Saturday, 26 March 2016

मिल्क प्रोटीन के नैनो पार्ट से कैंसर का इलाज


 
 कीमो थैरेपी उपचार में आ सकता है क्रांतिकारी बदलाव
 जबलपुर की छात्रा की रिसर्च लगभग पूरी
जबलपुर। गाय के दूध की गुणवत्ता को लेकर जहां दुनिया भर में रिसर्च एवं दावे चलते रहे है लेकिन जबलपुर में साइंस कालेज की छात्रा ने मिल्क में मौजूद कैसीन प्रोटीन को कैंसर के इलाज में डिलीवर  की तरह उपयोग करने जा रही है। रक्त में कैसीन प्रोटीन आराम से  घूम सके इसके लिए पहले इसका नैनो पार्टिकल तैयार किए है, साथ ही कैसीन प्रोटीन में यह खासियत विकसित की गई है कि वे मैग्नेटिक फील्ड की ओर आकर्षित होए। कैसर ग्रस्त अंग के समीप मैग्नेटिक फील्ड विकसित करना को कठिन काम नहीं है और इस प्रोटीन में कीमो थैरेपी की दवा को लोड होगी और वह मैग्नेटिक फील्ड से आकर्षित होकर सीधे वहीं पर एकत्र होगी जहां कैसर सेल मौजूद है और कीमो थैरेपी की दवा अपना जादू दिखाना शुरू कर देगी।
इस नई तकनीकी का फायदा यह होगा कि कीमो थैरेपी की दवा जो कैंसर सेल्स के साथ ही स्वस्थ्य सैल को मारती थी। साइड इफैक्ट के तौर पर कीमो थैरेपी कराने वाले मरीजों के बाल झड़ना तथा अन्य अनेक तरह की साइड इफैक्ट हुआ करते थे। वे काफी हद तक कम हो जाएंगे। इतना ही नहीं दवा कैसर सेल्स को चारो तरफ से घेर कर तथा वहीं पर सतत अपनी मौजूदगी दर्ज कर सटीक इलाज भी करेगी।
यदि रीसर्च पूरी तरह से कामयाब होती है तो कैंसर के इलाज के लिए यह चमत्कारी खोज भारतीय छात्रा अनामिका सिंह एवं उनके निर्देशक डॉ.एक बाजपेई के खाते में जाएगी।
पुलिस विभाग के सब इंस्पेक्टर रवि करण सिंह की पुत्री घमापुर निवासी अनामिका सिंह ने शासकीय साइंस कालेज जबलपुर से एमएससी रसायन शास्त्र में की है। इसके उपरांत पिछले चार वर्षो से पॉली कैमेस्ट्री विषय  पर मिल्क प्रोटीन पर रिसर्च का कार्य कर रही है। हाल ही में इंदौर में हुए साइंस कांफेंन्स में उनके रिसर्च पेपर प्रस्तुत किए  गए जिसे न केवल काफी सराहा गया वरन प्रथम पुरस्कार भी मिला है।
ऐसे करेगा काम
अनामिका सिंह ने बताया कि कैसीन प्रोटीन के नैनो पार्ट तैयार किए जाते है। इन नैनो पार्ट का गुण स्पंज की तरह होता है। इसमें कीमो थैरेपी की दवाएं जो रेडियो एक्टिव होती है तह इसमे सोख ली जाती है। बल्ड में इंजैक्ट किए प्रोटीन युक्त दवाई की जाती है। इसके पूर्व कैंसर संभावित पार्ट के आसपास  मैग्नेटिक फील्ड विकसित करने वाल यंत्र स्थापित कर दिए जाते है, जो की बाड़ी के बाहर होते है। दवा युक्त एंडीवाडी यानी कैसीन जो कि मैग्नीटिक फिल्ड के प्रति संवेदनशील होती है वह मैग्नेटिक फील्ड के समीप यानी कैसर प्रभावित अंग के पास एकत्र हो जाती है। इसके उपरांत मैग्नेटिक फील्ड की रेंज बढ़ाने पर कैसीन सिकुडता है तथा उससे दवाई  बाहर आ जाती है।
जानवरों पर होगा रिसर्च
इसके बाद रिसर्च छात्रा द्वारा करीब एक डेढ साल जानवरों पर कीमो थैरेपी संबंधी रिसर्च त्रिवेंन्द्रम इंस्ट्टीयूट में किया जाएगा। इसके लिए आवेदन किया जा चुका है। वहां विभिन्न जानवरों में रिसर्च के बाद यह मानव में प्रयोग के लिए भारत सरकार के हवाले किया जाएगा। शोध का एक चरण पूर्ण हो चुका है तथा यह  साइंस जर्नल में प्रकाशित हो  चुका  है। करीब 15 हजार पन्नों  का  शोधपत्र इंटरनेट में भी डाउन लोड किया जा चुका है और पूरी दुनिया से इस शोध पर सराहना मिल रही है। शोध को आगे बढ़ाने कई कम्पनियां अपनी रूचि भी दिखा रही है।

वर्जन
नेनो पार्टीकर पर रिसर्च पूर्ण कर लिया गया है तथा रिसर्च पेपर भी अनामिका ने तैयार कर लिए है। अगले चरण मे जानवरों  पर शोध कार्य किया जाना है। यह त्रिवेंन्द्रम में अनामिका करेगी। वहां करीब  7-8 महीने विभिन्न जानवरोंं में शोध चलेगा। इसके उपरांत मानव पर सफल प्रयोग  होने पर ही यह दवा के रूप  में बाजार में आएंगी। फिलहाल शोध को लेकर रिपोर्ट हासिल की गई है, उसके मुताबिक इस नैनो पॉर्टिकल  का कोई टॉक्सिन इफैक्ट नहीं है।
डॉ. एके बाजपई
 शोध डायरेक्टर

बिना इंसुलीन के नियंत्रण में आई डायबिटीज


  * पांच साल से ले रही थी 50 यूनिट इंसुलिन


 इंट्रो

पिछले एक-दो वर्षो से बाजार में डायबिटीज की आधुनिक औषधी आने लगी है और इस दवा के प्रयोग से चमत्कारिक परिणाम सामने आए है। । एक महिला जिसको पिछले पांच साल से करीब 50 यूनिट इंसुलिन  ले रही थी लेकिन इसके बावजूद शुगर लेबल 500 के करीब बना रहता था। महिला की आंख तथा किडनी खराब होने का खतरा मंडरा रहा था ऐसे में उन्हेंं ओरल दवाइयां दी गई तो इंसुलिन इंजेक्शन लगना बंद हो गया। दरअसल डायबिटीज के इलाज के लिए हो रहे तेजी से बदलाव एवं रिसर्च के साथ चिकित्सक के अपडेट होने का फायदा मरीजो को मिलता है। यह कहना है डायबिटीज विशेषज्ञ डॉ अभिषेक श्रीवास्तव का।
-------------------------------------------------------
डा.अभिषेक श्रीवास्तव ने बताया कि कुछ महिना पहले शहर के एक सम्पन्न एवं प्रतिष्ठित परिवार की 50 वर्षीय महिला रूकमणी देवी (काल्पनिक नाम) उनके पास इलाज के लिए आई। उसको हाई डायबिटीज रहती थी। महिला शहर के अन्य कई चिकित्सकों के पास इलाज करवा चुकी थी। नागपुर सहित अन्य शहरों के चक्कर भी लगा चुकी थी। उसकी ब्लड शुगर का लेबल 400-500 के करीब बना रहता था जबकि 40-50 यूनिट इंसुलिन वे प्रतिदिन ले रहीं थी। लगातार ब्लड शुगर बढ़े रहने के कारण अन्य कई बीमारी होने का खतरा बन गया था।
मरीज जब क्लिनिक में पहुंची तो बुरी तरह निराश थी। यह पाया गया कि

 मरीज को इंसुलिन असर करना बंद कर दी थी। आवश्यकता से ज्याद डोज ले रही थी। उनको इंसुलिन बंद करा दिया गया। दो तरह की दवाइयां सिर्फ खाने को दी गई। इसमें एक दवाई पेनक्रियाज को इंसुलिन उत्पादन के लिए प्रेरित करने वाली तथा दूसरी दवाई ब्लड से शुगर का लेबल कम करने वाली थी। इस दवाई का चमत्कार यह हुआ कि वर्षो से जिल महिला का पेनक्रियाज निष्क्रिय पड़ा था वह सक्रिय हो गया। पेनक्रियाज स्वयं इंसुलिन उत्पादन करने लगा तथा रक्त में लगातार मौजूद रहने वाला शुगर लेबल भी कम हो गया। बीते कई माह से महिला को इंसुलिन देने की जरूरत नहंी पड़ रही है। इतना ही नहीं दवाई का डोज भी कम कर दिया गया है।
डॉ श्रीवास्तव का कहना है कि दरअसल डायबिटीज के इलाज के लिए प्रत्येक मरीज को उसके शुगर लेबल के लिए दवाइयां पूरी योजना और लगातार निगरानी में देने की जरूरत रही है।
मोटापा से मिली राहत
डॉ. श्रीवास्तव का कहना है कि शुगर की तरह मोटापा भी एक बड़ी बीमारी है । आम आदमी बढ़ते हुए मोटापा को नजरअंदाज करता और बाद में यही मोटापा शुगर, ब्लड प्रेशर, हृदय रोग, हाइपर टेंशन सहित अनेक बीमारी का कारण बन जाता है। डॉ श्रीवास्तव के पास  उनकी क्लीनिक में आरती मिश्रा आई जो कि युवा अवस्था में ही मोटापे की बीमारी से पीड़ित थी। उसका वजन डेढ सौ किलो हो गया था जबकि उंचाई पांच फुट दो इंच थी। इस उचाई की महिला के औसत वजन से ढाई गुना अधिक वजन था। पैरों में सूजन आने लगी थी। अन्य कई तरह की बीमारी का खतरा मंडरा रहा था। डाइबिटीज की तरह मोटापा कम करने की अनेक अच्छी दवाइयां आने लगी है। महिला को मोटापा की बीमारी वंशानुगत थी। दवाई एवं डाइड से मोटापा नियंत्रित किया गया। वर्तमान में **** का वजह 100 किलो रह गया है जिसमें और भी कमी आने की पूरी संभावना है।
डॉ  श्रीवास्तव ने बताया कि एक बार मोटापा नियंत्रण में आने बाद दवाइयां बंद की जा सकती है। मरीज संतुलित आहार लेता रहे तो मोटापा दाबारा अटेक नहंी करता है। 

कहानी-अजगर दादर की

कहानी-अजगर दादर की

धूप सेंकते  अजगरों को देखने पहुंच रहे सैलानी

* एक गांव जहां  अजरग बसते हैं

जबलपुर। मुगल सलतन से टकराने वाली रानी दुर्गावती की नगरी मंडल से कुछ किलोमीटर दूर स्थित है अजगर दादर गांव। इस गांव का नाम अजगर दादर इस लिए पड़ा है कि यहां सदियों से अजगर बसते आए है। अजगर दादर में  इन दिनों, ठंड के सीजन में धेप सेंकते अजगर नजर आते हैं और इन्हें देखने सैलानियों की भीड लग रही है। दरअसल दिसम्बर और जनवरी माह कड़ाके के सर्दियो में जंगलों से निकल कर अजगर यहां आते हैं और धूप सकते है।
अजगर दादर में आसपास के क्षेत्रों से लोग अजगर देखने आते ही हैं, इसके अतिरिकत कान्हा नेशनल पार्क तथा कान्हा के बफर जोन में आने वाले सैलानी भी अजगर दादर पहुंचते है। खासतौर पर वीक एंड में यहां अच्छी खासी भीड़ लग रही है। लोगों को चट्टानों के उपर अथवा चट्टानों की छांव में अजगर बैठे नजर आ रहे है।
वन विभाग ने इस  क्षेत्र को संरक्षित भी किया है। इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में चूहे तथ अन्य जीव जन्तु जो अजगर के भोजन होत है उन्हें भी बसाया गया है। करीब  डेढ दो एकड़ के क्षेत्र में वन अमले ने फैसिंग भी कराई है। यहां चट्टानों के बीच दरारें हैं तथा अनेक प्राकृतिक खोह एवं बिल है जिसमें आराम से अजगर रहते है। जानकारों का कहना है कि जिस तरह के प्राकृतिक खोह एवं बिल यहां मौजूद हैं वे गर्मी के सीजन में ठंडाते हैं तथा ठंड में खोह में गर्माहट बनी रहती है। यही अजागरों को पसंद आता है। सांपों में अजगर आराम पसंद जीव होता है, उसे जब भूख लगती है  तभी वह शिकार की खोज में निकलता है, बाकी सयम अजगर आराम फरमाता है। ठंड में खासतौर पर धूप सेकने के लिए निकलता है।
यहां आने वाले सैलानियों की आहत पाकर अजगर धीरे से खोहों में छिप जात ेहै। बड़संख्या मेंं यहा चिट्टी प्रजाति के देशी अजगर पाए जाते है। ये करीब दस से बारह  फुट तक लम्बे होते है। चूहे ,मुर्गी और खरगोस को सीधे निगल जाते है। उल्लेखनीय है कि अजगर दादर हाल में ही सैलानियों की नजर में आया है। पीपुल्स ने इस गांव की खबर पूर्व में प्रमुखता से प्रकाशित की थी। वहीं वन विभाग भी  बीते दो तीन वर्षो से ही इस गांव को अजगर के  पर्यटन के हिसाब से विकसित करने ही प्रयास शुरू किए है। इसके पूर्व सपेरे आदि इस क्षेत्र से अजगर को अवैध तौर से  पकड़ने के लिए इस्तेमाल किया करते थे।

वर्जन
अजगरदादर में अजगरों  के संरक्षण के लिए कार्य  किया  जा रहा  है। सैलानियों के आने पर अजगरों को कोई नुकसान न होए और लोग आसानी से उन्हें दूर से देख ले इसके लिए वॉच टावर बनाए गए है तथा फैसिंग के भीतर घुसना प्रतिबंधित किया गया है।
लाल जी मिश्रा, डीएफओ,मंडला 

डेढ़ साल के बच्चे के दिल के 3 छेद किए बंद



*चेहरे में चमक और माता-पिता के चेहरे की मुस्कान लौटी
दीपक परोहा
9424514521

कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. अच्युत खांडेकर और उनकी टीम ने जबलपुर शहर में  बच्चों के दिल में छेद बंद करने पिछले कुछ दिनों में 16 आॅपरेशन किए है। इसमें सर्वाधिक चुनौती पूर्ण आॅपरेशन में डेढ़ साल के बच्चे  का था, जिसके दिल में एक नहीं तीन छेद थे। दिल में  छेद होने के कारण वह बेहद कमजोर एवं सुस्त हो गया था। उसके दिल की धड़कने भी कम थी, ऐसे में अपने अनुभव और दक्षता पर भरोसा रखते हुए डॉ अच्युत खांडेकर ने अपनी टीम के साथ सफल इलाज किया। बिना आॅपरेशन किए जांघ से तार डालकर दिल का छेद बंद किया गया। महानगरों की तर्ज पर पहली बार जबलपुर में दिल के छेद बंद कर ने की आधुनिक तकनीक से इलाज  प्रारंभ किया गया है।

डॉ खांडेकर ने बताया कि नरसिंहपुर निवासी डेढ वर्षीय मुन्ना के माता -पिता बुरी तरह निराश हो गए थे। नागपुर सहित कई शहरों में बच्चे का दिखा चुके थे और डॉक्टर भी उसका इलाज करने से बच रहे थे। उनका कहना था कि बच्चा बहुत कमजोर है। कुछ स्वस्थ हो जाए  तभी इलाज किया जाएगा। किन्तु इससे बच्चे के दिल  का छेद और बड़ा होने का खतरा भी बना था। इस बच्चे के दिल में छेद  होने से  दिन -प्रतिदिन कमजोर होता जा रहा था। उसकी चेहरे में चमक खत्म हो चुकी थी। मात्र 20 मिनट में सफलता पूर्वक जांघ से तार डालकर बच्चे के दिल का छेद बंद कर दिया  गया। उसके हॉर्ट में क्लोजर डिवाइज इंन्प्लांट की गई। इससे  बालक के चेहरे में एक दिन में ही मुस्कान लौट आई और उसके माता पिता के चेहरे खिल गए।
डॉक्टर अच्युत्य खांडेकर  एक साल से जबलपुर में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वे वर्ष 2010 मे कॉडियोलॉजिस्ट हैं तथा हिन्दुजा मुम्बई में उन्होंने आधुनिक उपचार तकनीकि सीखी है।

ऐसे हुआ इलाज
डॉक्टर खांडेकर ने बताया कि बच्चे की जांघ से कैथेरेटर डाला गया था और दिल के छेट के पास छतरी नुमा पार्ट खोला गया जिससे उसके दिल के छेद बंद हो गया। अब छेद बंद होने के बाद बच्चा अपना सामान्य जीवन जी सकेगा। वह भागदौड़-खेलकूद सामान्य बच्चों की तरह करेगा। इस तरह के आॅपरेशन को करने में मात्र 20 मिनट लगता है। दरअसल यह आॅपरेशन नहीं होता है। बच्चे के दिन में तार द्वारा  एम्पलाजर ट्रांसप्लांट किया गया था। इस तकनीक से इलाज के दौरान ं किसी प्रकार के चीड़-फाड़ की जरूरत नहीं पड़ती है।  यह तकनीक बहुत सुरक्षित है। बच्चों में जन्मजात हार्ट में छेद की विकृति होने पर जल्द से जल्द इलाज करा लेना चाहिए ।

