Friday, 12 June 2015

Newsसफेद बाघ का नया घर

 जबलपुर। दुनिया की दुर्लभ नस्ल में शामिल सफेद बाघ का नया घर अब जल्द ही विंध्य क्षेत्र के मुकुंदपुर में बनने जा रहा है। वाइट टाइगर सफारी मुकुंदपुर का काम लगभग कार्य पूर्ण हो गया। वन विभाग के इस बड़े प्रोजेक्ट को सिर्फ चिड़ियाघर प्राधिकरण से अनुमति मिलना भर शेष है और इसके साथ ही वाइट टाइगरों का जहां से उत्पत्ति हुई थी, वहीं उनका गांव बस जाएगा। एशिया के पहले सफेद बाघ जू का शुभारंभ करने के लिए देश के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के आने की संभावना है।     दुनिया में वाइट टाइगर की दुर्लभ नस्ल सबसे पहले रीवा में पाई गई थी तथा दुनिया के पहले सफेद बाघ मोहन को सीधी वन क्षेत्र में 1951 में रीवा नरेश राजा मार्तंड सिंह ने देखा था और रीवा नरेश के प्रयास से मोहन की संतानें दुनिया के प्रमुख जू की शोभा बनी। मोहन के साथ सफेद बाघों की नस्ल बढ़ी और सफेद बाघ ने रीवा से बाहर का सफर तय किया। वर्तमान में अब अपने उत्पत्ति स्थल में ही वे नहीं है। मध्य प्रदेश शासन ने विंध्य क्षेत्र में सफेद टाइगर की दहाड़ के लिए एक बड़ा प्रोजेक्ट शुरू करने जा रहा है।  प्रजजन केन्द्र होगा दरअसल मुकुंदपुर वाइट टाइगर सफारी अथवा वाइट टाइगर जू के बजाए प्रजजन केन्द्र होगा। इसका विस्तार एवं विकास इस तरह से किया गया है कि वाइट टाइगर की फार्मिंग की जा सके। उनकी वंशवृद्धि की जाए। देश में जिन चिड़ियाघरों में सफेद टाइगर है। उनके पास टाइगर मुकुंदपुर के लिए टाइगर डोनेट करने पत्राचार हो चुका है। एक नर एवं दो मादा टाइगर यहां जल्द ही आ जाएंगे।  टाइगर सिफ्टिंग के लिए प्लान वन अमला जल्द ही टाइगर सिफ्टिंग के लिए प्लान बना रहा है। हर हाल में पूर्ण सुरक्षित तरीके से टाइगर को यहां लाया जाना है। वन विभाग इस प्रोजेक्ट का जल्द शुरू करने की तैयारी में जुटा है, चूंकि सफेद टाइगर के स्थानांतरण काफी चुनौती पूर्ण होता है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1979 में सफेद टाइगर दिल्ली स्थानांतरण के बाद अपने घर में नए  घर में सामान्य जीवन नहीं जी पाया था और उसकी मौत हो गई थी।  बाड़ा कैसा होना चाहिए सफेद टाइगर के लिए जो बाड़ा तैयार किए गए है। वे कैसे होने चाहिए, इसके लिए विस्तृत रिपोर्ट तैयार की गई है जो करीब 400 पेज की है। यहां तक उसके बाड़ा में तीनों मौसम के अनुकूल उनके घर की प्राकृतिक वातावरण में तैयार किया गया है। इस जू में सफेद शेर के साथ अन्य वन्य प्राणी भी रखे जाएंगे। हॉल ही में भोपाल में चिडियाघर में सर्प के डंसने से एक सफेद शेर की मौत के बाद इस नई सफारी को  चूहों एवं सर्प से मुक्त रखने की भी योजना शामिल की गई है।   