती इंटीबायोटिक दवाइयां देकर न केवल मुनाफाखोरी कर रहे हैं बल्कि मरीज के जान से भी खिलवाड़ कर रहे हैं। एन्टीबायोटिक के उपयोग से शरीर की रोग प्रतिरोधन क्षमता स्वत: कम होने लगती है।  मलेरिया अधिकारी अजय कुरील ने बताया कि डेंगू के प्रकरण को लेकर डब्ल्यूएचओ के निर्देश हैं कि सिर्फ पैरासिटामॉल ही दी जाए। पेरासिटामॉल दरअसल एनाल्जेसिक (दर्द निरोधक) एवं बुखार रोधी दवाई है। डब्ल्यूएचओ ने खासतौर पर बच्चों को 101 डिग्री एफ.  तक बुखार आने पर इसी के उपयोग की अनुशंसा की है। दरअसल डेंगू वायरल जनित बीमारी है तथा इसके वैक्सीन एवं दवाई नहीं होती है। शरीर के रोग प्रतिरोधन क्षमता के माध्यम से ही इस पर नियंत्रण होता है। आमतौर पर तीन दिनों के बाद डेंगू नियंत्रण में आ जाता है और सात दिनों में डेंगू का मरीज स्वत: स्वस्थ हो जाता है।
 * प्लेटलेट्स घटना खतरनाक
अजय कुरीन के मुताबिक डेंगू तीन श्रेणी का डेन-1, डेन-2 और डेन-3 आमतौर पर होता है। डेन-3 टाइप के डेंगू में शरीर में तेजी से प्लेटलेट्स की कमी होती है और ऐसी स्थिति में रोगी के आंख, नाक, कान से रक्तस्त्राव होता है। प्लेटलेट्स की संख्या 15 हजार से कम होने की स्थिति में मरीज की जान बचाने के लिए रक्त चढ़ना जरूरी हो जाता है।  एक यूनिट रक्त भी महत्वपूर्ण  एक डोनर से एक यूनिट में 350 ग्राम रक्त लिया जाता है जिससे चढ़ाने योग्य 425 एमएल रक्त तैयार कर लिया जाता है। लैब में उक्त रक्त से करीब 250 ग्राम पीआरपी (प्लाजमा) तैयार किया जाता है। यही पीआरपी डेंगू मरीज के शरीर में प्लेटलेट्स की कमी करता है।
डेन -3 टाइप के घातक डेंगू के मरीज की जान रक्तदान से बच सकती है, 250 ग्राम पीआरपी से  एक ही रक्त समूह के तीन मरीजों को 75-75 एमएल चढ़ाया जा सकता है। इस वजह से डेंगू के रोकथान के प्रचार-प्रसार मुहिम में रक्तदान को बढ़ावा देने की मुहिम भी शासन द्वारा जोड़ी गई है।
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निजी पैथोलॉजी सहित मेडिकल कॉलेज तथा अन्य अस्पतालों में पीआरपी तैयार करने वाली मशीनें मौजूद है। डेंगू के मरीज के लिए रक्तदान करने वाले रक्तदाता के ब्लड से पीआरपी तैयार करने के साथ ही रक्त के शेष बचे हिस्से का भी उपयोग किया जाता है। एक यूनिट रक्त से पीआपी तैयार करने के बाद शेष रक्त को अन्य मरीज के उपयोग में लाया जा सकता है।   डॉ. अमिता जैन  प्रभारी पैथालॉजी विभाग  विक्टोरिया अस्पताल 

स्केलेटोनाइजर का जबदस्त हमला

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सागौन के जंगल पर स्केलेटोनाइजर का हमला : 2015   
