Saturday, 29 April 2017

Tuesday, 11 April 2017

लैंटाना को बनाया आदिवासियों ने जीविका का साधन

 लैंटाना को बनाया आदिवासियों ने जीविका का साधन
 एक खरपतवार जो जंगल ओर खेत दोनों के लिए बनी नासूर
जबलपुर। लैंटाना एक ऐसा खरपतवार है जो खेत-खलिहान के साथ जंगल और मैदान के लिए नासूर बना हुआ है। भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों के लिए से समस्या बनें हुए है। इसको नष्ट करना बेहद कठिन काम है। गर्मी में जंगल में भीषण आग का कारण भी लैंटाना की झाड़ियां मुख्य वजह बनती है लेकिन इस अनुपयोगी वनस्पति को मंडला के आदिवासी अपने रोजगार का जरिया बना लिए है। आदिवासियों अपनी कला और मेहनत की दमखम से इससे शानदार फर्नीचर बना रहे है, इसकी लकड़ी का ईधन के रूप में भी उपयोग कर रहे है।
लैंटाना व्यापक पैमाने में कृषि, पर्यावरण, वन प्रबंधन और ग्रामीण परिवहन मार्ग में बाधक बना हुआ है। लैंटाना के सभी रूपों लाल तथा रंग-गिरंगे फूल आकर्षक होते है लेकिन ये विषाक्त होते है। इनको जानवर भी नहीं खाते है। इसी तरह लैंटाना झाड़ी को यदि भूखे मवेशी खा लेते है तो उनपर जहरीला असर होता है। कुल मिलाकर लैंटाना अनुपयोगी  है।
सभी तरह के फर्नीचर निर्माण
मंडला के आदिवासी ग्राम गाढ़ी, रमपुर, केहरपुर सहित अनेक गांव के आदिवासी जंगल से लेंटाना झाड़ी का मुख्य शाखा जो करीब 4-5 सेंटीमीटर तक मोटा होता है, उसे काट लेते है। इसको छीलने और साफ करने के बाद कुर्सी, टेबिल, स्टूल, सोफा सहित अनेक तरह के फर्नीचर बना रहे है। लेंटाना की लकड़ी के बने फर्नीचर अच्छी कीमत में जा रहे है। इसी तरह घरेलू शो पीस भी तैयार किए जा रहे हैं। लेंटाना की पतली लकड़ियों से हल्के शो पीस आइटम तैयार किए जा रहे है। लेंटाना की शेष झाड़ियां आदि का उपयोग जलाने तथा अन्य घरेलू काम में लिया जा रहा है। जहां एक ओर आदिवासियों ने लैंटाना की लकड़ी का उपयोग सीख लिया है दूसरी तरफ लैंटाना से जंगल को मुक्ति मिलने का रास्ता भी नजर आने लगा है।
वर्जन
लेंटाना के फर्नीचर का इस्तेमाल अभी मंडला जिले की आदिवासियों द्वारा ही किया जा रहा है। आदिवासियों को लैंटाना के उपयोगी इस्तेमाल सिखाया जा रहा है ।
 निसार कुरैशी
एनजीओ 

