Thursday, 14 December 2017


 एक अंजान दोस्त ने
  दिया है हाथ।
अब तक जिसका नहीं
 मिला था साथ।
 दे गया मुस्कराता हुआ
 हुआ एक तोहफा।
 जिनको भूला वो
 फिर आई है सामने ।
 दोस्तों एक आइना मिला जिसका
 हर प्रतिबिम्ब है यादें।
जीना चाहता हूं मै आज
 पर जीने नहीं देता कल।
पिंजरा है तंग और
 आकाश है अनंत।
उन्मुक्त है मन
 जोखिम भरा आकाश।
 भय है हृदय में
फिर कैसे मिले प्रेम।
छूटते नहीं है
 बंधन तन के तो
मन के छोड़ दे।
बस जाएगा रे
 इस पिजरें में
 अनंत आकाश।

भू माफिाफिया के हाथों कठपुतली बना खनिज विभाग

भू माफिाफिया के हाथों कठपुतली बना खनिज विभाग
 करोड़ों साल पुरानी पहाड़ियों का कत्लेआम
हाईकोर्ट के निर्देशों की उड़ाई जा रही धज्जियां
जबलपुर। जबलपुर के पर्यावरण एवं प्राकृतिक धरोहर  ग्रेनाइट निर्मित पहाड़ियां है जिसकी श्रंखला तिलवारा के निकट से रांझी तक फैली है। वहीं घमापुर से होकर महाराजपुर तक ग्रेनाइट की पहाड़ियां है। ग्रेनाइट रॉक्स एवं पहाड़ियों के संरक्षणाइट की पहाड़ियां है। ग्रेनाइट रॉक्स एवं पहाड़ियों के संरक्षणे निकट से रांझी तक फैली है। वहीं घमापुर से होकर महाराजपुर तक ग्रनाइट की पहाड़ियां है। ग्रेनाइट रॉक्स एवं पहाड़ियों के संरक्षण के लिए हाईकोर्ट ने अलग-अलग जनहित याचिकाओं में आदेश दे चुके है लेकिन इसके बावजूद  अब भी खजिन विभाग पहाड़ियों को तोड़ने अनुमति दे रही है। पहाड़ियों का कत्लेआम खजिन के लिए किया ही नहीं जा रहा है और न ही विभाग को कोई रॉयल्टी मिलती है ये खेल तो सिर्फ पहाड़ी को मिटाकर वहां आवासीय भूखंड तैयार किए जाने का चल रहा है।
पीपुल्स के सामने हाल ही में एक मामला प्रकाश में है, जिसके तहत रांझी में बजरंग नगर से लगी करीब 5 एकड़ से अधिक निजी भूखंड जिसमें ग्रेनाइट की रॉक्ट प्रचुरता में मौजूद है। यह मदन महल से लेकर रांझी तक फैली पहाड़ी की श्रंखला का हिस्सा है। इस पर पिछले तीन साल से लगातर तोड़ाई का काम चल रहा है।
अचंभा का विष्य यह है कि पहाड़ी को तोड़ने के लिए हैदराबाद से बड़े बड़े कटर मंगाए गए है। जेसीबी मशीन एवं हिटाची मशीन में अन्य मशीने फिट कर पहाड़ी और चट्टाने तोड़ी जा रही है। करीब एक साल तो यहां पहाड़ी तोड़े जाने का काम चलता रहा।
शिकायतों के बाद रोक
यहां पहाड़ी अवैध तौर से तोड़े जाने की शिकायत के बाद रोक लगाई गई तो भू स्वामी बिल्डर मेसर्स महाराजपुर को खजिन उत्खनन की अनुमति रॉयल्टी की शर्त पर दी गई। निरीक्षण में छेनी हथौड़ी का उपयोग किया जाना बताया गया। इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में भी याचिका दायर की गई। इ

इसी बीच बिल्डर्स ने फिर खनन अवधि बढ़ाने मांग की तो क्षेत्रीय लोगों के विरोध में उस पर रोक लगा दी गई।
अब भी तोडी जा रही पहाड़ी
इस मामले को लेकर खनिज विभाग में शिकायर्ता करने वाले चंद्रिका प्रसाद सोनकर ने बताया कि खजिन विभाग की रोक के बावजूद सांठगांठ कर पहाड़ी तोड़े जाना जारी है। इस पहाड़ी के संरक्षण के लिए प्रशासन को भूमि अधिगृहण कर लेना चाहिए।
बिकने को तैयार है
इसी तरह बाजनामढ रोड पुरवा पर करीब 11 एकड़ की ग्रेनाइट पहाड़ी को भू स्वामी बिल्डरों के हाथें बेचने प्रयास रत है। इस पहाड़ी को तोड़ने एवं समतलीकरण के लिए खनिज विभाग से दो दफे अनुमति मिल गईहै लेकिन संयोग से पहाड़ी बची हुई है लेकिन फिर भी धीरे धीरे कर अवैध तरीके से पहाड़ी का करीब डेढ़ दो एकड़ हिस्सा नष्ट किया जा चुका है।

कई पहाड़ी नेस्तनाबूत
मदन महल क्षेत्र में शिमला हिल्स पहाड़ी जो निजी भूमि रही है, इसको तोड़कर समतल बनाकर लगभग खत्म की जा चुकी है। शारदामंदिर के निकट दानबाबा पहाड़ी कत्लेआम जारी है। बेदीनगर से लगी पहाड़ी अब भी तोड़ी जा रही है। इसी तरह कई एकड़ पहाड़ी नष्ट कर तक्षशिला इंजीनियरिंग कॉलेज बन चुका है।
कोई नियम कानून नहीं
दरअसल राजस्व रिकार्ड में हुए अनेक मालगुजारी पहाड़िया निजी हाथों में आ गई और इसके बाद भू माफिया एकएक कर पहाड़ी का कत्ल करता जा रहा है और जबलपुर के पर्यावरण से जबदस्त तरीके से खिलवाड़ किया जा रहा है। जबकि ये पहाड़ियां जबलपुर की स्वास नलिका की तरह है जहां से पूर्वाई एवं पछुआ हवाआें के शहर में बहने की दिशा तय होती है और शहर को स्वच्छ हवाएं मिलती है।

 बिना अनुमति के पहाड़ी की एक चट्टान भी नहीं तोड़ने दी जाएगी। नियम विरूद्ध बिना अनुमति के पहाड़ियों में तोड़फोड़ करने पर कार्रवाई की जाएगी। फिलहाल किसी भी पहाड़ी को तोड़ने अनुमति नहीं दी गई है।
एसएन रूपला
कलेक्टर जबलपुर