 जबलपुर। सागौन के जंगल के मामले में सम्पन्न मध्य प्रदेश के सतपुड़ा क्षेत्र स्थित हरेभरे जंगल में स्केलेटोनाइजर का जबदस्त हमला हुआ है। दरअसल इस वर्ष ठंड विलम्ब से पड़ी और नमी व तापमान अनुकूल होने के कारण जबदस्त तरीके से स्केलेटोनाजर का प्रकोप रहा। इसके कारण बैतूल, होशंगाबाद, पचमढ़ी सहित अन्य कुछ क्षेत्रों के सागौन के  जंगल की हरियाली जबदस्त तरीके से प्रभावित हुइ है। कीटों ने सोगौन की पत्तियां चट करते जा रहे है।  कीट के इस हमले के आगे वन विभाग तथा वन अनुसंधान से जुड़ी संस्थाएं असहाय की स्थिति में है। इन कीटों पर नियंत्रण के लिए रसायन तो मौजूद है लेकिन इस विस्तृत जंगल में इससे दवा का छिंडकाव कर निपटना मुश्किल है। आज तक कोई ऐसा जैविक सिस्टम विकसित नहीं हुआ है जो इस कीट पर अटेक कर उनका सफाया कर दे। 
इसका नियंत्रण मौसम तथा प्रकृति के पर निर्भर करता है। जंगल विशेषज्ञों की माने तो सागौन के वनो में प्रतिवर्ष इस कीट का हमला होता है। कभी इस क्षेत्र तो कभी दूसरे  क्षेत्र में प्रकोप बना रहता है। इस कीट के हमले का प्रतिकूल असर जंगलों पर पड़ता है। संक्रमण वाले पेड की पूरी पत्तियां कीट चट कर जाते है। मात्र जाली नुमा पत्तियां रहती है। संक्रमित पेड़ बारिश के मौसम में भी सूखा नजर आता है। पेड़ कीट के संक्रमण से नष्ट तो नहीं होता है लेकिन पत्तियों से क्लोरोफिल खा लिए जाने से प्रकाश संषलेषण की प्रक्रिया थम जाती है। अगले सीजन में नई पत्तियां उगने पर पेड़ को पुर्नजीवन मिलता है लेकिन इससे पेड़ की बढ़ौतरी पर प्रतिकूल असर पड़ता है इसी तरह इसकी तना भी विकृत होने का खतरा रहता है।  
* रोपणी को बचाया जाता है 
सौगौन की रोपड़ी के दौरान फंगीसाइट एवं पेस्टीसाइड आदि का छिड़काव कर रोपड़ी को बचाया जाता है। वन विभाग का कहना है कि रोपणी संरक्षित और सीमित क्षेत्र में होती है और रोपणी के पौधे भी ज्यादा बड़े नहीं होते है जिससे इसको छिड़काव से बचाया जाता है। रोपणी में यदि कीट लगते है तो पौधे मर तक जाते है। लगभग 30 प्रतिशत तक पौधे इस कीट तथा अन्य बीमारी से प्रभावित रहते है।  अभी कोई उपचार इजाद नहीं  सौगौन में स्केलेटोनाइजर एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। अब तक इसके नियंत्रण की कोई विधि इजाद नहीं हुई है। कीट की लाइफ सर्किल के अधार पर ही प्रतिवर्ष इसका अटैक होता है तथा स्वत: नियंत्रित होता है लेकिन इससे सौगौन की बढ़वारी पर प्रतिकूल असर  पड़ता है। ऐसा कोई दूसरा कीट इजाद नहीं किया जा सका है जो की सागौन की पत्ती पर होने वाले इस कीट को नष्ट करे।  
डॉ. आर के पांडे एसएफआरआई 
वन पर्यावरण विभागाध्यक्ष  
 * क्या है स्केलेटोनाइजर 
 डॉ.यूडे होमकर के अुनसार सौगोन में स्केलेटोनाइजर का प्रकोप होता है जिसमें कीट द्वारा लार्वा अवस्था में पत्तियों के क्लोरोफिलुक्त भाग खाकर पत्तियों को कंकालकृत कर दिया जाता है। इसके बाद लार्वा स्वयं को पत्तियों में लपेटकर प्यूपा में बदल जाता है। प्यूपा से बाद में तितली बनती है। सागौन के वृक्षों के नीचे झाड़ियों/घास को हिलाने पर छोटी-छोटी गेहुंये रंग की तितलियां उड़ती हेै जो कि पत्तियों के नीचे की तरफ  स्वयं को छुपाती है। यह छोटी-छोटी गेहुंऐ रंग की तितलियां वास्तव में स्केलेटोनाइजर कीट  हैं एवं ये झाड़ियों एवं घास के रस पर अपना वयस्क स्तर का जीवन-व्यापन करती है तथा सागौन के पत्तों पर अण्डे देती है इन अण्डों से लार्वा निकलकर सागौन के पत्तों को नुकसान पहुंचाना प्रारंभ करते हैं। 