प्रदेश की पहली हार्टीकल्चर विवि के लिए कवायद




आलू-प्याज  सस्ते और सुलभ होंगे
प्रदेश की पहली हार्टीकल्चर विवि के लिए कवायद
जबलपुर।  प्रदेश खाद्यान उत्पादन में भले ही वृद्धि की है, दो बार प्रदेश को कृषिकर्मणा पुरूस्कार मिल चुका है लेकिन अब भी प्रदेश में सब्जी उत्पादन में पिछड़ा है। सीजन में भी आलू -प्याज और हरी सब्जियों के तेवर उंचे बने रहते है। ऐसे में आम लोगों को सस्ती सब्जी उपलब्ध होए इसके लिए प्रदेश में पहली हार्टीकल्चर विश्व विद्यालय खोलने कवायद चल रही है इसका प्रस्ताव कृषि विश्वविद्यालय ने तैयार कर रहा है।
इस विश्व विद्यालय का मुख्य उद्देश्य आम जनता को सस्ती सब्जी के रास्ता प्रशस्त तो करना है ही,  इसके लिए सब्जी उत्पादन के लिए गहन अनुसंधान के साथ ही प्रदेश के किसानों को सब्जी उत्पादन के लिए प्रशिक्षण देना मुख्य उद्देश्य होगा, जिससे सब्जी के मामले में प्रदेश आत्मनिर्भर बने। हॉर्टीकल्चर विश्व विद्यालय का एक  उद्देश्य यह भी रहेगा कि बेमौसम सब्जी उत्पादन के साथ ही जो उपज यहां नहीं होती है उसको भी प्राप्त करना है।
मालूम हो प्रदेश में आलू उत्तर प्रदेश तो प्याज महाराष्ट्र से आती है। आलू -प्याज के भाव इस कदर चढ़े है कि प्रदेश की गरीब ही नहीं मध्यम वर्गी  भी प्याज का स्वाद चखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है।  आम आदमी को मिलने वाली सबसे सस्ती सब्जी उनकी पहुंच के बाहर हो चली है। भटे के भटा भाव भी आसमान पर है।  ऐसे में हरी सब्जी कैसे गरीब वर्ग तक मुहैया हो सकती है? इस दिशा में गहन मंथन कृषि वैज्ञानिक  रहे है। हाल्टीकल्चर विश्व विद्यालय प्रदेश में खुलता है तो कृषि उत्पादन में नए आयाम मिलेगे। यूं तो प्रदेश सकरार का हाल्टीकल्चर विभाग मौजद है लेकिन यह अत्याधुनिक तरीके से किसानों को बागवानी नहीं सिखा पा रहा है।
जबलपुर में प्रस्तावित
प्रदेश में हार्टीकल्चर विश्व विद्यालय खोलने के लिए जबलपुर अनुकूल समझा जा रहा है और इसे ही विवि के लिए प्रस्तावित किया गया हे इसकी मुख्य वजह यह है कि कृषि विश्व विद्यालय में पहले से ही हाल्टीकल्चर विभाग है। जबलपुर के आसपास प्रदेश सरकार की भी कई हाल्टीकल्चर नर्सरी मौजूद है।
ये है मुख्य जरूरत
विभाग को लगभ 300 हेक्टेयर उपजाऊ जमीन की जरूरत है जो जबलपुर के आसपास विकसित की जा रही है। प्रस्ताव के मुताबिक करीब 600 करोड़ का वजट विश्वि विद्यालय के लिए चाहिए।

प्रदेश में हाल्टीकल्चर विश्व विद्यालय खोलने के लिए सरकार ने प्रस्ताव तैयार करने कहा है जो तैयार किया जा रहा है। प्रस्ताव तैयार करने के बाद राज्य शासन को भेजा जाएग।
 राजेश पॉलीवाल
रजिस्टार जेएनकेवीवी
प्रदेश में हाल्टीकल्चर विश्व विद्यालय खोलने संबंधी प्रस्ताव तैयार करने पर  काफी काम किया जा चुका है। विवि खुलने से पूरे प्रदेश को इसका लाभ होगा।
डॉ.एसएस तोमर
रिटा. डायरेक्टर रिसर्च,जेएनकेवीवी 

