इलाज में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे
फिलहाल बच्चे की हालत में है सुधार
...इंट्रो...
विक्टोरिया अस्पताल के डॉक्टरों के लिए डिप्थीरिया पीड़ित बच्चा चुनौती बना है। चिकित्सकों ने रात-दिन एक कर बच्चे को लगभग स्वस्थ कर लिया है, लेकिन उसको अभी चिकित्सक अपनी निगरानी में रखेंगे। छह सप्ताह तक उसके ऊपर खतरे के बादल मंडराते रहेंगे। कारण डिप्थीरिया के संक्रमण का प्रभाव हृदय पर पड़ता है और हृदय जनित समस्याओं को हर पल खतरा बना रहा है। फिलहाल राजा नाम बीमार बालक की हालत खतरे से बाहर है।
जबलपुर। बच्चों को गले में होने वाला बैक्टीरिया जनित संक्रमण डिप्थीरिया यूं तो लगभग खत्म हो गया है, इसकी वजह ये है कि शिशु के जन्म के साथ ही टीका दिया जाता है। शासन की टीकाकरण कार्यक्रम के कारण लगभग देश व प्रदेश में ये बीमारी दुर्लभ हो चुकी है, लेकिन अब भी अपवाद स्वरूप डिप्थीरिया के मामले आ रहे हैं। चिकित्सकों की माने तो कुछ दशक पूर्व डिप्थीरिया पीड़त बच्चे की मृत्यु होना लगभग तय होता था, लेकिन आधुनिक चिकित्साओं ने इसी बीमारी से भी संघर्ष कर रही है। ऐसा ही एक मामला जबलपुर स्थित विक्टोरिया अस्पताल में आया। यहां डिप्थीरिया से पीड़ित बालक को भर्ती किया गया है। लगभग एक सप्ताह से बच्चा संघर्ष कर रहा है और वार्ड में घूमता-फिरता भी है। इस बच्चे के लिए अच्छी से अच्छी एंटीबायटिक्स दवाइयां उपलब्ध कराई जा रही हैं और बालक की चिकित्सा चुनौती बनी है।
सेठ गोविन्द दास (विक्टोरिया)जिला अस्पताल में खंडवा का एक परिवार अपने डिप्थीरिया पीड़ित बच्चे को इलाज के लिये जबलपुर लेकर आया था। इस परिवार के दो बच्चों को डिप्थीरिया हुआ था। इंदौर के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। 10 वर्षीय बड़े बेटे असीम की मौत इंदौर के मेडिकल कॉलेज में मौत हो गई। उस दौरान परिवार वालों को बताया गया कि बच्चे की मौत एंटीटॉक्सिन इंजेक्शन उपलब्ध नहीं होने के कारण हुई है । डिप्थीरिया का बेहतर इजाज जबलपुर में ही हो सकता है और तुम्हारे दूसरे बच्चे की जान जबलपुर में ही बच सकती है।
इंदौर से शेख सलीम अपने 7 वर्षीय बच्चे को लेकर जबलपुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंचा। सूत्रों की माने तो मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों में भी डिप्थीरिया का मरीज होने के कारण अपने हाथ खड़े कर दिए और उसे मेडिकल कॉलेज से चलता कर दिया, किन्तु यह बात जिला कलेक्टर के संज्ञान में आई तो उन्होंने विक्टोरिया में बच्चे को भर्ती करने आदेश दिए।
खेलने-कूदने लगा है बालक
डॉ. एमएम अग्रवाल ने बताया कि राज को इलाज के लिए तत्काल शिशु वार्ड में भर्ती कराया गया तथा आवश्यक एंटी बायटिक्स दवाइयों को कोर्स तत्काल शुरू किया गया। राज को जब लाया गया था, तब उसके थ्रोट में जबदस्त संक्रमण था, जो कान तक पहुंच गया था। लगातार बालक की निगरानी की गई। दवाइयों का असर जल्द ही सामने आने लगा। उसके गले में संक्रमण काफी हद तक कम गया गया है। बच्च्चा वार्ड में खेलने कूदने भी लगा है। अपने पिता के साथ अस्पताल के बाहर तक चल जाता है, किन्तु अभी हम बच्चे को खतरे से बाहर नहीं कह सकते हैै। दरअसल, डिप्थीरिया का संकमण काफी तेज होता है और इस बच्चे को तो जबरदस्त संक्रमण था। उसके हार्ट तक संक्रमण चला गया है। हार्ट के संक्रमण कम होने में छह सप्ताह से तीन माह तक का समय लगता है। संक्रमण के चलते नलिकाएं ब्लाक होती है तथा अचानक हृदयाघात भी आ जाता है। डिप्थीरिया में होने वाली शत प्रतिशत मौत का कारण हृदय का काम करना बंद हो जाता है। बहरहाल, हमारे लिए आशा की बात है कि बच्चा सरवाइव कर रहा है। उसकी सतत निगरानी की जा रही है। शिश ुरोग विशेषज्ञ डॉ. मंजूलता की निगरानी में इलाज चल रहा है। पूरे विक्टोरिया अस्पताल के चिकित्सकों के लिए डिप्थीरिया को केस चुनौती बना है।