Saturday, 5 December 2015

डिप्थीरिया पीड़ित बच्चा बना चुनौती


 इलाज में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे
फिलहाल बच्चे की हालत में है सुधार
...इंट्रो...
विक्टोरिया अस्पताल के डॉक्टरों के लिए डिप्थीरिया पीड़ित बच्चा चुनौती बना है। चिकित्सकों ने रात-दिन एक कर बच्चे को लगभग स्वस्थ कर लिया है, लेकिन उसको अभी चिकित्सक अपनी निगरानी में रखेंगे। छह सप्ताह तक उसके ऊपर खतरे के बादल मंडराते रहेंगे। कारण डिप्थीरिया के संक्रमण का प्रभाव हृदय पर पड़ता है और हृदय जनित समस्याओं को हर पल खतरा बना रहा है। फिलहाल राजा नाम बीमार बालक की हालत खतरे से बाहर है।
जबलपुर। बच्चों को गले में होने वाला बैक्टीरिया जनित संक्रमण डिप्थीरिया यूं तो लगभग खत्म हो गया है, इसकी वजह ये है कि शिशु के जन्म के साथ ही टीका दिया जाता है। शासन की टीकाकरण कार्यक्रम के कारण लगभग देश व प्रदेश में ये बीमारी दुर्लभ हो चुकी है, लेकिन अब भी अपवाद स्वरूप डिप्थीरिया के मामले आ रहे हैं। चिकित्सकों की माने तो कुछ दशक पूर्व डिप्थीरिया पीड़त बच्चे की मृत्यु होना लगभग तय होता था, लेकिन आधुनिक  चिकित्साओं ने इसी बीमारी से भी संघर्ष कर रही है।  ऐसा ही एक मामला जबलपुर स्थित विक्टोरिया अस्पताल में आया। यहां  डिप्थीरिया से पीड़ित बालक को भर्ती किया गया है। लगभग एक सप्ताह से बच्चा संघर्ष कर रहा है और वार्ड में घूमता-फिरता भी है। इस बच्चे के लिए अच्छी से अच्छी एंटीबायटिक्स दवाइयां उपलब्ध कराई जा रही हैं और बालक की चिकित्सा चुनौती बनी है।
 सेठ गोविन्द दास (विक्टोरिया)जिला अस्पताल में खंडवा का एक परिवार अपने डिप्थीरिया पीड़ित बच्चे को इलाज के लिये जबलपुर लेकर आया था। इस परिवार के दो बच्चों को डिप्थीरिया हुआ था। इंदौर के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। 10 वर्षीय बड़े बेटे असीम की मौत इंदौर के मेडिकल कॉलेज में मौत हो गई। उस दौरान परिवार वालों को बताया गया कि बच्चे की मौत एंटीटॉक्सिन इंजेक्शन उपलब्ध नहीं होने के कारण हुई है । डिप्थीरिया का बेहतर इजाज जबलपुर में ही हो सकता है और तुम्हारे दूसरे बच्चे की जान जबलपुर में ही बच सकती है।
इंदौर से शेख सलीम अपने 7 वर्षीय बच्चे को लेकर जबलपुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंचा। सूत्रों की माने तो मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों में भी डिप्थीरिया का मरीज होने के कारण अपने हाथ खड़े कर दिए और उसे मेडिकल कॉलेज से चलता कर दिया, किन्तु यह बात जिला कलेक्टर के संज्ञान में आई तो उन्होंने विक्टोरिया में बच्चे को भर्ती करने आदेश दिए।
खेलने-कूदने लगा है बालक
डॉ. एमएम अग्रवाल ने बताया कि राज को इलाज के लिए तत्काल शिशु वार्ड में भर्ती कराया गया तथा आवश्यक एंटी बायटिक्स दवाइयों को कोर्स तत्काल शुरू किया गया। राज को जब लाया गया था, तब उसके थ्रोट में जबदस्त संक्रमण था, जो कान तक पहुंच गया था। लगातार बालक की निगरानी की गई। दवाइयों का असर जल्द ही सामने आने लगा। उसके गले में संक्रमण काफी हद तक कम गया गया है। बच्च्चा वार्ड में खेलने कूदने भी लगा है। अपने पिता के साथ अस्पताल के बाहर तक चल जाता है, किन्तु अभी हम बच्चे को खतरे से बाहर नहीं कह सकते हैै। दरअसल, डिप्थीरिया का संकमण काफी तेज होता है और इस बच्चे को तो जबरदस्त संक्रमण था। उसके हार्ट तक संक्रमण चला गया है। हार्ट के संक्रमण कम होने में छह सप्ताह से तीन माह तक का समय लगता है। संक्रमण के चलते नलिकाएं  ब्लाक होती है तथा अचानक हृदयाघात भी आ जाता है। डिप्थीरिया में होने वाली शत प्रतिशत मौत का कारण हृदय का काम करना बंद हो जाता है। बहरहाल, हमारे लिए आशा की बात  है कि बच्चा  सरवाइव कर रहा है। उसकी सतत निगरानी की जा रही है। शिश ुरोग विशेषज्ञ डॉ. मंजूलता की निगरानी में इलाज चल रहा है। पूरे विक्टोरिया अस्पताल के चिकित्सकों के लिए डिप्थीरिया को केस चुनौती बना है।

पर्यटन विकास के लिए किया जाएगा विकसित

बफर जोन में भी होंगे टाइगर के दीदार

जबलपुर। प्रदेश के पांच प्रमुख टाइगर रिजर्व के बफर जोन में पर्यटन के विकास के लिए तैयार प्रस्ताव को केन्द्र शासन से मंजूरी मिल चुकी है तथा मध्य प्रदेश शासन ने बफर जोन के विकास के लिए पर्याप्त राशि भी स्वीकृत कर दी है, जिससे बफर जोन में भी अब सफारी चलेगी तथा पर्यटक टाइगर के दीदार करेंगे, लेकिन यहां रिजर्व टाइगर की तुलना में कम टिकट लगेगी।
जानकारी के अनुसार बफर जोन के जंगलों में पर्यटकों के घूमने तथा जंगली जानवर चीतल सांभर और रिजर्व टाइगर के यहां मौजूद बाघों के दीदार करने के लिए विकास कार्य कराए जाने है। इसके लिए बफर जोन में सफारी चलने के लिए सड़कें तैयार की जा रही है। कई नाले और पुलिया निर्माण का भी काम किया जा रहा है।
शासन ने वाइल्ड लाइफ सर्किट के लिए 95 करोड की राशि स्वीकृत की है।
बांधवगढ़ में पर्यटन शुरू
नेशनल पार्क बांधव गढ़ के बफर जोन में तो पर्यटन के लिए कार्य लगभग शुरू हो गया था। कटनी के खितौली बफर जोन में टाइगरों को हमेश डेरा बना रहता है। यहां बाकायदा टाइगर सफारी के लिए प्रस्ताव भी बनाया गया था, लेकिन इसको मंजूरी नहीं मिली, अलबत्ता इस बफर जोन को पर्यटकों के लिए विकसित किया गया है।
बारिश के सीजन में भी खुलेंगे
नेशनल पार्क बारिश के सीजन में जहां बंद रहते है, वहीं बारिश में पर्यटकों को जंगल का आनंद उठा सके तथा बारिश में यदि अवसर मिले तो टाइगर भी देख सकें, इसके लिए बफर जोन को बारिश में भी खुला रखा जाएगा, लेकिन इसके लिए पुलिया एवं सड़कों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
यह पार्क के होंगे विकसित
वन मंत्री गौरी शंकर शेजवार ने पिछले दिनों घोषणा की है कि मध्य प्रदेश ईको टूरिज्म बोर्ड की योजना के तहत टाइगर रिजर्व में वाइल्ड लाइफ टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए टाइगर रिजर्व पन्ना, टाइगर रिजर्व बांधवगढ़, टाइगर रिजर्व संजय तथा टाइगर रिजर्व पेंच एवं टाइगर रिजर्व सतपुड़ा का शामिल किया गया है।
कैम्पिंग भी होगी
टाइगर रिजर्व में जहां पर्यटकों को सुबह तथा शाम कुछ घंटे ही जंगल में बिताने का अवसर मिलता है, लेकिन बफर जोेन के जंगल में कैम्पिंग तथा ट्रैकिंग के भी प्रबंध किए जा रहे है। कैम्पिंग के लिए मचान, पैगोडा तथा ट्री हाउस निर्माण भी किया जाना है।
पर्यटकों का बढ़ा दबाव
पिछले कई दो वर्षों से यह महसूस किया जा रहा है कि नेशनल पार्क में देशी एवं विदेशी पर्यटकों का काफी दबाव रहता है। यहां पर्यटकों के प्रवेश सीमित संख्या में दिया जाता है। तीन माह पहले से आॅन लाइन बुकिंग भी होती है, वहीं ओपन तत्त्काल बुकिंंग के लिए गेट में मारामारी रहती है। ऐसे में बहुत से पर्यटकों को नेशनल पार्क में प्रवेश न मिलने के कारण काफी निराशा हाथ लगती है। ऐसे पर्यटकों को बफर जोन में प्रवेश के लिए आॅफर खुला रहेगा।

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बफर जोन के विकास के लिए शासन ने बजट जारी किया  है। पर्यटन के विकास के उद्देश्य से बफर जोन में विकास कार्य प्रारंभ कराए गए हैं। बफर जोन के लिए  कुछ नेशनल पार्क में सफारियों की बुकिंग भी  हो रही है।
एके नागर, फील्ड डायरेक्टर, सतपुड़ा रिजर्व

घर के आंगन से बह रही थी खून की नाली


तकरीबन 20 साल लगातार क्राइम रिपोर्टिंग की है मैंने, अनेक हत्याकांड पर मौके-ए-वारदात पर पहुंचा, लेकिन 12 अक्टूबर 2009 को जो हौलनाक खूनी दृश्य देखा तो सकते में आ गया। सुबह-सुबह मोबाइल फोन पर किसी ने मुझे सूचना दी कि सैनिक सोसायटी में एक साथ 7 हत्याएं हो गई हैं। मामला बड़ा होने के कारण तत्काल मौके पर पहुंचा। सैनिक सोसायटी कॉलोनी में घुसते ही पूरी कॉलोनी में जगह-जगह पुलिस बल तैनात दिखा। घटनास्थल के आसपास लोगों की भीड़ के बजाय पुलिस वालों की भीड़ थी। उनके बीच से होता हुआ, जब उस घर के आंगन के पास पहुंचा तो देखा कि आंगन खून से रंगा हुआ है, घर के भीतर से बहती हुई खून की धार आंगन से होते हुए सड़क पर बह रही थी। यूं तो किसी को उस दौरान पुलिस वाले भीतर नहीं जाने दे रहे थे, किन्तु मुझे जाने की इजाजत दे दी। अन्दर कमरे में तीन लाश पड़ी हुई थीं, जो खून से सनी थीं। इतना वीभत्स दृश्य था, अगले कमरे में झांका तो वहां भी दीवार और फर्श खून से रंगे थे, यूं लग रहा थी पूरे घर में खून की होली खेली गई। तत्कालीन एएसपी से घटनास्थल पर बातचीत हुई तो उन्होंने बताया कि परिवार के मखिया ने ही अपने बूढ़ पड़ोसी, अपनी  मां ा, अपनी पत्नी तथा अपने मासूम बच्चों की हत्या कर दी है। वह इसलिए परेशान था कि पड़ोसी से नाली का विवाद चल रहा था। इसके साथ ही मुझे ध्यान आया कि जिस पड़ोसी से आरोपी का नाली के लिए विवाद चल रहा था, वह पड़ोसी मेरे प्रेस के एक आॅपरेटर का ससुर था। घटना के एक दिन पहले ही गढ़ा थाने में दोनों पक्षों ने एक-दूसरे की शिकायत की थी और एक पड़ोसी पक्ष को पुलिस ने थाने में बैठाकर रखे हुए था, मुझसे इस मामले में हस्तक्षेप कर एक पक्ष को छुड़वाने का प्रयास करने कहा गया, लेकिन न जाने क्यूं मेरी आत्मा इस मामले में हस्तक्षेप न करने कह रही थी, मैंने कोई रुचि नहीं दिखाई और दूसरे दिन खून की होली देखने मिली। इस घटना का मेरे मन में ऐसा असर हुआ है कि शहर में अब भी जब कभी पड़ोसियों के बीच अक्सर होने वाले नाली के विवाद का मामला आता है तो सैनिक सोयायटी की ये घटना जेहन में ताजा हो जाती है। 12 अक्टूबर 2009 को सुबह सुनील का व्यवस्था के प्रति आक्रोश ने अपनी  मां मुन्नी बाई उम्र 60 वर्ष, पत्नी ज्योति उम्र 33 वर्ष, बहन संगीता उम्र 22 वर्ष, पुत्र हिमांशु उर्फ हैप्पी 6 वर्ष, रूद्रांश उर्फ लक्की उम्र 3 वर्ष, भांजा राजुल उम्र 2 वर्ष को कुल्हाड़ी से मौत के घाट उतार दिया। इस लोमहर्षक घटना के बाद आज दिनांक तक नालियों के विवाद पर सिर फूट रहे हैं। करीब दो साल बाद फिर मामला एक बार फिर ताजा हुआ, हत्या के आरोपी सुनील सेन को उम्र कैद की सजा सुनाई गई तथा सात हजार रुपये का जुर्माना भी किया गया।  जबलपुर के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश बीपी शुक्ला की अदालत में प्रकरण की सुनवाई हुई थी, लेकिन दुख इस बात का है कि सुनील सेन जिसका पूरा परिवार खत्म हो गया, वही इस मामले में आरोपी है। विचारणीय है कि उसी रात गढ़ा पुलिस मामूली विवाद में सुनील को न्याय देकर संतुष्ट कर देती तो शायद ये नरसंहार न होता। 

प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों के बुरे हाल : इंजेक्शन लगाने से बालक की मौत 19.10.15


चपरासी बना है खलौड़ी स्वास्थ्य केन्द्र का डॉक्टर
बालक की मौत का मामला गांव में ही दब गया
दीपक परोहा
9424514521
जबलपुर। स्वास्थ्य विभाग भले ही अपने स्वास्थ्य केन्द्रों में चिकित्सीय सुविधाओं के लिए लाख दावे करे, लेकिन आज भी प्रदेश में बड़ी संख्या में ऐसे प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र हैं, जहां डॉक्टर जाने को तैयार नहीं हैं। कहीं चपरासी तो कहीं वार्ड ब्वॉय स्वास्थ्य केन्द्र संभाल रहे हैं और गांव के डॉक्टर बन बैठे है। शासकीय स्वास्थ्य केन्द्रों में ये हाल हैं तो ऐसे में कहां से झोलाछापों पर अंकुश लगेगा। मंडला के मोतीनाला थाना क्षेत्र स्थित खलौड़ी प्राथमिक केन्द्र में इंजेक्शन लगाने के बाद बालक की मौत होेने से ये मामला सामने आया है, किन्तु बालक के मौत की घटना दब गई है, जिससे स्वास्थ्य विभाग भी गंभीर नहीं है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार आदिवासी जिला मंडला में सुदूर मोतीनाला थाना क्षेत्र में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र है। यहां एक नर्स और एक चपरासी के भरोसे ही स्वास्थ्य केन्द्र चल रहा है। वर्षों से चपरासी ही डॉक्टर की कुर्सी पर बैठकर ग्रामीणों का इलाज करता आ रहा है। इस बात से स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों के संज्ञान में है, लेकिन जब कम वेतन वाला चपरासी ही डॉक्टर का काम कर रहा है और डॉक्टर गांव जाने तैयार नहीं हैं तो हर्ज क्या है? ये जिम्मेदारों की सोच है।
ऐसे हुई घटना
बताया गया कि रविवार को ग्राम खलौड़ी निवासी संतराम यादव अपने 3 वर्षीय पुत्र देवराज यादव को लेकर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पहुंचा। बालक को दो दिनों से बुखार आ रहा था। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र की नर्स जो लेडी डॉक्टर का काम संभालती है, वह किसी की डिलीवरी कराने गई हुई थी। भृत्य अशोक रांझ मौजूद था।
उसने दो इंजेक्शनों को मिला कर एक इंजेक्शन तैयार किया तथा बुखार पीड़ित बालक को लगा दिया। इसके बाद बच्च्चे को घर ले जाने के लिए कहा गया। बच्चे की हालत घर पहुंचने के बाद ओर बिगड़ गई और एक घंटे बाद उसकी मौत हो गई। गांव में इसको लेकर हंगामा जरूर मचा, लेकिन पिता को समझा दिया गया कि ज्यादा विरोध करोगे तो यह स्वास्थ्य केन्द्र भी बंद हो जाएगा। गांव वालों को जो दवाइयां मिल जाती हैं वह भी बंद हो जाएगी और इस तरह मामला दब गया।
डॉ. केपी मेश्राम, सीएचएमओ, जिला अस्पताल, मंडला से सीधी बातचीत
* प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र खलौड़ी में डॉक्टर नहीं है, क्या आपको मालूम है, वहां चपरासी अशोक रांझ की मरीजों का इलाज करता है?
** स्वास्थ्य केन्द्र में कोई डॉक्टर नहीं है, लेकिन एक नर्स जरूर है। अशोक रांझ अस्पताल का चपरासी नहीं है वह वार्ड ब्वॉय है।
* फिर लोगों को प्राथमिक उपचार
कौन करता है?
** नर्स और वार्ड ब्वॉय की प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र को चला रहे हैं।
* अशोक रांझ के इंजेक्शन लगाने से एक बालक की मौत हो गई?
** मेरे संज्ञान में मामला आया था मैंने पता किया है।
* क्या पता चला आपको?
** वार्ड ब्वॉय ने बुखार उतारने और एंटीबायटिक्स का इंजेक्शन दिया था। बालक की मौत अस्पताल में नहीं, बल्कि दो घंटे बाद हुई। इस इंजेक्शन लगाने से मौत नहीं होती है।
*  क्या मामले की जांच होगी?
**  किसी को कोई शिकायत नहीं है, जांच नहीं होगी।
थाना प्रभारी मोतीनाला कौशल सूर्या से बातचीत
* खलौड़ी स्वास्थ्य केन्द्र में चपरासी के इंजेक्शन लगाने से बालक की मौत हो गई, क्या मामले की पुलिस जांच कर रही है।
** जी नहीं, मामले की कोई सूचना और रिपोर्ट थाने में नहीं पहुंची।
* क्या इस घटना की जानकारी आप को है?
** जब तक थाने में सूचना नहीं आती है,  तब तक हम कुछ कहने की स्थिति में नहीं हैं। हमारी जानकारी में ऐसा कोई मामला नहीं है। 