डब्ल्यूएचओ के ड्रग डायरेक्शन की हो रही अनदेखी


   डब्ल्यूएचओ के ड्रग डायरेक्शन की हो रही अनदेखी

   डेंगू के इलाज के आड़ में मची निजी अस्पतालों की लूट
 
 दर्जनों बार नोटिस दिए गए अस्पतालों को , फिर भी नहीं रूक रही मनमानी

जबलपुर। भरतीपुर की एक बालिका को गंभीर हालत में स्टॉर हास्पिटल में पिछले दिनों भर्ती कराया गया। इस निजी अस्पताल द्वारा डेंगू टेस्ट किट के माध्यम से डेंगू का टेस्ट कराया गया और परिजनों को अस्पताल प्रबंधन ने डेंगू होने की पुष्टि की। इसके बाद अस्पताल प्रबंधन ने बेशकीमती एंटी बॉयटिक्स, जीवन रक्षक दवाइयां और न जाने कितनी दवाइयां मंगाई और लगाई किन्तु दो दिन बाद बालिका की मौत हो गई। परिजनों को 60 हजार का बिल थमा दिया गया। इस मामले को लेकर स्वास्थ्य विभाग ने संबंधित अस्पताल से जवाब तलब भी किया।
 प्रदेश में चौतरफा डेंगू का खौफ बना हुआ है शहरी क्षेत्र के साथ ही ग्रामीण एवं कस्बाई क्षेत्रों में डेंगू के मामले आ रहे है। जहां स्वास्थ्य विभाग द्वारा समस्त जिला अस्पतालों एवं अन्य शासकीय एवं मेडिकल कालेज में डेंगू के उपचार की समूचित व्यवस्था की गई है इधर डेंगू के खौफ का फायदा उठाकर निजी अस्पताल पीड़ित मरीज को डेंगू डर दिखाकर अनापशनाप दवाइयां देकर बेहिसाब बिल बना रहे है।
सूत्रों की माने तो निजी अस्पतालों को डेंगू में क्या इलाज देना है, क्या दवाइयां देने है, तत्संबंध में वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन की गाइड लाइन से अवगत कराया जा चुका है। स्वास्थ्य विभाग ने दर्जनों पत्र निजी अस्पतालों को भेज चुके है लेकिन जब भी उनसे पूछा जाए तो उनका कहना होता है इस संबंध में कोई निर्देश नहीं है।
मनमानी रिपोर्ट बना रहे है
सूत्रों का कहना है कि स्वास्थ्य विभाग की पकड़ निजी अस्पतालों में नहीं रह गई है। अनेक जिले के स्वास्थ्य अधिकारियों ने निर्देश जारी कर रखे है कि निजी स्वास्थ केन्द्र, निजी अस्पताल व नर्सिगहोम्स अपने मरीजों का डेंगू टेस्ट करते हैं और पॉजेटिव रिपोर्ट आती है तो उसकी तत्काल सूचना सरकारी विभाग को दिया जाए तथा उपयोग की गई टेस्ट किट भी जिला स्वास्थ्य केन्द्र में जमा  कराई जाए। किन्तु निजी अस्पताल के चिकित्सक जिन्हें डेंगू नहीं भी हैं, उनकी पॉजेटिव रिपोर्ट मरीज के परिजनो को देने से बाज नहीं आते है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा टेस्ट किट की मांग करने पर डिस्पोजल किए जाने की बात कही जाती है। जबलपुर के जिला स्वास्थ्य अधिकारी एमएम अग्रवाल ने बताया कि करीब एक दर्जन बार किट के लिए निजी अस्पतालों को नोटिस भेज गए है लेकिन वे पॉजेटिव मरीज की किट जमा नहीं करते है।

