Saturday, 5 December 2015

डिप्थीरिया पीड़ित बच्चा बना चुनौती


 इलाज में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे
फिलहाल बच्चे की हालत में है सुधार
...इंट्रो...
विक्टोरिया अस्पताल के डॉक्टरों के लिए डिप्थीरिया पीड़ित बच्चा चुनौती बना है। चिकित्सकों ने रात-दिन एक कर बच्चे को लगभग स्वस्थ कर लिया है, लेकिन उसको अभी चिकित्सक अपनी निगरानी में रखेंगे। छह सप्ताह तक उसके ऊपर खतरे के बादल मंडराते रहेंगे। कारण डिप्थीरिया के संक्रमण का प्रभाव हृदय पर पड़ता है और हृदय जनित समस्याओं को हर पल खतरा बना रहा है। फिलहाल राजा नाम बीमार बालक की हालत खतरे से बाहर है।
जबलपुर। बच्चों को गले में होने वाला बैक्टीरिया जनित संक्रमण डिप्थीरिया यूं तो लगभग खत्म हो गया है, इसकी वजह ये है कि शिशु के जन्म के साथ ही टीका दिया जाता है। शासन की टीकाकरण कार्यक्रम के कारण लगभग देश व प्रदेश में ये बीमारी दुर्लभ हो चुकी है, लेकिन अब भी अपवाद स्वरूप डिप्थीरिया के मामले आ रहे हैं। चिकित्सकों की माने तो कुछ दशक पूर्व डिप्थीरिया पीड़त बच्चे की मृत्यु होना लगभग तय होता था, लेकिन आधुनिक  चिकित्साओं ने इसी बीमारी से भी संघर्ष कर रही है।  ऐसा ही एक मामला जबलपुर स्थित विक्टोरिया अस्पताल में आया। यहां  डिप्थीरिया से पीड़ित बालक को भर्ती किया गया है। लगभग एक सप्ताह से बच्चा संघर्ष कर रहा है और वार्ड में घूमता-फिरता भी है। इस बच्चे के लिए अच्छी से अच्छी एंटीबायटिक्स दवाइयां उपलब्ध कराई जा रही हैं और बालक की चिकित्सा चुनौती बनी है।
 सेठ गोविन्द दास (विक्टोरिया)जिला अस्पताल में खंडवा का एक परिवार अपने डिप्थीरिया पीड़ित बच्चे को इलाज के लिये जबलपुर लेकर आया था। इस परिवार के दो बच्चों को डिप्थीरिया हुआ था। इंदौर के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। 10 वर्षीय बड़े बेटे असीम की मौत इंदौर के मेडिकल कॉलेज में मौत हो गई। उस दौरान परिवार वालों को बताया गया कि बच्चे की मौत एंटीटॉक्सिन इंजेक्शन उपलब्ध नहीं होने के कारण हुई है । डिप्थीरिया का बेहतर इजाज जबलपुर में ही हो सकता है और तुम्हारे दूसरे बच्चे की जान जबलपुर में ही बच सकती है।
इंदौर से शेख सलीम अपने 7 वर्षीय बच्चे को लेकर जबलपुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंचा। सूत्रों की माने तो मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों में भी डिप्थीरिया का मरीज होने के कारण अपने हाथ खड़े कर दिए और उसे मेडिकल कॉलेज से चलता कर दिया, किन्तु यह बात जिला कलेक्टर के संज्ञान में आई तो उन्होंने विक्टोरिया में बच्चे को भर्ती करने आदेश दिए।
खेलने-कूदने लगा है बालक
डॉ. एमएम अग्रवाल ने बताया कि राज को इलाज के लिए तत्काल शिशु वार्ड में भर्ती कराया गया तथा आवश्यक एंटी बायटिक्स दवाइयों को कोर्स तत्काल शुरू किया गया। राज को जब लाया गया था, तब उसके थ्रोट में जबदस्त संक्रमण था, जो कान तक पहुंच गया था। लगातार बालक की निगरानी की गई। दवाइयों का असर जल्द ही सामने आने लगा। उसके गले में संक्रमण काफी हद तक कम गया गया है। बच्च्चा वार्ड में खेलने कूदने भी लगा है। अपने पिता के साथ अस्पताल के बाहर तक चल जाता है, किन्तु अभी हम बच्चे को खतरे से बाहर नहीं कह सकते हैै। दरअसल, डिप्थीरिया का संकमण काफी तेज होता है और इस बच्चे को तो जबरदस्त संक्रमण था। उसके हार्ट तक संक्रमण चला गया है। हार्ट के संक्रमण कम होने में छह सप्ताह से तीन माह तक का समय लगता है। संक्रमण के चलते नलिकाएं  ब्लाक होती है तथा अचानक हृदयाघात भी आ जाता है। डिप्थीरिया में होने वाली शत प्रतिशत मौत का कारण हृदय का काम करना बंद हो जाता है। बहरहाल, हमारे लिए आशा की बात  है कि बच्चा  सरवाइव कर रहा है। उसकी सतत निगरानी की जा रही है। शिश ुरोग विशेषज्ञ डॉ. मंजूलता की निगरानी में इलाज चल रहा है। पूरे विक्टोरिया अस्पताल के चिकित्सकों के लिए डिप्थीरिया को केस चुनौती बना है।

