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*चेहरे में चमक और माता-पिता के चेहरे की मुस्कान लौटी
दीपक परोहा
9424514521
कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. अच्युत खांडेकर और उनकी टीम ने जबलपुर शहर में बच्चों के दिल में छेद बंद करने पिछले कुछ दिनों में 16 आॅपरेशन किए है। इसमें सर्वाधिक चुनौती पूर्ण आॅपरेशन में डेढ़ साल के बच्चे का था, जिसके दिल में एक नहीं तीन छेद थे। दिल में छेद होने के कारण वह बेहद कमजोर एवं सुस्त हो गया था। उसके दिल की धड़कने भी कम थी, ऐसे में अपने अनुभव और दक्षता पर भरोसा रखते हुए डॉ अच्युत खांडेकर ने अपनी टीम के साथ सफल इलाज किया। बिना आॅपरेशन किए जांघ से तार डालकर दिल का छेद बंद किया गया। महानगरों की तर्ज पर पहली बार जबलपुर में दिल के छेद बंद कर ने की आधुनिक तकनीक से इलाज प्रारंभ किया गया है।
डॉ खांडेकर ने बताया कि नरसिंहपुर निवासी डेढ वर्षीय मुन्ना के माता -पिता बुरी तरह निराश हो गए थे। नागपुर सहित कई शहरों में बच्चे का दिखा चुके थे और डॉक्टर भी उसका इलाज करने से बच रहे थे। उनका कहना था कि बच्चा बहुत कमजोर है। कुछ स्वस्थ हो जाए तभी इलाज किया जाएगा। किन्तु इससे बच्चे के दिल का छेद और बड़ा होने का खतरा भी बना था। इस बच्चे के दिल में छेद होने से दिन -प्रतिदिन कमजोर होता जा रहा था। उसकी चेहरे में चमक खत्म हो चुकी थी। मात्र 20 मिनट में सफलता पूर्वक जांघ से तार डालकर बच्चे के दिल का छेद बंद कर दिया यगा। बालक के चेहरे में एक दिन में ही मुस्कान लौट आई और उसके माता पिता के चेहरे खिल गए।
डॉक्टर अच्युत्य खांडेकर एक साल से जबलपुर में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वे वर्ष 2010 मे कॉडियोलॉजिस्ट हैं तथा हिन्दुजा मुम्बई में उन्होंने आधुनिक उपचार तकनीकि सीखी है।
ऐसे हुआ इलाज
डॉक्टर खांडेकर ने बताया कि बच्चे की जांघ से कैथेरेटर डाला गया था और दिल के छेट के पास छतरी नुमा पार्ट खोला गया जिससे उसके दिल के छेद बंद हो गया। अब छेद बंद होने के बाद बच्चा अपना सामान्य जीवन जी सकेगा। वह भागदौड़-खेलकूद सामान्य बच्चों की तरह करेगा। इस तरह के आॅपरेशन को करने में मात्र 20 मिनट लगता है। दरअसल यह आॅपरेशन नहीं होता है। बच्चे के दिन में तार द्वारा एम्पलाजर ट्रांसप्लांट किया गया था। इस तकनीक से इलाज के दौरान ं किसी प्रकार के चीड़-फाड़ की जरूरत नहीं पड़ती है। यह तकनीक बहुत सुरक्षित है। बच्चों में जन्मजात हार्ट में छेद की विकृति होने पर जल्द से जल्द इलाज करा लेना चाहिए ।
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आतंकी और कातिलों को लगेंगे जीपीएस बैल्ट
* भोपाल जेल से दो कुख्यात
अपराधियों के भागने के बाद
लिया गया निर्णय
जबलपुर। मध्य प्रदेश के खूंखार कैदी और जघन्य हत्यारों को जीपीएस बैल्ट लगाए जाने का निर्णय लिया है। केन्द्रीय जेल के ऐसे दो सौ अपराधियों के लिए जीपीएस बैल्ट की जरूरत है जिसके लिए इलेक्ट्रानिक्स कंपनी से संपर्क किया जा रहा है। यदि सब कुछ ठीक चलता हौ तो कैदियों को जीपीएस बैल्ट लगाया जाएगा। इससे यदि कैदी जेल तोड़कर भागते है तो उनकी जीपीए से लोकेशन का पता चल जाएगा और जल्द ही जेल प्रहरी और पुलिस घेर कर अपराधी को पकड़ कर सीखचों के पीछे डाल देंगे।
