Wednesday, 30 September 2015

सिहोदा की बदली तस्वीर


 जबलपुर। आजादी के प्रणेता राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जानते थे भारत की आत्मा गांवों में वास करती है। उन्होंने भारतीय गांवों की जो स्वदेशी कल्पना की थी, उनकी कल्पना के विपरीत आजादी के बाद गांव विकसित हुए। यूं कहा जाए कि गांव शहर बनने की होड़ पर दौडने लगे और शहरी बुराइयां गावों में घर कर गई। शराब और नशा खोरी, जुआ-सट्टा, आर्थिक अपराध ,धोखाधड़ी और चोरियां सब कुछ गांवों में होने लगे  लेकिन जबलपुर के भेड़ाघाट क्षेत्रांतर्गत सिहोरा ग्राम के लोगों अब बापू के सपने को साकार कर रहे है।
 करीब 3 हजार की आबादी वाले इस गांव के लोगों ने शराब का सेवन बंद कर दिया है। सट्आ और जुआ खेलना बंद कर दिया गया है। गांव को लगभग अपराध मुक्त बनाया गया है लेकिन यह पुलिसिया डंडे के जोर पर नहीं बल्कि  स्वप्रेरणा से हो रहा है। गांव की महिलाओं ने इसकी शुरूआत की।
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आव्हान किया है कि प्रत्येक सांसद एक गांव को गोद  ले और उसे एक आदर्श गांव बनाए। इसी नक्शेकदम में चलते हुए  जबलपुर पुलिस ने भेड़ाघाट के सिहोदा गांव को गोद लिया।इस गांव को शराब एवं मादक पदार्थों की लत से मुक्त बनाने के लिए दर्जनों सभाएं की।लोगों  के  घर घर पुलिस  पहुंची। ग्रामीणों ने भी रूचि ली और एक दूसरे को प्रेरित करते  चले गए। पिछले जनवरी माह से सतत प्रयास चलते रहे और करीब 8 माह में गांव की तस्वीर बदल गई है।
महिलाओं ने ली रूचि
भेड़ाघाट टीआई एमडी नगौतिया बताते हैं कि पर्यटन स्थल भेड़ाघाट के निकट इस गांव में शहरी लोगों की दखल थी। गांव में अवैध शराब की खूब बिक्री होती थी। गांव के गरीब परिवार के पुरूष नशे के आदी हो रहे थे। घर के युवा के भी नशे की गिरफ्त में जा रहे थे। पुरूषों की कमाई का बड़ा हिस्सा नशा खोरी मेंं जा रहा था। ऐसे में गांव की महिलाएं एकत्र होकर पुलिस के पास पहुंची और अपने मर्दो के लिए कुछ करने की अपील की। तत्कालीन पुलिस अधीक्षक, वर्तमान में एसपी ग्वालिर हरिनारायण चारी मिश्र ने विशेष रूचि दिखाई और भेड़ाघाट थाने को गांव गोद लााो के निर्देश दिए।
सुखदुख में भागीदार बनी
पुलिस ने गांव के लोगों के सुखदुख में भागीदार बन बनी, विभिन्न एनजीओ तथा अन्य संस्थाओं की मदद से ग्रामीणों को स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षण दिया गया। उन्हें रोजगारोन्मुखी किया गया।महिलाओं को सिलाई मशीने दी गई और पेटीकोट, ब्लाउज आदि सिलने लगे। पुरूषों को सायकिल दी गई और वे फेरी लगाकर उन्हें बेंचने लगे। इसी तरह चटाई बुनाई, झाडू बनाने आदि के प्रशिक्षण दिए। इससे गांव के लोगों स्थिति में सुधार आया और गांव में आवारगर्दी युवाओं में बंद हुई। अपराध भी घट गए।
स्वच्छता का महत्व जाना
गांव के लोगों के बार बार बीमार पड़ने, कैद दस्त जैसी बीमारी फैलने पर पुलिस के सहयोग से नियमित स्वास्थ्य कैम्प के आयोजन हुए। चिकित्सकों एवं  वालेंटियर्स ने स्वच्छता के महत्व को समझाया। गांव के लोग अब अपने गांव को स्वच्छ रखने लगे है।
पंचायतों में होते है निर्णय
इस ग्राम के लोग छुटपुट झगड़े एवं विवाद पर पुलिस थाने और कोर्ट कचहरी में जाने बजाए अपने विवाद चौपाल में सुलझाने लगे है। झगड़ों में पुलिस की प्रेरणा पर राजीनामा हो रहे है जिससे लगभग अपराध मुक्त हो गया है सिहोदा।

 सिहोदा गांव पुलिस के प्रयास से नशा मुक्त गांव बना है। यह आदर्श गांव बनने जा रहा है। इसके लिए लगातार गांव की मानीटरिंग अब भी चल रही है।
संजय साहू,
एएसपी ग्रामीण जबलपुर

ऐसे बची रागनी की जान


करीब विगत माह रागनी जैन (काल्पनिक नाम)  आत्महत्या करने घर से निकली और इस दौरान उसने अपने पति को मोबाइल पर सूचना थी कि मै मरने जा रही हूं। महिला काफी अवसाद में थी यह बात उसने पति भी जानते थे। इस दौरान वे कटनी में थे। संयोग से उन्हें संजीवनी हैल्प लाइन का ध्यान आया और तत्काल ही उन्होंने मोबाइल किया। हैल्पाइन से सूचना तत्कालीन एसएसपी ईशा पंत को दी गई। उन्होंने मदन महल पुलिस को महिला को तलाश कर उसे बचाने निर्देश दिए। आधे घंटे के भीतर रागनी को खोज निकाला गया और उसकी जान बचा ली गई।
तिलवार से छलांग लगाई
 छात्रा अनिता (काल्पनिक नाम) का अपने बॉय फ्रेड से विवाद हो गया और वह गुस्से में तिलवारा पुल से छलांग लगाने के लिए निकल गई। इस बीच उसने अपने परिचित को मोबाइल कर आत्महत्या करने करने जाने की जानकारी दी। उसने तत्काल पुलिस एवं हैल्प लाइन में सूचना दी। तिलवारा पुल पर पुलिस ने नाविकों को संजीवनी अभियान में जोड़ रखा है और युवती तिलवारा पुल से छलांग लगाने पर तत्काल ही उसे नदी से निकाल लिया गया  और मेडिकल कालेज अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां जान बच गई।
राजू को घर भेजा गया
तिलवारा पुल से कूद कर खुदकुशी करने राजू नामक ग्रामीण युवक पहुंचा था लेकिन वहां उसकी मनोदशा देखकर ड्यूटी में तैनात पुलिस वाले ने रोक कर पूछताछ की तथा उसे समझाइश दी जिससे उसने आत्महत्या का इरादा टाल दिया। इस तरह से करीब डेढ़ दर्जन लोगो की जाने संजीवनी हैल्प लाइन द्वारा बचाई जा चुकी है।
देश में अब्बल था शहर
तत्कालीन पुलिस अधीक्षक हरिनारायण चारी मिश्रा जो वर्तमान में ग्वालियर पुलिस अधीक्षक है का कहना है कि जबलपुर शहर में जनसंख्या के तुलनात्मक आत्महत्या की दर प्रदेश ही नहीं देश में नम्बर वन पर रही है। लगातार 5 साल आत्महत्या में नम्बर वन पर रहा है। संजीवनी अभियान के तहत लोगों में जागरूकता लाने सेमीनार आदि किए गए। सुसाइडल पाइंटों में बोर्ड आदि लगाए गए। वालेंटियर तैनात किए गए जिससे आत्महत्या की घटनाएं रूकी और प्रदेश में तीसरे स्थान पर 2014 को पहुंच गया था, यहां संजीवनी अभियान चलने की जरूरत हैे।जबलपुर में  वर्ष ं2012 में 572 लोगों ने आत्महत्या की।2013  में 577 लोगों ने खुदकुशी की जबकि 2014 में 470  मामले ही हुए है।
वर्जन
संजीवनी हैल्प लाइन को और गति प्रदान की जाएगी। सभी थानों को निर्देश है कि आत्महत्या संबंधी सूचना मिलने पर तत्काल कार्रवाई कर बचाव के प्रयास करें.
जीपी पराशर
एएसपी जबलपुर
आत्महत्याओं के मामले
वर्ष 2012
भोपाल -377
इंदौर -476
जबलपुर -572
ग्वालियर
जबलपुर -572
ग्वालियर - 287
वर्ष 2013
भोपाल - 560
इंदौर - 698
जबलपुर - 577
ग्वालियर - 299
वर्ष 2014

करोड़ों साल पुरानी पहाड़ियों का कत्लेआम



हाईकोर्ट के निदेर्शों की उड़ाई जा रही धज्जियां
जबलपुर। जबलपुर के पर्यावरण एवं प्राकृतिक धरोहर यहां की ग्रेनाइट निर्मित पहाड़ियां है जिसकी श्रंखला तिलवारा के निकट से रांझी तक फैली है। वहीं घमापुर से होकर महाराजपुर तक ग्रेनाइट की पहाड़ियां है। इसके संरक्षण के हाईकोर्ट के निर्देश के बावजूद पहाड़ियों का कत्लेआम हो रहा है।
 ग्रेनाइट रॉक्स एवं पहाड़ियों के संरक्षण के लिए हाईकोर्ट ने अलग-अलग जनहित याचिकाओं में आदेश दे चुके है लेकिन इसके बावजूद  अब भी खजिन विभाग पहाड़ियों को तोड़ने अनुमति दे रहा है। पहाड़ियों का कत्लेआम खनिज के लिए  नहीं वरन प्लाटिंग के लिए हो रहा है। इतना ही नहीं इसके बदले विभाग को कोई रॉयल्टी नहीं मिल रही है।  पहाड़ी को मिटाकर वहां आवासीय भूखंड तैयार किए जाने का खेल चल रहा है।
 हाल ही में एक मामला प्रकाश में है, जिसके तहत रांझी में बजरंग नगर से लगी करीब 5 एकड़ से अधिक निजी भूखंड जिसमें ग्रेनाइट की रॉक्ट प्रचुरता में मौजूद है। यह मदन महल से लेकर रांझी तक फैली पहाड़ी की श्रंखला का हिस्सा है। इस पर पिछले तीन साल से लगातर तोड़ाई का काम चल रहा है।
अचंभा का विषय यह है कि पहाड़ी को तोड़ने के लिए हैदराबाद से बड़े बड़े कटर मंगाए गए है। जेसीबी मशीन एवं हिटाची मशीन में अन्य मशीने फिट कर पहाड़ी और चट्टाने तोड़ी जा रही है। करीब एक साल से  यहां पहाड़ी तोड़े जाने का काम चलता रहा।
शिकायतों के बाद रोक
यहां पहाड़ी अवैध तौर से तोड़े जाने की शिकायत के बाद रोक लगाई गई तो भू स्वामी बिल्डर मेसर्स महाराजपुर को खनिज उत्खनन की अनुमति रॉयल्टी की शर्त पर दी गई। निरीक्षण में छेनी हथौड़ी का उपयोग किया जाना बताया गया। इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में भी याचिका दायर की गई। इसी बीच बिल्डर्स ने फिर खनन अवधि बढ़ाने मांग की तो क्षेत्रीय लोगों के विरोध में उस पर रोक लगा दी गई।

* अब भी तोड़ी जा रही पहाड़ी
इस मामले को लेकर खनिज विभाग में शिकायकर्ता े चंद्रिका प्रसाद सोनकर ने बताया कि खजिन विभाग की रोक के बावजूद सांठगांठ कर पहाड़ी तोड़ा  जाना जारी है। इस पहाड़ी के संरक्षण के लिए प्रशासन को भूमि अधिगृहण कर लेना चाहिए।
बिकने को तैयार है
इसी तरह बाजनामढ रोड पुरवा पर करीब 11 एकड़ की ग्रेनाइट पहाड़ी को भू स्वामी बिल्डरों के हाथों बेचने प्रयास रत है। इस पहाड़ी को तोड़ने एवं समतलीकरण के लिए खनिज विभाग से दो दफे अनुमति मिल गई है लेकिन संयोग से पहाड़ी बची हुई है लेकिन फिर भी धीरे धीरे कर अवैध तरीके से पहाड़ी का करीब डेढ़ दो एकड़ हिस्सा नष्ट किया जा चुका है।

*कई पहाड़ी नेस्तनाबूत
मदन महल क्षेत्र में शिमला हिल्स पहाड़ी जो निजी भूमि रही है, इसको तोड़कर समतल बनाकर लगभग खत्म की जा चुकी है। वहीं एक पहाड़ी को तोड़कर निजी इंजीनियरिंग कालेज तैयार किया गया है।  शारदा मंदिर के निकट दानबाबा पहाड़ी कत्लेआम जारी है। बेदीनगर से लगी पहाड़ी अब भी तोड़ी जा रही है।
*कोई नियम कानून नहीं
दरअसल राजस्व रिकार्ड में हुए अनेक मालगुजारी पहाड़िया निजी हाथों में आ गई और इसके बाद भू माफिया एकएक कर पहाड़ी का कत्ल करता जा रहा है और जबलपुर के पर्यावरण से जबदस्त तरीके से खिलवाड़ किया जा रहा है। जबकि ये पहाड़ियां जबलपुर की स्वास नलिका की तरह है जहां से पूर्वाई एवं पछुआ हवाओं के शहर में बहने की दिशा तय होती है और शहर को स्वच्छ हवाएं मिलती है।

 * बिना अनुमति के पहाड़ी की एक चट्टान भी नहीं तोड़ने दी जाएगी। नियम विरूद्ध बिना अनुमति के पहाड़ियों में तोड़फोड़ करने पर कार्रवाई की जाएगी। फिलहाल किसी भी पहाड़ी को तोड़ने अनुमति नहीं दी गई है।
एसएन रूपला
कलेक्टर जबलपुर

राजवर्धन महेश्वरी

 राजवर्धन महेश्वरी  
जिले के बेहतरीन अधिकारियों में शुमार श्री महेश्वरी लम्बे समय तक जबलपुर लोकायुक्त में पदस्थ रहे तथा यहां जेडीए के बड़े घोटाले का पर्दाफाश किया जिसमें बिल्डर्स, राजनेता तथा कई अधिकारी आरोपी बनाए गए। श्री महेश्वरी का मानना है कि भ्रष्टाचार मुक्त समाज बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका पुलिस और प्रशासन की ही होती होगी  चंूकि उन्हें शासन से अधिकार मिले है। श्री महेश्वरी से पीपुल्स संवाददाता दीपक परोहा की बातचीत के अंश।
प्रश्न- पुलिस कंट्रोल रूम, लोकायुक्त, डीएसपी क्राइम में लम्बे समय तक पदस्थ रहें हैं, ये पुलिस विभाग में लूप लाइन माने जाते हैं, कंट्रोल रूम में पुलिस कर्मी क्यों नहीं जाना चाहता है?
जवाब- पुलिस कंट्रोल रूम की वर्किग और जिला पुलिस की वर्किग में अंतर होता है। पुलिस कंट्रोल रूम दरअसल संवाद एवं सूचाएं एकत्रित होते है और यहां पुलिस का बल पर नियंत्रण रखा जाता है। यहां भले ही बैठकर काम करना पड़ता है लेकिन बेहद जिम्मेदारी वाला काम होता है यहां गलती की कोई संभहोता है यहां गलती की कोई संभावना नहीं होनी चाहिए। मुझे समय पूर्व पदोन्नति कंट्रोल रूम प्रभारी रहते हुए मिली थी। कंट्रोल रूम की भूमिका के कारण ही सन 1997 में सदर में हुए मदान हत्याकांड का पर्दाफाश हुआ। हर पुलिस वाले को कंट्रोल रूम में काम करने का अनुभव होना चाहिए जिससे वह कम्युनिकेशन के महत्व को भली भांति समझ सकता है। बिना कम्युनिकेशन के फोर्स अंधे हाथी की तरह होती है।
प्रश्न- लोकायुक्त और पुलिस की वर्किग में बेहतर कौन सी है?
जबाव- लोकायुक्त भ्रष्टाचार संबंधी प्रकरणों की जांच पड़ताल करता है। इसके लिए सिर्फ एक ही तरह का काम होता है। लोकायुक्त में लम्बी विवेचना चलती है। यहां पदस्थ अधिकारी को भी फील्ड में काम करना पड़ा है लेकिन इसका क्षेत्र पुलिस की वर्किग से अलग होता है। पुलिस को विभिन्न अपराधों की विवेचना के साथ कानून व्यवस्था देखना पड़ता है। दरअसल आम जनता से पुलिस सीधे जुड़ी होती है इसलिए पुलिस की वर्किग ज्यादा रूचिकर लगती है।
प्रश्न- क्राइम ब्रांच में क्या सुधार होना चाहिए?
जवाब- जबलपुर में क्राइम ब्रांच मेंस्टॉफ की कमी हैं, वाहन तथा अन्य संसाधन कम है लेकिन क्राइम ब्रांच की उपयोगिता को महसूस करते हुए शासन बल के साथ संसाधन भी स्वीकृत किए गए है। 

