Sunday, 19 April 2015

यह चमत्कार है आधुनिक खेती का


बोरलॉग की 6 सौ एकड़ की फसल में 1 फीसदी नुकसान नहीं

जबलपुर। प्रदेश में इस वर्ष कई बार बारिश और ओले की मार से किसानों की हजारों करोड़ रूपए मूल्य की गेहूं की खड़ी फसलें बिछ गई। बारिश ,आंधी-तूफान और ओलों की मामूली मार ने ही फसलों को मिट्टी में मिला दिया लेकिन जबलपुर स्थित अंतराष्ट्रीय कृषि अनुसंधान केन्द्र ‘बोरलॉग इंस्टीट्यूट फॉर साउथ एशिया ’ ग्राम लखनवाड़ा की 600 एकड़ की फसल में एक प्रतिशत भी क्षति नहीं हुई, जबकि यहां 14 बार में 114 मिमी बारिश हुई। इस चमत्कार की पीछे कृषि संबंधी बेहद मामूली ज्ञान समझा जा रहा है। प्रदेश के किसान यदि कृषि संबंधी थोड़ी वैज्ञानिक सूझबूझ रखते तो बहुत से किसानों की फसलें बोरलॉग इंस्टीट्यूट की तरह बच जाती।
 देश में कृषि उत्पादन के अनुसंधान के लिए लुधियाना, जबलपुर और पटना में बोरलॉग इंस्टीट्यूट कार्यरत है। जबलपुर में करीब 600 एकड़ में बोरलॉग इंस्टीट्यूट द्वारा गेहूं , धान सहित अन्य उपज की अनुसंधान के उद्देश्य से खेती करता है। इस वर्ष मौसम किसानों के प्रतिकूल रहा है, बोरलॉग से लगे इलाके लखनवाड़ा, पनागर सहित अन्य क्षेत्रों में किसानों की करोड़ों रूपए की फसल पानी के कारण बर्वाद हुई।
आश्चर्य जनक परिणाम
मौसम के कहर से बोरलॉग इंंस्टीट्यूट की फसल पर क्या असर हुआ? इसका सर्वेक्षण फ्लांग डेटा रिकार्ड के माध्यम से  कृषि वैज्ञानिकों की मौजूदगी में हवाई सर्वे किया गया तो आश्चर्यजनक तथ्य सामने आए कि एक प्रतिशत भी नुकसान नहीं हुआ है।
जड़ भी थी मजबूत
इस सर्वे के अध्ययन के बात वैज्ञानिक नतीजे पर पहुंचे है कि बोरलॉग प्रक्षेत्र में लगाई गई गेहूं की फसल में पौधे की जड़े मजबूत थी जिससे पानी और आंधी के बावजूद फसल खेत में नहीं बिछ पाई। बारिश का पानी फसल के लिए फायदे मंद साबित हुआ। इस वर्ष रिकार्ड उत्पादन की संभावना है।
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वर्जन .....
किसान करते है गलती
किसान बिना जरूरत के यूरिया का छिड़काव कर देते है। इस पर उपज को पानी मिलने पर पौधे में विशेष ग्रोथ मिल जाती है जबकि उसकी जड़ को ग्रोथ नहीं मिलती है। बारिश, आंधी और ओले की मार से जड़ जमीन छोड़ देती है और फसल नष्ट हो जाती है।  बोरलॉक में मृदा परीक्षण के उपरांत यूरिया, फास्फेट एवं व अन्य खाद  का संतुुलित तरीके से छिडकाव किया गया था।  फोटास एवं फॉस्फे ट से जड़ें भी मजबूत हुई थी। संतुलित यूरिया के कारण पौधे में अनावश्यक ग्रोथ भी नहीं होती है। इसी के कारण बोरलॉक में पानी के कारण फसल में नुकसान नहीं हुआ।
डॉ एसएस तोमर
संचालक डायरेक्टर बोरलॉग इंस्टीट्यूट
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खेत को न जलाए
किसान को रसायनिक खाद का उपयोग करने के पूर्व मृदा परीक्षण कराया  चाहिए और वैज्ञानिकों की सलाह पर संतुलित खाद का उपयोग करना चाहिए।  तभी फसलों को बचाया जा सकता है।  खेत की कटाई के बाद नरवाई को  जलाना नहीं चाहिए। यह धारणा गलत है कि खेत को जलाने से उपज अच्छी होती है दरअसल आग लगाने से जमीन में मौजूद सूक्ष्म जीवाणु जो जड़ों की रक्षा करते है वे मर जाते है। मिट्टी भी कड़ी हो जाती है जिससे मिट्टी में जड़ों की पकड़ कमजोर होती है।
डॉ राज गुप्ता
कृषि वैज्ञानिक

ध्य प्रदेश के जंगलों में अब घुलेगी रक्त चंदन की खुशबू


राज्य वन अनुसंधान केन्द्र में लाल चंदन की रोपणी तैयार, हजारों वृक्ष विभिन्न जंगलों में लगाए
दीपक परोहा
7771837888
जबलपुर। सतपुला के घने सागौंन के जंगलों के में टेसू और पलाश के फूलदार एवं खुशबू वाले वृक्षों के साथ ही अब लाल चंदन की महक से जंगल महकेंगे। इसके लिए राज्स वन अनुसंधान केन्द्र को बड़ी सफलता मिल चुकी है। अत तक हजारों की संख्या में पौधे तैयार किए जा चुके है और उनका जंगलों में रौपण भी किया गया है। इनमें से कई पौधे काफी बड़े हो चुके है और कुछ अभी सरवाइव कर रहे है।
 कडप्पा के जंगल में होता है
दक्षिण भारत में कडप्पा के जंगल में ही सिर्फ रक्त चंदन के पौधे है। इस रक्त चंदन की लकड़ी इमारती लकड़ी के रूप में उपयोग होती है। इसके अतिरिक्त सेंट उद्योग, दवा उद्योग तथा कास्मेटिक्स आइटम व पूजन सामग्री में भारी मात्रा में उपयोग की जातीहै। एक 1000 रूपए  से 2000 हजार रूपए किलो तक की कीमत में बिकती है। लकड़ी की

डिमांड इतनी रहती है कि इसकी पूर्ति नहंी की जा सकती है। पत्ती को छोड़ पूरा पेड़ लाल रंग का होता है।
मध्य प्रदेश में रोपण
राज्यवन अनुसंधान केन्द्र में वर्ष 2002 से रक्त चंदन के पौधे तैयार करने का कार्य चल रहा है। अब तक अमरकंटक से लेकर होशंगाबाद तक नर्मदा नदी के किनारे रक्त चंदन के पौधे रोप जा चुके हैं। इसके अतिरिक्त बैतूल, होशंगाबाद, सिवनी, बालाघाट तथा मंडला एवं छत्तीसगढ़ के जंगल में रक्त चंदन के पौधे रोपे गए है। इनमें से कुछ बड़े भी हो गए। आने वाले समय में सतपुला के जंगल लाल चंदन की खुबबू से महकने लगेंगे। इस  करोड़ो रूपए की वन संपदा का इजाफा भी होगा।
वर्जन
रक्त चंदन के बीच कड्प्पा से  मंगाकर उससे प्लांट अनुसंधान केन्द्र में तैयार किए जा रहे है। पौध पूजापाठ के भी काम में आते है। वन विभाग को पौधे बेचे जाते  है। इसके अतिरिक्त कुछ संख्या में प्रायवेट व्यक्तियों को भी पौधे