सिर्फ  पैरासिटामॉल दे
जिला मलेरिया अधिकारी अजय कुरील ने बताया कि डब्ल्यूएचओ के निर्देशानुसार डेंगू के मरीज को किसी तरह की एन्टी बॉयटिक्स दवाइयां अथवा दर्द निवारक दवाइयां यहां तक डिस्प्रीन भी नहीं दी जाए। डब्ल्यूएचओ की गाइड लाइन के मुताबिक पैरासिटामॉल ही मरीज को दी जाए तथा उसको ज्यादा से ज्यादा पानी दिया जाए। इसके लिए बोतल चढ़ाई जा सकती है अन्य दवाइयां मरीज के लिए खतरनाक हो सकती है।
बालिका को डेंगू नहंी निकला
जबलपुर में डेंगू से हुई एक मौत के मामले में जब स्वास्थ्य विभाग ने निजी अस्पताल के खिलाफ जांच पड़ताल शुरू की तो निजी अस्पताल ने यूं टर्न लेना पड़ा। कुल मिलाकर मामले में जो तथ्य सामने आए उसके मुताबिक कुछ माह पहले बालिका को मलेरिया हुआ था। इसके बाद उसकी पीलिया हो गया। बाद में फिर उसका स्वास्थ बिगड़ा तो निजी अस्पताल ने डेंगू बताकर गहन चिकित्सा शुरू की लेकिन जब स्वास्थ्य अमले ने बालिका को दी जाने वाली महंगी दवाइयां एवं  डेंगू के इलाज की गाइड लाइन को लेकर जवाब मांगा तो निजी अस्पताल ने बालिका को डेंगू होने से साफ इंकार कर दिया।
वर्जन
डेंगू के मरीज को एंटीबायटिक्स दवाइयां देने की जरूरत नहीं पड़ती है। पैरासिटॉमाल दिया जाता है। शरीर में पानी की मात्रा नियंत्रित रखा जाता है।
डॉ.दीपक बहरानी
अधीक्षक जबलपुर हास्पिटल
डेंगू होने की आशंका पर लोग शासकीय  अस्पताल में ही टेस्ट कराए  तथा यहीं उपचार कराए। निशुन्क उपचार की व्यवस्था की गई है।
अजय कुरील
मलेरिया अधिकारी
डेंगू की बीमारी होने पर अस्पताल में मरीज को पैरासिटॉमाल ही दिया जाता है। इसके अतिरिक्त जरूरत पढ़ने पर ब्लड प्लाजमा चढ़ाया जाता है।
 डॉ.के के सिंहा
सिविल सर्जन विक्टोरिया





घर के आंगन से बह रही थी खून की नाली: डायरी

घर के आंगन से बह रही थी खून की नाली: डायरी
  तकरीबन 20 साल लगातार क्राइम रिपोर्टिग की , अनेक हत्याकांड पर मौके ए वारदात पर पहुंचा लेकिन 12 अक्टूबर 2009 को जो हौलनाक  खूनी दृश्य देखा तो सकते में आ गया। सुबह- सुबह मोबाइल फोन पर किसी ने मुझे सूचना दी कि सैनिक सोसायटी में एक साथ 7 हत्याएं हो गई है। आसपास लोगों की भीड़ के बजाए पुलिस वालों की भीड़ थी। उनके बीच से होता हुआ जब उस घर के आंगन के पास पहुंचा तो देखा कि आंगन खून से रंगा हुआ है , घर के भीतर से बहती हुई खून की धार आंगन से होते हुए सड़क पर बह रही थी। यूं तो किसी को उस दौरान पुलिस वाले भीतर नहीं जाने दे रहे थे किन्तु मुझे जाने की इजात दे