पर्यटन विकास के लिए किया जाएगा विकसित

बफर जोन में भी होंगे टाइगर के दीदार

जबलपुर। प्रदेश के पांच प्रमुख टाइगर रिजर्व के बफर जोन में पर्यटन के विकास के लिए तैयार प्रस्ताव को केन्द्र शासन से मंजूरी मिल चुकी है तथा मध्य प्रदेश शासन ने बफर जोन के विकास के लिए पर्याप्त राशि भी स्वीकृत कर दी है, जिससे बफर जोन में भी अब सफारी चलेगी तथा पर्यटक टाइगर के दीदार करेंगे, लेकिन यहां रिजर्व टाइगर की तुलना में कम टिकट लगेगी।
जानकारी के अनुसार बफर जोन के जंगलों में पर्यटकों के घूमने तथा जंगली जानवर चीतल सांभर और रिजर्व टाइगर के यहां मौजूद बाघों के दीदार करने के लिए विकास कार्य कराए जाने है। इसके लिए बफर जोन में सफारी चलने के लिए सड़कें तैयार की जा रही है। कई नाले और पुलिया निर्माण का भी काम किया जा रहा है।
शासन ने वाइल्ड लाइफ सर्किट के लिए 95 करोड की राशि स्वीकृत की है।
बांधवगढ़ में पर्यटन शुरू
नेशनल पार्क बांधव गढ़ के बफर जोन में तो पर्यटन के लिए कार्य लगभग शुरू हो गया था। कटनी के खितौली बफर जोन में टाइगरों को हमेश डेरा बना रहता है। यहां बाकायदा टाइगर सफारी के लिए प्रस्ताव भी बनाया गया था, लेकिन इसको मंजूरी नहीं मिली, अलबत्ता इस बफर जोन को पर्यटकों के लिए विकसित किया गया है।
बारिश के सीजन में भी खुलेंगे
नेशनल पार्क बारिश के सीजन में जहां बंद रहते है, वहीं बारिश में पर्यटकों को जंगल का आनंद उठा सके तथा बारिश में यदि अवसर मिले तो टाइगर भी देख सकें, इसके लिए बफर जोन को बारिश में भी खुला रखा जाएगा, लेकिन इसके लिए पुलिया एवं सड़कों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
यह पार्क के होंगे विकसित
वन मंत्री गौरी शंकर शेजवार ने पिछले दिनों घोषणा की है कि मध्य प्रदेश ईको टूरिज्म बोर्ड की योजना के तहत टाइगर रिजर्व में वाइल्ड लाइफ टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए टाइगर रिजर्व पन्ना, टाइगर रिजर्व बांधवगढ़, टाइगर रिजर्व संजय तथा टाइगर रिजर्व पेंच एवं टाइगर रिजर्व सतपुड़ा का शामिल किया गया है।
कैम्पिंग भी होगी
टाइगर रिजर्व में जहां पर्यटकों को सुबह तथा शाम कुछ घंटे ही जंगल में बिताने का अवसर मिलता है, लेकिन बफर जोेन के जंगल में कैम्पिंग तथा ट्रैकिंग के भी प्रबंध किए जा रहे है। कैम्पिंग के लिए मचान, पैगोडा तथा ट्री हाउस निर्माण भी किया जाना है।
पर्यटकों का बढ़ा दबाव
पिछले कई दो वर्षों से यह महसूस किया जा रहा है कि नेशनल पार्क में देशी एवं विदेशी पर्यटकों का काफी दबाव रहता है। यहां पर्यटकों के प्रवेश सीमित संख्या में दिया जाता है। तीन माह पहले से आॅन लाइन बुकिंग भी होती है, वहीं ओपन तत्त्काल बुकिंंग के लिए गेट में मारामारी रहती है। ऐसे में बहुत से पर्यटकों को नेशनल पार्क में प्रवेश न मिलने के कारण काफी निराशा हाथ लगती है। ऐसे पर्यटकों को बफर जोन में प्रवेश के लिए आॅफर खुला रहेगा।

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बफर जोन के विकास के लिए शासन ने बजट जारी किया  है। पर्यटन के विकास के उद्देश्य से बफर जोन में विकास कार्य प्रारंभ कराए गए हैं। बफर जोन के लिए  कुछ नेशनल पार्क में सफारियों की बुकिंग भी  हो रही है।
एके नागर, फील्ड डायरेक्टर, सतपुड़ा रिजर्व

घर के आंगन से बह रही थी खून की नाली


तकरीबन 20 साल लगातार क्राइम रिपोर्टिंग की है मैंने, अनेक हत्याकांड पर मौके-ए-वारदात पर पहुंचा, लेकिन 12 अक्टूबर 2009 को जो हौलनाक खूनी दृश्य देखा तो सकते में आ गया। सुबह-सुबह मोबाइल फोन पर किसी ने मुझे सूचना दी कि सैनिक सोसायटी में एक साथ 7 हत्याएं हो गई हैं। मामला बड़ा होने के कारण तत्काल मौके पर पहुंचा। सैनिक सोसायटी कॉलोनी में घुसते ही पूरी कॉलोनी में जगह-जगह पुलिस बल तैनात दिखा। घटनास्थल के आसपास लोगों की भीड़ के बजाय पुलिस वालों की भीड़ थी। उनके बीच से होता हुआ, जब उस घर के आंगन के पास पहुंचा तो देखा कि आंगन खून से रंगा हुआ है, घर के भीतर से बहती हुई खून की धार आंगन से होते हुए सड़क पर बह रही थी। यूं तो किसी को उस दौरान पुलिस वाले भीतर नहीं जाने दे रहे थे, किन्तु मुझे जाने की इजाजत दे दी। अन्दर कमरे में तीन लाश पड़ी हुई थीं, जो खून से सनी थीं। इतना वीभत्स दृश्य था, अगले कमरे में झांका तो वहां भी दीवार और फर्श खून से रंगे थे, यूं लग रहा थी पूरे घर में खून की होली खेली गई। तत्कालीन एएसपी से घटनास्थल पर बातचीत हुई तो उन्होंने बताया कि परिवार के मखिया ने ही अपने बूढ़ पड़ोसी, अपनी  मां ा, अपनी पत्नी तथा अपने मासूम बच्चों की हत्या कर दी है। वह इसलिए परेशान था कि पड़ोसी से नाली का विवाद चल रहा था। इसके साथ ही मुझे ध्यान आया कि जिस पड़ोसी से आरोपी का नाली के लिए विवाद चल रहा था, वह पड़ोसी मेरे प्रेस के एक आॅपरेटर का ससुर था। घटना के एक दिन पहले ही गढ़ा थाने में दोनों पक्षों ने एक-दूसरे की शिकायत की थी और एक पड़ोसी पक्ष को पुलिस ने थाने में बैठाकर रखे हुए था, मुझसे इस मामले में हस्तक्षेप कर एक पक्ष को छुड़वाने का प्रयास करने कहा गया, लेकिन न जाने क्यूं मेरी आत्मा इस मामले में हस्तक्षेप न करने कह रही थी, मैंने कोई रुचि नहीं दिखाई और दूसरे दिन खून की होली देखने मिली। इस घटना का मेरे मन में ऐसा असर हुआ है कि शहर में अब भी जब कभी पड़ोसियों के बीच अक्सर होने वाले नाली के विवाद का मामला आता है तो सैनिक सोयायटी की ये घटना जेहन में ताजा हो जाती है। 12 अक्टूबर 2009 को सुबह सुनील का व्यवस्था के प्रति आक्रोश ने अपनी  मां मुन्नी बाई उम्र 60 वर्ष, पत्नी ज्योति उम्र 33 वर्ष, बहन संगीता उम्र 22 वर्ष, पुत्र हिमांशु उर्फ हैप्पी 6 वर्ष, रूद्रांश उर्फ लक्की उम्र 3 वर्ष, भांजा राजुल उम्र 2 वर्ष को कुल्हाड़ी से मौत के घाट उतार दिया। इस लोमहर्षक घटना के बाद आज दिनांक तक नालियों के विवाद पर सिर फूट रहे हैं। करीब दो साल बाद फिर मामला एक बार फिर ताजा हुआ, हत्या के आरोपी सुनील सेन को उम्र कैद की सजा सुनाई गई तथा सात हजार रुपये का जुर्माना भी किया गया।  जबलपुर के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश बीपी शुक्ला की अदालत में प्रकरण की सुनवाई हुई थी, लेकिन दुख इस बात का है कि सुनील सेन जिसका पूरा परिवार खत्म हो गया, वही इस मामले में आरोपी है। विचारणीय है कि उसी रात गढ़ा पुलिस मामूली विवाद में सुनील को न्याय देकर संतुष्ट कर देती तो शायद ये नरसंहार न होता। 