बेचे जाते है। अनुसंधान से यह हम इस  नतीजे पर  पहुंच है कि मध्य प्रदेश के लगभग सभी जंगलों का पर्यावरण एवं जलवायु इस तरह की है कि यहां रक्त चंदन के पौधे पनप सकते है। धीरे-धीरे कर रक्त चंदन प्रदेश के लगभग सभी जंगलों में लगाए  जाएंगे।
डॉ परवेज जलील
पौधा विशेषज्ञ एवं  नर्सरी हैड
राज्य वन अनुसंधान केन्द्र

मोदी का संदेश से नहीं, संस्कार मिला है स्वच्छता का




 जबलपुर के एक मोहल्ला आनंदकुंज गढ़ा में तड़के कोई सेवा निवृत सहकारी निरीक्षक नर्मदा प्रसाद का पता - ठिकाना खोजते हुए पहुंचे और वहां मौजूद किसी से पूछे तो उसे जवाब मिलेगा ... वो देखो जो व्यक्ति पट्टे वाली चड्डी और बनियान पहनकर झाडू लगा रहें हैं वही हंै नर्मदा प्रसाद दुबे। इस वृद्धजन की दिनचर्या सफाई अभियान से ही शुरू होती है।
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इस देश को सबसे पहले स्वच्छता का संदेश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने दिया था और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने समग्र देश के भाजपा नेताओं , विभिन्न संगठनों व संस्थाओं सहित आला प्रशासनिक अधिकारियों के हाथों में झाडू थमवा दी । प्रधानमंत्री ने स्वच्छता का संदेश नए अंदाज से दिया है, किन्तु 76 वर्षीय आनंदकुंज, दुबे कालोनी गढ़ा निवासी नर्मदा प्रसाद दुबे के लिए ये संदेश कोई नया नहीं है। उनके संस्कार में रचा बसा है स्वच्छता का पुनीत कार्य। ब्राम्हण जाति के नर्मदा प्रसाद  प्रतिदिन झाडू लेकर मोहल्ले की सड़क साफ करते हैं और स्वयं फावड़े से गंदी नाली की सफाई करते हैं। इसमें उनको किसी तरह की लज्जा नहीं आती है। उनका कार्य नेताओं की तरह सिर्फ दिखावा और फोटो खिंचवाने तक सीमित नहीं रहता है। दरअसल वे वास्तव में सफाई करते हैं और इस कार्य में उन्हें आनंद की अनूभूत होती है। अकेले ही सही वे पिछले 60 साल से प्रतिदिन मोहल्ले की सफाई करते आ रहे है। यह जरूर है कि जीवन के लम्बे समय में उनके घर बदला, निवास स्थान बदला लेकिन जहां भी वे रहें, अपने मोहल्ले की नाली सड़क और स्वयं का घर को स्वच्छ रखा।
 76 वर्ष में भी गजब की उर्जा
नर्मदा प्रसाद दुबे 76 वर्ष के हो गए है लेकिन सुबह लगभग पूरी कॉलोनी में

झाडू लगाते है। यह काम 5-10 मिनिट का नहीं घंटो चलता है। सन 1978 से वे यहां रह रहें हैं। उनको इस कार्य की प्रेरणा कहे या संस्कार अपने पिता स्वर्गीय जगन्नाथ दुबे से मिले हैं जो मूलत: डिंडौरी के किसान थे। उनके पिता अपने घर, गौशाला तथा गांव की सड़क की सफाई करते थे। यही गुण उनके संस्कार में बचपन से आ गए ।
गजब के मेघावी
नर्मदा प्रसाद एक पिछड़े जिलें और ग्रामीण परिवेश के हैं लेकिन गजब के मेघावी बचपन से रहे हैं। गांव में स्कूल नहीं होने के कारण उच्चतर माध्यमिक पाठ्यक्रम की पढ़ाई जबलपुर में हॉस्टल में रखकर की तथा उनको राष्ट्रीय छात्रवृति 9 वीं से 12 वीं तक लगातार मिली। 12 वीं तक पढ़ाई करने के बाद तुरंत ही उनकी नौकरी हाईकोर्ट में बाबू के पद पर हो गई लेकिन यहां कुछ दिन ही नौकरी करने के बाद आगे पढ़ाई करने के लिए नौकरी छोड़ दी तथा बीए, एमए तथा एलएलबी की। दो बार पीएससी में पास हुए लेकिन जब वे साक्षात्कार के लिए पहुंचे थे और साक्षात्कार लेने वालों को पता चलता था कि किस परिवेश से वे हैं तो उन्हें साक्षात्कार में फेल कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने सहकारिता विभाग में नौकरी कर ली और सहकारी  निरीक्षक के रूप में सेवानिवृत हुए।
 स्वच्छता मूल प्रवृति
नर्मदा प्रसाद दुबे का कहना है कि मानव ही नहीं जीवजन्तु में स्वच्छता मूल प्रवृति है। जानवर भी सफाई पसंद होता है किन्तु आदमी को स्वच्छता के लिए कार्य करने में लज्जा क्यों आती है? मेरे समझ में नहीं आता है।
नर्मदा प्रसाद दुबे


गीली माटी में पाया जीवन का आनंद और रोटी


  कला की साधना में गुजरा जीवन
जबलपुर। मानव सभ्यता और जीवन इस माटी की ही देन है। सदियों से इस मिट्टी ने लोगों को रोजगार और पेट भरने का साधन दिया है और जीवन अंत में मिट्टी में मिल जाता है। इसी मिट्टी से जन्म लेती है मूर्तिकला। सोनाबाई ने अपने जीवन में इसी मिट्टी के सहारे आनंद पाया, कला की साधना की और गरीबी में ही सही पूरे परिवार की परवरिस इसी के सहारे की।  युगो से धरती में कलाकार जन्म लेते रहे है और उनकी साधना का नतीजा है कि मूर्तिकला शिखर पर है। जबलपुर में भी मूर्तिकला को एक मुकाम में पहुंचाया है सोनाबाई राजपूत ने। उम्र 7 बर्ष से जो मूर्तियां बनाना शुरू की वह 82 वर्ष की आयु होने के बाद भी नहीं थमा है।
 नटराज कला मंदिर फूटाताल निवासी सोनाबाई कहती है कि हर आदमी के जीवन में अलग-अलग परिस्थितियां एवं हालत निर्मित होते है और उसमें बिना हार माने लगन और साधना के साथ कार्य किया जाए तो कांटों भरा जीवन भी आनंद देता है। सोनाबाई ने कुछ ऐसे ही जीवन जीया है। उसने जीवन का सुख और आनंद गीली मिट्टी में तलाश की। सोनाबाई के पिता गणेश प्रताप परिहार मूर्मिकार थे। वे अंग्रेज के काल के मूर्तिकार थे। लोकमान्य तिलक ने जब सार्वजनिक गणेश प्रतिमाएं रखने की शुरूआत की उसके बाद जबलपुर में गणेश जी और दुर्गा की प्रतिमा गणेश प्रताप सिंह ने बनाई। होलिका रखने की प्रतिमा भी बनाना शुरू किया। सोनाबाई ने 7 वर्ष की उम्र में मिट्टी की प्रतिमा बनाने की शुरूआत की तो सन 1941 में गढ़ा फाटक की पहली प्रतिमा सोनाबाई के नाम से बनी।
अपनी दम पर चलाई गृहस्थी
सोनाबाई का विवाह कन्हैया लाल राजपूत से हुआ लेकिन पति की मौत तब हो गई जब उनकी गृहस्थी कच्ची थी। तीन लड़के एवं 4 बेटियों जो अवश्यक थी, उनकी जवाबदारी सोना बाई पर हो गई। मिट्टी की गणेश एवं दुर्गा की प्रतिमा बनाकर बेचना शुरू किया। त्यौहार के समय मूर्तियां बनती थी और