मध्य प्रदेश की जेलों में कई दुर्दांत डकैत और अपराधियों के साथ ही आतंकवादी तथा नक्सली बंद है। खंडवा से सिमी के गुर्गे भागने जैेसी संगीन घटनाएं प्रदेश में हो चुकी है। जघंन्य हत्यारे जेल से भागते है तो वे समाज के लिए घातक है। भोपाल जेल से दो बंदियों के भागने के बाद जेल विभाग ने निर्णय लिया है कि कोई ऐसा सिस्टम विकसित किया जाए कि यदि बंदी भागते भी है तो उनको शीघ्र खोज निकाला जाए। इसके लिए कुख्यात आतंकी ,नक्सलियों तथा हत्या के आरोपियों व अपराधियों को ये बैल्ट बांधा जाएगा।
एक परिकल्पना काफी अर्से से रही है कि कुख्यात अपराधियों के शरीर में ही जीपीएस पिच फिट की जाए जिससे वे कहीं भी जाते है तो उनकी लोकेशन खोजी जा सके लेकिन जहां ऐसी तकनीकि अभी सहजता से मौजूद नहंी है और न ही मानवाधिकार इसकी अनुमति इतनी आसानी से देगा। इसके चलते ऐसा बेल्ट बनाए जाने की जरूरत समझी गई जिसको कैदी आसानी से उतार नहीं सकता है और कैद के दौरान उसकी लोकेशन पर 24 घंटे मानीटरिंग जेल के कंट्रोल रूप से की जाए। भागता है तो उसे तत्काल पकड़ लिया जाए।
क्या होगा फायदा
जेल अधिकारियों की माने तो इस बेल्ट से ये फायदा रहेगा कि लगातार रेल के कंट्रोल रूम में उसकी बैरक में मौजूद होने का सिग्नल मिलता रहेगा। यदि वह भागने की फिराक करता है तथा अपना लोकेशन बदलता है तो तत्काल सिग्नल मिलने पर उसकी गतिविधियां रोकी जाएगी। यदि वह भाग भी निकलता है तो जेल से कुछ ही फासले में उसे तत्काल दबोच लिया जाएगा।
वर्जन
पिछले दिनों जेल अधिकारियों की बैठक में व्यवहारिक तौर से जीपीएस सिस्टम के बैल्ट बांधे जाने को लेकर सहमति जाहिर की गई है। इसको लेकर प्रस्ताव शासन को भेजा जाएगा। अभी इस दिशा में काम चल रहा है अंतिम निर्णय नहीं हुआ है।
एके खरे
एआईजी जेल भोपाल
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एक बच्चे की मां बिकी हरियाण में 1 लाख में
सिवनी में मानव तस्करी का मामला
3 आरोपी जेल भेज गए
जबलपुर। एक युवती को प्रेम जाल में फंसा कर उसको एक बच्चे की मां बनाने वाले शादी शुदा व्यक्ति का जब युवती से मन भर गया तो उसको हरियाणा में एक लाख रूपए में बेच गया। युवती को करीब 4 माह तक बंधक की तरह रखा गया। वहां से भाग कर आई युवती ने प्रेमी की बेवफाई और अपने हुए अत्याचार की रिपोर्ट पड़ोसी जिला सिवनी के कुरई थाना में दर्ज कराई। पुलिस ने मानव तस्करी तथा बंधक बनाए जाने का प्रकरण दर्ज कर तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है।