Sunday, 3 September 2017

टीचर मोबाइल पहुंचेगी बच्चों को पढ़ाने


 * ज्ञानपुंज योजना शिक्षा विभाग
 अब नए  स्वरूप में करेगा शुरू
 जबलपुर। प्रदेश में वर्ष 2015 से बंद की गई ज्ञानपंजु योजना को शिक्षा विभाग दोबारा  प्रारंभ करने जा रहा है। इस योजना का नए स्वरूप के साथ लाया जाएगा। अब ज्ञानपुंज  दल के व्याख्याताओं की टीम उन स्कूलों पर सूचना मिलते ही पहुंचेगी जहां शिक्षकों की  किन्हीं कारण से कमी हो गई है। जहां विभाग को अतिथि शिक्षक भी नहीं मिल पा रहे है। बकायदा इसको लेकर विडियो कांफ्रेसिंग में घोषणा हो गई है और  समस्त जिला में एक टीम तैयार करना है।
यदि योजना लागू होने पर ठीक तरह से काम करती है तो अब शिक्षक के गैर हाजिर रहने पर बच्चों की पढ़ाई प्रभावित नहीं होगी। शिक्षक मोबाइल वैन सूचना मिलते ही तत्काल स्कूल में पहुंच जाएगी और शिक्षक अपना मोर्चा संभाल लेंगे। यूं तो वर्ष 2015 में ज्ञानपुंज योजना के तहत पहले गणित तथा विज्ञान के शिक्षक को रखा जाता था लेकिन बाद में इस में गणित,रसायन शास्त्र, भौतिक शास्त्र, जीव विज्ञान, अंग्रेजी, हिन्दी, संस्कृत, सहित अन्य सभी विषयों के शिक्षक की टीम बनाई गई।
 कमजोर स्कूल पहुंचेगे
इसके अतिरिक्त 10वीं एवं12 वी ं में जिन स्कूलों का परीक्षा परिणाम कम रहा है। वहां शिक्षा का स्तर सुधाने का काम भी मोबाइल करेगी। वहां व्याख्याता तथा वरिष्ठ शिक्षक पहुंच कर बच्चों की अतिरिक्त क्लास लेकर उन्हें होशियार बनाएंगे।
इन्हे रखा जाएगा
इस योजना में जहां अतिशेष शिक्षक को रखने के साथ ही ऐसे अतिथि शिक्षक रखें जा सकेंगे जिन्हे सरकारी स्कूल में पढ़ाने का कम से कम पांच साल का अनुभव है अथवा वे हाल ही में सेवानिवृत हुए है। योजना के तहत उपलब्ध वैन से चयनित शिक्षकों को वहां तक पहुंचाया जाएगा जहां उनकी जरूरत है, यानी की जिन स्कूलों में शिक्षक नहीं आ रहे है अथवा वहां संबंधित विषय के शिक्षकों की कमी है। शिक्षक मोबाइल के लिए शिक्षकों का चयन भोपाल मुख्यालय द्वारा किया जाएगा। इसके लिए बकायदा शिक्षकों की सूची सभी जिलों से मंगाई जाएगी।
108 की तर्ज पर चलाने का विचार
जानकारों की माने तो टीचर मोबाइल वेन को शिक्षा विभाग 108 की तर्ज पर चलाने का विचार कर रहा है। स्कूलों से आने वाली डिमांड पर तत्काल शिक्षक की उपलब्धता सुनिश्चित की जाएगी। फिलहाल इसका कंट्रोल रूम जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में रखे जाने पर विचार चल रहा है। 

6 वीं अन्तर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस में सम्मानित हुए अर्जुन




  जबलपुर। हमेशा अवार्ड्स के करीब रहे शासकीय आदर्श विज्ञान महाविद्यालयए जबलपुर के शोधार्थी अर्जुन शुक्ला को एक बार पुन: अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर नई ख्याति मिलीए अर्जुन को शोध नर्मदा पर उत्कृष्ट कार्य हेतु 6वीं अन्तर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस  दिल्ली में अन्तर्राष्ट्रीय यंग साइंटिस्ट अवार्ड से सम्मानित किया गया। अर्जुन को यह सम्मान वर्ष 2017 में नर्मदा पर अब तक किये गए कार्य के आधार पर दिया गया  है।
समाज में सतत विकास विषय पर स्वामी श्रद्धानन्द कॉलेज  दिल्ली विश्वविद्यालय में 26 से 28 अगस्त 2017 को आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस में अर्जुन शरीक हुए एवं अपना  शोध प्रस्तुत किया।  कार्यक्रम में डॉ.पीवी. खत्री,  जी रमेश कुमार, डॉ. अर्चना ठाकुर,  सचिव यूजीसी दिल्ली एवं मुख्य अतिथि शहर जबलपुर से बायो साइंस विभाग के प्रो. सुरेन्द्र सिंह उपस्थित थे।


Friday, 14 July 2017

 दीपक परोहा
9424514521

ग्लोबल वार्मिंग से स्कीन कैंसर से बचाव के लिए कवच तैयार  
* अल्ट्रावायलेट प्रोटैक्टर लेयर इजाद की शिखा ने
 
* इस शोध आईआईटी मुम्बई ने बनाया रिसर्च एसोसियेट  
 जबलपुर। बिगड़े पर्यावरण के कारण  ग्लोबल वार्मिंग जिस तेजी से बढ़ा है, उससे सूर्य की खतरनाक अल्टावॉयलेट रेज धरती में ज्यादा मात्रा में आ रही है। इससे कैंसर बढ़ा है। ओजोन लेयर कम होने पर सूर्य की खतरनाक विकिरण से बचाव के लिए साइंस कॉलेज की छात्रा शिखा चौहान ने पॉलिमर लेयर तैयार की है, जो अल्ट्रावायलेट किरणों के लिए कवच की तरह है।
   ये लेयर पॉलीथिन मटेरियल की होने के बावजूद टॉक्सीन रहित है। इसको कई चरणों में विभिन्न संस्थाओं ने परख लिया है। खतरनाक अल्ट्रावायलेट रे को पॉलिमर लेयर पार नहीं होने देती है। इस मटैरियल को अल्ट्रावायलेट प्रोटैक्टर लेयर नाम दिया गया है। ये शोध विश्व में अनूठा है। इसके सूक्ष्म लेयर को चाहे तो लेप की तरह शरीर में चिपकाया जा सकेगा। इसको जेली की तरह उपयोग किया जा सकता है। इतना ही नहीं वस्त्र उद्योग में इसका उपयोग कर घातक किरणों से बचाव करने वाले वस्त्र भी भविष्य में तैयार किए जा सकते हैं।
 सेना के लिए बेहद उपयोगी
 ये शोध सेना के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकता है। लद्दाख एवं हिमालय के ग्लेशियर में तैनात फौजियों के सामने सबसे बड़ी समस्या हिम से परावर्तित होकर आने वाली अल्ट्रावायलेट रेस होती है जिसके प्रभाव से फौजियों की चमड़ी पर घातक असर होता है और वे कैंसर जैसी बीमारी के शिकार हो जाते है। अनेक पर्वतारोही इसी किरणों के कारण अपनी आंखे खो देते है। ऐसे में ये लेयर उनके लिए रक्षा कवच का काम करेगी।  बर्फीले इलाके में रहने वाले लोग अपने घरों की खिड़की एवं दरवाजे में इसके पर्दे लगा सकते है। इसी तरह पायलेट अपने विमान के विन्डो में पॉलिमर लेयर चढ़ाई जा सकती है।
गहन परीक्षण हुआ
 साइंस कॉलेज की इस छात्रा की रिसर्च को वैज्ञानिक संस्थाओं ने जांचा और परखा भी है। छात्रा द्वारा तैयार यूवीपीएल(अल्ट्रावायलेट प्रोटेक्टेड लेयर) को आईआईटी मुम्बई, ट्रिपल आईटीडीम जबलपुर, इंदौर ,कलकत्ता विश्व विद्यालय के वैज्ञानिकों ने परखा और ओके किया। इसक परिणाम है कि इस नव वैज्ञानिक को आईआईटी मुम्बई ने अपने यहां रिसर्च करने के लिए दो साल का अनुबंध कर रिसर्च एशोसियेट के पद पर चयन किया है। वे 14 जुलाई से आईआईटी में रिसर्च का कार्य प्रारंभ करेंगी। इस खोज के लिए उन्हें यंग साइंटिस्ट एवार्ड मिला है। मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान भी सम्मानित कर चुके है। उनकी रिसर्च का प्रकाशन होने के उपरांत उन्हें 28 से 1 दिसम्बर तक  हांगाकांग में होने वाली इंटरनेशनल कांफ्रेंस में रिसर्च पेपर प्रजेंट करने का निमंत्रित किया गया है। उन्होंने ये अनुसंधान साइंस कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. अनिल बाजपेई के मार्गदर्शन में किया है।
वर्जन
 मैने फिलहाल जो मैटेरियल बनया है, वह कार्बनिंग कम्पाउंड  है जिसमें जिंक आॅक्साइड रहता है। ये मटैरियल अल्ट्रावायलेट किरणों को एब्जर्व कर लेता है जिससे शरीर को नुकसान नहंी है। ये हार्ड एवं जेली दोनों अवस्था में रह सकता है।  इसका उपयोग पतली फिल्म के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है। आंखों की सुरक्षा के लिए इसको चश्मे पर भी चढ़ाया जा सकता है।
शिखा चौहान
युवा वैज्ञानिक, जबलपुर