  बिकती थी जिससे साल भर खर्चा चलता था। बेहद गरीबी के बाजवूद मूर्तियां बनाना जारी रखा, आज सभी बच्चों का विवाह कर अपने सभी दायित्व निर्वाह कर जीवन के अंतिम पड़ाव पर है।
 कलात्मकता का का ट्रेंड दिया
 अपनी  मूर्तिकारी के लिए उन्हें प्रदेश एवं केन्द्र सरकार से इनाम मिल चुके है। मिट्टी मूर्ति के साथ ही कल्चर मार्बल एवं पत्थर की मूर्तिया भी बनाई। सोनाबाई द्वारा महापुरूषों की कल्चर मार्बल की बनाई गई अनेक मूूर्तियां शहर में स्थापित है। सोनाबाई की शहर में मूर्तिकला में विशेष योगदान यह है कि उन्होंने दुर्गा प्रतिमाओं में कलात्मकता का पुट ज्यादा डाला। इसके चलते देवी द्वारा बड़े बड़े दैत्यों को मारने वाली प्रतिमाओं का चलन कम हुआ। कलात्मक प्रतिमाओं का ट्रेड चल पड़ा है। इसी तरह गणेश जी की प्रतिमाओं में भी कला का ट्रेंड शुरू करने वाली सोनाबाई ही है। प्रतिमाओं को रंगने एवं सजाने के लिए कलर और कोटिंग के नए नद प्रयोग उनके द्वारा ही किए गए जो बाद में अन्य कलाकारों ने भी इस्तेमान किया।

Saturday, 18 April 2015

धनगांव में नारियल के जीवाश्म

  डला जिले के धनगांव में नारियल के जीवाश्म मिले हैं। जिले के वनस्पति वैज्ञानिक इसे करीब 6.5 करोड़ वर्ष प्राचीन बता रहे हैं। इस जीवाश्म की खोज पुरातत्व और पुरा वनस्पति में 20 साल से कार्यरत शिक्षक प्रशान्त श्रीवास्तव एवं पुरषोत्तम विश्वकर्मा ने की है। धनगांव में मिल रहे जीवाश्म मुख्यत: ताड़ वृक्षों और द्विबीजपत्री पौधों के है। अन्य जीवाश्मीकृत पौधों में खजूर,जंगली केला (सीडिड बनाना) रुद्राक्ष, जामुन आदि के हैं। इनमें से अधिकांश पौधे नमी पसंद है। शिक्षकों का दावा है कि इससे पता चलता है कि छ: करोड़ वर्ष पहले मंडला आज से कहीं अधिक नम क्षेत्र था और यहां दो हजार मिलीमीटर से अधिक वर्षा होती थी। बता दें कि मंडला पुरातत्व संग्रहालय के जनक डॉ धर्मेन्द्र प्रसाद ने यूकेलिप्टिस के जीवाश्म की खोज की थी। उनके नाम पर बीरबल साहनी पुरा वनस्पति संस्थान लखनऊ ने एक जीवाश्म का नाम यूकेलिप्टिस धर्मेन्द्री किया।

यह चमत्कार है आधुनिक खेती का

  थोड़ी सूझबूझ से बच सकती थी हजारों करोड़ की फसल बर्बाद होने से   बोरलॉग की 6 सौ एकड़ की फसल में 1 फीसदी नुकसान नहीं
   दीपक परोहा
 जबलपुर। प्रदेश में इस वर्ष कई बार बारिश और ओले की मार से किसानों की हजारों करोड़ रूपए मूल्य की गेहूं की खड़ी फसलें बिछ गई। बारिश ,आंधी-तूफान और ओलों की मामूली मार ने ही फसलों को मिट्टी में मिला दिया लेकिन जबलपुर स्थित अंतराष्ट्रीय कृषि अनुसंधान केन्द्र ‘बोरलॉग इंस्टीट्यूट फॉर साउथ एशिया ’ ग्राम लखनवाड़ा की 600 एकड़ की फसल में एक प्रतिशत भी क्षति नहीं हुई, जबकि यहां 14 बार में 114 मिमी बारिश हुई। इस चमत्कार की पीछे कृषि संबंधी बेहद मामूली ज्ञान समझा जा रहा है। प्रदेश के किसान यदि कृषि संबंधी थोड़ी वैज्ञानिक सूझबूझ रखते तो बहुत से किसानों की फसलें बोरलॉग इंस्टीट्यूट की तरह बच जाती।    देश में कृषि उत्पादन के अनुसंधान के लिए लुधियाना, जबलपुर और पटना में बोरलॉग इंस्टीट्यूट कार्यरत है। जबलपुर में करीब 600 एकड़ में बोरलॉग इंस्टीट्यूट द्वारा गेहूं , धान सहित अन्य उपज की अनुसंधान के उद्देश्य से खेती करता है। इस वर्ष मौसम किसानों के प्रतिकूल रहा है, बोरलॉग से लगे इलाके लखनवाड़ा, पनागर सहित अन्य क्षेत्रों में किसानों की करोड़ों रूपए की फसल पानी के कारण बर्वाद हुई।  आश्चर्य जनक परिणाम  मौसम के कहर से बोरलॉग इंंस्टीट्यूट की फसल पर क्या असर हुआ? इसका सर्वेक्षण फ्लांग डेटा रिकार्ड के माध्यम से  कृषि वैज्ञानिकों की मौजूदगी में हवाई सर्वे किया गया तो आश्चर्यजनक तथ्य सामने आए कि एक प्रतिशत भी नुकसान नहीं हुआ है।  जड़ भी थी मजबूत इस सर्वे के अध्ययन के बात वैज्ञानिक नतीजे पर पहुंचे है कि बोरलॉग प्रक्षेत्र में लगाई गई गेहूं की फसल में पौधे की जड़े मजबूत थी जिससे पानी और आंधी के बावजूद फसल खेत में नहीं बिछ पाई। बारिश का पानी फसल के लिए फायदे मंद साबित हुआ। इस वर्ष रिकार्ड उत्पादन की संभावना है।  --------------------------------- वर्जन ..... किसान करते है गलती किसान बिना जरूरत के यूरिया का छिड़काव कर देते है। इस पर उपज को पानी मिलने पर पौधे में विशेष ग्रोथ मिल जाती है जबकि उसकी जड़ को ग्रोथ नहीं मिलती है। बारिश, आंधी और ओले की मार से जड़ जमीन छोड़ देती है और फसल नष्ट हो जाती है।  बोरलॉक में मृदा परीक्षण के उपरांत यूरिया, फास्फेट एवं व अन्य खाद  का संतुुलित तरीके से छिडकाव किया गया था।  फोटास एवं फॉस्फे ट से जड़ें भी मजबूत हुई थी। संतुलित यूरिया के कारण पौधे में अनावश्यक ग्रोथ भी नहीं होती है। इसी के कारण बोरलॉक में पानी के कारण फसल में नुकसान नहीं हुआ।  डॉ एसएस तोमर संचालक डायरेक्टर बोरलॉग इंस्टीट्यूट --------------------------- खेत को न जलाए किसान को रसायनिक खाद का उपयोग करने के पूर्व मृदा परीक्षण कराया  चाहिए और वैज्ञानिकों की सलाह पर संतुलित खाद का उपयोग करना चाहिए।  तभी फसलों को बचाया जा सकता है।  खेत की कटाई के बाद नरवाई को  जलाना नहीं चाहिए। यह धारणा गलत है कि खेत को जलाने से उपज अच्छी होती है दरअसल आग लगाने से जमीन में मौजूद सूक्ष्म जीवाणु जो जड़ों की रक्षा करते है वे मर जाते है। मिट्टी भी कड़ी हो जाती है जिससे मिट्टी में जड़ों की पकड़ कमजोर होती है।   डॉ राज गुप्ता  कृषि वैज्ञानिक   