राजवर्धन महेश्वरी

 राजवर्धन महेश्वरी  
जिले के बेहतरीन अधिकारियों में शुमार श्री महेश्वरी लम्बे समय तक जबलपुर लोकायुक्त में पदस्थ रहे तथा यहां जेडीए के बड़े घोटाले का पर्दाफाश किया जिसमें बिल्डर्स, राजनेता तथा कई अधिकारी आरोपी बनाए गए। श्री महेश्वरी का मानना है कि भ्रष्टाचार मुक्त समाज बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका पुलिस और प्रशासन की ही होती होगी  चंूकि उन्हें शासन से अधिकार मिले है। श्री महेश्वरी से पीपुल्स संवाददाता दीपक परोहा की बातचीत के अंश।
प्रश्न- पुलिस कंट्रोल रूम, लोकायुक्त, डीएसपी क्राइम में लम्बे समय तक पदस्थ रहें हैं, ये पुलिस विभाग में लूप लाइन माने जाते हैं, कंट्रोल रूम में पुलिस कर्मी क्यों नहीं जाना चाहता है?
जवाब- पुलिस कंट्रोल रूम की वर्किग और जिला पुलिस की वर्किग में अंतर होता है। पुलिस कंट्रोल रूम दरअसल संवाद एवं सूचाएं एकत्रित होते है और यहां पुलिस का बल पर नियंत्रण रखा जाता है। यहां भले ही बैठकर काम करना पड़ता है लेकिन बेहद जिम्मेदारी वाला काम होता है यहां गलती की कोई संभहोता है यहां गलती की कोई संभावना नहीं होनी चाहिए। मुझे समय पूर्व पदोन्नति कंट्रोल रूम प्रभारी रहते हुए मिली थी। कंट्रोल रूम की भूमिका के कारण ही सन 1997 में सदर में हुए मदान हत्याकांड का पर्दाफाश हुआ। हर पुलिस वाले को कंट्रोल रूम में काम करने का अनुभव होना चाहिए जिससे वह कम्युनिकेशन के महत्व को भली भांति समझ सकता है। बिना कम्युनिकेशन के फोर्स अंधे हाथी की तरह होती है।
प्रश्न- लोकायुक्त और पुलिस की वर्किग में बेहतर कौन सी है?
जबाव- लोकायुक्त भ्रष्टाचार संबंधी प्रकरणों की जांच पड़ताल करता है। इसके लिए सिर्फ एक ही तरह का काम होता है। लोकायुक्त में लम्बी विवेचना चलती है। यहां पदस्थ अधिकारी को भी फील्ड में काम करना पड़ा है लेकिन इसका क्षेत्र पुलिस की वर्किग से अलग होता है। पुलिस को विभिन्न अपराधों की विवेचना के साथ कानून व्यवस्था देखना पड़ता है। दरअसल आम जनता से पुलिस सीधे जुड़ी होती है इसलिए पुलिस की वर्किग ज्यादा रूचिकर लगती है।
प्रश्न- क्राइम ब्रांच में क्या सुधार होना चाहिए?
जवाब- जबलपुर में क्राइम ब्रांच मेंस्टॉफ की कमी हैं, वाहन तथा अन्य संसाधन कम है लेकिन क्राइम ब्रांच की उपयोगिता को महसूस करते हुए शासन बल के साथ संसाधन भी स्वीकृत किए गए है। 

आंकड़े बने गवाह , पुरूष समाज में भ्रांतियां व्याप्त




 जबलपुर। बढ़ते हुए जनसंख्या दबाव के कारण संसाधनों का बोझ बढ़ा है, ऐसे में परिवार नियोजन७ठŽ७ठज़् @ज्ज् कार्यक्रम की महत्व को दुनिया स्वीकार कर रही है लेकिन आश्चर्यजनक पहलू यह भी है कि इस कार्यक्रम को पुरूषवर्ग ने लगभग नकार दिया है। मध्य प्रदेश में जो शासकीय आंकड़े परिवार नियोजन में आए है, वह महिलाओं की बदौलत आए है। जबलपुर में  महिला नसबंदी करा रही है लेकिन महिलाओं की नशबंदी की तुलना में प बदौलत आए है। महिला नसबंदी करा रही है लेकिन महिलाओं की नशबंदी की तुलना में पुरूष नसबंदी का प्रतिशत 10 प्रतिशत भी कम है।
परिवार नियोजन कार्यक्रम के संचालन में पुरूषों में व्याप्त भ्रांतियां तोड़ने में हैल्थ वर्क स एवं आफिसर लग भग फेल हो गए है।  नशबंदी कराने को पुरूष अपने पौरूषत्व पर प्रहार मानता है।जिन पुरूषों ने नशबंदी कराई भी है तो वे भी अपने यार दोस्तों के साथ गर्व से नहीं कह पाते हैं कि उन्होंने नसबंदी कराई है।
एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक इस महिलाएं काफी आगे है। वे अपनी एटीटी आॅपरेशन होने से बताने में हिचक नहीं महसूस करती है और नही उन्हें इसमें संकोच रहता है। इतना ही नहीं विभिन्न शासकीय योजनाओं का लाभ लेने के लिए महिलाएं नसबंदी कराने में आगे है।
जबलपुर में हुए नशबंदी के आंकड़ों को देखा जाए तो यहां यहां पिछले 5 साल में 91 हजार परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत आॅपरेशन हुए है। ये आपरेशन करने वालों में 89 हजार महिलाएं है।
 यही हाल हर जगह
जानकारों की माने तो मध्य प्रदेश ही नहीं देश के हर राज्य में यही हालत है। पुरूष नशबंदी का मध्यप्रदेश में 5 प्रतिशत से भी कम हो रही है। परिवार

नियोजन कार्यक्रम सिर्फ ट्यूबेक्टमी से चल रहा है जबकि बसेक्टमी(पुरूष नसबंदी) न के बराबर हो रहे हैं।
वर्जन
परिवार नियोजन कार्यक्रम में पुरूषों की भागीदारी न के बराबर है। पुरूष य् बराबर है। पुरूष यदि परिवार नियोजन के लिए आॅपरेशन कराता है तो किसी तरह की कोई परेशानी वाली बात नहीं होती है।
डॉ- विनोद कुमार
 कार्यक्रम अधिकारी
जिले में तुलनात्मक स्थिति
वर्ष पुरूष महिला कुल
2011- 5222 -22010 - 22532
2012 719 -23864 24583
2013 241 -13711 13952
2014 241 15048 1590
जारी वर्ष  175 14459 14634

पर्यावरण मंत्रालय की एनओसी मिलेगी एसएफआरआई की रिपोर्ट पर



जबलपुर। प्रदेश एवं देश में यदि कोई बड़ी परियोजना शुरू होना है ,चाहे बांध निर्माण हो , बड़ी सड़क निर्माण, बहु मंजिला इमारत, खदान तथा अन्य कोई प्रोजेक्ट हो जिसमें पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी आवश्यक है तो अब मंत्रालय राज्य वन अनुसंधान केन्द्र (एसएफआरआई) की सर्वे रिपोर्ट के आधार पर देगा। दरअसल अब तक प्रदेश की कोई भी सरकारी संस्था ऐसी नहीं थी जिसको क् वालिटी कंट्रोल आॅफ इंडिया ने अधिकृत किया हो। इसके साथ ही प्रदेश सहित देश में हजारों संस्थाएं एवं व्यक्ति  व वैज्ञानिक थे जो रिपार्ट तैयार करते थे लेकिन नई नीति के तहत क्वालिटी कंट्रोल आॅफ इंडिया द्वारा ही अनुकृत संस्थाओं की रिपोर्ट अब विचारण योग्य समझी जाएगी।
 जानकारी के अनुसार देश में एसएफआरआई की तरह अन्य संस्थाएं भी है जिन्हें क्यूसीआई ने मान्यता दे रखी है। राज्य वन अनुसंधान केन्द्र ने भी क्यूसीआई के समझ मान्यता प्रदान करने आवेदन कर रखा था। क्सूसीआई की टीम ने पिछले दिनों अनुसंधान का दौरा किया। यहां के वैज्ञानिकों से रूबरू हुए। उनके बातचीत की। रिचर्स संबंधी साजो सामान एवं अन्य तमाम तरह की बिन्दुओं की गंभीरता से पड़ताल की।
गुरूवार को मिला मान्यता
राज्य वन अनुसंधान केन्द्र के डायरेक्टर डॉ. जी कृष्ण मूर्ति ने बताया कि क्यू सीआई से गुरूवार को मान्यता संबंधी आदेश प्राप्त हुए है। इस आदेश से संस्था में काफी उत्साह है। क्यूसीआई ने संस्था के चार वैज्ञानिकों को भी मान्यता प्रदान की है। जिसमें डॉ. आर के पांडे, डॉ प्रतिभा भटनागर, डॉ. अंजना राजपूत तथा डॉ अमित पांडे को अधिकृत किया है।
क्या होगा फायदा
मध्य प्रदेश शासन तथा उससे संबंधी विभाग कोई बड़ी योजना और प्रोजेक्ट
प्रारंभ प्रारंभ करते थे तो उन्हें पर्यावरण मंत्रालय के समझ पर्यावरण पर होने वाले प्रभाव एवं उससे बचाव के उपाय संबंधी प्रोजेक्ट रिपोर्ट प्रायवेट कं सल्टेंट से तैयार करवानी पड़ती थी जिसमें करोड़ों का भुगतान करना पड़ता था लेकिन अब स्वयं शासकीय संस्था को मान्यता मिल गई है जिसका फायदा सरकार को होगा। इतना ही नहीं राज्य वन अनुसंधान संस्था को निजी एवं शासकीय क्षेत्र अपनी प्रोजैक्ट रिपोर्ट तैयार करने देश भर में कहीं के लिए अनुबंधित कर सकते है। इससे संस्था के वैज्ञानिक प्रदेश ही नहीं पूरे देश में कहीं भी प्रोजेक्ट तैयार करने का काम कर सकते हैं।
गाइड लाइन तय है
पर्यावरण मंत्रालय परियोजना के संबंध में जो प्रोजेक्ट मांगती है उसके गाइड लाइन तय है। सड़क निर्माण, रेल लाइन निर्माण, ब्रिज निर्माण, बांध निर्माण, खनन कार्य तथा बड़ी आवासीय कालोनी, नदी के किनारे नगर विकास संबंधी तमाम तरह के कार्य के लिए जीवन जन्तु, वनस्पिति, पर्यावरण, मानव, प्रदूषण की स्थित सहित अन्य बिन्दुओं पर पड़ने वाला प्रतिकूल प्रभाव तथा प्रतिकूल प्रभाव से निपटने संबंधी योजना की जानकारी मांगती है। इसके अतिरिक्त प्रोजेक्ट से संतुष्ट न होने पर आवश्यक अन्य बिन्दुओं पर जानकारी मांग सकती है। इस प्रोजेक्ट को तैयार करने में ही काफी समय लगता है लेकिन गाइड लाइन के तहत पर्यावरण संबंधी प्रोजेक्ट रिपोर्ट राज्य वन अनुसंधान संस्था को एक वर्ष के भीतर करना पड़ेगा।
 कैसे करेगा काम
पर्यावरण संबंधी प्रोजेक्ट राज्य वन अनुसंधान संस्था कैसे तैयार करेगा? इस सबंध में बताया गया कि  उपलब्ध वैज्ञानिक एवं संसाधन का इस्तेमाल तो किया जाएगा लेकिन जररूत पड़ने पर क्यूसीआई द्वारा मान्य वैज्ञानिक को हम अनुबंधित कर सकते है। फिलहाल जिस संस्था के लिए हम प्रोजेक्ट पर काम करेंगे उनको वैज्ञानिकों एवं लगने वाले कर्मचारी, वाहन एवं अन्य संसाधन का खर्चे का भुगतान करना पड़ेगा। कुल खर्च का 15 प्रतिशत संस्था के विकास के लिए लिया जाएगा।
वर्जन
राज्य वन अनुसंधान को मान्यता मिलने से यहां उपलब्ध मानस संसाधन का लाभ उठाया जाएगा तथा संस्था को काम की कोई कमी नहीं रहेगी।
डॉ. जी कृष्ण मूर्ति
डायरेक्टर एसएफआरआई
न अनुसंधान केन्द्र 

बंदी के फरार होने से बंदियों की बढ़ी मुसीबत



जबलपुर।  केन्द्रीय जेल के दो बंदियों  के कारण प्रदेश भर के जेले के हजारों बंदियों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उनकी पैरोल पर जाना आसान नहीं रह गया है।  दरअसल पैरोल पर छोड़े गए केन्द्रीय जेल जबलपुर का एक बंदी छूटने के बाद से फरार है। केद्रीय जेल जबलपुर से पैरोल पर छूटे दो बंदी फरार थे जिसमें से एक तो कुछ दिनों बाद लौट आया जबकि दूसरा बंदी आज तक नहंी लौटा है।
  जेल सूत्रों के मुताबिक लम्बी सजा काट रहे बंदियों को साल भर में करीब 48 दिन की छुट्टी मिलती है। वर्ष में एक  बार बंदी अपनी छुट्टी लेकर कुछ दिन अपने घर में बिता सकते है। पहली पैरोल बंदी को जिला दण्डाधिकारी देता है यदि बंदी जबलपुर जेल का है तो उसको पैरोल की अनुमति अन्य जिले के डीएम द्वारा प्रदान की जाती है। जेल पैरोल का प्रकरण बनाकर डीएम के पास भेजता है। डीएम तत्सबंध में बंदी की गोपनीय चारित्रिक जानकारी संबंधि पुलिस स्टेशन से बुलवाता है जिसके अधार पर पैरोल की मंजूरी ही जाती है। यदि बंदी को डीमए पैरोल मंजूर नहीं करता है तो डीजीपी जेल के पास अपील का अधिकार होता है। जबलपुर जेल के दो बंदी के भागने के कारण इन दिनों केन्द्रीय जेल जबलपुर में बंदियों को पैरोल पर जाने कड़ी पड़ताल का सामना करना पड़ रहा है।
बंदियों को मिल रहा पैरोल
पैरोल में घर जाकर फरार होने वाले बंदियों के मामले बेहद कम है जिसके  कारण शासन  फिलन  पैरोल पर भेज रही है। यूं भी उन्हीं बंदियों को पैरोल पर छोड़ा जाता है जिनके भागने की संभावना शून्य होती है। जेल मुख्यालय भोपाल के मुताबिक इस वर्ष पैरोल पर छूटे बंदियों में से दो बंदी ही फरार हुए है।
बंदी फरार होने से सख्ती
प्रशासन भी बंदियों को पैरोल में छोड़ने के मामले में बेहद सख्त जांच पड़ताल करवा रहा है चूंकि जबलपुर केन्द्रीय जेल से  दो बंदी के भागने के बाद पूरा जेल प्रशासन एवं शासन सजग हो गया है। जेल सूत्रों पैरोल पर भेजे जाने के मामले में सख्ती बढ़ी हुई है जिसके चलते अनेक  बंदी पैरोल से वंचति है फिर भी प्रतिवर्ष प्रदेश भर से हजारों बंदी पैरोल पर छोड़े जा रहे है।

जमानत दार पर कार्रवाई
केन्द्रीय जेल जबलपुर के अधीक्षक अखिलेश तोमर ने बताया कि पैरोल पर छूटे दो बंदियों के लौट कर नहीं आने पर पुलिस थाने में एफआई दर्ज कराई गई है।  जबलपुर से फरार  दो बंदियों में एक बंदी लौट आया जबकि हत्या का फरार आरोपी शमीम उर्फ शानू को गत 18 जनवरी को पैरोल पर छोड़ा गया था जो अवधि पूरी होने के बाद नहीं लौटा है। पैरोल पर बंदी छोड़े जाने की प्रक्रिया में जमानदार भी रखा जाता है। यदि बंदी फरार होता है तो जमानतदार पर भी कार्रवाई की जाती है। वर्तमान में केन्द्रीय जेल जबलपुर को एक ही पैरोल से फरार बंदी की तलाश है।
वर्जन
प्रदेश भर में मात्र दो बंदी ही पैरोल पर छूटने के बाद इस वर्ष फरार हुए है जिसमें से एक केन्द्रीय जेल जबलपुर का है।
आरएस विजयवर्गीस
डीआईजी जेल
मध्यप्रदेश
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लकड़ी की बनाई बीएमडब्ल्यू बाइक