इस बैठक में मिलेगी मंजूरी मुकुंदपुर जू को अभी लायसेंस याने अनुमति पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण से नहीं मिली है जबकि प्रस्ताव, लेआउट, बाड़ा सहित अन्य सबंधित विस्तृत रिपोर्ट के साथ 2010 को प्रस्ताव भेजा गया था और प्रस्ताव को स्वीकृत होने के बाद प्रोजेक्ट के तहत कार्य पूर्ण कर लिए है। जू अर्थाटी ने दौरान कर संतुष्ट भी हो चुका है। केंद्रीय चिडियाघर प्राधिकरण की अगली बैठक जैसे ही होगी, वैसे ही वाइट सफारी मुकुंदपुर अस्तित्व में आ जाएगा। अगले माह प्राधिकरण की बैठक होने जा रही है। 

भूकम्प से प्रदेश को कोई खतरा नहीं

  जबलपुर। नेपाल में 24 अप्रैल को आए विनाशकारी भूकम्प के बाद आॅफर शॉक का सिलसिला जारी है। हिमालय स्थित फाल्ट में दोपहर के बाद कुछ अंतराल में सात झटके आए। ये झटके बिहार तथा उत्तरांचल में महसूस किए गए जबकि मध्य प्रदेश में दो भूकम्प के झटके लोगों ने महसूस किए है। भूकम्प विशेषज्ञों की माने तो नेपाल हिमालय में शुरू हुई भूकम्प की श्रंखला से प्रदेश को कोई खतरा नहीं है लेकिन प्रदेश में नर्मदा  एवं सोनघाटी क्षेत्र में 80 से अधिक फाल्ट मौजूद है जो  भूकम्प संवेदी है। इन भूकम्प की श्रंखला से फिलहाल यहां खतरा नहीं है लेकिन भूकम्प की भविष्यवाणी आज भी संभव नहीं है।  भारतीय सर्वे आॅफ इंडिया के सेंट्रल मुख्यालय के डायरेक्टर, वरिष्ठ वैज्ञानिक के मुखोपाध्याय ने बताया कि नेपाल में 24 अप्रेल को जो विनाशकारी भूकम्प आया था, वह गौरी शंकर लिनियामेंट के करीब था। इस भूकम्प से इस लिनियामेंट की सक्रियता बढ़ गई है। इसके चलते गौरी शंकर लिनियामेंट से दूसरा भूकम्प आया है। इस भूकम्प एवं पूर्व में आए भूकम्प केन्द्र में अंतर है। पहले आए भूकम्प की गहराई 10 किलोमीटर थी जिससे उसका विनाशकारी प्रभाव ज्यादा रहा है, जबकि आज आया भूकम्प गहराई से आया था। करीब 19 किलोमीटर नीचे था जिससे विनाश कम हुआ है। तकनीकि तौर पर यह भूकम्प पूर्व भूकम्प का आॅफ्टर शॉॅक नहीं है लेकिन फिर भी इसे भू वैज्ञानिक आॅफ्टर शॉक की तरह आंकलन कर रहे है।   मात्र तीन भूकम्प महसूस हुए  बिहार तथा उत्तर भारत में तीन झटके महसूस किए गए है जबकि 4 मैग्नीट्यूट तीव्रता तक के सात भूकम्प दिन भर में आए है। इस भूकम्प से  मध्य प्रदेश के सोन एवं नर्मदा लीनियामेंट की प्लेट सक्रिय होने का खतरा नहीं है। उन्होंने बताया कि प्लेट अलग अलग गहराई पर स्थित होती है और उनके अपने कारण भूकम्प के रहते है लेकिन तीव्रता वाले भूकम्प के मददेनजर सावधानी रखना जरूरी है। कच्चे मकान खतरे का कारण यहां भी बन सकते है।  