जबलपुर। नेताजी सुभाष चंद्र बोस केन्द्रीय जेल में बंदियों को सिर्फ कारावास की सजा काटने भर के लिए नहीं रखा जाता है। नेता जी सुभाष चंद्र बोस को बंदी के तौर पर रखने वाली इस जेल को काफी हद तक सुधारगृह में तब्दील कर लिया गया है। बंदियों के वेलफेयर के लिए पूरा एक विभाग कार्यरत है। बंदियों की सजा जब पूरी हो जाए और वे जेल से रिहा होकर समाज में पहुंचे तो उन्हें समाज की मुख्यधारा में जुड़ने कोई परेशानी न होए। इसके लिए केन्द्रीय जेल जबलपुर में बंदी कल्याण के लिए अनेक योजनाएं चलाई जा रही है। यहां हॉल ही में बंदियों को ड्रायविंग प्रशिक्षण प्रदान करने का काम शुरू किया गया है और उन्हें आरटीओ से ड्रायविंग लायसेंस भी मिल रहे है। जेल से जब वे रिहा होंगे तो उनके हाथों में हुनर होगा और पुर्नवास में कोई समस्या नही आएगी। केन्द्रीय जेल जबलपुर में ड्रायविंग के शौकीन बंदियों को बकायदा जेल ड्रायवरों द्वारा ड्रायविंग का कड़ा प्रशिक्षण दिया जा रहा है। उनके प्रशिक्षण की गुणवत्ता शहर के अनेक ड्रायविंग स्कूल से काफी उच्च कोटी की रहती है। प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले बंदी जेल वैन को लेकर शहर में आते और जाते भी है। अनेक बाद जेल ड्रायवर के छुट्टी पर होने पर ये ही बंदी केन्द्रीय जेल से बंदियों को वैन में लेकर कोर्ट जाते और उन्हें वहां से लेकर आते है। जेल में ड्रायवरों की कमी का भी निराकरण हो चुका है। अबतक लगभग पौने दो दर्जन से अधिक बंदियों को हैवी ड्रायविंग लायसेंस मिल चुके है। ड्रायविंग सीखने वाले बंदी बेहद खुश है उनके पास ड्रायविंग लायसेंस है। उन्हें उम्मीद है कि जेल से रिहा होने के बाद उनके पास एक हुनर होगा और उन्हें ईमानदारी और मेहनत से रोजी रोटी चलाने का जरिया मिल जाएगा। केन्द्रीय जेल में अब तक 40 बंदियों को ड्रायविंग का प्रशिक्षण दिया जा चुका है। जेल में अन्य प्रशिक्षण कार्यक्रम उपक्रम - बंदी संख्या साबुन फैम्टरी- 50 बुनाई हाथकरघा- 150 लोहारी, बेल्डिंग- 30 कारपेंट्री -150 प्रिंट प्रेस- 50 ललित कला- 25 अमरेन्द्र सिंह ---------------------------------------------------------- जबलपुर। राज्य सेवा के अधिकारी अमरेन्द्र सिंह अपनी नेत्रत्व क्षमता और कुशल कार्यप्रणाली के लिए पुलिस मोहकमें में पहचाने जाते है। सन 2001 बैच के अधिकारी अमरेन्द्र सिंह भोपाल, इंदौर और शिवपुरी जिले में पदस्थ रह चुके हैं। जबलपुर जिले में सीएसपी रांझी और वर्तमान में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक शहर के पद पर हैं तथा शहर के पुलिस बल को उनका कुशल नेतृत्व प्रदान कर रहें हैं। अनेक विषम परिस्थितियों में उन्होंने पुलिस बल का मनोबल उंचा बनाए रखा और अपनी कप्तानी का लोहा मनवाने में कामयाब रहें। यहां हाईकोर्ट में अधिवक्ताओं के उग्र आंदोलन में पथराव के दौरान पुलिस बल का संयमित एवं नियंत्रण में रखा और एक बड़े फसाद को टालने में कामयाब हुए। भरतीपुर में दो बार सम्प्रदायिक तनाव के माहौल में कम बल की मौजूदगी के बावजूद स्थिति नियंत्रण में बनाए रखी। उनकी सूझबूझ, निडरता और मिलसार गुण का पुलिस पुलिस मोहकमें को लाभ है। अनेक अनसुलझे हत्याकांड के खुलासा करने