Friday, 25 March 2016

नर्मदा का बढ़ता प्रदूषण छिपाने की कोशिश


* बढ़ते प्रदूषण के चलते  विभाग ने जांच का बदला  तरीका ा
* नर्मदा के किनारे धड़ल्ले से हो रहे निर्माण



 जबलपुर। नर्मदा नदी के प्रदूषण की जो रिपोर्ट तैयार की गई  है, उसमें नर्मदा का प्रदूषण बढ़ने के बजाए घट गया  है। चौकिए नहीं नर्मदा एक साल में क्लीन नहीं हुई है, वरन सैम्पल लेने की बाजीगरी का कमाल दिखाया गया है। वहीं इस मामले को लेकर एनजीटी में एक याचिका के चलते नर्मदा जल का  फिर से परीक्षण करने के निर्देश प्रदूषण नियंत्रण मंडल को दिए है।
 मालूम हो कि देश में कुछ ही नदियां भारी प्रदूषण से बची हैं जिसमें नर्मदा भी एक है किन्तु अब नर्मदा नदी तेजी से प्रदूषित हो रही है। उनके आसपास े होटल, रिसोर्ट, उद्योग , फार्म हाउस तथा कालोनियों का निर्माण तेजी से हो रहा है। किनारे खेती में अंधाधुंध कीटनाशक का उपयोग हो रहा है।  आबादी की गंदगी  तेजी से नदी में जहर घोल रही है।  नर्मदा के किनारे जिनके बड़े-बड़े निर्माण हो रहे है,  करोड़ों की संपत्तियां नर्मदा के किनारे जिन लोगों ने खड़ी की है, दरअसल उसमें बहुत से लोग बड़े राजनेता और रसूकदार लोग हैं , उनके लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट ढाल बन जाएगी।

पीने योग्य नहंी है पानी
आज भी बिना ट्रीटमेंट प्लांट के नर्मदा नदी में जबलपुर तथा आसपास के इलाकों में दर्जनों गंदे नाल मिलते है। यही हाल नरसिंहपुर और होशंगाबाद तक है। नर्मदा का पानी अब पीने योग्य नहंी रह गया है।
500 से अधिक फार्म हाउस
जबलपुर मेंं ही भेड़ाघाट, ग्वारीघाट, भटौली, लम्हेटा घाट, तिलवाराघाट में नर्मदा नदी के किनारे 500 से अधिक फार्म हाउस हंै।  जिनमें  जहां कीटनाशक सहित अन्य घातक रसायन बागवानी के लिए उपयोग हो रहे है। नर्मदा नदी के किनारे 160 मीटर तक निर्माण न होने के बावजूद  कई मंजिला इमारतों का निर्माण हो गया है। अब भी नदी के किनारे  कॉलोनी और अपार्टमेंट निर्माण की अनुमति मिल रही है लेकिन ग्राम एवं नगर निवेश द्वारा  गंदे पानी के बहाव की दिशा पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
पिछले साल था घातक  प्रदूषण
जानकारी के अनुसार वर्ष 2013 -14 में नर्मदा नदी के किनारे से साल में दो बार प्रदूषण की जांच के लिए सैम्पल लिए गए थे। इन सैम्पल के बाद जो रिपोर्ट आई थी, उसमें बीओडी का स्तर 2 एमएम से उपर था। यानी के बी ग्रेड का पानी नर्मदा नदी का था। इस पानी को बिना शुद्ध किए पीना घातक था। नर्मदा में बढ़ते प्रदूषण को चिंताजनक बताया गया था। वहीं इस वर्ष पीने योग्य हो गया है। वर्ष 2014-15 में नर्मदा नदी के प्रदूषण के लिए जब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सैम्पल लेकर जांच की तो नर्मदा नदी का पानी ए ग्रेड का पाया गया।
ऐसे हुआ  चमत्कार
नर्मदा नदी का प्रदूषण एक  ही वर्ष में कैसे कम हो गया तथा इसका पानी पीने योग्य कैसे बन गया? यह चमत्कार हुआ है सम्पैल लेने के बदले तरीके के कारण । वर्ष 2015 में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा नर्मदा नदी  के सैम्पल घाट के दोनों किनारो तथा नदी की बीच धार से लिए। इसके बाद तीनों सैम्पल को मिलाने के बाद एक सैम्पल तैयार किया । इसके बाद  इसकी जांच कर ग्रेडिंग की गई। परिणाम स्वरूप नर्मदा का पानी एक ग्रेड का बन गया  है।

वर्जन
नदी का प्रदूषण सिर्फ किनारे के पानी से लेना उचित नहंी था जिसके कारण इस बार से तीन चार स्थानों से सैम्पल लेने के बाद उनका मिलाकर एक सैम्पल तैयार कर उससे प्रदूषण का ग्रेड तय किया गया है और यही तरीका प्रदूषण नापने का सही है।
एमएम द्विवेदी
क्षेत्रीय अधिकारी प्रदूषण
नियंत्रण मंडल जबलपुर
बाक्स

नर्मदा जल की गुणवत्ता की जांच फिर करने निर्देश
नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के पीजी नाजपांडे ने बताया कि एजीटी ने नर्मदा जल की गुणवत्ता की फिर परीक्षण करने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निर्देश दिए है। नर्मदा नदी के प्रदूषण की जांच के लिए जो सैम्पल लिए गए हैं, उसमें गडबड़ी की गई है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की याचिका पर नेशनल ग्रीन ट्रिव्यूनल भोपाल ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नर्मदा के तीस स्थानों के सैम्पल लेकर फिर से जांच करने के निर्देश देते हुए नई रिपोर्ट 17 मार्च कर प्रस्तुत करने निर्देश दिए है। उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच का आरोप है कि एजीटी के निर्देशों के बावजूद प्रदूषण मंडल बोर्ड ने आज दिनांक तक कहीं से नए नमूने जांच के लिए नहंीं लिए  है। वहीं उपभोक्ता  मार्गदर्शक मंच का आरोप है कि पूर्व में  प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नगर निगम जबलपुर को नर्मदा को प्रदूषण से बचाने एक्सन प्लान बनाने के निर्देश देते हुए 90 दिनों का समय दिया था लेकिन ये अवधि बीतने के बाद भी नगर निगम ने कोई प्लान बनाकर कार्य नहीं किए है।

No comments:

Post a Comment