जबलपुर सहित आसपास के जिले मंडला, डिंडौरी, बालाघाट तथा सिवनी में लगातार मानव तस्करी के मामले सामने आ रहे है। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के सीमवर्ती कुरई थाने के ग्राम ग्राम जुनारखेड़ा की 23 वर्षीय अनिता (काल्पनिक नाम) की जान पहचान पड़ोसी गांव के थांवरजोड़ी निवासी अर्जुन गौंड से हुई। अर्जुन गौड़ के प्रति अनिता आकर्षित हुई। यह मालूम होने के बावजूद कि अनुर्जन गौंड शादी शुदा है, वह उसके प्रेम जाल में उलझ कर रह गई। प्रेमी ने अनिता का दैहिक शोषण करने लगा। वह गर्भवती हो गई लेकिन इसके बावजूद उसने उससे विवाह नहीं किया। गांव वालों के दबाव और समाज के भयवश अर्जन ने अनिता को पत्नी की तरह बिन ब्याह के रखा लिया। कुछ माह पहले अनीता ने एक बच्ची को जन्म दिया। बच्ची के जन्म बाद करीब 3 महिला अर्जन के पास अनीता रही। इस बीच वह अनीता से छुटकारा पाने की जुगत में लग गया।
हरियाण के मुकेश से मुलाकात
कुछ माह पूर्व अुर्जन की हरियाणा निवासी मुकेश अग्रवाल से उसकी कुरई में मुलाकात हुई। मुकेश की पत्नी की मौत हो चुकी थी तथा उसकी दूसरी शादी नहीं हो रही थी तथा वह किसी ऐसी युवती की तलाश में था जो उसके बच्चों की देखरेख करे तथा वह उसे दासता पत्नी की तरह रख सके। इसके लिए वह रकम खर्च करने तैयार था। अर्जुन ने उसे अपनी दासता पत्नी अनीता को दिखाया। अर्जुन की मां भी अपनी अनचाही बहु से छुटकारा पाना चाहती थी। अर्जुन तथा उसकी मां लछमनिया बाई उम्र 52 वर्ष ने अनीता को 1 लाख रूपए में बेचने का इरादा कर लिया और मुकेश अग्रवाल निवासी महेन्द्र से 1 लाख रूपए ले लिए।
घुमाने के बहाने ले गया
करीब 4 माह पहले अर्जुन अनीता तथा उसकी बच्ची को घुमाने के बहाने महेन्द्रगढ़ हरियाणा ले गया जहां पीड़िता को घुमाने के बहाने बच्ची समेत हरियाणा ले गया। यहां उसने महेन्द्रगढ़ निवासी मुकेश अग्रवाल के घर अनीता और उसकी बच्ची का ेछेड़ कर भाग आया। यहां महेन्द्र अनीता से रात दिन मेहनत मजदूरी कराने लगा। घर का पूरा काम काज वह देखती थी। उससे खेत में भी काम कराया जाता था जबकि रात्रि में मुके श अनीता का अपनी हवस का शिकार बनाता रहा। जी-तोड़ मेहनत और दैहिक शोषण से परेशान अनीता किसी तरह अपनी बच्ची को लेकर वहां से भागने में कामयाब हुई और यहा कुरई थाने में एफआईआर दर्ज कराई।
वर्जन
पुलिस ने पीड़िता की रिपोर्ट पर अर्जुन, अर्जुन की मां तथा मुकेश अग्रवाला के खिलाफ मानव तस्करी के तहत भादंवि की धारा 470,471, 344, 34 के तहत अपराध पंजीबद्ध कर तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया है। मामले की विस्तृत जांच की जा रही है।
शिवराज सिंह
टीआई कुरई
राजस्थान में बिकी थी युवती
सिवनी जिले के ही हुगली थाना क्षेत्र की एक युवती को चार माह पहले राजस्थान में बेचा गया था। इस युवती के बचकर आने के बाद मामले का खुलासा हुआ। उल्लेखनीय है कि सिवनी सहित जबलपुर जिले की युवतियों को राजस्थान, हरियाणा, छतरपुर तथा बांदकपुर में बेचे जाने की अनेक घटनाएं हो चुकी है। उक्त क्षेत्र में यहां भगाकर ले जाए जाने वाली युवतियां बिक रही है। अब तक दर्जनों युवतियों के गायब होने का कोई सुराग नहीं मिला है।
हाल ही में मंडला में हुई घटना