12 फरार पाकिस्तानियों से शहर को खतरा

12 फरार पाकिस्तानियों से शहर को खतरा
 * 17 की कांवड़ यात्रा को लेकर आईबी ने किया अलर्ट
* एसपी ने किया खुफिया तंत्र को सक्रिय 
 जबलपुर। टूरिस्ट बीजा में आए 12 पाकिस्तानी जबलपुर से  लापता हो गए है, इन लापता पाकिस्तानियों के आतंकी होने की आशंका के मद्देनजर पुलिस को अलर्ट किया गया है। आईबी ने पुलिस अधीक्षक को पत्र भेज कर 17 जुलाई को होने वाली विशाल कांवड यात्रा में हमला होने की आशंका जाहिर करते हुए अलर्ट रहने निर्देश दिए है।
 जानकारी के अनुसार पिछले कुछ सालों में जबलपुर में 70 से अधिक पाकिस्तानी नागरिक टूरिस्ट बीजा में जबलपुर आए थे। इसमें से वर्ष 2012 से 12 पाकिस्तानी लापता है। इसकी तलाश आईबी काफी समय से कर रही थी। खुफिया तंत्रों को सूचना मिली कि ये पाकिस्तानी आतंकी गतिविधियों में लिप्त हो सकते है। इसके बाद खुफिया तंत्र को यह भी जानकारी लगी कि जबलपुर में सबसे बड़ी कांवड़ यात्र 17 जुलाई को निकाली जानी है जिसको वल्ड रिकार्ड भी बनना है। इस यात्रा में गड़बड़ी  फैलाई जा कसती है। 
 पुलिस ने शुरू की तलाश
 इंटेलीजेंस से मिलने वाली सूचना के बाद जबलपुर पुलिस अधीक्षक डॉ. महेन्द्र सिंह सिकरवार ने टीम बनाकर संवेदनशील इलाकों में लापता पाकिस्तानियों की तलाश शुरू की है। 

वर्जन 
आईबी से सूचना मिलने के बाद खुफिया तंत्र को सक्रिय किया गया है। लापता पाकिस्तानियों की तलाश के लिए टीम कार्य कर रही है। पुलिस प्रशासन कांवड़ यात्रा के मद्देनजर विशेष अलर्ट है। 
डॉ. महेन्द्र सिंह सिकरवार
 पुलिस अधीक्षक जबलपुर

Saturday, 29 April 2017

Tuesday, 11 April 2017

लैंटाना को बनाया आदिवासियों ने जीविका का साधन

 लैंटाना को बनाया आदिवासियों ने जीविका का साधन
 एक खरपतवार जो जंगल ओर खेत दोनों के लिए बनी नासूर
जबलपुर। लैंटाना एक ऐसा खरपतवार है जो खेत-खलिहान के साथ जंगल और मैदान के लिए नासूर बना हुआ है। भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों के लिए से समस्या बनें हुए है। इसको नष्ट करना बेहद कठिन काम है। गर्मी में जंगल में भीषण आग का कारण भी लैंटाना की झाड़ियां मुख्य वजह बनती है लेकिन इस अनुपयोगी वनस्पति को मंडला के आदिवासी अपने रोजगार का जरिया बना लिए है। आदिवासियों अपनी कला और मेहनत की दमखम से इससे शानदार फर्नीचर बना रहे है, इसकी लकड़ी का ईधन के रूप में भी उपयोग कर रहे है।
लैंटाना व्यापक पैमाने में कृषि, पर्यावरण, वन प्रबंधन और ग्रामीण परिवहन मार्ग में बाधक बना हुआ है। लैंटाना के सभी रूपों लाल तथा रंग-गिरंगे फूल आकर्षक होते है लेकिन ये विषाक्त होते है। इनको जानवर भी नहीं खाते है। इसी तरह लैंटाना झाड़ी को यदि भूखे मवेशी खा लेते है तो उनपर जहरीला असर होता है। कुल मिलाकर लैंटाना अनुपयोगी  है।
सभी तरह के फर्नीचर निर्माण
मंडला के आदिवासी ग्राम गाढ़ी, रमपुर, केहरपुर सहित अनेक गांव के आदिवासी जंगल से लेंटाना झाड़ी का मुख्य शाखा जो करीब 4-5 सेंटीमीटर तक मोटा होता है, उसे काट लेते है। इसको छीलने और साफ करने के बाद कुर्सी, टेबिल, स्टूल, सोफा सहित अनेक तरह के फर्नीचर बना रहे है। लेंटाना की लकड़ी के बने फर्नीचर अच्छी कीमत में जा रहे है। इसी तरह घरेलू शो पीस भी तैयार किए जा रहे हैं। लेंटाना की पतली लकड़ियों से हल्के शो पीस आइटम तैयार किए जा रहे है। लेंटाना की शेष झाड़ियां आदि का उपयोग जलाने तथा अन्य घरेलू काम में लिया जा रहा है। जहां एक ओर आदिवासियों ने लैंटाना की लकड़ी का उपयोग सीख लिया है दूसरी तरफ लैंटाना से जंगल को मुक्ति मिलने का रास्ता भी नजर आने लगा है।
वर्जन
लेंटाना के फर्नीचर का इस्तेमाल अभी मंडला जिले की आदिवासियों द्वारा ही किया जा रहा है। आदिवासियों को लैंटाना के उपयोगी इस्तेमाल सिखाया जा रहा है ।
 निसार कुरैशी
एनजीओ 