* खेती करने वाले बरते सावधानियां - 
 1. सागौन के अत्यधिक प्रभावित वृक्षों की पत्तियां गिरना प्रारंभ हो जाती है ऐसे वृक्षों में लगभग एक माह में नयी पत्तियां आना प्रारंभ हो जाती है। गिरी हुई पत्तियों में कीटों के प्यूपा पाये जाते है ऐसी पत्तियों को नष्ट कर देना चाहिये जिससे अगली पीढ़ी का प्रकोप कम हो। 
2. कीट प्रकोप चरम सीमा पर होने पर वयस्क कीटों की संख्या अत्यधिक होती है इन वयस्क कीटों को कीट नाशक रासायन द्वारा अथवा नाइट लाइट ट्रैप के द्वारा वयस्कों को संग्रहित कर नियंत्रित जा सकता है। 
 3. यह देखा गया है कि कीट प्रभावित वन क्षेत्र में कुछ वृक्षों पर कीटों का असर लगभग नगण्य होता है, ऐसे वृक्षों की पहचान कर उन पर अगले वर्ष भी कीट प्रभाव देखा जावे।  यदि हर वर्ष इन पर कीट का प्रभाव कम पड़ता है तो इन वृक्षों में प्राकृतिक तौर पर कीट के प्रभाव से बचने की क्षमता होती है। ऐसे वृक्षों का चयन कर भविष्य में इनसे ही बीज एकत्रित कर कीट प्रतिरोधी पौधे तैयार किये जा सकते है।  
*  दवाओं का छिड़काव किया जाए 
*  डेल्टामेंथ्रिन का 0.003 प्रतिशत या  अल्फामेंथ्रिन 0.003 प्रतिशत/ मेलाथियान का .05 प्रतिशत/  मोनोक्रोटोफास का 0.03 प्रतिशत /  क्लोरोपायरीफास का 0.05 प्रतिशत/  बेसीलस थूरीनजियनसिस जो कि एक बैक्टिरियम है का 1 प्रतिषत घोल पानी में बनाकर छिड़काव करके कीट नियंत्रण किया जा सकता है। संपूर्ण वन क्षेत्र में दवाओं का छिड़काव संभव नही है । 

बफर जोन में भी होंगे टाइगर के दीदार



पर्यटन विकास के लिए किया जाएगा विकसित
जबलपुर। प्रदेश के पांच प्रमुख टाइगर रिजर्व के बफर जोन में पर्यटन के विकास के लिए तैयार प्रस्ताव को केन्द्र शासन से मंजूरी मिल चुकी है तथा मध्य प्रदेश शासन ने बफर जोन के विकास के लिए पर्याप्त राशि भी स्वीकृत कर दी है, जिससे बफर जोन में भी अब सफारी चलेगी तथा पर्यटक टाइगर के दीदार करेंगे, लेकिन यहां रिजर्व टाइगर की तुलना में कम टिकट लगेगी।
जानकारी के अनुसार बफर जोन के जंगलों में पर्यटकों के घूमने तथा जंगली जानवर चीतल सांभर और रिजर्व टाइगर के यहां मौजूद बाघों के दीदार करने के लिए विकास कार्य कराए जाने है। इसके लिए बफर जोन में सफारी चलने के लिए सड़कें तैयार की जा रही है। कई नाले और पुलिया निर्माण का भी काम किया जा रहा है।
शासन ने वाइल्ड लाइफ सर्किट के लिए 95 करोड की राशि स्वीकृत की है।
बांधवगढ़ में पर्यटन शुरू
नेशनल पार्क बांधव गढ़ के बफर जोन में तो पर्यटन के लिए कार्य लगभग शुरू हो गया था। कटनी के खितौली बफर जोन में टाइगरों को हमेश डेरा बना रहता है। यहां बाकायदा टाइगर सफारी के लिए प्रस्ताव भी बनाया गया था, लेकिन इसको मंजूरी नहीं मिली, अलबत्ता इस बफर जोन को पर्यटकों के लिए विकसित किया गया है।
