Wednesday, 30 September 2015

राजवर्धन महेश्वरी

 राजवर्धन महेश्वरी  
जिले के बेहतरीन अधिकारियों में शुमार श्री महेश्वरी लम्बे समय तक जबलपुर लोकायुक्त में पदस्थ रहे तथा यहां जेडीए के बड़े घोटाले का पर्दाफाश किया जिसमें बिल्डर्स, राजनेता तथा कई अधिकारी आरोपी बनाए गए। श्री महेश्वरी का मानना है कि भ्रष्टाचार मुक्त समाज बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका पुलिस और प्रशासन की ही होती होगी  चंूकि उन्हें शासन से अधिकार मिले है। श्री महेश्वरी से पीपुल्स संवाददाता दीपक परोहा की बातचीत के अंश।
प्रश्न- पुलिस कंट्रोल रूम, लोकायुक्त, डीएसपी क्राइम में लम्बे समय तक पदस्थ रहें हैं, ये पुलिस विभाग में लूप लाइन माने जाते हैं, कंट्रोल रूम में पुलिस कर्मी क्यों नहीं जाना चाहता है?
जवाब- पुलिस कंट्रोल रूम की वर्किग और जिला पुलिस की वर्किग में अंतर होता है। पुलिस कंट्रोल रूम दरअसल संवाद एवं सूचाएं एकत्रित होते है और यहां पुलिस का बल पर नियंत्रण रखा जाता है। यहां भले ही बैठकर काम करना पड़ता है लेकिन बेहद जिम्मेदारी वाला काम होता है यहां गलती की कोई संभहोता है यहां गलती की कोई संभावना नहीं होनी चाहिए। मुझे समय पूर्व पदोन्नति कंट्रोल रूम प्रभारी रहते हुए मिली थी। कंट्रोल रूम की भूमिका के कारण ही सन 1997 में सदर में हुए मदान हत्याकांड का पर्दाफाश हुआ। हर पुलिस वाले को कंट्रोल रूम में काम करने का अनुभव होना चाहिए जिससे वह कम्युनिकेशन के महत्व को भली भांति समझ सकता है। बिना कम्युनिकेशन के फोर्स अंधे हाथी की तरह होती है।
प्रश्न- लोकायुक्त और पुलिस की वर्किग में बेहतर कौन सी है?
जबाव- लोकायुक्त भ्रष्टाचार संबंधी प्रकरणों की जांच पड़ताल करता है। इसके लिए सिर्फ एक ही तरह का काम होता है। लोकायुक्त में लम्बी विवेचना चलती है। यहां पदस्थ अधिकारी को भी फील्ड में काम करना पड़ा है लेकिन इसका क्षेत्र पुलिस की वर्किग से अलग होता है। पुलिस को विभिन्न अपराधों की विवेचना के साथ कानून व्यवस्था देखना पड़ता है। दरअसल आम जनता से पुलिस सीधे जुड़ी होती है इसलिए पुलिस की वर्किग ज्यादा रूचिकर लगती है।
प्रश्न- क्राइम ब्रांच में क्या सुधार होना चाहिए?
जवाब- जबलपुर में क्राइम ब्रांच मेंस्टॉफ की कमी हैं, वाहन तथा अन्य संसाधन कम है लेकिन क्राइम ब्रांच की उपयोगिता को महसूस करते हुए शासन बल के साथ संसाधन भी स्वीकृत किए गए है। 

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