दी। अंदर कमरे में तीन लाश पड़ी हुई थी जो खून से सनी थी। इतना वीभत्स दृश्य था, अगले कमरे में झांका तो वहां भी दीवार ओर फर्स खून से रंगे थे, यूं लग रहा थी पूरे घर में खून की होली खेली गई। तत्कालीन एएसपी सत्येन्द्र शुक्ला से घटना स्थल पर बातचीत हुई तो उन्होंने बताया कि  परिवार के मखिया ने ही अपने बूढे माता पिता, अपनी पत्नी तथा अपने मासूम बच्चों की हत्या कर दी है। वह इस लिए परेशान था कि पड़ोसी से नाली का विवाद चल रहा था। इसी  नाली के चलते उसने खूनी खेल? बेहद मामूली कारण से सात हत्याएं?
इस हत्याकांड से जुड़ा एक और रहस्यम तथ्य है जिसको आज मै उजागर करना चाहता हूं जिस पड़ोसी से आरोपी का नाली के लिए विवाद चल रहा था, वह पड़ोसी मेरे प्रेस के एक आपरेटर का सुसर था। घटना के एक दिन पहले ही गढ़ा थाने में दोनों पक्षों ने एक दूसरे की शिकायत की थी और एक पड़ोसी पक्ष को पुलिस ने थाने में बैठाकर रखे हुए था, मुझसे इस मामले में हस्तक्षेप कर एक पक्ष को छुडवाने का प्रयास करने कहा गया लेकिन न जाने क्यू मेरी आत्मा इस मामले में हस्तक्षेप न करने कह रही थी, मैने कोई रूचि नहीं दिखाई? और दूसरे दिन खून की होली देखने मिली। शहर में अब भी जबकभी पड़ोसियों के बीच अक्सर होने वाले नाली के विवाद का मामला आता है तो सैनिक सोयायटी की ये घटना जेहन में ताजा हो जाती है। करीब दो साल बाद फिर मामला सामने आया हत्या के आरोपी  सुनील सेन को उम्र कैद की सजा सुनाई गई तथा सात हजार रूपयें का जुर्माना भी की गया।  जबलपुर के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश बी.पी.शुक्ला की अदालत में प्रकरण की सुनवाई हुई थी लेकिन दुख इस  बात का है कि सुनील सेन जिसका पूरा परिवार खत्म हो गया, वहीं इस मामले में आरोपी है । अब भी सोच में पड़ जाता हूं कि इस फैसले का क्या लाभ। जरूरत थी तो उसी रात गढ़ा पुलिस  मामूली विवाद में सुनील को न्याय देकर संतुष्ट कर देती तो शायद ये नरसंहार न होता। इस वारदात के बाद पड़ोसी पड़ोसी राजकुमार गौतम भी अपना मकान बेंच कर कहीं और रहने चले गए।
 12 अक्टूबर 2009 को सुबह सुनील का व्यवस्था के प्रति आक्रोश ने अपनी  मां  मुन्नी बाई उम्र 60 वर्ष, पत्नी ज्योति उम्र 33 वर्ष, बहन संगीता उम्र 22 वर्ष, पुत्र हिमांशु उर्फ हेप्पी 6 वर्ष, रूद्रांश उर्फ लक्की उम्र 3 वर्ष, भांजा राजुल उम्र 2 वर्ष को कुल्हाड़ी से  मौत के घात उतार दिया।  इस लोमहर्षक घटना के बाद आज दिनांक तक नालियों के विवाद पर सिर फूट रहे है।

