लैंटाना को बनाया आदिवासियों ने जीविका का साधन
एक खरपतवार जो जंगल ओर खेत दोनों के लिए बनी नासूर
जबलपुर। लैंटाना एक ऐसा खरपतवार है जो खेत-खलिहान के साथ जंगल और मैदान के लिए नासूर बना हुआ है। भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों के लिए से समस्या बनें हुए है। इसको नष्ट करना बेहद कठिन काम है। गर्मी में जंगल में भीषण आग का कारण भी लैंटाना की झाड़ियां मुख्य वजह बनती है लेकिन इस अनुपयोगी वनस्पति को मंडला के आदिवासी अपने रोजगार का जरिया बना लिए है। आदिवासियों अपनी कला और मेहनत की दमखम से इससे शानदार फर्नीचर बना रहे है, इसकी लकड़ी का ईधन के रूप में भी उपयोग कर रहे है।
लैंटाना व्यापक पैमाने में कृषि, पर्यावरण, वन प्रबंधन और ग्रामीण परिवहन मार्ग में बाधक बना हुआ है। लैंटाना के सभी रूपों लाल तथा रंग-गिरंगे फूल आकर्षक होते है लेकिन ये विषाक्त होते है। इनको जानवर भी नहीं खाते है। इसी तरह लैंटाना झाड़ी को यदि भूखे मवेशी खा लेते है तो उनपर जहरीला असर होता है। कुल मिलाकर लैंटाना अनुपयोगी है।
सभी तरह के फर्नीचर निर्माण
मंडला के आदिवासी ग्राम गाढ़ी, रमपुर, केहरपुर सहित अनेक गांव के आदिवासी जंगल से लेंटाना झाड़ी का मुख्य शाखा जो करीब 4-5 सेंटीमीटर तक मोटा होता है, उसे काट लेते है। इसको छीलने और साफ करने के बाद कुर्सी, टेबिल, स्टूल, सोफा सहित अनेक तरह के फर्नीचर बना रहे है। लेंटाना की लकड़ी के बने फर्नीचर अच्छी कीमत में जा रहे है। इसी तरह घरेलू शो पीस भी तैयार किए जा रहे हैं। लेंटाना की पतली लकड़ियों से हल्के शो पीस आइटम तैयार किए जा रहे है। लेंटाना की शेष झाड़ियां आदि का उपयोग जलाने तथा अन्य घरेलू काम में लिया जा रहा है। जहां एक ओर आदिवासियों ने लैंटाना की लकड़ी का उपयोग सीख लिया है दूसरी तरफ लैंटाना से जंगल को मुक्ति मिलने का रास्ता भी नजर आने लगा है।
वर्जन
लेंटाना के फर्नीचर का इस्तेमाल अभी मंडला जिले की आदिवासियों द्वारा ही किया जा रहा है। आदिवासियों को लैंटाना के उपयोगी इस्तेमाल सिखाया जा रहा है ।
निसार कुरैशी
एनजीओ
एक खरपतवार जो जंगल ओर खेत दोनों के लिए बनी नासूर
जबलपुर। लैंटाना एक ऐसा खरपतवार है जो खेत-खलिहान के साथ जंगल और मैदान के लिए नासूर बना हुआ है। भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों के लिए से समस्या बनें हुए है। इसको नष्ट करना बेहद कठिन काम है। गर्मी में जंगल में भीषण आग का कारण भी लैंटाना की झाड़ियां मुख्य वजह बनती है लेकिन इस अनुपयोगी वनस्पति को मंडला के आदिवासी अपने रोजगार का जरिया बना लिए है। आदिवासियों अपनी कला और मेहनत की दमखम से इससे शानदार फर्नीचर बना रहे है, इसकी लकड़ी का ईधन के रूप में भी उपयोग कर रहे है।
लैंटाना व्यापक पैमाने में कृषि, पर्यावरण, वन प्रबंधन और ग्रामीण परिवहन मार्ग में बाधक बना हुआ है। लैंटाना के सभी रूपों लाल तथा रंग-गिरंगे फूल आकर्षक होते है लेकिन ये विषाक्त होते है। इनको जानवर भी नहीं खाते है। इसी तरह लैंटाना झाड़ी को यदि भूखे मवेशी खा लेते है तो उनपर जहरीला असर होता है। कुल मिलाकर लैंटाना अनुपयोगी है।
सभी तरह के फर्नीचर निर्माण
मंडला के आदिवासी ग्राम गाढ़ी, रमपुर, केहरपुर सहित अनेक गांव के आदिवासी जंगल से लेंटाना झाड़ी का मुख्य शाखा जो करीब 4-5 सेंटीमीटर तक मोटा होता है, उसे काट लेते है। इसको छीलने और साफ करने के बाद कुर्सी, टेबिल, स्टूल, सोफा सहित अनेक तरह के फर्नीचर बना रहे है। लेंटाना की लकड़ी के बने फर्नीचर अच्छी कीमत में जा रहे है। इसी तरह घरेलू शो पीस भी तैयार किए जा रहे हैं। लेंटाना की पतली लकड़ियों से हल्के शो पीस आइटम तैयार किए जा रहे है। लेंटाना की शेष झाड़ियां आदि का उपयोग जलाने तथा अन्य घरेलू काम में लिया जा रहा है। जहां एक ओर आदिवासियों ने लैंटाना की लकड़ी का उपयोग सीख लिया है दूसरी तरफ लैंटाना से जंगल को मुक्ति मिलने का रास्ता भी नजर आने लगा है।
वर्जन
लेंटाना के फर्नीचर का इस्तेमाल अभी मंडला जिले की आदिवासियों द्वारा ही किया जा रहा है। आदिवासियों को लैंटाना के उपयोगी इस्तेमाल सिखाया जा रहा है ।
निसार कुरैशी
एनजीओ
No comments:
Post a Comment