बारिश के सीजन में भी खुलेंगे
नेशनल पार्क बारिश के सीजन में जहां बंद रहते है, वहीं बारिश में पर्यटकों को जंगल का आनंद उठा सके तथा बारिश में यदि अवसर मिले तो टाइगर भी देख सकें, इसके लिए बफर जोन को बारिश में भी खुला रखा जाएगा, लेकिन इसके लिए पुलिया एवं सड़कों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
यह पार्क के होंगे विकसित
वन मंत्री गौरी शंकर शेजवार ने पिछले दिनों घोषणा की है कि मध्य प्रदेश ईको टूरिज्म बोर्ड की योजना के तहत टाइगर रिजर्व में वाइल्ड लाइफ टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए टाइगर रिजर्व पन्ना, टाइगर रिजर्व बांधवगढ़, टाइगर रिजर्व संजय तथा टाइगर रिजर्व पेंच एवं टाइगर रिजर्व सतपुड़ा का शामिल किया गया है।
कैम्पिंग भी होगी
टाइगर रिजर्व में जहां पर्यटकों को सुबह तथा शाम कुछ घंटे ही जंगल में बिताने का अवसर मिलता है, लेकिन बफर जोेन के जंगल में कैम्पिंग तथा ट्रैकिंग के भी प्रबंध किए जा रहे है। कैम्पिंग के लिए मचान, पैगोडा तथा ट्री हाउस निर्माण भी किया जाना है।
पर्यटकों का बढ़ा दबाव
पिछले कई दो वर्षों से यह महसूस किया जा रहा है कि नेशनल पार्क में देशी एवं विदेशी पर्यटकों का काफी दबाव रहता है। यहां पर्यटकों के प्रवेश सीमित संख्या में दिया जाता है। तीन माह पहले से आॅन लाइन बुकिंग भी होती है, वहीं ओपन तत्त्काल बुकिंंग के लिए गेट में मारामारी रहती है। ऐसे में बहुत से पर्यटकों को नेशनल पार्क में प्रवेश न मिलने के कारण काफी निराशा हाथ लगती है। ऐसे पर्यटकों को बफर जोन में प्रवेश के लिए आॅफर खुला रहेगा।

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बफर जोन के विकास के लिए शासन ने बजट जारी किया  है। पर्यटन के विकास के उद्देश्य से बफर जोन में विकास कार्य प्रारंभ कराए गए हैं। बफर जोन के लिए  कुछ नेशनल पार्क में सफारियों की बुकिंग भी  हो रही है।
एके नागर, फील्ड डायरेक्टर, सतपुड़ा रिजर्व 

घर के आंगन से बह रही थी खून की नाली


तकरीबन 20 साल लगातार क्राइम रिपोर्टिंग की है मैंने, अनेक हत्याकांड पर मौके-ए-वारदात पर पहुंचा, लेकिन 12 अक्टूबर 2009 को जो हौलनाक खूनी दृश्य देखा तो सकते में आ गया। सुबह-सुबह मोबाइल फोन पर किसी ने मुझे सूचना दी कि सैनिक सोसायटी में एक साथ 7 हत्याएं हो गई हैं। मामला बड़ा होने के कारण तत्काल मौके पर पहुंचा। सैनिक सोसायटी कॉलोनी में घुसते ही पूरी कॉलोनी में जगह-जगह पुलिस बल तैनात दिखा। घटनास्थल के आसपास लोगों की भीड़ के बजाय पुलिस वालों की भीड़ थी। उनके बीच से होता हुआ, जब उस घर के आंगन के पास पहुंचा तो देखा कि आंगन खून से रंगा हुआ है, घर के भीतर से बहती हुई खून की धार आंगन से होते हुए सड़क पर बह रही थी। यूं तो किसी को उस दौरान पुलिस वाले भीतर नहीं जाने दे रहे थे, किन्तु मुझे जाने की इजाजत दे दी। अन्दर कमरे में तीन लाश पड़ी हुई थीं, जो खून से सनी थीं। इतना वीभत्स दृश्य था, अगले कमरे में झांका तो