माता-पिता से बढ़कर आलम्बन दिया टीचर ने
जबलपुर। शासकीय मानकुंवर कला एवं वाणिज्य स्वशासी महिला महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. उषा दुबे जिन्होंने शिक्षा और छात्र- छात्राआें की सेवा में अपना पूरा जीवन समर्पित कर रखा है। उनका जीवन घरेलू महिला की तरह चूल्हे- चौके और अपने परिवार में उलझ नहीं है, वे पूरी तरह विद्यार्थियों के लिए समर्पित है। डॉ उषा दुबे ने विवाह नहीं किया है। दरअसल अविवाहित रहने के स्कूली जीवन में उत्पन्न संकल्प को परिणाम तक पहुंचाने में उनकी शिक्षिका का ही सहारा रहा है। आर्थिक तंगी से गुजर कर होमसाइंस कालेज में जब उषा दुबे पढ़ने पहुंची तो तत्काली प्राचार्य ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी मानक मार्गदर्शन दिया और वे आज प्राचार्य बन कर गुरू परम्परा का निर्वाह कर रही है।
डॉ उषा दुबे शिक्षक के मौके पर अपनी गुरू -शिक्षिका श्रीमती कृष्णा नाद का याद करते हुए बताया कि सन 1969 में उन्होंने होमसांइंस कालेज में प्रवेश लिया था। दौरान होमसाइंस कालेज एवं मानकुंवर बाई कालेज एक ही थे। उनके पिता जस्टिस दीपक वर्मा के पिता के पास मुंशी थे लेकिन जब उनका एजूकेशन कालेज में शुरू हुआ तभी पिता असाध्य बीमारी से पीड़ित हो गए। परिणाम स्वरूप कालेज की पढ़ाई असंभव प्रतीत हो रही थी। ऐसे में एक शिक्षिका का उन्हे सहारा मिला। उन्होने तमाम प्रोफेसर -प्राध्यापकाओं के सामने मुझे पाल्य पुत्री घोषित कर दिया। कहा कि ये लड़की मेरी उत्तराधिकारी होगी और गुरू शिष्य परम्परा को आगे बढ़ाएगी। होमसाइंस कालेज में एकाडमिक स्टॉप में शामिल होकर कालेज की उत्तरोत्तर प्रगति का मेरा सपना पूरा करेगी।
डॉ उषा दुबे ने बताया कि मेरी तो हैसियत ऐसी नहीं थी कि पीएचडी कर लू
ं लेकिन वे स्वयं मुझे रिक्शा में विश्व विद्यालय ले जाती थी। अधिकांश जगह वे साथ में ले गई। मुझमें आत्म-विश्वास पैदा किया। मै विवाह नहीं करना चाहतीे थी, लेकिन मेरी इस बात को उन्होंने असामान्य और गैर सामाजिक नहीं ठराया तथा कहा कि जीवन में संकल्प पूरा करने की शक्ति उत्पन्न करने की जरूरत है।
डॉ उषा दुबे का कहना है कि आज मेरी गुरू नहीं हैं लेकिन इस कॉलेज परिसर में मुझे उनकी उपस्थित महसूस होती है, उनकी शैक्षणिक आदर्शो को आग बढ़ाने में सुकून मिलता है। वे सदगी पसंद थ्ी। गांधीवादी विचारधार की थी, और आज उनके पथ पर मै चल रही हूं।
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