अनुशासन अब भी बना जिंदा है विभाग में 20.10.15

जेपी मिश्रा
सीएसपी रांझी

अनुशासन प्रिय एवं कर्मठ पुलिस अधिकारियों के रूप में पुलिस विभाग में पहचाने जाने वाले नगर पुलिस अधीक्षक रांझी जेपी मिश्रा का मानना है कि विभाग में अब भी अनुशासन मौजूद है, किन्तु उनका व्यक्तिगत अनुभव यह भी है कि नए आ रहे पुलिस वालों में पुराने पुलिस वालों की तरह वो बात नहीं है। सन् 1981 बैच के सब-इंस्पेक्टर श्री मिश्रा जबलपुर सहित छिंदवाड़ा, सिवनी, बैतूल, शहडोल, सीधी तथा भोपाल में पदस्थ रह चुके  हैं। वर्तमान में सन 2013 से सीएसपी रांझी हैं।
प्रश्न-पुलिस विभाग में बल की कमी मुख्य समस्या हैं, इससे कैसे निपटा जा रहा है।
उत्तर-पिछले कुछ सालो से भर्तियां तेजी से हुई है। स्टाफ की कमी से निपटने के लिए जनभागीदारी एवं समुदायिक पुलिसिंग का सहारा लिया जा रहा है। इसके  साथ ही फोर्स को अपने कार्य में दक्ष एवं निपुण बनाया जा रहा है, जिससे उनकी क्षमता का शत-प्रतिशत उपयोग किया जाए।
प्रश्न-क्या पहले से अधिक दक्ष पुलिस वाले नौकरी में आ रहे हैं?
जवाब-इसका जवाब मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव एवं राय से देना चाहूंगा। पहले पुलिस का प्रशिक्षण बेहद कठिन था तथा कम संसाधनों में काम करते थे, लेकिन अब वो बात नहीं है।
प्रश्न-विभाग में अनुशासनहीनता की खबरे हमेशा सुर्खियों में रहती है, क्या पुलिस में अनुशासन खत्म हो रहा है?
जवाब-पुलिस एक फोर्स है और फोर्स बिना अनुशासन के संचालित नहीं हो सकती है। विभाग मे अब भी अनुशासन मौजूद है।
प्रश्न-थानेदारों के बीच आपसी तालमेल की बेहद कमी महसूस की जाती है?
जवाब-जहां चार बर्तन होते हैं, वहां टकराहट होती है, लेकिन मेरा अपना अनुभव है कि थानेदारों को अपनी ड्यूटी के चलते तालमेल बनाकर चलना पड़ता है। पुलिस बिना टीम भावना के काम नहीं कर सकती है। टीम भावना मौजूद है, जो जाहिर करती है कि थानेदारों में आपस में तालमेल मौजूद है।

* आदिवासी ने सिर पर बोए जवारे 22.10.15

देश में अमन-चैन और खुशहाली के लिए साधन
* आदिवासी ने सिर पर बोए जवारे
जबलपुर। आदिवासी जिला डिंडौरी में एक आदिवासी किसान ने कठोर शक्ति उपासना देश में अमन-चैन और खुशहाली की कामना से की। उसने देवी प्रतिमा के सामने बैठ कर अपने सिर पर जवारे बोए और पूरे नौ दिन- -रात साधना में लीन रहा। न उसने भोजन किया और न ही नींद ली। ग्राम सुहानी के इस किसान की कठोर व्रत पूर्ण हो गया है। धूमधाम और भक्ति के माहौल में बुधवार दुर्गा नवमीं को जवारा विसर्जन किया गया।
प्राप्त जानकारी के अनुसार सुमाली बरकड़े ने मां दुर्गा की प्रतिमा के सामने साधना करने का निर्णय लिया और सार्वजनिक दुर्गा पंडाल में बैठ गया तथा अपने सिर पर जवारे बोए। बैठकी में जवारे बोने के बाद धीरे धीरे जवारे बढ़ते रहे और साधक उसे सिर सीधा रखकर साधे रहा। इस बीच वह एक पल भी नहीं सोया। देवी प्रतिमा के आगे लगातार भक्ते गाई जाती रही। किसान की इस  साधन से गांव में धर्ममय माहौल बन गया था। माँ दुर्गा की आराधना करने वाले इस किसान का कहना है कि उसके इस कठोर तप से देश में सुख- शांति बनी रहेगी, साथ ही सूखा और अकाल के हालात नही बनेंगे । नवरात्र के अवसर पर किसान के इस कठोर व्रत से गाँव के लोग भी हैरत में आ गए थे। नौ दिन पंडाल में लोगों की भीड़ रही। 

इंसानों से रिश्ते बना रहा तेन्दुआ

डुमना बन गया तेन्दुये का ठिकाना 24.10.05

जबलपुर। डुमना, खमरिया तथा ईडीके इलाके को तेन्दुओं ने अपना ठिकाना बना चुके हैं। बारिश खत्म होने के बाद और ठंड के सीजन की शुरुआत प्रारंभ से इन इलाकों में तेन्दुओं की हलचल बढ़ती है और हर साल बस्तियों में घुसते हैं, लेकिन इसके बावजूद तेन्दुआ अब इंसान से रिश्ते कायम कर रहा है। उनकी बस्तियों के करीब रहना सीख रहा है। इंसान तो दूर उनके मवेशियों पर भी हमला करने से बचता है।
वन प्राणी विशेषज्ञों की मानें तो जंगल सिमट गए हैं और इंसानी बस्तियां जंगल तक पहुंची गई हैं। इंसान बस्तियां और जंगल पड़ोसी हो गए। जानवरों के इलाके में इंसानी दखल के बावजूद इंसान जंगल से लौट आते हैं कि यदि कोई जानवर इंसानी बस्ती में घुस आए तो इसके लिए रेस्क्यू टीम लगानी पड़ती है। वहीं इन हालातों के बीच भी तेन्दुओं इंसानों का पड़ोसी बनता जा रहा है। अमूमन देश अधिकांश बड़े महानगरों में तेन्दुए की इंसानी मुहल्लों में घुसपैठ की खबर बनी रहती है। जबलपुर में डुमना, ईडीके, सीता पहाड़, खमरिया इस्टेट, डुमना से लगा ओएफके परिसर तेन्दुओं का ठिकाना बन चुका है। दशकों से यहां तेन्दुए की हलचल रही है, किन्तु अब तक इंसान पर हमले की कोई गंभीर घटना नहीं हुई है। अलबत्ता बीते वर्ष फैक्टरी कर्मियों के टाइप टू में एक महिला पर तेन्दुए ने अचानक हमला बोल दिया था। इसकी वजह सिर्फ इतनी थी तेन्दुये को भ्रम हो गया था कि वह उसका शिकार है। इसी तरह इस वर्ष गोहलपुर क्षेत्र से लगे मंगेली गांव में भटक कर आ गए एक तेन्दुये ने एक किसान पर हमला इसलिए कर दिया कि उसने तेन्दुये पर पहले लाठी से वार कर दिया था।
प्राणी विशेषज्ञों की मानें तो तेन्दुआ तेजी से इंसानों के करीब रहना सीख रहा है। तेन्दुआ को छिपकर शिकार करने का जबरदस्त हुनर आता है ऐसे
में वह इंसान को आसानी से अपना शिकार बना सकता है, लेकिन बाघों की तुलना में तेन्दुये कम ही इंसान पर हमला करते हैं।
प्राणी विशेषज्ञ जबलपुर स्थित डुमना नेचर पार्क में ठंड के सीजन में मादा तेन्दुये की दस्तक हर वर्ष शुरू हो जाती है। वर्षों से मादा तेन्दुआ डुमना के जंगल से होते हुए ओएफके की दीवार फांद कर सुरक्षित परिसर में आ जाती है। इस दौरान संभवत: मादा तेन्दुआ अपने शावकों को जन्म देती है। इसके अतिरिक्त यह भी महसूस किया गया है कि ठंड के सीजन की शुरुआत से ही डुमना, खमरिया तथा परियट डैम के आसपास तेन्दुये की हलचल बढ़ जाती है। वर्षों से इस क्षेत्र में निश्चित सीजन पर तेन्दुए आते रहे हैं, तेन्दुए ने इस क्षेत्र को अपना ठिकाना बना लिया है। गत वर्ष  सिविल लाइन क्षेत्र पचपेढ़ी में साइंस कॉलेज परिसर में तेन्दुआ देखा गया था। तेन्दुये ने सिविल लाइन में एक मवेशी को मारा भी था। इसके अतिरिक्त सीता पहाड़ी क्षेत्र में सांभर का शिकार भी गत वर्ष तेन्दुये ने किया था।
अभी से दस्तक शुरू
डुमना स्थित ट्रिपल आईटीडीएम परिसर में दिन में ही तेन्दुआ के घुस आने से हड़कम्प मच गया था। वहां से तेन्दुआ समीप स्थित जंगल में चला गया। वन अमले ने मौके पर पहुंच कर जांच-पड़ताल की तो तेन्दुये का पग मार्क मिले। इसके बाद उसकी आसपास में हलचल देखी गई। वन विभाग ने डुमना के आसपास अपनी गश्त बढ़ा दी है, लेकिन टीम तेन्दुये को पकड़ कर उसे घने जंगल में छोड़ने कोई आॅपरेशन चलाने के मूड में नहीं, चूंकि इस तेन्दुए ने अभी तक इंसानी मवेशी पर भी हमला नहीं किया है। वन्य प्राणी विशेषज्ञों की मानें तो तेन्दुआ आवारा कुत्तों का शिकार करने के चक्कर में कई बार बस्तियों में घुस आता है।
...वर्जन...
तेन्दुआ अब जंगल से लगे शहरी इलाके एवं बस्तियों से अच्छी तरह अवगत हो चुका है। वन प्राणियों के नैसर्गिक इलाकों में हम घुस चुके हैं। अत: तेन्दुये की समस्या कभी-कभी सामने आ जाती है। इसके लिए वन विभाग की मॉनीटरिंग चलती रहती है। हमारे पर रेस्क्यू टीम भी मौजूद है। हमारे सामने प्राण्ी को बचाने की चुनौती रहती है, साथ ही यह भी प्रयास रहता है वन्य प्राणी इंसान को कोई नुकसान न पहुंचा पाए।
विसेंट , कन्जवेटर, जबलपुर 

मरीजों के लिए स्वयं उदाहरण है डॉ. गौरव कोचर 29.10.15

बेजान पैरों में ऊर्जा का किया संचार
* विकलांग होना मंजूर था बहरापन नहीं
* स्टेराइड के घातक साइड इफेक्ट पर जीत
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  दीपक परोहा

स्वयं को फिजियो थैरेपी के माध्यम से फिजियो थैरेपिस्ट डॉ. गौरव कोचर ने अपने को चलने-फिरने लायक बनाया। स्टेराइड मेडिसन के साइड इफेक्ट से उनके कूल्हे खराब हो गए। कूल्हे बदले जाने के बाद भी विकलांगता बनी रही, ऐसे में फिजियो थैरेपी से उन्होंने अपने कूल्हों में जान डाली। इसके अतिरिक्त उनके द्वारा अनेक लकवा पीड़ित लोगों को अपने पैरों पर खड़ा किया गया है।
जबलपुर। डॉ. गौरव कोचर का कहना है कि मै जब अपने क्लीनिक से निकला तो मुझे आॅटो की आवाज और सड़क में होने वाला शोरगुल नहीं सुनाई दे रहा था। दुनिया बड़ी अजीब लगी। अचानक सुनाई देना बंद होने से मैं घबरा गया। तत्काल नाक, कान, गला रोग चिकित्सक डॉ. नितिन अड़गांवकर के पास पहुंचे। उन्होंने परीक्षण बाद जो बीमारी के संबंध में बताया तो मेरा सोचने की क्षमता सुन्न पड़ने लगी थी। उन्होंने बताया कि अज्ञात वायरल अटैक से स्थिति निर्मित हुई है। श्रवण संबंधी तंत्रिका तंत्र को वायरस नष्ट कर रहे हैं। अभी बहरापन है आगे कुछ भी हो सकता है। इलाज के लिए स्टेराइड के इंजेक्शन देने होंगे। मैं स्टेराइड के साइड इफेक्ट के बारे में सुन रखा था। इससे विकलांगता तक आ सकती है, लेकिन मुझे शारीरिक विकलांगता मंजूर थी, लेकिन बहरापन नहीं।
जबलपुर के प्रमुख फिजियो थैरिपिस्ट डॉ. गौरव कोचर का यह कहना है। उनके साथ ये वाक्या कुछ साल पहले घटित हुआ। कान में सुनाई न पड़ने के कारण इलाज चला, दिल्ली के एम्स हॉस्पिटल में भी डॉ. कोचर ने इलाज करवाया, वहां भी चिकित्सक ने इस अज्ञात वायरस के संबंध में कोई विशेष जानकारी नहीं दे पाए। बहरहाल स्टेराइडयुक्त दवाइयों से बहरापन दूर हुआ। डॉ. कोचर का इस संबंध में स्टेराइड को लेकर कहना है कि भले ही इसके साइड इफेंक्ट जानलेवा एवं जहर की तरह है, लेकिन यह दवाई जादू की तरह है, ये अमृत है और मानव जीवन को बचाने में बेहद कारगर है।
उन्होंने बताया कि सड़क दुर्घटनाओं में खासतौर पर जब ब्रेन इंज्यूरी होती है अथवा मांस पेशियां बुरी तरह डैमेज होती है और उससे विकलांग
होने का खतरा रहा है, तब स्टेराइड या स्टेराइडयुक्त दवाइयां ही जीवन बचाती हैं। इस दवाई का साइड डिफेक्ट भी हर किसी को नहीं होता है, किन्तु डॉ. कोचर दुर्भाग्यशाली रहे इस मामले में। दवाई के प्रभाव से उनके कूल्हे की हड्डी खराब हो गई।
डॉक्टर कोचर को वायरल इफेक्ट के ऐवेसकुलर नेकरोसिस नामक बीमारी हुई, जिससे उनको बहरापन आ गया, लेकिन यह स्थायी नहीं हो पाया, किन्तु कूल्हे खराब होने से विकलांगता आ गई। इसके इलाज के लिए डॉ. जितेन्द्र जामदार के हॉस्पिटल में कूल्हा रिप्लेस्मेंट किया गया, किन्तु इस कूल्हा रिप्लेस्टमेंट के बाद फिर अपने पैरों खड़े होने और चलने के लिए जरूरी था कि फिजियो थैरपी की। डॉ. गौरव कोचर जो स्वयं फिजियो थैरेपिस्ट हैं उन्होंने अपने स्टूडेंट के साथ मिलकर स्वयं फिजियो थैरेपी की एक्ससाइज प्रारंभ की। कुछ महीने में ही वे चलने-फिरने लगे और अपने मरीजों के लिए प्रेरणा है, बीमारी से लड़ने के लिए फिजियो थैरेपी के साथ ही उनमें आत्मविश्वास जगाने के लिए उनका स्वयं का उदाहरण है।

सन् 1998 से कार्यरत
फिजियो थैरेपिस्ट डॉ. गौरव कोचर सन् 1998 से जबलपुर में विभिन्न रूप से शारीरिक विकलांगता से जूझ रहे मरीजों का इलाज कर रहे हैं। उनकी मांस पेशियों एवं हड्डियों में ऊर्जा का संचार कर रहे हैं। उन्हें अपने पैरों पर खड़ा कर रहे हैं। नगर के कई अस्पताल में वे कंसल्टेंट हैं। उनका स्वयं का फिजियो थैरेपी सेन्टर भी है। अब तक उन्होंने 25-30 फिजियो थैरेपिस्ट को प्रशिक्षण भी दे चुके हैं।
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8 साल की उम्र से आ रही शुभी
धनवंतरी नगर निवासी शुभी शुक्ला के दोनों पैरों में जान डालने में डॉ. गौरव कोचर कामयाब हुए हैं। शुभी शुक्ला जब 7-8 वर्ष की थी तो अचानक उसके दोनों पैर लकवाग्रस्त हो गए। बिस्तर एवं व्हीलचेयर से लग गई। उसकी रीड की हड्डी में ट्यूमर था, जिसके कारण विकलांगता आ गई।
आॅपरेशन कर ट्यूमर तो निकाल दिया गया, लेकिन बेजान हो चुके पैरों में जान नहीं आई। गौरव कोचर ने एक्सरसाइज कराना शुरू किया। करीब एक साल के प्रयास के बाद पैर हिलना शुरू हुए। इसके बाद धीरे-धीरे कर पैरों में जान आने लगी। फिजियो थैरेपी का कमाल यह है कि 10 साल में शुभी शुक्ला एक स्टिक के सहारे से चलने लगी है। धैर्य के साथ चल रहे एक्सरसाइज और मरीज में होने वाले सुधार को देखते हुए पूरी उम्मीद
है कि साल डेढ़ साल में स्टिक भी छूट जाएगी ।

2013 से चल रहा इलाज
शहडोल निवासी अंजना मिश्रा छत से गिर गई थी। उसकी रीड की हड्डी कई टुकड़े हो गई। रीड की हड्डी का इलाज हुआ, लेकिन डॉक्टरों ने कह दिया कि पूरी जिंदगी बिस्तर में ही गुजारनी पड़ेगी। अंजना मिश्रा बैठ भी नहीं पाती थीं। कमर के नीचे का पूरा पूरा शरीर सुन्न था, किन्तु इसको धैर्य के साथ फिजियो थैरेपी दी गई। अब अंजना मिश्रा बैठने लगी हैं। उसके एक पैर में जान आ चुकी है, किन्तु दूसरा पैर वह स्वयं से हिलाने लगी है। अंजना मिश्रा का कहना है कि वे लगातार उनके फिजियो थैरेपिस्ट डॉ. कोचर की सलाह पर अभ्यास कर रहीं है। उन्हें उम्मीद है कि दूसरा पैर भी काम करने लगेगा। 

अब जेल में ही बंदियों की पेशी होगी आॅनलाइन 30.11.15


केन्द्रीय जेल भी जुड़ेंगे सभी कोर्ट से
जबलपुर। प्रदेश के  जेल जल्द ही प्रदेश की कोर्ट से जुड़ने जा रहे हैं। इसके लिए जेलों में वीडियो कॉन्फ्रेसिंग की व्यवस्था की गई है, किन्तु अभी समस्त जेल को सभी कोर्ट से जोड़ने की प्रक्रिया के तहत सॉफ्टवेयर तैयार करने का काम चल रहा है। आने वाले कुछ महीनों में समस्त जेल और कोर्ट आपस में जुड़ जाएंगे, जिससे बंदियों की पेशी आॅन लाइन कोर्ट में हो जाएगी।
जेल विभाग इस योजना पर करीब एक साल से कार्य कर रहा है। जबलपुर सहित प्रदेश के कुछ केन्द्रीय जेल स्थानीय अदालतों से जुड़ चुके हैं तथा बंदियों की आॅनलाइन पेशी भी प्रारंभ कर दी गई है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस केन्द्रीय जेल तथा जबलपुर जिला अदालत के बीच वीडियो कॉन्फे्रसिंग शुरू हो चुकी है। इसी तरह केन्द्रीय जेल भोपाल सहित स्थानीय कोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेसिंग से बंदिया को पेशी हो रही है। प्रदेश के अन्य कुछ जेल जिला अदालतों से जुड चुके है किन्तु केन्द्रीय जेल को प्रदेश की सभी कोर्ट से जोड़े जाने के कार्य में लगातार विलम्ब हो रहा है। इसकी वजह सॉफ्टवेयर तैयार कर लोड किए जाना मुख्य कारण बनाया जा रहा है। वहीं जेल सूत्रों का कहना है कि अगले कुछ महीनों में सॉफ्टवेयर लोड हो जाएगा। इसका लाभ यह होगा कि यदि भोपाल या अन्य कोर्ट को प्रदेश कि किसी अन्य जेल में बंद बंदी को पेशी पर बुलाना है तो उसे बुलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी और आॅनलाइन बंदी की पेशी हो जाएगी। उल्लेखनीय है कि जेल तथा कोर्ट के मध्य पेशी के लिए बंदी को लोने ले जाने तथा कोर्ट लॉकअप में रखे जाने के दौरान सैकड़ों अप्रिय घटनाएं हुर्इं, जिसके चलते आॅन लाइन पेशी का निर्णय शासन ने लिया।
केन्द्रीय जेल जबलपुर में प्रतिदिन 25-30 बंदियों की आॅन लाइन पेशी हो रही है। दरअसल निचली कोर्ट में पेशी के दौरान अमूमन भौतिक रूप से