प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों के बुरे हाल : इंजेक्शन लगाने से बालक की मौत 19.10.15


चपरासी बना है खलौड़ी स्वास्थ्य केन्द्र का डॉक्टर
बालक की मौत का मामला गांव में ही दब गया
दीपक परोहा
9424514521
जबलपुर। स्वास्थ्य विभाग भले ही अपने स्वास्थ्य केन्द्रों में चिकित्सीय सुविधाओं के लिए लाख दावे करे, लेकिन आज भी प्रदेश में बड़ी संख्या में ऐसे प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र हैं, जहां डॉक्टर जाने को तैयार नहीं हैं। कहीं चपरासी तो कहीं वार्ड ब्वॉय स्वास्थ्य केन्द्र संभाल रहे हैं और गांव के डॉक्टर बन बैठे है। शासकीय स्वास्थ्य केन्द्रों में ये हाल हैं तो ऐसे में कहां से झोलाछापों पर अंकुश लगेगा। मंडला के मोतीनाला थाना क्षेत्र स्थित खलौड़ी प्राथमिक केन्द्र में इंजेक्शन लगाने के बाद बालक की मौत होेने से ये मामला सामने आया है, किन्तु बालक के मौत की घटना दब गई है, जिससे स्वास्थ्य विभाग भी गंभीर नहीं है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार आदिवासी जिला मंडला में सुदूर मोतीनाला थाना क्षेत्र में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र है। यहां एक नर्स और एक चपरासी के भरोसे ही स्वास्थ्य केन्द्र चल रहा है। वर्षों से चपरासी ही डॉक्टर की कुर्सी पर बैठकर ग्रामीणों का इलाज करता आ रहा है। इस बात से स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों के संज्ञान में है, लेकिन जब कम वेतन वाला चपरासी ही डॉक्टर का काम कर रहा है और डॉक्टर गांव जाने तैयार नहीं हैं तो हर्ज क्या है? ये जिम्मेदारों की सोच है।
ऐसे हुई घटना
बताया गया कि रविवार को ग्राम खलौड़ी निवासी संतराम यादव अपने 3 वर्षीय पुत्र देवराज यादव को लेकर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पहुंचा। बालक को दो दिनों से बुखार आ रहा था। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र की नर्स जो लेडी डॉक्टर का काम संभालती है, वह किसी की डिलीवरी कराने गई हुई थी। भृत्य अशोक रांझ मौजूद था।
उसने दो इंजेक्शनों को मिला कर एक इंजेक्शन तैयार किया तथा बुखार पीड़ित बालक को लगा दिया। इसके बाद बच्च्चे को घर ले जाने के लिए कहा गया। बच्चे की हालत घर पहुंचने के बाद ओर बिगड़ गई और एक घंटे बाद उसकी मौत हो गई। गांव में इसको लेकर हंगामा जरूर मचा, लेकिन पिता को समझा दिया गया कि ज्यादा विरोध करोगे तो यह स्वास्थ्य केन्द्र भी बंद हो जाएगा। गांव वालों को जो दवाइयां मिल जाती हैं वह भी बंद हो जाएगी और इस तरह मामला दब गया।
डॉ. केपी मेश्राम, सीएचएमओ, जिला अस्पताल, मंडला से सीधी बातचीत
* प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र खलौड़ी में डॉक्टर नहीं है, क्या आपको मालूम है, वहां चपरासी अशोक रांझ की मरीजों का इलाज करता है?
** स्वास्थ्य केन्द्र में कोई डॉक्टर नहीं है, लेकिन एक नर्स जरूर है। अशोक रांझ अस्पताल का चपरासी नहीं है वह वार्ड ब्वॉय है।
* फिर लोगों को प्राथमिक उपचार
कौन करता है?
** नर्स और वार्ड ब्वॉय की प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र को चला रहे हैं।
* अशोक रांझ के इंजेक्शन लगाने से एक बालक की मौत हो गई?
** मेरे संज्ञान में मामला आया था मैंने पता किया है।
* क्या पता चला आपको?
** वार्ड ब्वॉय ने बुखार उतारने और एंटीबायटिक्स का इंजेक्शन दिया था। बालक की मौत अस्पताल में नहीं, बल्कि दो घंटे बाद हुई। इस इंजेक्शन लगाने से मौत नहीं होती है।
*  क्या मामले की जांच होगी?
**  किसी को कोई शिकायत नहीं है, जांच नहीं होगी।
थाना प्रभारी मोतीनाला कौशल सूर्या से बातचीत
* खलौड़ी स्वास्थ्य केन्द्र में चपरासी के इंजेक्शन लगाने से बालक की मौत हो गई, क्या मामले की पुलिस जांच कर रही है।
** जी नहीं, मामले की कोई सूचना और रिपोर्ट थाने में नहीं पहुंची।
* क्या इस घटना की जानकारी आप को है?
** जब तक थाने में सूचना नहीं आती है,  तब तक हम कुछ कहने की स्थिति में नहीं हैं। हमारी जानकारी में ऐसा कोई मामला नहीं है। 