ब्रिटिश हुकुमत की यादगार टॉउन हॉल


गांधी प्रतिमा अनावरण के साथ बन गया गांधी भवन
जबलपुर। भारतीय इतिहास में ईस्ट इंडिया कम्पनी की लूट खसोट एवं भारतीय राजवाड़ों को हड़पे जाने से उपजे 1857 के विद्रोह बाद भारत में ब्रिटिश हुकुमत ेकी यादगार है टॉउन हॉल। दरअसल ब्रिटेश की महारानी विक्टोरिया के जुबली वर्ष पर उनकी चिरकालीन स्मृति में जबलपुर के राजा गोकुलदास राय बहादुर बल्लभ दास सेठ ने 30 हजार रूपए की लागत से भवन बनाकर ब्रिटिश कमिश्नर को 1890 में सौंपा था। इसका भवन को जनता के उपयोग के लिए बनाया गया था बाद में इसका संचालन नगर निगम के हाथों में आ गया।
आजादी पूर्व के नगर पालिका इस भवन को नगर में होने वाले उत्सव एवं कार्यक्रमों के लिए उपयोग करती रही है। वर्षो तक इस ऐतिहासिक इमारत का नाम टाउन हाल रहा है। ये नाम देश प्रेमियों को ब्रिटिश हुकुमत की यादगार दिलाता रहा  है। जबलपुर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को तो भी भी हाउन हाल नाम पसंद नहीं आया।
ये इमारत ब्रिटिश साम्राज्ञी की स्मृति पर बनी जरूर लेकिन इस दौर में भवन कला का ये बेजोड नमूना रही है। फारसी और भारतीय स्थापत्य कला का मिला जुला नमूना है। भारतीय शैली से पत्थर की नींव तथा फारसी इंजीनियरिंग के आधार पर बेस स्थापित किया गया। इसकी दीवारे डेढ़ से दो फुट मोटी पक्के ईटों की थी। ईटों के बीच चूना और रेत की जुड़ाई तथा इसी का प्लास्टर है जो अब भी मौजूद है। बाहरी तथा भीतरी वास्तु सज्जा में  फारसी गुम्बद, झरोके तथा आर्च का बहुतायत से उपयोग किया गया है। सिलालेख में उल्लेख है कि 1890 में तैयार हुए इस भवन की कीमत 30 हजार रूपए थी।
1962 में हुआ गांधी भवन
इस ऐतिहासिक इमारत में आजादी के साथ ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की गतिविधियां शुरू हो गई थी। इसको ब्रिटिश शाासन की यादगार के साथ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की याद और स्मृति से जोड़नें की बात उठने लगी। तत्कालीन महापौर रामेश्वर प्रसाद गुरू ने भवन का कायाकल्प कराते हुए यहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा स्थापित की गई। इस प्रतिमा का अनावरण  गांधीवादी तथा भू दान आंदोलन के महा नायक जय प्रकाश नारायण ने किया।  जबलपुर का टाउन हाूॅल गांधी भवन हो गया। यहां स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वाचनालय तथा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उत्तराधिकारी संघ को एक रूम आवंटित है। इसके अतिरिक्त गांधी भवन को नगर निगम का वाचनालय स्थापित है। इसमें एतिहासिक गजट, एतिहासिक समाचार पत्र एवं पुस्तकों के भरमार है। यह वाचनालय जबलपुर एतिहास की अनमोल धरोहर है जिसमें ब्रिटिश हुकुमत के दौरान जारी होने वाले कई आदेश तथा गजट का व्यौरा मिलता है।
वर्तमान हालत
गांधी भवन के सामने खुले मैदान में महात्मा गांधी की प्रतिमा स्थापित है जिसपर गांधी जयंती तथा 30 जनवरी को कांग्रेसी तथा गांधी विचारधारा के लोग श्रद्धासुमन अर्पित करने आते है। पार्क की दीवार जर्जर हालत हो चली है। फुहारा तथा उसकी टंगी की हालत जर्जर है। टाउन हाल के चारों तरफ जबदस्त गंदगी व्याप्त है।
गांधी की छत्रछाया में नशाखोरी
विक्टोरिया अस्पताल के बाजू से स्थित टाउन हाल में गांधी की प्रतिमा तले उनकी छत्रछाया में जबदस्त तरीके से नशाखोरी चलती है। एविल तथा अन्य नशीले इंजेक्शन लगाने वाले तत्वों ने यहां  डेरा जमाए रहते है। वाचनालय के रात्रि 8 बजे बंद हो जाने के बाद परिसर की दीवार कूंद कर नशेलची अपना डेरा जमा लेते हैं।
-

गांव वाले खुद लिख रहे विकास की इबारत

गांव वाले खुद लिख रहे विकास की इबारत
* पड़री मानगढ़ में ब्याह कर आई रेखा के प्रयास से बदल रही तस्वीर
* अंधकार दूर भागा, पीने को मिला पानी, पथ के कंकड़ हो रहे साफ
* एक ने उठाई कुदाली जुट गया पूरा गांव
 जबलपुर। पड़ोसी जिला दमोह की जबेरा तहसील का एक ग्राम पड़री मानगढ़ जहां देश की आजादी के 69 साल बाद भी विकास की रोशनी नहीं पहुंची हैं। यहां की आबादी के नाम पर 300 मकान हैं।  गांव में कांक्रीट  और सीमेंट निर्माण के नाम पर एक चबूतरा तक नहीं है। गांव में न तालाब है और न ही कुंआ है। आज तक अंधकार में डूबे इस गांव में रोशनी की किरण बनी है, दूसरे गांव से ब्याह कर आई रेखा बाई। बीहड़ स्थित इस गांव में विकास की नींव रखने रेखा ने खुद पहले कुदाली उठाई और अब पूरा गांव स्वयं गांव में विकास की इबारत लिख रहा है।
     मध्य प्रदेश में गांव के विकास के लिए और गावों को शहर से जोड़ने की अनेक योजना चल रही है। दूसरी तरफ ये गांव विकास से पूरी तरह अछूता है। गांव में क्या हो रहा है? ग्रामीण कैसे पानी की व्यवस्था करते हैं? सूखा ग्रस्त दमोह जिला के पड़री मानगढ़ में क्या स्वयं ग्रामीण अपने इंतजाम कर रहे है? इस सब बातों से जबेरा के सीईओ रामेश्वर पटैल अनभिज्ञ है।
 बीहड़ में बसा गांव
जबेरा के अन्य गांवों से पड़री मानगढ़ पूरी तरह कटा हुआ है। सड़क के नाम पर बंजर पहाड़ी जमीन के बीच से होती हुई पगडंडी ही है। उबड़-खाबड़ पथरीली जमीन ही पहाड़ी से होकर ही गांव का पथ है। गांव पहुंचना है तो जंगली रास्ता, पहाड़ पर बनी पगडंडियों से ही पैदल सफर तय करना पड़ता है। गांव में यदि कोई गंभीर बीमार पड़ता है तो अस्पताल तक पहुंचते तक उसका जीवित बच पाना ईश्वर के भरोसे रहता है। एसी लग्जरी गाड़ियों में सफर करने वालों के लिए गांव का सफर काला पानी की सजा से कम नहीं है। समूचा इलाका इन दिनों जबदस्त तरीके से तपने लगा है। गांव सहित आसपास का इलाका सूखे की चपेट में है। गांव में हरियाली नाम मात्र को बची है। गांव के सभी मकान कच्ची मिट्टी के बने हैं। जिनको चूना और गेरू तक नसीब नहीं होता है।
जंगल से लकड़ी बीनते हैं
पूरा गांव सूखा ग्रस्त क्षेत्र में है। यहां कृषि भूमि नाम मात्र को  है। गांव में सभी परिवार आदिवासी है। उनका पेशा है जंगल से लकड़ी बीन कर दूर दराज के गांव या जबेरा में बेचना। इससे उनका अपना परिवार चलता है।  गांव में सभी बच्चे निराक्षर थे। दरअसल यहां विकास की किरण रेखा बाई नामक महिला के ब्याह कर आने पर हुई। ब्याह के बाद  यहां आने पर उसने जब इस गांव के हाल देखे तो दंग रह गई और स्वयं की गांव की तस्वीर बदलने की ठान ली। गांव के लोगों को अपना जीवन स्तर सुधारने प्रेरित करने लगी।
चट्टान तोड़कर पानी निकाला
इस महिला ने गांव में नमी वाली चट्टानी की जगह का चयन कर वहां पानी होने की संभावना को लेकर खुदाई कराई और गांव में पानी निकल आया है जिसके कारण कई किलोमीटर दूर नाले से अब गांव की महिलाओं को पानी लेने नहीं जाना पड़ता है। उल्लेखनीय है कि इस गांव में पोखर या कुंआ खोदना बेहद दुर्गम काम है। इसकी वजह यह है कि जमीन के नीचे ं बड़ी- बड़ी चट्टानें है जिसको तोड़ने के लिए बारूद की जरूरत पड़ती है। लेकिन पूरे गांव के हौसले के आगे चट्टान भी चूर- चूर हो गई।  कई महीने पांच-छह घंटे मेहनत कर जमीन के सीने से पानी निकालने में कामयाब हुए लोग।  आदिमानव से सभ्यता की ओर
गांव में अब लोग ने बदलाव शुरू हो गया है। आदिमानव से हटकर सभ्य समाज की ओर बढ़ रहे है। सड़क, बिजली, पानी का स्वयं इंतजाम में जुट गए है। एक एनजीओ के सहयोग से 16 सोलर प्लेट की मदद से तीस घरों में रोशनी होने लगी है। पहली बार गांव में रोशनी को लोगों ने जाना है। इसके पहले आदिमानव की तरह लकड़ी के अलाव जलाकर रोशनी किया करते थे। सरकार की अन्नपूर्णा योजना से भी इस गांव के लोग वंचित हैं। यहां न 1 रूपए किलों गेहूं मिलता है और न दो रूपए किलो चावल, मिट्टी तेल तक नहीं मिलती है डिबरी के लिए।  जिले के नक्शे से ही यह गांव कटा है अथवा नहीं , जवाबदार कुछ कहने तैयार नहंीं है। गांव वालों को भी नहीं मालूम कि किस ग्राम पंचायत के आश्रित है, ये गांव। किन्तु उनमें हौसला भर चुका है।  

खुद बना रहे सड़क
जंगली और उबडखाबड़ पगदंड़ी से झाड़ियां साफ कर तथा पथ से पत्थर खोद कर अलग करने का श्रमदान ग्रामीण कर रहे है और अपने लिए एक रास्ता तैयार कर रहे है लेकिन यह रास्ता कब तक तैयार होगा? इसका अंदाज नहीं है लेकिन वे जुटे हुए हैं, विकास की इबारत लिखने।
बाक्स
बाक्स
 माउंटेन मैन से नहीं मिली प्रेरणा
  इस गांव के लोगों ने बिहार के माउंटेन मैन यानी दशरथ मांझी का किस्सा नहीं सुना है और न ही उस पर बनी फिल्म मांझी देखी है।आदिवासी ग्रामीणों को दशरथ मांझी से नहीं वरन स्व प्रेरणा मिली है। वे भी पहाड़ चीर कर  अपना रास्ता बना रहे हे। मालूम हो  दशरथ मांझी ने अकेले छेनी हथौड़े से पहाड़ काटकर गहलोत से वजीरगंज का रास्ता बनाकर  गहलोत के विकास की इबारत रची थी। अब देखना यह है कि गड़री मनगढ़ के विकास का रास्ता कब पूरा होता है।


बाक्स ---
रेखा की फोटो लगाए***
खुले आसमान के नीचे स्कूल
पूरे गांव की एक मात्र पढ़ी- लिखी महिला रेखा बाई रामपुर गांव से ब्याह कर आई थी। उसने  पेड़ों की छावं के नीचे एक स्कूल शुरू किया है। रेखा का कहना है कि गांव में अब तक सभी लोग निराक्षर है। लकड़ी बीन कर गुजारा करते हंै। मै चाहती हूं कि मेरे और गांव के बच्चे पढ़े और तरक्की करे साथ ही गांव की तरक्की भी करें। इसके लिए उनका शिक्षा देना जरूरी है। मै खुद उन्हें पढ़ाउंगी । बच्चों को किताब-कापी और पेन्सिल उसने स्वयं के पास से मुहैया कराती हूं।
----------------------------
वर्जन
गांव में पानी नहीं है। कभी कोई सरपंच और सरकारी आदमी यहां नहीं आता है चूंकि उनके पहुंचने का रास्ता नहीं है। हम खुद अब रास्ता बनाएंगे।
दशरथ सिंह, ग्रामीण
---------------------------------
वर्जन
 हम अपने हौसले पर भरोसा कर रहे है। सरकारी मदद नहंी मिलती है तो भी हम गांव का विकास करेंगे।
भीमसिंह, ग्रामीण
-------------------------------------
गांव के सभी औरत आदमी अपनी रोजी-रोटी कमाने के बाद समय निकाल कर गांव के लिए काम कर रहे है ये एक अच्छी शुरूआत है।
गंगाबाई , ग्रामीण महिला
---------------------------------
मेरी जानकारी में नहीं हॅै कि उस गांव में ग्रामीण क्या काम कर रहे है। अब तक वहां के लिए कोई योजना भी नहीं है।
रामेश्वर पटैल
सीईओ जबेरा

Friday, 25 March 2016

लापरवाही न करें तो पूरे जीवन चलते है दांत



मनुष्य के जीवन भर उसके दांत उसका साथ देते है जबकि आदमी दांतों की देखरेख सावधानी पूर्वक करें। सुपाड़ी, तम्बाखू और सिगरेट दातों को सर्वाधिक नुकशान पहुंचाते है। किसी भी तरह का भोजन करने से दांतों को कोई नुकशान नहीं होता है लेकिन भोजन के बाद मुंह की सफाई करना आवश्यक है। रात्रि में भोजन के उपरांत मीठा, चॉकलेट तथा मुंह में चिपकने वाली चीज खाने से बचना चाहिए। जबलपुर के वरिष्ठ दंतरोग चिकित्सक डॉ सुनील चौहान का उक्त कहना है। पीपुल्स संवाददाता की उनके साथ हुई बातचीत के अंश-
* मनुष्य के दांतों की उम्र क्या होती है और वह कितने समय बाद स्वत: टूट जाते है?
** मेरा अनुभव है कि मनुष्य के दांत उसके जीवन भर बने रहते हे जबकि मनुष्य यदि पूर्ण स्वस्थ हो तथा वह अपने दांतों की केयर करता हो। तम्बाखू -सुपाड़ी चबाने वालों के दांत जल्द खराब होते है। दाांतों में कैविटी तथा पाइरिया होने की स्थिति में ही दांत एवं मसूड़े खराब होते है। यही दांत के गिरने का कारण बनता है।
* दांतो में सर्वाधिक कौन सी बीमारी होती है?
** मेरे पास आने वाले 90 प्रतशत मामलों में पाइरिया तथा केविटी के मरीज ही आते है , िजसके कारण उनके  दांत खराब हो जाते है।
* इस बीमारी की मुख्य वजह क्या होती है, इससे कैसे बचा जाए?
** मुख को साफ रखने से न कैबिटी होती है और न पाइरिया, दरअसल ये बैक्टिरिय इंफैक्टशन है। मुह में जूठा भोजन फंसे रहने से ये बीमारी होती है। रात्रि में सोने के पूर्व ब्रश किया जाए तथा ब्रश करने के बाद कुछ भी नहीं खाना चाहिए तथा सुबह भी ब्रश किया जाए तो दांत हमेशा स्वस्थ रहेंगे। दांतो की देखरेख जरूरी है। इसके अतिरिक्त हर छह माह में दंतरोग चिकित्सक से चैकअप कराने की आदत डालनी चाहिए।
*दांतों के उपचार के लिए  कौन सी आधुनिक चिकित्सा  शुरू की है आपने ?
** लेजर तकनीक से उपचार शुरू किया गया है। इससे मुंह के आॅपरेशन में अनावश्य रक्त नहंी बहता है। वहीं दांतों को चमकाने तथा मसूड़ों के आपरेशन एवं मरम्मत से बेहद अधिक कारगर तकनीक है।
* यह धारणा है कि भटा , लौकी तथा कुछ अन्य सब्सिजां खाने से दांतों में दर्द होता है, इसी तरह दांत की मशीन द्वारा सफाई करने पर दांत हिलने लगते है ,ऐसा क्यों?
** यह भ्रामक बाते है। कुछ खाने से दांत का दर्द नहंी होता है। दरअसल सफाई से भी दांत हिलते है, यह भी भ्रामक धारणा हैं।
* क्या दांतों के इंफैक्शन तथा मसूड़ों की बीमारी से कैंसर होता है?
** मुख कैंसर का मुख्य कारण तम्बाखू, सिंगरेट ,पान -गुटखा और शराब पीना होता है। लाखों में एक मामले में  ऐसे होते है जो कि पाइरिया अथवा मुंह के इंफैक्शन अथवा दांत सड़ने के कारण कैंसर होता है। दरअसल कोई दांत ऐसा नुकीला  होता है जिससे  मुंह का  कोई हिस्सा छिलता रहता है तो वहां कैंसर की संभावना जरूर बन जाती है।
* कोई यादगार केस?
** एक महिला मेरे पास आई थी। जिसके दो दांत के बीच गैप था तथा उसमें उसकी जीभ फंसा करते थी। परिणाम स्वरूप जीभ में बड़ी विकृति आ गई थी जिसको लेजर से आॅपरेट किया गया। इसी तरह नकली दांत लगाने वाले एक मरीज के मसूड़े में आवश्यकता से ज्यादा  ग्रोथ हो गई थी जिसको आॅपरेट किया गया।
* दांतो की विकृति का क्या उपचार है?
** समय रहते दंत रोग चिकित्सक से दांतों की विकृति दुरूस्त करानी चाहिए। इससे दांत बाद में बीमारी का खतरा कम हो  जाता है। स्वस्थ्य दांत के लिए विकृति हीन दांत होना चाहिए और दूसरा उसकी सफाई  सबसे आवश्यक है।



नर्मदा का बढ़ता प्रदूषण छिपाने की कोशिश


* बढ़ते प्रदूषण के चलते  विभाग ने जांच का बदला  तरीका ा
* नर्मदा के किनारे धड़ल्ले से हो रहे निर्माण



 जबलपुर। नर्मदा नदी के प्रदूषण की जो रिपोर्ट तैयार की गई  है, उसमें नर्मदा का प्रदूषण बढ़ने के बजाए घट गया  है। चौकिए नहीं नर्मदा एक साल में क्लीन नहीं हुई है, वरन सैम्पल लेने की बाजीगरी का कमाल दिखाया गया है। वहीं इस मामले को लेकर एनजीटी में एक याचिका के चलते नर्मदा जल का  फिर से परीक्षण करने के निर्देश प्रदूषण नियंत्रण मंडल को दिए है।
 मालूम हो कि देश में कुछ ही नदियां भारी प्रदूषण से बची हैं जिसमें नर्मदा भी एक है किन्तु अब नर्मदा नदी तेजी से प्रदूषित हो रही है। उनके आसपास े होटल, रिसोर्ट, उद्योग , फार्म हाउस तथा कालोनियों का निर्माण तेजी से हो रहा है। किनारे खेती में अंधाधुंध कीटनाशक का उपयोग हो रहा है।  आबादी की गंदगी  तेजी से नदी में जहर घोल रही है।  नर्मदा के किनारे जिनके बड़े-बड़े निर्माण हो रहे है,  करोड़ों की संपत्तियां नर्मदा के किनारे जिन लोगों ने खड़ी की है, दरअसल उसमें बहुत से लोग बड़े राजनेता और रसूकदार लोग हैं , उनके लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट ढाल बन जाएगी।