प्रदेश की पहली हार्टीकल्चर विवि के लिए कवायद




आलू-प्याज  सस्ते और सुलभ होंगे
प्रदेश की पहली हार्टीकल्चर विवि के लिए कवायद
जबलपुर।  प्रदेश खाद्यान उत्पादन में भले ही वृद्धि की है, दो बार प्रदेश को कृषिकर्मणा पुरूस्कार मिल चुका है लेकिन अब भी प्रदेश में सब्जी उत्पादन में पिछड़ा है। सीजन में भी आलू -प्याज और हरी सब्जियों के तेवर उंचे बने रहते है। ऐसे में आम लोगों को सस्ती सब्जी उपलब्ध होए इसके लिए प्रदेश में पहली हार्टीकल्चर विश्व विद्यालय खोलने कवायद चल रही है इसका प्रस्ताव कृषि विश्वविद्यालय ने तैयार कर रहा है।
इस विश्व विद्यालय का मुख्य उद्देश्य आम जनता को सस्ती सब्जी के रास्ता प्रशस्त तो करना है ही,  इसके लिए सब्जी उत्पादन के लिए गहन अनुसंधान के साथ ही प्रदेश के किसानों को सब्जी उत्पादन के लिए प्रशिक्षण देना मुख्य उद्देश्य होगा, जिससे सब्जी के मामले में प्रदेश आत्मनिर्भर बने। हॉर्टीकल्चर विश्व विद्यालय का एक  उद्देश्य यह भी रहेगा कि बेमौसम सब्जी उत्पादन के साथ ही जो उपज यहां नहीं होती है उसको भी प्राप्त करना है।
मालूम हो प्रदेश में आलू उत्तर प्रदेश तो प्याज महाराष्ट्र से आती है। आलू -प्याज के भाव इस कदर चढ़े है कि प्रदेश की गरीब ही नहीं मध्यम वर्गी  भी प्याज का स्वाद चखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है।  आम आदमी को मिलने वाली सबसे सस्ती सब्जी उनकी पहुंच के बाहर हो चली है। भटे के भटा भाव भी आसमान पर है।  ऐसे में हरी सब्जी कैसे गरीब वर्ग तक मुहैया हो सकती है? इस दिशा में गहन मंथन कृषि वैज्ञानिक  रहे है। हाल्टीकल्चर विश्व विद्यालय प्रदेश में खुलता है तो कृषि उत्पादन में नए आयाम मिलेगे। यूं तो प्रदेश सकरार का हाल्टीकल्चर विभाग मौजद है लेकिन यह अत्याधुनिक तरीके से किसानों को बागवानी नहीं सिखा पा रहा है।
जबलपुर में प्रस्तावित
प्रदेश में हार्टीकल्चर विश्व विद्यालय खोलने के लिए जबलपुर अनुकूल समझा जा रहा है और इसे ही विवि के लिए प्रस्तावित किया गया हे इसकी मुख्य वजह यह है कि कृषि विश्व विद्यालय में पहले से ही हाल्टीकल्चर विभाग है। जबलपुर के आसपास प्रदेश सरकार की भी कई हाल्टीकल्चर नर्सरी मौजूद है।
ये है मुख्य जरूरत
विभाग को लगभ 300 हेक्टेयर उपजाऊ जमीन की जरूरत है जो जबलपुर के आसपास विकसित की जा रही है। प्रस्ताव के मुताबिक करीब 600 करोड़ का वजट विश्वि विद्यालय के लिए चाहिए।

प्रदेश में हाल्टीकल्चर विश्व विद्यालय खोलने के लिए सरकार ने प्रस्ताव तैयार करने कहा है जो तैयार किया जा रहा है। प्रस्ताव तैयार करने के बाद राज्य शासन को भेजा जाएग।
 राजेश पॉलीवाल
रजिस्टार जेएनकेवीवी
प्रदेश में हाल्टीकल्चर विश्व विद्यालय खोलने संबंधी प्रस्ताव तैयार करने पर  काफी काम किया जा चुका है। विवि खुलने से पूरे प्रदेश को इसका लाभ होगा।
डॉ.एसएस तोमर
रिटा. डायरेक्टर रिसर्च,जेएनकेवीवी 

डब्ल्यूएचओ के ड्रग डायरेक्शन की हो रही अनदेखी


   डब्ल्यूएचओ के ड्रग डायरेक्शन की हो रही अनदेखी

   डेंगू के इलाज के आड़ में मची निजी अस्पतालों की लूट
 
 दर्जनों बार नोटिस दिए गए अस्पतालों को , फिर भी नहीं रूक रही मनमानी

जबलपुर। भरतीपुर की एक बालिका को गंभीर हालत में स्टॉर हास्पिटल में पिछले दिनों भर्ती कराया गया। इस निजी अस्पताल द्वारा डेंगू टेस्ट किट के माध्यम से डेंगू का टेस्ट कराया गया और परिजनों को अस्पताल प्रबंधन ने डेंगू होने की पुष्टि की। इसके बाद अस्पताल प्रबंधन ने बेशकीमती एंटी बॉयटिक्स, जीवन रक्षक दवाइयां और न जाने कितनी दवाइयां मंगाई और लगाई किन्तु दो दिन बाद बालिका की मौत हो गई। परिजनों को 60 हजार का बिल थमा दिया गया। इस मामले को लेकर स्वास्थ्य विभाग ने संबंधित अस्पताल से जवाब तलब भी किया।
 प्रदेश में चौतरफा डेंगू का खौफ बना हुआ है शहरी क्षेत्र के साथ ही ग्रामीण एवं कस्बाई क्षेत्रों में डेंगू के मामले आ रहे है। जहां स्वास्थ्य विभाग द्वारा समस्त जिला अस्पतालों एवं अन्य शासकीय एवं मेडिकल कालेज में डेंगू के उपचार की समूचित व्यवस्था की गई है इधर डेंगू के खौफ का फायदा उठाकर निजी अस्पताल पीड़ित मरीज को डेंगू डर दिखाकर अनापशनाप दवाइयां देकर बेहिसाब बिल बना रहे है।
सूत्रों की माने तो निजी अस्पतालों को डेंगू में क्या इलाज देना है, क्या दवाइयां देने है, तत्संबंध में वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन की गाइड लाइन से अवगत कराया जा चुका है। स्वास्थ्य विभाग ने दर्जनों पत्र निजी अस्पतालों को भेज चुके है लेकिन जब भी उनसे पूछा जाए तो उनका कहना होता है इस संबंध में कोई निर्देश नहीं है।
मनमानी रिपोर्ट बना रहे है
सूत्रों का कहना है कि स्वास्थ्य विभाग की पकड़ निजी अस्पतालों में नहीं रह गई है। अनेक जिले के स्वास्थ्य अधिकारियों ने निर्देश जारी कर रखे है कि निजी स्वास्थ केन्द्र, निजी अस्पताल व नर्सिगहोम्स अपने मरीजों का डेंगू टेस्ट करते हैं और पॉजेटिव रिपोर्ट आती है तो उसकी तत्काल सूचना सरकारी विभाग को दिया जाए तथा उपयोग की गई टेस्ट किट भी जिला स्वास्थ्य केन्द्र में जमा  कराई जाए। किन्तु निजी अस्पताल के चिकित्सक जिन्हें डेंगू नहीं भी हैं, उनकी पॉजेटिव रिपोर्ट मरीज के परिजनो को देने से बाज नहीं आते है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा टेस्ट किट की मांग करने पर डिस्पोजल किए जाने की बात कही जाती है। जबलपुर के जिला स्वास्थ्य अधिकारी एमएम अग्रवाल ने बताया कि करीब एक दर्जन बार किट के लिए निजी अस्पतालों को नोटिस भेज गए है लेकिन वे पॉजेटिव मरीज की किट जमा नहीं करते है।