बंदी की उपस्थिति जरूरी नहीं होती है, इस स्थिति में आॅन लाइन ही पेशी होती है, किन्तु जब कोर्ट में बंदी से सवाल-जवाब उसकी उपस्थिति में होना होता है तो कोर्ट में पेश किए जा रहे हैं।
...वर्जन...
जिला कोर्ट तथा केन्द्रीय जेल के बीच वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के काफी सकारात्मक परिणाम आए हैं। बंदी को पेशी पर ले जाने की बड़ी पुलिस बल की रहती है। इस समस्या से काफी हद तक वीडियो कॉन्फ्रेसिंग से निपटा गया है, किन्तु शहर से बाहर बंदियों के पेशी में अब भी ले जाना पड़ता है। जेल विभाग जल्द ही आॅन लाइन प्रदेश के समस्त कोर्ट करने जा रहा है, किन्तु इसमें अभी कुछ विलम्ब लग सकता है।
अखिलेश तोमर, जेल अधीक्षक 

जबलपुर पुलिसिंग के लिए एक इतिहास रचा है वैद्य ने


सेवानिवृति से पुलिस जबलपुर पुलिस में बड़ी रिक्तता
सीएसपी अनिल वैद्य 30 नवम्बर को 60 वर्ष की आयु पूर्ण होने पर सेवानिवृत हो गए। अपनी सेवानिवृति के आखिरी दिन तक पूरी ऊर्जा, उत्साह और उमंग के साथ काम किया। जबलपुर की पुलिसिंग में इतिहास रचने का जो काम श्री वैद्य ने किया है, उसे जबलपुर के पुलिस लम्बे अरसे तक याद रखेगी।
यूं तो पुलिस विभाग में हर माह सेवानिवृति होती है, पुराने अफसर जाते हैं और नए अफसरों के आने का सिलसिला चलता रहा है, किन्तु कम ही अफसर होते हैं कि जिनकी सेवानिवृति पर रिक्तता नजर आती है। श्री वैद्य ऐसे ही पुलिस अफसरों में शुमार थे।
अनुशासन प्रियता, कर्मठता, मिलनसारिता, अपने से बड़ों का सम्मान एवं सहज व्यक्तिव के कारण लोकप्रियता के आयाम बनाए। इसी वर्ष दीवाली और मुहर्रम पर्व साथ में पड़ा। बरघाट में मुहर्रम पूर्व हुए बवाल के कारण पूरा गृह विभाग तक चिंतित रहा। त्यौहार पूर्व डीजीपी ने शहर का दौरा किया, लेकिन शहर की नब्ज जानने वाले श्री वैद्य के जबलपुर में पदस्थ रहने के कारण डीजीपी भी निश्चिंत होकर गए।
कानून व्यवस्था एवं शांति के लिए  जो मैनेजमेंट की रणनीति पुलिस प्रशासन ने तैयार की, उसके मास्टर प्लानर और कोई नहीं सीएसपी अनिल वैद्य ही थे। आईजी, कलेक्टर एवं एसपी की अगुवाई में सद्भावना कायम करने जो सम्पर्क का दौर चला, उसकी परिणति रही शहर में भाईचारे और सद्भावना की मिसाल बनी। शहर और समाज के लिए हाल में ही गई ये बानगी रही है।
अब तक सेवानिवृत हुए पुलिस अधिकारियों में पहली बार किसी पुलिस अफसर ने दानवीरता दिखाई वह भी एक मील का पहला पत्थर

है। श्री वैद्य ने अपने वृद्धावस्था के मिलने वाले सभी तरह के फंडों का 50 प्रतिशत राशि पुलिस आरक्षकों के बच्चों के कल्याण के लिए दे रहे हैं।
श्री वैद्य की जबलपुर में सब-इंस्पेक्टर रहे, लेकिन वर्ष 1992 से 2000 तक जबलपुर के विभिन्न थानों में रहते हुए जबलपुर में अमन-शांति का माहौल कायम किया, गुंडे-बदमाशों को लगभग खत्म कर दिया। अधारताल, गोहलपुर, कोतवाली, लार्डगंज, गोरखपुर में पदस्थ रहते हुए शहर में बढ़ी हुई वाहन चोरी तथा कट्टा एवं बम बनाने के अपराधियों के कुटीर उद्योगों को खत्म कर डाला। स्मैक और गांजे के मोहल्ले-मोहल्ले फैले कारोबार का अंत किया। इसके लिए जहां विभिन्न थानों की पुलिस के साथ संयुक्त अभियान एवं संयुक्त कार्रवाई करने की परिपाटी डाली और जबलपुर पुलिस में टीम भावना से काम करने का एक नजरिया पेश किया है।
उल्लेखनीय है कि यह सभी बातें 1 दिसंबर को कोतवाली थाना परिसर में हुए, उनके विदाई समारोह में उन्हें जानने वाले पुलिस पुलिस अधिकारियों ने भी खुलकर मंच से कही।
प्रमुख यादगार मामले
* सट्टा किंग चिंरौजी का जुलूस निकाल कर गली-गली फैला अवैध कारोबार आ अंत।
* गोरखपुर में कल्चुरि कालीन करोड़ों रुपए मूल्य की कल्चुरि कालीन प्रतिमाएं पकड़ना।
* मध्य प्रदेश में सर्वाधिक दोपहिया चोरी के बाहन बरामद करने का रिकॉर्ड
* प्रदेश में सर्वाधिक आर्म्स एक्ट के प्रकरण दर्ज करने वाले अधिकारी
* सर्वाधिक विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की कार्रवाई करना
* प्रदेश में होने वाले आधा दर्जन से अधिक गंभीर अपराधों में गठित अपराधों की पतासाजी एवं विवेचना में शामिल किया जाना।

पलायन के चक्कर में तेजी से फैल रहा एचआईवी


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 आदिवासी जिलों में पीड़ितों की संख्या हुई चार गुना
* जिम्मेदार भी हैरान
दीपक परोहा
 9424514521
जबलपुर। मंडला और डिंडोरी जिले से बड़ी संख्या में श्रमिकों की गैंग पड़ोसी जिले जबलपुर ही नहीं मध्य प्रदेश के अन्य जिलों एवं प्रदेश के बाहर भी जाती है। अल्प वर्षा से प्रभावित आदिवासी क्षेत्र से श्रमिकों का तेजी से पलायन हो रहा है। ऐसे में बड़ी संख्या में एचआईवी पॉजिटिव श्रमिक भी बड़ी संख्या में बाहर गए हैं। अनेक आदिवासी जो एचआईवी संक्रमित है यदि वे किसी से संबंध बनाते हैं, जो एचआईवी के फैलाव का होना तय है। इसके साथ ही एचआईवी के प्रति आदिवासियों मे जागरुकता की कमी बड़ा रोड़ा है।
आदिवासी जिलों में पांच सालों में एड्स के कुल मरीजों की संख्या चार गुना हो चुकी है। इससे जिम्मेदार भी हैरान में है। मलेरिया टेस्ट के साथ ही एचआईवी टेस्ट के लिए ब्लड के नमूने लिए जा रहे है। आदिवासी महिला एवं पुरुष श्रमिक तेजी से एचआईवी ग्रसित हुए हैं। उनके बढ़े हुए आंकड़े से स्वास्थ्य अमला भी चौक गया है। आदिवासियों में एचआईवी का आना जाहिर करता है कि वे काम के सिलसिले में अपने गांव एवं घर से महीनों बाहर रहते हैं। इसमें बड़ी संख्या में विवाहित-अविवाहित पुरुष एवं महिलाएं शामिल रहती हैं। यूं तो जिले में मिलने वाले आंकड़ों में यह स्पष्ट नहीं है कि एचआईवी पीड़ित आदिवासी हैं अथवा गैर आदिवासी, किन्तु जाहिर है आदिवासी बाहुल्य जिले में एचआईवी के प्रकरण चार गुना से अधिक बढ़ना जाहिर करते हैं कि आदिवासियों में एड्स तेजी से फैल रहा है। एक तथ्य यह भी सामने आया है कि महिलाओं की तुलना में पुरुषों में एसआईवी तेजी से बढ़ा है। इससे बहुत बड़ा कारण पुरुषों का काम के  सिलसिले में महीनों घरों से बाहर रहना तथा महिलाएं ज्यादा संख्या में अपने घर गांव में रुक जाती है, किन्तु आदिवासी महिलाएं भी पुरुषों के साथ काम के सिलसिले में बाहर जाती है। मंडला जिले में बीते 4 सालों में एचआईवी के 107 नए मरीज मिल चुके है। इसी तरह डिंडोरी जिले में 5 चार साल में एचआईवी के 50 से अधिक नए मरीज मिल चुके हैं, वहीं चार साल में एचआईवी पीड़ित मरीजों की संख्या दोनों जिले में चार गुना बढ़ चुकी है। 

Saturday, 17 October 2015

टीबी का अधूरा इलाज बेहद खतरनाक


डॉ. आरके बाधवा
नाक-कान-गला विशेषज्ञ
फोन-0761-2411993
जबलपुर के ख्यातिलब्ध नाक-कान-गला रोग विशेषज्ञ डॉ. आरके बाधवा की स्वयं के हॉस्पिटल में प्रतिदिन  मरीजों की भारी भीड़ लगी रहती है। उन्होंने असाध्य मामले में इलाज किया है, लेकिन उनका कहना है कि आज भी देश मे टीबी एक खतरनाक बीमारी है, जिसका पूर्ण इलाज बेहद आवश्यक है। अधूरा इलाज बेहद खतरनाक होता है जिससे मरीज को ड्रग रजिस्टेंट ट्यूबरक्लोसिस हो जाता है।
उन्होंने टीबी के संबंध में बताया कि देश में हर वर्ष टीबी के लाखों नए मरीज शिकार हो रहे हैं। करीब 26 लाख लोगों की हर वर्ष इस बीमारी से मौत होती है। टीबी भारत में 30 प्रतिशत जनसंख्या में फैला हुआ है। ये बीमारी शहर एवं देहात सभी जगह पाई जा रहा है। इस रोग में मृत्युदर में गिरावट आई है, लेकिन इसके बावजूद चिंताजनक स्थिति अब भी बनी है।
बीमारी के कारण के संबंध में आपने

Ñबताया कि माइक्रो बैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस के संक्रमण से बीमारी होती है। यदि टीबी का रोगी जिसने इसका इलाज नहीं कराया है अथवा अधूरा इलाज कराया है, वह रोगी बीमारी फैलाव का मुख्य कारण बनता है, लेकिन वर्तमान में अच्छी और असरकारक दवाइयां आने लगी हैं। दवाई के दो दिन सेवन करने के बाद बैक्टीरिया के फैलाव की ताकत 60 प्रतिशत कम हो जाती है। टीबी के मरीज को पौष्टिक आहार, हलका व्यायाम तथा योग करना चाहिए। टीबी के संक्रमण से बचाव के लिए नवजात शिशु को बीसीजी तथा साथ में डीपीटी का टीका लगवाना चाहिए। डॉ. बाधवा का कहना है कि टीबी के इलाज के चलते अधूरा इलाज कराने से ड्रग रजिस्टेंट ट्यूबरक्लोसिस हो जाता है। ऐसे में मरीज को कई बार दवाइयां असर नहीं करती हैं और लाइलाज बीमार में तब्दील हो जाता है। अमूमन गले में गिल्टी टीबी की बीमारी का सूचक होता है। 

एक यूनिट खून से बचेगी 3 की जान




 जबलपुर। एक यूनिट रक्त से डेंगू के तीन मरीज की जान बचाई जा सकती है। प्रदेश में मच्छर जनित रोग डेंगू के रोकथाम के लिए प्रचार प्रसार मुहिम में शासन ने रक्तदान को भी जोड़ा है। प्रदेश में वर्ष 2014-15  इस वर्ष जोरदार तरीके से डेंगू फैला है और मध्यप्रदेश में डेंगू से होने वाली मौतें तो अन्य राज्यों से कहीं अधिक है।
 प्रदेश में जहां डेंगू को प्रकोप बढ़ता जा रहा है, इसके साथ ही उतनी ही भ्रांतियां भी लोगों में बढ़ती जा रही है। डेंगू के टेस्ट के बिना ही निजी चिकित्सक भी हजारों रुपए की कीमती इंटीबायोटिक दवाइयां देकर न केवल मुनाफाखोरी कर रहे हैं बल्कि मरीज के जान से भी खिलवाड़ कर रहे हैं। एन्टीबायोटिक के उपयोग से शरीर की रोग प्रतिरोधन क्षमता स्वत: कम होने लगती है।  मलेरिया अधिकारी अजय कुरील ने बताया कि डेंगू के प्रकरण को लेकर डब्ल्यूएचओ के निर्देश हैं कि सिर्फ पैरासिटामॉल ही दी जाए। पेरासिटामॉल दरअसल एनाल्जेसिक (दर्द निरोधक) एवं बुखार रोधी दवाई है। डब्ल्यूएचओ ने खासतौर पर बच्चों को 101 डिग्री एफ.  तक बुखार आने पर इसी के उपयोग की अनुशंसा की है। दरअसल डेंगू वायरल जनित बीमारी है तथा इसके वैक्सीन एवं दवाई नहीं होती है। शरीर के रोग प्रतिरोधन क्षमता के माध्यम से ही इस पर नियंत्रण होता है। आमतौर पर तीन दिनों के बाद डेंगू नियंत्रण में आ जाता है और सात दिनों में डेंगू का मरीज स्वत: स्वस्थ हो जाता है।
 * प्लेटलेट्स घटना खतरनाक
अजय कुरीन के मुताबिक डेंगू तीन श्रेणी का डेन-1, डेन-2 और डेन-3 आमतौर पर होता है। डेन-3 टाइप के डेंगू में शरीर में तेजी से प्लेटलेट्स की कमी होती है और ऐसी स्थिति में रोगी के आंख, नाक, कान से रक्तस्त्राव होता है। प्लेटलेट्स की संख्या 15 हजार से कम होने की स्थिति में मरीज की जान बचाने के लिए रक्त चढ़ना जरूरी हो जाता है।  एक यूनिट रक्त भी महत्वपूर्ण  एक डोनर से एक यूनिट में 350 ग्राम रक्त लिया जाता है जिससे चढ़ाने योग्य 425 एमएल रक्त तैयार कर लिया जाता है। लैब में उक्त रक्त से करीब 250 ग्राम पीआरपी (प्लाजमा) तैयार किया जाता है। यही पीआरपी डेंगू मरीज के शरीर में प्लेटलेट्स की कमी करता है।
डेन -3 टाइप के घातक डेंगू के मरीज की जान रक्तदान से बच सकती है, 250 ग्राम पीआरपी से  एक ही रक्त समूह के तीन मरीजों को 75-75 एमएल चढ़ाया जा सकता है। इस वजह से डेंगू के रोकथान के प्रचार-प्रसार मुहिम में रक्तदान को बढ़ावा देने की मुहिम भी शासन द्वारा जोड़ी गई है।
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निजी पैथोलॉजी सहित मेडिकल कॉलेज तथा अन्य अस्पतालों में पीआरपी तैयार करने वाली मशीनें मौजूद है। डेंगू के मरीज के लिए रक्तदान करने वाले रक्तदाता के ब्लड से पीआरपी तैयार करने के साथ ही रक्त के शेष बचे हिस्से का भी उपयोग किया जाता है। एक यूनिट रक्त से पीआपी तैयार करने के बाद शेष रक्त को अन्य मरीज के उपयोग में लाया जा सकता है।   डॉ. अमिता जैन  प्रभारी पैथालॉजी विभाग  विक्टोरिया अस्पताल 

स्केलेटोनाइजर का जबदस्त हमला

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सागौन के जंगल पर स्केलेटोनाइजर का हमला : 2015   
 जबलपुर। सागौन के जंगल के मामले में सम्पन्न मध्य प्रदेश के सतपुड़ा क्षेत्र स्थित हरेभरे जंगल में स्केलेटोनाइजर का जबदस्त हमला हुआ है। दरअसल इस वर्ष ठंड विलम्ब से पड़ी और नमी व तापमान अनुकूल होने के कारण जबदस्त तरीके से स्केलेटोनाजर का प्रकोप रहा। इसके कारण बैतूल, होशंगाबाद, पचमढ़ी सहित अन्य कुछ क्षेत्रों के सागौन के  जंगल की हरियाली जबदस्त तरीके से प्रभावित हुइ है। कीटों ने सोगौन की पत्तियां चट करते जा रहे है।  कीट के इस हमले के आगे वन विभाग तथा वन अनुसंधान से जुड़ी संस्थाएं असहाय की स्थिति में है। इन कीटों पर नियंत्रण के लिए रसायन तो मौजूद है लेकिन इस विस्तृत जंगल में इससे दवा का छिंडकाव कर निपटना मुश्किल है। आज तक कोई ऐसा जैविक सिस्टम विकसित नहीं हुआ है जो इस कीट पर अटेक कर उनका सफाया कर दे। 
इसका नियंत्रण मौसम तथा प्रकृति के पर निर्भर करता है। जंगल विशेषज्ञों की माने तो सागौन के वनो में प्रतिवर्ष इस कीट का हमला होता है। कभी इस क्षेत्र तो कभी दूसरे  क्षेत्र में प्रकोप बना रहता है। इस कीट के हमले का प्रतिकूल असर जंगलों पर पड़ता है। संक्रमण वाले पेड की पूरी पत्तियां कीट चट कर जाते है। मात्र जाली नुमा पत्तियां रहती है। संक्रमित पेड़ बारिश के मौसम में भी सूखा नजर आता है। पेड़ कीट के संक्रमण से नष्ट तो नहीं होता है लेकिन पत्तियों से क्लोरोफिल खा लिए जाने से प्रकाश संषलेषण की प्रक्रिया थम जाती है। अगले सीजन में नई पत्तियां उगने पर पेड़ को पुर्नजीवन मिलता है लेकिन इससे पेड़ की बढ़ौतरी पर प्रतिकूल असर पड़ता है इसी तरह इसकी तना भी विकृत होने का खतरा रहता है।  
* रोपणी को बचाया जाता है 
सौगौन की रोपड़ी के दौरान फंगीसाइट एवं पेस्टीसाइड आदि का छिड़काव कर रोपड़ी को बचाया जाता है। वन विभाग का कहना है कि रोपणी संरक्षित और सीमित क्षेत्र में होती है और रोपणी के पौधे भी ज्यादा बड़े नहीं होते है जिससे इसको छिड़काव से बचाया जाता है। रोपणी में यदि कीट लगते है तो पौधे मर तक जाते है। लगभग 30 प्रतिशत तक पौधे इस कीट तथा अन्य बीमारी से प्रभावित रहते है।  अभी कोई उपचार इजाद नहीं  सौगौन में स्केलेटोनाइजर एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। अब तक इसके नियंत्रण की कोई विधि इजाद नहीं हुई है। कीट की लाइफ सर्किल के अधार पर ही प्रतिवर्ष इसका अटैक होता है तथा स्वत: नियंत्रित होता है लेकिन इससे सौगौन की बढ़वारी पर प्रतिकूल असर  पड़ता है। ऐसा कोई दूसरा कीट इजाद नहीं किया जा सका है जो की सागौन की पत्ती पर होने वाले इस कीट को नष्ट करे।  
डॉ. आर के पांडे एसएफआरआई 
वन पर्यावरण विभागाध्यक्ष  
 * क्या है स्केलेटोनाइजर 
 डॉ.यूडे होमकर के अुनसार सौगोन में स्केलेटोनाइजर का प्रकोप होता है जिसमें कीट द्वारा लार्वा अवस्था में पत्तियों के क्लोरोफिलुक्त भाग खाकर पत्तियों को कंकालकृत कर दिया जाता है। इसके बाद लार्वा स्वयं को पत्तियों में लपेटकर प्यूपा में बदल जाता है। प्यूपा से बाद में तितली बनती है। सागौन के वृक्षों के नीचे झाड़ियों/घास को हिलाने पर छोटी-छोटी गेहुंये रंग की तितलियां उड़ती हेै जो कि पत्तियों के नीचे की तरफ  स्वयं को छुपाती है। यह छोटी-छोटी गेहुंऐ रंग की तितलियां वास्तव में स्केलेटोनाइजर कीट  हैं एवं ये झाड़ियों एवं घास के रस पर अपना वयस्क स्तर का जीवन-व्यापन करती है तथा सागौन के पत्तों पर अण्डे देती है इन अण्डों से लार्वा निकलकर सागौन के पत्तों को नुकसान पहुंचाना प्रारंभ करते हैं। 
* खेती करने वाले बरते सावधानियां - 
 1. सागौन के अत्यधिक प्रभावित वृक्षों की पत्तियां गिरना प्रारंभ हो जाती है ऐसे वृक्षों में लगभग एक माह में नयी पत्तियां आना प्रारंभ हो जाती है। गिरी हुई पत्तियों में कीटों के प्यूपा पाये जाते है ऐसी पत्तियों को नष्ट कर देना चाहिये जिससे अगली पीढ़ी का प्रकोप कम हो। 
2. कीट प्रकोप चरम सीमा पर होने पर वयस्क कीटों की संख्या अत्यधिक होती है इन वयस्क कीटों को कीट नाशक रासायन द्वारा अथवा नाइट लाइट ट्रैप के द्वारा वयस्कों को संग्रहित कर नियंत्रित जा सकता है। 
 3. यह देखा गया है कि कीट प्रभावित वन क्षेत्र में कुछ वृक्षों पर कीटों का असर लगभग नगण्य होता है, ऐसे वृक्षों की पहचान कर उन पर अगले वर्ष भी कीट प्रभाव देखा जावे।  यदि हर वर्ष इन पर कीट का प्रभाव कम पड़ता है तो इन वृक्षों में प्राकृतिक तौर पर कीट के प्रभाव से बचने की क्षमता होती है। ऐसे वृक्षों का चयन कर भविष्य में इनसे ही बीज एकत्रित कर कीट प्रतिरोधी पौधे तैयार किये जा सकते है।  
*  दवाओं का छिड़काव किया जाए 
*  डेल्टामेंथ्रिन का 0.003 प्रतिशत या  अल्फामेंथ्रिन 0.003 प्रतिशत/ मेलाथियान का .05 प्रतिशत/  मोनोक्रोटोफास का 0.03 प्रतिशत /  क्लोरोपायरीफास का 0.05 प्रतिशत/  बेसीलस थूरीनजियनसिस जो कि एक बैक्टिरियम है का 1 प्रतिषत घोल पानी में बनाकर छिड़काव करके कीट नियंत्रण किया जा सकता है। संपूर्ण वन क्षेत्र में दवाओं का छिड़काव संभव नही है । 