अनुशासन अब भी बना जिंदा है विभाग में 20.10.15

जेपी मिश्रा
सीएसपी रांझी

अनुशासन प्रिय एवं कर्मठ पुलिस अधिकारियों के रूप में पुलिस विभाग में पहचाने जाने वाले नगर पुलिस अधीक्षक रांझी जेपी मिश्रा का मानना है कि विभाग में अब भी अनुशासन मौजूद है, किन्तु उनका व्यक्तिगत अनुभव यह भी है कि नए आ रहे पुलिस वालों में पुराने पुलिस वालों की तरह वो बात नहीं है। सन् 1981 बैच के सब-इंस्पेक्टर श्री मिश्रा जबलपुर सहित छिंदवाड़ा, सिवनी, बैतूल, शहडोल, सीधी तथा भोपाल में पदस्थ रह चुके  हैं। वर्तमान में सन 2013 से सीएसपी रांझी हैं।
प्रश्न-पुलिस विभाग में बल की कमी मुख्य समस्या हैं, इससे कैसे निपटा जा रहा है।
उत्तर-पिछले कुछ सालो से भर्तियां तेजी से हुई है। स्टाफ की कमी से निपटने के लिए जनभागीदारी एवं समुदायिक पुलिसिंग का सहारा लिया जा रहा है। इसके  साथ ही फोर्स को अपने कार्य में दक्ष एवं निपुण बनाया जा रहा है, जिससे उनकी क्षमता का शत-प्रतिशत उपयोग किया जाए।
प्रश्न-क्या पहले से अधिक दक्ष पुलिस वाले नौकरी में आ रहे हैं?
जवाब-इसका जवाब मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव एवं राय से देना चाहूंगा। पहले पुलिस का प्रशिक्षण बेहद कठिन था तथा कम संसाधनों में काम करते थे, लेकिन अब वो बात नहीं है।
प्रश्न-विभाग में अनुशासनहीनता की खबरे हमेशा सुर्खियों में रहती है, क्या पुलिस में अनुशासन खत्म हो रहा है?
जवाब-पुलिस एक फोर्स है और फोर्स बिना अनुशासन के संचालित नहीं हो सकती है। विभाग मे अब भी अनुशासन मौजूद है।
प्रश्न-थानेदारों के बीच आपसी तालमेल की बेहद कमी महसूस की जाती है?
जवाब-जहां चार बर्तन होते हैं, वहां टकराहट होती है, लेकिन मेरा अपना अनुभव है कि थानेदारों को अपनी ड्यूटी के चलते तालमेल बनाकर चलना पड़ता है। पुलिस बिना टीम भावना के काम नहीं कर सकती है। टीम भावना मौजूद है, जो जाहिर करती है कि थानेदारों में आपस में तालमेल मौजूद है।

* आदिवासी ने सिर पर बोए जवारे 22.10.15

देश में अमन-चैन और खुशहाली के लिए साधन
* आदिवासी ने सिर पर बोए जवारे
जबलपुर। आदिवासी जिला डिंडौरी में एक आदिवासी किसान ने कठोर शक्ति उपासना देश में अमन-चैन और खुशहाली की कामना से की। उसने देवी प्रतिमा के सामने बैठ कर अपने सिर पर जवारे बोए और पूरे नौ दिन- -रात साधना में लीन रहा। न उसने भोजन किया और न ही नींद ली। ग्राम सुहानी के इस किसान की कठोर व्रत पूर्ण हो गया है। धूमधाम और भक्ति के माहौल में बुधवार दुर्गा नवमीं को जवारा विसर्जन किया गया।
प्राप्त जानकारी के अनुसार सुमाली बरकड़े ने मां दुर्गा की प्रतिमा के सामने साधना करने का निर्णय लिया और सार्वजनिक दुर्गा पंडाल में बैठ गया तथा अपने सिर पर जवारे बोए। बैठकी में जवारे बोने के बाद धीरे धीरे जवारे बढ़ते रहे और साधक उसे सिर सीधा रखकर साधे रहा। इस बीच वह एक पल भी नहीं सोया। देवी प्रतिमा के आगे लगातार भक्ते गाई जाती रही। किसान की इस  साधन से गांव में धर्ममय माहौल बन गया था। माँ दुर्गा की आराधना करने वाले इस किसान का कहना है कि उसके इस कठोर तप से देश में सुख- शांति बनी रहेगी, साथ ही सूखा और अकाल के हालात नही बनेंगे । नवरात्र के अवसर पर किसान के इस कठोर व्रत से गाँव के लोग भी हैरत में आ गए थे। नौ दिन पंडाल में लोगों की भीड़ रही। 

