Wednesday, 6 January 2016

100 करोड़ से अधिक की हुई लकड़ी चोरी


-फर्जी टीपी मामले में खुल रहे नित नए राज
-राजस्व विभाग के अधिकारियों की साठगांठ में भी हुई जंगल कटाई
-अब तक वन विभाग के 8 अधिकारी-कर्मचारियों सहित 18 गिरफ्तार
जबलपुर। बालाघाट में मात्र दो साल के दौरान वन विभाग के अमले, राजनेता, टिम्बर व्यापारियों और राजस्व अमले की साठगांठ में 100 करोड़ से अधिक की लकड़ी चोरी की गई। फर्जी टीपी की जांच के वन माफिया के किए गए फर्जीवाड़े और वन के कत्लेआम के मामले लगातार परत-दर-परत खुलते जा रहे हैं। इस मामले में आरोपियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। बालाघाट पुलिस ने टीपी घोटाले में मामले में दो आरोपियों को और पकड़ा है, जिसमें पकड़े गए आरोपियों की संख्या 18 पर पहुंच गई है। इसमें एक रेंजर, दो डिप्टी रेंजर तथा 5 कर्मी गिरफ्तार हो चुके है, जो फिलहाल जेल में है।
पुलिस अधीक्षक बालाघाट गौरव तिवारी ने बताया कि इस प्रकरण में अब 23 आरोपी नामजद हो गए हैं। दो रेंजर तथा एक टिम्बर व्यापारी की सरगर्मी से तलाश की जा रही है। उनके पकडेÞ जाने पर वनोपज चोरी के मामले में और नए रहस्य खुल सकते हैं।
चोरी की लकड़ी के लिए
पुलिस ने इस मामले के लिए विशेष जांच दल गठित किया है, जिसने सैकड़ों की संख्या में जहां टीपी जब्त की थी। वहीं छत्तीसगढ़ में जगदलपुर से चोरी की लकड़ी खरीद कर खुर्दबुर्द करने वाले एक बड़े व्यापारी को पकड़ा था। उसके बाद से लगातार आरोपियों के पकड़े जाने का सिलसिला अब तक जारी है।
25 मामले जंगल कटाई के
वन माफिया इस टीपी माध्यम से जंगल से काटे गए हरे-भरे पेड़ों की तस्करी करते रहे हैं और वन अमला मूकदर्शक बनकर उसमें हिस्सेदारी करता रहा है। बीते 18 महीने के दरमियान 5000 पेड़ों की कटाई का नया मामला सामने आया है। इसमें पुलिस ने 25 प्रकरण दर्ज कर चुकी है। इस मामले की जांच भी प्रारंभ कर दी गई है।
पुलिस कार्रवाई से हड़कंप
टीपी घोटाले के साथ वनोपज चोरी का मामला अब वन कटाई के मामले में तब्दील होने से वन विभाग के साथ राजस्व विभाग में भी हड़कंप मच गया है। पुलिस सूत्रों का कहना है कि वन माफिया ने सिर्फ वन क्षेत्र ही के जंगल नहीं, बल्कि राजस्व क्षेत्र के जंगलों में भी धड़ल्ले से पेड़ काटे हैं। इस तरह मात्र दो साल के अंतराल में 100 करोड़ से अधिक के पेड़ कटे हैं।
ये सिलसिला 4 साल चला
सूत्रों का कहना है कि पुलिस के पास मात्र दो साल तक पेड़ काटे जाने के सबूत एवं जानकारी हाथ लगी है, जबकि वन विभाग एवं राजस्व विभाग की साठगांठ से अवैध कारोबार चार साल तक लगातार चला है। यदि मामले की जांच गंभीरता एवं पूरी इमानदारी से चली तो दो सौ करोड़ तक की लकड़ी चोरी सामने आती है तो आश्चर्य नहीं होगा।
राजस्व विभाग भी घेरे में
लकड़ी कटाई की जांच-पड़ताल शुरू होने से राजस्व विभाग के कई नायब तहसीलदार एवं तहसीलदार एवं आरआई जांच के दायरे में आने के साथ ही मामले में आरोपी बनाए जा सकते है। इस जांच के शुरू होने से वन विभाग के साथ राजस्व विभाग में भी हड़कंप मचा है। अधिकारी अपने आकाओं से मामले को दबाने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा रहे है तथा पुलिस पर बेगुनाहों को फंसाने का आरोप लगाकर मामले को प्रभावित करने भी कोशिशें शुरू हो गई हैं।
चालक गिरफ्तार
वन उपज चोरी के मामले में पुलिस ने एक आरोपी के ड्राइवर पीरू खान और संतोष केलकर को गिरफ्तार किया है। उनसे सघन पूछताछ की जा रही है। आरोपी राकेश की चोरी की वनोपज को ट्रक से सप्लाई करते थे। इनसे पुलिस लकड़ी कहां-कहां खुदबुर्द की गई, इसकी जानकारी ले रही है।
...वर्जन...
पुलिस टीपी घोटाले के साथ अब पेड़ों की अवैध कटाई के मामले की भी जांच शुरू कर दी है। जल्द ही प्रकरण में कुछ नए आरोपी सामने आ सकते है।
Ñ-गौरव तिवारी, एसपी, बालाघाट
होमगार्ड को अन्य विभागों की नौकरी में 30 प्रतिशत आरक्षण
डीजीपी मैथिलीशरण गुप्त ने प्लाटून कमांडर की दीक्षांत में ली सलामी
जबलपुर। डायरेक्टर जनरल होमगार्ड एवं सिविल डिफेंस मैथिलीशरण गुप्त ने होमगार्ड प्रशिक्षण केन्द्र मंगेली में प्लाटून कमांडर के 24वें दीक्षांत समारोह में कहा कि शासन ने हमारे प्रस्ताव को मंजूर कर लिया है, अब अन्य विभागों में स्थई नौकरी की भर्ती मे होमगार्ड के जवानों को 30 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा।
उन्होंने उपस्थित होमगार्ड एवं आमजन को संबोधित करते हुए कहा कि इस संस्थान से उच्च स्तरीय प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद सभी परिवीक्षाधीन प्लाटून कमांडर सक्रिय सेवा के क्षेत्र
में कदम रख रहे हैं। आशा की जा रही है कि सभी जवान गौरवशाली समाज के लिए समर्पित होकर अपनी सेवा करें।
उन्होंने कहा कि होमगार्ड का भविष्य अन्य विभागों की तुलना में उज्ज्वल रहे। आज होमगार्ड प्रभावी ने जीवन रक्षक के रूप में समाज में सामने आया है। जहां कहीं भी प्राकृतिक आपदाएं आई हैं, वहां होमगार्ड ने अहम भूमिका का निर्वाह किया है। हम दावे से कह सकते हैं कि एसडीआरएफ के जवान न केवल लोगों की जान बचाएंगे, बल्कि इमरजेंसी आॅपरेशन भी साथ में चलाएंगे। उन्होंने कहा कि हम यदि किसी की जान बचा सकते हैं तो यह हमारे लिए सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।
उन्होंने बताया कि होमगार्ड भोपाल में ऐसी ढांचा तैयार कर रहा है कि
इन्टनेशनल सेटेलाइट के माध्यम से आपदा के समय कार्य कर सकेगा। हम सभी सिविल डिफेंस वॉलेंटियर को होमगार्ड से जोड़ने का कार्य कर रहे है। उन्होंने बताया कि केन्द्रीय प्रशिक्षण संस्थान मंगेली में 83 करोड़ की लागत से संस्थान को विकसित किया जाना है, जिसकी डीपीआर शासन के पास भेजी गई है।
बैंड को पुरस्कृत किया
दीक्षांत समारोह के दौरान सीटीआई के बैंड के उत्कृष्ट प्रदर्शन की सराहना करे हुए 10 हजार रुपए नकद पुरस्कार की घोषणा भी की। उन्होंने कम समय में बेहतर बैंड तैयार करने की भी प्रशंसा की। उन्होंने डिवीजन स्तर पर भी बैंड दल तैयार करने के लिए कहा।
34 प्रशिक्षार्थी पास आउट
केन्द्रीय प्रशिक्षण संस्थान होमगार्ड मंगेली में 24वें दीक्षांत समारोह में 34 परिवीक्षाधीन प्लाटून कमांडर पास आउट हुए। इस अवसर पर शानदार परेड का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डीजीपी होमगार्ड मैथिलीशरण गुप्त एवं श्रीमती गुप्त थे। इस अवसर पर आईजी होमगार्ड केएस राठौर, डीआईजी होमगार्ड विशद तिवारी, कलेक्टर शिवनारायण रूपला, एसपी डॉ. आशीष, सीनियर स्टाफ अपूर्व शुक्ला, श्रीमती प्रीति बाला सिंह, महेन्द्र पन्द्रे, टीआर चौहान, राजेश जैन, आशीष खरे तथा अन्य उपस्थित थे। 