बफर जोन में भी होंगे टाइगर के दीदार



पर्यटन विकास के लिए किया जाएगा विकसित
जबलपुर। प्रदेश के पांच प्रमुख टाइगर रिजर्व के बफर जोन में पर्यटन के विकास के लिए तैयार प्रस्ताव को केन्द्र शासन से मंजूरी मिल चुकी है तथा मध्य प्रदेश शासन ने बफर जोन के विकास के लिए पर्याप्त राशि भी स्वीकृत कर दी है, जिससे बफर जोन में भी अब सफारी चलेगी तथा पर्यटक टाइगर के दीदार करेंगे, लेकिन यहां रिजर्व टाइगर की तुलना में कम टिकट लगेगी।
जानकारी के अनुसार बफर जोन के जंगलों में पर्यटकों के घूमने तथा जंगली जानवर चीतल सांभर और रिजर्व टाइगर के यहां मौजूद बाघों के दीदार करने के लिए विकास कार्य कराए जाने है। इसके लिए बफर जोन में सफारी चलने के लिए सड़कें तैयार की जा रही है। कई नाले और पुलिया निर्माण का भी काम किया जा रहा है।
शासन ने वाइल्ड लाइफ सर्किट के लिए 95 करोड की राशि स्वीकृत की है।
बांधवगढ़ में पर्यटन शुरू
नेशनल पार्क बांधव गढ़ के बफर जोन में तो पर्यटन के लिए कार्य लगभग शुरू हो गया था। कटनी के खितौली बफर जोन में टाइगरों को हमेश डेरा बना रहता है। यहां बाकायदा टाइगर सफारी के लिए प्रस्ताव भी बनाया गया था, लेकिन इसको मंजूरी नहीं मिली, अलबत्ता इस बफर जोन को पर्यटकों के लिए विकसित किया गया है।
बारिश के सीजन में भी खुलेंगे
नेशनल पार्क बारिश के सीजन में जहां बंद रहते है, वहीं बारिश में पर्यटकों को जंगल का आनंद उठा सके तथा बारिश में यदि अवसर मिले तो टाइगर भी देख सकें, इसके लिए बफर जोन को बारिश में भी खुला रखा जाएगा, लेकिन इसके लिए पुलिया एवं सड़कों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
यह पार्क के होंगे विकसित
वन मंत्री गौरी शंकर शेजवार ने पिछले दिनों घोषणा की है कि मध्य प्रदेश ईको टूरिज्म बोर्ड की योजना के तहत टाइगर रिजर्व में वाइल्ड लाइफ टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए टाइगर रिजर्व पन्ना, टाइगर रिजर्व बांधवगढ़, टाइगर रिजर्व संजय तथा टाइगर रिजर्व पेंच एवं टाइगर रिजर्व सतपुड़ा का शामिल किया गया है।
कैम्पिंग भी होगी
टाइगर रिजर्व में जहां पर्यटकों को सुबह तथा शाम कुछ घंटे ही जंगल में बिताने का अवसर मिलता है, लेकिन बफर जोेन के जंगल में कैम्पिंग तथा ट्रैकिंग के भी प्रबंध किए जा रहे है। कैम्पिंग के लिए मचान, पैगोडा तथा ट्री हाउस निर्माण भी किया जाना है।
पर्यटकों का बढ़ा दबाव
पिछले कई दो वर्षों से यह महसूस किया जा रहा है कि नेशनल पार्क में देशी एवं विदेशी पर्यटकों का काफी दबाव रहता है। यहां पर्यटकों के प्रवेश सीमित संख्या में दिया जाता है। तीन माह पहले से आॅन लाइन बुकिंग भी होती है, वहीं ओपन तत्त्काल बुकिंंग के लिए गेट में मारामारी रहती है। ऐसे में बहुत से पर्यटकों को नेशनल पार्क में प्रवेश न मिलने के कारण काफी निराशा हाथ लगती है। ऐसे पर्यटकों को बफर जोन में प्रवेश के लिए आॅफर खुला रहेगा।

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बफर जोन के विकास के लिए शासन ने बजट जारी किया  है। पर्यटन के विकास के उद्देश्य से बफर जोन में विकास कार्य प्रारंभ कराए गए हैं। बफर जोन के लिए  कुछ नेशनल पार्क में सफारियों की बुकिंग भी  हो रही है।
एके नागर, फील्ड डायरेक्टर, सतपुड़ा रिजर्व 

घर के आंगन से बह रही थी खून की नाली


तकरीबन 20 साल लगातार क्राइम रिपोर्टिंग की है मैंने, अनेक हत्याकांड पर मौके-ए-वारदात पर पहुंचा, लेकिन 12 अक्टूबर 2009 को जो हौलनाक खूनी दृश्य देखा तो सकते में आ गया। सुबह-सुबह मोबाइल फोन पर किसी ने मुझे सूचना दी कि सैनिक सोसायटी में एक साथ 7 हत्याएं हो गई हैं। मामला बड़ा होने के कारण तत्काल मौके पर पहुंचा। सैनिक सोसायटी कॉलोनी में घुसते ही पूरी कॉलोनी में जगह-जगह पुलिस बल तैनात दिखा। घटनास्थल के आसपास लोगों की भीड़ के बजाय पुलिस वालों की भीड़ थी। उनके बीच से होता हुआ, जब उस घर के आंगन के पास पहुंचा तो देखा कि आंगन खून से रंगा हुआ है, घर के भीतर से बहती हुई खून की धार आंगन से होते हुए सड़क पर बह रही थी। यूं तो किसी को उस दौरान पुलिस वाले भीतर नहीं जाने दे रहे थे, किन्तु मुझे जाने की इजाजत दे दी। अन्दर कमरे में तीन लाश पड़ी हुई थीं, जो खून से सनी थीं। इतना वीभत्स दृश्य था, अगले कमरे में झांका तो वहां भी दीवार और फर्श खून से रंगे थे, यूं लग रहा थी पूरे घर में खून की होली खेली गई। तत्कालीन एएसपी सत्येन्द्र शुक्ला से घटनास्थल पर बातचीत हुई तो उन्होंने बताया कि परिवार के मखिया ने ही अपने बूढ़ पड़ोसी, अपनी  मां ा, अपनी पत्नी तथा अपने मासूम बच्चों की हत्या कर दी है। वह इसलिए परेशान था कि पड़ोसी से नाली का विवाद चल रहा था। इसके साथ ही मुझे ध्यान आया कि जिस पड़ोसी से आरोपी का नाली के लिए विवाद चल रहा था, वह पड़ोसी मेरे प्रेस के एक आॅपरेटर का ससुर था। घटना के एक दिन पहले ही गढ़ा थाने में दोनों पक्षों ने एक-दूसरे की शिकायत की थी और एक पड़ोसी पक्ष को पुलिस ने थाने में बैठाकर रखे हुए था, मुझसे इस मामले में हस्तक्षेप कर एक पक्ष को छुड़वाने का प्रयास करने कहा गया, लेकिन न जाने क्यूं मेरी आत्मा इस मामले में हस्तक्षेप न करने कह रही थी, मैंने कोई रुचि नहीं दिखाई और दूसरे दिन खून की होली देखने मिली। इस घटना का मेरे मन में ऐसा असर हुआ है कि शहर में अब भी जब कभी पड़ोसियों के बीच अक्सर होने वाले नाली के विवाद का मामला आता है तो सैनिक सोयायटी की ये घटना जेहन में ताजा हो जाती है। 12 अक्टूबर 2009 को सुबह सुनील का व्यवस्था के प्रति आक्रोश ने अपनी  मां मुन्नी बाई उम्र 60 वर्ष, पत्नी ज्योति उम्र 33 वर्ष, बहन संगीता उम्र 22 वर्ष, पुत्र हिमांशु उर्फ हैप्पी 6 वर्ष, रूद्रांश उर्फ लक्की उम्र 3 वर्ष, भांजा राजुल उम्र 2 वर्ष को कुल्हाड़ी से मौत के घाट उतार दिया। इस लोमहर्षक घटना के बाद आज दिनांक तक नालियों के विवाद पर सिर फूट रहे हैं। करीब दो साल बाद फिर मामला एक बार फिर ताजा हुआ, हत्या के आरोपी सुनील सेन को उम्र कैद की सजा सुनाई गई तथा सात हजार रुपये का जुर्माना भी किया गया।  जबलपुर के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश बीपी शुक्ला की अदालत में प्रकरण की सुनवाई हुई थी, लेकिन दुख इस बात का है कि सुनील सेन जिसका पूरा परिवार खत्म हो गया, वही इस मामले में आरोपी है। विचारणीय है कि उसी रात गढ़ा पुलिस मामूली विवाद में सुनील को न्याय देकर संतुष्ट कर देती तो शायद ये नरसंहार न होता।

Friday, 16 October 2015

नेशनल पार्क खुले, टाइगर के दीदार हुए महंगे


जबलपुर। पर्यटकों के लिए 1 अक्टूबर से पार्क खुल गए, लेकिन पहले दिन अपेक्षाकृत कम पर्यटक पहुंचे, लेकिन अगले दिनों के लिए अच्छी बुकिंग हो रही है। इस वर्ष प्रदेश के नेशनल पार्क एवं टाइगर सफारी में गेट पास का शुल्क 10 प्रतिशत महंगा हुआ है, लेकिन उसका असर कम नजर आ रहा है। बांधवगढ़ नेशनल पार्क में पहले दिन ही 27 सफारी जंगल में गई तथा 147 पर्यटकों ने टाइगर के दीदार किए।
जानकारी के अनुसार नए शुल्क अगले तीन वर्षों के लिए तय किया गया। बांधवगढ़ प्रीमियम गेट से एंट्री लेने पर 240 रुपए, कान्हा में 180 रुपए अधिक, जबकि सभी नेशनल पार्क एवं टाइगर सफारी में सामान्य गेटों का शुल्क 120 रुपए बढ़ गया है।
ये हैं प्रीमियम गेट
कान्हा नेशनल पार्क में खटिया गेट प्रीमियम गेट की श्रेणी में आता है, वहीं बांधवगढ़ मे ताला प्रीमियम गेट में शामिल है। पहले कान्हा में खटिया प्रीमियम गेट है, जबकि किसली और सरही सामान्य गेट है।
आॅन लाइन बुकिंग
करीब तीन माह पहले से ही आॅन लाइन बुकिंग प्रारंभ हो जाती है। जानकारी के अनुसार टाइगर देखने के लिए पर्यटक सर्वाधिक पसंद कान्हा तथा बांधवगढ़ को पसंद करते हैं। इसके बाद लोगों की पसंद पन्ना एवं पेंच होती है। बांधवगढ़ तथा कान्हा में आधी सफारियां गाड़ी चलीं, लेकिन सूत्रों का कहना है कि अगले दिन यानी 2 अक्टूबर की बुकिंग ज्यादा है, जबकि वीक एंड शनिवार तथा संडे को लगभग फुल बुकिंग है।
बांधवगढ़ में 27 वाहन चले
जानकारी के अनुसार बांधवगढ़ में 40 सफारी पर्यटकों के लिए चलनी थीं, लेकिन मात्र 27 वाहन ही जंगल में गई और पर्यटकों को टाइगर के दीदार भी हुए। सुबह 15 सफारी तथा शाम को 12 सफारी चली। लगभग 115 पर्यटकों ने बांधवगढ़ में सैर की।
कोई असर नहीं
बुकिंग एजेंटों की माने तो पार्क की बढ़ी हुई दर का असर पर्यटकों की संख्या पर नहीं पड़ रहा है। आॅन लाइन बुकिंग तेजी से हो रही है। दरअसल, सीजन में स्थिति यह रहती है कि गेट पास दुगनी-तीन गुनी कीमत तक में ब्लैक में बिक जाते है। इस मायने बढ़े हुए शुल्क का असर पढ़ने की कोई संभावना नहीं है।
...वर्जन...
बांधवगढ़ सहित सभी पार्को में शुल्क बढ़ाए गए हैं, लेकिन इसका कोई असर बांधवगढ़ में नजर नहीं आ रहा है। बांधवगढ़ के लिए अच्छी बुकिंग की सूचनाएं मिल रही हैं।
मुरली कृष्ण, फील्ड डायरेक्टर, बांधवगढ़ 

डब्ल्यूएचओ के ड्रग डायरेक्शन की हो रही अनदेखी



   डेंगू के इलाज की आड़ में मची निजी अस्पतालों की लूट
  दर्जनों बार नोटिस दिए गए अस्पतालों को, फिर भी नहीं रुक रही मनमानी
जबलपुर। भरतीपुर की एक बालिका को गंभीर हालत में स्टार हॉस्पिटल में पिछले दिनों भर्ती कराया गया। इस निजी अस्पताल द्वारा डेंगू टेस्ट किट के माध्यम से डेंगू का टेस्ट कराया गया और परिजनों को अस्पताल प्रबंधन ने डेंगू होने की पुष्टि की। इसके बाद अस्पताल प्रबंधन ने बेशकीमती एंटी बायटिक्स, जीवन रक्षक दवाइयां और न जाने कितनी दवाइयां मंगाई और लगाई, किन्तु दो दिन बाद बालिका की मौत हो गई। परिजनों को 60 हजार का बिल थमा दिया गया। इस मामले को लेकर स्वास्थ्य विभाग ने संबंधित अस्पताल से जवाब-तलब भी किया।
प्रदेश में चौतरफा डेंगू का खौफ बना हुआ है शहरी क्षेत्र के साथ ही ग्रामीण एवं कस्बाई क्षेत्रों में डेंगू के मामले आ रहे हैं। जहां स्वास्थ्य विभाग द्वारा समस्त जिला अस्पतालों एवं अन्य शासकीय एवं मेडिकल कॉलेज में डेंगू के इलाज की समुचित व्यवस्था की गई है। इधर, डेंगू के खौफ का फायदा उठाकर निजी अस्पताल पीड़ित मरीज को डेंगू डर दिखाकर अनाप-शनाप दवाइयां देकर बेहिसाब बिल बना रहे हैं।
सूत्रों की मानें तो निजी अस्पतालों को डेंगू में क्या इलाज देना है, क्या दवाइयां देनी हैं, तत्संबंध में वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन की गाइड लाइन से अवगत कराया जा चुका है। स्वास्थ्य विभाग ने दर्जनों पत्र निजी अस्पतालों को भेज चुके हैं, लेकिन जब भी उनसे पूछा जाए तो उनका कहना होता है, इस संबंध में कोई निर्देश नहीं हैं।
मनमानी रिपोर्ट बना रहे
सूत्रों का कहना है कि स्वास्थ्य विभाग की पकड़ निजी अस्पतालों में नहीं रह गई है। अनेक जिले के स्वास्थ्य अधिकारियों ने निर्देश जारी कर रखे है कि निजी स्वास्थ केन्द्र, निजी अस्पताल व नर्सिंग होम्स अपने मरीजों का डेंगू टेस्ट करते हैं और पॉजीटिव रिपोर्ट आती है तो उसकी तत्काल सूचना सरकारी विभाग को दिया जाए तथा उपयोग की गई टेस्ट किट भी जिला स्वास्थ्य केन्द्र में जमा कराई जाए, किन्तु निजी अस्पताल के चिकित्सक जिन्हें डेंगू नहीं भी है, उनकी पॉजीटिव रिपोर्ट मरीज के परिजनों को देने से बाज नहीं आते हैं। स्वास्थ्य विभाग द्वारा टेस्ट किट की मांग करने पर डिस्पोजल किए जाने की बात कही जाती है। जबलपुर के जिला स्वास्थ्य अधिकारी एमएम अग्रवाल ने बताया कि करीब एक दर्जन बार किट के लिए निजी अस्पतालों को नोटिस भेज गए हैं, लेकिन वे पॉजीटिव मरीज की किट जमा नहीं करते हैं।
सिर्फ  पैरासिटामॉल दें
जिला मलेरिया अधिकारी अजय कुरील ने बताया कि डब्ल्यूएचओ के निर्देशानुसार डेंगू के मरीज को किसी तरह की एंटी बायटिक्स दवाइयां अथवा दर्द निवारक दवाइयां यहां तक डिस्प्रिन भी नहीं दी जाए। डब्ल्यूएचओ की गाइड लाइन के मुताबिक पैरासिटामॉल ही मरीज को दी जाए तथा उसको ज्यादा से ज्यादा पानी दिया जाए। इसके लिए बोतल चढ़ाई जा सकती है अन्य दवाइयां मरीज के लिए खतरनाक हो सकती हैं।
बालिका को डेंगू नहीं निकला
जबलपुर में डेंगू से हुई एक मौत के मामले में जब स्वास्थ्य विभाग ने निजी अस्पताल के खिलाफ जांच-पड़ताल शुरू की तो निजी अस्पताल ने यू टर्न लेना पड़ा। कुल मिलाकर मामले में जो तथ्य सामने आए उसके मुताबिक कुछ माह पहले बालिका को मलेरिया हुआ था। इसके बाद उसकी पीलिया हो गया। बाद में फिर उसका स्वास्थ्य बिगड़ा तो निजी अस्पताल ने डेंगू बताकर गहन चिकित्सा शुरू की, लेकिन जब स्वास्थ्य अमले ने बालिका को दी जाने वाली महंगी दवाइयां एवं डेंगू के इलाज की गाइड लाइन को लेकर जवाब मांगा तो निजी अस्पताल ने बालिका को डेंगू होने से साफ इनकार कर दिया।
...वर्जन...
डेंगू के मरीज को एंटी बायटिक्स दवाइयां देने की जरूरत नहीं पड़ती है। पैरासिटॉमाल दिया जाता है। शरीर में पानी की मात्रा नियंत्रित रखा जाता है।
डॉ. दीपक बहरानी
अधीक्षक जबलपुर, हॉस्पिटल
डेंगू होने की आशंका पर लोग शासकीय  अस्पताल में ही टेस्ट कराए तथा यहीं इलाज कराए। नि:शुल्क इलाज की व्यवस्था की गई है।
अजय कुरील, मलेरिया अधिकारी
डेंगू की बीमारी होने पर अस्पताल में मरीज को पैरासिटॉमाल ही दिया जाता है। इसके अतिरिक्त जरूरत पढ़ने पर ब्लड प्लाजमा चढ़ाया जाता है।
डॉ. एके सिन्हा, सिविल सर्जन, विक्टोरिया  

