Saturday, 26 March 2016

गांव वाले खुद लिख रहे विकास की इबारत

गांव वाले खुद लिख रहे विकास की इबारत
* पड़री मानगढ़ में ब्याह कर आई रेखा के प्रयास से बदल रही तस्वीर
* अंधकार दूर भागा, पीने को मिला पानी, पथ के कंकड़ हो रहे साफ
* एक ने उठाई कुदाली जुट गया पूरा गांव
 जबलपुर। पड़ोसी जिला दमोह की जबेरा तहसील का एक ग्राम पड़री मानगढ़ जहां देश की आजादी के 69 साल बाद भी विकास की रोशनी नहीं पहुंची हैं। यहां की आबादी के नाम पर 300 मकान हैं।  गांव में कांक्रीट  और सीमेंट निर्माण के नाम पर एक चबूतरा तक नहीं है। गांव में न तालाब है और न ही कुंआ है। आज तक अंधकार में डूबे इस गांव में रोशनी की किरण बनी है, दूसरे गांव से ब्याह कर आई रेखा बाई। बीहड़ स्थित इस गांव में विकास की नींव रखने रेखा ने खुद पहले कुदाली उठाई और अब पूरा गांव स्वयं गांव में विकास की इबारत लिख रहा है।
     मध्य प्रदेश में गांव के विकास के लिए और गावों को शहर से जोड़ने की अनेक योजना चल रही है। दूसरी तरफ ये गांव विकास से पूरी तरह अछूता है। गांव में क्या हो रहा है? ग्रामीण कैसे पानी की व्यवस्था करते हैं? सूखा ग्रस्त दमोह जिला के पड़री मानगढ़ में क्या स्वयं ग्रामीण अपने इंतजाम कर रहे है? इस सब बातों से जबेरा के सीईओ रामेश्वर पटैल अनभिज्ञ है।
 बीहड़ में बसा गांव
जबेरा के अन्य गांवों से पड़री मानगढ़ पूरी तरह कटा हुआ है। सड़क के नाम पर बंजर पहाड़ी जमीन के बीच से होती हुई पगडंडी ही है। उबड़-खाबड़ पथरीली जमीन ही पहाड़ी से होकर ही गांव का पथ है। गांव पहुंचना है तो जंगली रास्ता, पहाड़ पर बनी पगडंडियों से ही पैदल सफर तय करना पड़ता है। गांव में यदि कोई गंभीर बीमार पड़ता है तो अस्पताल तक पहुंचते तक उसका जीवित बच पाना ईश्वर के भरोसे रहता है। एसी लग्जरी गाड़ियों में सफर करने वालों के लिए गांव का सफर काला पानी की सजा से कम नहीं है। समूचा इलाका इन दिनों जबदस्त तरीके से तपने लगा है। गांव सहित आसपास का इलाका सूखे की चपेट में है। गांव में हरियाली नाम मात्र को बची है। गांव के सभी मकान कच्ची मिट्टी के बने हैं। जिनको चूना और गेरू तक नसीब नहीं होता है।
जंगल से लकड़ी बीनते हैं
पूरा गांव सूखा ग्रस्त क्षेत्र में है। यहां कृषि भूमि नाम मात्र को  है। गांव में सभी परिवार आदिवासी है। उनका पेशा है जंगल से लकड़ी बीन कर दूर दराज के गांव या जबेरा में बेचना। इससे उनका अपना परिवार चलता है।  गांव में सभी बच्चे निराक्षर थे। दरअसल यहां विकास की किरण रेखा बाई नामक महिला के ब्याह कर आने पर हुई। ब्याह के बाद  यहां आने पर उसने जब इस गांव के हाल देखे तो दंग रह गई और स्वयं की गांव की तस्वीर बदलने की ठान ली। गांव के लोगों को अपना जीवन स्तर सुधारने प्रेरित करने लगी।
चट्टान तोड़कर पानी निकाला
इस महिला ने गांव में नमी वाली चट्टानी की जगह का चयन कर वहां पानी होने की संभावना को लेकर खुदाई कराई और गांव में पानी निकल आया है जिसके कारण कई किलोमीटर दूर नाले से अब गांव की महिलाओं को पानी लेने नहीं जाना पड़ता है। उल्लेखनीय है कि इस गांव में पोखर या कुंआ खोदना बेहद दुर्गम काम है। इसकी वजह यह है कि जमीन के नीचे ं बड़ी- बड़ी चट्टानें है जिसको तोड़ने के लिए बारूद की जरूरत पड़ती है। लेकिन पूरे गांव के हौसले के आगे चट्टान भी चूर- चूर हो गई।  कई महीने पांच-छह घंटे मेहनत कर जमीन के सीने से पानी निकालने में कामयाब हुए लोग।  आदिमानव से सभ्यता की ओर
गांव में अब लोग ने बदलाव शुरू हो गया है। आदिमानव से हटकर सभ्य समाज की ओर बढ़ रहे है। सड़क, बिजली, पानी का स्वयं इंतजाम में जुट गए है। एक एनजीओ के सहयोग से 16 सोलर प्लेट की मदद से तीस घरों में रोशनी होने लगी है। पहली बार गांव में रोशनी को लोगों ने जाना है। इसके पहले आदिमानव की तरह लकड़ी के अलाव जलाकर रोशनी किया करते थे। सरकार की अन्नपूर्णा योजना से भी इस गांव के लोग वंचित हैं। यहां न 1 रूपए किलों गेहूं मिलता है और न दो रूपए किलो चावल, मिट्टी तेल तक नहीं मिलती है डिबरी के लिए।  जिले के नक्शे से ही यह गांव कटा है अथवा नहीं , जवाबदार कुछ कहने तैयार नहंीं है। गांव वालों को भी नहीं मालूम कि किस ग्राम पंचायत के आश्रित है, ये गांव। किन्तु उनमें हौसला भर चुका है।  