बुद्धसेन को कलाकृतियां तैयार करने का हैजुनून
नरेन्द्र मोदी को करेंगे भेंट
 जबलपुर। रीवा के बैकुण्ठपुर निवासी 50 वर्षीय बुद्धसेन विश्वकर्मा को लकड़ी की कलाकृति बनाने का जुनून हैं। इन कलाकृति का क्या होगा, कौन खरीदेगा, इसकी लागत कितनी आएगी? वे यह भी नहीं सोचते, मन में  विचार आया और बनाने जुट जाते है। इस कलाकार में सिर्फ कला का जुनून हैं। उसका अपना काम लकड़ी के फर्नीचर बनाना है किन्तु अदना सी दुकान भी नसीब नहीं है।  फेरी लगाकर फर्नीचर का काम कर अपने पूरे परिवार की परवरिस कर रहा है। उसके  बच्च्चे स्कू ल -कालेज में पढ़ रहे है। अपने काम से समय निकाल कर कला की सेवा करते हैं।
कलाकार बÞुद्धसेन ने हफ्तेभर पहले लकड़ी की बनी बीएमडब्ल्यू मोटर बाइक तैयार की है। ये इतनी खूबसूरत और जीवंत लगती है कि ऐसा लगता है पेट्रोल डालो और इसमें बैठकर हवा में बाते करों किन्तु सावधान ये बाइक सड़कों पर दौड़ने के लिए नहीं बनाई गई है। यह तो शो मॉडल है और कलाकृति का बेजोड़ नमूना है। यह बीएमडब्ल्यू या अन्य किसी  बड़े शो रूम को बेंचने अथवा वहां की  शोभा बढ़ाने के लिए नहीं बनाई गई है। बुद्धसेन की ख्वाइश है कि वह इस बाइक को प्रभानमंत्री नरेन्द्र मोदी को  गिफ्ट करें। वे कभी भी अपनी बाइक लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भेंट करने दिल्ली कूच कर सकते है।
सब कुछ लकड़ी का
मोटर सायकिल का हैंडल, पेट्रोल टैंक, इंजन, टायर , मडगार्ड ,चके , सायलेंस सहित तमाम पार्ट सिर्फ लकड़ी से बनाए गए है जिससे बाइक को तैयार करने में करीब ढाई महीने का समय और कठिन परिश्रम लगा है, और अब यह तैयार हो चुकी है। आसपास से लोग इस बाइक को देखने बुद्धसेन के घर पहुंच रहे है और जो देखता है वह सराहना किए बिना नहीं रहता है।
नरेन्द्र मोदी को भेंट करूगा
ये बाइक मैने नरेन्द्र मोदी को गिफ्त करूंगा। मुझे किसी से मिलने के लिए मध्यस्थ की जरूरत नहीं पड़ती है मै सीधे उन तक पहुंच जाता हूं। चार साल पहले बिग  अभिताभ बच्चन को लकड़ी के गणेश जी भेंट किए थे। इसी तरह की लकड़ी कल कलाकृति मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान, पूर्व मुख्य मंत्री दिग्वजय सिंंह, कलेक्टर , एसपी और कई लोगों को भेंट कर चुका हूं। मेरे लकड़ी के मंदिर लोग बेहद पसंद करते है। रीवा सहित प्रदेश के कई शहरों में उनके बनाए मंदिर लोगों के घरों में है।
बुद्धसेन विश्वकर्मा
कलाकार 

शहर बारूद के ढेर में ...


  शहर बारूद के ढेर में ...
्र्र पेटलावद की घटना के बाद भी प्रशासन में नहीं दिखी चुस्ती
 जबलपुर। जिले में बारूद एवं पटाखे के लायसेंस को लेकर चलने वाली भर्राशाही के बीच प्रशासन ने पटाखा एवं बारूद के कारोबार करने वालों को छूट दे रखी है। शहर के व्यस्तम इलाकों में पटाखों के अब भी भंडारण किए गए है जबकि पेटलावद की घटना के बाद प्रशासन  ने कछियाना की कुछ दुकानों में दबिश देकर रस्म अदायगी की जबकि दर्जनों पटाखा व्यापारी ने व्यस्तम व्यवसायिक  एवं रहवासी इलाको में आतिशबाजी के  सामान का जखीरा लगा रखे है। पत्थरों की तुड़ाई एवं खदान में काम के लिए बारूद एकत्र कर खा गया है।

मालूम हो कि पिछले दिनों मुख्य मंत्री ने वीडियो कांफ्रेसिंग में तमाम बारूद के कारोबार करने वाले की सूची के साथ उनके यहां व्यवस्था संबंधी जांच पड़ताल करने सख्त निर्देश दिए थे। अनेक कलेक्टरों के पास इनकी व्यवस्थित सूची भी नहीं थी जिसके कारण उनकी खिंचाई भी की गई। जिला प्रशासन ने आूूॅनफानन लायसेंस शाखा से लायसेंस धारकों की सूची तैयार की है लेकिन उनके भंडारण की जांच पड़ताल करने अब तक कोई टीम नहीं निकली।
यहां है भारी बारूद
सूत्रों की माने तो गलगला में  ही करीब आधा दर्जन दुकानदारों ने अपने बाजार में ही गोदाम बना रखे है। दीवाली के समय तो यहां टनों से बारूद वाले पटाखे एकत्र होती है। यूं आतिशबाजी को लेकर वर्ष भी यहां भारी मात्रा में विस्फोटक रहता है। इसी तरह कछियाना , घोडा नक्कास, मिलौनीगंज, हनुमानताल ,  गढ़ा फाटक में भी करीब दो दर्जन दुकानों में पटाखे का भंडारण किया जाता है। कोतवाली में एक पटाखा गोदाम में आगजनी की घटना भी हो चुकी है लेकिन इसके बावजूद यहां भंडार अब भी हो रहा है।
माइनिंग कारोबारी हुए सतर्क
पेटलावद में हुई घटना के  बाद जबलपुर तथा पड़ोसी जिले कटनी के मानइनिंग का कारोबार करने वालों ने अपने बारूद के गोदाम व्यवसायिक एवं रहवासी क्षेत्र से  रातों रात हटा लिए है जबकि पटाखा का कारोबार करने वाले बेखौफ है चूंकि वे शस्त्र शाखा में हर महीना भेंट चढ़ाते है जिससे वे बेखौफ हैं।
वर्जन
बारूद संबंधी कारोबार करने वालों की सूची तैयार की गई है। एसडीएम तथा पुलिस अधिकारियों को वहां जांच पड़ताल करने के निर्देश दिए गए है। ब्लास्ट का कारोबार करने वालों के स्टॉक कर्मचारी आदि की जांच कराई जा रही है।
एस धनराजू
प्रभारी कलेक्टर
ये है कारोबारियों की संख्या
कारोबार   -   लायसेंस संख्या
स्टोनक्रेशर ब्लास्ट -  11
मार्बल माइंस - 5
आतिशबाजी निर्माता - 27
12 महीना पटाखा - 88
फुटकर पटाखा   1287 

प्रदेश के परेशान उपभोक्ताओं को राहत



* लोक सेवा गारंटी के दायरे में बिजली मीटर भी

जबलपुर। प्रदेश में बिजली के घरेलू उपभोक्ता अनाप शनाप बिल से परेशान हैं। उनकी मुख् य शिकायत होती है कि उनका मीटर खराब है और ज्यादा रीड़िग दे रहा है। विद्युत वितरण कंपनियों में शिकायत के बाद बमुश्किल टेस्टिंग के लिए बिजली कर्मचारी आते है और अधिकांश मामलों में ओके रिपोर्ट देकर इतिश्री कर लेते है लेकिन अब बिजली मीटर भी लोक सेवा गारंटी के दायरे में आता है। बिजली उपभोक्ता का शिकायत और यदि वह मीटर की टेस्टिंग एवं मरम्मत चाहता है तो बिजली कंपनी सेवा देने के लिए बाध्य है।
सूत्रों के अनुसार लोक सेवा गारंटी के तहत शहरी क्षेत्रों में मीटर की मरम्मत व टेस्टिंग 22 दिन के भीतर करनी पड़ेगी। वहंी ग्रामीण क्षेत्रों में दूर राज स्थित मीटर लगे होने के कारण वहां 37 दिनों में उनको सर्विस हर हालत में देनी होगी। अब उपभोक्तााओं को बिजली कार्यालय अथवा उपभोक्ता केन्द्र में जाने के बजाए सीधे लोक सेवा केन्द्र में अपनी शिकायत दर्ज करनी पड़ेगी। बिजली विभाग 22 दिनों में समस्या का निराकरण कर के देगा। सूत्रों की माने  तो प्रदेश भर में उपभोक्ता केन्द्रों में मीटर को लेकर ढाई से तीन लाख मीटर खराब होने की शिकायतें हैं।
नागरिक उपभोक्ता मार्ग दर्शक मंच के पीजी नाजपांडे ने बताया कि  शासन ने लोक सेवा गारंटी अधिनियम के दायरे में बिजली मीटर सेवा की गारंटी को भी शामिल कर लिया है। इससे जहां बिजली मीटर सप्लाई कंपनी को भी अब विशेष पापड़ बेलना पड़ेगा। कंपनी पर बिजली वितरण कंपनी का विशेष दबाव पड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि इसके पूर्व उच्च दाब एवं निम्न दाब बिजली कनेक्टशन भी लोकसेवा गारंटी  अधिनियम के दायरे में आ चुके   है। इस व्यवस्था के तहत अब बिजली उपभोक्तााओं को बिजली विभाग के बाबुओं एवं अधिकारियों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेगे। बिजली दफ्तरों में लोक सेवा केन्द्र के काउंटर में जाकर अपनी कम्पलेंट देनी होगी। लोकसेवा गारंटी के तहत यदि उपभोक्ता की समस्या का निराकारण निर्धारित समय सीमा पर नहीं होता है तो कंपनी के कार्यपालन यंत्री पर जुर्माना का प्रावधान है।
वर्जन
 लोक सेवा गांरंटी के दायरे में बिजली मीटर भी आए है। शहरी क्षेत्र के लिए  कंपनी को 22 दिन तथा ग्रामीण क्षेत्र के लिए 37 दिन की अवधि मिली है जिसमें उपभोक्ता की समस्या का निराकरण किया जाएगा।
आरके स्थापक
एसई सिटी जबलपुर वृत 

विलम्ब पक्षकार के साथ अन्याय: मणिन्द्र सिंह



 किसी प्रकरण के निराकरण के लिए  पक्षकार आता है और उसके निर्णय में विलम्ब करना पक्षकार के साथ अन्याय की तरह है। यह कहना है  गोहलपुर संभाग जबलपुर के कार्यपालन दण्डाधिकारी  एवं तहसीलदार मणिन्द्र सिंह का। श्री सिंह सन 1994 के राजस्व  अधिकारी है।  जबलपुर में पदस्थाना के पूर्व गोहशंगाबाद,कटनी तथा मंडला जिले में पदस्थ रह चुके है। उनका कार्य शैली की विशेषता है कि वे त्वरित और समय पर निर्णय लेते हैं। मणिन्द्र सिंह से पीपुल्स संवाददाता दीपक परोहा की बातचीत के अंश-
प्रश्न- बड़े जिले और छोटे जिलों में काम में क्या अंतर महसूस करतें है,आप?

जवाब-  मेरी पदस्थापना छोटे जिले में भी रही है ओर जबलपुर जैसे छोटे जिले में भी हुई है। बड़ी जगह पर मामले ज्यादा होते है तथा वर्क लोड ज्यादा रहता है। लॉ एण्ड आर्डर की समस्या भी ज्यादा उत्पन्न होती है जिससे फील्ड में जाना पड़ता है।
प्रश्न- शहर में काम की अधिकता रहती है जिससे मामले में लंबित रहते होंगे, ऐसे में  क्या करते हैं?
जवाब - मेरा प्रयास रहा है, उसी दिन का मामला उसी दिन निपटाया जाए  किन्तु कोर्ट के मामले की सुनवाई कोर्ट में ही करनी पड़ती है जिसके कारण  नामांतरण आदि के अनेक मामले लंबित हो गए है। इसके निपटाने के लिए प्रति शनिवार सुबह से लेकर शाम 5 बजे तक कोर्ट लगाई जा रही है जिसमें तमाम लंबित मामलों को निराकरण किया जा रहा है।
प्रश्न - क्या नया करना चाहते हैं ?
जवाब- जिला प्रशासन द्वारा नवाचार के तहत कई काम कर रही है , जिसमें मै अपना पूर्ण सहयोग कर रहा हूं।
 प्रश्न - एक अच्छे अधिकारी के क्या गुण होने चाहिए, और आप स्वयं को उस कसौटी में कसा महसूस करते हैं अथवा नहंी?
जवाब- एक अच्छे अधिकारी को पक्षकार की बात अच्छे से सुनने और समझने की जरूरत है। इसी तहर कोई पीड़ित यदि आता है तो उसको पूरे ध्यान से सुनने पर उसकी आधी समस्या का समाधान हो जाता है। अधिकारी को समस्या सुनने के बाद पूरी सूझबूझ से मामले में जल्द निर्णय लेते हुए उसका निराकरण करना चाहिए। अनुशासन एवं इमानदारी प्रशासनिक अधिकारी में होना चाहिए। इन गुणों को अपनी कार्यप्रणाली में उतारने मेरी हमेशा कोशिश रहती है।

दो दिन की बुखार में दम फूल गया था महिला का




स्वाइन फ्लू का समय पर इलाज कराया जाए तो यह जानलेवा बीमारी नहीं है। इससे बचाव के लिए  उपाय करना बेहद आवश्यक है। हॉल ही में मेरे पास स्वाइन फ्लू से पीड़ित तीन मरीज इलाज के लिए  जबलपुर हास्पिटल पहुंचे थे , तीनों की जिंदगी बच गई है। यहां पिछले सप्ताह ही  सदर निवासी 35 वर्षीय महिला नर्गिस (काल्पिनिक नाम )  को इलाज के लिए  लाया गया था जिसका दो दिन बुखार के कारण दम फूलने लगा था तथा सांस नहीं ले पा रही थी, उसे तत्काल अस्पताल में दाखिल किया गया तथा महिला पांच दिन वेंटिलेटर पर रही और स्वास्थ्य होने के बाद घर चली गई।

दीपक परोहा
9424514521
जबलपुर हॉस्टिल नेपियर टाउन के वरिष्ठ चिकित्सक दीपक बेहरानी एमडी, कार्डियोलाजिस्ट ने स्वाइन फ्लू के इलाज के संबंध में अपने अनुभव शेयर करते हुए बताया कि पिछले सप्ताह जबलपुर हास्पिटल में स्वाइन फ्लू के तीन मामले आए और बेहद खुशी की बात है कि तीनों मरीज स्वस्थ्य होकर चले गए है। दरअसल स्वाइन फ्लू को लेकर लोगों में जबदस्त भ्रांति भी व्याप्त है कि बीमारी से मौत होना निश्चित है। किन्तु पिछले तीन सालों से जबलपुर हास्पिटल में स्वाइन फ्लू के मरीज आ रहे है जिसमें 5 में चार मरीजों की जान बचाई जा रही है। स्वाइन फ्लू वास्तव में बेहद खतरनाक बीमारी हो चुकी है। इसके वायरस एच1 एन1 बेहद शक्तिशाली हो चुके है। स्वाइन फ्लू पीड़ित मरीज के सम्पर्क में जैसे ही लोग आते है , उनको भी इंफैक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है।
मेरे पास हाल ही में सदर से 35 वर्षीय महिला को  लाया गया। उसको सांस लेने में भारी परेशानी हो रही थी। सांस नहीं ले पाने के कारण शरीर नीला पड़ रहा था। परिवार वालों ने बताया कि दो दिन से उसे तेज बुखार है और उल्टी भी हो रही है। इस लक्षण से मुझे यही संदेह हुआ कि महिला को कहीं स्वाइन फ्लू तो नहीं है? उसको आइसोलेशन कक्ष में भर्ती किया गया तथा वेंटीलेटर में रखकर कृत्रिम सांस दी जाने लगी। उसके एक्सरे कराया गया तो फेफड़ों में सूजन एवं इंफैक्शन नजर आया। फेफड़ों में पानी भी भरा हुआ था। तत्काल टेस्ट कराया गया तो स्वाइन फ्लू की पॉजेटिव रिपोर्ट आई । महिला को टेमीफ्लू तथा अन्य दवाइयों को डोज प्रारंभ किया गया। तीन दिन तक महिला की हालत बेहद गंभीर रही। करीब 5 दिन तक वेंटीलेटर में रही । इसके बाद उसे आक्सीजन पर रखा गया । करीब 7 दिन के इलाज  के बाद वह स्वस्थ्य होकर घर चली गई। इसी तरह जबलपुर हास्पिटल में दो अन्य  मरीज स्वस्थ्य होकर गए।
डॉक्टर टॉक
कोई जवान मरता है तो बेहद दुख होता है
स्वाइन फ्लू के मरीज प्रतिवर्ष बढ़ रहे है। इस वर्ष अभी तक तीन मामले आ चुके है जबकि पिछले वर्ष 5 मामले तथा उसके पूर्व वर्ष में 4 मामले जबलपुर हास्पिटल में आए थे। औसतन पांच में एक व्यक्ति की मौत हो रही है। किन्तु जब स्वाइन फ्लू से किसी बच्चे अथवा  जवान की मौत होती है , बेहद दुख होता है।
स्वाइन फ्लू  के लक्षण
 * स्वाइन फ्लू के लक्षण हैं सर्दी, जुकाम तथा बुखार आना।
* सूखी खांसी , शरीर में थकान तथा सांस फूलना।
बवाव के उपाय
* सर्दी जुकाम एवं खासी के मरीज  से दूरी बनाए रखे।
* सार्वजकिन स्थल पर मॉस्क का इस्तेमाल करें।
* स्वाइन फ्लू के मरीज के पास मॉस्क लगाकर ही मिले।
*  घर आने पर  हाथों को साबुन से अच्छे  से धोएं ।  