नसबंदी के बाद भी हो गए जुड़वां बच्चे


-बालाघाट के किरनापुर ब्लॉक की पीएचसी का मामला, आदिवासी परिवार हुआ शिकार
जबलपुर। बड़वानी के आंख फुड़वा कांड की सुर्खियों के बीच समीपवर्ती बालाघाट जिले के किरनापुर-किन्ही स्थित उप स्वास्थ्य केन्द्र में लापरवाही का एक और मामला सामने आया है। इस मामले में गजब का कमाल हुआ कि नसबंदी के बाद भी एक आदिवासी महिला ने जुड़वां बच्चों को जन्म दे दिया। गरीबी के बीच किसी तरह जीवन यापन करने वाले इस परिवार पर दो बच्चों का यह जन्म जहां एक बड़ी मुसीबत की तरह बनकर टूटा है वहीं जिम्मेदार इसे सामान्य घटना मान रहे हैं।
बताया जाता है कि किरनापुर अंतर्गत ग्राम पंचायत किन्ही निवासी मनोज उइके के पहले से दो बच्चे हैं। मनोज ने अपनी पत्नी पत्नी सीता बाई का एक साल पहले नसबंदी आॅपरेशन कराया था। साल भर बीतने के बाद सीता बाई उइके फिर से गर्भवती हो गई। इसे आदिवासी परिवार ने ईश्वरीय लीला मान कर स्वीकार कर लिया। पिछले दिनों सीता बाई को प्रसव पीड़ा शुरू हुई तो उसे उप स्वास्थ्य केन्द्र लाया गया, जहां उसकी डिलीवरी कराई गई। जच्चा और बच्चा दोनों ही स्वस्थ हैं पर आदिवासी परिवार इसे लेकर बेहद परेशान है।
इस संबंध में बीएमओ किरनापुर डॉ. एनआर रंगारे ने बताया कि किसी
कारण से नसबंदी आॅपरेशन फेल हो गया। मनोज उईके ने पत्नी के गर्भवती होने की सूचना आंगनबाड़ी एवं उप स्वास्थ्य केन्द्र में दर्ज कराई थी। वह गर्भपात नहीं कराना चाहता था। इसलिए उसे सरकारी दर से मुआवजा देने की तैयारी की जा रही है।
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जुड़वां होने पर भी उतनी ही क्षतिपूर्ति
नसबंदी कराने के पीछे व्यक्ति का मुख्य उद्देश्य रहता है कि उसको दो बच्चे होने के शासकीय लाभ मिले तथा उसको अनचाहे बच्चों की परवरिश में अनावश्यक खर्च न करना पड़े, लेकिन ऐसे मामले में मात्र 30 हजार रुपए क्षतिपूर्ति दी जाती है, जबकि पालक को बच्चे पालने में बहुत बड़ा खर्च आता है। वहीं शासकीय योजनाओं के लाभ से भी वे वंचित होते हैं। चिकित्सीय सूत्रों का कहना है कि क्षतिपूर्ति सिर्फ आॅपरेशन फेल होने का दिया जाता है। जुड़वां बच्चा होने पर भी एक बच्चे के हिसाब से 30 हजार क्षतिपूर्ति दी जाती है। पूर्व में ऐसे मामलों के लिए शासन बीमा कराया करती थी, लेकिन अब बीमा भी बंद कर दिया गया है।

...वर्जन...
मैंने पत्नी की नसबंदी कराई थी। इसके बावजूद पत्नी गर्भवती हो गई तो गांव वालों के समझाने पर इसको ईश्वर की मर्जी मान लिया। बाद में जुड़वा बच्चे हुए तो लगता है कि अब इनकी परवरिश निश्चित तौर पर एक बड़ी मुश्किल से कम नहीं है। नवजात दोनों बच्चे स्वस्थ हैं। शासन से मुआवजा के लिए आवेदन किया है। डॉक्टर ने क्षतिपूर्ति दिलवाने का आश्वासन दिया है।
मनोज उइके,
जुड़वां बच्चों का पिता
फेल हो जाते हैं आॅपरेशन
नसबंदी आॅपरेशन कई बार फेल हो जाते हैं। इसके लिए नसबंदी कराने वाली महिला को 30 हजार रुपए क्षतिपूर्ति देने का प्रावधान है।  गर्भधारण होने के बाद प्रकरण तैयार कर प्रमाण पत्र सहित शासन को भेज दिया गया है। मुआवजा राशि महिला को दिलाई जाएगी।
डॉ. केके खोसला
सीएमएचओ, बालाघाट

बंधुआ मजदूर बनाया गया 5 नाबालिगों को

 
 * वारासिवनी से मानव तस्करी का मामला, फिलहाल अपहरण का मामला दर्ज
-कर्नाटक से मुक्त कराया पुलिस ने नाबालिग सहित 10 श्रमिकों को
जबलपुर। समीपवर्ती जिला बालाघाट के वारासिवनी थाना क्षेत्र के ग्राम
गर्रा के पांच नाबालिग तथा पांच युवकों को कर्नाटक में बंधुआ मजदूर बना लिया गया है। बालाघाट पुलिस ने दबिश देकर पांच नाबालिगों सहित 10 लोगों को मुक्त कराकर बालाघाट लेकर आ रही है। इनको बहला-फुसला कर अपहृत करने वाले व्यक्ति के खिलाफ पुलिस ने फिलहाल अपहरण का मामला दर्ज किया है  तथा उसकी सरगर्मी से तलाश कर रही है। आरोपी की गिरफ्तारी पर 30 हजार रुपए का इनाम आईजी बालाघाट ने घोषित किया है।
बालाघाट एसपी गौरव तिवारी ने बताया कि ग्राम धापेवाड़ा निवासी विजय नगपुरे रोजगार दिलाने तथा अच्छी कमाई का झांसा देकर गर्रा मशीनटोला के लगभग 10 युवकों को अपने साथ कर्नाटक ले गया था। इसमें 5 नाबालिग भी शामिल थे। वहां वह श्रमिकों को गन्ने की खेत की कटाई मे लगाने के बाद वहां से रुपए लेकर चम्पत हो गया था। कर्नाटक में बंधुआ मजदूर बने श्रमिकों ने गांव में खबर की तो नाबालिगों के परिजनों ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी। इसके बाद एक पुलिस दल को बंधक बनाए नाबालिग एवं युवकों को मुक्त कराने कर्नाटक भेजा गया था। कर्नाटक में बंधुआ मजदूर की तरह रह रहे श्रमिकों को मुक्त करा लिया गया तथा उन्हें लेकर टीम बालाघाट आ रही है। आरोपी आरोपी विजय नगपुरे के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज किया गया है। पुलिस ने अपहरण  के शिकार हुए नाबालिगों के नाम शैलेंद्र यादव, दिलीप यादव, विपिन, विकास एवं सूरज बताए हैं।

