दीपक परोहा
9424514521
*
किसान पाल रहे अनुवांशिक दोष वाले पशु
* देशी नस्ल की गायों पर संकट
* गौर नस्ल की सबसे ज्यादा नस्लें भारत में, फिर भी नस्लें हो रहीं खत्म
किसान पाल रहे अनुवांशिक दोष वाले पशु
* देशी नस्ल की गायों पर संकट, देशी नंदी उपलब्ध नहीं
* पशु चिकित्सा महाविद्यालयों में संकर बीज
* गौर नस्ल की सबसे ज्यादा नस्ले भारत में, फिर भी नस्लें हो रहीं खत्म
...इंट्रो...
जबलपुर में कृषि विश्वविद्यालय है, यहां स्थित नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय में भी देशी नंदी उपलब्ध नहीं है। इतना ही नहीं देश नंदी के वीर्य तक वीर्य बैंक में नहीं है। दरअसल, ये देश गायों पर आए बड़े संकट की बानगी है। बहरहाल, शासन द्वारा देशी गायों की
नस्ल बचाने की दिशा में कार्य किया जा रहा है। फिलहाल प्रदेश में उपलब्ध देशी नस्ल की गायों पर संकट बना है। आम किसान एवं पशु पालकों के पास जो मवेशी मौजूद हैं वे आनुवांशिक दोष से पीड़ित नस्लें हैं।
जबलपुर। सदियों से भारत गौधन के लिए दुनिया में सर्वाधिक उन्नत देश रहा है, आज भी यहां पशुधन अन्य देशों से कई गुना अधिक है, लेकिन दूध उत्पादन की दृष्टि में पिछड़ा हुआ है। जानकारों की माने तो सर्वाधिक मवेशियों की संख्या मध्य प्रदेश, फिर अन्य राज्यों की है, किन्तु दूध उत्पादन में मध्य प्रदेश पिछड़े राज्यों में है।
कृषि वैज्ञानिक तथा एनजीओ डॉ. ब्रजेश कुमार राय ने बताया कि भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के आंकड़ों के मुताबिक देश की आजादी के पहले भारत में देशी गायों की 60 नस्लें पाई जाती थीं, जो घटते हुए 37 नस्ल रह गई है। इसमें से भी मात्र चार नस्लें ही मध्य प्रदेश सहित पूरे देश में पाई जाती हैं तथा शेष नस्लें लुप्त प्राय: है। इसमें से
हाल ही में विलुप्त हुई नस्ल में कृष्णनीरा है।
इस देश में सदियों से गौ संरक्षण के लिए काम किए गए हैं, जिसमें दक्षिण भारत में सर्वाधिक गौ संरक्षण का कार्य हुए हैं।
डॉ. राय ने बताया कि इतिहास में शिवाजी तथा टीपू सुल्तान द्वारा अपनी सामरिक जरूरतों के चलते भारतीय गौ नस्ल के संरक्षण पर कार्य किया गया है।
जबलपुर में चल रहा कार्य
देशी नस्ल को बढ़ावा देने के लिए पशु चिकित्सा महाविद्यालय में नस्ल सुधारने के लिए कार्य किया जा रहा है। इसके साथ ही अच्छी देशी नस्ल के पशु पालन के लिए जागरुकता लाने डॉ. राय कार्य कर रहे हैं। इसी के चलते जबलपुर, मंडला, डिंडोरी, बालाघाट में देशी नस्ल का पालन करने जागरुकता लाई जा रही है।
देशी नस्ल के नंदी नहीं
जानकारों की मानें तो जबलपुर सहित प्रदेश में अच्छे देशी नस्ल के नंदियों का अभाव है, जिसके कारण देशी नस्ल की गाय तैयार नहीं हो रही है।
परिणामस्वरूप किसान सिर्फ मवेशी पाल रहे हैं। जानकारों का तो कहना है कि देशी नस्ल के नंदी किसी पशु चिकित्सा महाविद्यालयों में मौजूद नहीं है। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान देश में मौजूद पशुओं को देशी नस्ल की श्रेणी में नहीं मानते हैं। दरअसल, इसकी वजह यह है कि एक ही समूह के गायों के पालन के परिणामस्वरूप उनकी जींस विविधता इतनी कम हो गई है कि पशुओं में अनुवांशिक दोष उत्पन्न हो गया है, जो नस्ल में 80 प्रतिशत तक अनुवांशिक शुद्धता पाई जा रही है, उन्हें ही देशी नस्ल के रूप में दर्ज किया जा रहा है। पिछले कुछ साल से नस्ल को सूची बद्ध करने का कार्य शुरू किया गया है।
प्रमुख देशी नस्लें
नाम दूध
शाहिवालगिर 10-20 ली.