*डब्ल्यू आईआई ने एसएफआरआई को दी प्रदेश की जिम्मेदारी

अब हर साल होगी बाघों की गणना

बाघों प निगरानी रखने नई कवायद
जबलपुर। बाघ स्टेट का दर्जा खो चुके मध्य प्रदेश इस बार भी अपना खोया हुआ खिताब हासिल नहीं कर पाया। बाघों की गणना होन पर इस वर्ष तीसरे नम्बर पर रहा है। मध्य प्रदेश स्थित नेशनल पार्क एवं टाइगर सेंचुरी में बाघों के शिकार और उसकी मौत को लेकर नेशनल बाघ प्राधिकरण द्वारा कड़ी आपत्तियों के चलते बाघों पर सतत निगरानी रखने के कबायद तेज की गई है। इसके  चलते नेशनल पार्क प्रतिवर्ष आने बाघों की गिनती कराएगा तथा ये गणना एसएफआरआई के डायरेक्शन में की जाएगी।
उल्लेखनीय है कि आरएफआरआई का मुख्यालय जबलपुर में स्थित है। भारतीय वन्य प्राणी अनुसंधान संस्थान देहरादून (डब्ल्यू आईआई ) ने प्राणी गणना के लिए राज् य वन अनुसंधान संस्थान जबलपुर(एसएफआरआई ) को नोडल सेंटर बनाते हुए  अधिकृत किया है।  वर्तमान में वन्य प्राणी अनुसंधान संस्थान  प्रति 4 वर्ष में बाघों की गणना करता रहा है। बाघों की गणना को लेकर  तकनीकि और प्रशिक्षित व्यक्ति वन प्राणी अनुसंधान संस्थान के पास ही थे। पिछले बार हुई बाघ की गणना को लेकर अनेक आरोप भी लगाए गए थे। यहां तक की एमीनेशन के जरिऐ फर्जी तौर से बाघ की गणना बढ़ाए जाने के आरोप लगाए गए थे। इसी तरह कुछ नेशनल पार्क ने भी इस गणना पर आपत्तियां व्यक्त की थी।
इसके चलते नेशनल बाघ प्राधिकरण ने प्रत्येक राज्यों को अपने क्षेत्र स्थित नेशनल पार्क तथा जंगल में मौजूद बाघों की गणना स्वयं करने के निर्देश दिए है। इसके चलते अब प्रतिवर्ष मध्य प्रदेश में बाघों की गणना होगी। प्रदेश में बाघों की गणना के लिए एसएफआरआई को अधिकृत किया गया है।
प्रशिक्षण दिया गया
पिछले दिनों एसएफआरआई के सात अधिकारियों को बाघों की गणना कराने संबंधी तकनीकि प्रशिक्षण डब्ल्यू आईआई ने दिया। इसके तहत ट्रेप कैमरा लगाना लगाने का प्रशिक्षण दिया। बाघ,तेन्दुए की गणना के साथ ही अन्य शाकाहारी वन्य प्राणियों की गणना संबंधी प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण के कार्य के लिए और भी कर्मचारी लगने की संभवना है जिसके लिए राज्य वन अनुसंधान केन्द्र नई भर्ती तथा संविदा भर्ती भी करेगा। इसके अतिरिक्त वन्य प्राणियों की गणना नेशनल पार्क के अधिकारियों को भी दी गई है।
मध्य प्रदेश की जवाबदारी
मध्य प्रदेश स्थित 9 नेशनल पार्क, 6 टाइगर रिजर्व, 25 सेंचुरी तथा वन मंडल के अधीन जंगल आते है। इनमें प्रतिवर्ष वन्य प्राणियों की निगरानी एवं गिनती राज्य वन अनुसंधान संस्थान कराएगा। इस कार्य में नेशनल पार्क एवं वन मंडल के अधिकारियों को भी लगाया जाएगा। उनके द्वारा तैयार रिपोर्ट का सत्यापन का कार्य राज्य वन अनुसंधान केन्द्र जबलपुर का होगा।
अगले सत्र से शुरू होगा काम
इस सत्र में तो गणना हो चुकी है लेकिन अगले सत्र में वन्य प्राणियों की गणना का नोडल केन्द्र राज्य वन अनुसंधान केन्द्र ही होगा। फिलहाल दो साल संस्था डब्ल्यू आईआई की निगरानी में  काम करेगी।
एसएन नचना
 एडी. डायरेक्टर
राज्य वन अनुसंधान केन्द्र मप्र. जबलपुर
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Friday, 25 September 2015

Dc.paean sthapak

रोते हुए युवती ने जब डॉ स्थापक को बताया तो वे भी आश्चर्य मे 10 साल बाद मेरी आंख लौट आई ... आंसू भरी आंखों से डॉ पवन स्थापक को पूरी श्रद्धा से देखते हुए अकोला से आई 17 वर्षीय वैशाली ने कहा सर मेरी आंखे दस वर्ष बाद लौट आई है। मुझे दस साल बाद पता चला कि रौशनी क्या होती है, दुनिया कितनी रंगीन है, ये चमत्कार आपन तीन इंजेक्शन लगाकर कर डाला। डॉ स्थापक की इस मरीज की बात सुनकर आश्चर्य चकित थे कि ये कैसा चमत्कार हो गया है। उन्होंने तो इस लाइलाज बीमारी पर सिर्फ एक्पेरिमेंट किया था। युवती की आंखों की नशे दस साल पहले ही टाइटफाइट इन्फैलोफैथी के कारण सूख चुकी थी और की रौशनी आने की कोई उम्मीद नहीं थी। Ñजबलपुर के ख्यातिलब्ध नेत्र रोग चिकित्सक डॉ.पवन स्थापन जिन्होंने सड़क दुर्घटनाओं के मामले में लगभग फूट चुकी सैकड़ों आंखों की सर्जरी कर उसकी मरम्मत कर लोगों की आंख की रौशनी लौटाई। हजारों आंखों के क्षतिग्रस्त रेटीना और आई लैंस की आधुनिक मशीनों से मरम्मत की। आंख की जटिल एवं कठिन बीमारियों का निदान किया। करीब 60 से अधिक नेत्र प्रत्यारोपण किए है। लोगों की खोई हुई आंख की रौशनी लौटाई है। एक लाख से अधिक आई आपरेशन कर चुक है जिसमें 40 हजार आपरेशन नि:शुल्क भी शामिल है, लेकिन इस सबके बावजूद उनके जीवन का ये विलक्षण मामला था। डॉ पवन स्थापक सन 1992 से लगातार नेत्र चिकित्सा कर रहे। इस प्रकरण के बाद उनकी स्वयं की धारणा बदल गई और अब उनका कहना है कि चिकित्सा जगह में असंभव कुछ भी नहीं है। मृत आदमी भी जिंदा हो जाता है। इसी तरह अनेक मामले ऐसे होते है जिसमें नेत्र रोग विशेषज्ञ मरीज को स्पष्ट कह देते है कि आपकी आंख की रौशनी चली गई है अब वह नहीं लौटेगी, चूंकि ये बाते हमे चिकित्सा के कोर्स में पढ़ाई गई है लेकिन मेरी व्यक्तिगत राय है कि कोशिश अंत तक नहीं छोड़नी चाहिए । इस केस के बाद अनेक ऐसे मामले आए जिसमें लोग तमाम जगह से निराश हो गए थे लेकिन मैने प्रकरण हाथ में लिया। किसी में सफलता मिली और बहुत में असफल भी हुआ लेकिन कोशिश को विराम नहीं लगाया। दस वर्ष बाद आंख की रौशनी लौटने के मामले के डॉ स्थापक ने बताया कि मेरे पास एक वृद्धजन इलाज के लिए आए थे। उनकी आंख में मोतिया बिंद हो गया था। जिसका आॅपरेशन किया गया और उसको साफ दिखाई देने लगा। ये मरीज कुछ महीना बाद उनके पास एक युवती को लेकर आए और कहा कि आप के हाथों में जादू है, आप इस लड़की का इलाज करें। आप इसको ठीक कर सकते है। वह युवती वृद्धजन की भतीजी थी जिसे वे अकोला महाराष्ट्र से लेकर आए थे। युवती के केस स्टडी पढ़ने पर पता चला कि दिल्ली , मुम्बई सहित भारत के कई शहरों के नामी डॉक्टर्स ने युवती को कोई भी इलाज होने से असमर्थता व्यक्त कर चुके थे। उसकी आंख की रौशनी सात साल की उम्र से जा चुकी थी। नर्वस मृत हालत में युवती को बचपन में टाइटफाइट हुआ था जिसके कारण उसके आंख की नर्व मृत हो चुके थे जिसे आंखो की नशे सूखना कहते है। उसकी आंख प्रकाश संबंधी संवेदना गृहण नहीं करती थी। वह दृष्टिबाधित हो चुकी थी और उसका कोई इलाज संभव नहीं था। किन्तु आगंतुक सज्जन पीछे पड़ गए थे आप को इसकी आंख की रौशनी लौटानी पड़ेगी, आप से बेहतर कोई डॉक्टर नहीं है। इस स्थिति में काफी अध्ययन करने के बाद एक प्रयोग करने का निर्णय लिया। वर्षो से बंद चिकित्सा पद्धति आंखों के पीछे इजैक्शन लगाने का निर्णय किया गया। रेटोवल यूटरारीम तथा एक अन्य दवाई को मिलाने के बाद तीन इंजेक्शन का कोर्स दिया गया। इसके बाद युवती को रवाना कर दिया गया। चमत्कार हुआ डॉ स्थापक के अनुसार कुछ दिनों बाद उनकी क्लीनिक में एक युवती आई और दण्डवत होकर उनके पैर छूए ओर वह रो रही थी। डॉ स्थापक के कहे अनुसार मै उसे पहचान नहीं पा रहा था लेकिन उसके पैर पड़ने से यह जाहिर हो रहा था कि वह बेहद प्रभावित है। उससे पूछा कि तुम कौन हो ,तो उसने बताया कि मै वैशाली हूं, अकोला से आई हूं। आपने मेरी आंखों में इंजेक्शन लगाया था इसे बाद अचानक अकोला में मुझे दिखाई देने लगा। दस साल बाद मेरी आंख लौट आई है।

Manindra sing

निर्णय लेने में विलम्ब करना पक्षकार के साथ अन्याय ---------------------- इंटर व्यू मणिन्द्र सिंह कार्यपालन दण्डाधिकारी , तहसीलदार गोहलपुर जबलपुर ----------------------- किसी प्रकरण के निराकरण के लिए पक्षकार आता है और उसके निर्णय में विलम्ब करना पक्षकार के साथ अन्याय की तरह है। यह कहना है गोहलपुर संभाग जबलपुर के कार्यपालन दण्डाधिकारी एवं तहसीलदार मणिन्द्र सिंह का। श्री सिंह सन 1994 के राजस्व अधिकारी है। जबलपुर में पदस्थाना के पूर्व गोहशंगाबाद,कटनी तथा मंडला जिले में पदस्थ रह चुके है। उनका कार्य शैली की विशेषता है कि वे त्वरित और समय पर निर्णय लेते हैं। श्री सिंह से पीपुल्स संवाददाता दीपक परोहा की बातचीत के अंश- प्रश्न- बड़े जिले और छोटे जिलों में काम में क्या अंतर महसूस करतें है,आप? जवाब- मेरी पदस्थापना छोटे जिले में भी रही है ओर जबलपुर जैसे बडेÞ जिले में भी हुई है। बड़ी जगह पर मामले ज्यादा होते है तथा वर्क लोड ज्यादा रहता है। लॉ एण्ड आर्डर की समस्या भी ज्यादा उत्पन्न होती है जिससे फील्ड में जाना पड़ता है। प्रश्न- शहर में काम की अधिकता रहती है जिससे मामले में लंबित रहते होंगे, ऐसे में क्या करते हैं? जवाब - मेरा प्रयास रहा है, उसी दिन का काम उसी दिन निपटाया जाए किन्तु कोर्ट के मामले की सुनवाई कोर्ट में ही करनी पड़ती है जिसके कारण नामांतरण, बटवारा नामा आदि के अनेक राजस्व मामले लंबित हो जाते है। इसके निपटाने के लिए प्रति शनिवार सुबह से लेकर शाम 5 बजे तक कोर्ट लगाई जा रही है जिसमें तमाम लंबित मामलों को निराकरण किया जा रहा है। प्रश्न - क्या नया करना चाहते हैं ? जवाब- जिला प्रशासन द्वारा नवाचार के तहत कई काम कर रही है , जिसमें मै अपना पूर्ण सहयोग कर रहा हूं। प्रश्न - एक अच्छे अधिकारी के क्या गुण होने चाहिए, और आप स्वयं को उस कसौटी में कसा हुआ महसूस करते हैं ? जवाब- एक अच्छे अधिकारी को पक्षकार की बात अच्छे से सुनने और समझने की जरूरत है। इसी तहर कोई पीड़ित यदि आता है तो उसको पूरे ध्यान से सुनने पर उसकी आधी समस्या का समाधान हो जाता है। अधिकारी को समस्या सुनने के बाद पूरी सूझबूझ से मामले में जल्द निर्णय लेते हुए उसका निराकरण करना चाहिए। अनुशासन एवं इमानदारी प्रशासनिक अधिकारी में होना चाहिए। इन गुणों को अपनी कार्यप्रणाली में उतारने मेरी हमेशा कोशिश रहती है। प्रश्न- गोहलपुर संभाग काफी संवदेनशील है, इसके अतिरिक्त यह क्षेत्र भू माफिया का गढ़ भी हैं। यहां की व्यवस्थाएं कैसे दुरूस्त होगी। उत्तर- गोहलपुर क्षेत्र संवेदन शील है। पुलिस -प्रशासन के अधिकारियों के बेहतर तालमेल के कारण अब तक इस क्षेत्र में कोई तनाव का माहौल निर्मित हुआ है तो वह जल्द ही शांत कर लिया गया है। राजस्व संबंधी मामलों की लगातार वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा समीक्षा की जाती है जिससे भूमि संबंधी मामलों में धांधली एवं गडबड़ी पर काफी नियंत्रण हुआ