देश के अन्य हिस्सों के साथ मध्यप्रदेश प्रदेश के अनेक स्थलों में भूकम्प के झटके महसूस किए गए। पहला भूकम्प 7.3 मैग्नीट्यूट तीव्रता का12 बजकर 35 मिनिट 19 सेकेण्ड मं आया। इसका अक्षांस 86.0 डिग्री उत्तर तथा देशांतर 86.0डिग्री पूर्व था। ये भूकम्प 10 किलोमीटर की गहराई से था। इसी तरह दूसरा भूकम्प 1 बजकर 6 मिनट 54 सेकण्ड पर आया। इसका केन्द्र मामूली बदला है। दूसरे भूकम्प का केन्द्र 27.6 डिग्री अक्षांश उत्तर तथा देशांतर 86.1 डिग्र्री पूर्व रहा। इसके बाद कुछ कुछ अंतराल में 5 भूकम्प और दर्ज किए गए है, जो लगभग 4 मैग्नीट्यूट तक के थे। इन भूकम्पों के बाद आॅफटर शॉक दर्ज किए जा रहे हैं लेकिन उनकी तीव्रता कम है।  ---------------------- वर्जन   मुताबिक शहडोल, उमरिया, कटनी, जबलपुर, नरसिंहपुर, हरदा, होशंगाबाद, खंडवा तथा खरगौन भूकम्प के प्रति संवेदनशील हैं। यहां ये नर्मदा एवं सोननदी के फाल्ट पर स्थित है। ये सिस्मिक जोन 4 में स्थित हैं। यहां मध्यम तीव्रता 6 मैग्नीटूयड एवं उससे के भूकम्प आते है। भारतीय उप महाद्वीप में भूकम की सक्रिया को देखते हुए सतर्क रहने की जरूरत है। नेपाल के भूकम्प से प्रदेश पर कोई असर नहीं पड़ेगा।    डॉ अनुपम काश्यिपी     मौसम विभाग भोपाल   

Newsप्रदेश के किसान सीख रहे एसडब्ल्यूआई खेती

 जबलपुर। अमूमन एक एकड़ खेत में किसान को गेहूं की बोनी के लिए 70 से 80 किलो गेहंू के बीज का छिंडकाव करना पड़ता है। उपचारित और अच्छे बीज की कीमत रोज बढ़ रही है। ऐसे में किसानों को अब महा बचत का तरीका कृषि विभाग सिखा रहा है। खेत में फालतू बीज नहीं फेंकना पड़ेगा। अत्याधुनिक और रिसर्च पर आधारित गेहूं बोनी और उपज हासिल करने की पद्धति विकसित हुई है। इस पद्धति से मालवा अंचल तथा महाकौशल अंचल के अनेक किसानों को खेती कराई गई। अब जब उपज आई तो इस नई पद्धति एसडब्ल्यूआई के चमत्कार देखने मिले है। उपज कई गुना बढ़ी इसके साथ ही ओला और पानी की जबदस्त मार में भी फसल बच गई। कृषि विभाग इस रिजल्ट से बेहद आशान्वित है दूसरी तरफ किसानों में इसे सीखने जबदस्त उत्साह है।   कृषि विभाग के अनुसार सिस्टम आॅफ वीट इंटेन्सिफिकेशन (एसडब्ल्यूआई ) अत्याधुनिक गेहंू खेती का एक तरीका है। इसे जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय सहित देश के अन्य गेहूं एवं कृषि वैज्ञानिकों ने पद्धति विकसित है। जबलपुर संभाग के लगभग सभी जिलों में छोटे किसाने जिनके पास एक दो एकड़ जमीन है उन्हें चुनकर इस तरीके से खेती कराई गई। पाटन तहसील के ग्राम उड़ना में करीब आधा सैकड़ा किसानों ने इस तरीके से खेती सीखी और की। अब वे इतने परंगत हो गए हैं कि अन्य किसानों को भी आधुनिक खेती सिखा सकते है। जबलपुर के लगभग सभी जिलों में किसानों को एसडब्ल्यूआई पैटर्न सिखाया गया है। इस वर्ष इसका दायरा और अधिक बढ़ाया जाएगा।   क्या है तरीका  एसडब्ल्यूआई के तहत एक एकड़ में गेहूं की बोनी करने के लिए किसान को दस किलो बीज लेने के बाद हल्के गर्म पानी का बीज में छिडकाव कर उसे अंधेरे में रखा जाता है। उसमें अंकुर अच्छी तरह से आ जाने के बाद आठ -आठ इंच की दूरी में दो से तीन अंकुरित बीज को बोया जाता है। यह कुछ धान के रोपा लगाने की तरह होता है। इस तहर से बीज बोने से बीज की बचत होती है। 