इंसानों से रिश्ते बना रहा तेन्दुआ

डुमना बन गया तेन्दुये का ठिकाना 24.10.05

जबलपुर। डुमना, खमरिया तथा ईडीके इलाके को तेन्दुओं ने अपना ठिकाना बना चुके हैं। बारिश खत्म होने के बाद और ठंड के सीजन की शुरुआत प्रारंभ से इन इलाकों में तेन्दुओं की हलचल बढ़ती है और हर साल बस्तियों में घुसते हैं, लेकिन इसके बावजूद तेन्दुआ अब इंसान से रिश्ते कायम कर रहा है। उनकी बस्तियों के करीब रहना सीख रहा है। इंसान तो दूर उनके मवेशियों पर भी हमला करने से बचता है।
वन प्राणी विशेषज्ञों की मानें तो जंगल सिमट गए हैं और इंसानी बस्तियां जंगल तक पहुंची गई हैं। इंसान बस्तियां और जंगल पड़ोसी हो गए। जानवरों के इलाके में इंसानी दखल के बावजूद इंसान जंगल से लौट आते हैं कि यदि कोई जानवर इंसानी बस्ती में घुस आए तो इसके लिए रेस्क्यू टीम लगानी पड़ती है। वहीं इन हालातों के बीच भी तेन्दुओं इंसानों का पड़ोसी बनता जा रहा है। अमूमन देश अधिकांश बड़े महानगरों में तेन्दुए की इंसानी मुहल्लों में घुसपैठ की खबर बनी रहती है। जबलपुर में डुमना, ईडीके, सीता पहाड़, खमरिया इस्टेट, डुमना से लगा ओएफके परिसर तेन्दुओं का ठिकाना बन चुका है। दशकों से यहां तेन्दुए की हलचल रही है, किन्तु अब तक इंसान पर हमले की कोई गंभीर घटना नहीं हुई है। अलबत्ता बीते वर्ष फैक्टरी कर्मियों के टाइप टू में एक महिला पर तेन्दुए ने अचानक हमला बोल दिया था। इसकी वजह सिर्फ इतनी थी तेन्दुये को भ्रम हो गया था कि वह उसका शिकार है। इसी तरह इस वर्ष गोहलपुर क्षेत्र से लगे मंगेली गांव में भटक कर आ गए एक तेन्दुये ने एक किसान पर हमला इसलिए कर दिया कि उसने तेन्दुये पर पहले लाठी से वार कर दिया था।
प्राणी विशेषज्ञों की मानें तो तेन्दुआ तेजी से इंसानों के करीब रहना सीख रहा है। तेन्दुआ को छिपकर शिकार करने का जबरदस्त हुनर आता है ऐसे
में वह इंसान को आसानी से अपना शिकार बना सकता है, लेकिन बाघों की तुलना में तेन्दुये कम ही इंसान पर हमला करते हैं।
प्राणी विशेषज्ञ जबलपुर स्थित डुमना नेचर पार्क में ठंड के सीजन में मादा तेन्दुये की दस्तक हर वर्ष शुरू हो जाती है। वर्षों से मादा तेन्दुआ डुमना के जंगल से होते हुए ओएफके की दीवार फांद कर सुरक्षित परिसर में आ जाती है। इस दौरान संभवत: मादा तेन्दुआ अपने शावकों को जन्म देती है। इसके अतिरिक्त यह भी महसूस किया गया है कि ठंड के सीजन की शुरुआत से ही डुमना, खमरिया तथा परियट डैम के आसपास तेन्दुये की हलचल बढ़ जाती है। वर्षों से इस क्षेत्र में निश्चित सीजन पर तेन्दुए आते रहे हैं, तेन्दुए ने इस क्षेत्र को अपना ठिकाना बना लिया है। गत वर्ष  सिविल लाइन क्षेत्र पचपेढ़ी में साइंस कॉलेज परिसर में तेन्दुआ देखा गया था। तेन्दुये ने सिविल लाइन में एक मवेशी को मारा भी था। इसके अतिरिक्त सीता पहाड़ी क्षेत्र में सांभर का शिकार भी गत वर्ष तेन्दुये ने किया था।
अभी से दस्तक शुरू
डुमना स्थित ट्रिपल आईटीडीएम परिसर में दिन में ही तेन्दुआ के घुस आने से हड़कम्प मच गया था। वहां से तेन्दुआ समीप स्थित जंगल में चला गया। वन अमले ने मौके पर पहुंच कर जांच-पड़ताल की तो तेन्दुये का पग मार्क मिले। इसके बाद उसकी आसपास में हलचल देखी गई। वन विभाग ने डुमना के आसपास अपनी गश्त बढ़ा दी है, लेकिन टीम तेन्दुये को पकड़ कर उसे घने जंगल में छोड़ने कोई आॅपरेशन चलाने के मूड में नहीं, चूंकि इस तेन्दुए ने अभी तक इंसानी मवेशी पर भी हमला नहीं किया है। वन्य प्राणी विशेषज्ञों की मानें तो तेन्दुआ आवारा कुत्तों का शिकार करने के चक्कर में कई बार बस्तियों में घुस आता है।
...वर्जन...
तेन्दुआ अब जंगल से लगे शहरी इलाके एवं बस्तियों से अच्छी तरह अवगत हो चुका है। वन प्राणियों के नैसर्गिक इलाकों में हम घुस चुके हैं। अत: तेन्दुये की समस्या कभी-कभी सामने आ जाती है। इसके लिए वन विभाग की मॉनीटरिंग चलती रहती है। हमारे पर रेस्क्यू टीम भी मौजूद है। हमारे सामने प्राण्ी को बचाने की चुनौती रहती है, साथ ही यह भी प्रयास रहता है वन्य प्राणी इंसान को कोई नुकसान न पहुंचा पाए।
विसेंट , कन्जवेटर, जबलपुर 

मरीजों के लिए स्वयं उदाहरण है डॉ. गौरव कोचर 29.10.15

बेजान पैरों में ऊर्जा का किया संचार
* विकलांग होना मंजूर था बहरापन नहीं
* स्टेराइड के घातक साइड इफेक्ट पर जीत
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  दीपक परोहा

