थोड़ी सूझबूझ से बच सकती थी हजारों करोड़ की फसल बर्बाद होने से
बोरलॉग की 6 सौ एकड़ की फसल में 1 फीसदी नुकसान नहीं
दीपक परोहा
जबलपुर। प्रदेश में इस वर्ष कई बार बारिश और ओले की मार से किसानों की हजारों करोड़ रूपए मूल्य की गेहूं की खड़ी फसलें बिछ गई। बारिश ,आंधी-तूफान और ओलों की मामूली मार ने ही फसलों को मिट्टी में मिला दिया लेकिन जबलपुर स्थित अंतराष्ट्रीय कृषि अनुसंधान केन्द्र ‘बोरलॉग इंस्टीट्यूट फॉर साउथ एशिया ’ ग्राम लखनवाड़ा की 600 एकड़ की फसल में एक प्रतिशत भी क्षति नहीं हुई, जबकि यहां 14 बार में 114 मिमी बारिश हुई। इस चमत्कार की पीछे कृषि संबंधी बेहद मामूली ज्ञान समझा जा रहा है। प्रदेश के किसान यदि कृषि संबंधी थोड़ी वैज्ञानिक सूझबूझ रखते तो बहुत से किसानों की फसलें बोरलॉग इंस्टीट्यूट की तरह बच जाती। देश में कृषि उत्पादन के अनुसंधान के लिए लुधियाना, जबलपुर और पटना में बोरलॉग इंस्टीट्यूट कार्यरत है। जबलपुर में करीब 600 एकड़ में बोरलॉग इंस्टीट्यूट द्वारा गेहूं , धान सहित अन्य उपज की अनुसंधान के उद्देश्य से खेती करता है। इस वर्ष मौसम किसानों के प्रतिकूल रहा है, बोरलॉग से लगे इलाके लखनवाड़ा, पनागर सहित अन्य क्षेत्रों में किसानों की करोड़ों रूपए की फसल पानी के कारण बर्वाद हुई। आश्चर्य जनक परिणाम मौसम के कहर से बोरलॉग इंंस्टीट्यूट की फसल पर क्या असर हुआ? इसका सर्वेक्षण फ्लांग डेटा रिकार्ड के माध्यम से कृषि वैज्ञानिकों की मौजूदगी में हवाई सर्वे किया गया तो आश्चर्यजनक तथ्य सामने आए कि एक प्रतिशत भी नुकसान नहीं हुआ है। जड़ भी थी मजबूत इस सर्वे के अध्ययन के बात वैज्ञानिक नतीजे पर पहुंचे है कि बोरलॉग प्रक्षेत्र में लगाई गई गेहूं की फसल में पौधे की जड़े मजबूत थी जिससे पानी और आंधी के बावजूद फसल खेत में नहीं बिछ पाई। बारिश का पानी फसल के लिए फायदे मंद साबित हुआ। इस वर्ष रिकार्ड उत्पादन की संभावना है। --------------------------------- वर्जन ..... किसान करते है गलती किसान बिना जरूरत के यूरिया का छिड़काव कर देते है। इस पर उपज को पानी मिलने पर पौधे में विशेष ग्रोथ मिल जाती है जबकि उसकी जड़ को ग्रोथ नहीं मिलती है। बारिश, आंधी और ओले की मार से जड़ जमीन छोड़ देती है और फसल नष्ट हो जाती है। बोरलॉक में मृदा परीक्षण के उपरांत यूरिया, फास्फेट एवं व अन्य खाद का संतुुलित तरीके से छिडकाव किया गया था। फोटास एवं फॉस्फे ट से जड़ें भी मजबूत हुई थी। संतुलित यूरिया के कारण पौधे में अनावश्यक ग्रोथ भी नहीं होती है। इसी के कारण बोरलॉक में पानी के कारण फसल में नुकसान नहीं हुआ। डॉ एसएस तोमर संचालक डायरेक्टर बोरलॉग इंस्टीट्यूट --------------------------- खेत को न जलाए किसान को रसायनिक खाद का उपयोग करने के पूर्व मृदा परीक्षण कराया चाहिए और वैज्ञानिकों की सलाह पर संतुलित खाद का उपयोग करना चाहिए। तभी फसलों को बचाया जा सकता है। खेत की कटाई के बाद नरवाई को जलाना नहीं चाहिए। यह धारणा गलत है कि खेत को जलाने से उपज अच्छी होती है दरअसल आग लगाने से जमीन में मौजूद सूक्ष्म जीवाणु जो जड़ों की रक्षा करते है वे मर जाते है। मिट्टी भी कड़ी हो जाती है जिससे मिट्टी में जड़ों की पकड़ कमजोर होती है। डॉ राज गुप्ता कृषि वैज्ञानिक
