दिनांक 14/12/15
* अब कोई नहीं चुरा पाएगा प्रदेश के औषधीय पौधों की प्रजातियां
* जेएनकेविवि के बायो टैक्नालॉजी सेंटर में डीएनए फिंगर प्रिंट एवं डीएनए बार कोडिंग प्रोजेक्ट शुरू
* पेटेंट कराए जा सकेंगे प्लांट
दीपक परोहा
9424514521
जबलपुर। भारत के औषधीय पौधों को बचाने के लिए जबलपुर के जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय में तेजी से काम चल रहा है। यहां के बायो टैक्नालॉजी सेंटर में लगभग 100 से अधिक प्लांटों के डीएनए फिंगर प्रिंट एवं डीएनए बार कोडिंग की जा रही है। विवि की इस कवायद के बाद भारतीय औषधीय पौधों का पेटेंट किया जाना भी आसान हो जाएगा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले नीम तथा हल्दी जैसे विवाद की स्थिति भी कभी निर्मित नहीं होगी।
बायो टैक्नालॉजी सेंटर के डायरेक्टर डॉ. शरत् तिवारी ने बताया कि करीब दो करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट प्रदेश सरकार से मिला है। इसके तहत मध्य प्रदेश के औषधीय पौधों के डीएनए कोड तैयार करना है। इसके अतिरिक्त आदिवासियों की उपज कोदो, कुटकी, तिली आदि उपज के भी जींस कोड तैयार किए जा रहे हैं। डीएनए बार कोडिंग तैयार होने पर कम्प्यूटर में एक क्लिक करने पर पौधों की पूरी जन्म कुण्डली सामने रहेगी। यही कोडिंग पेटेंट कराने के कार्य में आती है।
अनुवांशिक उत्पत्ति पर अध्ययन
कृषि विश्व विद्यालय में औषधीय पौधों को लेकर गहन अनुसंधान गत वर्ष से प्रारंभ किए गए हैं। इसके तहत पौधों के जींस से उनकी अनुवांशिक उत्पत्ति के सम्बंध में अध्ययन किया जा रहा है। पौधों के डीएनए बार कोड तैयार होने के बाद इस प्लांट के बारे में अनेक अनसुलझे रहस्यों से पर्दा भी उठेगा। इसके साथ ही नए किस्म के और अधिक गुणों वाली औषधीय पौधों की प्रजातियों विकसित की जाने में मदद मिलेगी।
मोटे खाद्यान्न हमारी विरासत
दरअसल आदिवासियों की परम्परागत खेती के मोटे खाद्यान्न कम पानी तथा बंजर जमीन में भी अच्छी उपज देते है और इनमें प्रचुर मात्रा में पौष्टिकता होती है। ये खाद्यान्न प्रदेश की विरासत है। लाखों सालों से सरवाइव करने वाले इन प्रजातियों की उपयोगिता, उनके गुण को ध्यान में रखते हुए वैश्वीकरण के चलते इसके कोड तैयार करना बेहद आवश्यक हो गया है। इससे भविष्य में ये उपज यदि देश से बाहर जाती है तो पेटेंट कराने का लाभ प्रदेश को रायल्टी के रूप में मिल सकता है। वहीं आदिवासियों की इन उपज को कोई अपने यहां की होने का दावा भी नहीं कर सकता है।
अनेक औषधीय प्लांट
उल्लेखनीय है कि जबलपुर, मंडला, निवास, अमरकंटक, शहडोल, उमरिया, पचमढ़ी, होशंगाबाद, दमोह सहित प्रदेश के अन्य जंगल वाले इलाकों में बड़ी संख्या में दुर्लभ जड़ी बूटियों वाले प्लांट मौजूद हैं। इसके खोज की आवश्यकता भी है। प्रदेश में मालवा, बुन्देलखंड, विन्ध्याचल, सतपुड़ा, महाकौशल, बघेल खंड आदि अंचलों के मैदानी एवं जंगली इलाकों में प्रचुर मात्रा में औषधीय पौधे मिल रहे हैं। इन दुर्लभ औषधीय प्लांट को खोज कर जींस कोड तैयार कर पौधों की उत्पत्ति उनके विकास क्रम के अध्ययन का भी कार्य चल रहा है। विश्व विद्यालय के बायो टैक्नालॉजी सेंटर में औषधीय पौधों के जेनेटिक कोड तैयार किए जा रहे हैं जिसको डीएनए प्रिंटिंग प्रोजेक्ट का नाम दिया गया है।
किया जा रहा रिसर्च
जेनिटक कोड पर विश्व विद्यालय सिर्फ भारत भर के वैज्ञानिकों के साथ ही नहीं बल्कि विदेशी वैज्ञानिकों के साथ मिलकर रिसर्च कर रहे हैं। हमने गेहूं की नई प्रजातियों के जैनेटिक कोड तैयार किए हैं। इसके अतिरिक्त बायो टेक्नालॉजी सेंटर मे औषधीय पौधों के डीएनए फिंगर प्रिंट पर भी कार्य किया जा रहा है।
डॉ वीएस तोमर,
कुलपति, जेएनकेविवि