फर्जी टीपी मामले में बाबू तिलासे ने खोले कई राज

फर्जी टीपी मामले में बाबू तिलासे ने खोले कई राज
* तीन और रेंजरों पर मामला दर्ज, गिरफ्तारी के प्रयास
* परत दर परत खुल रहे राज
जबलपुर। समीपवर्ती बालाघाट जिलें में टीपी घोटाले से लकड़ी की तस्करी के मामले में वन विभाग के बाबू सीताराम तिलासे को गिरफ्तार से मामले में परत दर परत राज खुलते जा रहे हंै। पुलिस ने तिलासे को 10 दिनों के रिमांड पर लिया है। वन विभाग के बाबू से हुई पूछताछ के बाद पुलिस को मामले में अहम जानकारी मिली है। इसके बाद पुलिस ने वन विभाग के तीन रेंजरों के खिलाफ अपराध दर्ज कर उनकी तलाश शुरू कर दी है। इस मामले में पुलिस ने अब तक 9 आरोपियों को गिरफ्तार किया है।
पुलिस अधीक्षक बालाघाट गौरव तिवारी ने बताया कि फर्जी टीपी के जरिए इमारती लकड़ी का परिवहन करने के मामले में एसआईटी ने 13 लोगों  के खिलाफ अपराध दर्ज किया है। करोड़ों की शासकीय लकड़ी चोरी के मामले में आरोपी बढ़ाएं जाएंगे। इस प्रकरण में पूर्व में एक रेंजर सहित दो वन कर्मी
शामिल होना पाए गए है लेकिन जांच के चलते वन कर्मियों की संख्या बढ़ गई है। मामले का मास्टर माइंड तथा फर्जी टीपी जारी करने वाला बाबू सीताराम तिलसाने को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। इसके बाद प्रकरण में तीन रेंजर और आरोपी बनाए गए है जिनकी तलाश जारी है। वर्तमान में, राकेश डहरवाल, रेंजर हृदयपाल सिंह, वन रक्षक जगदीश भावत, वन रक्षक जेए पटले, राजेश टेमरे, अमित भदौरिया, बाबू एसएस तिलसाने, टिम्बर व्यापारी  नंदलाल व अन्य पकड़े गए हैं। इस प्रकरण में  टिम्बर मर्चेट संजय धुवारे तथा भूूपेन्द्र मंडलेकर को भी आरोपी बनाया गया है। मामले में बालाघाट पुलिस सितम्बर माह से लगातार जांच पड़ताल कर रही है तथा चार ट्रक सहित 500 नग से अधिक लकड़ी के लट्ठे जब्त किए जा चुके हैं।
चार अधिकारी है निलंबित
इस प्रकरण में आरोपी लिपिक सीताराम तिलासे, जगदीश भागवत,
रेजर हृदयपाल सिंग,  प्रभारी रेंजर हिमांशु राय निलंबित है।
आरोपियों को लेगी रिमांड पर
पुलिस द्वारा फर्जी टीपी में गिरफ्तार राकेश डहरवाल एवं टिंम्बर मर्चेट नंदलाल पटेल को पुलिस रिमांड पर ले सकती है। उक्त प्रमुख आरोपी को पुलिस ने पूर्व में गिरफ्तार किया था लेकिन बाबू सीताराम तिलासे के गिरफ्तार होने के बाद रिमांड के प्रयास पुलिस कर सकती है।
वर्जन
 इस मामले में दो अन्य रेंजरों को आरोपी बनाया गया है जिसकी तलाश की जा रही है। उनकी जल्द ही गिरफ्तारी की जाएगी। पुलिस ने वन विभाग के बाबू को दस दिन के पुलिस रिमांड पर लिया है और उससे पूछताछ की जा रही है।
गौरव तिवारी
 पुलिस अधीक्षक जबलपुर

35 घंटे आॅपरेशन करना पड़ा


 डॉ बी.के. पांसे,
न्यूरो सर्जन, जबलपुर.
इंट्रो----
जबलपुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में न्यूरो सर्जरी विभाग की स्थापना तथा उसके विकास के साथ शहर में न्यूरो सर्जरी की शुरूआत करने वाले वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. बी.के. पांसे के अपने जीवन में यादगार आॅपरेशनों में एक आॅपरेशन ऐसा भी है, जिसको वे अब तक का सबसे चुनौती पूर्ण आॅपरेशन मानते है। ब्रेन में छह सेमी का विशाल ट्यूमर निकालने में उन्हें और उनकी टीम को 35 घंटे आॅपरेशन करना पड़ा। सुबह 8 बजे से आॅपरेशन चला जो रात 12 बजे तक आधा हो सकता था। इसके बाद सिर को कच्चा सिलने के बाद मरीज को आईसीयू में रख दिया गया और अगले दिन फिर सुबह से आॅपरेशन शुरू किया गया और आधी रात को पूरा हुआ। इस पूरे आॅपरेशन को करने में 36 घंटे का लम्बा समय लगा।
  जबलपुर में अनंत हॉस्पिटल के डायरेक्टर डॉ बी.के. पांसे ने बताया कि  सन् 1994-95 में उनके पास मैहर क्षेत्र से एक युवक आया था। युवक के सिर के भीतर करीब 6 बाय 6 सेमी अर्थात् का ट्यूमर था। उक्त युवक नागपुर सहित अन्य कई जगह इलाज करवाने पहुंच चुका था लेकिन उसके सिर के ट्यूमर का आॅपरेशन करने से डॉक्टर बच रहे थे, इसकी वजह यह थी कि ट्यूमर इतना बढ़ चुका था कि सर्जरी के दौरान, मरीज की मृत्यु होने की

संभावना काफी बढ़ी हुई थी लेकिन अपने अनुभव एवं ज्ञान पर भरोसा रखकर उसके आॅपरेशन का निर्णय ले लिया गया। मरीज काफी मेघावी छात्र था और वह 12 वीं की परीक्षा में प्रावीण्य सूची में आया था। उसका आॅपरेशन सुबह 8 बजे से 12 बजे तक चला। इसके बाद दूसरे चरण में आॅपरेशन सुबह 8 बजे से 12 बजे तक चला। करीब 9 दिन भर्ती रहने के बाद वह स्वस्थ्य होकर अपने घर चला गया।
सीटी स्केन तक की सुविधा नहीं थी
 डॉ पांसे का कहना है कि ब्रेन की सर्जरी उन्होंने उस दौर में शुरू की जब ब्रेन सर्जरी बेहद कठिन हुआ करती थी। अब तो ब्रेन सर्जरी आसान हो गई है। उन्होंने बताया कि सितम्बर 1989 में जबलपुर पहुंचे थे। उस दौरान सीटी स्केन तथा एमआरआई की कोई व्यवस्था नहंीं होती थी। ब्रेन में ट्यूमर तथा फ्यूटोमा का इलाज करने के पहले गले से ब्रेन में नली डालकर एन्जियोग्राफी की जाती थी। जबलपुर मेडिकल कालेज अस्पताल में न्यूरो सर्जरी विभाग नहीं था। उन्होंने मेडिकल कालेज अस्पताल में इस विभाग की स्थापना कराई तथा आॅपरेशन थियेटर यूनिट आदि के लिए प्रयास किए तथा कई वर्ष मेडिकल कालेज में सेवाएं दी। अब शहर में न्यूरो सर्जरी के लिए एक नई आधुनिक मशीन एवं बेहतर आॅपरेशन थियेटर (आटी) मौजूद है।
  जरा सी लापरवाही होती है घातक
उन्होंने न्यूरो सर्जरी करने के पूर्व मरीज का पूरी तरह से परीक्षण कर संतुष्ट होना आवश्यक है। डॉ. पांसे का मानना है कि मरीज के परीक्षण में थोड़ी सी

चूक भी जान लेवा हो सकती है। उन्होंने बताया कि एक वृद्ध मरीज मेडिकल कॉलेज अस्पताल में इलाज के लिए आया था। उसके सिर पर रक्त का थक्का जमा था, जिसकी सर्जरी करके निकालना था। एंजियोग्राफी करने के बाद सिर के एक हिस्से में रक्त का थक्का जमा होना पता चला। उसकी सर्जरी करने के लिए कहा गया था लेकिन मुझे संदेह था कि उसके सिर के दूसरे हिस्से में भी रक्त जमा हुआ है। इस वजह से दुबारा दूसरे हिस्से में टेस्ट कराया गया। वहां भी रक्त का थक्का जमा हुआ था। यदि उस दिन सिर के एक हिस्से का आॅपरेशन किया जाता जो शायद मरीज की जान चली जाती, उसके ब्रेन के दोनों हिस्सों से रक्त के थक्के निकाले गए।
नाक के रास्ते का किया गया उपयोग
डॉ पांसे पिट्यूट ट्यूमर रिमूव करने की विधा में प्रदेश भर में विख्यात हैं, उन्होंने बताया कि उनके पास हाल ही में कई मामले आए, जिसमें नागपुर तक के चिकित्सकों ने मरीज के पिट्यूट टयूमर निकालने से मना कर चुके थे। दरअसल ये ट्यूमर ब्रेन के मध्य हिस्से में होता है, जिसको सिर का आॅपरेशन करने निकालने बेहद जोखिम भरा काम होता है। इस ट्यूमर को माइक्रो सर्जरी के माध्यम से निकालने की तकनीक हमने विकसित की है। इसके तहत टेलीस्कोपिक पद्धति से पिट्यूट ट्यूमर निकाल जा रहा है। हाल ही में रूबीना नामक युवती के सिर पर 4-5 सेंटीमीटर का ट्यूमर था, जिसकी नाक के रास्ते से सर्जरी करके ब्रेन के मध्य हिस्से तक पहुंचा गया तथा उसका ट्यूमर निकाला गया। इसके बाद से वह सिर दर्द की असहनीय पीड़ा से मुक्त है। इसी तरह अन्य एक मरीज का ट्यूमर इसी तरीके से निकाला गया। उन्होंने बताया कि चिकित्सक की स्वयं के अनुभव से आॅपरेशन का अपना तरीका होता है, जो कारगर होती है। उन्होंने बताया कि मेडिकल कालेज में कार्य के दौरान फीडिंग ट्यूब से खून के थक्के का आॅपरेशन करने की पद्धति विकसित की थी। इसमें माइको सर्जरी के द्वारा ट्यूब डालकर खून के थक्के निकालना हमने शुरू किया। अब भी इस तरीके से वे बेहद आसानी से खून के जमे हुए थक्के निकालने का इलाज कर रहे हैं। यह तरीका भले ही पुराना हो चुका है लेकिन बेहद कारगर है।