कचरा निष्पादन के लिए जबलपुर नगर निगम की विशेष पहल

   कचरा से बनेगी 10 मेगावाट बिजली  जबलपुर। जबलपुर सहित देश के अधिकांश महानगरों में कचरा निष्पादन एक बड़ी समस्या बन चुकी है और ये कचरा पर्यावरण के लिए बेहद घातक साबित होता रहा है। कचरे से बिजली बनाने के प्लांट दिल्ली जैसे महानगरों में वर्षो पहले लगे थे लेकिन वे भी लगभग बंद हालत में है। देश में अब तक बिजली उत्पादन के लिए जितने इंसीनेरेटर हैं, उसके धूआ ही बड़े पर्यावरण प्रदूषण का कारण बना है लेकिन जबलपुर में कचरे से बिजली उत्पादन की यूनिट डाल रही कंपनी का दावा है कि प्रदूषण नियंत्रण के पूरे मापदंडों के अनुरूप यूनिट कार्य करेगी। करीब 175 करोड़ की लागत से तैयार होने जा रहा इंसीनेरेटर दुनिया की आधुनिक तकनीकी इस्तेमाल की जा रहा है।  जापान सहित अन्य देशों में कचरे से बिजली उत्पादन की अनेक यूनिटें एस्सेल ग्रुप द्वारा चलाए जा रहे हैं।  एस्सेल गु्रप एवं नगर निगम के बीच वर्ष 2013 मे तीन वर्ष का अनुबंध हो चुका है। नगर निगम ने कठौंदा में दस एकड़ भूमि प्लांट बनाने तथा कचरा निष्पादन के लिए लीज पर कंपनी को दी है। यह प्रोजेक्ट की सफलता जबलपुर के साथ प्रदेश के लिए कचरा निष्पादन के लिए एक बड़ी दिशा तय करेगा। दरअसल कचरा निष्पादन के अब तक जो भी तरीके अपनाए जाते रहे हैं। हरके तकनीकियों में अनेक खामिया रही है और वे पूर्णत: कारगर सबित नहीं हुई। महानगरों में बढ़ती डिस्पोजन संस्कृति ने कचरा की खपत कई गुना बढ़ा दी है।  अब तक कचरा निष्पादन की दुनिया में जितनी भी विधियां चल रही है उसमें सर्वाधिक उपयोगी कचरा को जलाने की समझी गई है लेकिन इसके लिए सवाधानी बेहद जरूरी है। कचरा जलाने से जबदस्त वायु प्रदूषण का खतरा  रहता है लेकिन इसको नियंत्रित सीमा में  आधुनिक तकनीकी से रखा जा रहा है जबलपुर में स्थापित होने वाले कचराघर से बिजली उत्पादन में उक्त तकनीकियों का इस्तेमान होना है।   कई कंपनियां कर रही काम  यूनिट तैयार करने का मशीनरी वर्क हिटैची कंपनी को दिया गया है जिसने यूनिट के लिए मशीने बनाने का काम अपने वर्कशाप में प्रारंभ कर दिया है। इसी तरह मुजफ्फर नगर की जगदम्बा एण्ड कंपनी को सिविल वर्क का काम सौंपा गया है। सिविल वर्क का काम तेजी से चल रहा है। फरवरी 2013 में एग्रीमेंट होने के बाद से सिविल वर्क प्रारंभ हो गया है। कंपनी सूत्रों का दावा है कि 65-70 प्रतिशत कार्य हो चुका है और दिसम्बर 2015 तक कार्य पूर्ण कर लिया जाएगा और यूनिट भी प्रारंभ हो जाएगी। इसी तरह बिजली की लाइन लगाने का काम भी चल रहा है।  चार टन कचरा की खपत  जबलपुर शहर में प्रतिदिन 3-4 कचरा प्रतिदिन एकत्र होता है। यूनिट में प्रतिदिन 3-4 सौ टन कचरे की डिमांड रहेगी, जबकि यूनिट की क्षमता 6 सौ टन प्रतिदिन की है। साढेÞ चार सौ टन कचरा प्रतिदिन मिलता रहा तो यूनिट साढेÞ 10 मेगावाट तक बिजली उत्पादन करेगी। कंपनी को बिजली विभाग से करार हो चुका है जो बिजली कंपनी से खरीदेगी।  50मीटर उंची हो चिमनी  इस यूनिट को तैयार करते वक्त प्रदूषण का ध्यान में रखते हुए 50 मीटर उंची चिमनी तैयार की जाएगी, जिससे वायु मंडल में कम दबाव की स्थिति में धूआ नीचे न जमा होए।  20 रूपए टन खरीदेगी कचरा नगर निगम से कचरे को लेकर कंपनी के करार के तहत कंपनी के डम्पिंग  पिट तक कचरा पहुंचाने का काम नगर निगम का होगा। कंपनी 20 रूपए टन के भाव से कचरा खरीदेगी। इस कचरे में बिल्डिंग मटैरियल एवं अस्पतालों का कचरा नहीं होना चाहिए। इसके साथ ही मैटेलिक कचरा तथा नाले नालियों की सिल्ट नहीं होनी चाहिए।  यूनिट इसी वर्ष होगी शुरू कंपनी के चेयर मैन का जबलपुर दौरा हो चुका है। कंपनी दिसम्बर तक यूनिट प्रारंभ कर देगी। कचरे की कमी कंपनी को नहीं आएगी। छावनी परिषद ने भी नगर निगम को कचरा देने की पेशकश की है।  आशीष पाटकर  प्राजेक्ट मैनेजर, कंसल्टेंट कंपनी    डम्पिंग सेंटर की खामियां * डम्पिंग कचरों के कारण कचरे के पहाड़ खड़ें हो रहे हैं।  * डम्पिंग सेंटर की जगह भविष्य के लिए खराब हो जाती है।  * डम्पिंग सेंटर में पड़े कचरे को बाद में हटाने से जहरीली और पर्यावरण के लिए घातक गैस रिलीज होती हैं * कचरे से होकर भूमि में जाने वाला पानी स्वाइल एवं नेचरल वाटर को दूषित करता है।  ------------------------------------------------------------ बायोट्रीटमेंट भी असफल * कचरा को जैविक ट्रीटमेंट के तहत मिट्टी एवं खाद में बनाना कठिन कार्य है।  * वनस्पति एवं फूड के कचरा तो बायोट्रीटमेंट े दुरूस्त हो जाता है लेकिन  कैमिकल्स, पेट्रोलियम पदार्थ और पॉलीथीन विनष्ट नहीं होते है और यही पदार्थ प्रदूषण पैदा करते हैं।  ------------------------------------------