80 किलो की जगह मात्र दस किलो बीज लगता है।   क्या परिणाम मिले इस तरके से खेती करने पर चौकाने वाले परिणाम आए। गेहूं के पौधों में दूरिया होने होने के कारण वे मजबत थे। अमूमन गेहूं में 10 से 15 कंसे फूटते है लेकिन इस तरीके से खेती करने पर 30 से 40 कसें फूटे। एक एकड़ में किसान जहां 10-15 क् िवंटल उपज लेता था, वहीं कम बीज में उसमें 25 से 30 क्विंटल तक गेहूं की उजप ली। परम्परागत पद्धति से पांच एकड़ जमीन में जितनी उपज होती थी, वह एक एकड़ में ली गई। सर्वाधिक महत्वपूर्ण परिणाम यह आया कि इस तरह से बीजारोपण करने वाले किसानों की फसल ओला और भारी वर्षा में खड़ी रही। उनकी जड़े मजबूत होने के कारण प्राकृतिक आपदा में भी खड़ी रही और पेड नहीं गिरे।  वर्जन  एसडब्ल्यूआई से बीजारोपण करने के बेहत अच्छे परिणाम सामने आए है। कृषि विभाग द्वारा किस तरीके से खेती करने का कार्य युद्ध स्तर पर सिखाया जाएगा जिन किसानों ने इस तरीके से खेती की है, वे अन्य को भी सिखा सकते है। छोटे और कम जमीन वाले किसानों के लिए खेती फायदे का धंधा साबित होगी।  बीपी त्रिपाठी संयुक्त संचालक कृषि   अमूमन होती है, उतनी उसने इसके तहत किसान को एक एकड़ के लिए दस किलो गेहूं के बीज लेकर उसको गर्म पानी की सहायाता से अंकुरित किया जाता है। अंकुर कुछ बड़ा होने पर     

कमलेश कर रहे राजनीति से हटकर कार्य

 दीपक परोहा 9424514521  जबलपुर। कमलेश अग्रवाल वर्तमान में नगर निगम में पार्षद एवं मेयर इन काउंसिल सदस्य हैं और भाजपा के सक्रिय कार्यकर्ताओं में हैं। राजनीति से हटकर समाज सेवा भी कमलेश अग्रवाल अग्रवाल के जीवन का एक हिस्सा है लेकिन इसे चर्चा और सुर्खियों में रखने पर भरोसा नहीं करते हैं। समाज सेवा के क्षेत्र में कमलेश अग्रवाल ने एक अनूठा कार्य कर रहे है जिसपर किसी का ध्यान नहीं जाता है।  वे अपने इस कार्य से केन्द्रीय जेल जबलपुर में वर्षो से सजा काट रहे और अपने समाज और परिवार से उपेक्षित बंदियों के रहनुमा बन गए हैं। दरअसल जबलपुर केन्द्रीय जेल ही नहीं प्रदेश भर के जेल में सैकड़ों की संख्या में ऐसे बंदी हैं जिनकी सजा खत्म हो जाती है लेकिन आर्थिक परेशानियों ओर परिवार व अपने समाज की उपेक्षा के कारण अपना अर्थदण्ड जमा नहीं कर पाते हैं जिससे उन्हें सश्रम कारावास पूरा भुगतने के बाद भी अर्थदण्ड जमा न कर पाने के कारण कारवास भोगना पड़ता है। खासतौर पर जीवन कारवास की सजा प्राप्त बंदी इनमें शामि हैं जिन्होंने 14 साल की सजा पूरी कर ली और आजाद होने का स्पप्न संजोए है लेकिन आर्थिक तंगी के कारण काल कोठरी में मुक्ति नहीं मिल पाती है। कैद के दिन बढ़ जाते है ऐसे में एक-एक घंटे उन्हें वर्ष समान लगते है। ऐसे बंदियों का अर्थदण्ड जमा करने का काम पिछले पांच साल से कमलेश अग्रवाल कर रहे है। इसके इस कार्य में उनके मित्र एवं परिवार का सहयोग मिलता है।   