पीने योग्य नहंी है पानी
आज भी बिना ट्रीटमेंट प्लांट के नर्मदा नदी में जबलपुर तथा आसपास के इलाकों में दर्जनों गंदे नाल मिलते है। यही हाल नरसिंहपुर और होशंगाबाद तक है। नर्मदा का पानी अब पीने योग्य नहंी रह गया है।
500 से अधिक फार्म हाउस
जबलपुर मेंं ही भेड़ाघाट, ग्वारीघाट, भटौली, लम्हेटा घाट, तिलवाराघाट में नर्मदा नदी के किनारे 500 से अधिक फार्म हाउस हंै।  जिनमें  जहां कीटनाशक सहित अन्य घातक रसायन बागवानी के लिए उपयोग हो रहे है। नर्मदा नदी के किनारे 160 मीटर तक निर्माण न होने के बावजूद  कई मंजिला इमारतों का निर्माण हो गया है। अब भी नदी के किनारे  कॉलोनी और अपार्टमेंट निर्माण की अनुमति मिल रही है लेकिन ग्राम एवं नगर निवेश द्वारा  गंदे पानी के बहाव की दिशा पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
पिछले साल था घातक  प्रदूषण
जानकारी के अनुसार वर्ष 2013 -14 में नर्मदा नदी के किनारे से साल में दो बार प्रदूषण की जांच के लिए सैम्पल लिए गए थे। इन सैम्पल के बाद जो रिपोर्ट आई थी, उसमें बीओडी का स्तर 2 एमएम से उपर था। यानी के बी ग्रेड का पानी नर्मदा नदी का था। इस पानी को बिना शुद्ध किए पीना घातक था। नर्मदा में बढ़ते प्रदूषण को चिंताजनक बताया गया था। वहीं इस वर्ष पीने योग्य हो गया है। वर्ष 2014-15 में नर्मदा नदी के प्रदूषण के लिए जब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सैम्पल लेकर जांच की तो नर्मदा नदी का पानी ए ग्रेड का पाया गया।
ऐसे हुआ  चमत्कार
नर्मदा नदी का प्रदूषण एक  ही वर्ष में कैसे कम हो गया तथा इसका पानी पीने योग्य कैसे बन गया? यह चमत्कार हुआ है सम्पैल लेने के बदले तरीके के कारण । वर्ष 2015 में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा नर्मदा नदी  के सैम्पल घाट के दोनों किनारो तथा नदी की बीच धार से लिए। इसके बाद तीनों सैम्पल को मिलाने के बाद एक सैम्पल तैयार किया । इसके बाद  इसकी जांच कर ग्रेडिंग की गई। परिणाम स्वरूप नर्मदा का पानी एक ग्रेड का बन गया  है।

वर्जन
नदी का प्रदूषण सिर्फ किनारे के पानी से लेना उचित नहंी था जिसके कारण इस बार से तीन चार स्थानों से सैम्पल लेने के बाद उनका मिलाकर एक सैम्पल तैयार कर उससे प्रदूषण का ग्रेड तय किया गया है और यही तरीका प्रदूषण नापने का सही है।
एमएम द्विवेदी
क्षेत्रीय अधिकारी प्रदूषण
नियंत्रण मंडल जबलपुर
बाक्स

नर्मदा जल की गुणवत्ता की जांच फिर करने निर्देश
नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के पीजी नाजपांडे ने बताया कि एजीटी ने नर्मदा जल की गुणवत्ता की फिर परीक्षण करने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निर्देश दिए है। नर्मदा नदी के प्रदूषण की जांच के लिए जो सैम्पल लिए गए हैं, उसमें गडबड़ी की गई है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की याचिका पर नेशनल ग्रीन ट्रिव्यूनल भोपाल ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नर्मदा के तीस स्थानों के सैम्पल लेकर फिर से जांच करने के निर्देश देते हुए नई रिपोर्ट 17 मार्च कर प्रस्तुत करने निर्देश दिए है। उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच का आरोप है कि एजीटी के निर्देशों के बावजूद प्रदूषण मंडल बोर्ड ने आज दिनांक तक कहीं से नए नमूने जांच के लिए नहंीं लिए  है। वहीं उपभोक्ता  मार्गदर्शक मंच का आरोप है कि पूर्व में  प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नगर निगम जबलपुर को नर्मदा को प्रदूषण से बचाने एक्सन प्लान बनाने के निर्देश देते हुए 90 दिनों का समय दिया था लेकिन ये अवधि बीतने के बाद भी नगर निगम ने कोई प्लान बनाकर कार्य नहीं किए है।

पुरातत्व सम्पदा का खजाना निकला बिनेकी में



 अब तक पुरातन महत्व की मूर्तियां
 रजिस्टर्ड तक नहीं हो पाई
दीपक परोहा
9424514521
जबलपुर। इतिहास साक्षी है, जबलपुर और आसपास के इलाके सदियों से अपनी संस्कृति,कला और वैभव में बेजोड़ रहे है। यहां कल्चुरियन कॉल फिर गोंडवाना काल में कला और संस्कृति ने उन्नति के आयाम कायम किए , जिसके भग्नावेश के रूप में समय के प्रमाण हमारी पुरातत्व धरोहर है जो यहां  बिखरी पड़ी है।  समीपस्थ ग्राम बिनेकी में तालाब में पुरातत्व महत्व की आधा दर्जन से अधिक प्रतिमाएं शुक्रवार को निकली जो 13 वीं शताब्दी की है। यहां पुरातत्व सम्पदा निकलने पर  पुलिस की मौजूदगी में गांव में इसे सुरक्षित रखवा दिया गया लेकिन पुरातत्व विभाग के किसी भी  कर्मचारी ने यहां आने की जरूरत नहीं समझी जबकि उन्हें पुलिस ने ही सूचित कर दिया था।
जबलपुर शहर से करीब 15 किलोमीटर दूर पाटन रोड़ के किनारे करीब 15 सौ आबादी वाला बिनैकी ग्राम स्थित है। ग्राम में एक अति प्राचीन तालाब है जिसके घाट आदि सब जमीन के नीचे दफन है। गांव के बुर्जगों को कहना है कि तालाब वे वर्षो से देख रहे है, वह कब का बना है ,इसकी जानकारी किसी को नहीं है।
आस्था से जुड़ गई प्रतिमाएं
ग्राम के बालक 12 वर्षीय अजय यादव शुक्रवार को सुबह तालाब से मिट्टी निकालने गया था तथा मिट्टी खोदते समय उसे एक प्रतिमा दिखाई दी तो उसने गांव के लोगों को सूचित कर दिया। ये पाषाण प्रतिमा हिन्दु देवी देवताओं की थी जो अति प्राचीन थी। इसके बाद तालाब में लोगों की भीड़ लग गई। प्रतिमा निकालने के साथ पूजा-पाठ का दौर भी शुरू हो गया। बालक का कहना है कि उसे कल रात स्वप्न आया था कि तालाब के किनारे प्रतिमा गड़ी हुई है , इस पर वह निकालने पहुंच गया। बहरहाल ये घटना गांव में चर्चा का विषय बन गई। इसके साथ की ग्रामीणों को खुदाई में और भी प्रतिमाएं मिली। घटना की सूचना मिलने पर पाटन पुलिस मौके पर पहुंच गई थी। पुलिस ने पुरातत्व विभाग को सूचित कर दिया है लेकिन कोई नहीं पहुंचा।
कोई सुध लेने  वाला नहीं
जबलपुर से करीब 13 किलोमीटर दूर गांव तेवर जो कभी कल्चुरी शासको की राजधानी त्रिपुरी हुआ करती थी। कुल्चुरी वंश के महान शासक राजा कर्ण की राजधानी हुआ करता था। तेवर सहित आसपास के करीब दर्जनों गांवों में ऐसी पुरातत्व महत्व की प्रतिमाएं मौजूद है। इस तरह सिहोरा तहसील के अनेक गांव, पाटन तहसील के अनेक गांवों में पुरातत्व महत्व की प्रतिमाएं मौजूद है। वर्षो मूर्ति तस्करों का स्वर्ग जबलपुर रहा है। यहां तक माला देवी जैसी गोंडवंश की कुलदेवी की प्रतिमा को चोरी करने कोशिश हो चुकी है। बहरहाल आज दिनांक तक गांवों के मंदिरों तथा मढियों में मौजूद पुरातत्व महत्व की प्रतिमाओं को पुरातत्व विभाग द्वारा रजिस्ट्रेशन तक नहीं किया जा सकता है। हालत यह है कि अब भी पुरातत्व संपदा की सुध लेने कोशिश नहंी की जा रही है।

वर्जन
गांव में प्रतिमा निकलने की सूचना पर पुलिस पहुंची थी तथा पुरातत्व विभाग को सूचना दी गई है। गांव वाले चाहते है कि तालाब खुदाई कर तालाब में दफन प्राचीन मंदिर को निकाला जाए तथा पुरातत्व संपदा को संरक्षित किया जाए।
आशा पटैल
सरपंच बिनैकी

डिजिलटलाइजेशन होगी देश की सभी जेल



बंदियों से मुलाकात के आवेदन आॅन लाइन

* ई-प्रिजन्स सिस्टम लागू
* रीवा, सतना और इंदोर जेल में शुरू
जबलपुर। देश की जेलों में  राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के  आतंकवादी मौजूद है जिनके भागने का खतरा और जेल से षडयंत्र बनाने की घटनाएं होती रही है। जेल से बंदियों की भागने की योजनाएं भी बनती है। जेल के बंदियों की पूरी जन्म कुण्डली के साथ ही उनसे मिलने जुलने पर वालों की जन्म कुण्डली भी जेल में मौजूद रहेगी।  आॅन लाइन मुलकात का सिस्टम ई- प्रिजेन्स प्रदेश की सभी जेलों में लागू होने जा रहा है। इसके तहत आॅन लाइन मुलाकात के तहत बंदियों से मिलने वाले लोगों का डाटा जेल कम्प्यूटर में फीड  रहेंगे।
जेलों को आॅन लाइन करने के सिस्टम के तहत सबकुछ ठीक रहा तो मुलकात की  आॅन लाइन निगाह भी होने लगेगी। डीजीपी सहित तमाम अधिकृत  एजेंसी आईबी  देख सकेंगे कि बंदियों से मुलाकात करने कौन हो आ रहा है। अनेक जेलों में सीसीटीवी कमरे लगे है जिससे मुलाकात पर भी आॅन लाइन नजर रखना संभव हो गया है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार केन्द्र सरकार की एनआईसी योजना के तहत सेंट्रल जेलों में सजा काट रहे कैदियों से उनके परिजनों -मित्रों से मुलकात की व्यवस्था आॅन लाइन की जाए। इसके लिए अगले वित्त वर्ष में प्रदेश की सभी जेलों को भरपूर बजट दिया जाएगा जिससे कम्प्यूटर सहित अन्य सामग्री उपलब्ध होगी। इस योजना के तहत जेल में मुलाकात करने पहुंचने वाले समस्त व्यक्ति को तत्काल ही फोटो, पता ठिकाना, अधारकार्ड , आईडी सहित तमाम जानकारी फीड होगी। उनकी मुकाकात संबंधी आवेदन तथा मंजूरी की मानीटिरिंंग आॅन लाइन से मुख्यालय भोपाल सहित दिल्ली व अन्य निर्धारित स्थलों में जुडे  अधिकारी कर सकते हैं। पायलट प्रोजेक्ट के तहत सतना, रीवा तथा इंदौर जेल में मुलाकात आॅन लाइन हो चुकी है।
सतना में समस्त रिकार्ड फीड
सतना में समस्त बंदियों के रिकार्ड के साथ उनके मुलाकात करने आने वाले बंदियों का पूरा रिकार्ड साफ्टवेयर में डाला जा चुका है। यहां दिसम्बर 2015 से आॅन लाइन मुलाकात आवेदन पर विचारण होने लगा है।  जेल अधीक्षक शेफाली तिवारी ने बताया कि डीजीपी वीके सिंह का प्रयास है कि समस्त जेलों का डिजिटलाइजेशन होए । इसके लिए तेजी से जेलों में कार्य चल रहा है। सतना जेल को डिजिटलाइजेशन में मुलकात आॅन लाइन करने के लिए जनवरी 2015 से तमाम रिकार्ड कम्प्यूटर में लोड करने का काम किया गया जो पूरा कर लिया गया है और दिसम्बर 2015 से मुलकात आॅन लाइन मंजूद होने लगी है। इसी तरह रीवा जेल में तेजी से काम चल रहा है।
आॅन लाइन आवेदन
केन्द्रीय जेल में मुलाकात करने वाले का डॉटा जेल कम्प्यूटर में मौजूद होने पर बंदी तथा उनके परिचति कहीं पर भी बैठ कर मुलाकात का आवेदन कर सकेगे तथा उनकी आॅन लाइन मुलाकात की तरीख तथा समय तय हो जाएगी। इसके कारण मुलकात के लिए आवेदन तथा अर्जी लगाने के लिए परिजनों को नहीं आना पड़ेगा।
बाक्स
बंदियों की जन्मकुण्डली बताएगी
केलोस्कर मशीनें लगेंगी
केन्द्रीय जेलों में डिजिटलाइजेशन के तहत जेल तथा कोर्ट में जल्द ही केलोस्कर मशीनें लगेंगी। स्क्रीन टच मशीन में बंदी का नाम फीड करते ही उसकी पूरी जन्म कुण्डली आ जाएगी। उसका आपराधिक रिकार्ड, किस कोर्ट में कब कब प्रकरण चले। कहां कितनी सजा हुई। किस जेल में कितने दिन निरूद्ध रहा। उसकी कहां कहां पेशी की तारीख तय है सबकुछ मशीन बताएगी। एटीएम मशीन की तर्ज पर इस मशीन से वकील, पुलिस , जेल अधिकारी और स्वयं बंदी रिकार्ड देख कसतें हैं। सबसे पहले ये मशीन जबलपुर केन्द्रीय जेल तथा जबलपुर हाईकोर्ट एवं जिला न्यायालय में लगाई जाएगी। इसके बाद अन्य जेलों में लगेगी।

किराए की कोख लेगी भैंसे


जबलपुर। एक उन्नत किस्त की दुधारू नस्ल की भैंसे अपने उन्नत नस्ल के बच्चों का जन्म देने के लिए अब किराए की कोख का इस्तेमाल करेगी। यह बात सोचने में बड़ी विचित्र लगती है लेकिन नानाजी देशमुख पशुचिकित्सा विश्व विद्यालय में इस दिशा में तेजी से काम चल रहा है। यदि यह प्रयोग शतप्रतिशत सफल  रहता है तो ऐसी उन्नत भैंसे जो जीवन भर में मात्र 10-11 कफ पैदा करती थी वे किराए की कोख के माध्यम से 200 तक बच्चे पैदा कर सकेंगी। जल्द ही गाय -भैंस भी सरोगेट मदर हुआ करेंगी।

उल्लेखनीय है कि ऐसे मवेशी जो सिर्फ चारा -भोजन करते है और दूध बेहद कम देते हंै।  इनको जीवित रखना या पालना महंगा है। ऐसे डिस्कार्ड एनिमल भी इस रिसर्च के चलते अब बेहद उपयोगी साबित हो सकते है। ऐसे एनिमल को सरोगेट मदर बनाकर यानी टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक का इस्तेमाल कर उन्नत नस्ल के पशु का जन्मदाता बनाने के रूप में काम लिया जाएगा। ऐसे मवेशियों की कोख का इस्तेमाल कफ पैदा करने के लिए किया जाएगा।
पशुधन बढ़ाने अनुसंधान
भैंसों की उन्नत नस्ल बढ़ाने के लिए  दिशा में नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा महाविद्यालय में तेजी से काम चल  रहा है। अब वह  दिन दूर नहीं कि गाय-भैंस भी टेस्ट् ट्यूब एनिमल का जन्म देंगे। मालूम हो कि देश तथा विदेश में अब तक कम दूध देने वाले एनिमल  के लिए सिर्फ एक मात्र जगह कत्लगाह रही है। इसका  विशेष उपयोग नहीं पाता था लेकिन  देश में पशुधन को बढ़ाने के लिये रिसर्च में जुटे वैज्ञानिकों की मेहनत का नतीजा है कि अब ऐसे एनिमल भी उपयोगी साबित होंगे।  टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक को और अपग्रेड कर वैज्ञानिकों  द्वारा ऐसे मवेशियों को उन्नत किस्म की पशु का जन्म देने वाली फार्म के रूप में विकसित किया जाएगा। नानाजी देशमुख पशुचिकित्सा विश्व विद्यालय स्थित बायो टैक्नॉलाजी सेंटर मे राष्ट्रीय कृषि विकास परियोजना के तहत 3 करोड़ की लागत से  रिसर्च कार्य चल रहा है। यह प्रयोग भैंसो पर किया जा रहा हैै।
ये है  तकनीक
अनुपयोगी भैंस जो कि दूध कम देती है, उनके गर्भ (कोख )में फर्टीलाइज  ओवम  प्रविष्ट कराया जाता है। इसके पूर्व एक उन्नत नस्ल की भैंस से अल्ट्रा साउंड गाइडेड ओवम पिक अप टेक्नीक के माध्यम से उक्त भैंस की  ओवरी ं से ओवम हासिल कर  एक परखनली में एकत्र किया जाता है। इसके बाद इन ओवम को लैब में उन्नत नस्ल के भैसा यानी पाडा के   सीमेन से फर्टीलाइज किया जाता है। इस तरह से फर्जीलाइज ओवम  यानी भू्रण  को ग्राहता मादा पशु (भैंस)  के गर्भ में प्रविष्ट किया जाता  है।
हर साल 15-20 बच्चों का जन्म
इसी रिसर्च का महत्वूर्ण  पहलू यह  है ओवम डोनर एनिमल यानी  उन्नत नस्ल की भंैस के
साल में 15-20  कॉफ पैदा होंगे। । यह जरूर है कि उनके बच्चे किसी अन्य अनुपयोगी भैंस की कोख में  पलेेंगे।  एक उन्नत नस्ल की दुधारू  भैंस अपने पूरे जीवन काल में लगभग 10 बच्चों को जन्म देती है  लेकिन इस नई तकनीक से बिना गर्भधारण किए वह 200 बच्चों की मां बन सकती है। 

शहड़ोल आईजी पुलिस कर्मियों के प्रति संवेदनशील



 अधिनस्त पुलिस कर्मियों को अधिकारी प्रताड़ित न करें
 

जबलपुर। शहडोल के आईजी डीके आर्य अधिनस्त पुलिस कर्मियों खसतौर पर सिपाही और हवलदार के वेल फेयर के लिए काफी संवेदनशीलता का प्रदर्शन कर रहे है । हाल ही में उन्होंने निर्देश दिए थे कि प्रत्येक पुलिस कर्मियों को उनके बच्च्चों , उनके स्वयं के जन्म दिन तथा उनके घर में होने वाले मांगलिक कार्य अथवा अन्य दुखद घड़ियों में छुट्टी दी जाए। जरूरत के मुताबिक उनके स्वास्थ्य संबंधी अवकाश दिया जाए। इससे आगे बढ़कर उन्होंने डिंडौरी जिलें में दौरे के दौरान  आदेश जारी किए है कि वरिष्ठ अधिकारी अपने अधिनस्त पुलिस कर्मियों को प्रताड़ित करने की कोशिश न करें।
दरअसल डीके आर्य पिछले दिनों डिंडौरी जिला में वर्षिक दौरे पर थे। यहां उन्होंने जहां  पुलिस कर्मियों से मुलकात कर बातचीत की। इस दौरान उन्हें पता चला कि बल की कमी तथा अन्य कारणों का हवाला देकर अधिकारी छोटे पुलिस कर्मियों को प्रताड़ित कर रहे है।  इस पर उन्होंने तत्काल ही एक फरमान जारी कर दिए कि किसी भी पुलिस कर्मी को वरिष्ठ अधिकारी किसी भी तरह से प्रताड़ित नहीं करेगा। यदि उनके पास किसी पुलिस कर्मी की शिकायत आती है तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
आत्महत्या की दर बढ़ी
दरअसल पुलिस मोहकमा इन दिनों अपने यहां बढ़ रही पुलिस कर्मियों की आत्महत्या की घटनाओं से चिंतित है। हर आत्महत्या के मामले में यही तथ्य सामने आते है कि पुलिस कर्मी की  आत्महत्या की वजह विभागीय प्रताड़ना होती है, यह अलग बात है कि ये मामले पुलिस विभाग की प्रतिष्ठा के चलते दबा लिए जाते है। हाल ही में उमरिया में एक पुलिस कर्मी द्वारा खुदकुशी कर ली गई थी जिस पर उसके परिजनों ने पुलिस अधीक्षक पर प्रताड़ना का आरोप लगाया था।