औषधीय पौधों के जींस कोड तैयार होंगे

दिनांक 14/12/15



* अब कोई नहीं चुरा पाएगा प्रदेश के औषधीय पौधों की प्रजातियां
* जेएनकेविवि के बायो टैक्नालॉजी सेंटर में डीएनए फिंगर प्रिंट एवं डीएनए बार कोडिंग प्रोजेक्ट शुरू
* पेटेंट कराए जा सकेंगे प्लांट

 दीपक परोहा
9424514521
 जबलपुर। भारत के औषधीय पौधों को बचाने के लिए जबलपुर के जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय में तेजी से काम चल रहा है। यहां के बायो टैक्नालॉजी सेंटर में लगभग 100 से अधिक प्लांटों के डीएनए फिंगर प्रिंट एवं डीएनए बार कोडिंग की जा रही है। विवि की इस कवायद के बाद भारतीय औषधीय पौधों का पेटेंट किया जाना भी आसान हो जाएगा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले नीम तथा हल्दी जैसे विवाद की स्थिति भी कभी निर्मित नहीं होगी।
     बायो टैक्नालॉजी सेंटर के डायरेक्टर डॉ. शरत् तिवारी ने बताया कि करीब दो करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट प्रदेश सरकार से मिला है। इसके तहत मध्य प्रदेश के औषधीय पौधों के डीएनए कोड तैयार करना है। इसके अतिरिक्त आदिवासियों की उपज कोदो, कुटकी, तिली आदि उपज के भी जींस कोड तैयार किए जा रहे हैं। डीएनए बार कोडिंग तैयार होने पर कम्प्यूटर में एक क्लिक करने पर पौधों की पूरी जन्म कुण्डली सामने रहेगी। यही कोडिंग पेटेंट कराने के कार्य  में आती है।
अनुवांशिक उत्पत्ति पर अध्ययन
कृषि विश्व विद्यालय में औषधीय पौधों को लेकर गहन अनुसंधान गत वर्ष से प्रारंभ किए गए हैं। इसके तहत पौधों के जींस से उनकी अनुवांशिक उत्पत्ति के सम्बंध में अध्ययन किया जा रहा है। पौधों के डीएनए बार कोड तैयार होने के बाद इस प्लांट के बारे में अनेक अनसुलझे रहस्यों से पर्दा भी उठेगा। इसके साथ ही नए किस्म के और अधिक गुणों वाली औषधीय पौधों की प्रजातियों विकसित की जाने में मदद मिलेगी।
मोटे खाद्यान्न हमारी विरासत
दरअसल आदिवासियों की परम्परागत खेती के मोटे खाद्यान्न कम पानी तथा बंजर जमीन में भी अच्छी उपज देते है और इनमें प्रचुर मात्रा में पौष्टिकता होती है। ये खाद्यान्न प्रदेश की विरासत है। लाखों सालों से सरवाइव करने वाले इन प्रजातियों की उपयोगिता, उनके गुण को ध्यान में रखते हुए वैश्वीकरण के चलते इसके कोड तैयार करना बेहद आवश्यक हो गया है। इससे भविष्य में ये उपज यदि देश से बाहर जाती है तो पेटेंट कराने का लाभ प्रदेश को रायल्टी के रूप में मिल सकता है। वहीं आदिवासियों की इन उपज को कोई अपने यहां की होने का दावा भी नहीं कर सकता है।
अनेक औषधीय प्लांट
उल्लेखनीय है कि जबलपुर, मंडला, निवास, अमरकंटक, शहडोल, उमरिया, पचमढ़ी, होशंगाबाद, दमोह सहित प्रदेश के अन्य जंगल वाले इलाकों में बड़ी संख्या में दुर्लभ जड़ी बूटियों वाले प्लांट मौजूद हैं। इसके खोज की आवश्यकता भी है। प्रदेश में मालवा, बुन्देलखंड, विन्ध्याचल, सतपुड़ा, महाकौशल, बघेल खंड आदि अंचलों के मैदानी एवं जंगली इलाकों में प्रचुर मात्रा में औषधीय पौधे मिल रहे हैं।  इन दुर्लभ औषधीय प्लांट को खोज कर जींस कोड तैयार कर पौधों की उत्पत्ति उनके विकास क्रम के अध्ययन का भी कार्य चल रहा है। विश्व विद्यालय के बायो टैक्नालॉजी सेंटर में औषधीय पौधों के जेनेटिक कोड तैयार किए जा रहे हैं जिसको डीएनए प्रिंटिंग प्रोजेक्ट का नाम दिया गया है।
किया जा रहा रिसर्च
जेनिटक कोड पर विश्व विद्यालय सिर्फ भारत भर के वैज्ञानिकों के साथ ही नहीं बल्कि विदेशी वैज्ञानिकों के साथ मिलकर रिसर्च कर रहे हैं। हमने गेहूं की नई प्रजातियों के जैनेटिक कोड तैयार किए हैं। इसके अतिरिक्त बायो टेक्नालॉजी सेंटर मे औषधीय पौधों के डीएनए फिंगर प्रिंट पर भी कार्य किया जा रहा है।
डॉ वीएस तोमर,
कुलपति, जेएनकेविवि

मेडिसन प्लांट का जींस कोड होगा तैयार



 कृषि विश्व विद्यालय में तैयार हो रही वंशावली
जबलपुर। जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्व  विद्यालय द्वारा दुर्लभ एवं विलुप्त हो रहे मेडिसन प्लांट पर गहन खोज चल रही है। जहां विश्व विद्यालय में मेडिसन प्लांट की जींस बैंकिंग के तहत नर्सरी तैयार की गई है। इसके अलावा इन प्लाटों के जैनेटिक अध्यन का प्रोजेक्ट चल रहा है।
विश्व विद्यालय के वैज्ञानिक जंगलों में मिलने वाली दुर्लभ औषधीय प्लांट के जींस कोड तैयार कर पौधों की उत्पत्ति उनके विकास क्रम का अध्ययन का कार्य चल रहा है। विश्व विद्यालय के बायो टैक्नालॉजी सेंटर में औषधीय पौधों के जेनेटिक कोड तैयार किए जा रहे हैं जिसको डीएनए प्रिंटिंग प्रोजेक्ट का नाम दिया गया है।
जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्व विद्यालय के पूर्व डायरेक्टर अनुसंधान डॉॅ एसएस तोमर ने बताया कि कृषि विश्व विद्यालय में औषधीय पौधों को बचाने के लिए गहन अनुसंधान गत वर्ष से प्रारंभ किए गए हैं। इसके तहत पौधों के जींस से उनकी अनुवांशिक उत्पत्ति के सम्बंध में अध्ययन किया जा रहा है। इसकी मदद से जहां पौधों का बायो कोड तैयार होगा। इस कोड के तैयारर होने के बा इस प्लांट के बारे में अनेक अनसुलझे रहस्य से पर्दा उठेगा। इसको बचाने तथा मौसम के अनुकूल जीवित रहने की क्षमता का भी अध्ययन किया जा सकेगा। औषधीय पौधों को विलुप्त होने से बचाने में ये अनुसंधान काफी सहायक होगा।
उल्लेखनीय है कि जबलपुर से लगे जंगली क्षेत्र मंडल, निवास, अमरकंटक, शहडोल, उमरिया, पचमढ़ी, होशंगाबाद, दमोह आदि में बड़ी संख्या में दुर्लभ जड़ी बूटियों मौजूद है। इसके अध्ययन एवं खोज की आवश्यकता भी है।
इस अध्ययन कार्य से विलुप्त होती औषधीय पौधों की प्रजाति को बचाया जाएगा। इसके अतिरिक्त लगभग 100 से अधिक औषधीय प्रजातियां खोजी गई है जिनके बारे में अब तक बहुत कम ही अध्ययन हुए थे।
डॉ. शरत तिवारी
 डायरेक्टर बायोटैक्टिनीकल सेंटर
 जेएनकेविवि जबलपुर
किया जा रहा रिसर्च
जेनिटक कोड पर विश्व विद्यालय सिर्फ भारत भी  के वैज्ञानिकों के साथ ही नहीं बल्कि विदेशी वैज्ञानिकों के साथ मिलकर रिसर्च कर रहे है। हमने गेहूं की कई प्रजातियों के जैनेटिक कोड तैयार किए हैं। इसके अतिरिक्त बायो टेक्नालॉजी विभाग मे औषधीय पौधों के डीएनए फिंगर प्रिंट पर भी कार्य किया जा रहा है।
डॉ वीएस तोमर
कुलपति जेएनकेवीवी