सिर्फ  पैरासिटामॉल दे
जिला मलेरिया अधिकारी अजय कुरील ने बताया कि डब्ल्यूएचओ के निर्देशानुसार डेंगू के मरीज को किसी तरह की एन्टी बॉयटिक्स दवाइयां अथवा दर्द निवारक दवाइयां यहां तक डिस्प्रीन भी नहीं दी जाए। डब्ल्यूएचओ की गाइड लाइन के मुताबिक पैरासिटामॉल ही मरीज को दी जाए तथा उसको ज्यादा से ज्यादा पानी दिया जाए। इसके लिए बोतल चढ़ाई जा सकती है अन्य दवाइयां मरीज के लिए खतरनाक हो सकती है।
बालिका को डेंगू नहंी निकला
जबलपुर में डेंगू से हुई एक मौत के मामले में जब स्वास्थ्य विभाग ने निजी अस्पताल के खिलाफ जांच पड़ताल शुरू की तो निजी अस्पताल ने यूं टर्न लेना पड़ा। कुल मिलाकर मामले में जो तथ्य सामने आए उसके मुताबिक कुछ माह पहले बालिका को मलेरिया हुआ था। इसके बाद उसकी पीलिया हो गया। बाद में फिर उसका स्वास्थ बिगड़ा तो निजी अस्पताल ने डेंगू बताकर गहन चिकित्सा शुरू की लेकिन जब स्वास्थ्य अमले ने बालिका को दी जाने वाली महंगी दवाइयां एवं  डेंगू के इलाज की गाइड लाइन को लेकर जवाब मांगा तो निजी अस्पताल ने बालिका को डेंगू होने से साफ इंकार कर दिया।
वर्जन
डेंगू के मरीज को एंटीबायटिक्स दवाइयां देने की जरूरत नहीं पड़ती है। पैरासिटॉमाल दिया जाता है। शरीर में पानी की मात्रा नियंत्रित रखा जाता है।
डॉ.दीपक बहरानी
अधीक्षक जबलपुर हास्पिटल
डेंगू होने की आशंका पर लोग शासकीय  अस्पताल में ही टेस्ट कराए  तथा यहीं उपचार कराए। निशुन्क उपचार की व्यवस्था की गई है।
अजय कुरील
मलेरिया अधिकारी
डेंगू की बीमारी होने पर अस्पताल में मरीज को पैरासिटॉमाल ही दिया जाता है। इसके अतिरिक्त जरूरत पढ़ने पर ब्लड प्लाजमा चढ़ाया जाता है।
 डॉ.के के सिंहा
सिविल सर्जन विक्टोरिया





घर के आंगन से बह रही थी खून की नाली: डायरी

घर के आंगन से बह रही थी खून की नाली: डायरी
  तकरीबन 20 साल लगातार क्राइम रिपोर्टिग की , अनेक हत्याकांड पर मौके ए वारदात पर पहुंचा लेकिन 12 अक्टूबर 2009 को जो हौलनाक  खूनी दृश्य देखा तो सकते में आ गया। सुबह- सुबह मोबाइल फोन पर किसी ने मुझे सूचना दी कि सैनिक सोसायटी में एक साथ 7 हत्याएं हो गई है। आसपास लोगों की भीड़ के बजाए पुलिस वालों की भीड़ थी। उनके बीच से होता हुआ जब उस घर के आंगन के पास पहुंचा तो देखा कि आंगन खून से रंगा हुआ है , घर के भीतर से बहती हुई खून की धार आंगन से होते हुए सड़क पर बह रही थी। यूं तो किसी को उस दौरान पुलिस वाले भीतर नहीं जाने दे रहे थे किन्तु मुझे जाने की इजात दे दी। अंदर कमरे में तीन लाश पड़ी हुई थी जो खून से सनी थी। इतना वीभत्स दृश्य था, अगले कमरे में झांका तो वहां भी दीवार ओर फर्स खून से रंगे थे, यूं लग रहा थी पूरे घर में खून की होली खेली गई। तत्कालीन एएसपी सत्येन्द्र शुक्ला से घटना स्थल पर बातचीत हुई तो उन्होंने बताया कि  परिवार के मखिया ने ही अपने बूढे माता पिता, अपनी पत्नी तथा अपने मासूम बच्चों की हत्या कर दी है। वह इस लिए परेशान था कि पड़ोसी से नाली का विवाद चल रहा था। इसी  नाली के चलते उसने खूनी खेल? बेहद मामूली कारण से सात हत्याएं?
इस हत्याकांड से जुड़ा एक और रहस्यम तथ्य है जिसको आज मै उजागर करना चाहता हूं जिस पड़ोसी से आरोपी का नाली के लिए विवाद चल रहा था, वह पड़ोसी मेरे प्रेस के एक आपरेटर का सुसर था। घटना के एक दिन पहले ही गढ़ा थाने में दोनों पक्षों ने एक दूसरे की शिकायत की थी और एक पड़ोसी पक्ष को पुलिस ने थाने में बैठाकर रखे हुए था, मुझसे इस मामले में हस्तक्षेप कर एक पक्ष को छुडवाने का प्रयास करने कहा गया लेकिन न जाने क्यू मेरी आत्मा इस मामले में हस्तक्षेप न करने कह रही थी, मैने कोई रूचि नहीं दिखाई? और दूसरे दिन खून की होली देखने मिली। शहर में अब भी जबकभी पड़ोसियों के बीच अक्सर होने वाले नाली के विवाद का मामला आता है तो सैनिक सोयायटी की ये घटना जेहन में ताजा हो जाती है। करीब दो साल बाद फिर मामला सामने आया हत्या के आरोपी  सुनील सेन को उम्र कैद की सजा सुनाई गई तथा सात हजार रूपयें का जुर्माना भी की गया।  जबलपुर के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश बी.पी.शुक्ला की अदालत में प्रकरण की सुनवाई हुई थी लेकिन दुख इस  बात का है कि सुनील सेन जिसका पूरा परिवार खत्म हो गया, वहीं इस मामले में आरोपी है । अब भी सोच में पड़ जाता हूं कि इस फैसले का क्या लाभ। जरूरत थी तो उसी रात गढ़ा पुलिस  मामूली विवाद में सुनील को न्याय देकर संतुष्ट कर देती तो शायद ये नरसंहार न होता। इस वारदात के बाद पड़ोसी पड़ोसी राजकुमार गौतम भी अपना मकान बेंच कर कहीं और रहने चले गए।
 12 अक्टूबर 2009 को सुबह सुनील का व्यवस्था के प्रति आक्रोश ने अपनी  मां  मुन्नी बाई उम्र 60 वर्ष, पत्नी ज्योति उम्र 33 वर्ष, बहन संगीता उम्र 22 वर्ष, पुत्र हिमांशु उर्फ हेप्पी 6 वर्ष, रूद्रांश उर्फ लक्की उम्र 3 वर्ष, भांजा राजुल उम्र 2 वर्ष को कुल्हाड़ी से  मौत के घात उतार दिया।  इस लोमहर्षक घटना के बाद आज दिनांक तक नालियों के विवाद पर सिर फूट रहे है।