15 अगस्त को होती है थोक में रिहाई कमलेश अग्रवाल जेल के अधिकारियों से संपर्क करके उन बंदियों के सम्बंध में पतासाजी करते हैं जिनको उनके परिवार वाले उपेक्षित कर चुके है। उनका सामाजिक बहिष्कार लगभग हो चुका है। उनसे मिलने जुलने कोई नाते रिश्तेदार नहीं आते हैं और वे अर्थदण्ड भरने की स्थिति में नहंी है। उनकी कुछ महीने या दिनों की सजा भी 15 अगस्त के मौके पर माफ करती है उन बंदियों का अर्थदण्ड श्री अग्रवाल स्वयं भरते हैं, और 15 अगस्त को थोक में रिहाई होती है। यूं तो प्रदेश भर के जेलों में ऐसे बंदियों की भरमार हैं लेकिन व्यकित की अपनी सीमाएं होती है। कमलेश अग्रवाल अपने सामर्थ के हिसाब से केन्द्रीय जेल जबलपुर के बंदियों को रिहा कराने में अपना योगदान देतें है। ये बंदी जबलपुर के कम बाहरी जिलों के ज्यादा होते है। उनकी रिहाई से कमलेश को राजनैतिक लाभ तो नहीं मिलता है लेकन मन में किसी को आजादी दिलाने का जो सकून महसूस करते हैं उसे वे अनमोल मानते है। कमलेश अग्रवाल की अपेक्षा है कि और शहर ही नहीं प्रदेश के भी और लोग इस तरह के कार्य के लिए आगे आए, जिससे धन के कारण कोई बेवजह एक दिन की भी सजा न काटे।  4 सौ से अधिक को रिहा कराया  श्री अग्रवाल ने अब तक 400 से अर्थिक बंदियों को रिहा करा चुके हैं।  स्वयं एवं परिवार के सहयोग से करीब 4 लाख रूपए का अर्थदण्ड इन बंदियों के बदले भर चुके है। बंदियों को रिहा कराने के अतिरिक्त प्रतिवर्ष वे एक रक्तदान शिविर करते है जिसमें दो से तीन सौ लोग रक्तदान करते है। वे प्रतिवर्ष 31 दिसम्बर को वृद्धजनों के लिए भंडारे का आयोजन करते हैं। उन्होंने छात्र राजनीति से अपना राजनैतिक कैरियर शुरू किया। 45 वर्षीय श्री अग्रवाल 20 साल से सक्रिय राजनीति में है तथा दूसरी बार मेयर इन काउंसिल सदस्य नगर निगम में बने है। इसके अतिरिक्त भाजयुमों में विभिन्न पदों में रह चुके हैं।   ------------------------------------------------------------

मुकुंदपुर

 जबलपुर। दुनिया की दुर्लभ नस्ल में शामिल सफेद बाघ का नया घर अब जल्द ही विंध्य क्षेत्र के मुकुंदपुर में बनने जा रहा है। वाइट टाइगर सफारी मुकुंदपुर का काम लगभग कार्य पूर्ण हो गया। वन विभाग के इस बड़े प्रोजेक्ट को सिर्फ चिड़ियाघर प्राधिकरण से अनुमति मिलना भर शेष है और इसके साथ ही वाइट टाइगरों का जहां से उत्पत्ति हुई थी, वहीं उनका गांव बस जाएगा। एशिया के पहले सफेद बाघ जू का शुभारंभ करने के लिए देश के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के आने की संभावना है।     