वर्जन
एक पुलिस कर्मी को बिना किसी मानसिक तबाव में काम करेगा तो उसके बेहतर परिणाम आएंगे। इसी को ध्यान में रखते हुए निर्देश दिए गए है कि किसी पुलिस कर्मी पर इतना दबाव न बनाया जाए कि वह प्रताड़ना की श्रेणी में आए।
डीके आर्य
आईजी शहड़ोल
---------------------------------------------------------------

गहरी स्मृतियां दे गया वर्ष 2015


 मौसम की आफत से किसानों को खून के आंशू रूलाया
जबलपुर।  वर्ष 2015 बीत गया है। इस वर्ष ने गहरी स्मृतियां छोड़ गया है। कहीं खट्टे मीठे अनुभव भी इस वर्ष हुए है। वर्षान्त में डुमना विमानतल की लायसेंस निलम्बित होने से शहर के सभी वर्गो को विचलित किया है। वर्ष 2015 में जहां मंदी का साल भरी बाजार में जोरदार असर रहा। रियल स्टेट के कारोबार में गिरावट आई। अनेक लोगों ने रियल स्टेट के कारोबार से अपने पूजी निवेश बंद कर दिया। सोने के दाम साल में अनेक बार नीचे आए। कारोबारी  के लिए वर्ष 2015 संशय से भरा रहा है तो किसान पर मौसम आफत बरस कर टूटी। भीषण ठंड में ओला पाला ने किसानों की एक   फसल चौपट की तो दूसरी फसल पर अल्प वर्षा का कहर बरपा।
वर्ष 2015 बिदा होने के साथ गहरी स्मृतियां भी अपने साथ छोड़ कर जा रहा है। व्यापम के छलावे का दंश युवाओं के मनो में गहरा बैठा। कांगे्रस ने इस मामले को लेकर विरोध की राजनीति जोरदार तरीके से की। वर्ष में कई बार बड़े आंदोलन किए। कांग्रेस अध्यक्ष अरूण यादव एवं नेता प्रतिपक्ष का आगमन हुआ।
जान के खतरे को खौफ
 मेडीकल कालेज के डीन अरूण शर्मा की मौत का दंश शहर को झेलना पड़ा। इस मामले को व्यापमं से जोड़ा गया। आईएमए के चुनाव में डॉ सुधीर तिवारी दूसरी बार अध्यक्ष चुने गए लेकिन इसके पूर्व उन्होंने लेजर गन से पूर्व डीन  डॉ डीके साकल्ये की हत्या करने का सनसनीखेज बयान देकर तथा स्वयं की जान का खतरा होने की आशंका जाहिर कर अनेक  सवाल खड़े कर दिए जो वर्षांत तक अनुत्तरित रहे।
विकास के द्वारा खुले
वर्षो से कछुआगति से गेज परिवर्तन के काम को अचानक गति प्रदान की गई। इसके चलते नेरोगेज ट्रेनों को बंद करने का सिलसिला शुरू हुआ। जबलपुर से बालाघाट चलने वाली सतपुला एक्सप्रेस बंद हो गई। हाउबाग स्टेशन बंद  हो गया। हाउबाग से ग्वारीघाट तक रेलवे लाइन और उसकी जगह खाली पड़ी है। इस जगह को लेरक नगर निगम ओर पमरे की अपनी योजनाएं है।  लेकिन इस वर्ष इसपर कोई फैसला नहीं हो पाया अबलत्ता अनेक योजनाओं पर चर्चाएं जरूर खड़ी हुई। बहरहाल ब्राडगेज परिवर्तन के साथ महाकौशल क्षेत्र में तेजी से विकास की संभावनाओं के द्वार खुले है। अब देखना ये है कि स्थानीय जनप्रतिनिधि इसके विकास के लिए क्या करते है।
मुख्य न्यायधीश की कोर्ट का बहिष्कार
अदालतो में अधिवक्ताओं के अांंदोलन तो यूं तो अनेक मोके पर हुए लेकिन पहली दफा इतिहास में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश की कोर्ट का बहिष्कार किया गया। इतना ही नही पहली बार महाधिवक्ता कार्यालय में तालाबंदी की गई।

पृथक रेवा खंड की मांग
वरिष्ठ अधिवक्ता आदर्शमुनी त्रिवेदी ने शहर में वैचारिक क्रांति की शुरूआत करते हुए। महाकौशल, विन्ध्याचल और बुन्देलखंड क्षेत्र की भौगोलिक एकता की बात सामने रखते हुए । पृथक रेवाखंड राज्य की मांग के लिए संघर्ष के लिए जय रेवा खंड की स्थाना की। इस संस्था के मंच तले पृथक रेवा खंड राज्य की मांग की अलग जगाने की शुरूआत हो गई है। महाकौशल सहित उससे जुडे इलाकों की नैसर्गिग सम्पदा पर क्षेत्र के हक की मांग को लेकर पृथक रेवा खंड  राज्य की मांग रखी गई  है।
साई भक्तों का मामला गर्माया
जहां शहर में कानून व्यवस्था पर पुलिस प्रशासन की अच्छी पकड़ बनी रही। नवरात्र दशहरा एवं मोहर्रम लगभग एक  तिथि में पड़ने पर साम्प्रदायिक माहौल बिगड़ने की आशंका को देखते हुए पुलिस प्रशासन ने धार्मिक गुरूओं , समाजसेवी संस्थाओं सहित सभी वर्ग को भरोसे में लेकर त्यौहार शांतिपूर्ण सम्पन्न कराया। वहंी सिवनी जिले में उपजे तनाव की आंच  से जबलपुर को महफूंज रखा गया। इसके साथ ही साई भक्तों और सनातन परम्परा को लेकर वैचारिक विवाद जरूर खड़े हुए लेकिन इसमें हिंसक पुट का कोई स्थान नहीं रहा।
नए उद्योग नहीं लगे
जबलपुर शहर की सांसद राकेश सिह सहित स्वयं मुख्यमंत्री ने मार्केटिंग की लेकिन जबलपुर में कोई बड़ा  उद्योग नहंी लग पाया। अलबत्ता आईटी कलस्टर की स्थापना के लिए बरगी हिल्स में अधोसंरचना का विकास कार्य प्रारंभ किया गया है लेकिन इसकी गति बेहद मंद है। केन्द्र सरकार द्वारा जहां रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में विदेश पूंजी निवेश 40 प्रतिशत कर दिया गया लेकिन इसके बावजूद जबलपुर में रक्षा उत्पादन के लिए कलस्टर विकसित नहीं हो पाया। प्रदेश में रक्षा उत्पादन जो नया उद्योग स्थापित होने जा रहा है, वह जबलपुर नहीं है। कुल मिलाकर यहां उद्योग धंधे के विकास की संभावनाएं वर्ष 2015 में आशा जनक नहीं रही।
गडकरी उम्मीद जगा गए
दिसम्बर माह में केन्द्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का दौरा हुआ। इस दौरे में उन्होने फ्लाइ ओव्हर तथा बायपास के लिए करीब दो हजार करोड़ की घोषणा कर शहर का तेजी से विका होने की उम्मीद जगा गई। उन्होंने बातें में यह भी कह गए है कि जबलपुर से इंग्लैड के लिए वायु सेवा के द्वारा मै ट्रांसपोर्ट का काम शुरू करवा सकता  हूं। जबलपुर में नर्मदा नदी एवं बरगी बांध है। यहां अंतरराष्ट्रीय स्तर का वाटरपोर्ट बनाया जा कसता है। जबलपुर में जल परिवहन की संभावनाएं है, किन्तु अब जरूरत है जल परिवहन को विकास एवं गतिप्रदान करने यहां के राजनेताओं को प्रयास करने की जरूरत है।

डुमना रूला गया
गत 4 दिसम्बर को स्पाइसजेट का विमान रनवे से उतरने की घटना ने डुमना में सुरक्षा खामियों की कलई खोल कर रख दी है। डुमना विमानतल के विकास की बेहद जरूरते सामने आकर खड़ी हो गई। डुमना विमानतल का लायसेंस निलंबत हो गया है और तमान उड़ाने बंद होने से जबलपुर  का नाम हवाई नक्शे से फिलहाल कटा है। जरूरत है कि जबलपुर को बेहतर तरीके से एयर कनेक्टिविटी से जोड़ा जाए जिससे बडेÞ उद्योग घरानों की जबलपुर में पहुंच आसान होए और विकास की संभावनाए  बनी रहे।

डिंडौरी से मानव तस्करी का मामला


दो बालाएं मिली तीसरी का सुराग नहीं
जबलपुर। पड़ोसी आदिवासी बाहुल्य जिले डिंडौरी और मंडला में लगातार आदिवासी बालाओं की तस्करी की घटनाएं प्रकाश में आ रही है। पिछले दिनों मानव तस्करी में लिप्त दो लोगों को पकड़ा गया तो तीन बालाओं के अपहरण का  खुलासा हुआ। उनको कामधंधे में लगाने के बहाने दिल्ली लेजाकर बेच दिया गया जिसमें से दो लड़किया तो बरामद हो गई है लेकिन तीसरे का कोई सुराग नहंी लगा है।
जानकारी के अनुसार समनापुर के ग्राम हल्दी करेली निवासी शिवकुमार सिंह ने गांव की तीन बहलाफुसला कर दिल्ली ले गया। वहां उसने मानव तस्करी करने वाले दलालों के हाथों में सौप कर भाग गया। इन तस्करों के चंगुल से बचकर आई दो किशोरियों ने शिव कुमार की करतूत का पर्दाफाश किया लेकिन उक्त युवतियों के  साथ गई नाबालिग 17 वर्षीय माया बाई का कोई पता नही चल पा रहा है। उसकी तलाश में पुलिस पार्टी दिल्ली की खाक छान कर लौट आई है।
बताया गया कि लापता माया बाई की मां  का निधन हो चुका है तथा माया बाई तथा उसकी बहनो को छोड़ कर उसके पिता शंकर लापता हो गए  है। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। समाज में माया की तीन बहनों की शादी हो चुकी है, माया बहनो में अकेली रह गई थी। इसक फायदा उठाकर दलाल ने उसे बहला फुसला लिया।

अपहरणकर्ता  लापता
लड़कियों की मानव तस्करी का मामला प्रकाश में आने के बाद से दलाल फरार  है जिसकी पुलिस भी तलाश कर रही है। दिल्ली से लौट कर आई लड़कियों का कहना है कि उनको दिल्ली में सिकी दीपिका नामक महिला के पास बेच दिा गया था। दीपिका  ने किसी के पास माया को भेजा था, इसके बाद वह लौट कर नहीं आई। इस मामल में समनापुर थाने में माया कि लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कराई गई है। पुलिस शिव कुमार तथाउसके पिता अमर सिंह की तलाश कर रही है।

वर्जन
इस मामले  में एफआईआर दर्ज कर मामले की जांच पड़ताल की जा रही है।
संदीप मिश्रा
एएसपी डिंडौरी

प्रदेश में निकल रहा 2 लाख टन बायो मेडिकल वेस्ट



*  कचरा प्रबंधन के नहीं पुख्ता इंतजाम
 एनजीटी ने भी संज्ञान में लिया मामला

जबलपुर। मध्य प्रदेश में प्रतिमाह करीब 3 लाख टन मेडिकल वेस्ट  निकलता है जिसमें अस्पतालों से निकलने वाले जैविक कचरे भी शामिल है। इसके निष्पादन के लिए जो प्रदेश में संसाधन है , उससे मात्र 1 लाख टन चिकित्सीय कचरे का निपटारा होता है जबकि शेष कचरे का अवैज्ञानिक तरीके से इस्तेमाल हो रहा है जो जानलेवा संक्रामक बीमारियों का कारण बन रहा है। देश के दिल् ली एवं मुम्बई जैसे महानगर भर अपने मेडिकल वेस्ट निवटानें के लिए जागरूक है , इसके बावजूद इन महानगरों में अज्ञात बीमारियों का हमला होता रहता है। इसकी वजह मेडिकल वेस्ट मुख्य समझा जाता है।
स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश में तकरीबन 3 हजार शासकीय एवं अशासकी हास्पिटल, स्वास्थ केन्द्र तथा निजी हास्पिटल हैं। इनसे प्रदेश भर में महीना भर में करीब 2 लाख टन मेडिकल वेस्ट निकलता है। इस मेडिकल वेस्ट के निपटारे के लिए अब तक कोई भी ठोस उपाय नहीं किए गए है।
 प्रदेश के भोपाल, इंदौर, जबलपुर तथा ग्वालियर जैसे बड़े शहरों मे नर्सिग एवं हास्पिटल एसोसियेशन तथा स्थानीय नगरीय निकाय के प्रयास के अब हास्पिटलों का कचरा खुले में तथा नगरीय ठोस अवशिष्ट के साथ मिलाकर फेकना बंद हो गया है किन्तु यहां अब भी निजी एवं शासकीय हास्पिटल  अपने तरीके से इन कचरे का निष्पादन कर रहे है लेकिन पूरे अवैज्ञानिक तरीके से निपटारा हो रहा है।
क्षमता का अभाव
जानकारी के   अनुसार जहां जबलपुर के मेडिकल कालेज में इंसीनिरेटर लगाया गया था जो बिगड़ने के कारण लम्बे अर्से  से बंद है। इसके अतिरिक्त नर्सिंग होम एसोसियेशन के प्रयास से एक निजी कंपनी ने कठौदा में इन्सीनिरेटर लगाया है लेकिन इसकी क्षमता बेहद कम है तथा जितना मेडिकल वेस्ट निकलता है उसका आधा ही नष्ट हो पाता है।
 कबाड खाने पहुंच रहा
सूत्रों की माने तो मेडिकल वेस्ट में बचे हुए बचे  इंजैक्शन, आधे उपयोग हुए डैक्ट्रोज तथा अन्य दवाइयों की प्लास्टिक बोतलों की दवाइयां कबाड़ियों के पास गुपचुप तरीके से पहुंच जाती है। बच्ची दवाइयां आदि नाली में बहा दी जाती है तथा प्लाटिक के बोतल तथा अन्य डिस्पोजल आइटम एकत्र कर रिसाइक्लिंग के लिए फैक्ट्री में पहुंच जाते है।
इसी तरह सीरिंज सहित अन्य मैटेलिक डिस्पोजल आईटम भी कबाडियों के माध्यम से रिसायक्लिंग के लिए पहुंचते है। जानकारों का कहना है प्लास्टिक संबंधी मेडिकल डिस्पोल को अमूमन नष्ट करना ही इसका सही निस्पादन है किन्तु ऐसा हो नहंी रहा है। इसी अस्पतालों से निकलने वालो कॉटन तथा जैविक अवशिष्ट को सुरक्षित तरीके से जलाने के जररूत है किन्तु यह अमूमन गड्ढों में गाड़ा जा रहा है जिससे भूमिगत जल प्रदूषित होने का खतरा  बढ़ा  है।
कहां कितना कचरा
जबलपुर- डेढ सौ टन प्रतिमाह
इंदौरा    -   दो से ढाई सौ टन प्रतिमाह
भोपाल-  डेढ से दौ सौ टन प्रतिमाह
ग्वालियर- सौ से सवा सौ टन प्रतिमाह  

पैथौलाजी से बेहिसाब वेस्टेज
प्रदेश भर में विभिन्न पैथोलाजी सेंटरों, डेंटल क्लिनिक सहित फिजियो थैरेपी सेंटरों से भी बड़ी मात्रा में मेडिकल वेस्टिेज निकल रहे है। इनके निपटारे की समस्या तेजी से बढ़ती जा रही है।

नोटिस जारी हुए है
इस मामले में मैने स्वयं एक जनहित याचिका एनजीटी में दायर की थी। इस मामले में और भी कई याचिका एनजीटी में विचाराधीन है। वहीं स्वयं एनजीटी ने इसे संज्ञान में लिया है, सभी याचिकाओं पर एक  साथ विचारण चल रहा है। मध्य प्रदेश प्रदूषण मंडल, प्रदूषण मंत्रालय सहित अन्य विभागों को नोटिस जारी किए गए है।
मनीष शर्मा
नागरिक उपभोक्ता मंच, याचिकाकर्ता

मेडिकल वेस्ट को लेकर एनजीटी में याचिका विचाराधीन है। मेडिकल वेस्ट के निपटारें के लिए लगातार जागरूकता लाने के साथ वर्कशाप आदि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा चलाए जा रहे है। कहीं मेडिकल वेस्ट खुले में तथा अवैधानिक तौर पर नष्ट करने की जानकारी मिलने पर हम एक्शन भी लेते है।
एसएन द्विवेदी
क्षेत्रीय अधिकारी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जबलपुर