हाल ही में एक युवती को दिल्ली में बेचे जाने की घटना हुई। एक एनजीओं के प्रयास से युवती मंडला वापस लौट कर आई । मंडला में बीते एक साल में मानवतस्करी से जुडे 8 मामले प्रकाश में आ चुके है। इसी तरह बालाघाट में करीब 70 अपहरण के मामले है जिसमें से कुछ मामलों में मानवतस्करी का मामला भी दर्ज किया गया है। उक्त क्षेत्रों से दक्षिण भारत तथा उत्तर भारत में बेरोजगार किशोर एवं बालाओं को काम धंधा दिलानें का झांसा देकर उन्हें बेचने वाले कई गिरोह सक्रिय है।
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नाक से निकाले सौ से अधिक कीड़े
जागरूकता के अभाव के कारण बढ़ती है बीमारी
आज से करीब 15 साल पहले जब मै नरसिंहपुर जिले में देवरी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में पदस्थ था तब 16 वर्षीय लड़की अनीता बाई इलाज के लिए अस्पताल पहुंची। उसको कई महीनों से लगातार सर्दी बनी हुई थी तथा नाक से खून बहने लगा था तथा मवाद भी आ रही थी। चैकअप करने पर पता चला कि उसके साइनस में कीड़े भर चुके थे। यही कीडेÞ बाद में दिमाग तक पहुंच सकते थे जो उसकी मौत का कारण बन जाते।
विक्टोरिया अस्पताल जबलपुर में पदस्थ नाक-कान- गला रोग विशेषज्ञ डॉ.के सी गुप्ता जब देवरी में पदस्थ थे तब उन्होंने इस ग्रामीण बाला का इलाज किया तथा उसकी जान बचाई। डॉ श्री गुप्ता ने बताया कि लड़की की नाक में दवा डालने के बाद कीड़ों को बेहोश किया गया तथा कुछ कीडेÞ दवा से मर भी गए थे। इसके बाद तालू के नीचे से मुंह के रास्ते से एक- एक कर कीड़े निकाले गए। करीब सौ से अधिक कीड़े उसके नाक से निकाले गए। जानलेवा सर्दी से उसका जान बच गई।
लगातार सर्दी खतरनाक
डॉक्टर गुप्ता का कहना है कि लगातार सर्दी बनी रहना ठीक नहीं है। आमतौर पर लोग सर्दी होने पर बीमारी का इलाज नहंीं कराते है तथा घरेलू नस्खे से ही बीमारी ठीक करने का प्रयास करते है। सर्दी खरनाक हो जाती है। सर्दी के कारण वैक्टेरियल इंफैक्शन नॉक नलिका के साथ कान में भी इंफैक्शन का कारण बन जाते है।
कान में मैगॉट्स
डॉक्टर गुप्ता का कहना है कि कान में भी फंगस एवं बैक्टीरियल इंफैक्शन अक्सर हो जाता है लेकिन इसका इलाज नहीं कराया जाता है जिससे पर्दे में छेद हो जाता है तथा बहरापन का कारण बन जाता है। उन्होंने बताया कि कान में इंफैक्शन के दौरान कीड़े पड़ने लगते है जिन्हें मैगॉट्स कहते है। ये सफेद रंग के छोटे-छोटे कीड़े व्यक्ति की कॉन का मांस खाकर जिंदा रहते है, ये कीड़े दिमाग में पहुंच जाए तो मरीज की मौत हो जाती है। कान में कीड़े पड़ने के 25 से ज्यादा मामले विक्टोरिया अस्पताल में उनके सामने आए जिसका इलाज किया गया, और लगभग सभी मरीज ठीक हुए है। उन्होंने कहा कि ज्यादा दिन कान या नॉक में घाव बने रहने से उनमें कीड़े पड़ जाते है।
क्यों होता है काम में इंफैक्शन
आखिर कॉन में बच्चों एवं बड़ों को क्यों इंफैक्शन होता है? इस संबंध में उनका कहना है कि जागरूकता का अभाव ही इसका मुख्य कारण है। कान से मैल निकालने की लोगो की आदत होती है। इस मैल को निकालते वक्त दूषित काड़ी का उपयोग बिलकुल नहीं करना चाहिए। नमी युक्त वातावरण में कई बार मामूली इंफैक्शन तथा कान दर्द की शिकायत होना आम बात होती है। ऐसे में लोग बच्चों के काम में कच्चा दूध अथवा तेल डालते है। यहीं दूध और तेल बाद में रोग का कारण बन जाता है। उन्होंने बताया कि नहाते वक्त कान में गंदा पानी जाने से इंफैक्शन एवं दर्द की शिकायत होती है तथा मामूली दर्द का घरेलू उपचार बड़ी बीमारी का कारण बनता है। कान को बचाकर रखना बेहद जरूरी होता है।