और बड़े फरार अपराधियों को पकड़वाले का श्रेय भी उनके खाते में जा चुका है। उनसे संवाददाता दीपक परोहा की बातचीत के अंश निम्न हैं- * पुलिस में क्या कमी आप महसूस करतें हैं? ** यदि देखा जाए तो पुलिस अब भी संसाधनों की तुलना में काफी पिछड़ी हुई है। अपराधी हाईटेक हो चुके है और आधुनीकि तकनीकी और संसाधन अपना रहे है। जहां पुलिस में संसाधनों की कमी है और उपर से पुलिस बल भी क्षेत्र की जनसंख्या और भौगोलिक स्थिति की तुलना में बेहद कम है। इस कमी को दूर करने शासन स्तर पर प्रयास चल रहे है। * पुलिस संसाधनों में पिछड़ी है फिर भी उसे आम आदमी की जानमाल की हिफाजत करनी है,ये उसकी ड््यटी का हिस्सा है? ऐसे में आप क्या कर सकते हैं? ** पुलिस संसाधन कम होने पर सुनियोजित पुलिसिंग पूरी दक्षता से कराई जा रही है, जिससे हम शहर में अमनचैन कायम कर रखे हैं। व्यवस्थिति पुलिसिंग के कारण लोगों की जानमाल की हिफाजत करने में भी सफल है। अपराध होने पर अपराधियों को पकड़ कर उन्हें सजा दिलवा रहे है जिससे अपराध दर नियंत्रण में है। * एक अच्छे पुलिस अधिकारी के क्या गुण होने चाहिए, आप में वैसी खूबी मौजूद है? ** एक पुलिस अधिकारी का मुख्य गुण अपनी फोर्स का मनोबल हमेशा उंचा रखना होता है। अपने अधिनस्त और सहयोगी अधिकारियों के बीच तालमेल बनाकर पूरी टीम भावना से काम करना और करवाना आना चाहिए। वह जब फील्ड में मौजूद हो तो उसे जमीनी हकीकत मालूम होनी चाहिए। सूचना तंत्र उसका जबदस्त मजबूत होना चाहिए। जहां तक मेरा सवाल है तो मैने अब तक कुशलता के साथ इन्ही गुणों के कारण पुलिस को नेतृत्व करते आ रहा हूं। * आम जनता पुलिस के नाम से डरती है, और आज अपराधियों पर पुलिस का खौफ कम हो रहा है, ये बदलती सामाजिक व्यवस्था पुलिस के लिए कहां तक उचित है? ** हमेशा पुलिस कर्मचारियों की मीटिंग में मुख्य विषय यही होता है कि आम जनता के बीच पुलिस की छबि बेहतर रहे। जनता और पुलिस के बीच सतत संवाद की स्थिति बनी रहे। इससे उनका सूचना तंत्र मजबूत होगा और पुलिसिंग के लिए बेहद उपयोगी रहेगा। जनता में पुलिस का खौफ नहीं अपराधियों में होना चाहिए। इसके लिए हमारा हमेशा प्रयास रहता है कि कोई भी वारदात होने पर पुलिस तत्काल एक्शन पर आ जाए, अपराधी को पकड़ा जाए और उसे सजा दिलाई जाए। इससे अपराधियों में पुलिस और कानून का खौफ पैदा होगा। लाठी भांजने मात्र से पुलिस का खौफ अपराधियों पर नहीं पड़ेगा। * आपका कोई यादगार मामला? ** जबलपुर में हुआ बहुचर्चित आरोही हत्याकांड एक यादगार केस है जिसमें हमें बेहद अधिक मेहनत करनी पड़ी और सफलता भी मिली। इसी तरह इंदौर में दोहरे और तिहरे हत्याकांड है जिसमें तीन आरोपियों को फांसी की सजा हुई। ******************************************** ***अमरेन्द्र सिंह ---------------------------------------------------------- जबलपुर। राज्य सेवा के अधिकारी अमरेन्द्र सिंह अपनी नेत्रत्व क्षमता और कुशल कार्यप्रणाली के लिए पुलिस मोहकमें में पहचाने जाते है। सन 2001 बैच के अधिकारी अमरेन्द्र सिंह भोपाल, इंदौर और शिवपुरी जिले में पदस्थ रह चुके हैं। जबलपुर जिले में सीएसपी रांझी और वर्तमान में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक शहर के पद पर हैं तथा शहर के पुलिस बल को उनका कुशल नेतृत्व प्रदान कर रहें हैं। अनेक विषम परिस्थितियों में उन्होंने पुलिस बल का मनोबल उंचा बनाए रखा और अपनी कप्तानी का लोहा मनवाने में कामयाब रहें। यहां हाईकोर्ट में अधिवक्ताओं के उग्र आंदोलन में पथराव के दौरान पुलिस बल का संयमित एवं नियंत्रण में रखा और एक बड़े फसाद को टालने में कामयाब हुए। भरतीपुर में दो बार सम्प्रदायिक तनाव के माहौल में कम बल की मौजूदगी के बावजूद स्थिति नियंत्रण में बनाए रखी। उनकी सूझबूझ, निडरता और मिलसार गुण का पुलिस पुलिस मोहकमें को लाभ है। अनेक अनसुलझे हत्याकांड के खुलासा करने और बड़े फरार अपराधियों को पकड़वाले का श्रेय भी उनके खाते में जा चुका है। उनसे संवाददाता दीपक परोहा की बातचीत के अंश निम्न हैं- * पुलिस में क्या कमी आप महसूस करतें हैं? ** यदि देखा जाए तो पुलिस अब भी संसाधनों की तुलना में काफी पिछड़ी हुई है। अपराधी हाईटेक हो चुके है और आधुनीकि तकनीकी और संसाधन अपना रहे है। जहां पुलिस में संसाधनों की कमी है और उपर से पुलिस बल भी क्षेत्र की जनसंख्या और भौगोलिक स्थिति की तुलना में बेहद कम है। इस कमी को दूर करने शासन स्तर पर प्रयास चल रहे है। * पुलिस संसाधनों में पिछड़ी है फिर भी उसे आम आदमी की जानमाल की हिफाजत करनी है,ये उसकी ड््यटी का हिस्सा है? ऐसे में आप क्या कर सकते हैं? ** पुलिस संसाधन कम होने पर सुनियोजित पुलिसिंग पूरी दक्षता से कराई जा रही है, जिससे हम शहर में अमनचैन कायम कर रखे हैं। व्यवस्थिति पुलिसिंग के कारण लोगों की जानमाल की हिफाजत करने में भी सफल है। अपराध होने पर अपराधियों को पकड़ कर उन्हें सजा दिलवा रहे है जिससे अपराध दर नियंत्रण में है। * एक अच्छे पुलिस अधिकारी के क्या गुण होने चाहिए, आप में वैसी खूबी मौजूद है? ** एक पुलिस अधिकारी का मुख्य गुण अपनी फोर्स का मनोबल हमेशा उंचा रखना होता है। अपने अधिनस्त और सहयोगी अधिकारियों के बीच तालमेल बनाकर पूरी टीम भावना से काम करना और करवाना आना चाहिए। वह जब फील्ड में मौजूद हो तो उसे जमीनी हकीकत मालूम होनी चाहिए। सूचना तंत्र उसका जबदस्त मजबूत होना चाहिए। जहां तक मेरा सवाल है तो मैने अब तक कुशलता के साथ इन्ही गुणों के कारण पुलिस को नेतृत्व करते आ रहा हूं। * आम जनता पुलिस के नाम से डरती है, और आज अपराधियों पर पुलिस का खौफ कम हो रहा है, ये बदलती सामाजिक व्यवस्था पुलिस के लिए कहां तक उचित है? ** हमेशा पुलिस कर्मचारियों की मीटिंग में मुख्य विषय यही होता है कि आम जनता के बीच पुलिस की छबि बेहतर रहे। जनता और पुलिस के बीच सतत संवाद की स्थिति बनी रहे। इससे उनका सूचना तंत्र मजबूत होगा और पुलिसिंग के लिए बेहद उपयोगी रहेगा। जनता में पुलिस का खौफ नहीं अपराधियों में होना चाहिए। इसके लिए हमारा हमेशा प्रयास रहता है कि कोई भी वारदात होने पर पुलिस तत्काल एक्शन पर आ जाए, अपराधी को पकड़ा जाए और उसे सजा दिलाई जाए। इससे अपराधियों में पुलिस और कानून का खौफ पैदा होगा। लाठी भांजने मात्र से पुलिस का खौफ अपराधियों पर नहीं पड़ेगा। * आपका कोई यादगार मामला? ** जबलपुर में हुआ बहुचर्चित आरोही हत्याकांड एक यादगार केस