स्वयं को फिजियो थैरेपी के माध्यम से फिजियो थैरेपिस्ट डॉ. गौरव कोचर ने अपने को चलने-फिरने लायक बनाया। स्टेराइड मेडिसन के साइड इफेक्ट से उनके कूल्हे खराब हो गए। कूल्हे बदले जाने के बाद भी विकलांगता बनी रही, ऐसे में फिजियो थैरेपी से उन्होंने अपने कूल्हों में जान डाली। इसके अतिरिक्त उनके द्वारा अनेक लकवा पीड़ित लोगों को अपने पैरों पर खड़ा किया गया है।
जबलपुर। डॉ. गौरव कोचर का कहना है कि मै जब अपने क्लीनिक से निकला तो मुझे आॅटो की आवाज और सड़क में होने वाला शोरगुल नहीं सुनाई दे रहा था। दुनिया बड़ी अजीब लगी। अचानक सुनाई देना बंद होने से मैं घबरा गया। तत्काल नाक, कान, गला रोग चिकित्सक डॉ. नितिन अड़गांवकर के पास पहुंचे। उन्होंने परीक्षण बाद जो बीमारी के संबंध में बताया तो मेरा सोचने की क्षमता सुन्न पड़ने लगी थी। उन्होंने बताया कि अज्ञात वायरल अटैक से स्थिति निर्मित हुई है। श्रवण संबंधी तंत्रिका तंत्र को वायरस नष्ट कर रहे हैं। अभी बहरापन है आगे कुछ भी हो सकता है। इलाज के लिए स्टेराइड के इंजेक्शन देने होंगे। मैं स्टेराइड के साइड इफेक्ट के बारे में सुन रखा था। इससे विकलांगता तक आ सकती है, लेकिन मुझे शारीरिक विकलांगता मंजूर थी, लेकिन बहरापन नहीं।
जबलपुर के प्रमुख फिजियो थैरिपिस्ट डॉ. गौरव कोचर का यह कहना है। उनके साथ ये वाक्या कुछ साल पहले घटित हुआ। कान में सुनाई न पड़ने के कारण इलाज चला, दिल्ली के एम्स हॉस्पिटल में भी डॉ. कोचर ने इलाज करवाया, वहां भी चिकित्सक ने इस अज्ञात वायरस के संबंध में कोई विशेष जानकारी नहीं दे पाए। बहरहाल स्टेराइडयुक्त दवाइयों से बहरापन दूर हुआ। डॉ. कोचर का इस संबंध में स्टेराइड को लेकर कहना है कि भले ही इसके साइड इफेंक्ट जानलेवा एवं जहर की तरह है, लेकिन यह दवाई जादू की तरह है, ये अमृत है और मानव जीवन को बचाने में बेहद कारगर है।
उन्होंने बताया कि सड़क दुर्घटनाओं में खासतौर पर जब ब्रेन इंज्यूरी होती है अथवा मांस पेशियां बुरी तरह डैमेज होती है और उससे विकलांग
होने का खतरा रहा है, तब स्टेराइड या स्टेराइडयुक्त दवाइयां ही जीवन बचाती हैं। इस दवाई का साइड डिफेक्ट भी हर किसी को नहीं होता है, किन्तु डॉ. कोचर दुर्भाग्यशाली रहे इस मामले में। दवाई के प्रभाव से उनके कूल्हे की हड्डी खराब हो गई।
डॉक्टर कोचर को वायरल इफेक्ट के ऐवेसकुलर नेकरोसिस नामक बीमारी हुई, जिससे उनको बहरापन आ गया, लेकिन यह स्थायी नहीं हो पाया, किन्तु कूल्हे खराब होने से विकलांगता आ गई। इसके इलाज के लिए डॉ. जितेन्द्र जामदार के हॉस्पिटल में कूल्हा रिप्लेस्मेंट किया गया, किन्तु इस कूल्हा रिप्लेस्टमेंट के बाद फिर अपने पैरों खड़े होने और चलने के लिए जरूरी था कि फिजियो थैरपी की। डॉ. गौरव कोचर जो स्वयं फिजियो थैरेपिस्ट हैं उन्होंने अपने स्टूडेंट के साथ मिलकर स्वयं फिजियो थैरेपी की एक्ससाइज प्रारंभ की। कुछ महीने में ही वे चलने-फिरने लगे और अपने मरीजों के लिए प्रेरणा है, बीमारी से लड़ने के लिए फिजियो थैरेपी के साथ ही उनमें आत्मविश्वास जगाने के लिए उनका स्वयं का उदाहरण है।

सन् 1998 से कार्यरत
फिजियो थैरेपिस्ट डॉ. गौरव कोचर सन् 1998 से जबलपुर में विभिन्न रूप से शारीरिक विकलांगता से जूझ रहे मरीजों का इलाज कर रहे हैं। उनकी मांस पेशियों एवं हड्डियों में ऊर्जा का संचार कर रहे हैं। उन्हें अपने पैरों पर खड़ा कर रहे हैं। नगर के कई अस्पताल में वे कंसल्टेंट हैं। उनका स्वयं का फिजियो थैरेपी सेन्टर भी है। अब तक उन्होंने 25-30 फिजियो थैरेपिस्ट को प्रशिक्षण भी दे चुके हैं।
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8 साल की उम्र से आ रही शुभी
धनवंतरी नगर निवासी शुभी शुक्ला के दोनों पैरों में जान डालने में डॉ. गौरव कोचर कामयाब हुए हैं। शुभी शुक्ला जब 7-8 वर्ष की थी तो अचानक उसके दोनों पैर लकवाग्रस्त हो गए। बिस्तर एवं व्हीलचेयर से लग गई। उसकी रीड की हड्डी में ट्यूमर था, जिसके कारण विकलांगता आ गई।
आॅपरेशन कर ट्यूमर तो निकाल दिया गया, लेकिन बेजान हो चुके पैरों में जान नहीं आई। गौरव कोचर ने एक्सरसाइज कराना शुरू किया। करीब एक साल के प्रयास के बाद पैर हिलना शुरू हुए। इसके बाद धीरे-धीरे कर पैरों में जान आने लगी। फिजियो थैरेपी का कमाल यह है कि 10 साल में शुभी शुक्ला एक स्टिक के सहारे से चलने लगी है। धैर्य के साथ चल रहे एक्सरसाइज और मरीज में होने वाले सुधार को देखते हुए पूरी उम्मीद
है कि साल डेढ़ साल में स्टिक भी छूट जाएगी ।