Monday, 10 April 2017

प्रदेश में मांस उत्पादन दो गुना बढ़ा लेकिन गुणवत्ता का नहीं


 प्रदेश में मांस उत्पादन दो गुना
 बढ़ा लेकिन गुणवत्ता का नहीं

 * प्रदेश में घटिया मांस बिक रहा




जबलपुर। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के आने के बाद वहां बिकने वाले मांस की स्वच्छता एवं गुणवत्ता के उद्देश्य से 3 सौ से अधिक सलाटर हाउस बंद करा दिए गए है, मध्य प्रदेश में अवैध कत्लगाह जगह जगह स्थापित है तथा पशुवध के लिए एनजीटी के निर्देश का न केवल उल्लंघन किया जा रहा है,वरन ं मांस की गुणवत्ता भी बेहद घटिया है। इससे बीमारी फैलने का खतरा बना हुआ है। दरअसल मांस का कारोबार करने वाले मानव स्वास्थ्य के साथ लम्बे अर्से से  खिलवाड़ कर रहे हैं और उसकी अनदेखी हो रही है।
आश्चर्य जनक पहलू यह है पशु विभाग का दायित्व है कि वह कत्ल किए जाने वाले पशुओ का स्वास्थ्य परीक्षण करेगा। उसमें कोई घातक रोग तो नहीं है लेकिन आलम यह है कि संक्रमित और बीमार मवेशियों को काट दिया जाता है और इसका गोस्त खुलेआम बिना स्वच्छता के बेचा जा रहा है। पशु विभाग लायसेंसी स्लाटर हाउस में आने वाले पशुओं का परीक्षण मात्र करते हैं।
 घंटो पुराना मांस
 अमूमन कत्लगाह में मिलने वाला गोस्त घंटो पुराना हो जाता है। भीषण गर्मी के चलते इन दिनों मांस 18 से 48 घंटे के बीच  डिस्पोजल होने लगता है। मप्र में मांस का उत्पादन पिछले कुछ सालों में दो गुना बढ़ा है, जो प्रतिवर्ष 70 मीट्रिक टन के करीब है।  सबसे बड़ी बात यह है कि जबलपुर में पोल्टी का बड़ा कारोबार होता है और बीमार मुर्गियां जो अंडे देना बंद कर देती है, वहीं मांस विक्रेताओं को बेची जाती है। जबदस्त इंफैक्टेड मुर्गी की  बिक्री हो रही है, यहां तक कैंसर पीड़ित मुर्गी तक कटने पहुंच रही है।
जानकारों की माने तो जबलपुर में गुणवत्ता हीन मांस बिक रहा है जबकि भोपाल तथा इंदौर में भी मीट की गुणवत्ता मैनटेन की गई है।  मटन शॉप चलाने वालों द्वारा फुटपाथी कत्लखाने चलाए जा रहे है। उनके पास पशुओं और मुर्गियों को काटने का कोई लायसेंस नहीं है। जानकारी के अनुसर जबलपुर में एक मुर्गी का मांस बचने वाला दुकानदार प्रतिदिन 3-4 क्विंटल मांस तैयार करता है। ऐसी आधा दर्जन दुकानें जबलपुर में है। यहां अवशिष्ट नष्ट करने का उनके पास कोई साधन नहीं है। खून नालियों में बहाया जाता है।
 दिमाग में कीड़े का संक्रमण
 जानकार की माने तो संक्रमित मांस खाने से दीमाग में कीड़े पनपने की बीमारी तेजी से फैली है। इस बीमारी का मूलत: स्त्रोत प्राणी ही होता है। मवेशियों से ही सब्जियों में पहुंचता है। वहीं दूषित घास  खाने से जानवर फिर कृमि से संक्रमित होता है। यदि संक्रमित जानवर का मांस अच्छी तरह से नहीं पक पाता है तो बीमारी का खतरा ज्यादा होता है। गौवंश ,भैस तथा अन्य मवेशी भी इसी तरह के संक्रमण के शिकार होते है। इनका मांस खाने से क्रमि से लीवर तथा फैफड़े व ब्रेन सिस्ट तक की बीमारी होती है।
क्या है नियम
नियम यह है कि किसी भी पशु को मारने के पहले उसका मेडिकल चैकअप कराया जाना  जरूरी है। पशुओं को मारने के लिए भी आवश्यक शर्तों का पालन नहीं होता। मवेशी के संबंध में पूरा लेखा-जोखा, जिसमें उसकी उम्र, वजन, फिटनेस संबंधी व्यौरा आदि होना चाहिए। मांस का परिवहन करने के लिए डिब्बाबंद एसी वाहन होना जरूरी है।

 70 प्रतिशत बीमारियां पशुओं से
 मनुष्यों में आने वाली 70 प्रतिशत बीमारियां जानवरों से आती है। बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू तथा एन्थ्रैक्स जैसी जानलेवा एवं संक्रमण वाली बीमारी ऐसी है कि इससे एक पशु भी यदि संक्रमण का शिकार होता है तो उसकी सूचना देनी चाहिए । मांस की स्वच्छता बेहद जरूरी है तथा उसे अच्छी तरह पकाने के बाद ही खाना चाहिए।
डॉ. प्रयाग दत्त जुयाल
 कुलपति पशु चिकित्सा विश्व विद्यालय 

‘हिन्दुस्तान में मुझे कहीं नजर नहीं आई असहिष्णुता ’










‘हिन्दुस्तान में मुझे कहीं नजर
नहीं आई असहिष्णुता ’
* शायर राहत इंदौरी से पीपुल्स की बातचीत

जबलपुर। अपने एक अलग अंदाज की शेरो-शायरी के लिए हिन्दुस्तान ही नहीं दुनिया में विख्यात मशहूर शायर डॉ. राहत इंदौरी का जबलपुर आगमन हुआ। वे यहां जैन समाज द्वारा कमानिया गेट में आयोजित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में शामिल हुए। उन्होंने पीपुल्स-समाचार पत्र से बातचीत करते हुए शायरी एवं कविताओं के संबंध में बेबाक चर्चा की, जिसके अंश ये है-
* उत्तर प्रदेश में योगी सरकार एवं मोदी सरकार के संबंध में क्या कहेंगे?
**  माफी चाहता हूं, राजनीति और सियासत को लेकर मंै कुछ भी नहीं कहना चाहूंगा, किन्तु इतना जानता हूं कि मेरा हिन्दुस्तान बेहद खूबसूरत है और यहां के लोगों में मोहब्बत बसी हुई है। मुझे तो मीडिया और राजनेताओं के बयान के बाद पता चला कि सहिष्णुता और असहिष्णुता भी कुछ चीज होती। इस देश में कभी असहिष्णुता की कोई जगह नहीं रही और न रहेगी। इस बात का उदाहरण यह है कि जैन समाज के कवि सम्मेलन में उर्दु शायर यानी मुझे बुलाया गया है।  जो प्रेम- मोहब्बत थी, वह अब भी कायम है,इसे हम यूं बयां कर सकते हैं-
ॅ‘हम जान के दुश्मन को अपनी जान कहते है
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिन्दुस्तान कहते है’
* फिल्म इंडस्ट्री में आपके शायरी ली जाती है, फिल्मों में गीतों के गिरते स्तर को लेकर आप क्या कहेंगे?
**यह सही है कि कविताएं-शायरी की फिल्मी दुनिया में गिरावट आई है लेकिन अब भी लोग फिल्मी संगीत के रूप में पुराने गीतों को ज्यादा पसंद कर रहे है चाहे वह युवा पीढी हो या पुरानी पीढ़ी। फिल्मी संगीत में कविता -शायरी जख्मी हो सकती है लेकिन मर नहीं सकती है।
* आप के कोई गीत या गजल फिल्म में आ रहे है क्या?
** जल्द ही फिल्म बेगम जान रिलीज होने वाली है जिसमें लिखा मेरा गीत लोगों को सुनने के लिए मिलेगा। फिल्म एवं गीत रिलीज होने के पहले मैं इस सार्वजनिक नहीं कर सकता हूं। गुलजार के साथ एक कश्मीरी पंडित पर अधारित एक फिल्म बन रही है जिसमें कश्मीरी पंडित शायर है, इस फिल्म में काफी शायरी तथा गजल आदि शामिल की जाएगी। इस प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है।
* मुशायरों का अब दौर खत्म हो रहा है, मुशायरा पसंद करने वाले भी सीमित लोग है, इससे उर्दु साहित्य पर क्या असर पड़ेगा?
** मुशायरों की शुरूआत दिल्ली दरबार से हुई थी। दिल्ली से यह हिन्दुस्तान के दूसरे शहरों एवं रिसायत में पहुंचा एवं उसकी लोकप्रियता बढ़ी। यहां तक यह फैल कर दुनिया के विभिन्न मुल्कों तक पहुंचा है, समय बदलता है,  मुशायरा की जगह कवि सम्मेलन, अन्य गीत गजल मंच व अन्य आयोजनों ने ले ली लेकिन इसका असर उर्दु पर नहीं पड़ा। रही उर्दु की बात तो आजादी के पहले जो उर्दु प्रचलन में थी, उसमें तुर्की, अरबी, फारसी सहित पश्चिम एशिया की विभिन्न भाषाएं शमिल थी, ये उर्दु पाकिस्तान चली गई है। अब जो उर्दु है, उसे किसी भाषा से नहीं बांधा जा सकती है। यह आम आदमी की भाषा है, इसमें गुजराती, मराठी और पंजाबी सहित कई बोलियों के शब्द शामिल है, किसी मजहब और प्रांत की भाषा नहीं, उर्दु हिन्दुस्तान की जुवÞान बन गई है।
* सोशल मीडिया में शेरो-शायरियों का प्रचलन बढ़ा है, इससे क्या शेर-गजल के लिए नया मंच सामने आया है?
** सोशल मीडिया में काफी शेरो-शायरी चल रही है लेकिन उसकी हालत वैसी है जैसे ट्रकों के पीछे शेरो-शायरी लिखी जाती है। इसमें साहित्य का फायदा नहीं नुकसान ज्यादा हो रहा है। अब भी लोग अच्छा पढ़ना और लिखना चाहते है, युवा पीढ़ी इसमें रूचि रखती है और एक नई पीढ़ी गीत-गजल को पसंद करने वाली तैयार हो रही है। 