है जिसमें हमें बेहद अधिक मेहनत करनी पड़ी और सफलता भी मिली। इसी तरह इंदौर में दोहरे और तिहरे हत्याकांड है जिसमें तीन आरोपियों को फांसी की सजा हुई। ******************************************** ********************************************* ****************************************** ----------------------------------------------------------- वन्य पक्षियों की अवैध फार्मिग और कारोबार वन विभाग कर रहा जांच, किस लिए बिकते है ये भी पता नहीं जबलपुर। दुर्लभ वन्य पक्षी की अवैध फार्मिंग एवं उनके अवैध विक्रय के कारोबार की वन विभाग को काफी अर्से से सूचना मिलती रही है लेकिन अब तक पक्षियों का अवैध कारोबार करने वाला बड़ा गिरोह पुलिस के हाथ नहीं लगा। अलबत्ता गुरंदी तथा अन्य क्षेत्र में विक्रय के लिए आने वाले तोते तथा लव वर्ड सहित अन्य कुछ प्रजाति के पंछियों को जब्त कर उन्हें खुले आसमान में छोड़ने की वन विभाग ने कार्रवाई की लेकिन इस पक्षियों को पकड़ने, उनकी अवैध फार्मिग करने वाले गिरोह व उसके नेटवर्क को उजागर नहीं कर पाया गया। अलबत्ता गत गुरूवार को ऐसा एक संदिग्ध गिरोह वन विभाग के हाथ लगा है लेकिन कानूनी दांवपेंच के चलते गिरोह पर कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है। अलबत्ता एंटी पोचिंग टीम ने मामला जांच पड़ताल में ले लिया है। सूत्रों के अनुसार जबलपुर के आसपास जंगली क्षेत्रों में पक्षियों के अवैध कारोबारी के जबलपुर आने की खबर पर वन विभाग के अमले ने फूटाताल क्षेत्र वन विभाग ने दबिश देकर पक्षियों के व्यापारियों को पकड़ा । उनके पास दुर्लभ शुतुरमुर्ग की तरह के पक्षी मिले लेकिन उनके पास जो पक्षी मिले उसको देखकर वन विभाग भी चौक गए। ये शुतुरमुर्ग नहीं थे। पक्षी के व्यापारियों ने उन्हे एमओ नामक पक्षी बताया और कहा कि यह पालतू पक्षी के श्रेणी का है। वन विभाग कानूनी दांव पेंच के चलते पक्षी को जब्त नहंी कर पाया लेकिन उनकी तस्वीरें उतार कर तथा व्यापारियों की आईडी और पता ठिकाना लेकर उन्हें छोड़ दिया। मामले की जांच पड़ताल प्रारंभ कर दी है। वन विभाग इन पक्षियों को लेकर संशय में है। उन्हें नहीं मालूम ये किस नस्ल के पक्षी हैं और वे वन्य प्राणी है अथवा नहीं ? इनका क्या उपयोग है? क्यो पाले जाते है? इस सब से वन विभाग अनभिज्ञ है। फिलहाल वन विभाग ने मामला जांच में लिया है। पक्षियों का कारोबार करने वाले नागपुर से आए थे। ऐसा समझा जा रहा है कि नागपुर से लगे प्रदेश के जिलों में इन पक्षियों की व्यापक पैमाने में फार्मिग हो रही है। अंडे की खातिर चलता है कारोबार सूत्रों की माने तो शुतुरमुर्ग के अंडे बेहद कीमती होते है। विदेशों में शुतुरमुर्ग की फार्मिंग भी होती है और उसके अंडे बिकते हैैं लेकिन वन विभाग सुतुरमुर्ग पालने की अनुमति नहीं देता है जिसके परिणाम स्वरूप उसके वर्णशंकर का अवैध कारोबार जमकर फैल रहा है। वर्जन शुतुरमुर्ग की तरह पक्षी मिले थे लेकिन वे शुतुरमुर्ग नहीं थे। ऐसा समझा जाता है कि पक्षी का अवैध कारोबार करने वाले ग्राहक को शुतुरमुर्ग बताकर बेचने का कारोबार करते है। वन विभाग मामले की जांच पड़ताल कर रही है। आरके पांडे डीएफओ, एन्टी पेचिंग स्क्वाड