नक्सली क्षेत्र में काम करना बड़ी चुनौती का कार्य



 नीरज सोनी
 एएसपी बालाघाट

सन 2002 बैच के डीएसपी नीरज सोनी वर्तमान में बालाघाट एएसपी के पद पर कार्यरत है। यहां आदिवासियों के पेड़ो की अवैध कटाई एवं जंगल के संरक्षण के लिए चल रही बहुचर्चित टीपी घोटाले में एसआईटी के प्रभारी है। आदिवासियों की जमीन से करीब 1 अरब की लकड़ी काटकर खुदबुर्द किए जाने के मामले पर गंभीर पड़ताल कर रहे पुलिस अधिकारी श्री सोनी इसके पूर्व बैतूल, रायसेन, होशंगाबाद तथा  छिंदवाड़ा जिले में पदस्थ रह  चुके है उनका कहना है कि नक्सली क्षेत्र में पुलिस की ड़्यूटी करना चुनौतीपूर्ण कार्य है। पुलिस को निष्पक्ष एवं न्याय प्रिय होना बेहद आवश्यक है, पुलिस के  चरित्र एवं कार्य का प्रभाव नक्सलबाद को बढ़ावा या फिर नियंत्रण करने में सहायक होता है। हमारे संवाददाता दीपक परोहा की श्री सोनी से हुई बातचीत के अंश-
प्रश्न- सामान्य जिलों की अपेक्षा नक्सली क्षेत्र में पुलिससिंग में क्या अंतर आ जाता है?
जवाब- नक्सली क्षेत्र में काम करना पुलिस के लिए चुनौती का कार्य है। पहला तो यहां पुलिस को हरवक्त अलर्ट रहने की जरूरत है। पुलिस को सावधानी के साथ ही जागरूक भी होना पड़ता है। पुलिस को पूरा प्रयास करना पड़ता है कि आदिवासी अथवा अन्य पीड़ित उसके पास आए तो वह संतुष्ट होए। उसे न्याय मिले, इससे उसका शासन-प्रशासन पर विश्वास बनेगा। यदि ये भरोसा हम खोते  है तो नक्सली अपनी विचारधारा से उन्हें प्रभावित करेंगे।
प्रश्न- पुलिसिंग किस तहर की होना चाहिए?
जवाब- गरीब जनता, आदिवासियों और दूर दूराज के गांवों में भी पुलिस का सतत संपर्क बनाए रखना पड़ता है। इसके लिए लगातार भ्रमण एवं गश्त की जरूरत पड़ती है। लोगों से संपर्क रखने के साथ ही उनकी जरूरतों एवं सुखदुख में सहभागी होना पड़ता है। समय समय पर समुदायिक पुलिसिंग के कार्य करने पड़ते है।
प्रश्न- ऐसे कौन से कार्य पुलिस कर रही है।
जवाब- शासन की लाभकारी योजनाओं को इन गरीब तक पहुंचाने के लिए पुलिस एक सशक्त सेतु का काम कर रही है। समय समय पर गांवों में कैम्प लगाकर समाजसेवी संस्थाओं के माध्य से कम्बल वितरण , दवाइयां वितरण, स्वास्थ्य कैम्प का कार्य किया जाता है। इसके अतिरिक्त क्षेत्र के विद्यार्थियों एवं युवाओं  को रोजगार के लिए सलाह तथा शासकीय एवं निजी कंपनियों में नौकरी हासिल करने के लिए आवश्यक मार्ग दर्शन आदि दिया जा रहा है।
प्रश्न- पुलिस की कोई ऐसी योजना जिससे पुलिस छबि में निखार आए?
जवाब-आईजी द्वारा शिक्षा-सुरक्षा योजना शुरू की गई है, इस योजना के तहत पुलिस क्षेत्र में सुरक्षा का  माहौल बनाने जबदस्त पुलिसिंग कर रही है। अपराध की दर तेजी से नीचे लाया जा रहा है। गांवों को अपराध मुक्त करने प्रयास जारी है। इसके साथ ही गांवों में शिक्षा व्यवस्था पर ुपुलिस की मानीटरिंग चल रहीे है। विद्यार्थियों को एजूकेशन के लिए गाइड किया जा रहा है। पुलिस की इस योजना से पुलिस की छबि में काफी निखार आया है। 

प्रदेश में 66 हजार लोगों की मौते होती है तम्बाखू से



आदेश के छह माह बाद भी नहीं
 बन पाए स्कूल नो टोबैको जोन
जबलपुर। प्रदेश में तम्बाखू के सेवन से प्रतिवर्ष 66 हजार लोगों की मौत हो रही है। तम्बाखू के नए एडिक किशोर एवं युवा वर्ग ही मुख्य होते है। तम्बाखू से युवा पीढी को दूर रखने के लिए स्कूलों को नो टोबैको जोन बनाने के लिए लोक शिक्षण संचालनाल ने आदेश जारी किए गए। इसके लिए एनजीओ का सहयोग भी लिया जा रहा है लेकिन इस तमाम आदेश  एवं निर्देश के छह माह बीतने के बाद भी प्रदेश के शत प्रतिशत विद्यालय तम्बाखू मुक्त नहीं हो पाए। स्कूला परिसर में बिड़ी सिगरेट एवं तम्बाखू के पाउच मिल रहे है और यहां तम्बाखू के सेवन हो रहे है। स्कू ल परिसर से लगी गुटका तम्बाखू की दुकाने मौजूद है।
  प्रदेश के अधिकांश देहाती क्षेत्रों में स्थित स्कूलों के शिक्षक बच्चों के सामने ही खैनी खा रहे है। बच्चों को बिड़ी पान की दुकान में भेज कर सिगरेट मंगाया जाता है। स्कूलों के आसपास पान-गुटके की दुकानें मोजूद है।
क्या है आदेश
लोक शिक्षण मध्य प्रदेश के आयुक्त डीडी अग्रवाल द्वारा 6 जून 2015 को प्रदेश  के समस्त संभागीय आयुक्त संचालक लोक शिक्षण एवं डीआईओं को निेर्देश जारी परिपत्र में कहा गया कि युवाओं एवं बच्चों में तम्बाखू उत्पादों का बढ़ता उपयोग चिंताजनक विषय है। ग्लोबल यूथ टोबैको सर्वे 209 के अनुसार देश में 13 से 15 वर्ष की आयु के 14 प्रतिशत बच्चे तम्बाखू के शिकार है। कम आयु से तम्बाखू की लत लगने पर उनका छोड़ना असंभव सा हो  जाता है। पत्र में कहा गया कि बच्चों को तम्बाखू की पहुंच से दूर रखने के लिए तम्बाखू नियंत्रण अधिनियम , प्रदाय एवंवितरण 2003 की धारा 3 एवं 6 में भी तम्बाखू मुक्त शिक्षण सुनिश्चित करने का प्रावधान है। इसके तहत स्कूल से100 गज के दायरे में तम्बाखू बिक्री प्रतिबंधित है। समस्त डीईओं को शिक्षण संस्थाओं को तम्बाखू मुक्त काने कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए है। स्कूल नो टोबैको जोन बनाने की कार्रवाई डॉ सोमित रस्तोगी को देने के निर्देश भी दिए गए है।
17 प्रतिशत आबादी सेवन कर रही
ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे के मुताबिक प्रदो में 39.5 प्रतिशत वयस्क तम्बाखू उत्पादन का प्रयोग कर रहे है। प्रदेश में 19 प्रतिशत महिलाएं भी तम्बाखू का सेवन करती है। प्रदेश की कुल आबादी में 17 प्रतिशत लोग धू्रमपान कर रहे है। अधिकांश युवा वर्ग को 15 वर्ष की आयु से तम्बाखू की लत लगती है।


 भारत सरकार के उपभोक्ता संरक्षण विभाग द्वारा तम्बाखू मुक्त विद्यालय अभियान चलाया जा रहा है। एक सर्वे के मुताबिक स्कूलों के आसपास ही 60 प्रतिशत तम्बाखू की गुमटिया आदी मौजूद है। अभी स्कूलों में अभियान के पहले चरण में प्र
ाचार्यो आदि को जागरूक किया जा रहा है तथा उन तक सूचाएं पहुंचाई गई है। इस अभियान को एनजीओं की मदद से संचालित किया जा रहा है।
डॉ सोमिल रस्तोगी
 प्रभारी , तम्बाखू मुक्त विद्यालय अभियान






आंतें कुकून में


स्वास्थ्य जगत में दुर्लभ बीमारियों में एक इंटस्टाइन ककूनिंग सिंड्रोम

 * छोटी आंत ककून में थी कैद, चार घंटे चला आपरेशन


 पेट दर्द , कब्ज  और दस्त जैसी पेट की बीमारियों से अमूमन हर भारतीय व्यक्ति प्रभावित होता रहता है। पेट की बीमारियां आम होती है तो कुछ दुर्लभ भी होती है। अमूमन पेट की समस्या से पीड़ित व्यक्ति वर्षो परेशान रहता है और डॉक्टर के इलाज और दवाई का असर भी नहंी होता है। डॉ मुकेश श्रीवास्तव के पास राकेश झारिया नामक युवक इलाज के लिए पहुंचा, जिसकी भूख लगभग खत्म हो गई थी। खाना बंद था। उसकी बीमारी सोनोग्राफी तथा तमाम टेस्ट में पकड़ी नहीं जा रही थी। आखिर क्या वजह था कि  राकेश झारिया का पाचनतंत्र  काम नहीं कर रहा था, एक दुर्लभ बीमारी ककूनिंग की आशंका के साथ डॉ मुकेश श्रीवास्तव ने अपने सहयोगी चिकित्सकों के साथ उसका पेट खोला। युवक की छोटी आंत ककून में कैद होकर गच्छे की तरह उलझी हुई थी। इसको सुलझाना  ही बड़ी समस्या थी। चार घंटे के लम्बे आॅपरेशन के बाद उसकी आंतें सही की गई। अब राकेश झारिया स्वस्थ्य है।
 -----------------------------------------------------
डॉ मुकेश श्रीवास्तव ने बताया कि उनके लम्बे मेडिकल कैरियर में इस तरह की दुर्लभ बीमारी के मात्र दो केस ही आए है। एक कुमारी आभा तथा दूसरा राकेश झारिया है। लाखों लोगों में एक को यह बीमारी होती है। फिलहाल इस बीमारी का कारण स्पष्ट नहीं हैं। उस बीमारी होने का कोई निश्चित कारण भी ज्ञात नहीं है।
डॉ श्रीवास्तव का कहना है कि इस बीमारी को इंटस्टाइन ककूनिंग सिंड्रोम के रूप से जाना जाता है। जिस तरह रेशम का कीट एक ककून के भीतर दबा सिमटा पड़ा रहता है। यह उसकी सुप्तावस्था होती है। बाहरी ककून उसकी खोल बन कर रह जाता है। ठीक इसी तरह पाचन तंत्र का अहम हिस्सा छोटी आंत जो कि पांच से छह मीटर तक की होती है एक निश्चित स्थान पर सिमट कर एकत्र हो जाती है ओर उसके उपर एक झिल्ली ककून की तरह चढ़ जाती है।
छोटी आंते ककून के अंदर आने का पांचन संबंधी गति बेहद सुस्त पड़ जाती है। परिणाम स्वरूप मरीज का पाचन तंत्र बुरी तहर गडबड़ा जाता है। झिल्ली के भीतर आंत होने के कारण बुरी तहर पेट में दर्द से मरीज पीड़ित होता है। यदि जबदस्ती खाना खाता पीता है तो पेट दर्द ,उल्टियां अथवा दस्त भी होने लगते है। कुल मिलाकर बीमारी से व्यक्ति का जीवन नरक बन जाता है। यह बीमारी बेहद दुर्लभ है। छोटी आंते भी एक दूसरे से बुरी तरह उलझ कर गुच्छे की तरह कई बार हो जाती है जिसको आपरेशन के बाद चिकित्सक टीम को सुलझाना भी पड़ता है। इस बीमारी का फिलहाल एक मात्र उपाय शल्य क्रिया है। इसमें कम से कम तीन एक्पर्ट चिकित्सक की जरूरत पड़ती है। आॅपरेशन में 4 से 5 घंटे का समय लगता है।
इसी तरह कुमारी आभा अपने पेट की बीमारी से परेशान होकर जबलपुर के अनेक अस्पताल और चिकित्सकों के पास जा चुकी थी। उसकी बीमारी का परीक्षण दूर्बीन पद्धति से  किया गया तो छोटी आंत ककून के भीतर मौजूद पाई गई। इसके भी आॅपरेशन करने का निर्णय लिया गया। आपरेशन पूर्व कई परीक्षण हुए गए। आॅपरेशन के लिए  आवश्यक पैरामीटर के भीतर मरीज के पाए जाने पर उसका आॅपरेशन किया गया। यह आॅपरेशन भी सफल रहा । आभी की बीमारी जड़ से  खत्म हो गई  है और अब वह संतुलित आहार ले रही है।
 संदेश-
वर्तमान समय में फास्टफुड तथा खानपान में अनियमितता के कारण पेट संबंधी बीमारियां तेजी से बढ़ी है। समय पर थोड़ा थोड़ा ताजा एवं संतुलित आहर लेना ही पेट की बीमारी से बचाव का उपाय है। अमूमन गुदा संबंधी बीमारियों का सबसे बड़ा कारण शराब सेवन आ रहा है। शराब पीना छोड़ना ही बेहतर है।
डॉ. मुकेश श्रीवास्तव
एन्डो सर्जन जबलपुर
9827066720

नरसिंहपुर में गुड़ की मिठास साउदी अरब में


 * पूरे देश की मंडियों में छाया है नरसिंहपुर का गुड, शुगरमिल की डिमांड से दुगना हो रहा गन्ना उत्पादन


जबलपुर। नरसिंहपुर के तैयार गुड की मिठास साउदी अरब तक पहुंच रही है। यूं भी भारतीय गुड की मांग  साउदी अरब में अच्छी खासी है। इसके  साथ ही गुण उत्पादन के मामले में नरसिंहपुर जिला तेजी से उभर कर आया है। प्रदेश में सर्वाधिक गन्ना उत्पादन करने वाला जिला बन गया है। जिले के लगभग सभी 1050 गांवों में गन्ना उत्पादन हो रहा है। ं यूं तो 7 शुगरमिल है लेकिन गन्ने उत्पादन में अग्रणी जिले में डिमांड से दुगना गन्ना उत्पादन होने के कारण अब गुण्ड उत्पादन हो रहा है। लगभग सभी गांवों में 8-10 बड़ी गुड तैयार करने भट्टियां लग रही है।
उल्लेखनीय है कि कभी देश में सर्वाधिक सोयाबीन का उत्पादन नरसिंहपुर जिले में हुआ करता था लेकिन नरसिंहपुर के किसानों से उद्यौगिक उजप गन्ना का उत्पादन बढ़ा और इसके साथ ही नरसिंहपुर में आधा दर्जन से अधिक शुगर मिले स्थापित हुई किन्तु शुगरमिल संचालक और गन्ना उत्पादन कृषकों के बीच दाम को लेकर लम्बा विवाद चला है। यहां तक भाजपा नेता प्रहृलाद पटैल के नेतृत्व में किसानों ने अपनी गन्ने की फसलें जला दी। प्रदेश में गन्ना उत्पादन पर कोई बोनस भी नहीं मिल रहा है। ऐसे  में यहां के किसानों ने गुड उत्पादन का काम शुरू कर दिया है। इसके चलते नरसिंहपुर के किसान स्वयं गुड उत्पादन तेजी से कर रहे और अब नरसिंहपुर का गुड साउदी अरब में एक्पोर्ट हो रहा है।
पूरे देश की मंडियो में छाया
 नरसिंहपुर के गुड की मांग देशी मंडियों में भी जबदस्त तरीके से बढ़ी है। परिणाम स्वरूप शुगरमिल में अपना गन्ना बेचने के लिए अब नरसिंहपुर के गन्ना कृषक लम्बी लाइन कतारे नहीं लगा रहे है। भारतीय मंडी में अब तक मेरठ के गुड की सर्वाधिक मांग रहती थी, लेकिन अब नरसिंहपुर का गुड भी यहां नजर आने लगा है।
किसान खेतों में तैयार कर रहे
जानकारी के अनुसार नरसिंहपुर के एक क् िवंटल गन्ने से 9 से 10 किलो शक्कर का उत्पादन होता है , वहीं जब किसान गुड बनाता है तो 14 से 15 किलो गुड बन रहा है। वर्तमान में गन्ने का शासूकीय रेट 230 रूपए प्रतिक्विंटल है। नरसिंहपुर से मंडी के व्यापारी 2000 से 2030 रूपए क्विंटल में गुड खरीद  रहे हे। उल्लेखनीय है मेरठ सहित उत्तर प्रदेश के गुड भी मंडी में इसी रेट पर खरीदे जा रहे है।
65 हजार हैक्टेयर
जिले में गन्ने का रकवा 65 हजार हैक्टेयर है तथा प्रति हैक्टेयर 6 सौ क्टिवंटल उत्पादन है। जिले की 7 शुगर मिलों में प्रतिदिन 20 हजार मीट्रिक टन गन्ने की खपत है। नवम्बर माह के दूसरे सप्ताह से अप्रैल माह तक शुगर मिलों में गन्ने की खरीददारी चलती है। जिले की सभी शुगर मिलों में गन्ना की पूर्ण उपलब्धता है। इसी तरह गुड उत्पादन की करीब 7-8 हजार बड़ी भट्टियां लगती है। उल्लेखनीय है कि नरसिंहपुर के किसाने अच्छी गुणवत्ता के गुड स्वयं ही खेतों में देशी संसाधनों से तैयार कर रहे है। बड़ी कढाही और चूल्हा भट्टे पर गन्ना के खेत से निकलने वाली पत्तियां आदि को ईधन के रूप में उपयोग कर गुड तैयार कर रहे है। नरसिंहपुर के गुण की मिठास के साथ ही इसके जमने और नमी कम सोखने के गुण ने यहां के गुड की मांग तेजी से बढ़ाई है।
देश में उत्पादन गिरा
इस वर्ष अल्प वर्षा के कारण गन्ना उत्पादन क्षेत्र में गन्ने का उत्पादन गिरा है लेकिन नरसिंहपुर के किसानों ने अपनी मेहनत और सिंचाई के दम पर सूखा जिला होने के बावजूद गन्ने का अच्छा उत्पादन किया है।
वर्जन
 नरसिंहपुर में 56 हजार हैक्टेयर क्षेत्र में गन्ना उत्पादन किया गया है। जितना गन्ना शुगर मिल में लगता है करीब उतने ही गन्ने का गुड उत्पादन हो रहा है। व्यवसायिक फसल होने के कारण जिले के किसान गन्ना का उत्पादन कर रहे है।
जितेन्द्र सिंह
उप संचालक कृषि नरसिंहपुर