Saturday, 4 February 2017

गधे खाएंगे चमनप्राश..गाय लेगी हर्बल टॉनिक


 गधे खाएंगे चमनप्राश..गाय लेगी हर्बल टॉनिक

* अब  मवेशियों के उपचार में एलोपैथी दवाइयों से तौबा
दीपक परोहा
9424514521

 जबलपुर। आयुर्वेद एवं हर्बल टॉनिक्स अमूमन एक समय में आम आदमी की पहुंच के बाहर थी जिसको लेकर एक कहावत भी है क्या गधे चमनप्राश खाएंगे? जी हां अब कुछ ऐसी ही स्थिति बन रही है कि गधों का भी चमनप्राश खाने को मिलेगा और गाय -बैल तक हर्बल टॉनिक लेंगे,  ये  आश्चर्य जनक नहीं है। नाना जी देशमुख कृषि विश्व विद्यालय में मवेशियों के लिए हर्बल टॉनिक एवं मेडीशन निर्माण का प्रोजेक्ट शुरू हो गया है। गाय, बैल , घोड़ा,खच्चर, मुर्गी और बकरी तक के लिए दवाइयों का उत्पादन होगा।
  दरअसल एलोपैथी दवाइयां मानव स्वास्थ पर प्रतिकूल असर डालती है, इसके साइड इफैक्ट भी कई बार बेहद खतरनाक और घातक होते है। इसके चलते सामान्य स्वास्थ वर्द्धन  के लिए लोग  हर्बल औषधी का इस्तेमाल कर रहे है। अनुसंधान में यह सामने आया है कि इंसान की तरह मवेशियों एवं जानवारों को भी एलोपैथी दवाइयों के साइड इफैक्ट होते है। उनके दूध उत्पादन सहित अन्य क्षमताओं में गिरावट आती है। इसको ध्यान में रखते हुए नानाजी देशमुख  पशु चिकित्सा विश्व विद्यालय में जानवरों के लिए भी हर्बल मेडिशन तैयार करने की दिशा में कार्य शुरू किया  गया है।
 सस्ते हर्बल प्रोडक्ट लाएंगे
 नाना जी देश मुख पशु चिकित्सा विश्व विद्यालय गाय बैल सहित अन्य पालतू मवेशियों के लिए सस्ते हार्बल प्रोडक्ट एवं हर्बल मेडिशन लांच करने जा रहा है। इस प्रोजेक्ट की यहां शुरूआत कर दी गई है, मवेशियों में इसका असर और फायदे पर अनुसंधान कर लिया गया है। इसके बाद  एक कंपनी के साथ एमओयू भी  साइन किया गया है।  इस योजना के तहत विश्व विद्यालय सस्ता कच्चा माल उत्पादन करने के लिए अपनी जमीन में औषधी प्लांट की खेती करने जा रहा है। इसमें अश्व गंधा, सतावर, सफेद मूसली, हल्दी, तुलसी सहित अनेक तरह की औषधी प्लांट की खेती की जाएगी।
अनेक फार्मूले तैयार
जानकारी के अनुसार मवेशियों में होने वाली बीमारियों, पालतू गाय भैंस के  दूध की शक्ति एवं गुणवत्ता बढ़ाने के लिए औषधीय प्लांट से दवा एवं टॉनिक तैयार करने के कई फार्मूले पशु चिकित्सा विश्व विद्यालय ने इजाद कर लिए है। इसी तरह पॉल्ट्री फार्म के लिए ऐसे हर्बल दाने तैयार किए गए है जिससे खाने से मुर्गी जो अंडा देगा उसमें कोलस्ट्राल की मात्रा कम होगी। अंडे और अधिक शक्ति वर्धक होंगे। हर्बल मेडिशन के लिए विश्व विद्यालय द्वारा तैयार फार्मूला फिलहाल गुप्त रखा गया है। दरअसल विश्व विद्यालय अपने फार्मूले को पेटेन्ट कराना चाहता है।
उत्पादन का प्रस्ताव भेजा
 वानस्पतिक औषधी पौधे लगाने वाटिका तैयार करने का काम शुरू हो गया है अगले वर्ष तक विश्व विद्यालय मवेशियों के लिए कई तरह की दवाइयां तैयार कर लेगा तथा इससे मवेशियों को उपचार भी प्रारंभ कर दिया जाएगा। शासन को प्रस्ताव तैयार करके भी भेजा जा चुका है।
वर्जन***
 मवेशियों को होने वाली कई तरह की बीमारी के उपचार के लिए वनस्पतियों से दवाइयां हम तैयार करने जा रहे है। शक्तिवर्धक दवाइयों से मवेशियों के दुग्ध उत्पादन भी बढ़ेगा। पोल्ट्री एवं गोटरी के लिए मेडिशन तैयार की जाएगी।  इन औषधी के बिक्री से विश्व विद्यालय की आय में भी इजाफा होगा।
प्रयाग दत्त जुयाल
 कुलपति पशु चिकित्सा विश्व विद्यालय जबलपुर। 