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मैगॉट्स क्या है
डॉ. गुप्ता ने बताया कि कान में इंफैक्शन के दौरान कीड़े पड़ने लगते है जिन्हें मैगॉट्स कहते है। ये सफेद रंग के छोटे-छोटे कीड़े व्यक्ति की कॉन का मांस खाकर जिंदा रहते है, ये कीड़े दिमाग में पहुंच जाए तो मरीज की मौत हो जाती है। कीट के अंडे दरअसल इंफैक्शन के मक्खी अथवा अदौरान कान में मक्खी
उस व्यक्ति का इलाज करने वाले डॉक्टर विक्रम यादव ने इलाज के बाद यह वीडियो यू-टयूब पर अपलोड किया है. उन्होंने बताया कि दरअसल जब वह व्यक्ति सो रहा था तो उस दौरान घरेलू मक्खी उसके कान घुस गई थी. मक्खी ने उसके कान में अपने लार्वा छोड़ दिए जो बाद में सैंकड़ों कीड़े बन गए और उसके कान का मांस खाकर बढ़ने लगे. इनमें से हर कीड़ा करीब 1 सेंटीमीटर लंबा था.
डॉक्टर विक्रम जब इन कीड़ों को उसके कान से चिमटी की मदद से बाहर निकाल रहे थे तो कीड़ों को छटपटाते हुए साफ देखा जा सकता था. इसके बाद उन्होंने कीड़ों को एक प्लास्टिक टयूब में रख दिया, जहां वे रेंगने लगे. इस तरह का इनफेक्शन ट्रॉपिक्स और सब ट्रॉपिक्स में आम है और यह 10 साल से कम उम्र के बच्चों व बीमार लोगों में ज्यादा होता है.
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मेनईटर को खुले जंगल में छोड़ने कवायद
भोपाल में होने वाली पीसीसीएफ
की बैठक में होना है निर्णय
जबलपुर। बांधगढ़ के बफर जोन तथा उससे लगे इलाके में आतंक का कारण बने मेनईटर हो गए दो बाघों को कई महीनों से इंक्लोजर में कैद रखा गया है। इन दोनों बाघों पर लगातार नजर रखी जा रही है। नेशनल पार्क में इन दोनो बाघों को मेनईटर घोषित तो नहीं किया है लेकिन उन्हे मेनईटर ही मान कर इनक्लोजर में रखा है। इस दोनों बाघ ने एक शिक्षक सहित 7 लोगों को मार डाला था। इनमें एक बांधवगढ़ का महावत भी था। कई माह इनक्लोजर में रखने के बाद बाघों को खुले जंगल में छोड़ने फिर कवायद शुरू कर दी गई है।
ज्ञात हो कि बरही तथा पान उमरिया क्षेत्र में इन दोनों बाघों ने वर्ष 2014 में काफी आंतक मचा रखा था। इन बाघों पर हाथियों से भी निगाह करने कोशिश कर दी थी लेकिन जब बाघ ने एक हाथी पर ही हमला कर महावत को मार डाला तो इसके बाद हाथी भी इस बाघ के निकट जाने से बचने लगे थे। खितौली क्षेत्र के इन बाघों ने जब गत वर्ष नवम्बर माह में ग्राम खितौली के शिक्षक अमोस लाकरा को उस वक्त खा लिया जब वह जंगल के निकट शौंच के लिए गया था। इस घटना के बाद वन अधिकारियों का कहना था कि घटना स्थल के समीप बाघ ने किसी मवेशी का शिकार किया था तथा शिक्षक वहां पहुंच गया था जिसके कारण बाघ ने मार डाला। किन्तु बाघ ने शिक्षक को आधा खा लिया था। इस घटना के बाद लोगों के प्रदर्शन एवं हंगामें के बाद रेस्क्यू चलाकर उक्त बाघों को पकड़ा गया था।
तब से है बहेरहा में
