Friday, 25 March 2016

प्रदेश में निकल रहा 2 लाख टन बायो मेडिकल वेस्ट



*  कचरा प्रबंधन के नहीं पुख्ता इंतजाम
 एनजीटी ने भी संज्ञान में लिया मामला

जबलपुर। मध्य प्रदेश में प्रतिमाह करीब 3 लाख टन मेडिकल वेस्ट  निकलता है जिसमें अस्पतालों से निकलने वाले जैविक कचरे भी शामिल है। इसके निष्पादन के लिए जो प्रदेश में संसाधन है , उससे मात्र 1 लाख टन चिकित्सीय कचरे का निपटारा होता है जबकि शेष कचरे का अवैज्ञानिक तरीके से इस्तेमाल हो रहा है जो जानलेवा संक्रामक बीमारियों का कारण बन रहा है। देश के दिल् ली एवं मुम्बई जैसे महानगर भर अपने मेडिकल वेस्ट निवटानें के लिए जागरूक है , इसके बावजूद इन महानगरों में अज्ञात बीमारियों का हमला होता रहता है। इसकी वजह मेडिकल वेस्ट मुख्य समझा जाता है।
स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश में तकरीबन 3 हजार शासकीय एवं अशासकी हास्पिटल, स्वास्थ केन्द्र तथा निजी हास्पिटल हैं। इनसे प्रदेश भर में महीना भर में करीब 2 लाख टन मेडिकल वेस्ट निकलता है। इस मेडिकल वेस्ट के निपटारे के लिए अब तक कोई भी ठोस उपाय नहीं किए गए है।
 प्रदेश के भोपाल, इंदौर, जबलपुर तथा ग्वालियर जैसे बड़े शहरों मे नर्सिग एवं हास्पिटल एसोसियेशन तथा स्थानीय नगरीय निकाय के प्रयास के अब हास्पिटलों का कचरा खुले में तथा नगरीय ठोस अवशिष्ट के साथ मिलाकर फेकना बंद हो गया है किन्तु यहां अब भी निजी एवं शासकीय हास्पिटल  अपने तरीके से इन कचरे का निष्पादन कर रहे है लेकिन पूरे अवैज्ञानिक तरीके से निपटारा हो रहा है।
क्षमता का अभाव
जानकारी के   अनुसार जहां जबलपुर के मेडिकल कालेज में इंसीनिरेटर लगाया गया था जो बिगड़ने के कारण लम्बे अर्से  से बंद है। इसके अतिरिक्त नर्सिंग होम एसोसियेशन के प्रयास से एक निजी कंपनी ने कठौदा में इन्सीनिरेटर लगाया है लेकिन इसकी क्षमता बेहद कम है तथा जितना मेडिकल वेस्ट निकलता है उसका आधा ही नष्ट हो पाता है।
 कबाड खाने पहुंच रहा
सूत्रों की माने तो मेडिकल वेस्ट में बचे हुए बचे  इंजैक्शन, आधे उपयोग हुए डैक्ट्रोज तथा अन्य दवाइयों की प्लास्टिक बोतलों की दवाइयां कबाड़ियों के पास गुपचुप तरीके से पहुंच जाती है। बच्ची दवाइयां आदि नाली में बहा दी जाती है तथा प्लाटिक के बोतल तथा अन्य डिस्पोजल आइटम एकत्र कर रिसाइक्लिंग के लिए फैक्ट्री में पहुंच जाते है।
इसी तरह सीरिंज सहित अन्य मैटेलिक डिस्पोजल आईटम भी कबाडियों के माध्यम से रिसायक्लिंग के लिए पहुंचते है। जानकारों का कहना है प्लास्टिक संबंधी मेडिकल डिस्पोल को अमूमन नष्ट करना ही इसका सही निस्पादन है किन्तु ऐसा हो नहंी रहा है। इसी अस्पतालों से निकलने वालो कॉटन तथा जैविक अवशिष्ट को सुरक्षित तरीके से जलाने के जररूत है किन्तु यह अमूमन गड्ढों में गाड़ा जा रहा है जिससे भूमिगत जल प्रदूषित होने का खतरा  बढ़ा  है।
कहां कितना कचरा
जबलपुर- डेढ सौ टन प्रतिमाह
इंदौरा    -   दो से ढाई सौ टन प्रतिमाह
भोपाल-  डेढ से दौ सौ टन प्रतिमाह
ग्वालियर- सौ से सवा सौ टन प्रतिमाह  

पैथौलाजी से बेहिसाब वेस्टेज
प्रदेश भर में विभिन्न पैथोलाजी सेंटरों, डेंटल क्लिनिक सहित फिजियो थैरेपी सेंटरों से भी बड़ी मात्रा में मेडिकल वेस्टिेज निकल रहे है। इनके निपटारे की समस्या तेजी से बढ़ती जा रही है।

नोटिस जारी हुए है
इस मामले में मैने स्वयं एक जनहित याचिका एनजीटी में दायर की थी। इस मामले में और भी कई याचिका एनजीटी में विचाराधीन है। वहीं स्वयं एनजीटी ने इसे संज्ञान में लिया है, सभी याचिकाओं पर एक  साथ विचारण चल रहा है। मध्य प्रदेश प्रदूषण मंडल, प्रदूषण मंत्रालय सहित अन्य विभागों को नोटिस जारी किए गए है।
मनीष शर्मा
नागरिक उपभोक्ता मंच, याचिकाकर्ता

मेडिकल वेस्ट को लेकर एनजीटी में याचिका विचाराधीन है। मेडिकल वेस्ट के निपटारें के लिए लगातार जागरूकता लाने के साथ वर्कशाप आदि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा चलाए जा रहे है। कहीं मेडिकल वेस्ट खुले में तथा अवैधानिक तौर पर नष्ट करने की जानकारी मिलने पर हम एक्शन भी लेते है।
एसएन द्विवेदी
क्षेत्रीय अधिकारी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जबलपुर

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