गुलाबी गैंग जल्द दिखेगी जबलपुर

  महिला लठैतों की गुलाबी गैंग जल्द दिखेगी जबलपुर मेेंं  बाहुबलियों, अन्यायी पुरूष समाज के खिलाफ बढ़ाई जाऐगी नारी शक्ति  जबलपुर। महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार, सरकारी तंत्र में बढ़ते भ्रष्टाचार के बीच जल्द ही महिलाओं की लठैत गैंग दखल देगी। संस्कारधानी की 200 महिलाएं गुलाबी परिधान में नजर आएंगी और महिला सशक्तीकरण की अलख भी जगाएंगी। गुलाबी गैंग की तैयारी पूरी है और जिस दिन भी इसकी राष्ट्रीय मुखिया संपत पाल देवी यहां आ पहुंची, उसी दिन गैंग काम करना शुरू कर देगी। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश के बुन्देल खंड एवं विन्ध्य क्षेत्र में एक दशक से गुलाबी गैंग न सिर्फ नारी शक्ति का प्रतीक बनी हुई है बल्कि समाज को न्याय दिलाने का जरिया भी बन गई है। इन क्षेत्रों के करीब दो दर्जन से अधिक जिलों में गुलाबी गैंग से टक्कर लेने की अत्याचारी या अन्य कोई भी बाहुबली हिम्मत नहीं जुटा पाता है। लाठियों से लैस महिला गैंग की क्षेत्र में जबर्दस्त प्रतिष्ठा स्थापित है। आपसी विवाद सुलझाने से लेकर महिला उत्थान एवं दलित शोषित महिला वर्ग के लिए  यह गैंग एनजीओ की तरह  कार्य कर रही है। जल्द ही जबलपुर के ग्वारीघाट क्षेत्र में गुलाबी गैंग का गठन होने जा रहा है। इसको लेकर सम्मत पाल  के करीबी से बातचीत चल रही है। ग्वारीघाट क्षेत्र निवासी शकुंतला कुंभारे, सरिता पटैल एवं वंदना चौधरी  नामक महिलाओं ने 200 से अधिक महिलाओं का संगठन बना लिया है।  कई पुरस्कार भी मिल चुके गुलाबी गैंग की स्थापना, 4 थी तक पढ़ी बांदा जिले के चित्रकूट रामघाट की 50 वर्षीय सम्पत पाल देवी ने प्रारंभिक तौर पर समाज के अन्यायी पुरूषों से लड़ने के लिए एक छोटे से संगठन के रूप में की थी। सम्पत उर्फ संपतिया बाई की सहयोगी महिलाएं गुलाबी साड़ियां पहना करती थीं, जिसके कारण महिला संगठन का नाम क्षेत्र में गुलाबी गैंग पड़ गया। आज यह गैंग समूचे देश के साथ विदेशों में भी चर्चित है। सम्पत को अनेक  पुरूस्कार भी मिल चुके हंै। अब इस गैंग में हजारों की संख्या में महिलाएं मौजूद हैं और बेहद तेजी से नए सदस्य बनते जा रहे हैं। गैंग के कार्यक्रम में गुलाबी साड़ी, गुलाबी बिन्दी, चूड़ियां सहित पूर्ण  गुलाबी डेÑस कोड में महिलाएं हाथों में लट्ठ थामें नजर आती है। 