बिकने से बचाई गर्इं 5 बालाएं


*आदिवासी लड़कियां बिक रहीं दक्षिण भारत में
* मानव तस्कर गिरोह का नेटवर्क खंगालने जाएगी मंडला पुलिस बेंगलुरु
जबलपुर। मंडला जिले से आदिवासी बालाओं की दक्षिण भारत में तस्करी होने की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। इसके पूर्व इस क्षेत्र से बालाएं उत्तराखंड, झारखंड, दिल्ली और हरियाणा में जाया करती थीं, लेकिन पिछले कुछ सालों से मंडला जिलों में मानव तस्करी करने वाला गिरोह फैला है, जो आदिवासी बालाओं को काम और नौकरी के बहाने दक्षिण भारत में ले जाकर बेच रहा है। गिरोह के दो सदस्यों को मंडला पुलिस ने उस वक्त पकड़ा, जब गिरोह पांच लड़कियों को बेंगलुरु लेकर जाने वाला था। पुलिस आरोपियों को रिमांड पर ले रही है तथा नेटवर्क की पतासाजी के लिए बेंगलुरु
पुलिस अधीक्षक मंडला एपी सिंह ने बताया कि घुघरी पुलिस को शुक्रवार को मुखबिर से सूचना मिली थी कि विभिन्न गांव की 5 नाबालिग लड़कियों को मंडला ले जाया जा रहा है, वहां से उन्हें दक्षिण भारत में ले जाकर बेचा जाएगा। इस पर पुलिस ने तत्काल बस स्टैंड में घेराबंदी कर दो संदिग्ध व्यक्तियों को 5 आदिवासी बालाओं सहित पकड़ा। पकड़ा गया एक आरोपी घुघरी तथा मवई क्षेत्र का था। उनके साथ मौजूद लड़कियां भी उन्हीं के क्षेत्र की थी। पुलिस ने लड़कियों से उनके नाम-पते हासिल कर उनके परिजनों को बुलवाकर उनके सुपुर्द कर दिया। लड़कियों को मानव तस्कर बिना परिजनों की अनुमति के बहला-फुसला कर ले जा रहे थे। लड़कियों को अच्छा भोजन एवं अच्छे कपड़े व रुपए देने का लालच दिया गया था।
थाना प्रभारी पीएस तिलगाम ने बताया कि आरोप ललित भानसुर उम्र 22 वर्ष निवासी गौरेघाट मवई तथा विकास गायकवाल निवासी घुघरी के खिलाफ भादंवि की धारा 363, 370, 372 एव  एसटी-एससी एक्ट के तहत कार्रवाई की गई है। आरोपियों से सघन पूछताछ की जा रही है। उन्होंने बताया कि उनका एक परिचित बेंगलुरु में है, जो लड़कियों को दक्षिण भारत के अन्य महानगरों में घरेलू नौकरानी के रूप में काम में लगाता है। बदले में उन्हें अच्छी रकम मिलती है।
मानव तस्करी का मामला
पुलिस को संदेह है कि आदिवासी क्षेत्र से लड़कियों को घरेलू नौकरानी बनाने का झांसा देकर ले जाया जाता है, लेकिन वहां उन्हें देह व्यापार सहित अन्य धंधों में धकेल दिया जाता है। अनेक लड़कियों रहस्यमय तरीके से गायब भी है। क्षेत्र में गरीबी और बेरोजगारी का बेजा फायदा उठाकर मानव तस्करी करने वाला गिरोह सक्रिय है और इसका नेटवर्क जबरदस्त तरीके से फैला है। पुलिस काफी प्रयास करने के बाद भी तार नहीं जोड़ पा रही है। अब तक जितने भी मामले जिले में पकड़े गए हैं वे निचली कड़ी के ही हैं। असली अपराधी महानगर में कहीं छिपा बैठा है, जिसकी तलाश करने पूरी कोशिश किए जाने की बात जिम्मेदार अधिकारी कह रहे हैं।
...वर्जन...
पुलिस आरोपियों को रिमांड में लेकर मानव तस्करी करने वाले गिरोह का पता लगाने पूरी कोशिश करेगी। इसके लिए पुलिस पार्टी बेंगलुरु भी भेजी जाएगी।
एपी सिंह, पुलिस अधीक्षक, मंडला 

देशी नस्ल का नंदी तक नहीं पशु विवि में

दीपक परोहा
9424514521

*
किसान पाल रहे अनुवांशिक दोष वाले पशु
* देशी नस्ल की गायों पर संकट
* गौर नस्ल की सबसे ज्यादा नस्लें भारत में, फिर भी नस्लें हो रहीं खत्म
किसान पाल रहे अनुवांशिक दोष वाले पशु
* देशी नस्ल की गायों पर संकट, देशी नंदी उपलब्ध नहीं
* पशु चिकित्सा महाविद्यालयों में संकर बीज
* गौर नस्ल की सबसे ज्यादा नस्ले भारत में, फिर भी नस्लें हो रहीं खत्म
...इंट्रो...
जबलपुर में कृषि विश्वविद्यालय है, यहां स्थित नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय में भी देशी नंदी उपलब्ध नहीं है। इतना ही नहीं देश नंदी के वीर्य तक वीर्य बैंक में नहीं है। दरअसल, ये देश गायों पर आए बड़े संकट की बानगी है। बहरहाल, शासन द्वारा देशी गायों की

नस्ल बचाने की दिशा में कार्य किया जा रहा है। फिलहाल प्रदेश में उपलब्ध देशी नस्ल की गायों पर संकट बना है। आम किसान एवं पशु पालकों के पास जो मवेशी मौजूद हैं वे आनुवांशिक दोष से पीड़ित नस्लें हैं।
जबलपुर। सदियों से भारत गौधन के लिए दुनिया में सर्वाधिक उन्नत देश रहा है, आज भी यहां पशुधन अन्य देशों से कई गुना अधिक है, लेकिन दूध उत्पादन की दृष्टि में पिछड़ा हुआ है। जानकारों की माने तो सर्वाधिक मवेशियों की संख्या मध्य प्रदेश, फिर अन्य राज्यों की है, किन्तु दूध उत्पादन में मध्य प्रदेश पिछड़े राज्यों में है।
कृषि वैज्ञानिक तथा एनजीओ डॉ. ब्रजेश कुमार राय ने बताया कि  भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के आंकड़ों के मुताबिक देश की आजादी के पहले भारत में देशी गायों की 60 नस्लें पाई जाती थीं, जो घटते हुए 37 नस्ल रह गई है। इसमें से भी मात्र चार नस्लें ही मध्य प्रदेश सहित पूरे देश में पाई जाती हैं तथा शेष नस्लें लुप्त प्राय: है। इसमें से

हाल ही में विलुप्त हुई नस्ल में कृष्णनीरा है।
इस देश में सदियों से गौ संरक्षण के लिए काम किए गए हैं, जिसमें दक्षिण भारत में सर्वाधिक गौ संरक्षण का कार्य हुए हैं।
डॉ. राय ने बताया कि इतिहास में शिवाजी तथा टीपू सुल्तान द्वारा अपनी सामरिक जरूरतों के चलते भारतीय गौ नस्ल के संरक्षण पर कार्य किया गया है।
जबलपुर में चल रहा कार्य
देशी नस्ल को बढ़ावा देने के लिए पशु चिकित्सा महाविद्यालय में नस्ल सुधारने के लिए कार्य किया जा रहा है। इसके साथ ही अच्छी देशी नस्ल के पशु पालन के लिए जागरुकता लाने डॉ. राय कार्य कर रहे हैं। इसी  के चलते जबलपुर, मंडला, डिंडोरी, बालाघाट में देशी नस्ल का पालन करने जागरुकता लाई जा रही है।
देशी नस्ल के नंदी नहीं
जानकारों की मानें तो जबलपुर सहित प्रदेश में अच्छे देशी नस्ल के नंदियों का अभाव है, जिसके कारण देशी नस्ल की गाय तैयार नहीं हो रही है।

परिणामस्वरूप किसान सिर्फ मवेशी पाल रहे हैं। जानकारों का तो कहना है कि देशी नस्ल के नंदी किसी पशु चिकित्सा महाविद्यालयों में मौजूद नहीं है। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान देश में मौजूद पशुओं को देशी नस्ल की श्रेणी में नहीं मानते हैं। दरअसल, इसकी वजह यह है कि एक ही समूह के गायों के पालन के परिणामस्वरूप उनकी जींस विविधता इतनी कम हो गई है कि पशुओं में अनुवांशिक दोष उत्पन्न हो गया है, जो नस्ल में 80 प्रतिशत तक अनुवांशिक शुद्धता पाई जा रही है, उन्हें ही देशी नस्ल के रूप में दर्ज किया जा रहा है। पिछले कुछ साल से नस्ल को सूची बद्ध करने का कार्य शुरू किया गया है।
प्रमुख देशी नस्लें
नाम     दूध  
शाहिवालगिर 10-20 ली.
थापरकर  10-12 ली.
कांकरेज  10-12 ली.
निमाड़ी    5-6 ली.  
मालवीय  6-7 ली. -
खिलारी  5-6 ली.
डेढ़ सौ से अधिक थीं नस्लें