Monday, 10 April 2017

प्रदेश में मांस उत्पादन दो गुना बढ़ा लेकिन गुणवत्ता का नहीं


 प्रदेश में मांस उत्पादन दो गुना
 बढ़ा लेकिन गुणवत्ता का नहीं

 * प्रदेश में घटिया मांस बिक रहा




जबलपुर। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के आने के बाद वहां बिकने वाले मांस की स्वच्छता एवं गुणवत्ता के उद्देश्य से 3 सौ से अधिक सलाटर हाउस बंद करा दिए गए है, मध्य प्रदेश में अवैध कत्लगाह जगह जगह स्थापित है तथा पशुवध के लिए एनजीटी के निर्देश का न केवल उल्लंघन किया जा रहा है,वरन ं मांस की गुणवत्ता भी बेहद घटिया है। इससे बीमारी फैलने का खतरा बना हुआ है। दरअसल मांस का कारोबार करने वाले मानव स्वास्थ्य के साथ लम्बे अर्से से  खिलवाड़ कर रहे हैं और उसकी अनदेखी हो रही है।
आश्चर्य जनक पहलू यह है पशु विभाग का दायित्व है कि वह कत्ल किए जाने वाले पशुओ का स्वास्थ्य परीक्षण करेगा। उसमें कोई घातक रोग तो नहीं है लेकिन आलम यह है कि संक्रमित और बीमार मवेशियों को काट दिया जाता है और इसका गोस्त खुलेआम बिना स्वच्छता के बेचा जा रहा है। पशु विभाग लायसेंसी स्लाटर हाउस में आने वाले पशुओं का परीक्षण मात्र करते हैं।
 घंटो पुराना मांस
 अमूमन कत्लगाह में मिलने वाला गोस्त घंटो पुराना हो जाता है। भीषण गर्मी के चलते इन दिनों मांस 18 से 48 घंटे के बीच  डिस्पोजल होने लगता है। मप्र में मांस का उत्पादन पिछले कुछ सालों में दो गुना बढ़ा है, जो प्रतिवर्ष 70 मीट्रिक टन के करीब है।  सबसे बड़ी बात यह है कि जबलपुर में पोल्टी का बड़ा कारोबार होता है और बीमार मुर्गियां जो अंडे देना बंद कर देती है, वहीं मांस विक्रेताओं को बेची जाती है। जबदस्त इंफैक्टेड मुर्गी की  बिक्री हो रही है, यहां तक कैंसर पीड़ित मुर्गी तक कटने पहुंच रही है।
जानकारों की माने तो जबलपुर में गुणवत्ता हीन मांस बिक रहा है जबकि भोपाल तथा इंदौर में भी मीट की गुणवत्ता मैनटेन की गई है।  मटन शॉप चलाने वालों द्वारा फुटपाथी कत्लखाने चलाए जा रहे है। उनके पास पशुओं और मुर्गियों को काटने का कोई लायसेंस नहीं है। जानकारी के अनुसर जबलपुर में एक मुर्गी का मांस बचने वाला दुकानदार प्रतिदिन 3-4 क्विंटल मांस तैयार करता है। ऐसी आधा दर्जन दुकानें जबलपुर में है। यहां अवशिष्ट नष्ट करने का उनके पास कोई साधन नहीं है। खून नालियों में बहाया जाता है।
 दिमाग में कीड़े का संक्रमण
 जानकार की माने तो संक्रमित मांस खाने से दीमाग में कीड़े पनपने की बीमारी तेजी से फैली है। इस बीमारी का मूलत: स्त्रोत प्राणी ही होता है। मवेशियों से ही सब्जियों में पहुंचता है। वहीं दूषित घास  खाने से जानवर फिर कृमि से संक्रमित होता है। यदि संक्रमित जानवर का मांस अच्छी तरह से नहीं पक पाता है तो बीमारी का खतरा ज्यादा होता है। गौवंश ,भैस तथा अन्य मवेशी भी इसी तरह के संक्रमण के शिकार होते है। इनका मांस खाने से क्रमि से लीवर तथा फैफड़े व ब्रेन सिस्ट तक की बीमारी होती है।
क्या है नियम
नियम यह है कि किसी भी पशु को मारने के पहले उसका मेडिकल चैकअप कराया जाना  जरूरी है। पशुओं को मारने के लिए भी आवश्यक शर्तों का पालन नहीं होता। मवेशी के संबंध में पूरा लेखा-जोखा, जिसमें उसकी उम्र, वजन, फिटनेस संबंधी व्यौरा आदि होना चाहिए। मांस का परिवहन करने के लिए डिब्बाबंद एसी वाहन होना जरूरी है।

 70 प्रतिशत बीमारियां पशुओं से
 मनुष्यों में आने वाली 70 प्रतिशत बीमारियां जानवरों से आती है। बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू तथा एन्थ्रैक्स जैसी जानलेवा एवं संक्रमण वाली बीमारी ऐसी है कि इससे एक पशु भी यदि संक्रमण का शिकार होता है तो उसकी सूचना देनी चाहिए । मांस की स्वच्छता बेहद जरूरी है तथा उसे अच्छी तरह पकाने के बाद ही खाना चाहिए।
डॉ. प्रयाग दत्त जुयाल
 कुलपति पशु चिकित्सा विश्व विद्यालय 

‘हिन्दुस्तान में मुझे कहीं नजर नहीं आई असहिष्णुता ’










‘हिन्दुस्तान में मुझे कहीं नजर
नहीं आई असहिष्णुता ’
* शायर राहत इंदौरी से पीपुल्स की बातचीत

