Monday, 10 April 2017

‘हिन्दुस्तान में मुझे कहीं नजर नहीं आई असहिष्णुता ’










‘हिन्दुस्तान में मुझे कहीं नजर
नहीं आई असहिष्णुता ’
* शायर राहत इंदौरी से पीपुल्स की बातचीत

जबलपुर। अपने एक अलग अंदाज की शेरो-शायरी के लिए हिन्दुस्तान ही नहीं दुनिया में विख्यात मशहूर शायर डॉ. राहत इंदौरी का जबलपुर आगमन हुआ। वे यहां जैन समाज द्वारा कमानिया गेट में आयोजित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में शामिल हुए। उन्होंने पीपुल्स-समाचार पत्र से बातचीत करते हुए शायरी एवं कविताओं के संबंध में बेबाक चर्चा की, जिसके अंश ये है-
* उत्तर प्रदेश में योगी सरकार एवं मोदी सरकार के संबंध में क्या कहेंगे?
**  माफी चाहता हूं, राजनीति और सियासत को लेकर मंै कुछ भी नहीं कहना चाहूंगा, किन्तु इतना जानता हूं कि मेरा हिन्दुस्तान बेहद खूबसूरत है और यहां के लोगों में मोहब्बत बसी हुई है। मुझे तो मीडिया और राजनेताओं के बयान के बाद पता चला कि सहिष्णुता और असहिष्णुता भी कुछ चीज होती। इस देश में कभी असहिष्णुता की कोई जगह नहीं रही और न रहेगी। इस बात का उदाहरण यह है कि जैन समाज के कवि सम्मेलन में उर्दु शायर यानी मुझे बुलाया गया है।  जो प्रेम- मोहब्बत थी, वह अब भी कायम है,इसे हम यूं बयां कर सकते हैं-
ॅ‘हम जान के दुश्मन को अपनी जान कहते है
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिन्दुस्तान कहते है’
* फिल्म इंडस्ट्री में आपके शायरी ली जाती है, फिल्मों में गीतों के गिरते स्तर को लेकर आप क्या कहेंगे?
**यह सही है कि कविताएं-शायरी की फिल्मी दुनिया में गिरावट आई है लेकिन अब भी लोग फिल्मी संगीत के रूप में पुराने गीतों को ज्यादा पसंद कर रहे है चाहे वह युवा पीढी हो या पुरानी पीढ़ी। फिल्मी संगीत में कविता -शायरी जख्मी हो सकती है लेकिन मर नहीं सकती है।
* आप के कोई गीत या गजल फिल्म में आ रहे है क्या?
** जल्द ही फिल्म बेगम जान रिलीज होने वाली है जिसमें लिखा मेरा गीत लोगों को सुनने के लिए मिलेगा। फिल्म एवं गीत रिलीज होने के पहले मैं इस सार्वजनिक नहीं कर सकता हूं। गुलजार के साथ एक कश्मीरी पंडित पर अधारित एक फिल्म बन रही है जिसमें कश्मीरी पंडित शायर है, इस फिल्म में काफी शायरी तथा गजल आदि शामिल की जाएगी। इस प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है।
* मुशायरों का अब दौर खत्म हो रहा है, मुशायरा पसंद करने वाले भी सीमित लोग है, इससे उर्दु साहित्य पर क्या असर पड़ेगा?
** मुशायरों की शुरूआत दिल्ली दरबार से हुई थी। दिल्ली से यह हिन्दुस्तान के दूसरे शहरों एवं रिसायत में पहुंचा एवं उसकी लोकप्रियता बढ़ी। यहां तक यह फैल कर दुनिया के विभिन्न मुल्कों तक पहुंचा है, समय बदलता है,  मुशायरा की जगह कवि सम्मेलन, अन्य गीत गजल मंच व अन्य आयोजनों ने ले ली लेकिन इसका असर उर्दु पर नहीं पड़ा। रही उर्दु की बात तो आजादी के पहले जो उर्दु प्रचलन में थी, उसमें तुर्की, अरबी, फारसी सहित पश्चिम एशिया की विभिन्न भाषाएं शमिल थी, ये उर्दु पाकिस्तान चली गई है। अब जो उर्दु है, उसे किसी भाषा से नहीं बांधा जा सकती है। यह आम आदमी की भाषा है, इसमें गुजराती, मराठी और पंजाबी सहित कई बोलियों के शब्द शामिल है, किसी मजहब और प्रांत की भाषा नहीं, उर्दु हिन्दुस्तान की जुवÞान बन गई है।
* सोशल मीडिया में शेरो-शायरियों का प्रचलन बढ़ा है, इससे क्या शेर-गजल के लिए नया मंच सामने आया है?
** सोशल मीडिया में काफी शेरो-शायरी चल रही है लेकिन उसकी हालत वैसी है जैसे ट्रकों के पीछे शेरो-शायरी लिखी जाती है। इसमें साहित्य का फायदा नहीं नुकसान ज्यादा हो रहा है। अब भी लोग अच्छा पढ़ना और लिखना चाहते है, युवा पीढ़ी इसमें रूचि रखती है और एक नई पीढ़ी गीत-गजल को पसंद करने वाली तैयार हो रही है। 

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