जानकारों की मानें तो अविभाजित भारत में प्राचीनकाल में करीब डेढ़ सौ से अधिक उन्नत किस्म की गायों की नस्लें भारत में थीं, जबकि दुनिया भर मे दर्जन नस्लें नहीं थीं। वर्तमान में भारत में जर्सी एवं एचएस विदेशी नस्लों के चलते देशी नस्ल को नजर अंदाज किया गया। जबकि वैज्ञानिक रूप से यह साबित हो चला है कि विदेशी संकर नस्ल की गायों का दूध स्वास्थ्य के लिए घातक एवं देशी नस्लों को दूध स्वास्थ्यवर्द्धक है।
ऐस पड़ा नाम
राजस्थान में पाई जाने वाली देश गाय का नाम थारपारकर पड़ा है। राजस्थानी देशी गाय थार मरूस्थल को पार कर चारगाह तक पहुंचती थी। प्रतिदिन 50-60 किलोमीटर चलने के बाद भी ये दूध दिया करती थी।
...वर्जन...
हमारे यहां देशी नंदी उपलब्ध नहीं है। कृत्रिम गर्भाधान के लिए जो वीर्य बैंक उपलब्ध है, उसमें देशी संकर प्रजाति के हैं। देशी प्रजाति के नंदी के वीर्य उपलब्ध नहीं है।
 डॉ. ओपी श्रीवास्तव

पशु चिकित्सा महाविद्यालय

पुलिस वालों को नशे से रखो दूर


* पुलिस कर्मियों के स्वास्थ्य के प्रति मुख्यालय चिंतित
* पीएचक्यू से पुलिस अधीक्षकों को सर्कुलर जारी
जबलपुर। पंजाब पुलिस अपनी फोर्स में जहां नशे के आदी पुलिस जवानों से लड़ रही है, वहीं मध्य प्रदेश पुलिस फोर्स मे भी तेजी से नए पुलिस कर्मियों की भर्ती हो रही है। इसमें से कई पुलिस कर्मी ऐसे भी भर्ती हो रहे हैं, जो नशे के आदी रहे हैं। इधर, पुलिस विभाग में आए दिन पुलिस कर्मियों को नशे में धुत पाए जाने के मामले सामने आए हैं। यह हालत प्रदेश के सभी जिलों में बनी हुई है। नशा पुलिस फोर्स के स्वास्थ्य खराब
कर सकता है।
दरअसल, पुलिस के पास काम की अधिकता एवं स्टाफ की कमी दो ऐसे ड्रॉबैक हैं, जिसके कारण तनावग्रस्त पुलिस कर्मी बेहद आसानी से नशे का आदी हो सकता है। उनके स्वास्थ्य एवं तनाव प्रबंधन को ध्यान में रखते हुए पुलिस मुख्यालय इस दिशा में काम कर रहा है। पुलिस कर्मी नशे से दूर रहें, इस उद्ेश्य को भी ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य एवं तनाव प्रबंधन को लेकर नियमित शिविर एवं कार्यशाला के आयोजन के निर्देश पुलिस अधीक्षकों को दिए गए हैं।
बताया गया कि पुलिस कर्मियों को स्वास्थ्य को लेकर एक सर्कुलर भी पुलिस मुख्यालय से प्रदेश के समस्त पुलिस अधीक्षकों को जारी किया गया। इसके तहत पुलिस कर्मियों एवं उनके परिवार का प्रतिमाह स्वास्थ्य परीक्षण कराने तथा उनको तनाव प्रबंधन को लेकर प्रशिक्षण एवं कार्यशाला संचालित करने के निर्देश दिए हैं।
ये बीमारियां हैं पुलिस वालों को
जानकारी के अनुसार 40-50 वर्ष के आयु के अमूमन 40 प्रतिशत से अधिक पुलिस कर्मियों को शुगर, ब्लड प्रेशर, हाइपर टेंशन तथा हृदय रोग की शिकायतें पाई गई हैं। बड़ी संख्या में पुलिस कर्मी शराब पीने के आदी होने की जानकारी पुलिस अधिकारियों के पास है, लेकिन अब तक इस दिशा में किसी तरह के सर्वे नहीं हुई। अलबत्ता पुलिस मुख्यालय का मुख्य उद्देश्य है कि पुलिस कर्मी स्वस्थ्य रहे, तभी फोर्स स्वस्थ रहेगी।
अधिकारियों को विशेष निर्देश
पुलिस मुख्यालय द्वारा पुलिस कर्मियों के स्वास्थ्य को लेकर चिंता जाहिर करते हुए पत्र जारी किए गए हैं, जिसमें कहा गया कि पुलिस अधीक्षक तथा आईजी इसका ध्यान रखें कि कोई पुलिस कर्मी नशे की हालत में तो नहीं है।
...वर्जन...
पुलिसवालों के स्वास्थ्य का ध्यान रखा जा रहा है। पुलिस स्वास्थ्य परीक्षण श्वििर का भी आयोजन किया जाता है। इसके साथ ही पुलिस में जागरुकता तथा तनाव प्रबंंधन के लिए  कार्य किए जा रहे है।
डॉ. आशीष,
पुलिस अधीक्षक, जबलपुर

उत्तर प्रदेश से आ रहे आॅक्सीटोन इंजेक्शन



-आॅक्सीटोन का खुल कर उपयोग हो रहा डेयरियों में
-प्रतिबंध के बावजूद कार्रवाई नहीं, अवैध फैक्टरियां तैयार कर रही ड्रग
जबलपुर। प्रतिबंधित आॅक्सीटोन इंजेक्शन की बड़ी और अवैध खेप उत्तर प्रदेश से प्रदेश में पहुंच रही है। अवैध इंजेक्शनों की मंडी इन दिनों कटनी बना हुआ है, जहां से छत्तीसगढ़ तक आॅक्सीटोन इंजेक्शन की सप्लाई हो रही है। डेयरियों में घातक अवैध इंजेक्श्न धड़ल्ले से मवेशियों को लगाए जा रहे है, जिसका घातक असर मनुष्यों पर भी पड़ रहा है।
उल्लेखनीय है इस इंजेक्शन को राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान की सिफारिश के बाद केन्द्र शासन द्वारा जुलाई 1996 में इंजेक्शन को प्रतिबंधित कर दिया गया है, लेकिन इसके बावजूद पूरे प्रदेश में धड़ल्ले से उपयोग हो रहा है तथा शासन-प्रशासन को कार्रवाई करने में कोई रुचि नहीं है, जबकि इसके घातक असर सर्व विदित है।
अनुसंधान में यह स्पष्ट हो चुका है कि पशुओं से अधिक दूध लेने के लिए आॅक्सीटोन हारमोन का प्रयोग पशु तथा मानव दोनों के लिए खतरनाक है। जहां लगातार इंजेक्शन देने से पशु आॅक्सीटोसिन का लती हो जाता है दूसरी तरफ उसके दूध में खतरनाक तत्वों की मात्रा के साथ आॅक्सीटोन की मात्रा आने लगती है। यही दूध जब मनुष्य उपयोग करता है तो उसके शरीर में आॅक्सीटोन की मात्रा बढ़ जाती है। ये आॅक्सीटोन मनुष्य का हार्मोन्स संतुलन बिगाड़ देता है। दूध के उपयोग से महिलाओं में बार-बार गर्भपात और स्तन कैंसर होना, लड़कियों का उम्र से पहले ही वयस्क होना, बच्चों की आंखें कमजोर होना और फेफड़ों व मस्तिष्क पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है दूसरी तरफ पुरुष के लिए भी घातक असरकारक होता है। वैज्ञानिकों की माने तो हार्मोन्स संतुलन बिगड़ने डिप्रेशन, हाइपर टेंशन, मोटापा, ब्लड प्रेशर, शुगर और हृदय रोग जैसी घातक बीमारियां समय पूर्व घेरने लगी हैं।
प्रशासन बेखबर
डेयरी फॉर्म संचालक अधिक आय की लालच में आदमी के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, दूसरी तरफ प्रशासन बेखबर बना है। ये इंजेक्शन प्रतिबंध होने के बाद प्रदेश में कुछ साल पहले व्यापक पैमाने में अभियान चलाया गया, लेकिन अब स्थिति पहले से भी बदतर हो गई है।
अवैध फैक्टरियों में हो रहा उत्पादन
आॅक्सीटोन इंजेक्शन प्रतिबंधित होने के बाद इसका डेयरी फॉर्मों के लिए अवैध फैक्टरी इंजेक्शन का उत्पादन कर रही है। इन इंजेक्शन को तैयार करने में चिकित्सा संबंधी तमाम निर्देश एवं नियमों को दरकिनार किया जा रहा है। दरअसल मवेशियों के लिए तैयार इंजेक्शन और अधिक घातक अवैध फैक्टरियों में तैयार होने के कारण खतरनाक को चुके हैं। सूत्रों की मानें तो उत्तर प्रदेश में चलने वाली अनेक फैक्टरियों से आॅक्सीटोन आ रहा है। कटनी जिला इन अवैध इंजेक्शनों की मंडी बनी हुई है। डेयरियों के लिए बोरियों में पैकिंग आ रही है। इन अवैध इंजेक्शन की कीमत 5 से 10 रुपए तक ही मात्र रहती है।
...वर्जन...
आॅॅक्सीटोन इंजेक्शन का डेयरियों में उपयोग किए जाने की काफी अरसे से शिकायत नहीं मिली है, किन्तु यदि ऐसा है कि डेयरियों में आॅक्सीटोन इंजेक्शन का उपयोग हो रहा है तो इसकी जांच करवाई जाएगी।
शिवनारायण रूपला,
कलेक्टर, जबलपुर