एसपी गौरव तिवारी को दुर्गम सेवा पदक



नक्सली क्षेत्र में विशेष कार्य पर सरकार द्वारा सम्मानित
जबलपुर। वर्ष 2010 आईपीएस बैच के अधिकारी, बालाघाट पुलिस अधीक्षक गौरव तिवारी को नक्सल प्रभावित बालाघाट क्षेत्र में दो वर्षीय कार्यकाल में उत्कृष्ट और उल्लेखनीय कार्य के लिए दुर्गम सेवा पदक का सम्मान मिला है।  इस जांबाज पुलिस अधिकारी को ाध्यप्रदेश सरकार के दुर्गम सेवा पदक से पुलिस महानिरीक्षक डी.सी. सागर ने अलंकृत किया है।
 ज्ञातव्य हो कि 1 जनवरी 2014 को बालाघाट में पुलिस अधीक्षक के पद पर गौरव तिवारी ने पदभार संभाला था। जिसके बाद से लगातार नक्सली गतिविधियों में कमी और पुलिस के प्रति बालाघाट में लोगों का विश्वास बढ़ा है। बालाघाट में पुलिस की मान सम्मान में श्री तिवारी ने इजाफा किया। बालाघाट आगमन के बाद से नक्सली गतिविधियों पर भी न केवल अंकुश लगा है बल्कि केन्द्र सरकार ने यहां नक्सली गतिविधियों में पुलिस की मजबूत पकड़ को देखते हुए नक्सल प्रभावित बालाघाट जिले को नक्सल प्रभावित जिले की बी सूची में डाल दिया है जो बालाघाट पुलिस की एक बड़ी उपलब्धि है।
अपराध नियंत्रण में  सफल
 पुलिस अधीक्षक गौरव तिवारी के बालाघाट के दो वर्षीय कार्यकाल में ऐसे और कई उपलब्धियां है जिसमें आॅपरेशन मुस्कान के तहत जिले के विभिन्न थानों में नाबालिग बच्चों के 372 प्रकरण में धारा 363 भादवि के पंजीबद्ध किये गये। जिसमें 289 नाबालिग बच्चों को दस्तयाब कर उनके परिजनों के सुपुर्द किया गया तथा शेष 83 प्रकरणों में भी दस्तयाबी के लिए सायबर सेल की मदद से दस्तयाबी के प्रयास किये जा रहे है। यह उन्हीं का प्रयास है कि जिले मे अपराधों की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए हमारी पुलिस के नाम से एक वॉट्सअप नम्बर 7587605598 जारी किया गया है।
हमदद इकाई का गठन
 बुजुर्गो एवं नि:शक्त व्यक्तियों को सहायता पहुंचाने के लिए प्रारंभ की गई हमदर्द इकाई का गठन भी इनके मार्गदर्शन में ही किया गया। जिससे आज कई बुजुर्गों को न्याय मिला है। इन्होंने ही बाल मजदूरी एवं नाबालिग बच्चों की भिक्षावृत्ति को रोकने के लिए विशेष किशोर पुलिस इकाई का गठन किया गया है। जिसके सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो रहे है।  बालाघाट पुलिस अधीक्षक गौरव तिवारी को  दो बड़े बहुचर्चित प्रकरण फर्जी टी.पी. कांड और आर.टी.ओ. में वाहनों के फर्जीवाड़ा उजागर करने की कामयाबी मिली है। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा पुलिस विभाग के किसी अधिकारी को दुर्गम सेवा पदक से सम्मानित किया जाना एक बड़ी बात है।

वर्जन
बालाघाट पुलिस अधीक्षक गौरव तिवारी को इस सम्मान से सम्मानित किया गया है। जो पुलिस विभाग के लिए खुशी की बात है। नक्सल प्रभावित क्षेत्र में दो वर्ष की अवधि पूर्ण करने पर केन्द्र सरकार द्वारा आंतरिक सुरक्षा पदक प्रदाय किया जाता है। जिसके लिए भी अनुशंसा सहित प्रस्ताव पुलिस महानिदेशक  के माध्यम से गृह मंत्रालय भारत सरकार को प्रेषित किया गया है।
डी.सी. सागर, पुलिस महानिरीक्षक, बालाघाट रेंज

जिले मे पुलिस अधीक्षक गौरव तिवारी के किये गये प्रयास का परिणाम है कि उनके कार्यकाल में 19 नक्सलियों की गिरफ्तारी की गई। जिसमें कुख्यात नक्सली दिलीप उर्फ गुहा की गिरफ्तारी सबसे बड़ी गिरफ्तारी है। जिस पर मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र सहित छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा 27.5 लाख रुपए का ईनाम घोषित किया गया था। इसी प्रकार जंगल सर्चिंग के दौरान नक्सलियों द्वारा विभिन्न थाना क्षेत्र अंतर्गत कुल 12 स्थानों पर डम्प कर रखे गए बारूद एवं अन्य सामग्री को बरामद करने के साथ-साथ लगभग 12 स्थानों पर ही नक्सलियों द्वारा लगाए गए आई.ई.डी. को भी निष्क्रिय कराने और नक्सल उन्मूलन अभियान के अंतर्गत 02 नक्सलियों को आत्मसमर्पण करवाने में इनकी भूमिका सराहनीय रही।  पुलिस अधीक्षक गौरव तिवारी द्वारा सामुदायिक पुलिसिंग के तहत भी कई ऐसे कार्य किये गये। जिससे भी नक्सली विचारधारा पर काफी हद तक अंकुश लगा।

बच्चादानी के बजाए ट्यूब में पल रहा था बच्चा



 
    * पांच माह का बच्चा होने से बुरी तरह
     
        फट गया था ट्यूब

     * कई बोतलखून और एक घंटा लगे मृत शिशु

       को ट्यूब से निकालने में


  डॉ. निशा साहू



 स्त्री रोग विशेषज्ञ

अधीक्षक एल्गिन हॉस्पिटल
जबलपुर। रानी दुर्गावती महिला चिकित्सालय (लेडी एल्गिन हॉस्पिटल) जबलपुर की अधीक्षक ,  स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉ. निशा साहू करीब 10 वर्ष पहले दीवाली के एक दिन पहले रात्रि ड्यूटी में अस्पताल में थीं तभी उनके पास एक गर्भवती महिला सुुमित्रा बाई को लाया गया। उसको पांच माह का गर्भ था। महिला बेहोशी की हालत में थी और लगातार रक्त स्त्राव हो रहा था , चैकप करने पर यह पता चला कि उसके गर्भशय (कोख) में बच्चा नहीं है बल्कि ओवरी की  फेलोपिन ट्यूब (डिम्बवाहिनी नली) में बच्चा था तथा ट्यूब बुरी तरह से फट गई थी, जिससे जबदस्त रक्त स्त्राव हो रहा था।  तत्काल आॅपरेशन कर मृत भ्रूण नहीं निकाला गया तो उसकी मौत हो जाएगी। महिला की हालत ऐसी थी कि उसको तत्काल मेडिकल कालेज अस्पताल रेफर करने की जरूरत थी लेकिन एक समस्या यह भी थी कि तत्काल इलाज शुरू नहीं किया गया तो कुछ मिनटों में उसकी मौत हो जाती। इस विषय परिस्थिति में इमरजेंसी आॅपरेशन कॉल किया गया और महिला की जान बचा ली गई।


डॉॅॅ साहू ने इस केस के अनुभव को शेयर करते हुए बताया कि अमूमन ऐसे मामले बेहद कम होते है जिसमें कि भू्रण बच्चादानी में न बढ़ा होने के बजाए ट्यूब में ही बढ़ने लगता है। ऐसी स्थिति में गर्भपात  हो जाता है। गर्भपात  भी दूसरे तीसरे महीने में होता है। चिकित्सक अमूमन गर्भधारण करने के बाद महिला की दूसरे तीसरे महीने में सोनाग्राफी करते है और यदि ऐसी स्थिति रहती है तो उपचार भी किया जाता है।
गरीब घर की थी महिला
बीमार महिला चूंकि बेहद गरीब परिवार की थी। उसकी उम्र करीब 22 वर्ष थी। इसके चलते उसने किसी अच्छी महिला चिकित्सक से गर्भधारण करने के बाद चैकअप नहीं कराया। महिला गर्भवती हुई तो उसे पेट में सामान्य दर्द रहा करता था। महिला तथा उसके परिवार की बुर्जग महिलाओं ने यही समझा कि गर्भधारण करने के कारण पेट में दर्द रहता है। गांव-देहात में पेट दर्द से राहत के लिए वह घरेलू उपचार दिया गया था। पहले के महीनों में महिला को भी ज्यादा तकलीफ नहीं हुई किन्तु उसका ट्यूब में ही भू्रण पांच माह का हो गया तो अचानक भीषण दर्द उठने से महिला तड़पने लगी थी। भारी रक्त स्त्राव होने के साथ ही शरीर में खून की कमी के कारण बेहोशी की हालत में पहुंच गई।  महिला के ट्यूब में बुरी तरह से पांच माह का भू्रण फंसा हुआ था जो सामान्य से बड़ा था।
बेहोशी की हालत में लाया गया
परिवार वाले महिला को बेहोशी की हालत में एल्गिन हॉस्पिटल लेकर आए थे। महिला की हालत देखकर पहले तो यही निर्णय लिया गया कि इसे मेडिकल कालेज अस्पताल रेफर कर दिया जाए। उसकी एक ट्यूब बस्ट हो चुका था किन्तु सवाल यह था कि क्या महिला एल्गिन से कुछ किलोमीटर दूर मेडिकल कालेज पहुंचाया जा सकता था? डॉ साहू के अनुसार मैने अनुमान लगा लिया था कि उपचार करने में यदि आधा घंटा भी विलम्ब होेता है तो महिला की जान बचना मुश्किल हो जाएगी। महिला को सबसे पहले रक्त चढ़ाने की जरूरत थी। अस्पताल में उसके गु्रप का खून नहंी था और आसपास की लैब में खून नहीं मिल पा रहा था। काफी खोजबीन करने पर र महिला के गु्रप का खून मिल गया ओर उसे खून चढ़ाने के साथ ही आपरेशन की तैयारी की गई। भू्रण महिला के ट्यूब में काफी पीछे फंसा हुआ था। बमुश्किल भू्रण को ट्यूब से निकाला गया।  अस्पताल में भर्ती कर कई दिनों तक महिला की सेवा की गई अंतत: वह पूर्ण स्वस्थ होकर अस्पताल से गई।
कारण स्पष्ट नहीं होता
डॉ .निशा साहू का कहना है कि फर्टिलाइज ओवम कई बार फेलोपिन ट्यूब में ही क्यों फंस जाता है, इसका कोई कारण अब तक स्पष्ट नहंी है। प्रकृति ने महिला को इस तरह बनाया है कि सामान्य तरीके से वह गर्भधारण कर बच्चे को जन्म देती है लेकिन कई बार अज्ञात कारण से असामान्य स्थिति निर्मित हो जाती है।

अपराधी जन्मजात नहीं होता, परिस्थितियां बनाती है





अंजुलता पटले
  सीएसपी बरगी, जबलपुर

कोई व्यक्ति जन्मजात अपराधी नहीं होता है। समाज में उसको जो परिस्थितियां मिलती है, उसके मुताबिक वह ढलता है और अपराध की ओर अग्रसर होता है। एक पुलिस अफसर को अपराध मनोविज्ञान भी अच्छी तरह समझना चाहिए। बडेÞ से बड़े और दुर्दांत अपराधी तक अपराध की दुनिया छोड़ने तैयार हुए है। हमें अपराधी को सुधारने का प्रयास भी करना चाहिए तभी समाज अपराध मुक्त हो सकता है। आज के यंगस्टर साइबर क्राइम की ओर बढ़ रहे है, उनकी मनोवृति को दूषित होने से बचाव के लिए सभी को प्रयास करने की जरूरत है। यह कहना है डीएसपी अंजुलता पटले का। उनसे  दीपक परोहा की हुई बातचीत के अंश।
प्रश्न - महिलाओं के लिए पुलिस में क्या चुनौती है जबकि उसे पुलिस फोर्स का नेतृत्व करना होता है?
े उत्तर- मैने पीएससी देने के बाद पुलिस अधिकारी के रूप में चयनित हुई। पुलिस में भर्ती होने के बाद महसूस हुआ कि एक पुलिस अफसर की ड्यूट होती है जिसका निर्वाह करना पड़ता है। ड्यूटी यह नहीं देखती है कि सामने वाला महिला या पुरूष है। पुलिस अधिकारी के सामने अनेक चुनौतियां रहती है। कई बार तो 24 घंटे से भी ज्यादा और लगातार काम करना पड़ता है। महिला होने के बावजूद मुझे अपनी टीम का नेतृत्व करने के लिए उनके साथ रात-दिन जुटना पड़ा है।
प्रश्न- आप की कहां-कहां तैनाती रही और मुख्य चुनौती किस जिले में आई?
उत्तर- मेरी पोस्टिंग जबलपुर, एसएएफ मुरैना, डीएफ मुरैना तथा वर्तमान में सीएसपी बरगी है। सर्वाधिक चुनौती मुरैना में आई। यहां रेत एवं खनिज माफिया के खिलाफ बिना किसी दबाव एवं भय के काम करने की चुनौती थी और मैने कड़ी कार्रवाई भी की गई। इसके साथ ही  हत्या और डकैती जैसी घटनाएं मेरी अधिनस्त 7 थाना क्षेत्र में बढ़ी हुई थी जिसपर नियंत्रण कड़ी मेहनत से किया गया। मै ही एक  मात्र महिला अधिकारी अपने जोन में पदस्थ थी, इस लिए महिला अधिकारी की जहां जरूरत पड़ती थी, मुझे वहां भी जाना पड़ता रहा है।
प्रश्न- आपका कोई यादगार मामला ।
उत्तर- मुरैना में एक महिला को शादी का झांसा देकर राजस्थान में बेंच दिया गया था। राजस्थान के जिस इलाके में उसे बेचा गया था, वहां किसी व्यक्ति या महिला को खोज निकालना बेहद कम था लेकिन यह संभव हुआ। इसी तरह एक आॅनर किलर को पकड़ने की सफलता भी मिली।
प्रश्न- अपराध बढ़ने की वजह क्या समझ रहीं हैं?
जबाव- समाज ढ़ाचे में लगातार बदलाव हो रहे है। समाज में  भौतिकवादिता हावी हो रही है। इसके साथ बढ़ती जनसंख्या, घटते रोजगार आदि अनेक ज्वलंत मुद्दे है जिसके प्रभाव समाज में पड़ रहा है और अपराध भी उसी हिसाब से बढ़ रहे है, जबकि फोर्स में इसकी तुलना में कम वृद्धि हो रही है।
प्रश्न-महिलाओं के प्रति हिंसा की क्या स्थिति है?
उत्तर- दलित शोषित महिलाएं सामाज में अब बराबरी से खड़ी हो रही है। यूं तो घरेलू हिंसा के पीछे छोटे-छोटे कारण होते है, इसमें दहेज भी एक कारण है। पुलिस का प्रयास रहता है कि महिलाओं की परिवार संबंधी विवाद को सामाजिक स्तर पर ही सुलझा लिया जाए जिससे परिवार के बिखराब से बचे रहे। 

मध्यप्रदेश अवैध हथियारों की देश में दूसरी बड़ी मंडी



  प्रदेश में हथियारों की खपत के साथ बाहर बिक्री भी
* सरकार के पास नहीं कोई ठोस योजना

जबलपुर।  उत्तर प्रदेश में पिछले दिनों पुलिस ने अवैध हथियारों के अंतरराज्यीय स्तर के अपराधी को पकड़ा तो उसके पास से मध्य प्रदेश में बने 40 पिस्टल एवं माउजर मिले। पूछताछ में खुलाया हुआ कि मध्य प्रदेश में उन्नत  अवैध हथियार बनने है और उसकी सप्लाई मध्य प्रदेश सहित देश के अनेक राज्यों में होती है। इस खुलासे के बाद से मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश की एटीएस देश द्रोहियों तक पहुंचे हथियारों की टोह ले रही है। वहीं मध्य प्रदेश में जिस संख्या में आर्म्स एक्ट के मामले पंजीबद्ध हुए है उससे जाहिर हो चला है अवैध हथियार रखने के मामले में मध्यप्रदेश देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है जहां सबसे ज्यादा अवैध हथियारों की खरीद-फरोख्त की जाती है। पहले स्थान पर उत्तर प्रदेश है।

नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच ने गृह मंत्रालय और डीजीपी पुलिस मुख्यालय को पत्र लिखकर भी यह जानकारी दी है। इसके साथ ही आरोप लगाए हैं कि पुलिस प्रशासन अवैध हथियारों के इस्तेमाल पर रोक लगाने में पूरी तरह नाकाम साबित हुई है। नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच युवा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष मनीष शर्मा ने बताया कि प्रदेश के कई बड़े शहरों में बड़ी तादात में इन हथियारों का निर्माण एवं खरीद-फरोख्त की जा रही है। जिस पर सरकार और पुलिस का कोई ध्यान नहीं जा रहा। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार देश में विगत 3 वर्षों में कुल 1 लाख 64 हजार 993 अपराधों में अवैध हथियारों का इस्तेमाल किया गया था।
देश में ्र दूसरे स्थान पर
युवा प्रकोष्ठ अध्यक्ष मनीष शर्मा ने कहा कि लोकसभा में शीतकालीन सत्र के दौरान गृह राज्यमंत्री हरी भाई परिधि भाई चौधरी ने इस संदर्भ में तीन वर्षों के आंकड़े प्रस्तुत किए हैं। इसमें मध्य  प्रदेश नम्बर दो में है।

एक नजर में अवैध हथियार के प्रकरण
प्रदेश         2012        2013         2014          कुल मामले दर्ज
यूपी          26396      22822      25097       74315
मप्र           10827      12798      11595        35220
राजस्थान   4992         5304         5232       15528  

 अवैध हथियार के मामले में सजा की स्थिति

वर्ष             प. बं.          म. प्र.
2012        12 %            28 %
2013        15 %            30 %
2014         08 %           34 %

ये हैं प्रमुख शहर
 मध्यप्रदेश के आधा दर्जन शहर अवैध हथियारों के लिए प्रमुख रूप से जाने जाते हैं। खरगौन, जबलपुर, नरसिंहपुर, सागर, मंदसौर और बुरहानपुर अति संवेदनशील हैं जहां से हथियारों की खरीद-फरोख्त की जाती है। इसके साथ ही अन्य राज्यों में भी यहीं से हथियारों की सप्लाई की जा रही है। ये बात सरकार के संज्ञान में है लेकिन इसके बावजूद  सरकार के पास कोई ठोस योजना नहीं हैं।