वहां भी दीवार और फर्श खून से रंगे थे, यूं लग रहा थी पूरे घर में खून की होली खेली गई। तत्कालीन एएसपी सत्येन्द्र शुक्ला से घटनास्थल पर बातचीत हुई तो उन्होंने बताया कि परिवार के मखिया ने ही अपने बूढ़ पड़ोसी, अपनी  मां ा, अपनी पत्नी तथा अपने मासूम बच्चों की हत्या कर दी है। वह इसलिए परेशान था कि पड़ोसी से नाली का विवाद चल रहा था। इसके साथ ही मुझे ध्यान आया कि जिस पड़ोसी से आरोपी का नाली के लिए विवाद चल रहा था, वह पड़ोसी मेरे प्रेस के एक आॅपरेटर का ससुर था। घटना के एक दिन पहले ही गढ़ा थाने में दोनों पक्षों ने एक-दूसरे की शिकायत की थी और एक पड़ोसी पक्ष को पुलिस ने थाने में बैठाकर रखे हुए था, मुझसे इस मामले में हस्तक्षेप कर एक पक्ष को छुड़वाने का प्रयास करने कहा गया, लेकिन न जाने क्यूं मेरी आत्मा इस मामले में हस्तक्षेप न करने कह रही थी, मैंने कोई रुचि नहीं दिखाई और दूसरे दिन खून की होली देखने मिली। इस घटना का मेरे मन में ऐसा असर हुआ है कि शहर में अब भी जब कभी पड़ोसियों के बीच अक्सर होने वाले नाली के विवाद का मामला आता है तो सैनिक सोयायटी की ये घटना जेहन में ताजा हो जाती है। 12 अक्टूबर 2009 को सुबह सुनील का व्यवस्था के प्रति आक्रोश ने अपनी  मां मुन्नी बाई उम्र 60 वर्ष, पत्नी ज्योति उम्र 33 वर्ष, बहन संगीता उम्र 22 वर्ष, पुत्र हिमांशु उर्फ हैप्पी 6 वर्ष, रूद्रांश उर्फ लक्की उम्र 3 वर्ष, भांजा राजुल उम्र 2 वर्ष को कुल्हाड़ी से मौत के घाट उतार दिया। इस लोमहर्षक घटना के बाद आज दिनांक तक नालियों के विवाद पर सिर फूट रहे हैं। करीब दो साल बाद फिर मामला एक बार फिर ताजा हुआ, हत्या के आरोपी सुनील सेन को उम्र कैद की सजा सुनाई गई तथा सात हजार रुपये का जुर्माना भी किया गया।  जबलपुर के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश बीपी शुक्ला की अदालत में प्रकरण की सुनवाई हुई थी, लेकिन दुख इस बात का है कि सुनील सेन जिसका पूरा परिवार खत्म हो गया, वही इस मामले में आरोपी है। विचारणीय है कि उसी रात गढ़ा पुलिस मामूली विवाद में सुनील को न्याय देकर संतुष्ट कर देती तो शायद ये नरसंहार न होता।

Friday, 16 October 2015

नेशनल पार्क खुले, टाइगर के दीदार हुए महंगे


जबलपुर। पर्यटकों के लिए 1 अक्टूबर से पार्क खुल गए, लेकिन पहले दिन अपेक्षाकृत कम पर्यटक पहुंचे, लेकिन अगले दिनों के लिए अच्छी बुकिंग हो रही है। इस वर्ष प्रदेश के नेशनल पार्क एवं टाइगर सफारी में गेट पास का शुल्क 10 प्रतिशत महंगा हुआ है, लेकिन उसका असर कम नजर आ रहा है। बांधवगढ़ नेशनल पार्क में पहले दिन ही 27 सफारी जंगल में गई तथा 147 पर्यटकों ने टाइगर के दीदार किए।
जानकारी के अनुसार नए शुल्क अगले तीन वर्षों के लिए तय किया गया। बांधवगढ़ प्रीमियम गेट से एंट्री लेने पर 240 रुपए, कान्हा में 180 रुपए अधिक, जबकि सभी नेशनल पार्क एवं टाइगर सफारी में सामान्य गेटों का शुल्क 120 रुपए बढ़ गया है।
ये हैं प्रीमियम गेट