इस घटना के बाद बाघों को बेहरहा के इंक्लोजर में बंद करके रखा गया था। पहले वन अमले की योजना थी बाघों को वन विहार भोपाल सिफ्ट कर दिया जाएगा लेकिन इसके लिए उन्हें अनुमति नहंी मिल पाई। बाघों को लगाकर इंक्लोजर में रखकर उनकी गतिविधियों पर नजर रखी गई। इसके लिए एक आब्जर्वेशन कमेटी बनाई गई थी। इन्क्लोजर में कैमरे लगाए गए थे। सूत्रों की माने तो बाघों को जंगली जानवर चीतल , सांभर आदि का शिकार करने का मौका दिया गया। उनके शिकार करने का तरीका पूर्ण वाइल्ड लाइफ की तरह था। इनके स्वभाव में भी बदलाव महसूस किया गया। इसके पूर्व वे बेहद आक्रमक थे लेकिन अब वे जंगल के जीवन के अनुरूप ढले हुए महसूस किए गए। कमेटी ने रिपोर्ट दी है कि इन टाइगरों को जंगल में छोड़ा जा कसता है। ।
बांधवगढ़ में नहीं छोड़ा जाएगा
बांधवगढ़ नेशनल पार्क में वैसे ही टाइगरों का घनत्व अधिक है तथा यहां नर बाघ काफी संख्या में है। इसके चलते उनको जंगल में छोड़ने पर टाइगरों में आपसी संघर्ष छिड़ने की आशंका है । इसके चलते उनको संजय गांधी नेशनल पार्क में छोड़ने का इरादा है। मुकुंदपुर टाइगर सफारी में बाघों को रखने पर भी विचार चल रहा है । इसेक अतिरिक्त संजय गांधी धुबरी नेशनल पार्क में छोड़ने का विचार चल रहा है। फिलहाल निर्णय नहीं हो पाया है।
वर्जन
बाघों को सिफ्ट करने को लेकर बैठक करके निर्णय लिया जाएगा। फिलहाल क्या निर्णय लिया जाएगा, यह बैठक के उपरांत ही बताया जा सकेगा।
रवि श्रीवास्तव, पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ
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बिना लायसेंस के चालकों से दुर्घटना
राज्य 2012 2013 2014
यूपी 3635 6893 7240
एमपी 4783 4469 3373
तमिलनाडू 3468 3441 3854
नाबालिगों द्वारा रोड एक्सीडेंट
राज्य 2012 2013 2014
यूपी 5381 5082 3694
एमप 2935 2801 2684
तमिलनाडू 2068 1582 ---
*नोट- उक्त आंकड़े पुलिस द्वारा प्राप्त हुए हैं
एमपी-यूपी के नाबालिग बाइक में फर्राटे लगाने में नम्बर वन
सर्वाधिक नाबालिग दुर्घटना का हो रहे शिकार, बिना ड्रायविंग लायसेंस वाहन चलाने में भी नम्बर वन
जबलपुर। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में नाबालिग यंगस्टर में बाइक से धूम मचाने का क्रेज सर्वाधिक है। ये बात राज सभा में प्रस्तुत किए गए आंकड़ो से साबित होती है। दरअसल बाइक तथा अन्य सड़क दुर्घटना का शिकार सबसे अधिक इन्ही दो प्रदेशों में हो रहे है। नम्बर वन में यूपी तथा नम्बर टू में एमपी है। मध्य प्रदेश में शहरी ही नहीं ग्रामीण व कस्बाई इलाके में भी बाइकर्स की धूम सुर्खियों में रहती है। पुलिस प्रशासन भी इन स्टंडबाज बाइकर्स पर लगाम नहीं ला पा रह है।
प्रदेश शासन ने बढ़ती हुई सड़क दुर्घटना को लेकर चिंतित है। खास तौर पर इस दुर्घटनाओं में नाबालिग बड़ी संख्या में शिकार हो रहे है। इसको लेकर राज्य स्तर पर सड़क सुरक्षा समिति ने एक्शन प्लान भी तैयार किया है जिससे सड़क दुर्घटनाओं में कमी आए। इसके तहत सर्वाधिक दुर्घटना के घनत्व वाले क्षेत्रों को ट्रेफिक इंजीनियरिंग के मुताबिक विकसित किया जाना है। इसके साथ ही यातायात के प्रति जागरूकता लाने ठोस उपाय किए जाने हैे। स्कूल कॉलेजों के समीप ट्रेफिक की विशेष व्यवस्था दी जाएगी। ट्रेफिक संबंधी अधोसंरचान के विकास के साथ शराब की दुकानें मुख्य सड़कों से दूर करना तथा पेट्रोल पम्पों को लेकर भी महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाने है।