Tuesday, 22 September 2015

*डब्ल्यू आईआई ने एसएफआरआई को दी प्रदेश की जिम्मेदारी


अब हर साल होगी बाघों की गणना
*डब्ल्यू आईआई ने एसएफआरआई को दी  प्रदेश की जिम्मेदारी
* बाघों पर निगरानी रखने नई कवायद
जबलपुर। बाघ स्टेट का दर्जा खो चुका मध्य प्रदेश इस बार भी अपना खोया हुआ खिताब हासिल नहीं कर पाया। बाघों की गणना होने पर इस वर्ष तीसरे नम्बर पर रहा है। मध्यप्रदेश स्थित नेशनल पार्क एवं टाइगर सेंचुरी में बाघों के शिकार और उसकी मौत को लेकर भारतीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा कड़ी आपत्तियों के चलते बाघों पर सतत निगरानी रखने के कवायद तेज की गई है। इसके  चलते अब राज्य स्वयं अपने बाघों की गिनती कराएगा। मध्य प्रदेश में  गणना एसएफआरआई के डायरेक्शन में की जाएगी।
उल्लेखनीय है कि आरएफआरआई का मुख्यालय जबलपुर में स्थित है। भारतीय वन्य प्राणी  संस्थान देहरादून (डब्ल्यू आईआई) ने प्राणी गणना के लिए राज्य वन अनुसंधान संस्थान जबलपुर(एसएफआरआई) को नोडल सेंटर बनाते हुए अधिकृत किया है।  वर्तमान में वन्य प्राणी अनुसंधान संस्थान  प्रति 4 वर्ष में बाघों सहित अन्य वन्य प्राणियों की गणना करता रहा है। बाघों की गणना को लेकर  तकनीकि और प्रशिक्षित व्यक्ति वन प्राणी अनुसंधान संस्थान के पास ही थे। पिछली बार हुई बाघ की गणना को लेकर अनेक आरोप भी लगाए गए थे। यहां तक की एमीनेशन के जरिऐ फर्जी तौर से बाघ की गणना बढ़ाए जाने के आरोप लगाए गए थे। इसी तरह कुछ नेशनल पार्क ने भी इस गणना पर आपत्तियां व्यक्त की थीं।
इसके चलते भारतीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने प्रत्येक राज्यों को अपने क्षेत्र स्थित नेशनल पार्क तथा जंगल में मौजूद बाघों तथा वन्य प्राणियों की गणना स्वयं करने के निर्देश दिए हैं। इसके चलते अब प्रति वर्ष मध्यप्रदेश में बाघों की गणना होगी। प्रदेश में बाघों सहित अन्य वन्य प्राणियों की गणना के लिए एसएफआरआई को अधिकृत किया गया है।
प्रशिक्षण दिया गया
पिछले दिनों एसएफआरआई के सात अधिकारियों को  गणना कराने संबंधी तकनीकि प्रशिक्षण डब्ल्यूआईआई ने दिया। इसके तहत ट्रेप कैमरा लगाने का प्रशिक्षण दिया। बाघ, तेन्दुए की गणना के साथ ही अन्य शाकाहारी वन्य प्राणियों की गणना संबंधी प्रशिक्षण दिया गया।  जानकारों का कहना  है कि गणना के  कार्य के लिए और भी कर्मचारी राज्य वन अनुसंधान केन्द्र , संविदा के तहत भर्ती भी करेगा। इसके अतिरिक्त वन्य प्राणियों की गणना नेशनल पार्क के अधिकारियों को भी दी गई है।
मध्यप्रदेश की जवाबदारी
मध्यप्रदेश स्थित 9 नेशनल पार्क, 6 टाइगर रिजर्व, 25 सेंचुरी तथा वन मंडल के अधीन जंगल आते हैं। इनमें प्रतिवर्ष वन्य प्राणियों की निगरानी एवं गिनती राज्य वन अनुसंधान संस्थान कराएगा। इस कार्य में नेशनल पार्क एवं वन मंडल के अधिकारियों को भी लगाया जाएगा। उनके द्वारा तैयार रिपोर्ट का सत्यापन का कार्य राज्य वन अनुसंधान केन्द्र जबलपुर का होगा।
अगले सत्र से शुरू होगा काम
इस सत्र में तो गणना हो चुकी है लेकिन अगले सत्र में वन्य प्राणियों की गणना का नोडल केन्द्र राज्य वन अनुसंधान केन्द्र ही होगा। फिलहाल दो साल संस्था डब्ल्यूआईआई की निगरानी में  काम करेगी।
एसएन नचना
 एडी. डायरेक्टर
राज्य वन अनुसंधान केन्द्र मप्र जबलपुर
बाक्स
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प्रतिमाह होती है गणना
यूं तो नेशनल पार्क तथा वन मंडल अंतर्गत जंगलों में बाघ सहित अन्य वन्य प्राणियों की प्रतिमाह बीट स्तर पर गणना का कार्य होता है लेकिन इस तकनीकि गणना में शामिल नहीं किया जाता है। 

Sunday, 20 September 2015

अबोध बच्ची सलोनी का दुश्मन पिता


 हंसती खेलती बेटी को बेटे की चाहत पर उतारा मौत  के घाट
जबलपुर।  आखिर अबोध बच्ची सलोनी का दुश्मन कौन है, उसने किसी का क्या बिगाड़ा है जो हंसती खेलती सलोनी को  मार डाला? जब मृत हालत में मां ने बेटी को देखा तो ये विचार आए। मां का लाड़ली की मौत से दिल भर था आंखों से  आंसूे थे। बेटी के पिता में किसी तरह के गम के भाव नजर नहीं आ रहे थे।  ऐसे  में मां  को  सलोनी के पिता का ही खयाल आया जो सलोनी के पैदा होने से बेहद नाखुश था। आए दिन उससे मारपीट करता था। सलोनी का हत्यारा उसका पिता ही है। यह विचार आने पर इस  मां ने अपने शौहर के खिलाफ थाने में जाकर एफआईआर दर्ज कराई। पुलिस जांच पड़ताल कर रही है ।
आज सरकार भले ही लड़ली लक्ष्मी और लक्ष्मी सम्मान जैसी योजना  चला रही है लेकिन समाज में अब भी बेटी को सहजता से स्वीकार नहीं है। बेटे की चाहत  में एक  पिता ने अपनी लाड़ली को पटक पटक कर मार डाला। यह घटना छिंदवाड़ा जिला के समीपी गांव कचरिया की है। गत शुक्रवार को ऋषि पंचमी की रात शंकर सूर्यवंशी की ढाई साल की बेटी सलोनी की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। पत्नी पिंकी अपनी लाड़ली को हंसती-खेलती हुई घर पर छोड़कर ऋषि पंचमी का पूजन करने के लिए मंदिर गई थी। वह जब मंदिर से लौटी तो  देखा उसकी हंसती-खेलती बेटी सलोनी हमेशा के लिए मौत की नींद सो चुकी थी। सलोनी का पिता ने गोलमोल जवाब दिए।
पत्नी का आरोप है कि बेटे की चाहत के कारण पति ने उसकी ढाई साल की बेटी की हत्या कर दी है। जबकि पति का कहना है कि सोफे से गिरने के कारण मासूम की मौत हुई है।  इसको लेकर पति-पत्नी के बीच रात में जमकर विवाद हुआ। गांव के लोगों ने इसकी सूचना पुलिस को दी।  शनिवार सुबह पुलिस शंकर के घर पहुंची और बच्ची के शव को पोटमार्टम के लिए  ले गई।  पुलिस ने पत्नी पिंकी के बयान दर्ज कर लिए हैं। पिंकी ने पुलिस को बताया कि पति शंकर बेटे की चाहत में उसके साथ मारपीट करता रहता था। पत्नी ने पति के खिलाफ प्रताड़ना की शिकायत पूर्व में भी की थी, जो न्यायालय में विचाराधीन है। पत् िा पत्नी के बीच विवाद की शुरूआत ही बेटी के जन्म से हुई थी जब  ढाई साल पहले जब पति शंकर ने बेटी होने की खबर सुनी तब से बेटी को शंकर पंसद नहीं करता था और उसकी मां को भी प्रताड़ित करने लगा था।
नहीं चाहते थे पीएम कराना

जिला अस्पताल के मरचुरी रूम में रखे मासूम के शव के पोस्ट मार्टम न कराए जाने को लेकर भी शंकर ने जमकर हंगामा किया। शंकर एवं शंकर की मां नहीं चाहते थे कि  पीएम कराया जाए जबकि  मासूम की मां की चाहती थी कि पीएम कराया जाए जिससे मौत का कारण सामने आए और दोषियों को सजा मिले।  इस बात को लेकर दोनो पक्षों के बीच करीब आधा घंटे तक जमकर वाद विवाद भी चला अंतत: पुलिस ने शव का पीएम कराया।
बेटी से नहीं था स्नेह
अपनी नम आंखों से मीडिया को मासूम की मां पिंकी ने बताया कि पति शंकर के अलावा ससुराल वालों को बेटे की चाह थी। बेटी होने के बाद से पति नाराज रहता था और मारपीट करता था। साथ ही उसे बेटी के प्रति किसी तरह का कोई प्रेम नहीं था। अक्सर बेटे न होने को लेकर मारपीट करता रहता था।
वर्जन
 आरोपी शंकर को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट प्राप्त होने पर हत्या का मामला दर्ज किया जाएगा। प्रथम दृष्टि शंकर ही हत्या का संदेही बना है।
 मिथलेश शुक्ला
पुलिस अधीक्षक छिंदवाड़ा

गुरू शिष्य परम्परा का निर्वाह करती एक शिक्षिका


 माता-पिता से बढ़कर आलम्बन दिया टीचर ने
 
जबलपुर। शासकीय मानकुंवर कला एवं वाणिज्य स्वशासी महिला महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. उषा दुबे जिन्होंने शिक्षा और छात्र- छात्राआें की सेवा में अपना पूरा जीवन समर्पित कर रखा है। उनका जीवन घरेलू महिला की तरह चूल्हे- चौके और अपने परिवार में उलझ नहीं है, वे पूरी तरह विद्यार्थियों के लिए समर्पित है। डॉ उषा दुबे ने विवाह नहीं किया है। दरअसल अविवाहित रहने के स्कूली जीवन में उत्पन्न संकल्प को परिणाम तक पहुंचाने में उनकी शिक्षिका का ही  सहारा रहा है। आर्थिक तंगी से गुजर कर होमसाइंस कालेज में जब उषा दुबे पढ़ने पहुंची तो तत्काली प्राचार्य ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी मानक मार्गदर्शन दिया और वे आज प्राचार्य बन कर गुरू परम्परा का निर्वाह कर रही है।
डॉ उषा दुबे  शिक्षक के मौके पर अपनी गुरू -शिक्षिका श्रीमती कृष्णा नाद का याद करते हुए बताया कि सन 1969 में उन्होंने होमसांइंस कालेज में प्रवेश लिया था। दौरान होमसाइंस कालेज एवं मानकुंवर बाई कालेज एक ही थे। उनके पिता जस्टिस दीपक वर्मा के पिता के पास मुंशी थे लेकिन जब उनका एजूकेशन कालेज में शुरू हुआ तभी पिता असाध्य बीमारी से पीड़ित हो गए। परिणाम स्वरूप कालेज की पढ़ाई असंभव प्रतीत हो रही थी। ऐसे में एक शिक्षिका का उन्हे सहारा मिला। उन्होने तमाम प्रोफेसर -प्राध्यापकाओं के सामने मुझे पाल्य पुत्री घोषित कर दिया। कहा कि ये लड़की मेरी उत्तराधिकारी होगी और गुरू शिष्य परम्परा को आगे बढ़ाएगी। होमसाइंस कालेज में एकाडमिक स्टॉप में शामिल होकर कालेज की उत्तरोत्तर प्रगति का मेरा सपना पूरा करेगी।
डॉ उषा दुबे ने बताया कि मेरी तो हैसियत ऐसी नहीं थी कि पीएचडी कर लू

ं लेकिन वे स्वयं मुझे रिक्शा में विश्व विद्यालय ले जाती थी। अधिकांश जगह वे साथ में ले गई। मुझमें आत्म-विश्वास पैदा किया। मै विवाह नहीं करना चाहतीे थी, लेकिन मेरी इस बात को उन्होंने असामान्य और गैर सामाजिक नहीं ठराया तथा कहा कि जीवन में संकल्प पूरा करने की शक्ति उत्पन्न करने की जरूरत है।
डॉ उषा दुबे का कहना है कि आज मेरी गुरू नहीं हैं लेकिन इस कॉलेज परिसर में मुझे उनकी उपस्थित महसूस होती है, उनकी शैक्षणिक आदर्शो को आग बढ़ाने में सुकून मिलता है। वे सदगी पसंद थ्ी। गांधीवादी विचारधार की थी, और आज उनके पथ पर मै चल रही हूं।
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आटो चलाकर जीवन यापन कर रहा था किस्सू तिवारी
   उपचार के लिए मेडिकल में दाखिल कराया
 जबलपुर। करीब 23 साल से फरार कुख्यात अपराधी किस्सू तिवारी पुलिस गिरफ्त में है लेकिन उसकी गिरफ्तारी के तीन दिन बाद भी कटनी में उसकी चचाएं थमी नहंी हैं। फिलहाल उसे इलाज के लिए मेडिकल कालेज अस्पताल में भर्ती कराया गया है।  किस्सू तिवारी को जयपुर से पुलिस ने बेहद आसानी से गिरफ्तार कर लिया था। दरअसल किस्सू तिवारी ने अपनी फरारी के साथ ही आपराधिक जीवन छोड़ कर टैक्सी और आटो चलाकर जीवन यापन कर रहा था। पुलिस के आने पर उसने सहजता से सरेंडर कर दिया।
उल्लेखनीय है कि किस्सू की गिरफ्तारी में एनकेजे थाना की पुलिस की अहम भूमिका रही है। उसकी गिरफ्तारी की रणनीति पिछले दो माह से थाने में चल रही थी। दरअसल किस्सू पर पुलिस का ध्यान तब गया जब उसकी पत्नी मंजू तिवारी किसी मामले में शिकायत करने एनकेजे थाने पहुंची थी। पुलिस ने मंजू की शिकायत पर कार्रवाई की लेकिन इसके साथ ही पुलिस ने किस्सू की टोह लेना शुरू कर दी।
सादगी का जीवन जी रहा था
पुलिस सूत्रों के अनुसार पांच हत्याओं सहित डेढ़ दर्जन से अधिक गंभीर अपराध को अंजाम देने वाला किस्सू तिवारी ने फरारी के दौरान अपराध की दुनिया से धन कमाने कोशिश नहंीं की बल्कि वह  जयपुर में छिप कर सादगी भरा जीवन जीता रहा। उसके आस-पड़ोस के लोगों को नहीं मालूम था कि वह कुख्यात अपराध है। कटनी से फरार होने के बाद किस्सू तिवारी ने करीब 7 साल दिल्ली में फरारी काटी। कुछ समय हरिद्वार में समय गुजारा। इसके बाद जयपुर पहुंच  गया।  किस्सू अलग-अलग ठिकाने बदलता रहा। बाद में उसने मानसरोवर कालोनी जयपुर में अपना स्थाई ठिकाना बना लिया। जीवन यापन के लिए उसने ड्राईवरी का पेशा चुना।
 सेकेण्ड हैंड कार चलाता था
किस्सू फरारी के दौरान सेकेण्ड हैण्ड एम्बेसडर कार लेकर चलाया करता था।  बाद में आटो चलाना शुरू कर दिया था। करीब एक साल पहले उसने अपना आटो बेच दिया था। जयपुर के जिस मकान से पुलिस ने किस्सू तिवारी को गिरतार किया वह मुश्किल से 20 बाई 55 वर्गफुट जमीन पर बना दो
कमरे का मकान था जो किस्सू का ही बताया जा रहा। किस्सू तिवारी को
गिरतार करने वाले पुलिस दल की माने तो जिस मोहल्ले में किस्सू रहता था वहां ं रहने वाले लोगों को इस बात की जरा भी भनक नहीं कि वह एक कुख्यात अपराधी है जिसके नाम की दहशत पूरे एक जिले में थी। उसे लोग सीधा साधा और गरीब इंसान समझते थे। उसके जयपुर ठिकाने की पुलिस को जानकारी करीब दो माह पहले लगी थी जिसकी पुष्टि करने के साथ पुलिस ने गिरफ्तारी के लिए रैकी भी की।
 चल रहा इलाज
किस्सू तिवारी का स्वास्थ्य खराब होने पर कटनी पुलिस उसके लेकर मेडिकल

कालेज अस्पताल लेकर आई है जिसकोे तगड़ी सुरक्षा के बीच मेडिकल कालेज में इलाज के लिए भर्ती कराया गया है।
रामेश्वर यादव
एएसपी कटनी

कृष्ण भक्तो को नहीं था बाघों का खौफ


ताला रेंज स्थित राम-जानकी मंदिर में कृष्ण जन्माष्टमी की रही घूम
जबलपुर। नेशनल पार्क बांधवगढ़ के बीचो बीच ताला रेंज में गेट से करीब 8 किलोमीट दूर बघेल राजवंश के प्रचान रामजानकी मंदिर जहां वर्तमान में नेशनल पार्क का वायरलेस कंट्रोल रूम स्थित है। वहां वर्ष में एक दिन जन्माष्टमी के दिन आम जनता के लिए मंदिर खुलता है। इसी तरह वर्ष में अन्य दो दिन भी ये मंदिर परिसर भक्तों के लिए खोला जाता है। परम्परा अनुसार बड़ी संख्या में कृष्ण भक्तों का जत्था जै कन्हैया लाल के गूंज लगाते मंदिर के लिए पैदल रवाना हुए। इस दौरान उन्हें बाघों के हमले का कोई खौफ नहीं था।
अमूमन ताला रेंज के इस जंगल में यदि कोई ग्वाला धोखे से भी घुस जाए तो जंगल के राजा को ये बरदास्त नहीं होता है कि उसके राज्य में हस्तक्षेप होए और वे हमला करने से नहीं चूकते है। ताला रेंज में शनिवार को सुबह 8 बजे से श्रद्धालुआं का आगमन शुरू हुआ। वन विभाग ने नि:शुल्क गेट पास की व्यवस्था कर रखी थी। सुबह 8 बजे से आना लगा रहा तथा शाम ढलते ही श्रृद्धालुओं की रवानगी भी शुरू हो गई। कृष्ण जयकारे लगाते हुए मंदिर पहुंचे।
नेशनल पार्क से मिली जानकारी के अनुसर करीब 15 हजार लोगों मंदिर पहुंचे थे। उनकी व्यवस्था के लिए करीब ढाई सौ लोगों का पुलिस बल तथा  करीब ढाई सौ का बल वन अमले का लगा हुआ था। मौजूदा वन अमला हाथियों के साथ भी तैनात था। जंगली जानवरों की सुरक्षा के साथ आने वाले श्रद्धालुओं को बाघ या अन्य जानवर के हमले से बचाने मुस्तैद रहे। वन अमले के दौरान जन्माष्टमी में जंगल में किसी तरह की अप्रिय घटना नहीं हुई। यूं भी नेशनल पार्क में आने वाले पर्यटकों के लिए सफारी की व्यवस्था रहती है लेकिन भक्तों के लिए नियम में इस दिन छूट रहती है तथा वे पैदल ही मंदिर तक का सफर तय करते है।
2 हजार साल पुराना
यह मंदिर एतिहासिक बांधवगढ़ किला का हिस्सा है जो करीब 2 हजार साल पुराना है। इस क्षेत्र में  5 से 10 शताब्दी तक सेंगर राजवंश तथा 10 वीं शताब्दी में कल्चुरियन राजवंश का शासन था। 10 वीं शताब्दी के बाद बघेल वंश का शासन आया। बघेल शासक ने रीवा को अपनी राजधानी बनाई और सन 1635 में बांधवगढ़ किला को छोड़ दिया। किला पहाड़ी पर स्थित है तथा इसके करीब साढे चार सौ वर्ग क्षेत्र में घना जंगल फैला है। इस किले को ताला फोर्ड के रूप में जाना जाता है।
वर्जन
लोगों के लिए साल में तीन बार ही किला और मंदिर खुलता है जिसमें जन्माष्टमी पर विशेष भीड़ रहती है। वर्तमान में वन अमला की किला एवं मंदिर की देखरेख करता है यहां हमारा कंट्रोल रूम है।
सीएच मुरलीकृष्ण
 फील्ड डायरेटर बांधवगढ़