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नृशंस हत्याकांड के बाद... जीवन बना नरक...


नृशंस हत्याकांड के बाद... जीवन बना नरक...
-तमाम उपचार नहीं आए काम, विकलांग का जीवन जी रही

दीपक परोहा
9424514521

..इंट्रो...

कीर्ति पटैल के जीवन में 18-19 मई 1999 की काली रात ने उसके जीवन में जीते जी नर्क की सजा सुना दी गई। उस रात के बाद से अब तक कीर्ति पटैल जिंदा लाश की तरह जी रही है। गर्दन पर कुल्हाड़ी का ऐसा वार हुआ था, इस मासूम के आज तक उसके दोनों हाथ-पैर सुन्न हैं, शरीर में किसी तरह का सेंस एवं ताकत नहीं है। जबलपुर से लेकर नागपुर तक चिकित्सकों के कई चक्कर काटते हुए आज कीर्ति पटैल 24 साल की हो गई बीते 15 साल से आस लगी है कि अपाहिज के जीवन से छुटकारा मिल जाए।
अपाहिज का जीवन जी रही कीर्ति पटैल को इतनी घातक चोट पहुंची है कि उस काली रात की कुछ बातें वह भूल नहीं पाई हैं तो गहरी चोट के कारण अनेक बातें उसकी स्मृति से हमेशा के लिए लुप्त हो चुकी हैं। उसे याद है कि रात को जब गहरी नींद में थी, तभी उसके एक भाई की आवाज आई थी भूरा मत मारो। भूरा दरअसल उनके यहां के एक बैल का नाम था, जिसने एक बार छोटे भाई को सींग मार दिया था, तभी से उसके मन में भूरा का भय था। रात को जब कातिलों ने पूरे परिवार सहित उसके छोटे भाई पर हमला किया तो भयभीत बच्चा चीख रहा था भूरा मत मारों और कातिलों ने उसे भी मौत के नींद सुला दिया।
ये है घटना क्रम
 बरेला के सालीवाड़ा निवासी राम कुमार पटैल सपरिवार चकरघट हार में बने मकान में रात को गहरी नींद में सो रहा था। उसके घर पर उसकी बहन की बच्ची भी आई हुई थी। जमीनी विवाद के चलते सोते हुए परिवार पर कुल्हाड़ी से एक दम्पत्ति ने घातक हमला कर राम कुमार पटैल, उसकी पत्नी, एक बेटा एवं एक बेटी को मौत की नींद सुला लिया। हमले में कीर्ति तथा उसके एक भाई अनिल भर बच गया था।  भाई-बहन और माता-पिता के कत्ल के बाद उस घटना की गवाह कीर्ति अपाहिज का जीवन जी रही है।
मदद की दरकार
कीर्ति के इलाज में उसके परिवार की तमाम जमा-पूंजी खत्म हो गई है। उसका भाई मोटर मैकेनिक है। वही अपनी बहन की देखरेख करता है। इसके साथ ही उसके रिश्ते के चाचा-चाची मदद करते हैं। कीर्ति को उम्मीद है कि गर्दन के पीछे कुल्हाड़ी के बार से उसकी जो नर्व कट गए हैं, जिससे वह जिंदा लाश हो गई है किसी तरह फिर से जुड़ जाए और इस नर्क बने जीवन से छुटकारा मिल जाए। जबलपुर के अनेक डॉक्टर तथा नागपुर में कई चिकित्सक इलाज कर हार गए हैं, लेकिन कीर्ति के अंगों में जान और ताकत नहीं आ पाई है।
...वर्जन...
मेरी इच्छा है कि जघन्य हत्यारों को सजा मिले, लेकिन वे सब छूट गए हैं। मुझे मदद की जरूरत है, लेकिन चाहती हूं कि देश-विदेश का कोई नामी डॉक्टर इलाज कर मेरे बेजान शरीर में प्राण फूंक दे। फिजियो थैरेपी भी कराई हूं, लेकिन उसका विशेष लाभ नहीं मिल पााया है।
कीर्ति पटैल, सालीवाड़ा


पलायन के चक्कर में तेजी से फैल रहा एचआईवी

...

 आदिवासी जिलों में पीड़ितों की संख्या हुई चार गुना
* जिम्मेदार भी हैरान
दीपक परोहा
 9424514521
जबलपुर। मंडला और डिंडोरी जिले से बड़ी संख्या में श्रमिकों की गैंग पड़ोसी जिले जबलपुर ही नहीं मध्य प्रदेश के अन्य जिलों एवं प्रदेश के बाहर भी जाती है। अल्प वर्षा से प्रभावित आदिवासी क्षेत्र से श्रमिकों का तेजी से पलायन हो रहा है। ऐसे में बड़ी संख्या में एचआईवी पॉजिटिव श्रमिक भी बड़ी संख्या में बाहर गए हैं। अनेक आदिवासी जो एचआईवी संक्रमित है यदि वे किसी से संबंध बनाते हैं, जो एचआईवी के फैलाव का होना तय है। इसके साथ ही एचआईवी के प्रति आदिवासियों मे जागरुकता की कमी बड़ा रोड़ा है।
आदिवासी जिलों में पांच सालों में एड्स के कुल मरीजों की संख्या चार गुना हो चुकी है। इससे जिम्मेदार भी हैरान में है। मलेरिया टेस्ट के साथ ही एचआईवी टेस्ट के लिए ब्लड के नमूने लिए जा रहे है। आदिवासी महिला एवं पुरुष श्रमिक तेजी से एचआईवी ग्रसित हुए हैं। उनके बढ़े हुए आंकड़े से स्वास्थ्य अमला भी चौक गया है। आदिवासियों में एचआईवी का आना जाहिर करता है कि वे काम के सिलसिले में अपने गांव एवं घर से महीनों बाहर रहते हैं। इसमें बड़ी संख्या में विवाहित-अविवाहित पुरुष एवं महिलाएं शामिल रहती हैं। यूं तो जिले में मिलने वाले आंकड़ों में यह स्पष्ट नहीं है कि एचआईवी पीड़ित आदिवासी हैं अथवा गैर आदिवासी, किन्तु जाहिर है आदिवासी बाहुल्य जिले में एचआईवी के प्रकरण चार गुना से अधिक बढ़ना जाहिर करते हैं कि आदिवासियों में एड्स तेजी से फैल रहा है। एक तथ्य यह भी सामने आया है कि महिलाओं की तुलना में पुरुषों में एसआईवी तेजी से बढ़ा है। इससे बहुत बड़ा कारण पुरुषों का काम के  सिलसिले में महीनों घरों से बाहर रहना तथा महिलाएं ज्यादा संख्या में अपने घर गांव में रुक जाती है, किन्तु आदिवासी महिलाएं भी पुरुषों के साथ काम के सिलसिले में बाहर जाती है। मंडला जिले में बीते 4 सालों में एचआईवी के 107 नए मरीज मिल चुके है। इसी तरह डिंडोरी जिले में 5 चार साल में एचआईवी के 50 से अधिक नए मरीज मिल चुके हैं, वहीं चार साल में एचआईवी पीड़ित मरीजों की संख्या दोनों जिले में चार गुना बढ़ चुकी है।
...वर्जन...
जिले में एड्स के कई मरीज सामने आए हैं, उनका इलाज पूरी गोपनीयता से चल रहा है। वहीं बाहर से आने-जाने वाले श्रमिकों के खून के नमूने लेकर एचआईवी टेस्ट किया जाता है।
डॉ.एसके जैन, सीमएमएचओ, डिंडोरी