2013 से चल रहा इलाज
शहडोल निवासी अंजना मिश्रा छत से गिर गई थी। उसकी रीड की हड्डी कई टुकड़े हो गई। रीड की हड्डी का इलाज हुआ, लेकिन डॉक्टरों ने कह दिया कि पूरी जिंदगी बिस्तर में ही गुजारनी पड़ेगी। अंजना मिश्रा बैठ भी नहीं पाती थीं। कमर के नीचे का पूरा पूरा शरीर सुन्न था, किन्तु इसको धैर्य के साथ फिजियो थैरेपी दी गई। अब अंजना मिश्रा बैठने लगी हैं। उसके एक पैर में जान आ चुकी है, किन्तु दूसरा पैर वह स्वयं से हिलाने लगी है। अंजना मिश्रा का कहना है कि वे लगातार उनके फिजियो थैरेपिस्ट डॉ. कोचर की सलाह पर अभ्यास कर रहीं है। उन्हें उम्मीद है कि दूसरा पैर भी काम करने लगेगा। 

अब जेल में ही बंदियों की पेशी होगी आॅनलाइन 30.11.15


केन्द्रीय जेल भी जुड़ेंगे सभी कोर्ट से
जबलपुर। प्रदेश के  जेल जल्द ही प्रदेश की कोर्ट से जुड़ने जा रहे हैं। इसके लिए जेलों में वीडियो कॉन्फ्रेसिंग की व्यवस्था की गई है, किन्तु अभी समस्त जेल को सभी कोर्ट से जोड़ने की प्रक्रिया के तहत सॉफ्टवेयर तैयार करने का काम चल रहा है। आने वाले कुछ महीनों में समस्त जेल और कोर्ट आपस में जुड़ जाएंगे, जिससे बंदियों की पेशी आॅन लाइन कोर्ट में हो जाएगी।
जेल विभाग इस योजना पर करीब एक साल से कार्य कर रहा है। जबलपुर सहित प्रदेश के कुछ केन्द्रीय जेल स्थानीय अदालतों से जुड़ चुके हैं तथा बंदियों की आॅनलाइन पेशी भी प्रारंभ कर दी गई है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस केन्द्रीय जेल तथा जबलपुर जिला अदालत के बीच वीडियो कॉन्फे्रसिंग शुरू हो चुकी है। इसी तरह केन्द्रीय जेल भोपाल सहित स्थानीय कोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेसिंग से बंदिया को पेशी हो रही है। प्रदेश के अन्य कुछ जेल जिला अदालतों से जुड चुके है किन्तु केन्द्रीय जेल को प्रदेश की सभी कोर्ट से जोड़े जाने के कार्य में लगातार विलम्ब हो रहा है। इसकी वजह सॉफ्टवेयर तैयार कर लोड किए जाना मुख्य कारण बनाया जा रहा है। वहीं जेल सूत्रों का कहना है कि अगले कुछ महीनों में सॉफ्टवेयर लोड हो जाएगा। इसका लाभ यह होगा कि यदि भोपाल या अन्य कोर्ट को प्रदेश कि किसी अन्य जेल में बंद बंदी को पेशी पर बुलाना है तो उसे बुलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी और आॅनलाइन बंदी की पेशी हो जाएगी। उल्लेखनीय है कि जेल तथा कोर्ट के मध्य पेशी के लिए बंदी को लोने ले जाने तथा कोर्ट लॉकअप में रखे जाने के दौरान सैकड़ों अप्रिय घटनाएं हुर्इं, जिसके चलते आॅन लाइन पेशी का निर्णय शासन ने लिया।
केन्द्रीय जेल जबलपुर में प्रतिदिन 25-30 बंदियों की आॅन लाइन पेशी हो रही है। दरअसल निचली कोर्ट में पेशी के दौरान अमूमन भौतिक रूप से

बंदी की उपस्थिति जरूरी नहीं होती है, इस स्थिति में आॅन लाइन ही पेशी होती है, किन्तु जब कोर्ट में बंदी से सवाल-जवाब उसकी उपस्थिति में होना होता है तो कोर्ट में पेश किए जा रहे हैं।
...वर्जन...
जिला कोर्ट तथा केन्द्रीय जेल के बीच वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के काफी सकारात्मक परिणाम आए हैं। बंदी को पेशी पर ले जाने की बड़ी पुलिस बल की रहती है। इस समस्या से काफी हद तक वीडियो कॉन्फ्रेसिंग से निपटा गया है, किन्तु शहर से बाहर बंदियों के पेशी में अब भी ले जाना पड़ता है। जेल विभाग जल्द ही आॅन लाइन प्रदेश के समस्त कोर्ट करने जा रहा है, किन्तु इसमें अभी कुछ विलम्ब लग सकता है।
अखिलेश तोमर, जेल अधीक्षक 

जबलपुर पुलिसिंग के लिए एक इतिहास रचा है वैद्य ने


सेवानिवृति से पुलिस जबलपुर पुलिस में बड़ी रिक्तता
सीएसपी अनिल वैद्य 30 नवम्बर को 60 वर्ष की आयु पूर्ण होने पर सेवानिवृत हो गए। अपनी सेवानिवृति के आखिरी दिन तक पूरी ऊर्जा, उत्साह और उमंग के साथ काम किया। जबलपुर की पुलिसिंग में इतिहास रचने का जो काम श्री वैद्य ने किया है, उसे जबलपुर के पुलिस लम्बे अरसे तक याद रखेगी।
यूं तो पुलिस विभाग में हर माह सेवानिवृति होती है, पुराने अफसर जाते हैं और नए अफसरों के आने का सिलसिला चलता रहा है, किन्तु कम ही अफसर होते हैं कि जिनकी सेवानिवृति पर रिक्तता नजर आती है। श्री वैद्य ऐसे ही पुलिस अफसरों में शुमार थे।
अनुशासन प्रियता, कर्मठता, मिलनसारिता, अपने से बड़ों का सम्मान एवं सहज व्यक्तिव के कारण लोकप्रियता के आयाम बनाए। इसी वर्ष दीवाली और मुहर्रम पर्व साथ में पड़ा। बरघाट में मुहर्रम पूर्व हुए बवाल के कारण पूरा गृह विभाग तक चिंतित रहा। त्यौहार पूर्व डीजीपी ने शहर का दौरा किया, लेकिन शहर की नब्ज जानने वाले श्री वैद्य के जबलपुर में पदस्थ रहने के कारण डीजीपी भी निश्चिंत होकर गए।
कानून व्यवस्था एवं शांति के लिए  जो मैनेजमेंट की रणनीति पुलिस प्रशासन ने तैयार की, उसके मास्टर प्लानर और कोई नहीं सीएसपी अनिल वैद्य ही थे। आईजी, कलेक्टर एवं एसपी की अगुवाई में सद्भावना कायम करने जो सम्पर्क का दौर चला, उसकी परिणति रही शहर में भाईचारे और सद्भावना की मिसाल बनी। शहर और समाज के लिए हाल में ही गई ये बानगी रही है।
अब तक सेवानिवृत हुए पुलिस अधिकारियों में पहली बार किसी पुलिस अफसर ने दानवीरता दिखाई वह भी एक मील का पहला पत्थर