पर्यावरण मंत्रालय की एनओसी मिलेगी एसएफआरआई की रिपोर्ट पर



जबलपुर। प्रदेश एवं देश में यदि कोई बड़ी परियोजना शुरू होना है ,चाहे बांध निर्माण हो , बड़ी सड़क निर्माण, बहु मंजिला इमारत, खदान तथा अन्य कोई प्रोजेक्ट हो जिसमें पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी आवश्यक है तो अब मंत्रालय राज्य वन अनुसंधान केन्द्र (एसएफआरआई) की सर्वे रिपोर्ट के आधार पर देगा। दरअसल अब तक प्रदेश की कोई भी सरकारी संस्था ऐसी नहीं थी जिसको क् वालिटी कंट्रोल आॅफ इंडिया ने अधिकृत किया हो। इसके साथ ही प्रदेश सहित देश में हजारों संस्थाएं एवं व्यक्ति  व वैज्ञानिक थे जो रिपार्ट तैयार करते थे लेकिन नई नीति के तहत क्वालिटी कंट्रोल आॅफ इंडिया द्वारा ही अनुकृत संस्थाओं की रिपोर्ट अब विचारण योग्य समझी जाएगी।
 जानकारी के अनुसार देश में एसएफआरआई की तरह अन्य संस्थाएं भी है जिन्हें क्यूसीआई ने मान्यता दे रखी है। राज्य वन अनुसंधान केन्द्र ने भी क्यूसीआई के समझ मान्यता प्रदान करने आवेदन कर रखा था। क्सूसीआई की टीम ने पिछले दिनों अनुसंधान का दौरा किया। यहां के वैज्ञानिकों से रूबरू हुए। उनके बातचीत की। रिचर्स संबंधी साजो सामान एवं अन्य तमाम तरह की बिन्दुओं की गंभीरता से पड़ताल की।
गुरूवार को मिला मान्यता
राज्य वन अनुसंधान केन्द्र के डायरेक्टर डॉ. जी कृष्ण मूर्ति ने बताया कि क्यू सीआई से गुरूवार को मान्यता संबंधी आदेश प्राप्त हुए है। इस आदेश से संस्था में काफी उत्साह है। क्यूसीआई ने संस्था के चार वैज्ञानिकों को भी मान्यता प्रदान की है। जिसमें डॉ. आर के पांडे, डॉ प्रतिभा भटनागर, डॉ. अंजना राजपूत तथा डॉ अमित पांडे को अधिकृत किया है।
क्या होगा फायदा
मध्य प्रदेश शासन तथा उससे संबंधी विभाग कोई बड़ी योजना और प्रोजेक्ट

प्रारंभ प्रारंभ करते थे तो उन्हें पर्यावरण मंत्रालय के समझ पर्यावरण पर होने वाले प्रभाव एवं उससे बचाव के उपाय संबंधी प्रोजेक्ट रिपोर्ट प्रायवेट कं सल्टेंट से तैयार करवानी पड़ती थी जिसमें करोड़ों का भुगतान करना पड़ता था लेकिन अब स्वयं शासकीय संस्था को मान्यता मिल गई है जिसका फायदा सरकार को होगा। इतना ही नहीं राज्य वन अनुसंधान संस्था को निजी एवं शासकीय क्षेत्र अपनी प्रोजैक्ट रिपोर्ट तैयार करने देश भर में कहीं के लिए अनुबंधित कर सकते है। इससे संस्था के वैज्ञानिक प्रदेश ही नहीं पूरे देश में कहीं भी प्रोजेक्ट तैयार करने का काम कर सकते हैं।
गाइड लाइन तय है
पर्यावरण मंत्रालय परियोजना के संबंध में जो प्रोजेक्ट मांगती है उसके गाइड लाइन तय है। सड़क निर्माण, रेल लाइन निर्माण, ब्रिज निर्माण, बांध निर्माण, खनन कार्य तथा बड़ी आवासीय कालोनी, नदी के किनारे नगर विकास संबंधी तमाम तरह के कार्य के लिए जीवन जन्तु, वनस्पिति, पर्यावरण, मानव, प्रदूषण की स्थित सहित अन्य बिन्दुओं पर पड़ने वाला प्रतिकूल प्रभाव तथा प्रतिकूल प्रभाव से निपटने संबंधी योजना की जानकारी मांगती है। इसके अतिरिक्त प्रोजेक्ट से संतुष्ट न होने पर आवश्यक अन्य बिन्दुओं पर जानकारी मांग सकती है। इस प्रोजेक्ट को तैयार करने में ही काफी समय लगता है लेकिन गाइड लाइन के तहत पर्यावरण संबंधी प्रोजेक्ट रिपोर्ट राज्य वन अनुसंधान संस्था को एक वर्ष के भीतर करना पड़ेगा।
 कैसे करेगा काम
पर्यावरण संबंधी प्रोजेक्ट राज्य वन अनुसंधान संस्था कैसे तैयार करेगा? इस सबंध में बताया गया कि  उपलब्ध वैज्ञानिक एवं संसाधन का इस्तेमाल तो किया जाएगा लेकिन जररूत पड़ने पर क्यूसीआई द्वारा मान्य वैज्ञानिक को हम अनुबंधित कर सकते है। फिलहाल जिस संस्था के लिए हम प्रोजेक्ट पर काम करेंगे उनको वैज्ञानिकों एवं लगने वाले कर्मचारी, वाहन एवं अन्य संसाधन का खर्चे का भुगतान करना पड़ेगा। कुल खर्च का 15 प्रतिशत

संस्था के विकास के लिए लिया जाएगा।

वर्जन
राज्य वन अनुसंधान को मान्यता मिलने से यहां उपलब्ध मानस संसाधन का लाभ उठाया जाएगा तथा संस्था को काम की कोई कमी नहीं रहेगी।
डॉ. जी कृष्ण मूर्ति
डायरेक्टर एसएफआरआई
न अनुसंधान केन्द्र

और ताकतवर हुआ एच1 एन1 वायरस


जबलपुर। स्वाइन फ्लू का वायरय एच 1 एन 1 वायरस और मजबूत हो रहा है। वायरस अपने जीवन चक्र में लगातार ताकत अर्जित कर रहा है। एन1एच 1  विषय परिस्थितियों में भी सक्रिय होने की कोशिश करता है। इसके लक्षण भी एकदम से नजर नहीं आ रहे है। यानी अब छिपकर हमला करना  एन1 एच 1 सीख रहा है। अमूमन अक्टूबर-नवम्बर माह में ठंड एवं नमी में वायरस सक्रिय होता रहा है। धूप एवं तापमान बढ़ने पर वायरस निष्क्रिय हो जाया करता था लेकिन इस वर्ष अगस्त और सितम्बर माह में भी स्वाइन फ्लू के पॉजेटिव मामले आ रहे है।
विशेषज्ञों की माने तो अब यह नहीं कहा जा सकता है कि स्वाइन फ्लू किस सीजन में होगा। ये भविष्य में गर्मियों के सीजन में भी होने लग जाए , कहा नहंी जा सकता है।  जानकारों का यह भी कहना है कि स्वाइन फ्लू जब पहली बार भारत में प्रकट हुआ था तब से करीब 8 गुना मजबूत और घातक हो चला है। चिकित्सा विज्ञान का मानना है कि वायरस द्वारा लगभग तीन साल में खुद की क्षमता कई गुना तक बढ़ा सकता है।   परिणाम स्वरूप इनके संक्रमण की रफ्तार बढ़ती है। स्वाइन फ्लू के लिए जहां पांच साल पर्व मात्र एक सप्ताह दवा दी जाती थी, वहीं अब दवाओं का डोज डेढ़ से दो महीने तक देना पड़ रहा है।
चिकित्सकों की माने तो स्वाइन फ्लू के अनुकूल ये मौसम नहीं है लेकिन लगातार जबलपुर सहित आसपास के क्षेत्रों में स्वाइन फ्लू के संदिग्ध मरीज एवं पॉजेटिव मरीज मिल रहे है। जबलपुर में तो स्वाइन फ्लू से पिछले दिनों मौत हो चुकी है।
 रूप बदल रहा वायरस
विशेषज्ञों का कहना है कि वायरस का म्यूटेशन  लगातार बदलता रहता है।  यानी वायरस अपना रूप बदल रहा है, विषम तापमान के प्रति अपने को अनुकूल बनाने में जुटा है।एच 1 एन 1 ने दवा के प्रति प्रतिरोधन क्षमता बढ़ा ली है। चिकित्सक दवाई को कोर्स ड्यूरेशन भी बढ़ाते जा रहे है। पिछले पांच साल पहले के मुकाबले डोज छह से आठ गुना बढ़ गया है। वर्तमान में मरीजों को  टेमीफ्लू का हर दिन 75 एमजी डोज सुबह शाम दिया जा रहा है।
 टेमी फ्ूल की सीमित उपयोग
यूं तो टेमीफ्लू के प्रति एच 1 एन 1अपनी प्रतिरोधन शक्ति बढ़ा रहा है। इंटी वायरस दवाई टेमीफ्लू वायरस पर असर करना बंद न कर दे। इसी आशंका के कारण इसका इस्तेमाल प्रतिबंधित है। दरअसल जब चिकित्सक को टेस्ट रिपोर्ट पॉजेटिव मिलती है तभी टेमीफ्लू की दवाई का कोर्स शुरू किया जाता है। खुले बाजार में दवाई की बिक्री प्रतिबंधित है जिसकी वजह भी यहीं समझी जाती है कि इसका दुरूपयोग न किया जाए अन्यथा ये दवाई असर खत्म हो जाएगा।
साइड इफ्टे
उल्लेखनीय है कि दुनिया में स्वाइन फ्लू के वायरस एन-1 एच वन से मुकाबले के लिए जो फार्मूला है वह  भारत में टेमीफ्लू के नाम पर उपलब्ध है।  साइड इफेक्ट घातक हो सकते है। ये दवाई किडनी पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली समझी जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की सूची में बेहद महत्वपूर्ण ड्रग है।
लक्षण भी बदल रहे
चिकित्सक इस वर्ष  स्वाइन फ्लू के वायरस में बदलाव महसूस कर रहे है। जबलपुर में जो पॉजीटिव मरीज मिल रहे हैं उनमें बीमारी के लक्षण भी जल्द नजर नहीं आए। अमूमन मानसून के अंतिम दिनों में गर्मी और उमस के कारण सामान्य फ्लू फैलता है। सामान्य फ्लू की तहर ही अब स्वाइन फ्लू के लक्षण नजर आ रहे है  जिससे बिना जांच के पहचान बेहद कठिन हो गई है।

वर्जन
स्वाइन फ्लू के वायरस भी अन्य वायरस की तरह अपनी स्ट्रेन बढ़ाते है। वायरस के सक्रिय होने के लिए नमी बनी हुई है, जहां तक तापमान की बात है संभवत:
इस तापमान में भी वे सक्रिय हो रहे है। किन्तु फिलहाल प्रतिदिन 4-5 ही टेस्ट  आईसीएमआर में आ रहे है। रही बात तो भविष्य में यदि स्वाइन फ्लू गर्मियों में भी होने लग जाए तो कहा नहंी जाएगा। वायरस के अध्ययन एवं रिसर्च हमारी संस्थान में नहीं की जा रही है अत: इसमें होने वाले बदलाव के बारे में स्पष्ट कुछ नहंी कहा जा सकता है।
डॉ. नीरू सिंह
 डायरेक्टर आईआई सीएमआर
दवा के प्रति वायरस में क्षमता बढ़ जाती है जिसके कारण  टेमीफ्लू का अंधाधुन्ध उपयोग प्रतिबंधित पर रोक है। दवाई असर कारक है लेकिन वायरस की ताकत बढ़ रही है जिसके कारण इसकी दवाई के डोज पिछले कुछ वर्षो की तुलना में बढ़ा है।
डॉॅ.एममए अग्रवाल
 विक्टोरिया हास्पिटल 

1 बंदी के फरार होने से बंदियों की बढ़ी मुसीबत



जबलपुर।  केन्द्रीय जेल के दो बंदियों  के कारण प्रदेश भर के जेले के हजारों बंदियों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उनकी पैरोल पर जाना आसान नहीं रह गया है।  दरअसल पैरोल पर छोड़े गए केन्द्रीय जेल जबलपुर का एक बंदी छूटने के बाद से फरार है। केद्रीय जेल जबलपुर से पैरोल पर छूटे दो बंदी फरार थे जिसमें से एक तो कुछ दिनों बाद लौट आया जबकि दूसरा बंदी आज तक नहंी लौटा है।
  जेल सूत्रों के मुताबिक लम्बी सजा काट रहे बंदियों को साल भर में करीब 48 दिन की छुट्टी मिलती है। वर्ष में एक  बार बंदी अपनी छुट्टी लेकर कुछ दिन अपने घर में बिता सकते है। पहली पैरोल बंदी को जिला दण्डाधिकारी देता है यदि बंदी जबलपुर जेल का है तो उसको पैरोल की अनुमति अन्य जिले के डीएम द्वारा प्रदान की जाती है। जेल पैरोल का प्रकरण बनाकर डीएम के पास भेजता है। डीएम तत्सबंध में बंदी की गोपनीय चारित्रिक जानकारी संबंधि पुलिस स्टेशन से बुलवाता है जिसके अधार पर पैरोल की मंजूरी ही जाती है। यदि बंदी को डीमए पैरोल मंजूर नहीं करता है तो डीजीपी जेल के पास अपील का अधिकार होता है। जबलपुर जेल के दो बंदी के भागने के कारण इन दिनों केन्द्रीय जेल जबलपुर में बंदियों को पैरोल पर जाने कड़ी पड़ताल का सामना करना पड़ रहा है।
बंदियों को मिल रहा पैरोल
पैरोल में घर जाकर फरार होने वाले बंदियों के मामले बेहद कम है जिसके  कारण शासन  फिलन  पैरोल पर भेज रही है। यूं भी उन्हीं बंदियों को पैरोल पर छोड़ा जाता है जिनके भागने की संभावना शून्य होती है। जेल मुख्यालय भोपाल के मुताबिक इस वर्ष पैरोल पर छूटे बंदियों में से दो बंदी ही फरार हुए है।
बंदी फरार होने से सख्ती
प्रशासन भी बंदियों को पैरोल में छोड़ने के मामले में बेहद सख्त जांच पड़ताल करवा रहा है चूंकि जबलपुर केन्द्रीय जेल से  दो बंदी के भागने के बाद पूरा जेल प्रशासन एवं शासन सजग हो गया है। जेल सूत्रों पैरोल पर भेजे जाने के मामले में सख्ती बढ़ी हुई है जिसके चलते अनेक  बंदी पैरोल से वंचति है फिर भी प्रतिवर्ष प्रदेश भर से हजारों बंदी पैरोल पर छोड़े जा रहे है।

जमानत दार पर कार्रवाई
केन्द्रीय जेल जबलपुर के अधीक्षक अखिलेश तोमर ने बताया कि पैरोल पर छूटे दो बंदियों के लौट कर नहीं आने पर पुलिस थाने में एफआई दर्ज कराई गई है।  जबलपुर से फरार  दो बंदियों में एक बंदी लौट आया जबकि हत्या का फरार आरोपी शमीम उर्फ शानू को गत 18 जनवरी को पैरोल पर छोड़ा गया था जो अवधि पूरी होने के बाद नहीं लौटा है। पैरोल पर बंदी छोड़े जाने की प्रक्रिया में जमानदार भी रखा जाता है। यदि बंदी फरार होता है तो जमानतदार पर भी कार्रवाई की जाती है। वर्तमान में केन्द्रीय जेल जबलपुर को एक ही पैरोल से फरार बंदी की तलाश है।
वर्जन
प्रदेश भर में मात्र दो बंदी ही पैरोल पर छूटने के बाद इस वर्ष फरार हुए है जिसमें से एक केन्द्रीय जेल जबलपुर का है।
आरएस विजयवर्गीस
डीआईजी जेल
मध्यप्रदेश