Wednesday, 30 September 2015

सिहोदा की बदली तस्वीर


 जबलपुर। आजादी के प्रणेता राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जानते थे भारत की आत्मा गांवों में वास करती है। उन्होंने भारतीय गांवों की जो स्वदेशी कल्पना की थी, उनकी कल्पना के विपरीत आजादी के बाद गांव विकसित हुए। यूं कहा जाए कि गांव शहर बनने की होड़ पर दौडने लगे और शहरी बुराइयां गावों में घर कर गई। शराब और नशा खोरी, जुआ-सट्टा, आर्थिक अपराध ,धोखाधड़ी और चोरियां सब कुछ गांवों में होने लगे  लेकिन जबलपुर के भेड़ाघाट क्षेत्रांतर्गत सिहोरा ग्राम के लोगों अब बापू के सपने को साकार कर रहे है।
 करीब 3 हजार की आबादी वाले इस गांव के लोगों ने शराब का सेवन बंद कर दिया है। सट्आ और जुआ खेलना बंद कर दिया गया है। गांव को लगभग अपराध मुक्त बनाया गया है लेकिन यह पुलिसिया डंडे के जोर पर नहीं बल्कि  स्वप्रेरणा से हो रहा है। गांव की महिलाओं ने इसकी शुरूआत की।
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आव्हान किया है कि प्रत्येक सांसद एक गांव को गोद  ले और उसे एक आदर्श गांव बनाए। इसी नक्शेकदम में चलते हुए  जबलपुर पुलिस ने भेड़ाघाट के सिहोदा गांव को गोद लिया।इस गांव को शराब एवं मादक पदार्थों की लत से मुक्त बनाने के लिए दर्जनों सभाएं की।लोगों  के  घर घर पुलिस  पहुंची। ग्रामीणों ने भी रूचि ली और एक दूसरे को प्रेरित करते  चले गए। पिछले जनवरी माह से सतत प्रयास चलते रहे और करीब 8 माह में गांव की तस्वीर बदल गई है।
महिलाओं ने ली रूचि
भेड़ाघाट टीआई एमडी नगौतिया बताते हैं कि पर्यटन स्थल भेड़ाघाट के निकट इस गांव में शहरी लोगों की दखल थी। गांव में अवैध शराब की खूब बिक्री होती थी। गांव के गरीब परिवार के पुरूष नशे के आदी हो रहे थे। घर के युवा के भी नशे की गिरफ्त में जा रहे थे। पुरूषों की कमाई का बड़ा हिस्सा नशा खोरी मेंं जा रहा था। ऐसे में गांव की महिलाएं एकत्र होकर पुलिस के पास पहुंची और अपने मर्दो के लिए कुछ करने की अपील की। तत्कालीन पुलिस अधीक्षक, वर्तमान में एसपी ग्वालिर हरिनारायण चारी मिश्र ने विशेष रूचि दिखाई और भेड़ाघाट थाने को गांव गोद लााो के निर्देश दिए।
सुखदुख में भागीदार बनी
पुलिस ने गांव के लोगों के सुखदुख में भागीदार बन बनी, विभिन्न एनजीओ तथा अन्य संस्थाओं की मदद से ग्रामीणों को स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षण दिया गया। उन्हें रोजगारोन्मुखी किया गया।महिलाओं को सिलाई मशीने दी गई और पेटीकोट, ब्लाउज आदि सिलने लगे। पुरूषों को सायकिल दी गई और वे फेरी लगाकर उन्हें बेंचने लगे। इसी तरह चटाई बुनाई, झाडू बनाने आदि के प्रशिक्षण दिए। इससे गांव के लोगों स्थिति में सुधार आया और गांव में आवारगर्दी युवाओं में बंद हुई। अपराध भी घट गए।
स्वच्छता का महत्व जाना
गांव के लोगों के बार बार बीमार पड़ने, कैद दस्त जैसी बीमारी फैलने पर पुलिस के सहयोग से नियमित स्वास्थ्य कैम्प के आयोजन हुए। चिकित्सकों एवं  वालेंटियर्स ने स्वच्छता के महत्व को समझाया। गांव के लोग अब अपने गांव को स्वच्छ रखने लगे है।
पंचायतों में होते है निर्णय
इस ग्राम के लोग छुटपुट झगड़े एवं विवाद पर पुलिस थाने और कोर्ट कचहरी में जाने बजाए अपने विवाद चौपाल में सुलझाने लगे है। झगड़ों में पुलिस की प्रेरणा पर राजीनामा हो रहे है जिससे लगभग अपराध मुक्त हो गया है सिहोदा।

 सिहोदा गांव पुलिस के प्रयास से नशा मुक्त गांव बना है। यह आदर्श गांव बनने जा रहा है। इसके लिए लगातार गांव की मानीटरिंग अब भी चल रही है।
संजय साहू,
एएसपी ग्रामीण जबलपुर

ऐसे बची रागनी की जान


करीब विगत माह रागनी जैन (काल्पनिक नाम)  आत्महत्या करने घर से निकली और इस दौरान उसने अपने पति को मोबाइल पर सूचना थी कि मै मरने जा रही हूं। महिला काफी अवसाद में थी यह बात उसने पति भी जानते थे। इस दौरान वे कटनी में थे। संयोग से उन्हें संजीवनी हैल्प लाइन का ध्यान आया और तत्काल ही उन्होंने मोबाइल किया। हैल्पाइन से सूचना तत्कालीन एसएसपी ईशा पंत को दी गई। उन्होंने मदन महल पुलिस को महिला को तलाश कर उसे बचाने निर्देश दिए। आधे घंटे के भीतर रागनी को खोज निकाला गया और उसकी जान बचा ली गई।
तिलवार से छलांग लगाई
 छात्रा अनिता (काल्पनिक नाम) का अपने बॉय फ्रेड से विवाद हो गया और वह गुस्से में तिलवारा पुल से छलांग लगाने के लिए निकल गई। इस बीच उसने अपने परिचित को मोबाइल कर आत्महत्या करने करने जाने की जानकारी दी। उसने तत्काल पुलिस एवं हैल्प लाइन में सूचना दी। तिलवारा पुल पर पुलिस ने नाविकों को संजीवनी अभियान में जोड़ रखा है और युवती तिलवारा पुल से छलांग लगाने पर तत्काल ही उसे नदी से निकाल लिया गया  और मेडिकल कालेज अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां जान बच गई।
राजू को घर भेजा गया
तिलवारा पुल से कूद कर खुदकुशी करने राजू नामक ग्रामीण युवक पहुंचा था लेकिन वहां उसकी मनोदशा देखकर ड्यूटी में तैनात पुलिस वाले ने रोक कर पूछताछ की तथा उसे समझाइश दी जिससे उसने आत्महत्या का इरादा टाल दिया। इस तरह से करीब डेढ़ दर्जन लोगो की जाने संजीवनी हैल्प लाइन द्वारा बचाई जा चुकी है।
देश में अब्बल था शहर
तत्कालीन पुलिस अधीक्षक हरिनारायण चारी मिश्रा जो वर्तमान में ग्वालियर पुलिस अधीक्षक है का कहना है कि जबलपुर शहर में जनसंख्या के तुलनात्मक आत्महत्या की दर प्रदेश ही नहीं देश में नम्बर वन पर रही है। लगातार 5 साल आत्महत्या में नम्बर वन पर रहा है। संजीवनी अभियान के तहत लोगों में जागरूकता लाने सेमीनार आदि किए गए। सुसाइडल पाइंटों में बोर्ड आदि लगाए गए। वालेंटियर तैनात किए गए जिससे आत्महत्या की घटनाएं रूकी और प्रदेश में तीसरे स्थान पर 2014 को पहुंच गया था, यहां संजीवनी अभियान चलने की जरूरत हैे।जबलपुर में  वर्ष ं2012 में 572 लोगों ने आत्महत्या की।2013  में 577 लोगों ने खुदकुशी की जबकि 2014 में 470  मामले ही हुए है।
वर्जन
संजीवनी हैल्प लाइन को और गति प्रदान की जाएगी। सभी थानों को निर्देश है कि आत्महत्या संबंधी सूचना मिलने पर तत्काल कार्रवाई कर बचाव के प्रयास करें.
जीपी पराशर
एएसपी जबलपुर
आत्महत्याओं के मामले
वर्ष 2012
भोपाल -377
इंदौर -476
जबलपुर -572
ग्वालियर
जबलपुर -572
ग्वालियर - 287
वर्ष 2013
भोपाल - 560
इंदौर - 698
जबलपुर - 577
ग्वालियर - 299
वर्ष 2014

करोड़ों साल पुरानी पहाड़ियों का कत्लेआम



हाईकोर्ट के निदेर्शों की उड़ाई जा रही धज्जियां
जबलपुर। जबलपुर के पर्यावरण एवं प्राकृतिक धरोहर यहां की ग्रेनाइट निर्मित पहाड़ियां है जिसकी श्रंखला तिलवारा के निकट से रांझी तक फैली है। वहीं घमापुर से होकर महाराजपुर तक ग्रेनाइट की पहाड़ियां है। इसके संरक्षण के हाईकोर्ट के निर्देश के बावजूद पहाड़ियों का कत्लेआम हो रहा है।
 ग्रेनाइट रॉक्स एवं पहाड़ियों के संरक्षण के लिए हाईकोर्ट ने अलग-अलग जनहित याचिकाओं में आदेश दे चुके है लेकिन इसके बावजूद  अब भी खजिन विभाग पहाड़ियों को तोड़ने अनुमति दे रहा है। पहाड़ियों का कत्लेआम खनिज के लिए  नहीं वरन प्लाटिंग के लिए हो रहा है। इतना ही नहीं इसके बदले विभाग को कोई रॉयल्टी नहीं मिल रही है।  पहाड़ी को मिटाकर वहां आवासीय भूखंड तैयार किए जाने का खेल चल रहा है।
 हाल ही में एक मामला प्रकाश में है, जिसके तहत रांझी में बजरंग नगर से लगी करीब 5 एकड़ से अधिक निजी भूखंड जिसमें ग्रेनाइट की रॉक्ट प्रचुरता में मौजूद है। यह मदन महल से लेकर रांझी तक फैली पहाड़ी की श्रंखला का हिस्सा है। इस पर पिछले तीन साल से लगातर तोड़ाई का काम चल रहा है।
अचंभा का विषय यह है कि पहाड़ी को तोड़ने के लिए हैदराबाद से बड़े बड़े कटर मंगाए गए है। जेसीबी मशीन एवं हिटाची मशीन में अन्य मशीने फिट कर पहाड़ी और चट्टाने तोड़ी जा रही है। करीब एक साल से  यहां पहाड़ी तोड़े जाने का काम चलता रहा।
शिकायतों के बाद रोक
यहां पहाड़ी अवैध तौर से तोड़े जाने की शिकायत के बाद रोक लगाई गई तो भू स्वामी बिल्डर मेसर्स महाराजपुर को खनिज उत्खनन की अनुमति रॉयल्टी की शर्त पर दी गई। निरीक्षण में छेनी हथौड़ी का उपयोग किया जाना बताया गया। इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में भी याचिका दायर की गई। इसी बीच बिल्डर्स ने फिर खनन अवधि बढ़ाने मांग की तो क्षेत्रीय लोगों के विरोध में उस पर रोक लगा दी गई।

* अब भी तोड़ी जा रही पहाड़ी
इस मामले को लेकर खनिज विभाग में शिकायकर्ता े चंद्रिका प्रसाद सोनकर ने बताया कि खजिन विभाग की रोक के बावजूद सांठगांठ कर पहाड़ी तोड़ा  जाना जारी है। इस पहाड़ी के संरक्षण के लिए प्रशासन को भूमि अधिगृहण कर लेना चाहिए।
बिकने को तैयार है
इसी तरह बाजनामढ रोड पुरवा पर करीब 11 एकड़ की ग्रेनाइट पहाड़ी को भू स्वामी बिल्डरों के हाथों बेचने प्रयास रत है। इस पहाड़ी को तोड़ने एवं समतलीकरण के लिए खनिज विभाग से दो दफे अनुमति मिल गई है लेकिन संयोग से पहाड़ी बची हुई है लेकिन फिर भी धीरे धीरे कर अवैध तरीके से पहाड़ी का करीब डेढ़ दो एकड़ हिस्सा नष्ट किया जा चुका है।

*कई पहाड़ी नेस्तनाबूत
मदन महल क्षेत्र में शिमला हिल्स पहाड़ी जो निजी भूमि रही है, इसको तोड़कर समतल बनाकर लगभग खत्म की जा चुकी है। वहीं एक पहाड़ी को तोड़कर निजी इंजीनियरिंग कालेज तैयार किया गया है।  शारदा मंदिर के निकट दानबाबा पहाड़ी कत्लेआम जारी है। बेदीनगर से लगी पहाड़ी अब भी तोड़ी जा रही है।
*कोई नियम कानून नहीं
दरअसल राजस्व रिकार्ड में हुए अनेक मालगुजारी पहाड़िया निजी हाथों में आ गई और इसके बाद भू माफिया एकएक कर पहाड़ी का कत्ल करता जा रहा है और जबलपुर के पर्यावरण से जबदस्त तरीके से खिलवाड़ किया जा रहा है। जबकि ये पहाड़ियां जबलपुर की स्वास नलिका की तरह है जहां से पूर्वाई एवं पछुआ हवाओं के शहर में बहने की दिशा तय होती है और शहर को स्वच्छ हवाएं मिलती है।

 * बिना अनुमति के पहाड़ी की एक चट्टान भी नहीं तोड़ने दी जाएगी। नियम विरूद्ध बिना अनुमति के पहाड़ियों में तोड़फोड़ करने पर कार्रवाई की जाएगी। फिलहाल किसी भी पहाड़ी को तोड़ने अनुमति नहीं दी गई है।
एसएन रूपला
कलेक्टर जबलपुर

राजवर्धन महेश्वरी

 राजवर्धन महेश्वरी  
जिले के बेहतरीन अधिकारियों में शुमार श्री महेश्वरी लम्बे समय तक जबलपुर लोकायुक्त में पदस्थ रहे तथा यहां जेडीए के बड़े घोटाले का पर्दाफाश किया जिसमें बिल्डर्स, राजनेता तथा कई अधिकारी आरोपी बनाए गए। श्री महेश्वरी का मानना है कि भ्रष्टाचार मुक्त समाज बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका पुलिस और प्रशासन की ही होती होगी  चंूकि उन्हें शासन से अधिकार मिले है। श्री महेश्वरी से पीपुल्स संवाददाता दीपक परोहा की बातचीत के अंश।
प्रश्न- पुलिस कंट्रोल रूम, लोकायुक्त, डीएसपी क्राइम में लम्बे समय तक पदस्थ रहें हैं, ये पुलिस विभाग में लूप लाइन माने जाते हैं, कंट्रोल रूम में पुलिस कर्मी क्यों नहीं जाना चाहता है?
जवाब- पुलिस कंट्रोल रूम की वर्किग और जिला पुलिस की वर्किग में अंतर होता है। पुलिस कंट्रोल रूम दरअसल संवाद एवं सूचाएं एकत्रित होते है और यहां पुलिस का बल पर नियंत्रण रखा जाता है। यहां भले ही बैठकर काम करना पड़ता है लेकिन बेहद जिम्मेदारी वाला काम होता है यहां गलती की कोई संभहोता है यहां गलती की कोई संभावना नहीं होनी चाहिए। मुझे समय पूर्व पदोन्नति कंट्रोल रूम प्रभारी रहते हुए मिली थी। कंट्रोल रूम की भूमिका के कारण ही सन 1997 में सदर में हुए मदान हत्याकांड का पर्दाफाश हुआ। हर पुलिस वाले को कंट्रोल रूम में काम करने का अनुभव होना चाहिए जिससे वह कम्युनिकेशन के महत्व को भली भांति समझ सकता है। बिना कम्युनिकेशन के फोर्स अंधे हाथी की तरह होती है।
प्रश्न- लोकायुक्त और पुलिस की वर्किग में बेहतर कौन सी है?
जबाव- लोकायुक्त भ्रष्टाचार संबंधी प्रकरणों की जांच पड़ताल करता है। इसके लिए सिर्फ एक ही तरह का काम होता है। लोकायुक्त में लम्बी विवेचना चलती है। यहां पदस्थ अधिकारी को भी फील्ड में काम करना पड़ा है लेकिन इसका क्षेत्र पुलिस की वर्किग से अलग होता है। पुलिस को विभिन्न अपराधों की विवेचना के साथ कानून व्यवस्था देखना पड़ता है। दरअसल आम जनता से पुलिस सीधे जुड़ी होती है इसलिए पुलिस की वर्किग ज्यादा रूचिकर लगती है।
प्रश्न- क्राइम ब्रांच में क्या सुधार होना चाहिए?
जवाब- जबलपुर में क्राइम ब्रांच मेंस्टॉफ की कमी हैं, वाहन तथा अन्य संसाधन कम है लेकिन क्राइम ब्रांच की उपयोगिता को महसूस करते हुए शासन बल के साथ संसाधन भी स्वीकृत किए गए है। 

राजवर्धन महेश्वरी

 राजवर्धन महेश्वरी  
जिले के बेहतरीन अधिकारियों में शुमार श्री महेश्वरी लम्बे समय तक जबलपुर लोकायुक्त में पदस्थ रहे तथा यहां जेडीए के बड़े घोटाले का पर्दाफाश किया जिसमें बिल्डर्स, राजनेता तथा कई अधिकारी आरोपी बनाए गए। श्री महेश्वरी का मानना है कि भ्रष्टाचार मुक्त समाज बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका पुलिस और प्रशासन की ही होती होगी  चंूकि उन्हें शासन से अधिकार मिले है। श्री महेश्वरी से पीपुल्स संवाददाता दीपक परोहा की बातचीत के अंश।
प्रश्न- पुलिस कंट्रोल रूम, लोकायुक्त, डीएसपी क्राइम में लम्बे समय तक पदस्थ रहें हैं, ये पुलिस विभाग में लूप लाइन माने जाते हैं, कंट्रोल रूम में पुलिस कर्मी क्यों नहीं जाना चाहता है?
जवाब- पुलिस कंट्रोल रूम की वर्किग और जिला पुलिस की वर्किग में अंतर होता है। पुलिस कंट्रोल रूम दरअसल संवाद एवं सूचाएं एकत्रित होते है और यहां पुलिस का बल पर नियंत्रण रखा जाता है। यहां भले ही बैठकर काम करना पड़ता है लेकिन बेहद जिम्मेदारी वाला काम होता है यहां गलती की कोई संभहोता है यहां गलती की कोई संभावना नहीं होनी चाहिए। मुझे समय पूर्व पदोन्नति कंट्रोल रूम प्रभारी रहते हुए मिली थी। कंट्रोल रूम की भूमिका के कारण ही सन 1997 में सदर में हुए मदान हत्याकांड का पर्दाफाश हुआ। हर पुलिस वाले को कंट्रोल रूम में काम करने का अनुभव होना चाहिए जिससे वह कम्युनिकेशन के महत्व को भली भांति समझ सकता है। बिना कम्युनिकेशन के फोर्स अंधे हाथी की तरह होती है।
प्रश्न- लोकायुक्त और पुलिस की वर्किग में बेहतर कौन सी है?
जबाव- लोकायुक्त भ्रष्टाचार संबंधी प्रकरणों की जांच पड़ताल करता है। इसके लिए सिर्फ एक ही तरह का काम होता है। लोकायुक्त में लम्बी विवेचना चलती है। यहां पदस्थ अधिकारी को भी फील्ड में काम करना पड़ा है लेकिन इसका क्षेत्र पुलिस की वर्किग से अलग होता है। पुलिस को विभिन्न अपराधों की विवेचना के साथ कानून व्यवस्था देखना पड़ता है। दरअसल आम जनता से पुलिस सीधे जुड़ी होती है इसलिए पुलिस की वर्किग ज्यादा रूचिकर लगती है।
प्रश्न- क्राइम ब्रांच में क्या सुधार होना चाहिए?
जवाब- जबलपुर में क्राइम ब्रांच मेंस्टॉफ की कमी हैं, वाहन तथा अन्य संसाधन कम है लेकिन क्राइम ब्रांच की उपयोगिता को महसूस करते हुए शासन बल के साथ संसाधन भी स्वीकृत किए गए है। 