है। श्री वैद्य ने अपने वृद्धावस्था के मिलने वाले सभी तरह के फंडों का 50 प्रतिशत राशि पुलिस आरक्षकों के बच्चों के कल्याण के लिए दे रहे हैं।
श्री वैद्य की जबलपुर में सब-इंस्पेक्टर रहे, लेकिन वर्ष 1992 से 2000 तक जबलपुर के विभिन्न थानों में रहते हुए जबलपुर में अमन-शांति का माहौल कायम किया, गुंडे-बदमाशों को लगभग खत्म कर दिया। अधारताल, गोहलपुर, कोतवाली, लार्डगंज, गोरखपुर में पदस्थ रहते हुए शहर में बढ़ी हुई वाहन चोरी तथा कट्टा एवं बम बनाने के अपराधियों के कुटीर उद्योगों को खत्म कर डाला। स्मैक और गांजे के मोहल्ले-मोहल्ले फैले कारोबार का अंत किया। इसके लिए जहां विभिन्न थानों की पुलिस के साथ संयुक्त अभियान एवं संयुक्त कार्रवाई करने की परिपाटी डाली और जबलपुर पुलिस में टीम भावना से काम करने का एक नजरिया पेश किया है।
उल्लेखनीय है कि यह सभी बातें 1 दिसंबर को कोतवाली थाना परिसर में हुए, उनके विदाई समारोह में उन्हें जानने वाले पुलिस पुलिस अधिकारियों ने भी खुलकर मंच से कही।
प्रमुख यादगार मामले
* सट्टा किंग चिंरौजी का जुलूस निकाल कर गली-गली फैला अवैध कारोबार आ अंत।
* गोरखपुर में कल्चुरि कालीन करोड़ों रुपए मूल्य की कल्चुरि कालीन प्रतिमाएं पकड़ना।
* मध्य प्रदेश में सर्वाधिक दोपहिया चोरी के बाहन बरामद करने का रिकॉर्ड
* प्रदेश में सर्वाधिक आर्म्स एक्ट के प्रकरण दर्ज करने वाले अधिकारी
* सर्वाधिक विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की कार्रवाई करना
* प्रदेश में होने वाले आधा दर्जन से अधिक गंभीर अपराधों में गठित अपराधों की पतासाजी एवं विवेचना में शामिल किया जाना।

पलायन के चक्कर में तेजी से फैल रहा एचआईवी


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 आदिवासी जिलों में पीड़ितों की संख्या हुई चार गुना
* जिम्मेदार भी हैरान
दीपक परोहा
 9424514521
जबलपुर। मंडला और डिंडोरी जिले से बड़ी संख्या में श्रमिकों की गैंग पड़ोसी जिले जबलपुर ही नहीं मध्य प्रदेश के अन्य जिलों एवं प्रदेश के बाहर भी जाती है। अल्प वर्षा से प्रभावित आदिवासी क्षेत्र से श्रमिकों का तेजी से पलायन हो रहा है। ऐसे में बड़ी संख्या में एचआईवी पॉजिटिव श्रमिक भी बड़ी संख्या में बाहर गए हैं। अनेक आदिवासी जो एचआईवी संक्रमित है यदि वे किसी से संबंध बनाते हैं, जो एचआईवी के फैलाव का होना तय है। इसके साथ ही एचआईवी के प्रति आदिवासियों मे जागरुकता की कमी बड़ा रोड़ा है।
आदिवासी जिलों में पांच सालों में एड्स के कुल मरीजों की संख्या चार गुना हो चुकी है। इससे जिम्मेदार भी हैरान में है। मलेरिया टेस्ट के साथ ही एचआईवी टेस्ट के लिए ब्लड के नमूने लिए जा रहे है। आदिवासी महिला एवं पुरुष श्रमिक तेजी से एचआईवी ग्रसित हुए हैं। उनके बढ़े हुए आंकड़े से स्वास्थ्य अमला भी चौक गया है। आदिवासियों में एचआईवी का आना जाहिर करता है कि वे काम के सिलसिले में अपने गांव एवं घर से महीनों बाहर रहते हैं। इसमें बड़ी संख्या में विवाहित-अविवाहित पुरुष एवं महिलाएं शामिल रहती हैं। यूं तो जिले में मिलने वाले आंकड़ों में यह स्पष्ट नहीं है कि एचआईवी पीड़ित आदिवासी हैं अथवा गैर आदिवासी, किन्तु जाहिर है आदिवासी बाहुल्य जिले में एचआईवी के प्रकरण चार गुना से अधिक बढ़ना जाहिर करते हैं कि आदिवासियों में एड्स तेजी से फैल रहा है। एक तथ्य यह भी सामने आया है कि महिलाओं की तुलना में पुरुषों में एसआईवी तेजी से बढ़ा है। इससे बहुत बड़ा कारण पुरुषों का काम के  सिलसिले में महीनों घरों से बाहर रहना तथा महिलाएं ज्यादा संख्या में अपने घर गांव में रुक जाती है, किन्तु आदिवासी महिलाएं भी पुरुषों के साथ काम के सिलसिले में बाहर जाती है। मंडला जिले में बीते 4 सालों में एचआईवी के 107 नए मरीज मिल चुके है। इसी तरह डिंडोरी जिले में 5 चार साल में एचआईवी के 50 से अधिक नए मरीज मिल चुके हैं, वहीं चार साल में एचआईवी पीड़ित मरीजों की संख्या दोनों जिले में चार गुना बढ़ चुकी है।