कान्हा नेशनल पार्क में खटिया गेट प्रीमियम गेट की श्रेणी में आता है, वहीं बांधवगढ़ मे ताला प्रीमियम गेट में शामिल है। पहले कान्हा में खटिया प्रीमियम गेट है, जबकि किसली और सरही सामान्य गेट है।
आॅन लाइन बुकिंग
करीब तीन माह पहले से ही आॅन लाइन बुकिंग प्रारंभ हो जाती है। जानकारी के अनुसार टाइगर देखने के लिए पर्यटक सर्वाधिक पसंद कान्हा तथा बांधवगढ़ को पसंद करते हैं। इसके बाद लोगों की पसंद पन्ना एवं पेंच होती है। बांधवगढ़ तथा कान्हा में आधी सफारियां गाड़ी चलीं, लेकिन सूत्रों का कहना है कि अगले दिन यानी 2 अक्टूबर की बुकिंग ज्यादा है, जबकि वीक एंड शनिवार तथा संडे को लगभग फुल बुकिंग है।
बांधवगढ़ में 27 वाहन चले
जानकारी के अनुसार बांधवगढ़ में 40 सफारी पर्यटकों के लिए चलनी थीं, लेकिन मात्र 27 वाहन ही जंगल में गई और पर्यटकों को टाइगर के दीदार भी हुए। सुबह 15 सफारी तथा शाम को 12 सफारी चली। लगभग 115 पर्यटकों ने बांधवगढ़ में सैर की।
कोई असर नहीं
बुकिंग एजेंटों की माने तो पार्क की बढ़ी हुई दर का असर पर्यटकों की संख्या पर नहीं पड़ रहा है। आॅन लाइन बुकिंग तेजी से हो रही है। दरअसल, सीजन में स्थिति यह रहती है कि गेट पास दुगनी-तीन गुनी कीमत तक में ब्लैक में बिक जाते है। इस मायने बढ़े हुए शुल्क का असर पढ़ने की कोई संभावना नहीं है।
...वर्जन...
बांधवगढ़ सहित सभी पार्को में शुल्क बढ़ाए गए हैं, लेकिन इसका कोई असर बांधवगढ़ में नजर नहीं आ रहा है। बांधवगढ़ के लिए अच्छी बुकिंग की सूचनाएं मिल रही हैं।
मुरली कृष्ण, फील्ड डायरेक्टर, बांधवगढ़ 

डब्ल्यूएचओ के ड्रग डायरेक्शन की हो रही अनदेखी



   डेंगू के इलाज की आड़ में मची निजी अस्पतालों की लूट
  दर्जनों बार नोटिस दिए गए अस्पतालों को, फिर भी नहीं रुक रही मनमानी
जबलपुर। भरतीपुर की एक बालिका को गंभीर हालत में स्टार हॉस्पिटल में पिछले दिनों भर्ती कराया गया। इस निजी अस्पताल द्वारा डेंगू टेस्ट किट के माध्यम से डेंगू का टेस्ट कराया गया और परिजनों को अस्पताल प्रबंधन ने डेंगू होने की पुष्टि की। इसके बाद अस्पताल प्रबंधन ने बेशकीमती एंटी बायटिक्स, जीवन रक्षक दवाइयां और न जाने कितनी दवाइयां मंगाई और लगाई, किन्तु दो दिन बाद बालिका की मौत हो गई। परिजनों को 60 हजार का बिल थमा दिया गया। इस मामले को लेकर स्वास्थ्य विभाग ने संबंधित अस्पताल से जवाब-तलब भी किया।
प्रदेश में चौतरफा डेंगू का खौफ बना हुआ है शहरी क्षेत्र के साथ ही ग्रामीण एवं कस्बाई क्षेत्रों में डेंगू के मामले आ रहे हैं। जहां स्वास्थ्य विभाग द्वारा समस्त जिला अस्पतालों एवं अन्य शासकीय एवं मेडिकल कॉलेज में डेंगू के इलाज की समुचित व्यवस्था की गई है। इधर, डेंगू के खौफ का फायदा उठाकर निजी अस्पताल पीड़ित मरीज को डेंगू डर दिखाकर अनाप-शनाप दवाइयां देकर बेहिसाब बिल बना रहे हैं।