आंकड़े बने गवाह , पुरूष समाज में भ्रांतियां व्याप्त




 जबलपुर। बढ़ते हुए जनसंख्या दबाव के कारण संसाधनों का बोझ बढ़ा है, ऐसे में परिवार नियोजन७ठŽ७ठज़् @ज्ज् कार्यक्रम की महत्व को दुनिया स्वीकार कर रही है लेकिन आश्चर्यजनक पहलू यह भी है कि इस कार्यक्रम को पुरूषवर्ग ने लगभग नकार दिया है। मध्य प्रदेश में जो शासकीय आंकड़े परिवार नियोजन में आए है, वह महिलाओं की बदौलत आए है। जबलपुर में  महिला नसबंदी करा रही है लेकिन महिलाओं की नशबंदी की तुलना में प बदौलत आए है। महिला नसबंदी करा रही है लेकिन महिलाओं की नशबंदी की तुलना में पुरूष नसबंदी का प्रतिशत 10 प्रतिशत भी कम है।
परिवार नियोजन कार्यक्रम के संचालन में पुरूषों में व्याप्त भ्रांतियां तोड़ने में हैल्थ वर्क स एवं आफिसर लग भग फेल हो गए है।  नशबंदी कराने को पुरूष अपने पौरूषत्व पर प्रहार मानता है।जिन पुरूषों ने नशबंदी कराई भी है तो वे भी अपने यार दोस्तों के साथ गर्व से नहीं कह पाते हैं कि उन्होंने नसबंदी कराई है।
एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक इस महिलाएं काफी आगे है। वे अपनी एटीटी आॅपरेशन होने से बताने में हिचक नहीं महसूस करती है और नही उन्हें इसमें संकोच रहता है। इतना ही नहीं विभिन्न शासकीय योजनाओं का लाभ लेने के लिए महिलाएं नसबंदी कराने में आगे है।
जबलपुर में हुए नशबंदी के आंकड़ों को देखा जाए तो यहां यहां पिछले 5 साल में 91 हजार परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत आॅपरेशन हुए है। ये आपरेशन करने वालों में 89 हजार महिलाएं है।
 यही हाल हर जगह
जानकारों की माने तो मध्य प्रदेश ही नहीं देश के हर राज्य में यही हालत है। पुरूष नशबंदी का मध्यप्रदेश में 5 प्रतिशत से भी कम हो रही है। परिवार

नियोजन कार्यक्रम सिर्फ ट्यूबेक्टमी से चल रहा है जबकि बसेक्टमी(पुरूष नसबंदी) न के बराबर हो रहे हैं।
वर्जन
परिवार नियोजन कार्यक्रम में पुरूषों की भागीदारी न के बराबर है। पुरूष य् बराबर है। पुरूष यदि परिवार नियोजन के लिए आॅपरेशन कराता है तो किसी तरह की कोई परेशानी वाली बात नहीं होती है।
डॉ- विनोद कुमार
 कार्यक्रम अधिकारी
जिले में तुलनात्मक स्थिति
वर्ष पुरूष महिला कुल
2011- 5222 -22010 - 22532
2012 719 -23864 24583
2013 241 -13711 13952
2014 241 15048 1590
जारी वर्ष  175 14459 14634

पर्यावरण मंत्रालय की एनओसी मिलेगी एसएफआरआई की रिपोर्ट पर



जबलपुर। प्रदेश एवं देश में यदि कोई बड़ी परियोजना शुरू होना है ,चाहे बांध निर्माण हो , बड़ी सड़क निर्माण, बहु मंजिला इमारत, खदान तथा अन्य कोई प्रोजेक्ट हो जिसमें पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी आवश्यक है तो अब मंत्रालय राज्य वन अनुसंधान केन्द्र (एसएफआरआई) की सर्वे रिपोर्ट के आधार पर देगा। दरअसल अब तक प्रदेश की कोई भी सरकारी संस्था ऐसी नहीं थी जिसको क् वालिटी कंट्रोल आॅफ इंडिया ने अधिकृत किया हो। इसके साथ ही प्रदेश सहित देश में हजारों संस्थाएं एवं व्यक्ति  व वैज्ञानिक थे जो रिपार्ट तैयार करते थे लेकिन नई नीति के तहत क्वालिटी कंट्रोल आॅफ इंडिया द्वारा ही अनुकृत संस्थाओं की रिपोर्ट अब विचारण योग्य समझी जाएगी।
 जानकारी के अनुसार देश में एसएफआरआई की तरह अन्य संस्थाएं भी है जिन्हें क्यूसीआई ने मान्यता दे रखी है। राज्य वन अनुसंधान केन्द्र ने भी क्यूसीआई के समझ मान्यता प्रदान करने आवेदन कर रखा था। क्सूसीआई की टीम ने पिछले दिनों अनुसंधान का दौरा किया। यहां के वैज्ञानिकों से रूबरू हुए। उनके बातचीत की। रिचर्स संबंधी साजो सामान एवं अन्य तमाम तरह की बिन्दुओं की गंभीरता से पड़ताल की।
गुरूवार को मिला मान्यता
राज्य वन अनुसंधान केन्द्र के डायरेक्टर डॉ. जी कृष्ण मूर्ति ने बताया कि क्यू सीआई से गुरूवार को मान्यता संबंधी आदेश प्राप्त हुए है। इस आदेश से संस्था में काफी उत्साह है। क्यूसीआई ने संस्था के चार वैज्ञानिकों को भी मान्यता प्रदान की है। जिसमें डॉ. आर के पांडे, डॉ प्रतिभा भटनागर, डॉ. अंजना राजपूत तथा डॉ अमित पांडे को अधिकृत किया है।
क्या होगा फायदा
मध्य प्रदेश शासन तथा उससे संबंधी विभाग कोई बड़ी योजना और प्रोजेक्ट
प्रारंभ प्रारंभ करते थे तो उन्हें पर्यावरण मंत्रालय के समझ पर्यावरण पर होने वाले प्रभाव एवं उससे बचाव के उपाय संबंधी प्रोजेक्ट रिपोर्ट प्रायवेट कं सल्टेंट से तैयार करवानी पड़ती थी जिसमें करोड़ों का भुगतान करना पड़ता था लेकिन अब स्वयं शासकीय संस्था को मान्यता मिल गई है जिसका फायदा सरकार को होगा। इतना ही नहीं राज्य वन अनुसंधान संस्था को निजी एवं शासकीय क्षेत्र अपनी प्रोजैक्ट रिपोर्ट तैयार करने देश भर में कहीं के लिए अनुबंधित कर सकते है। इससे संस्था के वैज्ञानिक प्रदेश ही नहीं पूरे देश में कहीं भी प्रोजेक्ट तैयार करने का काम कर सकते हैं।
गाइड लाइन तय है
पर्यावरण मंत्रालय परियोजना के संबंध में जो प्रोजेक्ट मांगती है उसके गाइड लाइन तय है। सड़क निर्माण, रेल लाइन निर्माण, ब्रिज निर्माण, बांध निर्माण, खनन कार्य तथा बड़ी आवासीय कालोनी, नदी के किनारे नगर विकास संबंधी तमाम तरह के कार्य के लिए जीवन जन्तु, वनस्पिति, पर्यावरण, मानव, प्रदूषण की स्थित सहित अन्य बिन्दुओं पर पड़ने वाला प्रतिकूल प्रभाव तथा प्रतिकूल प्रभाव से निपटने संबंधी योजना की जानकारी मांगती है। इसके अतिरिक्त प्रोजेक्ट से संतुष्ट न होने पर आवश्यक अन्य बिन्दुओं पर जानकारी मांग सकती है। इस प्रोजेक्ट को तैयार करने में ही काफी समय लगता है लेकिन गाइड लाइन के तहत पर्यावरण संबंधी प्रोजेक्ट रिपोर्ट राज्य वन अनुसंधान संस्था को एक वर्ष के भीतर करना पड़ेगा।
 कैसे करेगा काम
पर्यावरण संबंधी प्रोजेक्ट राज्य वन अनुसंधान संस्था कैसे तैयार करेगा? इस सबंध में बताया गया कि  उपलब्ध वैज्ञानिक एवं संसाधन का इस्तेमाल तो किया जाएगा लेकिन जररूत पड़ने पर क्यूसीआई द्वारा मान्य वैज्ञानिक को हम अनुबंधित कर सकते है। फिलहाल जिस संस्था के लिए हम प्रोजेक्ट पर काम करेंगे उनको वैज्ञानिकों एवं लगने वाले कर्मचारी, वाहन एवं अन्य संसाधन का खर्चे का भुगतान करना पड़ेगा। कुल खर्च का 15 प्रतिशत संस्था के विकास के लिए लिया जाएगा।
वर्जन
राज्य वन अनुसंधान को मान्यता मिलने से यहां उपलब्ध मानस संसाधन का लाभ उठाया जाएगा तथा संस्था को काम की कोई कमी नहीं रहेगी।
डॉ. जी कृष्ण मूर्ति
डायरेक्टर एसएफआरआई
न अनुसंधान केन्द्र 

बंदी के फरार होने से बंदियों की बढ़ी मुसीबत



जबलपुर।  केन्द्रीय जेल के दो बंदियों  के कारण प्रदेश भर के जेले के हजारों बंदियों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उनकी पैरोल पर जाना आसान नहीं रह गया है।  दरअसल पैरोल पर छोड़े गए केन्द्रीय जेल जबलपुर का एक बंदी छूटने के बाद से फरार है। केद्रीय जेल जबलपुर से पैरोल पर छूटे दो बंदी फरार थे जिसमें से एक तो कुछ दिनों बाद लौट आया जबकि दूसरा बंदी आज तक नहंी लौटा है।
  जेल सूत्रों के मुताबिक लम्बी सजा काट रहे बंदियों को साल भर में करीब 48 दिन की छुट्टी मिलती है। वर्ष में एक  बार बंदी अपनी छुट्टी लेकर कुछ दिन अपने घर में बिता सकते है। पहली पैरोल बंदी को जिला दण्डाधिकारी देता है यदि बंदी जबलपुर जेल का है तो उसको पैरोल की अनुमति अन्य जिले के डीएम द्वारा प्रदान की जाती है। जेल पैरोल का प्रकरण बनाकर डीएम के पास भेजता है। डीएम तत्सबंध में बंदी की गोपनीय चारित्रिक जानकारी संबंधि पुलिस स्टेशन से बुलवाता है जिसके अधार पर पैरोल की मंजूरी ही जाती है। यदि बंदी को डीमए पैरोल मंजूर नहीं करता है तो डीजीपी जेल के पास अपील का अधिकार होता है। जबलपुर जेल के दो बंदी के भागने के कारण इन दिनों केन्द्रीय जेल जबलपुर में बंदियों को पैरोल पर जाने कड़ी पड़ताल का सामना करना पड़ रहा है।
बंदियों को मिल रहा पैरोल
पैरोल में घर जाकर फरार होने वाले बंदियों के मामले बेहद कम है जिसके  कारण शासन  फिलन  पैरोल पर भेज रही है। यूं भी उन्हीं बंदियों को पैरोल पर छोड़ा जाता है जिनके भागने की संभावना शून्य होती है। जेल मुख्यालय भोपाल के मुताबिक इस वर्ष पैरोल पर छूटे बंदियों में से दो बंदी ही फरार हुए है।
बंदी फरार होने से सख्ती
प्रशासन भी बंदियों को पैरोल में छोड़ने के मामले में बेहद सख्त जांच पड़ताल करवा रहा है चूंकि जबलपुर केन्द्रीय जेल से  दो बंदी के भागने के बाद पूरा जेल प्रशासन एवं शासन सजग हो गया है। जेल सूत्रों पैरोल पर भेजे जाने के मामले में सख्ती बढ़ी हुई है जिसके चलते अनेक  बंदी पैरोल से वंचति है फिर भी प्रतिवर्ष प्रदेश भर से हजारों बंदी पैरोल पर छोड़े जा रहे है।

जमानत दार पर कार्रवाई
केन्द्रीय जेल जबलपुर के अधीक्षक अखिलेश तोमर ने बताया कि पैरोल पर छूटे दो बंदियों के लौट कर नहीं आने पर पुलिस थाने में एफआई दर्ज कराई गई है।  जबलपुर से फरार  दो बंदियों में एक बंदी लौट आया जबकि हत्या का फरार आरोपी शमीम उर्फ शानू को गत 18 जनवरी को पैरोल पर छोड़ा गया था जो अवधि पूरी होने के बाद नहीं लौटा है। पैरोल पर बंदी छोड़े जाने की प्रक्रिया में जमानदार भी रखा जाता है। यदि बंदी फरार होता है तो जमानतदार पर भी कार्रवाई की जाती है। वर्तमान में केन्द्रीय जेल जबलपुर को एक ही पैरोल से फरार बंदी की तलाश है।
वर्जन
प्रदेश भर में मात्र दो बंदी ही पैरोल पर छूटने के बाद इस वर्ष फरार हुए है जिसमें से एक केन्द्रीय जेल जबलपुर का है।
आरएस विजयवर्गीस
डीआईजी जेल
मध्यप्रदेश
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लकड़ी की बनाई बीएमडब्ल्यू बाइक



बुद्धसेन को कलाकृतियां तैयार करने का हैजुनून
नरेन्द्र मोदी को करेंगे भेंट
 जबलपुर। रीवा के बैकुण्ठपुर निवासी 50 वर्षीय बुद्धसेन विश्वकर्मा को लकड़ी की कलाकृति बनाने का जुनून हैं। इन कलाकृति का क्या होगा, कौन खरीदेगा, इसकी लागत कितनी आएगी? वे यह भी नहीं सोचते, मन में  विचार आया और बनाने जुट जाते है। इस कलाकार में सिर्फ कला का जुनून हैं। उसका अपना काम लकड़ी के फर्नीचर बनाना है किन्तु अदना सी दुकान भी नसीब नहीं है।  फेरी लगाकर फर्नीचर का काम कर अपने पूरे परिवार की परवरिस कर रहा है। उसके  बच्च्चे स्कू ल -कालेज में पढ़ रहे है। अपने काम से समय निकाल कर कला की सेवा करते हैं।
कलाकार बÞुद्धसेन ने हफ्तेभर पहले लकड़ी की बनी बीएमडब्ल्यू मोटर बाइक तैयार की है। ये इतनी खूबसूरत और जीवंत लगती है कि ऐसा लगता है पेट्रोल डालो और इसमें बैठकर हवा में बाते करों किन्तु सावधान ये बाइक सड़कों पर दौड़ने के लिए नहीं बनाई गई है। यह तो शो मॉडल है और कलाकृति का बेजोड़ नमूना है। यह बीएमडब्ल्यू या अन्य किसी  बड़े शो रूम को बेंचने अथवा वहां की  शोभा बढ़ाने के लिए नहीं बनाई गई है। बुद्धसेन की ख्वाइश है कि वह इस बाइक को प्रभानमंत्री नरेन्द्र मोदी को  गिफ्ट करें। वे कभी भी अपनी बाइक लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भेंट करने दिल्ली कूच कर सकते है।
सब कुछ लकड़ी का
मोटर सायकिल का हैंडल, पेट्रोल टैंक, इंजन, टायर , मडगार्ड ,चके , सायलेंस सहित तमाम पार्ट सिर्फ लकड़ी से बनाए गए है जिससे बाइक को तैयार करने में करीब ढाई महीने का समय और कठिन परिश्रम लगा है, और अब यह तैयार हो चुकी है। आसपास से लोग इस बाइक को देखने बुद्धसेन के घर पहुंच रहे है और जो देखता है वह सराहना किए बिना नहीं रहता है।
नरेन्द्र मोदी को भेंट करूगा
ये बाइक मैने नरेन्द्र मोदी को गिफ्त करूंगा। मुझे किसी से मिलने के लिए मध्यस्थ की जरूरत नहीं पड़ती है मै सीधे उन तक पहुंच जाता हूं। चार साल पहले बिग  अभिताभ बच्चन को लकड़ी के गणेश जी भेंट किए थे। इसी तरह की लकड़ी कल कलाकृति मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान, पूर्व मुख्य मंत्री दिग्वजय सिंंह, कलेक्टर , एसपी और कई लोगों को भेंट कर चुका हूं। मेरे लकड़ी के मंदिर लोग बेहद पसंद करते है। रीवा सहित प्रदेश के कई शहरों में उनके बनाए मंदिर लोगों के घरों में है।
बुद्धसेन विश्वकर्मा
कलाकार 

शहर बारूद के ढेर में ...