शराब पी तो महिलाएं ठोकेंगी जुर्माना
-नशे की लत से मर्दों को छुटकारा दिलाने छपारा में काबिले तरीफ मुहिम
-पीने वाले से 101, पिलाने वाले से वसूला जाएगा 1001
जबलपुर। समीपवर्ती जिला सिवनी के छपारा विकास खंड के गोरखपुर ग्राम पंचायत में बढ़ी हुई शराबखोरी पर अंकुश लगाने तथा मर्दों की शराब छुड़वाने के लिए महिलाओं ने काबिले तारीफ मुहिम छेड़ दी है। यदि कोई मर्द शराब के नशे में घर आता है तो घरवाली ये खबर गांव की औरतों को बताएगी। इसके बाद महिलाएं इस शराबी का पानी बीच गांव में उतारेंगी और उससे 101 रुपए जुर्माना वसूला जाएगा। इसी तरह गांव में जगह-जगह अवैध तौर से शराब की बिक्री रोकने के लिए भी निर्णय गांव की महिलाओं के समूह ने लिया है।
जानकारी के अनुसार छपारा गांव में चाय पान के ठेले तथा विभिन्न
ठिकानों में देशी शराब आसानी से मिल जाती है। शराब दुकान दूर होने के कारण शराब ठेकेदार के एजेंट यहां शराब विभिन्न ठिकानों में छोड़ जाते हैं और शराबियों को शराब पीने के लिए सहजता से मिल जाती है। कई बार पुलिस के बात भी यह बात आई, लेकिन पुलिस यहां शराब की बिक्री रोकने में सफल नहीं हो पाई है, लेकिन इस बार अवैध शराब की बिक्री रोकने की महिलाओं ने ठान ली है। गांव का जो व्यक्ति पीने के लिए किसी को शराब बेचते मिला तो उसको महिलाएं सबक सिखाएंगी। इतना ही नहीं उससे 1001 रुपए जुर्माना भी वसूल किया जाएगा।
ये निर्णय गांव की महिलाओं ने पिछले दिन उत्साह में चलते लिया है। उत्साह का कारण था गांव में शत-प्रतिशत शौचालय का निर्माण होना। इस ग्राम पंचायत में लगभग 463 परिवार है, जिनकी आबादी करीब दो हजार है। सभी घरों में पक्के शौचालय बन गए है। प्रशासनिक अधिकारियों की मौजूदगी मे इस अवसर पर पंचायत में सभी ग्रामीण महिलाएं एकत्र हुर्इं, जिनके घरों में शौचालय बना था। वहां महिलाओं ने गांव में शराब की बढ़ती लत की बात उठाई तो पंचायत के पदाधिकारियों के साथ मिलकर फैसला लिया कि महिलाएं स्वयं शराब बंदी के लिए कदम उठाएंगी। यदि कोई मर्द शराब पीकर घर आता है तो उससे 101 रुपए जुर्माना वसूल की पत्नी को दिया जाएगा, जबकि कोई व्यक्ति शराब बेचता मिलता है तो उससे एक हजार रुपए लेकर कल्याण में खर्च होगा।
...वर्जन...
गांव की महिलाओं ने शराब बंदी रोकने संबंधी निर्णय लिया है। इसके लिए गांव की महिलाएं ही सामूहिक रूप से प्रयास कर रही हैं। गांव पंचायत का इसमें हस्तक्षेप नहीं होगा। महिलाओं को हर संभव सहयोग देने के लिए जनप्रतिनिधियों ने कहा है।
उदय बेलवंशी, ग्राम सचिव
 ग्राम पंचायत की महिलाओं ने क्या मुहिम चला रही है , इसकी जानकारी मुझे नहीं है। बहरहाल शराब बंदी के लिए समाज की महिलाएं ऐसा कोई कदम उठाती है तो सराहनीय ै। पुलिस अवैध शराब की बिक्री रोकने पूरा सहयोग करेगी।
एनके पांडे
 टीआई छपारा जिला सिवनी

जबलपुर पुलिसिंग के लिए एक इतिहास रचा है वैद्य ने



सेवानिवृति से पुलिस जबलपुर पुलिस में बड़ी रिक्तता
सीएसपी अनिल वैद्य 30 नवम्बर को 60 वर्ष की आयु पूर्ण होने पर सेवानिवृत हो गए। अपनी सेवानिवृति के आखिरी दिन तक पूरी ऊर्जा, उत्साह और उमंग के साथ काम किया। जबलपुर की पुलिसिंग में इतिहास रचने का जो काम श्री वैद्य ने किया है, उसे जबलपुर के पुलिस लम्बे अरसे तक याद रखेगी।
यूं तो पुलिस विभाग में हर माह सेवानिवृति होती है, पुराने अफसर जाते हैं और नए अफसरों के आने का सिलसिला चलता रहा है, किन्तु कम ही अफसर होते हैं कि जिनकी सेवानिवृति पर रिक्तता नजर आती है। श्री वैद्य ऐसे ही पुलिस अफसरों में शुमार थे।
अनुशासन प्रियता, कर्मठता, मिलनसारिता, अपने से बड़ों का सम्मान एवं सहज व्यक्तिव के कारण लोकप्रियता के आयाम बनाए। इसी वर्ष दीवाली और मुहर्रम पर्व साथ में पड़ा। बरघाट में मुहर्रम पूर्व हुए बवाल के कारण पूरा गृह विभाग तक चिंतित रहा। त्यौहार पूर्व डीजीपी ने शहर का दौरा किया, लेकिन शहर की नब्ज जानने वाले श्री वैद्य के जबलपुर में पदस्थ रहने के कारण डीजीपी भी निश्चिंत होकर गए।
कानून व्यवस्था एवं शांति के लिए  जो मैनेजमेंट की रणनीति पुलिस प्रशासन ने तैयार की, उसके मास्टर प्लानर और कोई नहीं सीएसपी अनिल वैद्य ही थे। आईजी, कलेक्टर एवं एसपी की अगुवाई में सद्भावना कायम करने जो सम्पर्क का दौर चला, उसकी परिणति रही शहर में भाईचारे और सद्भावना की मिसाल बनी। शहर और समाज के लिए हाल में ही गई ये बानगी रही है।
अब तक सेवानिवृत हुए पुलिस अधिकारियों में पहली बार किसी पुलिस अफसर ने दानवीरता दिखाई वह भी एक मील का पहला पत्थर

है। श्री वैद्य ने अपने वृद्धावस्था के मिलने वाले सभी तरह के फंडों का 50 प्रतिशत राशि पुलिस आरक्षकों के बच्चों के कल्याण के लिए दे रहे हैं।
श्री वैद्य की जबलपुर में सब-इंस्पेक्टर रहे, लेकिन वर्ष 1992 से 2000 तक जबलपुर के विभिन्न थानों में रहते हुए जबलपुर में अमन-शांति का माहौल कायम किया, गुंडे-बदमाशों को लगभग खत्म कर दिया। अधारताल, गोहलपुर, कोतवाली, लार्डगंज, गोरखपुर में पदस्थ रहते हुए शहर में बढ़ी हुई वाहन चोरी तथा कट्टा एवं बम बनाने के अपराधियों के कुटीर उद्योगों को खत्म कर डाला। स्मैक और गांजे के मोहल्ले-मोहल्ले फैले कारोबार का अंत किया। इसके लिए जहां विभिन्न थानों की पुलिस के साथ संयुक्त अभियान एवं संयुक्त कार्रवाई करने की परिपाटी डाली और जबलपुर पुलिस में टीम भावना से काम करने का एक नजरिया पेश किया है।
उल्लेखनीय है कि यह सभी बातें 1 दिसंबर को कोतवाली थाना परिसर में हुए, उनके विदाई समारोह में उन्हें जानने वाले पुलिस पुलिस अधिकारियों ने भी खुलकर मंच से कही।
प्रमुख यादगार मामले
* सट्टा किंग चिंरौजी का जुलूस निकाल कर गली-गली फैला अवैध कारोबार आ अंत।
* गोरखपुर में कल्चुरि कालीन करोड़ों रुपए मूल्य की कल्चुरि कालीन प्रतिमाएं पकड़ना।
* मध्य प्रदेश में सर्वाधिक दोपहिया चोरी के बाहन बरामद करने का रिकॉर्ड
* प्रदेश में सर्वाधिक आर्म्स एक्ट के प्रकरण दर्ज करने वाले अधिकारी
* सर्वाधिक विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की कार्रवाई करना
* प्रदेश में होने वाले आधा दर्जन से अधिक गंभीर अपराधों में गठित अपराधों की पतासाजी एवं विवेचना में शामिल किया जाना।