खेत में खड़े होने पर मोबाइल से मिलेगी सॉइल रिपोर्ट


सॉइल मैपिंग एप जल्द ही होगा लांच
* खेत में खड़े होने पर मोबाइल से मिलेगी सॉइल  रिपोर्ट
 * मैपिंग का काम अभी बाकी
 जबलपुर। खेत में खड़े किसान, अपने घर और खलिहान में मौजूद किसान को अपने मोबाइल में सॉइल रिपोर्ट एक बटन दबाने पर मिल जाए। इसके लिए कृषि विश्व विद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा एप विकसित करने का काम किया जा रहा है, जो जल्द ही पूरा होने की संभावना है। इस एप को तैयार करने के लिए आवश्यक डाटा एवं तकनीक का एक हिस्सा तो जुटा लिया गया है लेकिन मैपिंग के लिए महत्वपूर्ण तकनीक में अभी कुछ समय लगेगा।
कृषि विश्व विद्यालय के वैज्ञानिकों की माने तो इस तकनीक के विकसित होने पर जल्द ही इसको प्रदेश सरकार द्वारा लांच किया जाएगा। इस प्रोजेक्ट पर कार्य करने के लिए शासन से राशि प्राप्त हो रही है। यह एप करीब दो माह पहले ही पूरी तरह बन कर तैयार हो जाना था लेकिन तकनीक समस्याओं के कारण इसमें अभी आधा काम बाकी है। कृषि विश्व विद्यालय एप को जल्द पूरा करने की कोशिश में लगा है।
 जीपीएस से जुड़ा
 इस एप के माध्यम से यदि किसान अपने खेत में खड़ा होकर एप का इस्तेमाल करता है तो गुगल नक्शे के आधार पर एप में जमीन की पहचान हो जाएगी और उस जमीन की सॉइल रिपोर्ट किसान के हाथ में होगी।  कृषि वैज्ञानिक चाहते है कि किसान एप में अपना जिला ,ब्लाक एवं खसरा नम्बर डाले तो वह जहां भी मौजूद होगा उसको अपनी जमीन की सॉइल रिपोर्ट मिल जाएगी। इस   रिपोर्ट के आधार पर वह अपनी खेती कर सकता है। लेकिन इस कार्य में सबसे बड़ी बाधा राजस्व नक्शे है। कृषि विश्व विद्यालय राजस्व नक्शे पूरी तरह से प्राप्त नहीं हुए है जिसके कारण अभी खसरा नम्बर डालने पर यह एप स्वाइल रिपोर्ट नहंी दे पा रहा है। इस एप की तकनीक विकसित करने के बाद इसको लांच किया जाएगा। एक बार एप लांच होने पर शीघ्र ही विभिन्न जिलों में कृषि विभाग से विभिन्न क्षेत्र की सॉइल  रिपोर्ट प्राप्त की जाएगी।
 अपडेट भी होगी रिपोर्ट
 सॉइल टेस्ट की रिपोर्ट समय समय पर अपडेट भी की जाएगी। एक दो साल में जमीन की मिट्टी में आने वाले बदलाव भी इस एप में दर्ज हो जाएगे।  जवाहर लाल नेहरू विवि जबलपुर के वैज्ञानिकों की मंशा है कि किसान अपनी जमीन के हिसाब से खेती करे। किस जमीन मेें कौन सी फसल की पैदावार अच्छी होगी उसको ज्ञात हो जाए। किसान को मिट्टी  (सॉइल) टेस्ट के लिए भटकना नहीं पड़ेगा।  किसान अपनी खेत की मिट्टी का परीक्षण घर बैठे कर सकता है लेकिन इसमें कुछ वक्त लगेगा।
 जबलपुर में एक ब्लाक
 में हुए सघन परीक्षण

सॉइल मैप तैयार करने के लिए कृषि विश्व विद्यालय के वैज्ञानिकों न एक ब्लाक का खसरा नम्बर के आधार पर मृदा परीक्षण कर उसकी रिपोर्ट तैयार कर चुके है। भविष्य की योजना है कि हर किसान के अपने खेत की रिपोर्ट उसे एप पर उलब्ध हो सके। जवाहर लाल नेहरू विवि जबलपुर के कृषि विशेषज्ञों ने इसके लिये जीपीएस के जरिए कैप विकसित कर लिया है लेकिन इसका अपडेट करना शेष है।



 क्या होगा टेस्ट में
 इस एप में मिट्टी की जो रिपोर्ट प्राप्त होगी, उसमें 11 पाइंटों कीजानकरी होगी। इसमें मिट्टी में मौजूद पोषकतत्व पोटाश, नाइट्रोजन ( यूरिया), फास्फोरस सहित माइक्रो न्यूट्रेन्ट की जानकारी होगी। इसके अतिरिक्त जमीन की लवणीयता, क्षारीयता तथा अम्लीयता  की जानकारी भी होगी।  जमीन की पीएम वैल्यू की जानकारी एप में मिलेगी। मिटÞटी के प्रकार के हिसाब से उजप के संबंध में भी जानकारी दी जाएगी। ।

वर्जन

सॉइल मैपिंग का एप तैयार करने का काम तेजी से चल रहा है। हमने आधे से अधिक काम कर लिया। उम्मीद है कि जल्द ही एप लॉज कर लिया जाएगा। फिलहाल खसरा नम्बर प्राप्त करने मेंवक्त लग रहा है।
विजय सिंह तोमर
कुलपति कृषि विश्व विद्यालय 

बदनिन से विदेशी पर्यटक तक करवा रहे गोदना


 बदनिन से विदेशी पर्यटक तक करवा रहे गोदना
 * अनाज के बदले अब रूपए मांगे जाने लगे


 जबलपुर। बैगा जनजाति में गुदना बनाने वाली महिलाएं जिन्हें बदनिन कहा जाता है अब उनके पास पर्यटकों की भीड़ रहती है। गुदना आम टेटू बनाने की तुलना में भारी चुभव एवं दर्द पहुंचाने वाला होता है। इस गोदना की स्याही भी बदनिन ही तैयार करती हैं। पीड़ियों से काम करने वाली ये बदनिन गुदना की स्याही बनाने का तरीका अपने परिवार के ही सदस्यों को सिखाते हैं।
 समीपवर्ती आदिवासी बाहुल्य बैगा चक के हर गांव में एक दो बदनिन मौजूद होती है। दरअसल बैगा संस्कृति का एक हिस्सा गुदना है। हरेक आदिवासी महिलाओं के श्रंगार में गुदना प्रमुख होता है। जब लड़की जब 7-8  वर्ष की होती है तभी उसके माता पिता उसकी खूबसूरती लिए गुदना करते हैं। युवतियों में तो जबदस्त शौक होता है।
 बैगा जनजाति पर गहन अध्ययन करने वाले डॉ.वी चौरसिया ने बताया कि डिंडौरी जिले के आदिवासी इलाकों में गोदना परम्परा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। गोदने के आधार पर बैगा आदिवासी की उम्र व समाज की पहचान की जा सकती है।
आय का जरिया बना
 गोदना गोदने वाली बदनिन पहले अनाज के बदले ये महिला बैगाओं के शरीर पर गोदना बना देती थीं किन्तु  बैगा चक में कान्हा होकर आने वाले पर्यटकों के कारण वे भी अब गोदना के बदले रूपए लेने लगी हैं। देशी विदेशी पर्यटक उनसे गोदना बनवाते है। पर्यटकों से 50 से 100 रूपए तक मिल जाते है जबकि बैगा महिलाओं से अब भी उन्हें विशेष आमदनी नहीं हो पाती है।
ऐसे तैयार होती है स्याही
 गोदना बनाने वाली विशेष स्याही काले तिलों को अच्छी तरह भून कर कर उसका लौंदा बनाकर जलाया जाता है। जलने के बाद  प्राप्त स्याही को एक प्रकार की गोंद में मिलाकर पूरी तैयार कर ली जाती है। इसमें भिलवां रस, मालवन वृक्ष का रस या रामतिल में फेंट कर इस्तेमाल किया जाता है। गोदना बनाने के लिए  सुई में डुबो डिबो कर बदनिन विशेष प्रकार की आकृति एवं चिन्ह बनाकर गोदना करती है।
विदेशी संक्रमण का शिकार
 गोदना के दौरान होने वाले जख्म में अमूमन बैगा महिलाओं को इंफैक्शन नहीं होता है लेकिन पर्यटक अधिकांश इंफैक्शन का शिकार हो रहे है। हाल ही में पर्यटक को गोदना के बाद इंफैक्शन हो गया। इस पर गोदना करने वाली महिला ने ही जड़ी-बूटी से इलाज किया।
राजा से बचाने हुई प्रथा प्रारंभ
 बैगा में चलने वाली कथा के मुताबिक बैगा राजा कामुक प्रवृति का था। वह जिस लड़की का उपभोग करता था, उसके शरीर में गोदना की सुईसे निशान बना दिया करता था। राजा के चंगुल से बचने बैगाओं ने अपनी लड़कियों के शरीर में गोदना का निशान बनाने लगे। ऐसी भी धारणा है कि गोदना से चर्म रोग तथा गठिया बात जैसी बीमारी नहीं होती है।