जबलपुर। अपने एक अलग अंदाज की शेरो-शायरी के लिए हिन्दुस्तान ही नहीं दुनिया में विख्यात मशहूर शायर डॉ. राहत इंदौरी का जबलपुर आगमन हुआ। वे यहां जैन समाज द्वारा कमानिया गेट में आयोजित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में शामिल हुए। उन्होंने पीपुल्स-समाचार पत्र से बातचीत करते हुए शायरी एवं कविताओं के संबंध में बेबाक चर्चा की, जिसके अंश ये है-
* उत्तर प्रदेश में योगी सरकार एवं मोदी सरकार के संबंध में क्या कहेंगे?
**  माफी चाहता हूं, राजनीति और सियासत को लेकर मंै कुछ भी नहीं कहना चाहूंगा, किन्तु इतना जानता हूं कि मेरा हिन्दुस्तान बेहद खूबसूरत है और यहां के लोगों में मोहब्बत बसी हुई है। मुझे तो मीडिया और राजनेताओं के बयान के बाद पता चला कि सहिष्णुता और असहिष्णुता भी कुछ चीज होती। इस देश में कभी असहिष्णुता की कोई जगह नहीं रही और न रहेगी। इस बात का उदाहरण यह है कि जैन समाज के कवि सम्मेलन में उर्दु शायर यानी मुझे बुलाया गया है।  जो प्रेम- मोहब्बत थी, वह अब भी कायम है,इसे हम यूं बयां कर सकते हैं-
ॅ‘हम जान के दुश्मन को अपनी जान कहते है
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिन्दुस्तान कहते है’
* फिल्म इंडस्ट्री में आपके शायरी ली जाती है, फिल्मों में गीतों के गिरते स्तर को लेकर आप क्या कहेंगे?
**यह सही है कि कविताएं-शायरी की फिल्मी दुनिया में गिरावट आई है लेकिन अब भी लोग फिल्मी संगीत के रूप में पुराने गीतों को ज्यादा पसंद कर रहे है चाहे वह युवा पीढी हो या पुरानी पीढ़ी। फिल्मी संगीत में कविता -शायरी जख्मी हो सकती है लेकिन मर नहीं सकती है।
* आप के कोई गीत या गजल फिल्म में आ रहे है क्या?
** जल्द ही फिल्म बेगम जान रिलीज होने वाली है जिसमें लिखा मेरा गीत लोगों को सुनने के लिए मिलेगा। फिल्म एवं गीत रिलीज होने के पहले मैं इस सार्वजनिक नहीं कर सकता हूं। गुलजार के साथ एक कश्मीरी पंडित पर अधारित एक फिल्म बन रही है जिसमें कश्मीरी पंडित शायर है, इस फिल्म में काफी शायरी तथा गजल आदि शामिल की जाएगी। इस प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है।
* मुशायरों का अब दौर खत्म हो रहा है, मुशायरा पसंद करने वाले भी सीमित लोग है, इससे उर्दु साहित्य पर क्या असर पड़ेगा?
** मुशायरों की शुरूआत दिल्ली दरबार से हुई थी। दिल्ली से यह हिन्दुस्तान के दूसरे शहरों एवं रिसायत में पहुंचा एवं उसकी लोकप्रियता बढ़ी। यहां तक यह फैल कर दुनिया के विभिन्न मुल्कों तक पहुंचा है, समय बदलता है,  मुशायरा की जगह कवि सम्मेलन, अन्य गीत गजल मंच व अन्य आयोजनों ने ले ली लेकिन इसका असर उर्दु पर नहीं पड़ा। रही उर्दु की बात तो आजादी के पहले जो उर्दु प्रचलन में थी, उसमें तुर्की, अरबी, फारसी सहित पश्चिम एशिया की विभिन्न भाषाएं शमिल थी, ये उर्दु पाकिस्तान चली गई है। अब जो उर्दु है, उसे किसी भाषा से नहीं बांधा जा सकती है। यह आम आदमी की भाषा है, इसमें गुजराती, मराठी और पंजाबी सहित कई बोलियों के शब्द शामिल है, किसी मजहब और प्रांत की भाषा नहीं, उर्दु हिन्दुस्तान की जुवÞान बन गई है।
* सोशल मीडिया में शेरो-शायरियों का प्रचलन बढ़ा है, इससे क्या शेर-गजल के लिए नया मंच सामने आया है?
** सोशल मीडिया में काफी शेरो-शायरी चल रही है लेकिन उसकी हालत वैसी है जैसे ट्रकों के पीछे शेरो-शायरी लिखी जाती है। इसमें साहित्य का फायदा नहीं नुकसान ज्यादा हो रहा है। अब भी लोग अच्छा पढ़ना और लिखना चाहते है, युवा पीढ़ी इसमें रूचि रखती है और एक नई पीढ़ी गीत-गजल को पसंद करने वाली तैयार हो रही है।