50 करोड़ से अधिक की प्रतिबंधित दवाइयां बाजार में



    मेडिकल स्टोर्स में बिक्री हुई बंद ,उद्योग पर असर नहीं

जबलपुर। देश भर में नशे के लिए दवाइयों के बढ़ते उपयोग के कारण केन्द्र सरकार ने 350 दवाइयों को प्रतिबंधित कर दिया है। इसके चलते शहर के ही विभिन्न फर्मासिस्टों के गोदामों एवं दुकानों में 50 करोड़ से अधिक का माल जाम हो गया है। इस प्रतिबंध से दवा उद्योग से जुड़ी कंपनियों को  तगड़ा झटका लगा है। फिलहाल शहर के फार्मासिस्टों पर कोई असर नहंी दिख रहा है  किन्तु आने वाले समय में कई व्यापारियों को तगड़ा घाटे का सामना करना पड़ सकता है।
मालूम हो कि सांसद राकेश सिंह ने भी लोकसभा में नशे के लिए  दवाइयों के इस्तेमाल को लेकर प्रश्न उठाया था। इतना ही नहंीं दवा कंपनियों ने विदेश में भी धड़ल्ले से दवा की  सप्लाई की थी। यह मामला सरकार के संज्ञान में आने के बाद ही 350 दवाइयां प्रतिबंधित की गई। इससे दवा उद्योग से जुड़ी पचास से अधिक कंंपनियों को काफी क्षति पहुंची है। नामी कंपनियों ने तो मार्केट से अपना माल उठाने की पेशकश भी की है।
धीरे धीरे बंद हो रही बिक्री बंद
जबलपुर शहर में ही 50 करोड़ से अधिक की दवाएं मेडिकल स्टोर्स एवं ड्रग हाउस में भरी पड़ी है। कंपनियों ने दवाइयां वापस लेने के लिए कोई पॉलसी नहीं बनाई है, किन्तु दवा डीलरों को नामी कर्मियों ने अश्वस्त कर रखा है कि वे प्रतिबंधित दवाइयां वापस ले लेंगे तथा प्रतिबंधित दवाइयों की बिक्री रोकने के लिए भी कहा है। इसके  साथ ही प्रतिबंधित दवाइयों की बिक्री धीरे धीरे बंद होती जा रही है।
चिकित्सक अब भी लिख रहे
सूत्रों की माने तो जिन 350 दवाइयों पर प्रतिबंध लगा है लेकिन  अब भी अनेक चिकित्सक धड़ल्ले से मरीज को ये दवाइयां लिख रहे है। किन्तु मरीजों को दवाइयां नहंी मिल रही है चूंकि  फुटकर दवाइयां बेचने वाले मेडिकल स्टोर्स संचालक प्रतिबंधित दवाइयां  रखने का खतरा नहंी मोल ले रहे है।
पड़े व्यापारियों की मुसीबत
उल्लेखनीय है कि मेडिकल स्टोर्स संचालक हजारों ड्रग होने के कारण अपनी दुकानों में एक सप्ताह से अधिक की बिक्री का माल नहंी रखते है जिसके कारण जैसे ही दवाइयां प्रतिबंधित हुई और इसकी जानकारी एप्स एवं वेवसाइड में आई है तो मेडिकल स्टोर्स संचालकों ने दवाइयां मंगानी बंद करदी। लेकिन दवा कंपनी के स्टॉकिस्ट तथा डिस्टीब्यूटर्स एवं थोक दवा व्यापारी संशय में है। उनके पास  15 से 30 दिन तक स्टॉक उपलब्ध रहता है। अमूमन करीब 50 करोड़ से अधिक की दवाइयां बेकार हो गई है। सूत्रों का कहना है कि नामी कंपनियां अपने बड़े डिस्टीब्यूटर्स से दवाएं वापस ले लेंगे लेकिन छोटे डिस्टीव्यूटर्स पर मुसीबत आ सकती है। इसी तरह छोटी कंपनियां दवाइयां लेती है ,इसी संभावना कम है।

दवा गोदाम से हटाई गई
सूत्रों का कहना है कि प्रतिबंधित दवाइयां गोदामों से तो हटा ली गई है लेकिन खुफिया गोदामों में अब भी मौजूद है और उनकी कतिपय हुनरमंद दवा व्यापारी बकायदा ड्रग सप्लाई कर रहे है।

वर्जन

हमारे लिए मुनाफा से कहीं अधिक लोक स्वास्थ्य होता है। दवाइयां  प्रतिबंधित हो गई है। इसकी सूचना मिलने के साथ बिक्री बंद करते जा रहे है। हमे मध्य प्रदेश शासन के खाद्य एवं औषधीय प्रशासन विभाग से आदेश मिलते है। नामी दवा कंपनियां भी दवाइयां वापस लेने तैयार है। कुछ व्यापारियों को  नुकसान हो सकती है। वहंी कंपनियां को भारी घाटा होना तय है।
आनंद जैन
सचिव कैमिस्ट एवंं ड्रग एसोसियेशन  

राज्य सरकार दूध की गुणवत्ता कंट्रोल के लिए जल्द बना रही प्लान



जबलपुर। गर्मी के सीजन के दस्तक देने के साथ ही दूध कारोबारियों की मुनाफाखोरी ओर मिलावट बेलगाम हर वर्ष हो जाती है। दरअसल गर्मी में दूध के उत्पादन में आंशिक गिरावट के साथ ही दही, लस्सी , कुल्फी आदि खाद्य पदार्थो में खपत कई गुना बढ़ जाने के साथ मिलावटखोरी सिर उठाने लगती है। लोक सभा में यह खुलासा होने के बाद कि 68 प्रतिशत दूध में मिलावट हो रही है। राज्य शासन भी अलर्ट हो गई है। मध्य प्रदेश शासन के खाद्य सुरक्षा विभाग द्वारा जल्द की प्रदेश भर में दूधियों के खिलाफ एक मुहिम छेड़ने जा रही है। इधर जबलपुर सहित प्रदेश के कुछ शहरों में दूधिएं फिर से एक बार दाम बढ़ाने की कवायद शुरू कर चुके है।
उल्लेखनीय है कि दूध को अब तक शासन ने आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे में शामिल नहंी किया है। हाईकोर्ट ने दूध के मूल्य एवं गुणवत्ता निर्धारण के लिए शासन को एक आदेश जारी किए थे लेकिन इसके विरोध में दुग्ध उत्पादन संघ सर्वोच्च न्यायालय में चला गया है जहां मामला विचाराधीन है।
लगतार बढ़ रहे दाम
मामला जहां अनेक वर्षो से सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है, दूसरी तरफ खली चूनी, मवेशी के दाम तथा डीजल पेट्रोल सहित अन्य महंगाई का हवाला देकर दूधियों द्वार लगभग हर वर्ष दूध के दाम बढ़ाए  जा रहे है।
फिर दाम वृद्धि की सुगबुगी
गत वर्ष जबलपुर में जहां दूध उत्पादकों ने दूध के दाम बढ़ाए थे। जबलपुर में दूध के दाम 52 रूपए प्रतिलीटर हो गए है। वहंी इस बर्ष फिर 2 से 4 रूपए तक दूध के दाम बढ़ाए जाने की तैयारी कर दी गई। हालात यह है कि मध्य प्रदेश में जबलपुर, भोपाल तथा इंदौर शहर में दूध के दाम अन्य प्रदेश की तुलना में काफी अधिक है। बेलगाम डेयरी संचालक मनमर्जी का इस्तेमाल कर रहे है।
आॅक्सीटोसिन का बेजा इस्तेमाल
डेरी व्यापारियों की मनमर्जी का आलम यह है कि प्रतिबंध के बावजूद दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिए भैसों को हार्मोंन्स इंजैक्शन आॅक्सीटोसिन धडल्लें से दिया जा रहा है। जिसका परिणाम यह है कि दूध में आॅक्सीटोन हार्मोंस का स्तर बढ़ रहा है। इसका सीधा प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर पढ़ रहा है। दूध में सूक्ष्म तत्वों की इस मौजूदगी को पकड़ने के लिए कोई भी पैमाना उपभोक्ता एवं शासन के पास मौजूद नहंी है।
सिंथेटिक दूध  की मिलावट
दूध में पानी मिलाने के बाद डेरी व्यापारी धडल्ले से सिंथेटिक दूध मिलाकर दूध की बिक्री कर मनमाना  मुनाफा कमा रहे है। डेरी व्यापारी  चंद भैसे पाल कर कुछ ही वर्षो में करोड़ पति हो गए  जबकि वे स्वयं ही कहते है कि मवेशी और चारा इतना अधिक महंगा हो चुका है कि इस धंधे में मुनाफा नाम मात्र का है। फिर दूध व्यापारी कैसे करोड पति हो रहे है? जाहिर है कि इस कारोबार में मिलावट खोरी सिर चढ़ कर बोल रही है।
वेंडर भी कर रहे मिलावट
नागरिक उपभोक्ता मंच के अध्यक्ष पीजी नाजपांडे को कहना है कि डेरी से मिलावट होती है। इसके बाद दूसरे चरण में दूध वेंडर 10-15 मिलावट कर रहे है। यह मिलावट पानी के साथ दूधियां रंग देने के लिए रसायन की भी होती है। लोकसभा में यह खुलासा हुआ है कि 68 प्रतिशत मिलावटी दूध लोगों के घरों में पहुंच रहा है। सर्वाधिक दूध की जरूरत मासूम बच्चों को होती है और उनके ही स्वास्थ्य पर मिलावट का सीधा असर सबसे पहले पड़ता है।
169 डेयरी में लाइसेंस नहीं
नागरिक उपभोक्ता मंच के अध्यक्ष डॉ. पीजी नाजपांडे का आरोप है कि जबलपुर  म्युनिसिपल कार्पोरेशन क्षेत्र में 224 डेयरियां हैं। इनमें से 169 डेयरियां शहर के प्रतिबंधित क्षेत्र में स्थापित की गई हैं। इन 169 डेयरियों को कोई लाइसेंस भी नहीं दिया गया है। मंच के मनीष शर्मा, रानी जायसवाल, राम मिलन शर्मा का कहना है कि ा दूध में मिलावट के कारण मिष्ठान उत्पादक व विक्रेता भी परेशान हैं। खाद्य मिलावट पर प्रशासन से सख्त कार्रवाई की मांग की गई है।
वर्जन
समूचे प्रदेश में दूध की मिलावट रोकने के लिए जल्द ही एक अभियान छेड़ा जाएगा। इस अभियान की मानीटरिंग स्वयं शासन करेगी।
पंकज अग्रवाल
आयुक्त खाद्य सुरक्षा 

संयोग से नहीं हुआ बड़ा हादसा


जबलपुर। शहर में  सोमवार 21 मार्च  को एक बड़े हादसे से बाल बाल बच गया। जबलपुर रेलवे स्टेशन से कुछ आगे सतपुलस के समीप आयुध निर्माणी खमरिया से आने वाली मालगाड़ी की दो बोगिया पटरी से गिर गई। इन बोगियों में घातक गोला बारूद भरा हुआ था। सूचना मिलने पर रेलवे अधिकारी सहित सुरक्षा संस्थान के सुरक्षा बल मौके पर पहुंच गया तथा बोगी को अपने घेरे मे ले लिया है।  इसके पूर्व भी अगस्त 2015 में इसी तरह का हादसा हुआ।  जबलपुर रेलवे स्टेशन के पास बमों से भरी एक मालगाड़ी  कोचिंग डिपो के समीप पटरी से उतर गई थी। पांच डिब्बे पटरी से उतर कर लगभग पलटने की स्थिति में थे। 

एक मुक्तिधाम जिसकी खूबसूरती और शांति मन और आत्मा को छू जाती है


* एक करोड़ खर्च हो चुके
   इसके सौन्दर्य और बाग बगीचे में

जबलपुर। श्मशानघाट जिसका नाम सुन कर ही मन में भय होने लगता है। लोग वहां जाने से घबराते हैं। खासतौर पर हमारे शास्त्रो में तो महिलाओं के लिए श्मशानघाट में प्रवेश वर्जित है।  किन्तु लखनादौन मुक्तिधाम ऐसा रमणीय स्थल बन गया है कि यहां लोग शाम के समय महिला, पुरूष और बच्चे तक घूमने आते हैं और कुछ समय प्राकृतिक वातावरण और शांतिपूर्ण माहौल में बिताकर  शांति महसूस करते हैं। दरअसल इस मुक्तिधाम का कायकल्प करने के लिए निर्दलीय विधायक और उनकी मां के प्रयास के साथी ही क्षेत्रीय लोगों की जनभागीदारी से सराहनीय और अनुकरणीय है।
सिवनी जिले के लखनादौन नगर से करीब 5 किलोमीटर दूर हरिधाम नाम से मुक्तिधाम है। पहले मुक्तिधाम के नाम पर दो पुराने थे। सिवनी के लखनादौन विधायक दिनेश राय ‘मुनमुन’ जब लखनादौन नगर परिषद के अध्यक्ष थे तब उन्होंने मुक्तिधाम का कायाकल्प करने का निर्णय लिया और लोगों को जनभागीदारी के लिए प्रेरित किया जिससे मुक्तिधाम में बदलाव होना शुरू हुआ।
विधायक बनने पर अड़चन
दिनेश राय सिवनी के विधायक बन गए लेकिन उनकी इच्छा थी लखनादौन के मुक्तिधाम को प्रदेश के सबसे स्वच्छ और सुन्दर मुक्तिधाम बनाने की। किन्तु इसके इस प्रयास में उनकी मां का विशेष योगदान रहा। उनकी मां श्रीमती सुधा राय लखनादौन नगर परिषद की अध्यक्ष है।
23 लाख से 4 शेड
मुक्तिधाम में 4 नए  शेड बनाने के साथ इसकी सज्जा पर करीब 23 लाख रूपए खर्च किया गया। दिनेश राय विधायक निधि दूसरा विधान सभा क्षेत्र होने के  कारण नहीं दे पाए तो उन्होंने अपने पास से 8 लाख रूपए मुक्तिधाम के लिए दान दिए जबकि उनकी मां श्रीमती सुधा राय ने जन भागीदारी से 15 लाख रूपए अर्जित किए और मुक्तिधाम का कायाकल्प हो गया। कुछ साल में यहां एक करोड़ से अधिक खर्च हो चुके हैं।
ये हंै व्यवस्थाएं
 * समीप स्थित स्टॉप डैम
* पम्प हाउस से लगातार पानी की सप्लाई
* खारी विजर्सन के लिए स्वच्छ जल से भरा कुण्ड
* विशाल शिवालय एवं बगीचा
* शानदार प्रार्थना कक्ष
* समूचे मुक्तिधाम में खूबसूरत एलईडी विद्युत सज्जा
* मुक्तिधाम में साउंड सिस्टम, जिसमें धार्मिक धुनें गूंजती हैं
* जबदस्त हरियाली
* बैठने के लिए सीमेंट की कुर्सियां

Tuesday, 8 March 2016

लापरवाही न करें तो पूरे जीवन चलते है दांत



मनुष्य के जीवन भर उसके दांत उसका साथ देते है जबकि आदमी दांतों की देखरेख सावधानी पूर्वक करें। सुपाड़ी, तम्बाखू और सिगरेट दातों को सर्वाधिक नुकशान पहुंचाते है। किसी भी तरह का भोजन करने से दांतों को कोई नुकशान नहीं होता है लेकिन भोजन के बाद मुंह की सफाई करना आवश्यक है। रात्रि में भोजन के उपरांत मीठा, चॉकलेट तथा मुंह में चिपकने वाली चीज खाने से बचना चाहिए। जबलपुर के वरिष्ठ दंतरोग चिकित्सक डॉ सुनील चौहान का उक्त कहना है। पीपुल्स संवाददाता की उनके साथ हुई बातचीत के अंश-
* मनुष्य के दांतों की उम्र क्या होती है और वह कितने समय बाद स्वत: टूट जाते है?
** मेरा अनुभव है कि मनुष्य के दांत उसके जीवन भर बने रहते हे जबकि मनुष्य यदि पूर्ण स्वस्थ हो तथा वह अपने दांतों की केयर करता हो। तम्बाखू -सुपाड़ी चबाने वालों के दांत जल्द खराब होते है। दाांतों में कैविटी तथा पाइरिया होने की स्थिति में ही दांत एवं मसूड़े खराब होते है। यही दांत के गिरने का कारण बनता है।
* दांतो में सर्वाधिक कौन सी बीमारी होती है?
** मेरे पास आने वाले 90 प्रतशत मामलों में पाइरिया तथा केविटी के मरीज ही आते है , िजसके कारण उनके  दांत खराब हो जाते है।
* इस बीमारी की मुख्य वजह क्या होती है, इससे कैसे बचा जाए?
** मुख को साफ रखने से न कैबिटी होती है और न पाइरिया, दरअसल ये बैक्टिरिय इंफैक्टशन है। मुह में जूठा भोजन फंसे रहने से ये बीमारी होती है। रात्रि में सोने के पूर्व ब्रश किया जाए तथा ब्रश करने के बाद कुछ भी नहीं खाना चाहिए तथा सुबह भी ब्रश किया जाए तो दांत हमेशा स्वस्थ रहेंगे। दांतो की देखरेख जरूरी है। इसके अतिरिक्त हर छह माह में दंतरोग चिकित्सक से चैकअप कराने की आदत डालनी चाहिए।
*दांतों के उपचार के लिए  कौन सी आधुनिक चिकित्सा  शुरू की है आपने ?
** लेजर तकनीक से उपचार शुरू किया गया है। इससे मुंह के आॅपरेशन में अनावश्य रक्त नहंी बहता है। वहीं दांतों को चमकाने तथा मसूड़ों के आपरेशन एवं मरम्मत से बेहद अधिक कारगर तकनीक है।
* यह धारणा है कि भटा , लौकी तथा कुछ अन्य सब्सिजां खाने से दांतों में दर्द होता है, इसी तरह दांत की मशीन द्वारा सफाई करने पर दांत हिलने लगते है ,ऐसा क्यों?
** यह भ्रामक बाते है। कुछ खाने से दांत का दर्द नहंी होता है। दरअसल सफाई से भी दांत हिलते है, यह भी भ्रामक धारणा हैं।
* क्या दांतों के इंफैक्शन तथा मसूड़ों की बीमारी से कैंसर होता है?
** मुख कैंसर का मुख्य कारण तम्बाखू, सिंगरेट ,पान -गुटखा और शराब पीना होता है। लाखों में एक मामले में  ऐसे होते है जो कि पाइरिया अथवा मुंह के इंफैक्शन अथवा दांत सड़ने के कारण कैंसर होता है। दरअसल कोई दांत ऐसा नुकीला  होता है जिससे  मुंह का  कोई हिस्सा छिलता रहता है तो वहां कैंसर की संभावना जरूर बन जाती है।
* कोई यादगार केस?
** एक महिला मेरे पास आई थी। जिसके दो दांत के बीच गैप था तथा उसमें उसकी जीभ फंसा करते थी। परिणाम स्वरूप जीभ में बड़ी विकृति आ गई थी जिसको लेजर से आॅपरेट किया गया। इसी तरह नकली दांत लगाने वाले एक मरीज के मसूड़े में आवश्यकता से ज्यादा  ग्रोथ हो गई थी जिसको आॅपरेट किया गया।
* दांतो की विकृति का क्या उपचार है?
** समय रहते दंत रोग चिकित्सक से दांतों की विकृति दुरूस्त करानी चाहिए। इससे दांत बाद में बीमारी का खतरा कम हो  जाता है। स्वस्थ्य दांत के लिए विकृति हीन दांत होना चाहिए और दूसरा उसकी सफाई  सबसे आवश्यक है।


नर्मदा का बढ़ता प्रदूषण छिपाने की कोशिश


* बढ़ते प्रदूषण के चलते  विभाग ने जांच का बदला  तरीका ा
* नर्मदा के किनारे धड़ल्ले से हो रहे निर्माण