  शहर बारूद के ढेर में ...
्र्र पेटलावद की घटना के बाद भी प्रशासन में नहीं दिखी चुस्ती
 जबलपुर। जिले में बारूद एवं पटाखे के लायसेंस को लेकर चलने वाली भर्राशाही के बीच प्रशासन ने पटाखा एवं बारूद के कारोबार करने वालों को छूट दे रखी है। शहर के व्यस्तम इलाकों में पटाखों के अब भी भंडारण किए गए है जबकि पेटलावद की घटना के बाद प्रशासन  ने कछियाना की कुछ दुकानों में दबिश देकर रस्म अदायगी की जबकि दर्जनों पटाखा व्यापारी ने व्यस्तम व्यवसायिक  एवं रहवासी इलाको में आतिशबाजी के  सामान का जखीरा लगा रखे है। पत्थरों की तुड़ाई एवं खदान में काम के लिए बारूद एकत्र कर खा गया है।

मालूम हो कि पिछले दिनों मुख्य मंत्री ने वीडियो कांफ्रेसिंग में तमाम बारूद के कारोबार करने वाले की सूची के साथ उनके यहां व्यवस्था संबंधी जांच पड़ताल करने सख्त निर्देश दिए थे। अनेक कलेक्टरों के पास इनकी व्यवस्थित सूची भी नहीं थी जिसके कारण उनकी खिंचाई भी की गई। जिला प्रशासन ने आूूॅनफानन लायसेंस शाखा से लायसेंस धारकों की सूची तैयार की है लेकिन उनके भंडारण की जांच पड़ताल करने अब तक कोई टीम नहीं निकली।
यहां है भारी बारूद
सूत्रों की माने तो गलगला में  ही करीब आधा दर्जन दुकानदारों ने अपने बाजार में ही गोदाम बना रखे है। दीवाली के समय तो यहां टनों से बारूद वाले पटाखे एकत्र होती है। यूं आतिशबाजी को लेकर वर्ष भी यहां भारी मात्रा में विस्फोटक रहता है। इसी तरह कछियाना , घोडा नक्कास, मिलौनीगंज, हनुमानताल ,  गढ़ा फाटक में भी करीब दो दर्जन दुकानों में पटाखे का भंडारण किया जाता है। कोतवाली में एक पटाखा गोदाम में आगजनी की घटना भी हो चुकी है लेकिन इसके बावजूद यहां भंडार अब भी हो रहा है।
माइनिंग कारोबारी हुए सतर्क
पेटलावद में हुई घटना के  बाद जबलपुर तथा पड़ोसी जिले कटनी के मानइनिंग का कारोबार करने वालों ने अपने बारूद के गोदाम व्यवसायिक एवं रहवासी क्षेत्र से  रातों रात हटा लिए है जबकि पटाखा का कारोबार करने वाले बेखौफ है चूंकि वे शस्त्र शाखा में हर महीना भेंट चढ़ाते है जिससे वे बेखौफ हैं।
वर्जन
बारूद संबंधी कारोबार करने वालों की सूची तैयार की गई है। एसडीएम तथा पुलिस अधिकारियों को वहां जांच पड़ताल करने के निर्देश दिए गए है। ब्लास्ट का कारोबार करने वालों के स्टॉक कर्मचारी आदि की जांच कराई जा रही है।
एस धनराजू
प्रभारी कलेक्टर
ये है कारोबारियों की संख्या
कारोबार   -   लायसेंस संख्या
स्टोनक्रेशर ब्लास्ट -  11
मार्बल माइंस - 5
आतिशबाजी निर्माता - 27
12 महीना पटाखा - 88
फुटकर पटाखा   1287 

प्रदेश के परेशान उपभोक्ताओं को राहत



* लोक सेवा गारंटी के दायरे में बिजली मीटर भी

जबलपुर। प्रदेश में बिजली के घरेलू उपभोक्ता अनाप शनाप बिल से परेशान हैं। उनकी मुख् य शिकायत होती है कि उनका मीटर खराब है और ज्यादा रीड़िग दे रहा है। विद्युत वितरण कंपनियों में शिकायत के बाद बमुश्किल टेस्टिंग के लिए बिजली कर्मचारी आते है और अधिकांश मामलों में ओके रिपोर्ट देकर इतिश्री कर लेते है लेकिन अब बिजली मीटर भी लोक सेवा गारंटी के दायरे में आता है। बिजली उपभोक्ता का शिकायत और यदि वह मीटर की टेस्टिंग एवं मरम्मत चाहता है तो बिजली कंपनी सेवा देने के लिए बाध्य है।
सूत्रों के अनुसार लोक सेवा गारंटी के तहत शहरी क्षेत्रों में मीटर की मरम्मत व टेस्टिंग 22 दिन के भीतर करनी पड़ेगी। वहंी ग्रामीण क्षेत्रों में दूर राज स्थित मीटर लगे होने के कारण वहां 37 दिनों में उनको सर्विस हर हालत में देनी होगी। अब उपभोक्तााओं को बिजली कार्यालय अथवा उपभोक्ता केन्द्र में जाने के बजाए सीधे लोक सेवा केन्द्र में अपनी शिकायत दर्ज करनी पड़ेगी। बिजली विभाग 22 दिनों में समस्या का निराकरण कर के देगा। सूत्रों की माने  तो प्रदेश भर में उपभोक्ता केन्द्रों में मीटर को लेकर ढाई से तीन लाख मीटर खराब होने की शिकायतें हैं।
नागरिक उपभोक्ता मार्ग दर्शक मंच के पीजी नाजपांडे ने बताया कि  शासन ने लोक सेवा गारंटी अधिनियम के दायरे में बिजली मीटर सेवा की गारंटी को भी शामिल कर लिया है। इससे जहां बिजली मीटर सप्लाई कंपनी को भी अब विशेष पापड़ बेलना पड़ेगा। कंपनी पर बिजली वितरण कंपनी का विशेष दबाव पड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि इसके पूर्व उच्च दाब एवं निम्न दाब बिजली कनेक्टशन भी लोकसेवा गारंटी  अधिनियम के दायरे में आ चुके   है। इस व्यवस्था के तहत अब बिजली उपभोक्तााओं को बिजली विभाग के बाबुओं एवं अधिकारियों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेगे। बिजली दफ्तरों में लोक सेवा केन्द्र के काउंटर में जाकर अपनी कम्पलेंट देनी होगी। लोकसेवा गारंटी के तहत यदि उपभोक्ता की समस्या का निराकारण निर्धारित समय सीमा पर नहीं होता है तो कंपनी के कार्यपालन यंत्री पर जुर्माना का प्रावधान है।
वर्जन
 लोक सेवा गांरंटी के दायरे में बिजली मीटर भी आए है। शहरी क्षेत्र के लिए  कंपनी को 22 दिन तथा ग्रामीण क्षेत्र के लिए 37 दिन की अवधि मिली है जिसमें उपभोक्ता की समस्या का निराकरण किया जाएगा।
आरके स्थापक
एसई सिटी जबलपुर वृत 

विलम्ब पक्षकार के साथ अन्याय: मणिन्द्र सिंह



 किसी प्रकरण के निराकरण के लिए  पक्षकार आता है और उसके निर्णय में विलम्ब करना पक्षकार के साथ अन्याय की तरह है। यह कहना है  गोहलपुर संभाग जबलपुर के कार्यपालन दण्डाधिकारी  एवं तहसीलदार मणिन्द्र सिंह का। श्री सिंह सन 1994 के राजस्व  अधिकारी है।  जबलपुर में पदस्थाना के पूर्व गोहशंगाबाद,कटनी तथा मंडला जिले में पदस्थ रह चुके है। उनका कार्य शैली की विशेषता है कि वे त्वरित और समय पर निर्णय लेते हैं। मणिन्द्र सिंह से पीपुल्स संवाददाता दीपक परोहा की बातचीत के अंश-
प्रश्न- बड़े जिले और छोटे जिलों में काम में क्या अंतर महसूस करतें है,आप?

जवाब-  मेरी पदस्थापना छोटे जिले में भी रही है ओर जबलपुर जैसे छोटे जिले में भी हुई है। बड़ी जगह पर मामले ज्यादा होते है तथा वर्क लोड ज्यादा रहता है। लॉ एण्ड आर्डर की समस्या भी ज्यादा उत्पन्न होती है जिससे फील्ड में जाना पड़ता है।
प्रश्न- शहर में काम की अधिकता रहती है जिससे मामले में लंबित रहते होंगे, ऐसे में  क्या करते हैं?
जवाब - मेरा प्रयास रहा है, उसी दिन का मामला उसी दिन निपटाया जाए  किन्तु कोर्ट के मामले की सुनवाई कोर्ट में ही करनी पड़ती है जिसके कारण  नामांतरण आदि के अनेक मामले लंबित हो गए है। इसके निपटाने के लिए प्रति शनिवार सुबह से लेकर शाम 5 बजे तक कोर्ट लगाई जा रही है जिसमें तमाम लंबित मामलों को निराकरण किया जा रहा है।
प्रश्न - क्या नया करना चाहते हैं ?
जवाब- जिला प्रशासन द्वारा नवाचार के तहत कई काम कर रही है , जिसमें मै अपना पूर्ण सहयोग कर रहा हूं।
 प्रश्न - एक अच्छे अधिकारी के क्या गुण होने चाहिए, और आप स्वयं को उस कसौटी में कसा महसूस करते हैं अथवा नहंी?
जवाब- एक अच्छे अधिकारी को पक्षकार की बात अच्छे से सुनने और समझने की जरूरत है। इसी तहर कोई पीड़ित यदि आता है तो उसको पूरे ध्यान से सुनने पर उसकी आधी समस्या का समाधान हो जाता है। अधिकारी को समस्या सुनने के बाद पूरी सूझबूझ से मामले में जल्द निर्णय लेते हुए उसका निराकरण करना चाहिए। अनुशासन एवं इमानदारी प्रशासनिक अधिकारी में होना चाहिए। इन गुणों को अपनी कार्यप्रणाली में उतारने मेरी हमेशा कोशिश रहती है।

दो दिन की बुखार में दम फूल गया था महिला का




स्वाइन फ्लू का समय पर इलाज कराया जाए तो यह जानलेवा बीमारी नहीं है। इससे बचाव के लिए  उपाय करना बेहद आवश्यक है। हॉल ही में मेरे पास स्वाइन फ्लू से पीड़ित तीन मरीज इलाज के लिए  जबलपुर हास्पिटल पहुंचे थे , तीनों की जिंदगी बच गई है। यहां पिछले सप्ताह ही  सदर निवासी 35 वर्षीय महिला नर्गिस (काल्पिनिक नाम )  को इलाज के लिए  लाया गया था जिसका दो दिन बुखार के कारण दम फूलने लगा था तथा सांस नहीं ले पा रही थी, उसे तत्काल अस्पताल में दाखिल किया गया तथा महिला पांच दिन वेंटिलेटर पर रही और स्वास्थ्य होने के बाद घर चली गई।

दीपक परोहा
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जबलपुर हॉस्टिल नेपियर टाउन के वरिष्ठ चिकित्सक दीपक बेहरानी एमडी, कार्डियोलाजिस्ट ने स्वाइन फ्लू के इलाज के संबंध में अपने अनुभव शेयर करते हुए बताया कि पिछले सप्ताह जबलपुर हास्पिटल में स्वाइन फ्लू के तीन मामले आए और बेहद खुशी की बात है कि तीनों मरीज स्वस्थ्य होकर चले गए है। दरअसल स्वाइन फ्लू को लेकर लोगों में जबदस्त भ्रांति भी व्याप्त है कि बीमारी से मौत होना निश्चित है। किन्तु पिछले तीन सालों से जबलपुर हास्पिटल में स्वाइन फ्लू के मरीज आ रहे है जिसमें 5 में चार मरीजों की जान बचाई जा रही है। स्वाइन फ्लू वास्तव में बेहद खतरनाक बीमारी हो चुकी है। इसके वायरस एच1 एन1 बेहद शक्तिशाली हो चुके है। स्वाइन फ्लू पीड़ित मरीज के सम्पर्क में जैसे ही लोग आते है , उनको भी इंफैक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है।
मेरे पास हाल ही में सदर से 35 वर्षीय महिला को  लाया गया। उसको सांस लेने में भारी परेशानी हो रही थी। सांस नहीं ले पाने के कारण शरीर नीला पड़ रहा था। परिवार वालों ने बताया कि दो दिन से उसे तेज बुखार है और उल्टी भी हो रही है। इस लक्षण से मुझे यही संदेह हुआ कि महिला को कहीं स्वाइन फ्लू तो नहीं है? उसको आइसोलेशन कक्ष में भर्ती किया गया तथा वेंटीलेटर में रखकर कृत्रिम सांस दी जाने लगी। उसके एक्सरे कराया गया तो फेफड़ों में सूजन एवं इंफैक्शन नजर आया। फेफड़ों में पानी भी भरा हुआ था। तत्काल टेस्ट कराया गया तो स्वाइन फ्लू की पॉजेटिव रिपोर्ट आई । महिला को टेमीफ्लू तथा अन्य दवाइयों को डोज प्रारंभ किया गया। तीन दिन तक महिला की हालत बेहद गंभीर रही। करीब 5 दिन तक वेंटीलेटर में रही । इसके बाद उसे आक्सीजन पर रखा गया । करीब 7 दिन के इलाज  के बाद वह स्वस्थ्य होकर घर चली गई। इसी तरह जबलपुर हास्पिटल में दो अन्य  मरीज स्वस्थ्य होकर गए।
डॉक्टर टॉक
कोई जवान मरता है तो बेहद दुख होता है
स्वाइन फ्लू के मरीज प्रतिवर्ष बढ़ रहे है। इस वर्ष अभी तक तीन मामले आ चुके है जबकि पिछले वर्ष 5 मामले तथा उसके पूर्व वर्ष में 4 मामले जबलपुर हास्पिटल में आए थे। औसतन पांच में एक व्यक्ति की मौत हो रही है। किन्तु जब स्वाइन फ्लू से किसी बच्चे अथवा  जवान की मौत होती है , बेहद दुख होता है।
स्वाइन फ्लू  के लक्षण
 * स्वाइन फ्लू के लक्षण हैं सर्दी, जुकाम तथा बुखार आना।
* सूखी खांसी , शरीर में थकान तथा सांस फूलना।
बवाव के उपाय
* सर्दी जुकाम एवं खासी के मरीज  से दूरी बनाए रखे।
* सार्वजकिन स्थल पर मॉस्क का इस्तेमाल करें।
* स्वाइन फ्लू के मरीज के पास मॉस्क लगाकर ही मिले।
*  घर आने पर  हाथों को साबुन से अच्छे  से धोएं ।  

*डब्ल्यू आईआई ने एसएफआरआई को दी प्रदेश की जिम्मेदारी

अब हर साल होगी बाघों की गणना

बाघों प निगरानी रखने नई कवायद
जबलपुर। बाघ स्टेट का दर्जा खो चुके मध्य प्रदेश इस बार भी अपना खोया हुआ खिताब हासिल नहीं कर पाया। बाघों की गणना होन पर इस वर्ष तीसरे नम्बर पर रहा है। मध्य प्रदेश स्थित नेशनल पार्क एवं टाइगर सेंचुरी में बाघों के शिकार और उसकी मौत को लेकर नेशनल बाघ प्राधिकरण द्वारा कड़ी आपत्तियों के चलते बाघों पर सतत निगरानी रखने के कबायद तेज की गई है। इसके  चलते नेशनल पार्क प्रतिवर्ष आने बाघों की गिनती कराएगा तथा ये गणना एसएफआरआई के डायरेक्शन में की जाएगी।
उल्लेखनीय है कि आरएफआरआई का मुख्यालय जबलपुर में स्थित है। भारतीय वन्य प्राणी अनुसंधान संस्थान देहरादून (डब्ल्यू आईआई ) ने प्राणी गणना के लिए राज् य वन अनुसंधान संस्थान जबलपुर(एसएफआरआई ) को नोडल सेंटर बनाते हुए  अधिकृत किया है।  वर्तमान में वन्य प्राणी अनुसंधान संस्थान  प्रति 4 वर्ष में बाघों की गणना करता रहा है। बाघों की गणना को लेकर  तकनीकि और प्रशिक्षित व्यक्ति वन प्राणी अनुसंधान संस्थान के पास ही थे। पिछले बार हुई बाघ की गणना को लेकर अनेक आरोप भी लगाए गए थे। यहां तक की एमीनेशन के जरिऐ फर्जी तौर से बाघ की गणना बढ़ाए जाने के आरोप लगाए गए थे। इसी तरह कुछ नेशनल पार्क ने भी इस गणना पर आपत्तियां व्यक्त की थी।
इसके चलते नेशनल बाघ प्राधिकरण ने प्रत्येक राज्यों को अपने क्षेत्र स्थित नेशनल पार्क तथा जंगल में मौजूद बाघों की गणना स्वयं करने के निर्देश दिए है। इसके चलते अब प्रतिवर्ष मध्य प्रदेश में बाघों की गणना होगी। प्रदेश में बाघों की गणना के लिए एसएफआरआई को अधिकृत किया गया है।
प्रशिक्षण दिया गया
पिछले दिनों एसएफआरआई के सात अधिकारियों को बाघों की गणना कराने संबंधी तकनीकि प्रशिक्षण डब्ल्यू आईआई ने दिया। इसके तहत ट्रेप कैमरा लगाना लगाने का प्रशिक्षण दिया। बाघ,तेन्दुए की गणना के साथ ही अन्य शाकाहारी वन्य प्राणियों की गणना संबंधी प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण के कार्य के लिए और भी कर्मचारी लगने की संभवना है जिसके लिए राज्य वन अनुसंधान केन्द्र नई भर्ती तथा संविदा भर्ती भी करेगा। इसके अतिरिक्त वन्य प्राणियों की गणना नेशनल पार्क के अधिकारियों को भी दी गई है।
मध्य प्रदेश की जवाबदारी
मध्य प्रदेश स्थित 9 नेशनल पार्क, 6 टाइगर रिजर्व, 25 सेंचुरी तथा वन मंडल के अधीन जंगल आते है। इनमें प्रतिवर्ष वन्य प्राणियों की निगरानी एवं गिनती राज्य वन अनुसंधान संस्थान कराएगा। इस कार्य में नेशनल पार्क एवं वन मंडल के अधिकारियों को भी लगाया जाएगा। उनके द्वारा तैयार रिपोर्ट का सत्यापन का कार्य राज्य वन अनुसंधान केन्द्र जबलपुर का होगा।
अगले सत्र से शुरू होगा काम
इस सत्र में तो गणना हो चुकी है लेकिन अगले सत्र में वन्य प्राणियों की गणना का नोडल केन्द्र राज्य वन अनुसंधान केन्द्र ही होगा। फिलहाल दो साल संस्था डब्ल्यू आईआई की निगरानी में  काम करेगी।
एसएन नचना
 एडी. डायरेक्टर
राज्य वन अनुसंधान केन्द्र मप्र. जबलपुर
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Friday, 25 September 2015