* अब कोई नहीं चुरा पाएगा प्रदेश के औषधीय पौधों की प्रजातियां
* जेएनकेविवि के बायो टैक्नालॉजी सेंटर में डीएनए फिंगर प्रिंट एवं डीएनए बार कोडिंग प्रोजेक्ट शुरू
* पेटेंट कराए जा सकेंगे प्लांट
दीपक परोहा
9424514521
जबलपुर। भारत के औषधीय पौधों को बचाने के लिए जबलपुर के जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय में तेजी से काम चल रहा है। यहां के बायो टैक्नालॉजी सेंटर में लगभग 100 से अधिक प्लांटों के डीएनए फिंगर प्रिंट एवं डीएनए बार कोडिंग की जा रही है। विवि की इस कवायद के बाद भारतीय औषधीय पौधों का पेटेंट किया जाना भी आसान हो जाएगा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले नीम तथा हल्दी जैसे विवाद की स्थिति भी कभी निर्मित नहीं होगी।
बायो टैक्नालॉजी सेंटर के डायरेक्टर डॉ. शरत् तिवारी ने बताया कि करीब दो करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट प्रदेश सरकार से मिला है। इसके तहत मध्य प्रदेश के औषधीय पौधों के डीएनए कोड तैयार करना है। इसके अतिरिक्त आदिवासियों की उपज कोदो, कुटकी, तिली आदि उपज के भी जींस कोड तैयार किए जा रहे हैं। डीएनए बार कोडिंग तैयार होने पर कम्प्यूटर में एक क्लिक करने पर पौधों की पूरी जन्म कुण्डली सामने रहेगी। यही कोडिंग पेटेंट कराने के कार्य में आती है।
अनुवांशिक उत्पत्ति पर अध्ययन
कृषि विश्व विद्यालय में औषधीय पौधों को लेकर गहन अनुसंधान गत वर्ष से प्रारंभ किए गए हैं। इसके तहत पौधों के जींस से उनकी अनुवांशिक उत्पत्ति के सम्बंध में अध्ययन किया जा रहा है। पौधों के डीएनए बार कोड तैयार होने के बाद इस प्लांट के बारे में अनेक अनसुलझे रहस्यों से पर्दा भी उठेगा। इसके साथ ही नए किस्म के और अधिक गुणों वाली औषधीय पौधों की प्रजातियों विकसित की जाने में मदद मिलेगी।
मोटे खाद्यान्न हमारी विरासत
दरअसल आदिवासियों की परम्परागत खेती के मोटे खाद्यान्न कम पानी तथा बंजर जमीन में भी अच्छी उपज देते है और इनमें प्रचुर मात्रा में पौष्टिकता होती है। ये खाद्यान्न प्रदेश की विरासत है। लाखों सालों से सरवाइव करने वाले इन प्रजातियों की उपयोगिता, उनके गुण को ध्यान में रखते हुए वैश्वीकरण के चलते इसके कोड तैयार करना बेहद आवश्यक हो गया है। इससे भविष्य में ये उपज यदि देश से बाहर जाती है तो पेटेंट कराने का लाभ प्रदेश को रायल्टी के रूप में मिल सकता है। वहीं आदिवासियों की इन उपज को कोई अपने यहां की होने का दावा भी नहीं कर सकता है।
अनेक औषधीय प्लांट
उल्लेखनीय है कि जबलपुर, मंडला, निवास, अमरकंटक, शहडोल, उमरिया, पचमढ़ी, होशंगाबाद, दमोह सहित प्रदेश के अन्य जंगल वाले इलाकों में बड़ी संख्या में दुर्लभ जड़ी बूटियों वाले प्लांट मौजूद हैं। इसके खोज की आवश्यकता भी है। प्रदेश में मालवा, बुन्देलखंड, विन्ध्याचल, सतपुड़ा, महाकौशल, बघेल खंड आदि अंचलों के मैदानी एवं जंगली इलाकों में प्रचुर मात्रा में औषधीय पौधे मिल रहे हैं। इन दुर्लभ औषधीय प्लांट को खोज कर जींस कोड तैयार कर पौधों की उत्पत्ति उनके विकास क्रम के अध्ययन का भी कार्य चल रहा है। विश्व विद्यालय के बायो टैक्नालॉजी सेंटर में औषधीय पौधों के जेनेटिक कोड तैयार किए जा रहे हैं जिसको डीएनए प्रिंटिंग प्रोजेक्ट का नाम दिया गया है।
किया जा रहा रिसर्च
जेनिटक कोड पर विश्व विद्यालय सिर्फ भारत भर के वैज्ञानिकों के साथ ही नहीं बल्कि विदेशी वैज्ञानिकों के साथ मिलकर रिसर्च कर रहे हैं। हमने गेहूं की नई प्रजातियों के जैनेटिक कोड तैयार किए हैं। इसके अतिरिक्त बायो टेक्नालॉजी सेंटर मे औषधीय पौधों के डीएनए फिंगर प्रिंट पर भी कार्य किया जा रहा है।
डॉ वीएस तोमर,
कुलपति, जेएनकेविवि
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