मध्य प्रदेश में किसी भी टाइगर में नहीं टीबी कई साल से चल रहा रिसर्च, करोड़ो खर्च

जबलपुर। जंगली जानवारों खासतौर पर टाइगरों की मौत को लेकर उठने वाले सवालों को लेकर उनकी मौत के कारणों की खोजबीन के लिए वन विभाग द्वारा करीब 40 करोड़ की लागत से पशु चिकित्सा महाविद्यालय में पैथोलेब एवं  बल्ड एनालाइजर जैसी कीमती मशीन स्थापित की। प्रदेश के नेशनल पार्क से टाइगर सहित अन्य जानवरों के सैम्पल भेजे गए लेकिन गहन रिसर्च के बावजूद एक भी नेशनल पार्क सहित फारेस्ट के एक भी टाइगर में टीबी की बीमारी नहीं आई है। इसके बाद जू के टाइगरों पर भी रिसर्च चल रहा है लेकिन यहां टीवी के लक्षण पाए गए है लेकिन रिपोर्ट पॉजेटिव नहीं आई है। करोड़ों रूपए खर्च करने के बावजूद रिसर्च बे नतीजा है।  उल्लेखनीय है कि नेशनल पार्क में वर्ष 2000 में हुई टाइगर की मौत के बाद जब लिम्प ग्लैड में सूजन एवं जख्म पाए गए तो उसको टीवी से जोड़ लिया गया। जू में कई शाकाहारी जानवर चीतल आदि में टीवी के वैक्टेरिया की मौजूदगी पाई गई। इससे यह नतीजा निकाला गया कि चीतल और शाम्भर में यदि टीवी पाई जाती है तो टाइगर इनके शिकार के दौरान टीवी के इंफैक्शन का शिकार हो सकता है। इसके साथ ही जबलपुर के वन्य प्राणी चिकित्सक एबी श्रीवास्तव एवं उनकी टीम ने रिसर्च का दायित्व सौंपा गया। पूर्व में पिछले कुछ साल तक नेशनल पार्क में टाइगर की संदिग्ध मौत पर उनको पीएम के लिए जबलपुर भेजा जाता रहा है लेकिन अब नेशनल पार्क के चिकित्सक स्वयं ही मौके पर पीएम करके टाइगर के शव का दाह संस्कार करवा देते है।  बिसरा रिपोर्ट आ रही है नेशनल पार्क से जानवरों की संदिग्ध मौत को लेकर बिसरा रिपोर्ट पशु चिकित्सालय स्थित वन्य प्राणी रिसर्च केन्द्र एवं फारेंसिक लैब में पहुंच रही है। इसके अतिरिक्त अन्य बीमारियों के सैम्पल भी पहुंच रहे है। सूत्रों का कहना है कि अब तक 400 से अधिक रिपोर्ट भेजी जा चुकी है लेकिन उनमें से मात्र 10 प्रतिशत जांच की रिपोर्ट ही वन विभाग को मिली है।  मशीनें बेकार पड़ी  वन्य प्राणियों की फारेंसिक लैब के नाम पर उंची कीमतों में मशीनों की खरीदी की गई है लेकिन यहां लैब टैक्निशियन तक पर्याप्त संख्या में नहीं है। दरअसल यह विभाग सफेद हाथी बन चुका है। इसको लेकर वन मंत्रालय ने पत्र व्यवहार भी किया है। दूसरी तरफ नेशनल पार्क प्रशासन ने रिपोर्ट न भेजने को लेकर पत्र व्यवहार भी किया है।  मानव से जानवरों को नहीं फिलहाल यह माना जा रहा है कि मानव से पालतू जानवर एवं जंगली जानवरों तक टीवी की बीमारी पहुंच गई है। अनुसंधान कर रहे चिकित्सकों का मानना है कि जू के कई जानवरों में टीबी के लक्षण देखे गए है लेकिन टेस्ट रिपोर्ट में यह साबित नहीं कर पाए है कि जू के टाइगर में टीबी है।  डॉ एबी श्रीवास्तव से सीधी बातचीत प्रश्न- डॉ एबी श्रीवास्तव जी नमस्कार, आप कहां है?  जवाब- मै देहरादूज के जंगल में रिसर्च के लिए गया हूं।  प्रश्न -  आप एवं आपकी टीम रिसर्च कर रही थी, टाइगर में टीवी के  विषय में, कितने टाइगरों में टीबी पाई गई?  जवाब- यह आंकड़ा तो फिलहाल उपब्ध नहीं है?  प्रश्न- ठीक हैं, लेकिन यह तो बताए कि जंगल में रहने वाले किसी शेर के सैम्पल में टीबी पॉजेटिव पाई गई।  जवाब - जी नहीं । प्रश्न- तो क्या जू के टाइगर्स में टीबी पाई गई?  जवाब- टीबी तो नहीं पाई गई लेकिन लक्षण मिले है।  प्रश्न - रिसर्च का नतीजा ? जवाब- अभी नहीं निकला।  ---------------------------------------------------------------- प्रदेश के किसी भी नेशनल पार्क में टीवी से पीड़ित शेर नहीं मिले है, शाकाहारी जानवरों में टीवी है कि नहीं यह भी हम नहीं कह सकते हैं। फारेंसिक लैब कैसा काम कर रही है ये मुझे नहीं मालूम लेकिन हम संदिग्ध बीमार जानवरों के सैम्पल टेस्ट के लिए भेज रहे हैं।  नरेन्द्र कुमार , पीसीसीएफ   ---------------------------------------------------------------  केन्द्रीय जेल के बंदी सीख रहे ड्रायविंग     सजा पूरी कर समाज की    मुख्यधारा से जोड़ने योजनाएं   जबलपुर। नेताजी सुभाष चंद्र बोस केन्द्रीय जेल में बंदियों को सिर्फ कारावास की सजा काटने भर के लिए नहीं रखा जाता है। नेता जी सुभाष चंद्र बोस को बंदी के तौर पर रखने वाली इस जेल को काफी हद तक सुधारगृह में तब्दील कर लिया गया है।  बंदियों के वेलफेयर के लिए पूरा एक विभाग कार्यरत है। बंदियों की सजा जब पूरी हो जाए और वे जेल से रिहा होकर समाज में पहुंचे तो उन्हें समाज की मुख्यधारा में जुड़ने कोई  परेशानी न होए। इसके लिए केन्द्रीय जेल जबलपुर में बंदी कल्याण के लिए अनेक योजनाएं चलाई जा रही है। यहां हॉल ही में बंदियों को ड्रायविंग प्रशिक्षण प्रदान करने का काम शुरू किया  गया है और उन्हें आरटीओ से ड्रायविंग लायसेंस भी मिल रहे है। जेल से जब वे रिहा होंगे तो उनके हाथों में हुनर होगा और पुर्नवास में कोई समस्या नही आएगी।  केन्द्रीय जेल जबलपुर में ड्रायविंग के शौकीन बंदियों को बकायदा जेल ड्रायवरों द्वारा ड्रायविंग का कड़ा प्रशिक्षण दिया जा रहा है। उनके प्रशिक्षण की गुणवत्ता शहर के अनेक ड्रायविंग स्कूल से काफी उच्च कोटी की रहती है। प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले बंदी जेल वैन को लेकर शहर में आते और जाते भी है। अनेक बाद जेल ड्रायवर के छुट्टी पर   होने पर ये ही बंदी केन्द्रीय जेल से बंदियों को वैन में लेकर कोर्ट जाते और उन्हें वहां से लेकर आते है। जेल में ड्रायवरों की कमी का भी निराकरण हो चुका है। अबतक लगभग पौने दो दर्जन से अधिक बंदियों को हैवी ड्रायविंग लायसेंस मिल चुके है। ड्रायविंग सीखने वाले बंदी बेहद खुश है उनके पास ड्रायविंग लायसेंस है। उन्हें उम्मीद है कि जेल से रिहा होने के बाद उनके पास एक हुनर होगा और उन्हें ईमानदारी और मेहनत से रोजी रोटी चलाने का जरिया मिल जाएगा। केन्द्रीय जेल में अब तक 40 बंदियों को ड्रायविंग का प्रशिक्षण दिया जा चुका है।  