लकड़ी की बनाई बीएमडब्ल्यू बाइक


बुद्धसेन को कलाकृतियां तैयार करने का हैजुनून
नरेन्द्र मोदी को करेंगे भेंट
 जबलपुर। रीवा के बैकुण्ठपुर निवासी 50 वर्षीय बुद्धसेन विश्वकर्मा को लकड़ी की कलाकृति बनाने का जुनून हैं। इन कलाकृति का क्या होगा, कौन खरीदेगा, इसकी लागत कितनी आएगी? वे यह भी नहीं सोचते, मन में  विचार आया और बनाने जुट जाते है। इस कलाकार में सिर्फ कला का जुनून हैं। उसका अपना काम लकड़ी के फर्नीचर बनाना है किन्तु अदना सी दुकान भी नसीब नहीं है।  फेरी लगाकर फर्नीचर का काम कर अपने पूरे परिवार की परवरिस कर रहा है। उसके  बच्च्चे स्कू ल -कालेज में पढ़ रहे है। अपने काम से समय निकाल कर कला की सेवा करते हैं।
कलाकार बÞुद्धसेन ने हफ्तेभर पहले लकड़ी की बनी बीएमडब्ल्यू मोटर बाइक तैयार की है। ये इतनी खूबसूरत और जीवंत लगती है कि ऐसा लगता है पेट्रोल डालो और इसमें बैठकर हवा में बाते करों किन्तु सावधान ये बाइक सड़कों पर दौड़ने के लिए नहीं बनाई गई है। यह तो शो मॉडल है और कलाकृति का बेजोड़ नमूना है। यह बीएमडब्ल्यू या अन्य किसी  बड़े शो रूम को बेंचने अथवा वहां की  शोभा बढ़ाने के लिए नहीं बनाई गई है। बुद्धसेन की ख्वाइश है कि वह इस बाइक को प्रभानमंत्री नरेन्द्र मोदी को  गिफ्ट करें। वे कभी भी अपनी बाइक लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भेंट करने दिल्ली कूच कर सकते है।
सब कुछ लकड़ी का
मोटर सायकिल का हैंडल, पेट्रोल टैंक, इंजन, टायर , मडगार्ड ,चके , सायलेंस सहित तमाम पार्ट सिर्फ लकड़ी से बनाए गए है जिससे बाइक को तैयार करने में करीब ढाई महीने का समय और कठिन परिश्रम लगा है, और अब यह तैयार हो चुकी है। आसपास से लोग इस बाइक को देखने बुद्धसेन के घर पहुंच रहे है और जो देखता है वह सराहना किए बिना नहीं रहता है।
नरेन्द्र मोदी को भेंट करूगा
ये बाइक मैने नरेन्द्र मोदी को गिफ्त करूंगा। मुझे किसी से मिलने के लिए मध्यस्थ की जरूरत नहीं पड़ती है मै सीधे उन तक पहुंच जाता हूं। चार साल पहले बिग  अभिताभ बच्चन को लकड़ी के गणेश जी भेंट किए थे। इसी तरह की लकड़ी कल कलाकृति मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान, पूर्व मुख्य मंत्री दिग्वजय सिंंह, कलेक्टर , एसपी और कई लोगों को भेंट कर चुका हूं। मेरे लकड़ी के मंदिर लोग बेहद पसंद करते है। रीवा सहित प्रदेश के कई शहरों में उनके बनाए मंदिर लोगों के घरों में है।
बुद्धसेन विश्वकर्मा
कलाकार

घर के आंगन से बह रही थी खून की नाली: डायरी


  तकरीबन 20 साल लगातार क्राइम रिपोर्टिग की है मैने, अनेक हत्याकांड पर मौके ए वारदात पर पहुंचा लेकिन 12 अक्टूबर 2009 को जो हौलनाक  खूनी दृश्य देखा तो सकते में आ गया। सुबह- सुबह मोबाइल फोन पर किसी ने मुझे सूचना दी कि सैनिक सोसायटी में एक साथ 7 हत्याएं हो गई है। मामला बढ़ा होने के कारण तत्काल मौके पर पहुंचा। सैनिक सोसायटी कालोनी में घुसते ही पूरी कालोनी में जगह जगह पुलिस बल तैनात दिखा। घटना स्थल के आसपास लोगों की भीड़ के बजाए पुलिस वालों की भीड़ थी। उनके बीच से होता हुआ जब उस घर के आंगन के पास पहुंचा तो देखा कि आंगन खून से रंगा हुआ है , घर के भीतर से बहती हुई खून की धार आंगन से होते हुए सड़क पर बह रही थी। यूं तो किसी को उस दौरान पुलिस वाले भीतर नहीं जाने दे रहे थे किन्तु मुझे जाने की इजात दे दी। अंदर कमरे में तीन लाश पड़ी हुई थी जो खून से सनी थी। इतना वीभत्स दृश्य था, अगले कमरे में झांका तो वहां भी दीवार ओर फर्स खून से रंगे थे, यूं लग रहा थी पूरे घर में खून की होली खेली गई। तत्कालीन एएसपी सत्येन्द्र शुक्ला से घटना स्थल पर बातचीत हुई तो उन्होंने बताया कि  परिवार के मखिया ने ही अपने बूढे माता पिता, अपनी पत्नी तथा अपने मासूम बच्चों की हत्या कर दी है। वह इस लिए परेशान था कि पड़ोसी से नाली का विवाद चल रहा था। इसी  नाली के चलते उसने खूनी खेल सुना? बेहद मामूली कारण से सात हत्याएं?
इस हत्याकांड से जुड़ा एक और रहस्यम तथ्य है जिसको आज मै उजागर करना चाहता हूं जिस पड़ोसी से आरोपी का नाली के लिए विवाद चल रहा था, वह पड़ोसी मेरे प्रेस के एक आपरेटर का सुसर था। घटना के एक दिन पहले ही गढ़ा थाने में दोनों पक्षों ने एक दूसरे की शिकायत की थी और एक पड़ोसी पक्ष को पुलिस ने थाने में बैठाकर रखे हुए था, मुझसे इस मामले में हस्तक्षेप कर एक पक्ष को छुडवाने का प्रयास करने कहा गया लेकिन न जाने क्यू मेरी आत्मा इस मामले में हस्तक्षेप न करने कह रही थी, मैने कोई रूचि नहीं दिखाई? और दूसरे दिन खून की होली देखने मिली। शहर में अब भी जबकभी पड़ोसियों के बीच अक्सर होने वाले नाली के विवाद का मामला आता है तो सैनिक सोयायटी की ये घटना जेहन में ताजा हो जाती है। करीब दो साल बाद फिर मामला सामने आया हत्या के आरोपी  सुनील सेन को उम्र कैद की सजा सुनाई गई तथा सात हजार रूपयें का जुर्माना भी की गया।  जबलपुर के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश बी.पी.शुक्ला की अदालत में प्रकरण की सुनवाई हुई थी लेकिन दुख इस  बात का है कि सुनील सेन जिसका पूरा परिवार खत्म हो गया, वहीं इस मामले में आरोपी है और उसके ही आरोपी को सजा मिलने से न्याय मिलना है। अब भी सोच में पड़ जाता हूं कि इस फैसले का क्या लाभ। जरूरत थी तो उसी रात गढ़ा पुलिस  मामूली विवाद में सुनील को न्याय देकर संतुष्ट कर देती तो शायद ये नरसंहार न होता। इस वारदात के बाद पड़ोसी
पड़ोसी राजकुमार गौतम भी अपना मकान बेंच कर कहीं और रहने चले गए।
 12 अक्टूबर 2009 को सुबह सुनील का व्यवस्था के प्रति आक्रोश ने अपनी  मां  मुन्नी बाई उम्र 60 वर्ष, पत्नी ज्योति उम्र 33 वर्ष, बहन संगीता उम्र 22 वर्ष, पुत्र हिमांशु उर्फ हेप्पी 6 वर्ष, रूद्रांश उर्फ लक्की उम्र 3 वर्ष, भांजा राजुल उम्र 2 वर्ष को कुल्हाड़ी से  मौत के घात उतार दिया।  इस लोमहर्षक घटना के बाद आज दिनांक तक नालियों के विवाद पर सिर फूट रहे है।

शहर बारूद के ढेर में


 जबलपुर। जिले में बारूद एवं पटाखे के लायसेंस को लेकर चलने वाली भर्राशाही के बीच प्रशासन ने पटाखा एवं बारूद के कारोबार करने वालों को छूट दे रखी है। शहर के व्यस्तम इलाकों में पटाखों के अब भी भंडारण किए गए है जबकि पेटलावद की घटना के बाद प्रशासन  ने कछियाना की कुछ दुकानों में दबिश देकर रस्म अदायगी की जबकि दर्जनों पटाखा व्यापारी ने व्यस्तम व्यवसायिक  एवं रहवासी इलाको में आतिशबाजी के  सामान का जखीरा लगा रखे है। पत्थरों की तुड़ाई एवं खदान में काम के लिए बारूद एकत्र कर खा गया है।

मालूम हो कि पिछले दिनों मुख्य मंत्री ने वीडियो कांफ्रेसिंग में तमाम बारूद के कारोबार करने वाले की सूची के साथ उनके यहां व्यवस्था संबंधी जांच पड़ताल करने सख्त निर्देश दिए थे। अनेक कलेक्टरों के पास इनकी व्यवस्थित सूची भी नहीं थी जिसके कारण उनकी खिंचाई भी की गई। जिला प्रशासन ने आूूॅनफानन लायसेंस शाखा से लायसेंस धारकों की सूची तैयार की है लेकिन उनके भंडारण की जांच पड़ताल करने अब तक कोई टीम नहीं निकली।
यहां है भारी बारूद
सूत्रों की माने तो गलगला में  ही करीब आधा दर्जन दुकानदारों ने अपने बाजार में ही गोदाम बना रखे है। दीवाली के समय तो यहां टनों से बारूद वाले पटाखे एकत्र होती है। यूं आतिशबाजी को लेकर वर्ष भी यहां भारी मात्रा में विस्फोटक रहता है। इसी तरह कछियाना , घोडा नक्कास, मिलौनीगंज, हनुमानताल ,  गढ़ा फाटक में भी करीब दो दर्जन दुकानों में पटाखे का भंडारण किया जाता है। कोतवाली में एक पटाखा गोदाम में आगजनी की घटना भी हो चुकी है लेकिन इसके बावजूद यहां भंडार अब भी हो रहा है।
माइनिंग कारोबारी हुए सतर्क
पेटलावद में हुई घटना के  बाद जबलपुर तथा पड़ोसी जिले कटनी के मानइनिंग का कारोबार करने वालों ने अपने बारूद के गोदाम व्यवसायिक एवं रहवासी क्षेत्र से  रातों रात हटा लिए है जबकि पटाखा का कारोबार करने वाले बेखौफ है चूंकि वे शस्त्र शाखा में हर महीना भेंट चढ़ाते है जिससे वे बेखौफ हैं।
वर्जन
बारूद संबंधी कारोबार करने वालों की सूची तैयार की गई है। एसडीएम तथा पुलिस अधिकारियों को वहां जांच पड़ताल करने के निर्देश दिए गए है। ब्लास्ट का कारोबार करने वालों के स्टॉक कर्मचारी आदि की जांच कराई जा रही है।
एस धनराजू
प्रभारी कलेक्टर
ये है कारोबारियों की संख्या
कारोबार   -   लायसेंस संख्या
स्टोनक्रेशर ब्लास्ट -  11
मार्बल माइंस - 5
आतिशबाजी निर्माता - 27
12 महीना पटाखा - 88
फुटकर पटाखा   1287