दीपक परोहा
जबलपुर। प्रदेश में इस वर्ष कई बार बारिश और ओले की मार से किसानों की हजारों करोड़ रूपए मूल्य की गेहूं की खड़ी फसलें बिछ गई। बारिश ,आंधी-तूफान और ओलों की मामूली मार ने ही फसलों को मिट्टी में मिला दिया लेकिन जबलपुर स्थित अंतराष्ट्रीय कृषि अनुसंधान केन्द्र ‘बोरलॉग इंस्टीट्यूट फॉर साउथ एशिया ’ ग्राम लखनवाड़ा की 600 एकड़ की फसल में एक प्रतिशत भी क्षति नहीं हुई, जबकि यहां 14 बार में 114 मिमी बारिश हुई। इस चमत्कार की पीछे कृषि संबंधी बेहद मामूली ज्ञान समझा जा रहा है। प्रदेश के किसान यदि कृषि संबंधी थोड़ी वैज्ञानिक सूझबूझ रखते तो बहुत से किसानों की फसलें बोरलॉग इंस्टीट्यूट की तरह बच जाती। देश में कृषि उत्पादन के अनुसंधान के लिए लुधियाना, जबलपुर और पटना में बोरलॉग इंस्टीट्यूट कार्यरत है। जबलपुर में करीब 600 एकड़ में बोरलॉग इंस्टीट्यूट द्वारा गेहूं , धान सहित अन्य उपज की अनुसंधान के उद्देश्य से खेती करता है। इस वर्ष मौसम किसानों के प्रतिकूल रहा है, बोरलॉग से लगे इलाके लखनवाड़ा, पनागर सहित अन्य क्षेत्रों में किसानों की करोड़ों रूपए की फसल पानी के कारण बर्वाद हुई। आश्चर्य जनक परिणाम मौसम के कहर से बोरलॉग इंंस्टीट्यूट की फसल पर क्या असर हुआ? इसका सर्वेक्षण फ्लांग डेटा रिकार्ड के माध्यम से कृषि वैज्ञानिकों की मौजूदगी में हवाई सर्वे किया गया तो आश्चर्यजनक तथ्य सामने आए कि एक प्रतिशत भी नुकसान नहीं हुआ है। जड़ भी थी मजबूत इस सर्वे के अध्ययन के बात वैज्ञानिक नतीजे पर पहुंचे है कि बोरलॉग प्रक्षेत्र में लगाई गई गेहूं की फसल में पौधे की जड़े मजबूत थी जिससे पानी और आंधी के बावजूद फसल खेत में नहीं बिछ पाई। बारिश का पानी फसल के लिए फायदे मंद साबित हुआ। इस वर्ष रिकार्ड उत्पादन की संभावना है। --------------------------------- वर्जन ..... किसान करते है गलती किसान बिना जरूरत के यूरिया का छिड़काव कर देते है। इस पर उपज को पानी मिलने पर पौधे में विशेष ग्रोथ मिल जाती है जबकि उसकी जड़ को ग्रोथ नहीं मिलती है। बारिश, आंधी और ओले की मार से जड़ जमीन छोड़ देती है और फसल नष्ट हो जाती है। बोरलॉक में मृदा परीक्षण के उपरांत यूरिया, फास्फेट एवं व अन्य खाद का संतुुलित तरीके से छिडकाव किया गया था। फोटास एवं फॉस्फे ट से जड़ें भी मजबूत हुई थी। संतुलित यूरिया के कारण पौधे में अनावश्यक ग्रोथ भी नहीं होती है। इसी के कारण बोरलॉक में पानी के कारण फसल में नुकसान नहीं हुआ। डॉ एसएस तोमर संचालक डायरेक्टर बोरलॉग इंस्टीट्यूट --------------------------- खेत को न जलाए किसान को रसायनिक खाद का उपयोग करने के पूर्व मृदा परीक्षण कराया चाहिए और वैज्ञानिकों की सलाह पर संतुलित खाद का उपयोग करना चाहिए। तभी फसलों को बचाया जा सकता है। खेत की कटाई के बाद नरवाई को जलाना नहीं चाहिए। यह धारणा गलत है कि खेत को जलाने से उपज अच्छी होती है दरअसल आग लगाने से जमीन में मौजूद सूक्ष्म जीवाणु जो जड़ों की रक्षा करते है वे मर जाते है। मिट्टी भी कड़ी हो जाती है जिससे मिट्टी में जड़ों की पकड़ कमजोर होती है। डॉ राज गुप्ता कृषि वैज्ञानिक
No comments:
Post a Comment