कला की साधना में गुजरा जीवन
जबलपुर। मानव सभ्यता और जीवन इस माटी की ही देन है। सदियों से इस मिट्टी ने लोगों को रोजगार और पेट भरने का साधन दिया है और जीवन अंत में मिट्टी में मिल जाता है। इसी मिट्टी से जन्म लेती है मूर्तिकला। सोनाबाई ने अपने जीवन में इसी मिट्टी के सहारे आनंद पाया, कला की साधना की और गरीबी में ही सही पूरे परिवार की परवरिस इसी के सहारे की। युगो से धरती में कलाकार जन्म लेते रहे है और उनकी साधना का नतीजा है कि मूर्तिकला शिखर पर है। जबलपुर में भी मूर्तिकला को एक मुकाम में पहुंचाया है सोनाबाई राजपूत ने। उम्र 7 बर्ष से जो मूर्तियां बनाना शुरू की वह 82 वर्ष की आयु होने के बाद भी नहीं थमा है।
नटराज कला मंदिर फूटाताल निवासी सोनाबाई कहती है कि हर आदमी के जीवन में अलग-अलग परिस्थितियां एवं हालत निर्मित होते है और उसमें बिना हार माने लगन और साधना के साथ कार्य किया जाए तो कांटों भरा जीवन भी आनंद देता है। सोनाबाई ने कुछ ऐसे ही जीवन जीया है। उसने जीवन का सुख और आनंद गीली मिट्टी में तलाश की। सोनाबाई के पिता गणेश प्रताप परिहार मूर्मिकार थे। वे अंग्रेज के काल के मूर्तिकार थे। लोकमान्य तिलक ने जब सार्वजनिक गणेश प्रतिमाएं रखने की शुरूआत की उसके बाद जबलपुर में गणेश जी और दुर्गा की प्रतिमा गणेश प्रताप सिंह ने बनाई। होलिका रखने की प्रतिमा भी बनाना शुरू किया। सोनाबाई ने 7 वर्ष की उम्र में मिट्टी की प्रतिमा बनाने की शुरूआत की तो सन 1941 में गढ़ा फाटक की पहली प्रतिमा सोनाबाई के नाम से बनी।
अपनी दम पर चलाई गृहस्थी
सोनाबाई का विवाह कन्हैया लाल राजपूत से हुआ लेकिन पति की मौत तब हो गई जब उनकी गृहस्थी कच्ची थी। तीन लड़के एवं 4 बेटियों जो अवश्यक थी, उनकी जवाबदारी सोना बाई पर हो गई। मिट्टी की गणेश एवं दुर्गा की प्रतिमा बनाकर बेचना शुरू किया। त्यौहार के समय मूर्तियां बनती थी और
बिकती थी जिससे साल भर खर्चा चलता था। बेहद गरीबी के बाजवूद मूर्तियां बनाना जारी रखा, आज सभी बच्चों का विवाह कर अपने सभी दायित्व निर्वाह कर जीवन के अंतिम पड़ाव पर है।
कलात्मकता का का ट्रेंड दिया
अपनी मूर्तिकारी के लिए उन्हें प्रदेश एवं केन्द्र सरकार से इनाम मिल चुके है। मिट्टी मूर्ति के साथ ही कल्चर मार्बल एवं पत्थर की मूर्तिया भी बनाई। सोनाबाई द्वारा महापुरूषों की कल्चर मार्बल की बनाई गई अनेक मूूर्तियां शहर में स्थापित है। सोनाबाई की शहर में मूर्तिकला में विशेष योगदान यह है कि उन्होंने दुर्गा प्रतिमाओं में कलात्मकता का पुट ज्यादा डाला। इसके चलते देवी द्वारा बड़े बड़े दैत्यों को मारने वाली प्रतिमाओं का चलन कम हुआ। कलात्मक प्रतिमाओं का ट्रेड चल पड़ा है। इसी तरह गणेश जी की प्रतिमाओं में भी कला का ट्रेंड शुरू करने वाली सोनाबाई ही है। प्रतिमाओं को रंगने एवं सजाने के लिए कलर और कोटिंग के नए नद प्रयोग उनके द्वारा ही किए गए जो बाद में अन्य कलाकारों ने भी इस्तेमान किया।
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