थापरकर 10-12 ली.
कांकरेज 10-12 ली.
निमाड़ी 5-6 ली.
मालवीय 6-7 ली. -
खिलारी 5-6 ली.
डेढ़ सौ से अधिक थीं नस्लें
जानकारों की मानें तो अविभाजित भारत में प्राचीनकाल में करीब डेढ़ सौ से अधिक उन्नत किस्म की गायों की नस्लें भारत में थीं, जबकि दुनिया भर मे दर्जन नस्लें नहीं थीं। वर्तमान में भारत में जर्सी एवं एचएस विदेशी नस्लों के चलते देशी नस्ल को नजर अंदाज किया गया। जबकि वैज्ञानिक रूप से यह साबित हो चला है कि विदेशी संकर नस्ल की गायों का दूध स्वास्थ्य के लिए घातक एवं देशी नस्लों को दूध स्वास्थ्यवर्द्धक है।
ऐस पड़ा नाम
राजस्थान में पाई जाने वाली देश गाय का नाम थारपारकर पड़ा है। राजस्थानी देशी गाय थार मरूस्थल को पार कर चारगाह तक पहुंचती थी। प्रतिदिन 50-60 किलोमीटर चलने के बाद भी ये दूध दिया करती थी।
...वर्जन...
हमारे यहां देशी नंदी उपलब्ध नहीं है। कृत्रिम गर्भाधान के लिए जो वीर्य बैंक उपलब्ध है, उसमें देशी संकर प्रजाति के हैं। देशी प्रजाति के नंदी के वीर्य उपलब्ध नहीं है।
डॉ. ओपी श्रीवास्तव
पशु चिकित्सा महाविद्यालय
9424514521
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किसान पाल रहे अनुवांशिक दोष वाले पशु
* देशी नस्ल की गायों पर संकट
* गौर नस्ल की सबसे ज्यादा नस्लें भारत में, फिर भी नस्लें हो रहीं खत्म
किसान पाल रहे अनुवांशिक दोष वाले पशु
* देशी नस्ल की गायों पर संकट, देशी नंदी उपलब्ध नहीं
* पशु चिकित्सा महाविद्यालयों में संकर बीज
* गौर नस्ल की सबसे ज्यादा नस्ले भारत में, फिर भी नस्लें हो रहीं खत्म
...इंट्रो...
जबलपुर में कृषि विश्वविद्यालय है, यहां स्थित नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय में भी देशी नंदी उपलब्ध नहीं है। इतना ही नहीं देश नंदी के वीर्य तक वीर्य बैंक में नहीं है। दरअसल, ये देश गायों पर आए बड़े संकट की बानगी है। बहरहाल, शासन द्वारा देशी गायों की
नस्ल बचाने की दिशा में कार्य किया जा रहा है। फिलहाल प्रदेश में उपलब्ध देशी नस्ल की गायों पर संकट बना है। आम किसान एवं पशु पालकों के पास जो मवेशी मौजूद हैं वे आनुवांशिक दोष से पीड़ित नस्लें हैं।
जबलपुर। सदियों से भारत गौधन के लिए दुनिया में सर्वाधिक उन्नत देश रहा है, आज भी यहां पशुधन अन्य देशों से कई गुना अधिक है, लेकिन दूध उत्पादन की दृष्टि में पिछड़ा हुआ है। जानकारों की माने तो सर्वाधिक मवेशियों की संख्या मध्य प्रदेश, फिर अन्य राज्यों की है, किन्तु दूध उत्पादन में मध्य प्रदेश पिछड़े राज्यों में है।
कृषि वैज्ञानिक तथा एनजीओ डॉ. ब्रजेश कुमार राय ने बताया कि भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के आंकड़ों के मुताबिक देश की आजादी के पहले भारत में देशी गायों की 60 नस्लें पाई जाती थीं, जो घटते हुए 37 नस्ल रह गई है। इसमें से भी मात्र चार नस्लें ही मध्य प्रदेश सहित पूरे देश में पाई जाती हैं तथा शेष नस्लें लुप्त प्राय: है। इसमें से