सूत्रों की मानें तो निजी अस्पतालों को डेंगू में क्या इलाज देना है, क्या दवाइयां देनी हैं, तत्संबंध में वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन की गाइड लाइन से अवगत कराया जा चुका है। स्वास्थ्य विभाग ने दर्जनों पत्र निजी अस्पतालों को भेज चुके हैं, लेकिन जब भी उनसे पूछा जाए तो उनका कहना होता है, इस संबंध में कोई निर्देश नहीं हैं।
मनमानी रिपोर्ट बना रहे
सूत्रों का कहना है कि स्वास्थ्य विभाग की पकड़ निजी अस्पतालों में नहीं रह गई है। अनेक जिले के स्वास्थ्य अधिकारियों ने निर्देश जारी कर रखे है कि निजी स्वास्थ केन्द्र, निजी अस्पताल व नर्सिंग होम्स अपने मरीजों का डेंगू टेस्ट करते हैं और पॉजीटिव रिपोर्ट आती है तो उसकी तत्काल सूचना सरकारी विभाग को दिया जाए तथा उपयोग की गई टेस्ट किट भी जिला स्वास्थ्य केन्द्र में जमा कराई जाए, किन्तु निजी अस्पताल के चिकित्सक जिन्हें डेंगू नहीं भी है, उनकी पॉजीटिव रिपोर्ट मरीज के परिजनों को देने से बाज नहीं आते हैं। स्वास्थ्य विभाग द्वारा टेस्ट किट की मांग करने पर डिस्पोजल किए जाने की बात कही जाती है। जबलपुर के जिला स्वास्थ्य अधिकारी एमएम अग्रवाल ने बताया कि करीब एक दर्जन बार किट के लिए निजी अस्पतालों को नोटिस भेज गए हैं, लेकिन वे पॉजीटिव मरीज की किट जमा नहीं करते हैं।
सिर्फ  पैरासिटामॉल दें
जिला मलेरिया अधिकारी अजय कुरील ने बताया कि डब्ल्यूएचओ के निर्देशानुसार डेंगू के मरीज को किसी तरह की एंटी बायटिक्स दवाइयां अथवा दर्द निवारक दवाइयां यहां तक डिस्प्रिन भी नहीं दी जाए। डब्ल्यूएचओ की गाइड लाइन के मुताबिक पैरासिटामॉल ही मरीज को दी जाए तथा उसको ज्यादा से ज्यादा पानी दिया जाए। इसके लिए बोतल चढ़ाई जा सकती है अन्य दवाइयां मरीज के लिए खतरनाक हो सकती हैं।
बालिका को डेंगू नहीं निकला
जबलपुर में डेंगू से हुई एक मौत के मामले में जब स्वास्थ्य विभाग ने निजी अस्पताल के खिलाफ जांच-पड़ताल शुरू की तो निजी अस्पताल ने यू टर्न लेना पड़ा। कुल मिलाकर मामले में जो तथ्य सामने आए उसके मुताबिक कुछ माह पहले बालिका को मलेरिया हुआ था। इसके बाद उसकी पीलिया हो गया। बाद में फिर उसका स्वास्थ्य बिगड़ा तो निजी अस्पताल ने डेंगू बताकर गहन चिकित्सा शुरू की, लेकिन जब स्वास्थ्य अमले ने बालिका को दी जाने वाली महंगी दवाइयां एवं डेंगू के इलाज की गाइड लाइन को लेकर जवाब मांगा तो निजी अस्पताल ने बालिका को डेंगू होने से साफ इनकार कर दिया।
...वर्जन...
डेंगू के मरीज को एंटी बायटिक्स दवाइयां देने की जरूरत नहीं पड़ती है। पैरासिटॉमाल दिया जाता है। शरीर में पानी की मात्रा नियंत्रित रखा जाता है।
डॉ. दीपक बहरानी
अधीक्षक जबलपुर, हॉस्पिटल
डेंगू होने की आशंका पर लोग शासकीय  अस्पताल में ही टेस्ट कराए तथा यहीं इलाज कराए। नि:शुल्क इलाज की व्यवस्था की गई है।
अजय कुरील, मलेरिया अधिकारी
डेंगू की बीमारी होने पर अस्पताल में मरीज को पैरासिटॉमाल ही दिया जाता है। इसके अतिरिक्त जरूरत पढ़ने पर ब्लड प्लाजमा चढ़ाया जाता है।
डॉ. एके सिन्हा, सिविल सर्जन, विक्टोरिया