दुनिया में वाइट टाइगर की दुर्लभ नस्ल सबसे पहले रीवा में पाई गई थी तथा दुनिया के पहले सफेद बाघ मोहन को सीधी वन क्षेत्र में 1951 में रीवा नरेश राजा मार्तंड सिंह ने देखा था और रीवा नरेश के प्रयास से मोहन की संतानें दुनिया के प्रमुख जू की शोभा बनी। मोहन के साथ सफेद बाघों की नस्ल बढ़ी और सफेद बाघ ने रीवा से बाहर का सफर तय किया। वर्तमान में अब अपने उत्पत्ति स्थल में ही वे नहीं है। मध्य प्रदेश शासन ने विंध्य क्षेत्र में सफेद टाइगर की दहाड़ के लिए एक बड़ा प्रोजेक्ट शुरू करने जा रहा है।  प्रजजन केन्द्र होगा दरअसल मुकुंदपुर वाइट टाइगर सफारी अथवा वाइट टाइगर जू के बजाए प्रजजन केन्द्र होगा। इसका विस्तार एवं विकास इस तरह से किया गया है कि वाइट टाइगर की फार्मिंग की जा सके। उनकी वंशवृद्धि की जाए। देश में जिन चिड़ियाघरों में सफेद टाइगर है। उनके पास टाइगर मुकुंदपुर के लिए टाइगर डोनेट करने पत्राचार हो चुका है। एक नर एवं दो मादा टाइगर यहां जल्द ही आ जाएंगे।  टाइगर सिफ्टिंग के लिए प्लान वन अमला जल्द ही टाइगर सिफ्टिंग के लिए प्लान बना रहा है। हर हाल में पूर्ण सुरक्षित तरीके से टाइगर को यहां लाया जाना है। वन विभाग इस प्रोजेक्ट का जल्द शुरू करने की तैयारी में जुटा है, चूंकि सफेद टाइगर के स्थानांतरण काफी चुनौती पूर्ण होता है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1979 में सफेद टाइगर दिल्ली स्थानांतरण के बाद अपने घर में नए  घर में सामान्य जीवन नहीं जी पाया था और उसकी मौत हो गई थी।  बाड़ा कैसा होना चाहिए सफेद टाइगर के लिए जो बाड़ा तैयार किए गए है। वे कैसे होने चाहिए, इसके लिए विस्तृत रिपोर्ट तैयार की गई है जो करीब 400 पेज की है। यहां तक उसके बाड़ा में तीनों मौसम के अनुकूल उनके घर की प्राकृतिक वातावरण में तैयार किया गया है। इस जू में सफेद शेर के साथ अन्य वन्य प्राणी भी रखे जाएंगे। हॉल ही में भोपाल में चिडियाघर में सर्प के डंसने से एक सफेद शेर की मौत के बाद इस नई सफारी को  चूहों एवं सर्प से मुक्त रखने की भी योजना शामिल की गई है।   इस बैठक में मिलेगी मंजूरी मुकुंदपुर जू को अभी लायसेंस याने अनुमति पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण से नहीं मिली है जबकि प्रस्ताव, लेआउट, बाड़ा सहित अन्य सबंधित विस्तृत रिपोर्ट के साथ 2010 को प्रस्ताव भेजा गया था और प्रस्ताव को स्वीकृत होने के बाद प्रोजेक्ट के तहत कार्य पूर्ण कर लिए है। जू अर्थाटी ने दौरान कर संतुष्ट भी हो चुका है। केंद्रीय चिडियाघर प्राधिकरण की अगली बैठक जैसे ही होगी, वैसे ही वाइट सफारी मुकुंदपुर अस्तित्व में आ जाएगा। अगले माह प्राधिकरण की बैठक होने जा रही है। 

बजट के अभाव में क्रोकोडायल हुए लावारिस

