Wednesday, 6 January 2016

नसबंदी के बाद भी हो गए जुड़वां बच्चे


-बालाघाट के किरनापुर ब्लॉक की पीएचसी का मामला, आदिवासी परिवार हुआ शिकार
जबलपुर। बड़वानी के आंख फुड़वा कांड की सुर्खियों के बीच समीपवर्ती बालाघाट जिले के किरनापुर-किन्ही स्थित उप स्वास्थ्य केन्द्र में लापरवाही का एक और मामला सामने आया है। इस मामले में गजब का कमाल हुआ कि नसबंदी के बाद भी एक आदिवासी महिला ने जुड़वां बच्चों को जन्म दे दिया। गरीबी के बीच किसी तरह जीवन यापन करने वाले इस परिवार पर दो बच्चों का यह जन्म जहां एक बड़ी मुसीबत की तरह बनकर टूटा है वहीं जिम्मेदार इसे सामान्य घटना मान रहे हैं।
बताया जाता है कि किरनापुर अंतर्गत ग्राम पंचायत किन्ही निवासी मनोज उइके के पहले से दो बच्चे हैं। मनोज ने अपनी पत्नी पत्नी सीता बाई का एक साल पहले नसबंदी आॅपरेशन कराया था। साल भर बीतने के बाद सीता बाई उइके फिर से गर्भवती हो गई। इसे आदिवासी परिवार ने ईश्वरीय लीला मान कर स्वीकार कर लिया। पिछले दिनों सीता बाई को प्रसव पीड़ा शुरू हुई तो उसे उप स्वास्थ्य केन्द्र लाया गया, जहां उसकी डिलीवरी कराई गई। जच्चा और बच्चा दोनों ही स्वस्थ हैं पर आदिवासी परिवार इसे लेकर बेहद परेशान है।
इस संबंध में बीएमओ किरनापुर डॉ. एनआर रंगारे ने बताया कि किसी
कारण से नसबंदी आॅपरेशन फेल हो गया। मनोज उईके ने पत्नी के गर्भवती होने की सूचना आंगनबाड़ी एवं उप स्वास्थ्य केन्द्र में दर्ज कराई थी। वह गर्भपात नहीं कराना चाहता था। इसलिए उसे सरकारी दर से मुआवजा देने की तैयारी की जा रही है।
बाक्स..
जुड़वां होने पर भी उतनी ही क्षतिपूर्ति
नसबंदी कराने के पीछे व्यक्ति का मुख्य उद्देश्य रहता है कि उसको दो बच्चे होने के शासकीय लाभ मिले तथा उसको अनचाहे बच्चों की परवरिश में अनावश्यक खर्च न करना पड़े, लेकिन ऐसे मामले में मात्र 30 हजार रुपए क्षतिपूर्ति दी जाती है, जबकि पालक को बच्चे पालने में बहुत बड़ा खर्च आता है। वहीं शासकीय योजनाओं के लाभ से भी वे वंचित होते हैं। चिकित्सीय सूत्रों का कहना है कि क्षतिपूर्ति सिर्फ आॅपरेशन फेल होने का दिया जाता है। जुड़वां बच्चा होने पर भी एक बच्चे के हिसाब से 30 हजार क्षतिपूर्ति दी जाती है। पूर्व में ऐसे मामलों के लिए शासन बीमा कराया करती थी, लेकिन अब बीमा भी बंद कर दिया गया है।

...वर्जन...
मैंने पत्नी की नसबंदी कराई थी। इसके बावजूद पत्नी गर्भवती हो गई तो गांव वालों के समझाने पर इसको ईश्वर की मर्जी मान लिया। बाद में जुड़वा बच्चे हुए तो लगता है कि अब इनकी परवरिश निश्चित तौर पर एक बड़ी मुश्किल से कम नहीं है। नवजात दोनों बच्चे स्वस्थ हैं। शासन से मुआवजा के लिए आवेदन किया है। डॉक्टर ने क्षतिपूर्ति दिलवाने का आश्वासन दिया है।
मनोज उइके,
जुड़वां बच्चों का पिता
फेल हो जाते हैं आॅपरेशन
नसबंदी आॅपरेशन कई बार फेल हो जाते हैं। इसके लिए नसबंदी कराने वाली महिला को 30 हजार रुपए क्षतिपूर्ति देने का प्रावधान है।  गर्भधारण होने के बाद प्रकरण तैयार कर प्रमाण पत्र सहित शासन को भेज दिया गया है। मुआवजा राशि महिला को दिलाई जाएगी।
डॉ. केके खोसला
सीएमएचओ, बालाघाट

No comments:

Post a Comment