खुद बना रहे सड़क
जंगली और उबडखाबड़ पगदंड़ी से झाड़ियां साफ कर तथा पथ से पत्थर खोद कर अलग करने का श्रमदान ग्रामीण कर रहे है और अपने लिए एक रास्ता तैयार कर रहे है लेकिन यह रास्ता कब तक तैयार होगा? इसका अंदाज नहीं है लेकिन वे जुटे हुए हैं, विकास की इबारत लिखने।
बाक्स
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 माउंटेन मैन से नहीं मिली प्रेरणा
  इस गांव के लोगों ने बिहार के माउंटेन मैन यानी दशरथ मांझी का किस्सा नहीं सुना है और न ही उस पर बनी फिल्म मांझी देखी है।आदिवासी ग्रामीणों को दशरथ मांझी से नहीं वरन स्व प्रेरणा मिली है। वे भी पहाड़ चीर कर  अपना रास्ता बना रहे हे। मालूम हो  दशरथ मांझी ने अकेले छेनी हथौड़े से पहाड़ काटकर गहलोत से वजीरगंज का रास्ता बनाकर  गहलोत के विकास की इबारत रची थी। अब देखना यह है कि गड़री मनगढ़ के विकास का रास्ता कब पूरा होता है।


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रेखा की फोटो लगाए***
खुले आसमान के नीचे स्कूल
पूरे गांव की एक मात्र पढ़ी- लिखी महिला रेखा बाई रामपुर गांव से ब्याह कर आई थी। उसने  पेड़ों की छावं के नीचे एक स्कूल शुरू किया है। रेखा का कहना है कि गांव में अब तक सभी लोग निराक्षर है। लकड़ी बीन कर गुजारा करते हंै। मै चाहती हूं कि मेरे और गांव के बच्चे पढ़े और तरक्की करे साथ ही गांव की तरक्की भी करें। इसके लिए उनका शिक्षा देना जरूरी है। मै खुद उन्हें पढ़ाउंगी । बच्चों को किताब-कापी और पेन्सिल उसने स्वयं के पास से मुहैया कराती हूं।
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वर्जन
गांव में पानी नहीं है। कभी कोई सरपंच और सरकारी आदमी यहां नहीं आता है चूंकि उनके पहुंचने का रास्ता नहीं है। हम खुद अब रास्ता बनाएंगे।
दशरथ सिंह, ग्रामीण
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वर्जन
 हम अपने हौसले पर भरोसा कर रहे है। सरकारी मदद नहंी मिलती है तो भी हम गांव का विकास करेंगे।
भीमसिंह, ग्रामीण
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गांव के सभी औरत आदमी अपनी रोजी-रोटी कमाने के बाद समय निकाल कर गांव के लिए काम कर रहे है ये एक अच्छी शुरूआत है।
गंगाबाई , ग्रामीण महिला
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मेरी जानकारी में नहीं हॅै कि उस गांव में ग्रामीण क्या काम कर रहे है। अब तक वहां के लिए कोई योजना भी नहीं है।
रामेश्वर पटैल
सीईओ जबेरा

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