    जबलपुर। परियट नदी मगरमच्छ का प्राकृतिक घर होने के कारण जबलपुर में सन 2009 से क्रोकोडायल कम्यूनिटी रिसर्च प्रोजेक्ट को यूएनडीपी के सहयोग से प्रारंभ हुुआ लेकिन क्रोकोडायल के संरक्षण के प्रति जानकार लोगों की कमी और फिजूलखर्ची के चलते प्रोजेक्ट बंद हो गया है। इस प्रोजेक्ट को वन विभाग अपने बलबूते चलाने पर विचार कर रहा है लेकिन बजट के अभाव में क्रोकोडायल लावारिस हो गए है। बहरहाल वन रक्षा समिति तथा स्थानीय प्राणी विशेषज्ञों के बलबूते मगरमच्छ का संरक्षण का कार्य जबलपुर में चल रहा है। गर्मियों के कारण परियट नदी जगह जगह सूखने के कारण भी मगरमच्छ को अपने स्थान बदलने पड़ रहे है। जबलपुर में एक अच्छी बात ये है कि यहां मगरमच्छ के शिकार की अब तक एक भी घटनाएं नहीं हुई है। यहां स्थित परियट जलाशय से लेकर खमरिया तक फैल परियट नदी और इस नदी के  सहायक नालें मगरमच्छ के घर है किन्तु प्रतिवर्ष बारिश को नाले तथा परियट में आने वाली बाढ़Þ के परिणाम स्वरूप मगर के बच्चे फल्ड के पानी में बहकर समीपस्थ ग्राम के खेतों में चले जाते थे। इसमें से कुछ ही जीवित बचते रहे हैं। वहीं मगर भी नदी स्थित अपने घर छोड़ कर गांव की ओर पहुंच कर हादसे का शिकार होते रहे है जिससे इनकी संख्या बेहद कम हो गई थी।मगरमच्छ संरक्षण के  के लिए  वर्ष 2009 से क्रोकोडायल कम्यूनिटी प्रोजेक्ट शुरू किया गया। इस प्रोजेक्ट के लिए यूएनडीपी से करीब 30 लाख की राशि स्वीकूत हुई। इसके तहत परियट से झुरझुर तक मगर का प्राकृतिक आवास विकसित करना था, लेकिन वह आज तक विकिसत नहीं हो पाया अलबत्ता प्रोजेक्ट ही बंद हो गया है।अब वन विभाग अपने बलबूते उनका घर  आबाद करने कबायद कर रहा है लेकिन बजट के अभाव में मगरमच्छ लावारिस हो गए हैं।   फिजूलखर्ची हुई प्रोजेक्ट में  जानकारों का कहना है कि मगरमच्छ का कैसे और किस तरह संरक्षण करना है इसकी तननीकि जानकारी के अभाव में प्रोजेक्ट में फिजूल खर्ची ज्यादा कर दी गई। इसकी तुलना में मगरमच्छ को संरक्षण का लाभ नहीं मिला। यही प्रोजेक्ट बंद होने का मुख्य कारण बना। परियट से मगरमच्छ बाहर न आए इसके लिए फैसिंग की गई थी लेकिन वह भी चोरी चली गई है।  नदी -नाले के पाट उंचे करने थे बताया गया कि मगरमच्छों के प्राकृतिक आवास विकसित करने नदी एवं नाले के पाटों को उंचा करना था जिससे फ्लड में वे बहें न और नदी छोड़कर भी न जाए लेकिन तमाम कार्य अधूरे पड़े है और अब भी बारिश में मगरमच्छ पर मुसीबत आती है। जानकारी के अनुसार अभी परियट में करीब 60 से अधिक क्रोकोडायल है।  ------------ परियट में क्रोकोडायल के संरक्षण के लिए वन रक्षा समिति एवं ग्रामीणों के सहयोग से लगातार कार्य चल रहा है। वन विभाग अपने स्त्रोत से क्रोकोडायल संरक्षण के लिए कार्य कर रहा है।   आरएस पांडे एसडीओ जबलपुर ----------------------------------------------------------  जिस क्षेत्र में प्रोजेक्टर चल रहा था, वह वन्य क्षेद्ध नहीं है  , किन्तु प्रोजेक्ट के लिए नोडल विभाग  वन विभाग  ही था। करीब 8 किलोमीटर एरिया में मगर एवं आम ग्रामीणों के सह अस्तिव को लेकर प्रोजेक्ट शुरू हुआ था लेकिन वन विभाग की उपेक्षा के कारण प्राजेक्ट बंद हो गया है इसे फिर शुरू करना आवश्यक है।  मनीष कुलेश्रेष्ठ वन्य प्राणी विशेषज्ञ  -------