Dc.paean sthapak

रोते हुए युवती ने जब डॉ स्थापक को बताया तो वे भी आश्चर्य मे 10 साल बाद मेरी आंख लौट आई ... आंसू भरी आंखों से डॉ पवन स्थापक को पूरी श्रद्धा से देखते हुए अकोला से आई 17 वर्षीय वैशाली ने कहा सर मेरी आंखे दस वर्ष बाद लौट आई है। मुझे दस साल बाद पता चला कि रौशनी क्या होती है, दुनिया कितनी रंगीन है, ये चमत्कार आपन तीन इंजेक्शन लगाकर कर डाला। डॉ स्थापक की इस मरीज की बात सुनकर आश्चर्य चकित थे कि ये कैसा चमत्कार हो गया है। उन्होंने तो इस लाइलाज बीमारी पर सिर्फ एक्पेरिमेंट किया था। युवती की आंखों की नशे दस साल पहले ही टाइटफाइट इन्फैलोफैथी के कारण सूख चुकी थी और की रौशनी आने की कोई उम्मीद नहीं थी। Ñजबलपुर के ख्यातिलब्ध नेत्र रोग चिकित्सक डॉ.पवन स्थापन जिन्होंने सड़क दुर्घटनाओं के मामले में लगभग फूट चुकी सैकड़ों आंखों की सर्जरी कर उसकी मरम्मत कर लोगों की आंख की रौशनी लौटाई। हजारों आंखों के क्षतिग्रस्त रेटीना और आई लैंस की आधुनिक मशीनों से मरम्मत की। आंख की जटिल एवं कठिन बीमारियों का निदान किया। करीब 60 से अधिक नेत्र प्रत्यारोपण किए है। लोगों की खोई हुई आंख की रौशनी लौटाई है। एक लाख से अधिक आई आपरेशन कर चुक है जिसमें 40 हजार आपरेशन नि:शुल्क भी शामिल है, लेकिन इस सबके बावजूद उनके जीवन का ये विलक्षण मामला था। डॉ पवन स्थापक सन 1992 से लगातार नेत्र चिकित्सा कर रहे। इस प्रकरण के बाद उनकी स्वयं की धारणा बदल गई और अब उनका कहना है कि चिकित्सा जगह में असंभव कुछ भी नहीं है। मृत आदमी भी जिंदा हो जाता है। इसी तरह अनेक मामले ऐसे होते है जिसमें नेत्र रोग विशेषज्ञ मरीज को स्पष्ट कह देते है कि आपकी आंख की रौशनी चली गई है अब वह नहीं लौटेगी, चूंकि ये बाते हमे चिकित्सा के कोर्स में पढ़ाई गई है लेकिन मेरी व्यक्तिगत राय है कि कोशिश अंत तक नहीं छोड़नी चाहिए । इस केस के बाद अनेक ऐसे मामले आए जिसमें लोग तमाम जगह से निराश हो गए थे लेकिन मैने प्रकरण हाथ में लिया। किसी में सफलता मिली और बहुत में असफल भी हुआ लेकिन कोशिश को विराम नहीं लगाया। दस वर्ष बाद आंख की रौशनी लौटने के मामले के डॉ स्थापक ने बताया कि मेरे पास एक वृद्धजन इलाज के लिए आए थे। उनकी आंख में मोतिया बिंद हो गया था। जिसका आॅपरेशन किया गया और उसको साफ दिखाई देने लगा। ये मरीज कुछ महीना बाद उनके पास एक युवती को लेकर आए और कहा कि आप के हाथों में जादू है, आप इस लड़की का इलाज करें। आप इसको ठीक कर सकते है। वह युवती वृद्धजन की भतीजी थी जिसे वे अकोला महाराष्ट्र से लेकर आए थे। युवती के केस स्टडी पढ़ने पर पता चला कि दिल्ली , मुम्बई सहित भारत के कई शहरों के नामी डॉक्टर्स ने युवती को कोई भी इलाज होने से असमर्थता व्यक्त कर चुके थे। उसकी आंख की रौशनी सात साल की उम्र से जा चुकी थी। नर्वस मृत हालत में युवती को बचपन में टाइटफाइट हुआ था जिसके कारण उसके आंख की नर्व मृत हो चुके थे जिसे आंखो की नशे सूखना कहते है। उसकी आंख प्रकाश संबंधी संवेदना गृहण नहीं करती थी। वह दृष्टिबाधित हो चुकी थी और उसका कोई इलाज संभव नहीं था। किन्तु आगंतुक सज्जन पीछे पड़ गए थे आप को इसकी आंख की रौशनी लौटानी पड़ेगी, आप से बेहतर कोई डॉक्टर नहीं है। इस स्थिति में काफी अध्ययन करने के बाद एक प्रयोग करने का निर्णय लिया। वर्षो से बंद चिकित्सा पद्धति आंखों के पीछे इजैक्शन लगाने का निर्णय किया गया। रेटोवल यूटरारीम तथा एक अन्य दवाई को मिलाने के बाद तीन इंजेक्शन का कोर्स दिया गया। इसके बाद युवती को रवाना कर दिया गया। चमत्कार हुआ डॉ स्थापक के अनुसार कुछ दिनों बाद उनकी क्लीनिक में एक युवती आई और दण्डवत होकर उनके पैर छूए ओर वह रो रही थी। डॉ स्थापक के कहे अनुसार मै उसे पहचान नहीं पा रहा था लेकिन उसके पैर पड़ने से यह जाहिर हो रहा था कि वह बेहद प्रभावित है। उससे पूछा कि तुम कौन हो ,तो उसने बताया कि मै वैशाली हूं, अकोला से आई हूं। आपने मेरी आंखों में इंजेक्शन लगाया था इसे बाद अचानक अकोला में मुझे दिखाई देने लगा। दस साल बाद मेरी आंख लौट आई है।

Manindra sing

निर्णय लेने में विलम्ब करना पक्षकार के साथ अन्याय ---------------------- इंटर व्यू मणिन्द्र सिंह कार्यपालन दण्डाधिकारी , तहसीलदार गोहलपुर जबलपुर ----------------------- किसी प्रकरण के निराकरण के लिए पक्षकार आता है और उसके निर्णय में विलम्ब करना पक्षकार के साथ अन्याय की तरह है। यह कहना है गोहलपुर संभाग जबलपुर के कार्यपालन दण्डाधिकारी एवं तहसीलदार मणिन्द्र सिंह का। श्री सिंह सन 1994 के राजस्व अधिकारी है। जबलपुर में पदस्थाना के पूर्व गोहशंगाबाद,कटनी तथा मंडला जिले में पदस्थ रह चुके है। उनका कार्य शैली की विशेषता है कि वे त्वरित और समय पर निर्णय लेते हैं। श्री सिंह से पीपुल्स संवाददाता दीपक परोहा की बातचीत के अंश- प्रश्न- बड़े जिले और छोटे जिलों में काम में क्या अंतर महसूस करतें है,आप? जवाब- मेरी पदस्थापना छोटे जिले में भी रही है ओर जबलपुर जैसे बडेÞ जिले में भी हुई है। बड़ी जगह पर मामले ज्यादा होते है तथा वर्क लोड ज्यादा रहता है। लॉ एण्ड आर्डर की समस्या भी ज्यादा उत्पन्न होती है जिससे फील्ड में जाना पड़ता है। प्रश्न- शहर में काम की अधिकता रहती है जिससे मामले में लंबित रहते होंगे, ऐसे में क्या करते हैं? जवाब - मेरा प्रयास रहा है, उसी दिन का काम उसी दिन निपटाया जाए किन्तु कोर्ट के मामले की सुनवाई कोर्ट में ही करनी पड़ती है जिसके कारण नामांतरण, बटवारा नामा आदि के अनेक राजस्व मामले लंबित हो जाते है। इसके निपटाने के लिए प्रति शनिवार सुबह से लेकर शाम 5 बजे तक कोर्ट लगाई जा रही है जिसमें तमाम लंबित मामलों को निराकरण किया जा रहा है। प्रश्न - क्या नया करना चाहते हैं ? जवाब- जिला प्रशासन द्वारा नवाचार के तहत कई काम कर रही है , जिसमें मै अपना पूर्ण सहयोग कर रहा हूं। प्रश्न - एक अच्छे अधिकारी के क्या गुण होने चाहिए, और आप स्वयं को उस कसौटी में कसा हुआ महसूस करते हैं ? जवाब- एक अच्छे अधिकारी को पक्षकार की बात अच्छे से सुनने और समझने की जरूरत है। इसी तहर कोई पीड़ित यदि आता है तो उसको पूरे ध्यान से सुनने पर उसकी आधी समस्या का समाधान हो जाता है। अधिकारी को समस्या सुनने के बाद पूरी सूझबूझ से मामले में जल्द निर्णय लेते हुए उसका निराकरण करना चाहिए। अनुशासन एवं इमानदारी प्रशासनिक अधिकारी में होना चाहिए। इन गुणों को अपनी कार्यप्रणाली में उतारने मेरी हमेशा कोशिश रहती है। प्रश्न- गोहलपुर संभाग काफी संवदेनशील है, इसके अतिरिक्त यह क्षेत्र भू माफिया का गढ़ भी हैं। यहां की व्यवस्थाएं कैसे दुरूस्त होगी। उत्तर- गोहलपुर क्षेत्र संवेदन शील है। पुलिस -प्रशासन के अधिकारियों के बेहतर तालमेल के कारण अब तक इस क्षेत्र में कोई तनाव का माहौल निर्मित हुआ है तो वह जल्द ही शांत कर लिया गया है। राजस्व संबंधी मामलों की लगातार वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा समीक्षा की जाती है जिससे भूमि संबंधी मामलों में धांधली एवं गडबड़ी पर काफी नियंत्रण हुआ

Tuesday, 22 September 2015

*डब्ल्यू आईआई ने एसएफआरआई को दी प्रदेश की जिम्मेदारी


अब हर साल होगी बाघों की गणना
*डब्ल्यू आईआई ने एसएफआरआई को दी  प्रदेश की जिम्मेदारी
* बाघों पर निगरानी रखने नई कवायद
जबलपुर। बाघ स्टेट का दर्जा खो चुका मध्य प्रदेश इस बार भी अपना खोया हुआ खिताब हासिल नहीं कर पाया। बाघों की गणना होने पर इस वर्ष तीसरे नम्बर पर रहा है। मध्यप्रदेश स्थित नेशनल पार्क एवं टाइगर सेंचुरी में बाघों के शिकार और उसकी मौत को लेकर भारतीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा कड़ी आपत्तियों के चलते बाघों पर सतत निगरानी रखने के कवायद तेज की गई है। इसके  चलते अब राज्य स्वयं अपने बाघों की गिनती कराएगा। मध्य प्रदेश में  गणना एसएफआरआई के डायरेक्शन में की जाएगी।
उल्लेखनीय है कि आरएफआरआई का मुख्यालय जबलपुर में स्थित है। भारतीय वन्य प्राणी  संस्थान देहरादून (डब्ल्यू आईआई) ने प्राणी गणना के लिए राज्य वन अनुसंधान संस्थान जबलपुर(एसएफआरआई) को नोडल सेंटर बनाते हुए अधिकृत किया है।  वर्तमान में वन्य प्राणी अनुसंधान संस्थान  प्रति 4 वर्ष में बाघों सहित अन्य वन्य प्राणियों की गणना करता रहा है। बाघों की गणना को लेकर  तकनीकि और प्रशिक्षित व्यक्ति वन प्राणी अनुसंधान संस्थान के पास ही थे। पिछली बार हुई बाघ की गणना को लेकर अनेक आरोप भी लगाए गए थे। यहां तक की एमीनेशन के जरिऐ फर्जी तौर से बाघ की गणना बढ़ाए जाने के आरोप लगाए गए थे। इसी तरह कुछ नेशनल पार्क ने भी इस गणना पर आपत्तियां व्यक्त की थीं।
इसके चलते भारतीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने प्रत्येक राज्यों को अपने क्षेत्र स्थित नेशनल पार्क तथा जंगल में मौजूद बाघों तथा वन्य प्राणियों की गणना स्वयं करने के निर्देश दिए हैं। इसके चलते अब प्रति वर्ष मध्यप्रदेश में बाघों की गणना होगी। प्रदेश में बाघों सहित अन्य वन्य प्राणियों की गणना के लिए एसएफआरआई को अधिकृत किया गया है।
प्रशिक्षण दिया गया
पिछले दिनों एसएफआरआई के सात अधिकारियों को  गणना कराने संबंधी तकनीकि प्रशिक्षण डब्ल्यूआईआई ने दिया। इसके तहत ट्रेप कैमरा लगाने का प्रशिक्षण दिया। बाघ, तेन्दुए की गणना के साथ ही अन्य शाकाहारी वन्य प्राणियों की गणना संबंधी प्रशिक्षण दिया गया।  जानकारों का कहना  है कि गणना के  कार्य के लिए और भी कर्मचारी राज्य वन अनुसंधान केन्द्र , संविदा के तहत भर्ती भी करेगा। इसके अतिरिक्त वन्य प्राणियों की गणना नेशनल पार्क के अधिकारियों को भी दी गई है।
मध्यप्रदेश की जवाबदारी
मध्यप्रदेश स्थित 9 नेशनल पार्क, 6 टाइगर रिजर्व, 25 सेंचुरी तथा वन मंडल के अधीन जंगल आते हैं। इनमें प्रतिवर्ष वन्य प्राणियों की निगरानी एवं गिनती राज्य वन अनुसंधान संस्थान कराएगा। इस कार्य में नेशनल पार्क एवं वन मंडल के अधिकारियों को भी लगाया जाएगा। उनके द्वारा तैयार रिपोर्ट का सत्यापन का कार्य राज्य वन अनुसंधान केन्द्र जबलपुर का होगा।
अगले सत्र से शुरू होगा काम
इस सत्र में तो गणना हो चुकी है लेकिन अगले सत्र में वन्य प्राणियों की गणना का नोडल केन्द्र राज्य वन अनुसंधान केन्द्र ही होगा। फिलहाल दो साल संस्था डब्ल्यूआईआई की निगरानी में  काम करेगी।
एसएन नचना
 एडी. डायरेक्टर
राज्य वन अनुसंधान केन्द्र मप्र जबलपुर
बाक्स
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प्रतिमाह होती है गणना
यूं तो नेशनल पार्क तथा वन मंडल अंतर्गत जंगलों में बाघ सहित अन्य वन्य प्राणियों की प्रतिमाह बीट स्तर पर गणना का कार्य होता है लेकिन इस तकनीकि गणना में शामिल नहीं किया जाता है। 

Sunday, 20 September 2015

अबोध बच्ची सलोनी का दुश्मन पिता


 हंसती खेलती बेटी को बेटे की चाहत पर उतारा मौत  के घाट
जबलपुर।  आखिर अबोध बच्ची सलोनी का दुश्मन कौन है, उसने किसी का क्या बिगाड़ा है जो हंसती खेलती सलोनी को  मार डाला? जब मृत हालत में मां ने बेटी को देखा तो ये विचार आए। मां का लाड़ली की मौत से दिल भर था आंखों से  आंसूे थे। बेटी के पिता में किसी तरह के गम के भाव नजर नहीं आ रहे थे।  ऐसे  में मां  को  सलोनी के पिता का ही खयाल आया जो सलोनी के पैदा होने से बेहद नाखुश था। आए दिन उससे मारपीट करता था। सलोनी का हत्यारा उसका पिता ही है। यह विचार आने पर इस  मां ने अपने शौहर के खिलाफ थाने में जाकर एफआईआर दर्ज कराई। पुलिस जांच पड़ताल कर रही है ।
आज सरकार भले ही लड़ली लक्ष्मी और लक्ष्मी सम्मान जैसी योजना  चला रही है लेकिन समाज में अब भी बेटी को सहजता से स्वीकार नहीं है। बेटे की चाहत  में एक  पिता ने अपनी लाड़ली को पटक पटक कर मार डाला। यह घटना छिंदवाड़ा जिला के समीपी गांव कचरिया की है। गत शुक्रवार को ऋषि पंचमी की रात शंकर सूर्यवंशी की ढाई साल की बेटी सलोनी की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। पत्नी पिंकी अपनी लाड़ली को हंसती-खेलती हुई घर पर छोड़कर ऋषि पंचमी का पूजन करने के लिए मंदिर गई थी। वह जब मंदिर से लौटी तो  देखा उसकी हंसती-खेलती बेटी सलोनी हमेशा के लिए मौत की नींद सो चुकी थी। सलोनी का पिता ने गोलमोल जवाब दिए।
पत्नी का आरोप है कि बेटे की चाहत के कारण पति ने उसकी ढाई साल की बेटी की हत्या कर दी है। जबकि पति का कहना है कि सोफे से गिरने के कारण मासूम की मौत हुई है।  इसको लेकर पति-पत्नी के बीच रात में जमकर विवाद हुआ। गांव के लोगों ने इसकी सूचना पुलिस को दी।  शनिवार सुबह पुलिस शंकर के घर पहुंची और बच्ची के शव को पोटमार्टम के लिए  ले गई।  पुलिस ने पत्नी पिंकी के बयान दर्ज कर लिए हैं। पिंकी ने पुलिस को बताया कि पति शंकर बेटे की चाहत में उसके साथ मारपीट करता रहता था। पत्नी ने पति के खिलाफ प्रताड़ना की शिकायत पूर्व में भी की थी, जो न्यायालय में विचाराधीन है। पत् िा पत्नी के बीच विवाद की शुरूआत ही बेटी के जन्म से हुई थी जब  ढाई साल पहले जब पति शंकर ने बेटी होने की खबर सुनी तब से बेटी को शंकर पंसद नहीं करता था और उसकी मां को भी प्रताड़ित करने लगा था।
नहीं चाहते थे पीएम कराना

जिला अस्पताल के मरचुरी रूम में रखे मासूम के शव के पोस्ट मार्टम न कराए जाने को लेकर भी शंकर ने जमकर हंगामा किया। शंकर एवं शंकर की मां नहीं चाहते थे कि  पीएम कराया जाए जबकि  मासूम की मां की चाहती थी कि पीएम कराया जाए जिससे मौत का कारण सामने आए और दोषियों को सजा मिले।  इस बात को लेकर दोनो पक्षों के बीच करीब आधा घंटे तक जमकर वाद विवाद भी चला अंतत: पुलिस ने शव का पीएम कराया।
बेटी से नहीं था स्नेह
अपनी नम आंखों से मीडिया को मासूम की मां पिंकी ने बताया कि पति शंकर के अलावा ससुराल वालों को बेटे की चाह थी। बेटी होने के बाद से पति नाराज रहता था और मारपीट करता था। साथ ही उसे बेटी के प्रति किसी तरह का कोई प्रेम नहीं था। अक्सर बेटे न होने को लेकर मारपीट करता रहता था।
वर्जन
 आरोपी शंकर को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट प्राप्त होने पर हत्या का मामला दर्ज किया जाएगा। प्रथम दृष्टि शंकर ही हत्या का संदेही बना है।
 मिथलेश शुक्ला
पुलिस अधीक्षक छिंदवाड़ा

गुरू शिष्य परम्परा का निर्वाह करती एक शिक्षिका


 माता-पिता से बढ़कर आलम्बन दिया टीचर ने
 
जबलपुर। शासकीय मानकुंवर कला एवं वाणिज्य स्वशासी महिला महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. उषा दुबे जिन्होंने शिक्षा और छात्र- छात्राआें की सेवा में अपना पूरा जीवन समर्पित कर रखा है। उनका जीवन घरेलू महिला की तरह चूल्हे- चौके और अपने परिवार में उलझ नहीं है, वे पूरी तरह विद्यार्थियों के लिए समर्पित है। डॉ उषा दुबे ने विवाह नहीं किया है। दरअसल अविवाहित रहने के स्कूली जीवन में उत्पन्न संकल्प को परिणाम तक पहुंचाने में उनकी शिक्षिका का ही  सहारा रहा है। आर्थिक तंगी से गुजर कर होमसाइंस कालेज में जब उषा दुबे पढ़ने पहुंची तो तत्काली प्राचार्य ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी मानक मार्गदर्शन दिया और वे आज प्राचार्य बन कर गुरू परम्परा का निर्वाह कर रही है।
डॉ उषा दुबे  शिक्षक के मौके पर अपनी गुरू -शिक्षिका श्रीमती कृष्णा नाद का याद करते हुए बताया कि सन 1969 में उन्होंने होमसांइंस कालेज में प्रवेश लिया था। दौरान होमसाइंस कालेज एवं मानकुंवर बाई कालेज एक ही थे। उनके पिता जस्टिस दीपक वर्मा के पिता के पास मुंशी थे लेकिन जब उनका एजूकेशन कालेज में शुरू हुआ तभी पिता असाध्य बीमारी से पीड़ित हो गए। परिणाम स्वरूप कालेज की पढ़ाई असंभव प्रतीत हो रही थी। ऐसे में एक शिक्षिका का उन्हे सहारा मिला। उन्होने तमाम प्रोफेसर -प्राध्यापकाओं के सामने मुझे पाल्य पुत्री घोषित कर दिया। कहा कि ये लड़की मेरी उत्तराधिकारी होगी और गुरू शिष्य परम्परा को आगे बढ़ाएगी। होमसाइंस कालेज में एकाडमिक स्टॉप में शामिल होकर कालेज की उत्तरोत्तर प्रगति का मेरा सपना पूरा करेगी।
डॉ उषा दुबे ने बताया कि मेरी तो हैसियत ऐसी नहीं थी कि पीएचडी कर लू

ं लेकिन वे स्वयं मुझे रिक्शा में विश्व विद्यालय ले जाती थी। अधिकांश जगह वे साथ में ले गई। मुझमें आत्म-विश्वास पैदा किया। मै विवाह नहीं करना चाहतीे थी, लेकिन मेरी इस बात को उन्होंने असामान्य और गैर सामाजिक नहीं ठराया तथा कहा कि जीवन में संकल्प पूरा करने की शक्ति उत्पन्न करने की जरूरत है।
डॉ उषा दुबे का कहना है कि आज मेरी गुरू नहीं हैं लेकिन इस कॉलेज परिसर में मुझे उनकी उपस्थित महसूस होती है, उनकी शैक्षणिक आदर्शो को आग बढ़ाने में सुकून मिलता है। वे सदगी पसंद थ्ी। गांधीवादी विचारधार की थी, और आज उनके पथ पर मै चल रही हूं।
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