जेल में अन्य प्रशिक्षण कार्यक्रम  उपक्रम - बंदी संख्या साबुन फैम्टरी- 50 बुनाई हाथकरघा- 150 लोहारी, बेल्डिंग-  30 कारपेंट्री -150 प्रिंट प्रेस- 50  ललित कला- 25 अमरेन्द्र सिंह  ---------------------------------------------------------- जबलपुर। राज्य सेवा  के अधिकारी अमरेन्द्र सिंह अपनी नेत्रत्व क्षमता और कुशल कार्यप्रणाली के लिए पुलिस मोहकमें में पहचाने जाते है। सन 2001 बैच के अधिकारी अमरेन्द्र सिंह भोपाल, इंदौर और शिवपुरी जिले में पदस्थ रह चुके हैं। जबलपुर जिले में सीएसपी रांझी और वर्तमान में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक शहर के पद पर हैं तथा शहर के पुलिस बल को उनका कुशल नेतृत्व प्रदान कर रहें हैं। अनेक विषम परिस्थितियों में उन्होंने पुलिस बल का मनोबल उंचा बनाए रखा और अपनी कप्तानी का लोहा मनवाने में कामयाब रहें। यहां हाईकोर्ट में अधिवक्ताओं के उग्र आंदोलन में पथराव के दौरान  पुलिस बल का संयमित एवं नियंत्रण में रखा और एक बड़े फसाद को टालने में कामयाब हुए। भरतीपुर में दो बार सम्प्रदायिक तनाव के माहौल में कम बल की मौजूदगी के बावजूद स्थिति नियंत्रण में बनाए रखी। उनकी सूझबूझ, निडरता और मिलसार गुण का पुलिस पुलिस मोहकमें को लाभ है। अनेक अनसुलझे हत्याकांड के खुलासा करने और बड़े फरार अपराधियों को पकड़वाले का श्रेय भी उनके खाते में जा चुका है। उनसे संवाददाता दीपक परोहा की बातचीत के अंश निम्न हैं-  * पुलिस में क्या कमी आप महसूस करतें हैं?  ** यदि देखा जाए तो पुलिस अब भी संसाधनों की तुलना में काफी पिछड़ी हुई है। अपराधी हाईटेक हो चुके है और आधुनीकि तकनीकी और संसाधन अपना रहे है। जहां पुलिस में संसाधनों की कमी है और उपर से पुलिस बल भी क्षेत्र की जनसंख्या और भौगोलिक स्थिति की तुलना में बेहद कम  है। इस कमी को दूर करने शासन स्तर पर प्रयास चल रहे है।  * पुलिस संसाधनों में पिछड़ी है फिर भी उसे आम आदमी की जानमाल की हिफाजत करनी है,ये उसकी ड््यटी का हिस्सा है? ऐसे में आप क्या कर सकते हैं? ** पुलिस संसाधन कम होने पर सुनियोजित पुलिसिंग पूरी दक्षता से कराई जा रही है, जिससे हम शहर में अमनचैन कायम कर रखे हैं। व्यवस्थिति पुलिसिंग  के कारण लोगों की जानमाल की हिफाजत करने में भी सफल है। अपराध होने पर अपराधियों को पकड़ कर उन्हें सजा दिलवा रहे है जिससे अपराध दर नियंत्रण में है।  * एक अच्छे पुलिस अधिकारी के क्या गुण होने चाहिए, आप में वैसी खूबी मौजूद है?  ** एक पुलिस अधिकारी का मुख्य गुण अपनी फोर्स का मनोबल हमेशा उंचा रखना होता है। अपने अधिनस्त और सहयोगी अधिकारियों के बीच तालमेल बनाकर पूरी टीम भावना से काम करना और करवाना आना चाहिए। वह जब फील्ड में मौजूद हो तो उसे जमीनी हकीकत मालूम होनी चाहिए। सूचना तंत्र उसका जबदस्त मजबूत होना चाहिए। जहां तक मेरा सवाल है तो मैने अब तक कुशलता के साथ इन्ही गुणों के कारण पुलिस को नेतृत्व करते आ रहा हूं।  * आम जनता पुलिस के नाम से डरती है, और आज अपराधियों पर पुलिस का खौफ कम हो रहा है, ये बदलती सामाजिक व्यवस्था पुलिस के लिए  कहां तक उचित है?  ** हमेशा पुलिस कर्मचारियों की मीटिंग में मुख्य विषय यही होता है कि आम जनता के बीच पुलिस की छबि बेहतर रहे। जनता और पुलिस के बीच सतत संवाद की स्थिति बनी रहे। इससे उनका सूचना तंत्र मजबूत होगा और पुलिसिंग के लिए बेहद उपयोगी रहेगा। जनता में पुलिस का खौफ नहीं अपराधियों में होना चाहिए। इसके लिए हमारा हमेशा प्रयास रहता है कि कोई भी वारदात होने पर पुलिस तत्काल एक्शन पर आ जाए, अपराधी को पकड़ा जाए और उसे सजा दिलाई जाए। इससे अपराधियों में पुलिस और कानून का खौफ पैदा होगा। लाठी भांजने मात्र से पुलिस का खौफ अपराधियों पर नहीं पड़ेगा।  * आपका कोई यादगार मामला? **  जबलपुर में हुआ बहुचर्चित आरोही हत्याकांड एक यादगार केस है  जिसमें हमें बेहद अधिक मेहनत करनी पड़ी और सफलता भी मिली। इसी तरह इंदौर में दोहरे और तिहरे हत्याकांड है जिसमें तीन आरोपियों को फांसी की सजा हुई।   ********************************************   ***अमरेन्द्र सिंह  ---------------------------------------------------------- जबलपुर। राज्य सेवा  के अधिकारी अमरेन्द्र सिंह अपनी नेत्रत्व क्षमता और कुशल कार्यप्रणाली के लिए पुलिस मोहकमें में पहचाने जाते है। सन 2001 बैच के अधिकारी अमरेन्द्र सिंह भोपाल, इंदौर और शिवपुरी जिले में पदस्थ रह चुके हैं। जबलपुर जिले में सीएसपी रांझी और वर्तमान में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक शहर के पद पर हैं तथा शहर के पुलिस बल को उनका कुशल नेतृत्व प्रदान कर रहें हैं। अनेक विषम परिस्थितियों में उन्होंने   पुलिस बल का मनोबल उंचा बनाए रखा और अपनी कप्तानी का लोहा मनवाने में कामयाब रहें। यहां हाईकोर्ट में अधिवक्ताओं के उग्र आंदोलन में पथराव के दौरान  पुलिस बल का संयमित एवं नियंत्रण में रखा और एक बड़े फसाद को टालने में कामयाब हुए। भरतीपुर में दो बार सम्प्रदायिक तनाव के माहौल में कम बल की मौजूदगी के बावजूद स्थिति नियंत्रण में बनाए रखी। उनकी सूझबूझ, निडरता और मिलसार गुण का पुलिस पुलिस मोहकमें को लाभ है। अनेक अनसुलझे हत्याकांड के खुलासा करने और बड़े फरार अपराधियों को पकड़वाले का श्रेय भी उनके खाते में जा चुका है। उनसे संवाददाता दीपक परोहा की बातचीत के अंश निम्न हैं-  * पुलिस में क्या कमी आप महसूस करतें हैं?  ** यदि देखा जाए तो पुलिस अब भी संसाधनों की तुलना में काफी पिछड़ी हुई है। अपराधी हाईटेक हो चुके है और आधुनीकि तकनीकी और संसाधन अपना रहे है। जहां पुलिस में संसाधनों की कमी है और उपर से पुलिस बल भी क्षेत्र की जनसंख्या और भौगोलिक स्थिति की तुलना में बेहद कम  है। इस कमी को दूर करने शासन स्तर पर प्रयास चल रहे है।  * पुलिस संसाधनों में पिछड़ी है फिर भी उसे आम आदमी की जानमाल की हिफाजत करनी है,ये उसकी ड््यटी का हिस्सा है? ऐसे में आप क्या कर सकते हैं? ** पुलिस संसाधन कम होने पर सुनियोजित पुलिसिंग पूरी दक्षता से कराई जा रही है, जिससे हम शहर में अमनचैन कायम कर रखे हैं। व्यवस्थिति पुलिसिंग  के कारण लोगों की जानमाल की हिफाजत करने में भी सफल है। अपराध होने पर अपराधियों को पकड़ कर उन्हें सजा दिलवा रहे है जिससे अपराध दर नियंत्रण में है।  * एक अच्छे पुलिस अधिकारी के क्या गुण होने चाहिए, आप में वैसी खूबी मौजूद है?  ** एक पुलिस अधिकारी का मुख्य गुण अपनी फोर्स का मनोबल हमेशा उंचा रखना होता है। अपने अधिनस्त और सहयोगी अधिकारियों के बीच तालमेल बनाकर पूरी टीम भावना से काम करना और करवाना आना चाहिए। वह जब फील्ड में मौजूद हो तो उसे जमीनी हकीकत मालूम होनी चाहिए। सूचना तंत्र उसका जबदस्त मजबूत होना चाहिए। जहां तक मेरा सवाल है तो मैने अब तक कुशलता के साथ इन्ही गुणों के कारण पुलिस को नेतृत्व करते आ रहा हूं।  * आम जनता पुलिस के नाम से डरती है, और आज अपराधियों पर पुलिस का खौफ कम हो रहा है, ये बदलती सामाजिक व्यवस्था पुलिस के लिए  कहां तक उचित है?  ** हमेशा पुलिस कर्मचारियों की मीटिंग में मुख्य विषय यही होता है कि आम जनता के बीच पुलिस की छबि बेहतर रहे। जनता और पुलिस के बीच सतत संवाद की स्थिति बनी रहे। इससे उनका सूचना तंत्र मजबूत होगा और पुलिसिंग के लिए बेहद उपयोगी रहेगा। जनता में पुलिस का खौफ नहीं अपराधियों में होना चाहिए। इसके लिए हमारा हमेशा प्रयास रहता है कि कोई भी वारदात होने पर पुलिस तत्काल एक्शन पर आ जाए, अपराधी को पकड़ा जाए और उसे सजा दिलाई जाए। इससे अपराधियों में पुलिस और कानून का खौफ पैदा होगा। लाठी भांजने मात्र से पुलिस का खौफ अपराधियों पर नहीं पड़ेगा।  * आपका कोई यादगार मामला? **  जबलपुर में हुआ बहुचर्चित आरोही हत्याकांड एक यादगार केस है  जिसमें हमें बेहद अधिक मेहनत करनी पड़ी और सफलता भी मिली। इसी तरह इंदौर में दोहरे और तिहरे हत्याकांड है जिसमें तीन आरोपियों को फांसी की सजा हुई।   ********************************************   *********************************************   ******************************************    ----------------------------------------------------------- वन्य पक्षियों की अवैध फार्मिग और कारोबार   वन विभाग कर रहा जांच, किस लिए बिकते है ये भी पता नहीं  जबलपुर। दुर्लभ वन्य पक्षी की अवैध फार्मिंग एवं उनके अवैध विक्रय के  कारोबार की वन विभाग को काफी अर्से से सूचना मिलती रही है लेकिन अब तक पक्षियों का अवैध कारोबार करने वाला बड़ा गिरोह पुलिस के हाथ नहीं लगा। अलबत्ता गुरंदी तथा अन्य क्षेत्र में विक्रय के लिए आने वाले तोते तथा लव वर्ड सहित अन्य  कुछ प्रजाति के पंछियों को जब्त कर उन्हें खुले आसमान में छोड़ने की वन विभाग ने कार्रवाई की लेकिन इस पक्षियों को पकड़ने, उनकी अवैध  फार्मिग करने वाले गिरोह व उसके नेटवर्क को उजागर नहीं कर पाया गया। अलबत्ता गत गुरूवार को ऐसा एक संदिग्ध गिरोह वन विभाग के हाथ लगा है लेकिन कानूनी दांवपेंच के चलते गिरोह पर कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है। अलबत्ता एंटी पोचिंग टीम ने मामला जांच पड़ताल में ले लिया है।   सूत्रों के अनुसार  जबलपुर के आसपास जंगली क्षेत्रों में पक्षियों के अवैध कारोबारी के जबलपुर आने की खबर पर वन विभाग के अमले ने फूटाताल क्षेत्र  वन विभाग ने दबिश देकर पक्षियों के व्यापारियों को पकड़ा । उनके पास दुर्लभ शुतुरमुर्ग की तरह के पक्षी मिले लेकिन उनके पास जो पक्षी मिले उसको देखकर वन विभाग भी चौक गए। ये शुतुरमुर्ग नहीं थे। पक्षी के व्यापारियों ने उन्हे एमओ नामक पक्षी बताया और कहा कि यह पालतू पक्षी के श्रेणी का है। वन विभाग कानूनी दांव पेंच के चलते पक्षी को जब्त नहंी कर पाया लेकिन उनकी तस्वीरें उतार कर तथा व्यापारियों की आईडी और पता ठिकाना लेकर उन्हें छोड़ दिया। मामले की जांच पड़ताल प्रारंभ कर दी है। वन विभाग इन पक्षियों  को लेकर संशय में है। उन्हें नहीं मालूम   ये किस नस्ल के पक्षी हैं और वे वन्य प्राणी है अथवा नहीं ? इनका क्या उपयोग है? क्यो पाले जाते है? इस सब से वन विभाग अनभिज्ञ है। फिलहाल वन विभाग ने मामला जांच में लिया है। पक्षियों का कारोबार करने वाले नागपुर से आए थे। ऐसा समझा जा रहा है कि नागपुर से लगे प्रदेश के जिलों में इन पक्षियों की व्यापक पैमाने में फार्मिग हो रही है।  अंडे की खातिर चलता है कारोबार सूत्रों की माने तो शुतुरमुर्ग के अंडे बेहद कीमती होते है। विदेशों में शुतुरमुर्ग की फार्मिंग भी होती है और उसके अंडे बिकते हैैं लेकिन वन विभाग सुतुरमुर्ग पालने की अनुमति नहीं देता है जिसके परिणाम स्वरूप उसके वर्णशंकर का अवैध कारोबार जमकर फैल रहा है।   वर्जन शुतुरमुर्ग की तरह पक्षी मिले थे लेकिन वे शुतुरमुर्ग नहीं थे। ऐसा समझा जाता है कि पक्षी का अवैध कारोबार करने वाले ग्राहक को शुतुरमुर्ग बताकर बेचने का कारोबार करते है। वन विभाग मामले की जांच पड़ताल कर रही है।  आरके  पांडे  डीएफओ, एन्टी पेचिंग स्क्वाड