एक गरीब मां की होनहार बेटी मीना मेहरा

 दीपक परोहा 9424514521 जबलपुर। ‘एक गरीब माँ रात भर पत्थर उबालती रही...बच्चे पानी पीकर सो गए ...’ किसी कवि की ये पंक्तियां तहसीलदार मीना मेहरा के जीवन में सटीक उतरती है। मीना मेहरा और उसकी बहनों व भाइयों का बचपन बेहद गरीबी और फांकेहाली की स्थिति में गुजरा था। उनकी मां कई बार बेर की झाड़ी से बेरी तोड़कर बच्च्चों को खिलाकर उन्हें सुला देती थी और कई बार वे कहती थी कि आज बेर का भी जुगाड़ नहीं है।  सिवनी जिले में पदस्थ मीना मेहरा से जब उनके एजूकेशन और स्कूल के दिनों के बारे में पूछा गया तो अपने उन दिनों की याद आने पर आंखें भर आई है। तहसीलदार मीरा मेहरा का जीवन संघर्ष भरा जरूर रहा लेकिन उन्होंने विभाग में अपनी मेहनत लगन से वो नाम अर्जित किया है जो कम ही लोग होता है। अपने जीवन में मीरा मेहरा को जो फांकाहाली का सामना करना पड़ा है उससे वे भूखे रहने का पीड़ा जानती है, उनके घर से कोई भी गरीब व्यक्ति भूखा नहीं जाता है।    पिता खाली हाथ लौटते थे रोज  मीना मेहरा के पिता कमल सिंह नरसिंहपुर जिले से जबलपुर काम की तलाश में आए थे, प्रिंटग प्रेस का काम जानते थे। प्रतिदिन घर से काम के लिए निकलते थे लेकिन कई -कई दिन काम नहीं मिलता था। ऐसे में खाली हाथ की अक्सर घर लौटते थे। उनकी मां श्रीमती सरोज सिंह सिलाई कढ़ाई कर किसी तरह परिवार को गुजरबसर करती रही।  दुकानदार देता था उधार में किताब  मीना मेहरा और उसके परिवार की मॉली हालत जानकर बस स्टेंड में एक स्टेशनरी वाला कापी किताब उधार में दे दिया करता था, मीना मेहरा बताती है कि अब न जाने कहां किताब वाला चला गया है, उसकी उधारी चुकानी है।        डिप्टी कलेक्टर बन सकती थी मीरा मेहरा ने पीएससी की परीक्षा दी तो उन्होंने प्रथम वरियता नायब तहसीलदार के लिए  भरा लेकिन जब परीक्षा परिणाम निकला तो उन्हें इंटरव्यू में बताया गया कि उनका प्रावीण्य सूची में स्थान है यदि आप डिप्टी कलेक्टर के लिए फार्म में प्रथम वरियता भरती तो डिप्टी कलेक्टर के लिए चयन किया जाता।  वर्तमान में अपने कार्य के प्रति वे संतुष्ट हैं और उनका प्रयास रहता है कि गरीबों का उत्थान हो और उनके क्षेत्र का कोई भी व्यक्ति भूखे पेट न सोए।  वर्तमान में मीरा मेहरा धनौरा जिला सिवनी में तहसीलदार है। उनसे बड़ी बहन श्रीमती माया दास महिला बाल विकास अधिकारी, बड़े भाई अमर सिंह एसबीआई में अधिकारी तथा छोटा भाई राजेन्द्र सिह स्पोर्ट आफिसर इंजीनियरिंग कालेज में हैं।