केन्द्रीय जेल: मुख्यधारा से जोड़ने योजनाएं

  जबलपुर। नेताजी सुभाष चंद्र बोस केन्द्रीय जेल में बंदियों को सिर्फ कारावास की सजा काटने भर के लिए नहीं रखा जाता है। नेता जी सुभाष चंद्र बोस को बंदी के तौर पर रखने वाली इस जेल को काफी हद तक सुधारगृह में तब्दील कर लिया गया है।  बंदियों के वेलफेयर के लिए पूरा एक विभाग कार्यरत है। बंदियों की सजा जब पूरी हो जाए और वे जेल से रिहा होकर समाज में पहुंचे तो उन्हें समाज की मुख्यधारा में जुड़ने कोई  परेशानी न होए। इसके लिए केन्द्रीय जेल जबलपुर में बंदी कल्याण के लिए अनेक योजनाएं चलाई जा रही है। यहां हॉल ही में बंदियों को ड्रायविंग प्रशिक्षण प्रदान करने का काम शुरू किया  गया है और उन्हें आरटीओ से ड्रायविंग लायसेंस भी मिल रहे है। जेल से जब वे रिहा होंगे तो उनके हाथों में हुनर होगा और पुर्नवास में कोई समस्या नही आएगी।  केन्द्रीय जेल जबलपुर में ड्रायविंग के शौकीन बंदियों को बकायदा जेल ड्रायवरों द्वारा ड्रायविंग का कड़ा प्रशिक्षण दिया जा रहा है। उनके प्रशिक्षण की गुणवत्ता शहर के अनेक ड्रायविंग स्कूल से काफी उच्च कोटी की रहती है। प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले बंदी जेल वैन को लेकर शहर में आते और जाते भी है। अनेक बाद जेल ड्रायवर के छुट्टी पर   होने पर ये ही बंदी केन्द्रीय जेल से बंदियों को वैन में लेकर कोर्ट जाते और उन्हें वहां से लेकर आते है। जेल में ड्रायवरों की कमी का भी निराकरण हो चुका है। अबतक लगभग पौने दो दर्जन से अधिक बंदियों को हैवी ड्रायविंग लायसेंस मिल चुके है। ड्रायविंग सीखने वाले बंदी बेहद खुश है उनके पास ड्रायविंग लायसेंस है। उन्हें उम्मीद है कि जेल से रिहा होने के बाद उनके पास एक हुनर होगा और उन्हें ईमानदारी और मेहनत से रोजी रोटी चलाने का जरिया मिल जाएगा। केन्द्रीय जेल में अब तक 40 बंदियों को ड्रायविंग का प्रशिक्षण दिया जा चुका है।  जेल में अन्य प्रशिक्षण कार्यक्रम  उपक्रम - बंदी संख्या साबुन फैम्टरी- 50 बुनाई हाथकरघा- 150 लोहारी, बेल्डिंग-  30 कारपेंट्री -150 प्रिंट प्रेस- 50  ललित कला- 25 अमरेन्द्र सिंह  ---------------------------------------------------------- जबलपुर। राज्य सेवा  के अधिकारी अमरेन्द्र सिंह अपनी नेत्रत्व क्षमता और कुशल कार्यप्रणाली के लिए पुलिस मोहकमें में पहचाने जाते है। सन 2001 बैच के अधिकारी अमरेन्द्र सिंह भोपाल, इंदौर और शिवपुरी जिले में पदस्थ रह चुके हैं। जबलपुर जिले में सीएसपी रांझी और वर्तमान में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक शहर के पद पर हैं तथा शहर के पुलिस बल को उनका कुशल नेतृत्व प्रदान कर रहें हैं। अनेक विषम परिस्थितियों में उन्होंने पुलिस बल का मनोबल उंचा बनाए रखा और अपनी कप्तानी का लोहा मनवाने में कामयाब रहें। यहां हाईकोर्ट में अधिवक्ताओं के उग्र आंदोलन में पथराव के दौरान  पुलिस बल का संयमित एवं नियंत्रण में रखा और एक बड़े फसाद को टालने में कामयाब हुए। भरतीपुर में दो बार सम्प्रदायिक तनाव के माहौल में कम बल की मौजूदगी के बावजूद स्थिति नियंत्रण में बनाए रखी। उनकी सूझबूझ, निडरता और मिलसार गुण का पुलिस पुलिस मोहकमें को लाभ है। अनेक अनसुलझे हत्याकांड के खुलासा करने और बड़े फरार अपराधियों को पकड़वाले का श्रेय भी उनके खाते में जा चुका है। उनसे संवाददाता दीपक परोहा की बातचीत के अंश निम्न हैं-  * पुलिस में क्या कमी आप महसूस करतें हैं?  ** यदि देखा जाए तो पुलिस अब भी संसाधनों की तुलना में काफी पिछड़ी हुई है। अपराधी हाईटेक हो चुके है और आधुनीकि तकनीकी और संसाधन अपना रहे है। जहां पुलिस में संसाधनों की कमी है और उपर से पुलिस बल भी क्षेत्र की जनसंख्या और भौगोलिक स्थिति की तुलना में बेहद कम  है। इस कमी को दूर करने शासन स्तर पर प्रयास चल रहे है।  * पुलिस संसाधनों में पिछड़ी है फिर भी उसे आम आदमी की जानमाल की हिफाजत करनी है,ये उसकी ड््यटी का हिस्सा है? ऐसे में आप क्या कर सकते हैं? ** पुलिस संसाधन कम होने पर सुनियोजित पुलिसिंग पूरी दक्षता से कराई जा रही है, जिससे हम शहर में अमनचैन कायम कर रखे हैं। व्यवस्थिति पुलिसिंग  के कारण लोगों की जानमाल की हिफाजत करने में भी सफल है। अपराध होने पर अपराधियों को पकड़ कर उन्हें सजा दिलवा रहे है जिससे अपराध दर नियंत्रण में है।  * एक अच्छे पुलिस अधिकारी के क्या गुण होने चाहिए, आप में वैसी खूबी मौजूद है?  ** एक पुलिस अधिकारी का मुख्य गुण अपनी फोर्स का मनोबल हमेशा उंचा रखना होता है। अपने अधिनस्त और सहयोगी अधिकारियों के बीच तालमेल बनाकर पूरी टीम भावना से काम करना और करवाना आना चाहिए। वह जब फील्ड में मौजूद हो तो उसे जमीनी हकीकत मालूम होनी चाहिए। सूचना तंत्र उसका जबदस्त मजबूत होना चाहिए। जहां तक मेरा सवाल है तो मैने अब तक कुशलता के साथ इन्ही गुणों के कारण पुलिस को नेतृत्व करते आ रहा हूं।  * आम जनता पुलिस के नाम से डरती है, और आज अपराधियों पर पुलिस का खौफ कम हो रहा है, ये बदलती सामाजिक व्यवस्था पुलिस के लिए  कहां तक उचित है?  ** हमेशा पुलिस कर्मचारियों की मीटिंग में मुख्य विषय यही होता है कि आम जनता के बीच पुलिस की छबि बेहतर रहे। जनता और पुलिस के बीच सतत संवाद की स्थिति बनी रहे। इससे उनका सूचना तंत्र मजबूत होगा और पुलिसिंग के लिए बेहद उपयोगी रहेगा। जनता में पुलिस का खौफ नहीं अपराधियों में होना चाहिए। इसके लिए हमारा हमेशा प्रयास रहता है कि कोई भी वारदात होने पर पुलिस तत्काल एक्शन पर आ जाए, अपराधी को पकड़ा जाए और उसे सजा दिलाई जाए। इससे अपराधियों में पुलिस और कानून का खौफ पैदा होगा। लाठी भांजने मात्र से पुलिस का खौफ अपराधियों पर नहीं पड़ेगा।  * आपका कोई यादगार मामला? **  जबलपुर में हुआ बहुचर्चित आरोही हत्याकांड एक यादगार केस है  जिसमें हमें बेहद अधिक मेहनत करनी पड़ी और सफलता भी मिली। इसी तरह इंदौर में दोहरे और तिहरे हत्याकांड है जिसमें तीन आरोपियों को फांसी की सजा हुई।   ********************************************   ***अमरेन्द्र सिंह  ---------------------------------------------------------- जबलपुर। राज्य सेवा  के अधिकारी अमरेन्द्र सिंह अपनी नेत्रत्व क्षमता और कुशल कार्यप्रणाली के लिए पुलिस मोहकमें में पहचाने जाते है। सन 2001 बैच के अधिकारी अमरेन्द्र सिंह भोपाल, इंदौर और शिवपुरी जिले में पदस्थ रह चुके हैं। जबलपुर जिले में सीएसपी रांझी और वर्तमान में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक शहर के पद पर हैं तथा शहर के पुलिस बल को उनका कुशल नेतृत्व प्रदान कर रहें हैं। अनेक विषम परिस्थितियों में उन्होंने   पुलिस बल का मनोबल उंचा बनाए रखा और अपनी कप्तानी का लोहा मनवाने में कामयाब रहें। यहां हाईकोर्ट में अधिवक्ताओं के उग्र आंदोलन में पथराव के दौरान  पुलिस बल का संयमित एवं नियंत्रण में रखा और एक बड़े फसाद को टालने में कामयाब हुए। भरतीपुर में दो बार सम्प्रदायिक तनाव के माहौल में कम बल की मौजूदगी के बावजूद स्थिति नियंत्रण में बनाए रखी। उनकी सूझबूझ, निडरता और मिलसार गुण का पुलिस पुलिस मोहकमें को लाभ है। अनेक अनसुलझे हत्याकांड के खुलासा करने और बड़े फरार अपराधियों को पकड़वाले का श्रेय भी उनके खाते में जा चुका है। उनसे संवाददाता दीपक परोहा की बातचीत के अंश निम्न हैं-  * पुलिस में क्या कमी आप महसूस करतें हैं?  ** यदि देखा जाए तो पुलिस अब भी संसाधनों की तुलना में काफी पिछड़ी हुई है। अपराधी हाईटेक हो चुके है और आधुनीकि तकनीकी और संसाधन अपना रहे है। जहां पुलिस में संसाधनों की कमी है और उपर से पुलिस बल भी क्षेत्र की जनसंख्या और भौगोलिक स्थिति की तुलना में बेहद कम  है। इस कमी को दूर करने शासन स्तर पर प्रयास चल रहे है।  * पुलिस संसाधनों में पिछड़ी है फिर भी उसे आम आदमी की जानमाल की हिफाजत करनी है,ये उसकी ड््यटी का हिस्सा है? ऐसे में आप क्या कर सकते हैं? ** पुलिस संसाधन कम होने पर सुनियोजित पुलिसिंग पूरी दक्षता से कराई जा रही है, जिससे हम शहर में अमनचैन कायम कर रखे हैं। व्यवस्थिति पुलिसिंग  के कारण लोगों की जानमाल की हिफाजत करने में भी सफल है। अपराध होने पर अपराधियों को पकड़ कर उन्हें सजा दिलवा रहे है जिससे अपराध दर नियंत्रण में है।  * एक अच्छे पुलिस अधिकारी के क्या गुण होने चाहिए, आप में वैसी खूबी मौजूद है?  ** एक पुलिस अधिकारी का मुख्य गुण अपनी फोर्स का मनोबल हमेशा उंचा रखना होता है। अपने अधिनस्त और सहयोगी अधिकारियों के बीच तालमेल बनाकर पूरी टीम भावना से काम करना और करवाना आना चाहिए। वह जब फील्ड में मौजूद हो तो उसे जमीनी हकीकत मालूम होनी चाहिए। सूचना तंत्र उसका जबदस्त मजबूत होना चाहिए। जहां तक मेरा सवाल है तो मैने अब तक कुशलता के साथ इन्ही गुणों के कारण पुलिस को नेतृत्व करते आ रहा हूं।  * आम जनता पुलिस के नाम से डरती है, और आज अपराधियों पर पुलिस का खौफ कम हो रहा है, ये बदलती सामाजिक व्यवस्था पुलिस के लिए  कहां तक उचित है?  ** हमेशा पुलिस कर्मचारियों की मीटिंग में मुख्य विषय यही होता है कि आम जनता के बीच पुलिस की छबि बेहतर रहे। जनता और पुलिस के बीच सतत संवाद की स्थिति बनी रहे। इससे उनका सूचना तंत्र मजबूत होगा और पुलिसिंग के लिए बेहद उपयोगी रहेगा। जनता में पुलिस का खौफ नहीं अपराधियों में होना चाहिए। इसके लिए हमारा हमेशा प्रयास रहता है कि कोई भी वारदात होने पर पुलिस तत्काल एक्शन पर आ जाए, अपराधी को पकड़ा जाए और उसे सजा दिलाई जाए। इससे अपराधियों में पुलिस और कानून का खौफ पैदा होगा। लाठी भांजने मात्र से पुलिस का खौफ अपराधियों पर नहीं पड़ेगा।  * आपका कोई यादगार मामला? **  जबलपुर में हुआ बहुचर्चित आरोही हत्याकांड एक यादगार केस है  जिसमें हमें बेहद अधिक मेहनत करनी पड़ी और सफलता भी मिली। इसी तरह इंदौर में दोहरे और तिहरे हत्याकांड है जिसमें तीन आरोपियों को फांसी की सजा हुई।   ********************************************   *********************************************   ******************************************    ----------------------------------------------------------- वन्य पक्षियों की अवैध फार्मिग और कारोबार   वन विभाग कर रहा जांच, किस लिए बिकते है ये भी पता नहीं  जबलपुर। दुर्लभ वन्य पक्षी की अवैध फार्मिंग एवं उनके अवैध विक्रय के  कारोबार की वन विभाग को काफी अर्से से सूचना मिलती रही है लेकिन अब तक पक्षियों का अवैध कारोबार करने वाला बड़ा गिरोह पुलिस के हाथ नहीं लगा। अलबत्ता गुरंदी तथा अन्य क्षेत्र में विक्रय के लिए आने वाले तोते तथा लव वर्ड सहित अन्य  कुछ प्रजाति के पंछियों को जब्त कर उन्हें खुले आसमान में छोड़ने की वन विभाग ने कार्रवाई की लेकिन इस पक्षियों को पकड़ने, उनकी अवैध  फार्मिग करने वाले गिरोह व उसके नेटवर्क को उजागर नहीं कर पाया गया। अलबत्ता गत गुरूवार को ऐसा एक संदिग्ध गिरोह वन विभाग के हाथ लगा है लेकिन कानूनी दांवपेंच के चलते गिरोह पर कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है। अलबत्ता एंटी पोचिंग टीम ने मामला जांच पड़ताल में ले लिया है।   सूत्रों के अनुसार  जबलपुर के आसपास जंगली क्षेत्रों में पक्षियों के अवैध कारोबारी के जबलपुर आने की खबर पर वन विभाग के अमले ने फूटाताल क्षेत्र  वन विभाग ने दबिश देकर पक्षियों के व्यापारियों को पकड़ा । उनके पास दुर्लभ शुतुरमुर्ग की तरह के पक्षी मिले लेकिन उनके पास जो पक्षी मिले उसको देखकर वन विभाग भी चौक गए। ये शुतुरमुर्ग नहीं थे। पक्षी के व्यापारियों ने उन्हे एमओ नामक पक्षी बताया और कहा कि यह पालतू पक्षी के श्रेणी का है। वन विभाग कानूनी दांव पेंच के चलते पक्षी को जब्त नहंी कर पाया लेकिन उनकी तस्वीरें उतार कर तथा व्यापारियों की आईडी और पता ठिकाना लेकर उन्हें छोड़ दिया। मामले की जांच पड़ताल प्रारंभ कर दी है। वन विभाग इन पक्षियों  को लेकर संशय में है। उन्हें नहीं मालूम   ये किस नस्ल के पक्षी हैं और वे वन्य प्राणी है अथवा नहीं ? इनका क्या उपयोग है? क्यो पाले जाते है? इस सब से वन विभाग अनभिज्ञ है। फिलहाल वन विभाग ने मामला जांच में लिया है। पक्षियों का कारोबार करने वाले नागपुर से आए थे। ऐसा समझा जा रहा है कि नागपुर से लगे प्रदेश के जिलों में इन पक्षियों की व्यापक पैमाने में फार्मिग हो रही है।  अंडे की खातिर चलता है कारोबार सूत्रों की माने तो शुतुरमुर्ग के अंडे बेहद कीमती होते है। विदेशों में शुतुरमुर्ग की फार्मिंग भी होती है और उसके अंडे बिकते हैैं लेकिन वन विभाग सुतुरमुर्ग पालने की अनुमति नहीं देता है जिसके परिणाम स्वरूप उसके वर्णशंकर का अवैध कारोबार जमकर फैल रहा है।   वर्जन शुतुरमुर्ग की तरह पक्षी मिले थे लेकिन वे शुतुरमुर्ग नहीं थे। ऐसा समझा जाता है कि पक्षी का अवैध कारोबार करने वाले ग्राहक को शुतुरमुर्ग बताकर बेचने का कारोबार करते है। वन विभाग मामले की जांच पड़ताल कर रही है।  आरके  पांडे  डीएफओ, एन्टी पेचिंग स्क्वाड 

अबोध बच्ची सलोनी का दुश्मन पिता

अबोध बच्ची सलोनी का दुश्मन पिता
 हंसती खेलती बेटी को बेटे की चाहत पर उतारा मौत  के घाट
जबलपुर।  आखिर अबोध बच्ची सलोनी का दुश्मन कौन है, उसने किसी का क्या बिगाड़ा है जो हंसती खेलती सलोनी को  मार डाला? जब मृत हालत में मां ने बेटी को देखा तो ये विचार आए। मां का लाड़ली की मौत से दिल भर था आंखों से  आंसूे थे। बेटी के पिता में किसी तरह के गम के भाव नजर नहीं आ रहे थे।  ऐसे  में मां  को  सलोनी के पिता का ही खयाल आया जो सलोनी के पैदा होने से बेहद नाखुश था। आए दिन उससे मारपीट करता था। सलोनी का हत्यारा उसका पिता ही है। यह विचार आने पर इस  मां ने अपने शौहर के खिलाफ थाने में जाकर एफआईआर दर्ज कराई। पुलिस जांच पड़ताल कर रही है ।
आज सरकार भले ही लड़ली लक्ष्मी और लक्ष्मी सम्मान जैसी योजना  चला रही है लेकिन समाज में अब भी बेटी को सहजता से स्वीकार नहीं है। बेटे की चाहत  में एक  पिता ने अपनी लाड़ली को पटक पटक कर मार डाला। यह घटना छिंदवाड़ा जिला के समीपी गांव कचरिया की है। गत शुक्रवार को ऋषि पंचमी की रात शंकर सूर्यवंशी की ढाई साल की बेटी सलोनी की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। पत्नी पिंकी अपनी लाड़ली को हंसती-खेलती हुई घर पर छोड़कर ऋषि पंचमी का पूजन करने के लिए मंदिर गई थी। वह जब मंदिर से लौटी तो  देखा उसकी हंसती-खेलती बेटी सलोनी हमेशा के लिए मौत की नींद सो चुकी थी। सलोनी का पिता ने गोलमोल जवाब दिए।
पत्नी का आरोप है कि बेटे की चाहत के कारण पति ने उसकी ढाई साल की बेटी की हत्या कर दी है। जबकि पति का कहना है कि सोफे से गिरने के कारण मासूम की मौत हुई है।  इसको लेकर पति-पत्नी के बीच रात में जमकर विवाद हुआ। गांव के लोगों ने इसकी सूचना पुलिस को दी।  शनिवार सुबह पुलिस शंकर के घर पहुंची और बच्ची के शव को पोटमार्टम के लिए  ले गई।  पुलिस ने पत्नी पिंकी के बयान दर्ज कर लिए हैं। पिंकी ने पुलिस को बताया कि पति शंकर बेटे की चाहत में उसके साथ मारपीट करता रहता था। पत्नी ने पति के खिलाफ प्रताड़ना की शिकायत पूर्व में भी की थी, जो न्यायालय में विचाराधीन है। पत् िा पत्नी के बीच विवाद की शुरूआत ही बेटी के जन्म से हुई थी जब  ढाई साल पहले जब पति शंकर ने बेटी होने की खबर सुनी तब से बेटी को शंकर पंसद नहीं करता था और उसकी मां को भी प्रताड़ित करने लगा था।
नहीं चाहते थे पीएम कराना

जिला अस्पताल के मरचुरी रूम में रखे मासूम के शव के पोस्ट मार्टम न कराए जाने को लेकर भी शंकर ने जमकर हंगामा किया। शंकर एवं शंकर की मां नहीं चाहते थे कि  पीएम कराया जाए जबकि  मासूम की मां की चाहती थी कि पीएम कराया जाए जिससे मौत का कारण सामने आए और दोषियों को सजा मिले।  इस बात को लेकर दोनो पक्षों के बीच करीब आधा घंटे तक जमकर वाद विवाद भी चला अंतत: पुलिस ने शव का पीएम कराया।
बेटी से नहीं था स्नेह
अपनी नम आंखों से मीडिया को मासूम की मां पिंकी ने बताया कि पति शंकर के अलावा ससुराल वालों को बेटे की चाह थी। बेटी होने के बाद से पति नाराज रहता था और मारपीट करता था। साथ ही उसे बेटी के प्रति किसी तरह का कोई प्रेम नहीं था। अक्सर बेटे न होने को लेकर मारपीट करता रहता था।
वर्जन
 आरोपी शंकर को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट प्राप्त होने पर हत्या का मामला दर्ज किया जाएगा। प्रथम दृष्टि शंकर ही हत्या का संदेही बना है।
 मिथलेश शुक्ला
पुलिस अधीक्षक छिंदवाड़ा