हाल ही में विलुप्त हुई नस्ल में कृष्णनीरा है।
इस देश में सदियों से गौ संरक्षण के लिए काम किए गए हैं, जिसमें दक्षिण भारत में सर्वाधिक गौ संरक्षण का कार्य हुए हैं।
डॉ. राय ने बताया कि इतिहास में शिवाजी तथा टीपू सुल्तान द्वारा अपनी सामरिक जरूरतों के चलते भारतीय गौ नस्ल के संरक्षण पर कार्य किया गया है।
जबलपुर में चल रहा कार्य
देशी नस्ल को बढ़ावा देने के लिए पशु चिकित्सा महाविद्यालय में नस्ल सुधारने के लिए कार्य किया जा रहा है। इसके साथ ही अच्छी देशी नस्ल के पशु पालन के लिए जागरुकता लाने डॉ. राय कार्य कर रहे हैं। इसी के चलते जबलपुर, मंडला, डिंडोरी, बालाघाट में देशी नस्ल का पालन करने जागरुकता लाई जा रही है।
देशी नस्ल के नंदी नहीं
जानकारों की मानें तो जबलपुर सहित प्रदेश में अच्छे देशी नस्ल के नंदियों का अभाव है, जिसके कारण देशी नस्ल की गाय तैयार नहीं हो रही है।
परिणामस्वरूप किसान सिर्फ मवेशी पाल रहे हैं। जानकारों का तो कहना है कि देशी नस्ल के नंदी किसी पशु चिकित्सा महाविद्यालयों में मौजूद नहीं है। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान देश में मौजूद पशुओं को देशी नस्ल की श्रेणी में नहीं मानते हैं। दरअसल, इसकी वजह यह है कि एक ही समूह के गायों के पालन के परिणामस्वरूप उनकी जींस विविधता इतनी कम हो गई है कि पशुओं में अनुवांशिक दोष उत्पन्न हो गया है, जो नस्ल में 80 प्रतिशत तक अनुवांशिक शुद्धता पाई जा रही है, उन्हें ही देशी नस्ल के रूप में दर्ज किया जा रहा है। पिछले कुछ साल से नस्ल को सूची बद्ध करने का कार्य शुरू किया गया है।
प्रमुख देशी नस्लें
नाम दूध
शाहिवालगिर 10-20 ली.
थापरकर 10-12 ली.
कांकरेज 10-12 ली.
निमाड़ी 5-6 ली.
मालवीय 6-7 ली. -
खिलारी 5-6 ली.
डेढ़ सौ से अधिक थीं नस्लें
जानकारों की मानें तो अविभाजित भारत में प्राचीनकाल में करीब डेढ़ सौ से अधिक उन्नत किस्म की गायों की नस्लें भारत में थीं, जबकि दुनिया भर मे दर्जन नस्लें नहीं थीं। वर्तमान में भारत में जर्सी एवं एचएस विदेशी नस्लों के चलते देशी नस्ल को नजर अंदाज किया गया। जबकि वैज्ञानिक रूप से यह साबित हो चला है कि विदेशी संकर नस्ल की गायों का दूध स्वास्थ्य के लिए घातक एवं देशी नस्लों को दूध स्वास्थ्यवर्द्धक है।
ऐस पड़ा नाम
राजस्थान में पाई जाने वाली देश गाय का नाम थारपारकर पड़ा है। राजस्थानी देशी गाय थार मरूस्थल को पार कर चारगाह तक पहुंचती थी। प्रतिदिन 50-60 किलोमीटर चलने के बाद भी ये दूध दिया करती थी।
...वर्जन...
हमारे यहां देशी नंदी उपलब्ध नहीं है। कृत्रिम गर्भाधान के लिए जो वीर्य बैंक उपलब्ध है, उसमें देशी संकर प्रजाति के हैं। देशी प्रजाति के नंदी के वीर्य उपलब्ध नहीं है।
डॉ. ओपी श्रीवास्तव
पशु चिकित्सा महाविद्यालय
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