 जबलपुर। नर्मदा नदी के प्रदूषण की जो रिपोर्ट तैयार की गई  है, उसमें नर्मदा का प्रदूषण बढ़ने के बजाए घट गया  है। चौकिए नहीं नर्मदा एक साल में क्लीन नहीं हुई है, वरन सैम्पल लेने की बाजीगरी का कमाल दिखाया गया है। वहीं इस मामले को लेकर एनजीटी में एक याचिका के चलते नर्मदा जल का  फिर से परीक्षण करने के निर्देश प्रदूषण नियंत्रण मंडल को दिए है।
 मालूम हो कि देश में कुछ ही नदियां भारी प्रदूषण से बची हैं जिसमें नर्मदा भी एक है किन्तु अब नर्मदा नदी तेजी से प्रदूषित हो रही है। उनके आसपास े होटल, रिसोर्ट, उद्योग , फार्म हाउस तथा कालोनियों का निर्माण तेजी से हो रहा है। किनारे खेती में अंधाधुंध कीटनाशक का उपयोग हो रहा है।  आबादी की गंदगी  तेजी से नदी में जहर घोल रही है।  नर्मदा के किनारे जिनके बड़े-बड़े निर्माण हो रहे है,  करोड़ों की संपत्तियां नर्मदा के किनारे जिन लोगों ने खड़ी की है, दरअसल उसमें बहुत से लोग बड़े राजनेता और रसूकदार लोग हैं , उनके लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट ढाल बन जाएगी।

पीने योग्य नहंी है पानी
आज भी बिना ट्रीटमेंट प्लांट के नर्मदा नदी में जबलपुर तथा आसपास के इलाकों में दर्जनों गंदे नाल मिलते है। यही हाल नरसिंहपुर और होशंगाबाद तक है। नर्मदा का पानी अब पीने योग्य नहंी रह गया है।
500 से अधिक फार्म हाउस
जबलपुर मेंं ही भेड़ाघाट, ग्वारीघाट, भटौली, लम्हेटा घाट, तिलवाराघाट में नर्मदा नदी के किनारे 500 से अधिक फार्म हाउस हंै।  जिनमें  जहां कीटनाशक सहित अन्य घातक रसायन बागवानी के लिए उपयोग हो रहे है। नर्मदा नदी के किनारे 160 मीटर तक निर्माण न होने के बावजूद  कई मंजिला इमारतों का निर्माण हो गया है। अब भी नदी के किनारे  कॉलोनी और अपार्टमेंट निर्माण की अनुमति मिल रही है लेकिन ग्राम एवं नगर निवेश द्वारा  गंदे पानी के बहाव की दिशा पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
पिछले साल था घातक  प्रदूषण
जानकारी के अनुसार वर्ष 2013 -14 में नर्मदा नदी के किनारे से साल में दो बार प्रदूषण की जांच के लिए सैम्पल लिए गए थे। इन सैम्पल के बाद जो रिपोर्ट आई थी, उसमें बीओडी का स्तर 2 एमएम से उपर था। यानी के बी ग्रेड का पानी नर्मदा नदी का था। इस पानी को बिना शुद्ध किए पीना घातक था। नर्मदा में बढ़ते प्रदूषण को चिंताजनक बताया गया था। वहीं इस वर्ष पीने योग्य हो गया है। वर्ष 2014-15 में नर्मदा नदी के प्रदूषण के लिए जब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सैम्पल लेकर जांच की तो नर्मदा नदी का पानी ए ग्रेड का पाया गया।
ऐसे हुआ  चमत्कार
नर्मदा नदी का प्रदूषण एक  ही वर्ष में कैसे कम हो गया तथा इसका पानी पीने योग्य कैसे बन गया? यह चमत्कार हुआ है सम्पैल लेने के बदले तरीके के कारण । वर्ष 2015 में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा नर्मदा नदी  के सैम्पल घाट के दोनों किनारो तथा नदी की बीच धार से लिए। इसके बाद तीनों सैम्पल को मिलाने के बाद एक सैम्पल तैयार किया । इसके बाद  इसकी जांच कर ग्रेडिंग की गई। परिणाम स्वरूप नर्मदा का पानी एक ग्रेड का बन गया  है।

वर्जन
नदी का प्रदूषण सिर्फ किनारे के पानी से लेना उचित नहंी था जिसके कारण इस बार से तीन चार स्थानों से सैम्पल लेने के बाद उनका मिलाकर एक सैम्पल तैयार कर उससे प्रदूषण का ग्रेड तय किया गया है और यही तरीका प्रदूषण नापने का सही है।
एमएम द्विवेदी
क्षेत्रीय अधिकारी प्रदूषण
नियंत्रण मंडल जबलपुर
बाक्स

नर्मदा जल की गुणवत्ता की जांच फिर करने निर्देश
नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के पीजी नाजपांडे ने बताया कि एजीटी ने नर्मदा जल की गुणवत्ता की फिर परीक्षण करने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निर्देश दिए है। नर्मदा नदी के प्रदूषण की जांच के लिए जो सैम्पल लिए गए हैं, उसमें गडबड़ी की गई है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की याचिका पर नेशनल ग्रीन ट्रिव्यूनल भोपाल ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नर्मदा के तीस स्थानों के सैम्पल लेकर फिर से जांच करने के निर्देश देते हुए नई रिपोर्ट 17 मार्च कर प्रस्तुत करने निर्देश दिए है। उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच का आरोप है कि एजीटी के निर्देशों के बावजूद प्रदूषण मंडल बोर्ड ने आज दिनांक तक कहीं से नए नमूने जांच के लिए नहंीं लिए  है। वहीं उपभोक्ता  मार्गदर्शक मंच का आरोप है कि पूर्व में  प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नगर निगम जबलपुर को नर्मदा को प्रदूषण से बचाने एक्सन प्लान बनाने के निर्देश देते हुए 90 दिनों का समय दिया था लेकिन ये अवधि बीतने के बाद भी नगर निगम ने कोई प्लान बनाकर कार्य नहीं किए है।

पुरातत्व सम्पदा का खजाना निकला बिनेकी में



 अब तक पुरातन महत्व की मूर्तियां
 रजिस्टर्ड तक नहीं हो पाई
दीपक परोहा
9424514521
जबलपुर। इतिहास साक्षी है, जबलपुर और आसपास के इलाके सदियों से अपनी संस्कृति,कला और वैभव में बेजोड़ रहे है। यहां कल्चुरियन कॉल फिर गोंडवाना काल में कला और संस्कृति ने उन्नति के आयाम कायम किए , जिसके भग्नावेश के रूप में समय के प्रमाण हमारी पुरातत्व धरोहर है जो यहां  बिखरी पड़ी है।  समीपस्थ ग्राम बिनेकी में तालाब में पुरातत्व महत्व की आधा दर्जन से अधिक प्रतिमाएं शुक्रवार को निकली जो 13 वीं शताब्दी की है। यहां पुरातत्व सम्पदा निकलने पर  पुलिस की मौजूदगी में गांव में इसे सुरक्षित रखवा दिया गया लेकिन पुरातत्व विभाग के किसी भी  कर्मचारी ने यहां आने की जरूरत नहीं समझी जबकि उन्हें पुलिस ने ही सूचित कर दिया था।
जबलपुर शहर से करीब 15 किलोमीटर दूर पाटन रोड़ के किनारे करीब 15 सौ आबादी वाला बिनैकी ग्राम स्थित है। ग्राम में एक अति प्राचीन तालाब है जिसके घाट आदि सब जमीन के नीचे दफन है। गांव के बुर्जगों को कहना है कि तालाब वे वर्षो से देख रहे है, वह कब का बना है ,इसकी जानकारी किसी को नहीं है।
आस्था से जुड़ गई प्रतिमाएं
ग्राम के बालक 12 वर्षीय अजय यादव शुक्रवार को सुबह तालाब से मिट्टी निकालने गया था तथा मिट्टी खोदते समय उसे एक प्रतिमा दिखाई दी तो उसने गांव के लोगों को सूचित कर दिया। ये पाषाण प्रतिमा हिन्दु देवी देवताओं की थी जो अति प्राचीन थी। इसके बाद तालाब में लोगों की भीड़ लग गई। प्रतिमा निकालने के साथ पूजा-पाठ का दौर भी शुरू हो गया। बालक का कहना है कि उसे कल रात स्वप्न आया था कि तालाब के किनारे प्रतिमा गड़ी हुई है , इस पर वह निकालने पहुंच गया। बहरहाल ये घटना गांव में चर्चा का विषय बन गई। इसके साथ की ग्रामीणों को खुदाई में और भी प्रतिमाएं मिली। घटना की सूचना मिलने पर पाटन पुलिस मौके पर पहुंच गई थी। पुलिस ने पुरातत्व विभाग को सूचित कर दिया है लेकिन कोई नहीं पहुंचा।
कोई सुध लेने  वाला नहीं
जबलपुर से करीब 13 किलोमीटर दूर गांव तेवर जो कभी कल्चुरी शासको की राजधानी त्रिपुरी हुआ करती थी। कुल्चुरी वंश के महान शासक राजा कर्ण की राजधानी हुआ करता था। तेवर सहित आसपास के करीब दर्जनों गांवों में ऐसी पुरातत्व महत्व की प्रतिमाएं मौजूद है। इस तरह सिहोरा तहसील के अनेक गांव, पाटन तहसील के अनेक गांवों में पुरातत्व महत्व की प्रतिमाएं मौजूद है। वर्षो मूर्ति तस्करों का स्वर्ग जबलपुर रहा है। यहां तक माला देवी जैसी गोंडवंश की कुलदेवी की प्रतिमा को चोरी करने कोशिश हो चुकी है। बहरहाल आज दिनांक तक गांवों के मंदिरों तथा मढियों में मौजूद पुरातत्व महत्व की प्रतिमाओं को पुरातत्व विभाग द्वारा रजिस्ट्रेशन तक नहीं किया जा सकता है। हालत यह है कि अब भी पुरातत्व संपदा की सुध लेने कोशिश नहंी की जा रही है।

वर्जन
गांव में प्रतिमा निकलने की सूचना पर पुलिस पहुंची थी तथा पुरातत्व विभाग को सूचना दी गई है। गांव वाले चाहते है कि तालाब खुदाई कर तालाब में दफन प्राचीन मंदिर को निकाला जाए तथा पुरातत्व संपदा को संरक्षित किया जाए।
आशा पटैल
सरपंच बिनैकी 

डिजिलटलाइजेशन होगी देश की सभी जेल



बंदियों से मुलाकात के आवेदन आॅन लाइन

* ई-प्रिजन्स सिस्टम लागू
* रीवा, सतना और इंदोर जेल में शुरू
जबलपुर। देश की जेलों में  राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के  आतंकवादी मौजूद है जिनके भागने का खतरा और जेल से षडयंत्र बनाने की घटनाएं होती रही है। जेल से बंदियों की भागने की योजनाएं भी बनती है। जेल के बंदियों की पूरी जन्म कुण्डली के साथ ही उनसे मिलने जुलने पर वालों की जन्म कुण्डली भी जेल में मौजूद रहेगी।  आॅन लाइन मुलकात का सिस्टम ई- प्रिजेन्स प्रदेश की सभी जेलों में लागू होने जा रहा है। इसके तहत आॅन लाइन मुलाकात के तहत बंदियों से मिलने वाले लोगों का डाटा जेल कम्प्यूटर में फीड  रहेंगे।
जेलों को आॅन लाइन करने के सिस्टम के तहत सबकुछ ठीक रहा तो मुलकात की  आॅन लाइन निगाह भी होने लगेगी। डीजीपी सहित तमाम अधिकृत  एजेंसी आईबी  देख सकेंगे कि बंदियों से मुलाकात करने कौन हो आ रहा है। अनेक जेलों में सीसीटीवी कमरे लगे है जिससे मुलाकात पर भी आॅन लाइन नजर रखना संभव हो गया है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार केन्द्र सरकार की एनआईसी योजना के तहत सेंट्रल जेलों में सजा काट रहे कैदियों से उनके परिजनों -मित्रों से मुलकात की व्यवस्था आॅन लाइन की जाए। इसके लिए अगले वित्त वर्ष में प्रदेश की सभी जेलों को भरपूर बजट दिया जाएगा जिससे कम्प्यूटर सहित अन्य सामग्री उपलब्ध होगी। इस योजना के तहत जेल में मुलाकात करने पहुंचने वाले समस्त व्यक्ति को तत्काल ही फोटो, पता ठिकाना, अधारकार्ड , आईडी सहित तमाम जानकारी फीड होगी। उनकी मुकाकात संबंधी आवेदन तथा मंजूरी की मानीटिरिंंग आॅन लाइन से मुख्यालय भोपाल सहित दिल्ली व अन्य निर्धारित स्थलों में जुडे  अधिकारी कर सकते हैं। पायलट प्रोजेक्ट के तहत सतना, रीवा तथा इंदौर जेल में मुलाकात आॅन लाइन हो चुकी है।
सतना में समस्त रिकार्ड फीड
सतना में समस्त बंदियों के रिकार्ड के साथ उनके मुलाकात करने आने वाले बंदियों का पूरा रिकार्ड साफ्टवेयर में डाला जा चुका है। यहां दिसम्बर 2015 से आॅन लाइन मुलाकात आवेदन पर विचारण होने लगा है।  जेल अधीक्षक शेफाली तिवारी ने बताया कि डीजीपी वीके सिंह का प्रयास है कि समस्त जेलों का डिजिटलाइजेशन होए । इसके लिए तेजी से जेलों में कार्य चल रहा है। सतना जेल को डिजिटलाइजेशन में मुलकात आॅन लाइन करने के लिए जनवरी 2015 से तमाम रिकार्ड कम्प्यूटर में लोड करने का काम किया गया जो पूरा कर लिया गया है और दिसम्बर 2015 से मुलकात आॅन लाइन मंजूद होने लगी है। इसी तरह रीवा जेल में तेजी से काम चल रहा है।
आॅन लाइन आवेदन
केन्द्रीय जेल में मुलाकात करने वाले का डॉटा जेल कम्प्यूटर में मौजूद होने पर बंदी तथा उनके परिचति कहीं पर भी बैठ कर मुलाकात का आवेदन कर सकेगे तथा उनकी आॅन लाइन मुलाकात की तरीख तथा समय तय हो जाएगी। इसके कारण मुलकात के लिए आवेदन तथा अर्जी लगाने के लिए परिजनों को नहीं आना पड़ेगा।
बाक्स
बंदियों की जन्मकुण्डली बताएगी
केलोस्कर मशीनें लगेंगी
केन्द्रीय जेलों में डिजिटलाइजेशन के तहत जेल तथा कोर्ट में जल्द ही केलोस्कर मशीनें लगेंगी। स्क्रीन टच मशीन में बंदी का नाम फीड करते ही उसकी पूरी जन्म कुण्डली आ जाएगी। उसका आपराधिक रिकार्ड, किस कोर्ट में कब कब प्रकरण चले। कहां कितनी सजा हुई। किस जेल में कितने दिन निरूद्ध रहा। उसकी कहां कहां पेशी की तारीख तय है सबकुछ मशीन बताएगी। एटीएम मशीन की तर्ज पर इस मशीन से वकील, पुलिस , जेल अधिकारी और स्वयं बंदी रिकार्ड देख कसतें हैं। सबसे पहले ये मशीन जबलपुर केन्द्रीय जेल तथा जबलपुर हाईकोर्ट एवं जिला न्यायालय में लगाई जाएगी। इसके बाद अन्य जेलों में लगेगी।
वर्जन-
बंदियों से मुलकात का सिस्टम आॅन लाइन किया जा रहा है। जेलों में अभी रिकार्ड तैयार करने का काम चल रहा है। कुछ जेलों में आॅन लाइन मुलकात सिस्टम विकसित हो चुका है।
वीके सिंह
डीजीपी जेल




वेटरनरी विवि की जल्द बदलेगी तस्वीर


विवि का आंतरिक और बाह्य स्वरुप में आयेगा निखार

जबलपुर,  वेटरनरी पैरासाइटोलॉजी के विशेषज्ञ 34 वर्षो का बेहतर अनुभव, 149 रिसर्च, 48 आर्टिकल, डॉ.बीव्ही राव गोल्ड मेडल और प्रो.व्हीएस अलवर मेमोरियल से नवा जे प्रतिभा के धनीडॉ.प्रयाग दत्त जुयाल ने नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय के नये कुलपति विवि को बाह्य एवं आंतरिक रुप से सुदृढ़ और सुव्यवस्थित कर देश में नंबर बनाने भरसक प्रयासरत हो गये हैं। कुलपति डॉ.जुयाल ने 26 फरवरी को विवि का कुलपति पद संभाला है। पत्रकारों से चर्चा के दौरान उन्होंने साफ तौर पर कहा कि वे बेहतर काम और बेहतर परिणाम देने के आदी हैं, उनके इस भरोसे से वेटरनरी विवि में एक नयापन दिखाई देने लगा है। डॉ.जुयाल ने चर्चा के दौरान विश्वास दिलाया कि सर्वप्रथम वे विवि के स्वरुप क ो निखारेंगे व कमियों को पूरा करने बेहतर फंडिंग के माध्यम से शैक्षणिक स्तर, फार्मस्, संसाधन, अनुसंधान, विस्तार के क्षेत्र में नये आयाम स्थापित करेंगे।
शिक्षण, अनुसंधान पर गंभीर
पिछले दो कुलपति के कार्यकाल में विवि विवादों से घिरा रहा जिस कारण विवि के प्रशासनिक, शैक्षणिक आदि गतिविधियों में स्थिलता आ गई थी। इंडियन एडॉह्क ग्रुप एनटीटीएटी ओआईई फ्रांस के चेयरमैन पाकिस्तान सोसायटी आॅफ पैरासाइटोलॉजी के आजीवन सदस्य, एआईअीव्हीएम नीदरलैंड के सदस्य रहे कुलपति डॉ.जुयाल यूके, जापान, चाइना की अंतराष्टÑीय कांफे्रस में शामिल होते रहे हैं। वर्ष 2010 से गुरु अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइंस्स यूनिवर्सिटी लुधियाना के रजिस्ट्रार पद के बाद वेटरनरी विवि के कुलपति के रुप में पदस्थ हुए हैं। अपने अनुभव के जरिए वे विवि के शैक्षणिक, अनुसंधान और विस्तार कार्यक्रमों को ्रप्रभावी तरीके से बढ़ाने प्रयासरत हो गये हैं।
आमजन, कृषकों, छात्रों को बढ़ावा
डॉ.जुयाल ने बताया कि वेटरनरी विवि के डेयरी फार्मस, फिशरीज, गोटरी, पोल्ट्री आदि का प्रसार व विस्तार कार्य शुरु कर दिया गया है। कृषकों से लेकर आमजन को हर सुविधा व सटीक जानकारी प्रदान की जायेगी। साथ ही मेरा गांव मेरा गौरव इस फार्मेट पर बेहतर वैज्ञानिकों द्वारा युवा कृषकों को वेटरनरी क्षेत्र में बढ़ावा प्रदान किया जायेगा जिससे प्रदेश व देश में वे अपना नाम कमाएंगे साथ ही विवि की गरिमा भी फै लेगी। उन्होंने बताया कि 10 से 21 करोड़ की लागत से बनने वाली हाईटेक लैब का प्रस्ताव पास हो गया है और शीघ्र ही कार्य शुरु हो जायेगा। यानि आगामी दौर में वेटनरी विवि देश में अपनी एक अनोखी पहचान बना लेगा।