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सागौन के जंगल पर स्केलेटोनाइजर का हमला : 2015
जबलपुर। सागौन के जंगल के मामले में सम्पन्न मध्य प्रदेश के सतपुड़ा क्षेत्र स्थित हरेभरे जंगल में स्केलेटोनाइजर का जबदस्त हमला हुआ है। दरअसल इस वर्ष ठंड विलम्ब से पड़ी और नमी व तापमान अनुकूल होने के कारण जबदस्त तरीके से स्केलेटोनाजर का प्रकोप रहा। इसके कारण बैतूल, होशंगाबाद, पचमढ़ी सहित अन्य कुछ क्षेत्रों के सागौन के जंगल की हरियाली जबदस्त तरीके से प्रभावित हुइ है। कीटों ने सोगौन की पत्तियां चट करते जा रहे है। कीट के इस हमले के आगे वन विभाग तथा वन अनुसंधान से जुड़ी संस्थाएं असहाय की स्थिति में है। इन कीटों पर नियंत्रण के लिए रसायन तो मौजूद है लेकिन इस विस्तृत जंगल में इससे दवा का छिंडकाव कर निपटना मुश्किल है। आज तक कोई ऐसा जैविक सिस्टम विकसित नहीं हुआ है जो इस कीट पर अटेक कर उनका सफाया कर दे।
इसका नियंत्रण मौसम तथा प्रकृति के पर निर्भर करता है। जंगल विशेषज्ञों की माने तो सागौन के वनो में प्रतिवर्ष इस कीट का हमला होता है। कभी इस क्षेत्र तो कभी दूसरे क्षेत्र में प्रकोप बना रहता है। इस कीट के हमले का प्रतिकूल असर जंगलों पर पड़ता है। संक्रमण वाले पेड की पूरी पत्तियां कीट चट कर जाते है। मात्र जाली नुमा पत्तियां रहती है। संक्रमित पेड़ बारिश के मौसम में भी सूखा नजर आता है। पेड़ कीट के संक्रमण से नष्ट तो नहीं होता है लेकिन पत्तियों से क्लोरोफिल खा लिए जाने से प्रकाश संषलेषण की प्रक्रिया थम जाती है। अगले सीजन में नई पत्तियां उगने पर पेड़ को पुर्नजीवन मिलता है लेकिन इससे पेड़ की बढ़ौतरी पर प्रतिकूल असर पड़ता है इसी तरह इसकी तना भी विकृत होने का खतरा रहता है।
* रोपणी को बचाया जाता है
सौगौन की रोपड़ी के दौरान फंगीसाइट एवं पेस्टीसाइड आदि का छिड़काव कर रोपड़ी को बचाया जाता है। वन विभाग का कहना है कि रोपणी संरक्षित और सीमित क्षेत्र में होती है और रोपणी के पौधे भी ज्यादा बड़े नहीं होते है जिससे इसको छिड़काव से बचाया जाता है। रोपणी में यदि कीट लगते है तो पौधे मर तक जाते है। लगभग 30 प्रतिशत तक पौधे इस कीट तथा अन्य बीमारी से प्रभावित रहते है। अभी कोई उपचार इजाद नहीं सौगौन में स्केलेटोनाइजर एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। अब तक इसके नियंत्रण की कोई विधि इजाद नहीं हुई है। कीट की लाइफ सर्किल के अधार पर ही प्रतिवर्ष इसका अटैक होता है तथा स्वत: नियंत्रित होता है लेकिन इससे सौगौन की बढ़वारी पर प्रतिकूल असर पड़ता है। ऐसा कोई दूसरा कीट इजाद नहीं किया जा सका है जो की सागौन की पत्ती पर होने वाले इस कीट को नष्ट करे।
डॉ. आर के पांडे एसएफआरआई
वन पर्यावरण विभागाध्यक्ष
* क्या है स्केलेटोनाइजर
डॉ.यूडे होमकर के अुनसार सौगोन में स्केलेटोनाइजर का प्रकोप होता है जिसमें कीट द्वारा लार्वा अवस्था में पत्तियों के क्लोरोफिलुक्त भाग खाकर पत्तियों को कंकालकृत कर दिया जाता है। इसके बाद लार्वा स्वयं को पत्तियों में लपेटकर प्यूपा में बदल जाता है। प्यूपा से बाद में तितली बनती है। सागौन के वृक्षों के नीचे झाड़ियों/घास को हिलाने पर छोटी-छोटी गेहुंये रंग की तितलियां उड़ती हेै जो कि पत्तियों के नीचे की तरफ स्वयं को छुपाती है। यह छोटी-छोटी गेहुंऐ रंग की तितलियां वास्तव में स्केलेटोनाइजर कीट हैं एवं ये झाड़ियों एवं घास के रस पर अपना वयस्क स्तर का जीवन-व्यापन करती है तथा सागौन के पत्तों पर अण्डे देती है इन अण्डों से लार्वा निकलकर सागौन के पत्तों को नुकसान पहुंचाना प्रारंभ करते हैं।
* खेती करने वाले बरते सावधानियां -
1. सागौन के अत्यधिक प्रभावित वृक्षों की पत्तियां गिरना प्रारंभ हो जाती है ऐसे वृक्षों में लगभग एक माह में नयी पत्तियां आना प्रारंभ हो जाती है। गिरी हुई पत्तियों में कीटों के प्यूपा पाये जाते है ऐसी पत्तियों को नष्ट कर देना चाहिये जिससे अगली पीढ़ी का प्रकोप कम हो।
2. कीट प्रकोप चरम सीमा पर होने पर वयस्क कीटों की संख्या अत्यधिक होती है इन वयस्क कीटों को कीट नाशक रासायन द्वारा अथवा नाइट लाइट ट्रैप के द्वारा वयस्कों को संग्रहित कर नियंत्रित जा सकता है।
3. यह देखा गया है कि कीट प्रभावित वन क्षेत्र में कुछ वृक्षों पर कीटों का असर लगभग नगण्य होता है, ऐसे वृक्षों की पहचान कर उन पर अगले वर्ष भी कीट प्रभाव देखा जावे। यदि हर वर्ष इन पर कीट का प्रभाव कम पड़ता है तो इन वृक्षों में प्राकृतिक तौर पर कीट के प्रभाव से बचने की क्षमता होती है। ऐसे वृक्षों का चयन कर भविष्य में इनसे ही बीज एकत्रित कर कीट प्रतिरोधी पौधे तैयार किये जा सकते है।
* दवाओं का छिड़काव किया जाए
* डेल्टामेंथ्रिन का 0.003 प्रतिशत या अल्फामेंथ्रिन 0.003 प्रतिशत/ मेलाथियान का .05 प्रतिशत/ मोनोक्रोटोफास का 0.03 प्रतिशत / क्लोरोपायरीफास का 0.05 प्रतिशत/ बेसीलस थूरीनजियनसिस जो कि एक बैक्टिरियम है का 1 प्रतिषत घोल पानी में बनाकर छिड़काव करके कीट नियंत्रण किया जा सकता है। संपूर्ण वन क्षेत्र में दवाओं का छिड़काव संभव नही है ।
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