35 हजार लायसेंस बने
एक तरफ नाबालिग तेजी से दुर्घटना के शिकार हो रहे है। दूसरी तरफ नाबालिग बड़ी संख्या में वाहन चला रहे है लेकिन उनके पास लायसेंस नहंी हैद्व इसके साथ ही बिना लायसेंस के वाहन चलाए जाने में भी प्रदेश शीर्ष प र है। इसको लेकर परिवहन विभाग द्वारा व्यापक पैमाने में लायसेंस बनाने अभियान भी चलाया जा रहा है। स्कूला, कालेजों में ड्रायविंग लायसेंस बनाने कैम्प चलाए जा रहे है। इसके साथ ही ब्लाक और पंचायत स्तर पर भी लायसेंस बनाने कैप लग रहे है। प्रदेश में बीते 3 माह में 35 हजार लायसेंस कैम्प लगाकर बनाए गए है।
वर्जन
मध्य प्रदेश में यातायात के प्रति जागरूकता लाने काफी प्रयास किए जा रहे है। इसके साथ ही ड्रायविंग लायसेंस बनाने का काम तेजी से किया जा रहा है। दुर्घटनाओं में बालिग एवं नाबालिग दोनों ही शिकार होते है। स्कूलों में अस्थाई लायसेंस बनाने के कैम्प चलाए जा रहे है।
एसएन मिश्रा
प्रमुख सचिव , परिवहन विभाग
वर्जन
सड़क दुर्घटनाआें को कम करने मध्य प्रदेश सरकार तेजी से काम कर रही है। स्कूली बसों आदि के लिए कड़े नियम बनाकर उसका परिपालन कराया जा रहा है। वाहन चलाने की पात्रता रखने वालों के लायसेंस तेजी से बनाए जा रहे है। महिलाओं के लिए लायसेंस फीस फ्री की गई है। स्कूल, कालेज और ग्रामीण क्षेत्रों में कैप लगाकर लायसेंस बनाए जा रहे है।
भूपेन्द्र सिंह
परिवहन मंत्री मप्र
प्रमुख सचिव परिवहन विभाग मप्र
मप्र टेलीफोन डायरेक्टरी
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प्रदेश में पहली बार टाइगरों की गिनती करेगा वन अमला
नेशनल पार्क एवं अभ्यारण्य मेंं गिनती शुरू
पांच हजार से अधिक कर्मचारी जुटे
जबलपुर। मध्य प्रदेश में पहली बार वन्य प्राणियों की गिनती प्रदेश के 52 वन मंडलों एवं नेशनल पार्क के वन्य कर्मियोंं द्वारा की जा रही है। सभी नेशनल पार्क में 31 जनवरी से गिनती शुरू कर दी गई है जो 5 फरवरी तक चलेगी।
वन विभाग द्वारा कान्हा, पेंच, बांधवगढ, पन्ना, संजय गांधी, सतपुड़ा, भोपाल स्थित वन विहार, सहित 11 नेशनल पार्क एवं अम्यारण्य में गिनती प्रारंभी की गई है जिसमें 5 हजार से अधिक कर्मचारी रखे गए है।
मालूम हो कि इसके पूर्व टाइगरों तथा वन्य प्राणियों की गणना वन्य प्राणी अनुसंधान संस्थान देहरादून द्वारा किया जाता रहा है। प्रदेश में करीब 28 हजार वन्य कर्मियों का भारी भरकम अमला मौजूद है। इसके बावजूद गिनती के लिए बाहर की एजेंसी को बुलवाना पड़ता था। शासन ने इस वर्ष से स्वयं के संसाधनों से गिनती करने का निर्णय लिया। जबलपुर स्थित राज्य वन अनुसंधान केन्द्र को नोडल एजेंसी बनाया गया है। नेशनल पार्क में शाकाहारी एवं मांसाहारी जीव की गणना होकर डाटा यहां पहुंचेगे। इसके बाद दूसरे चरण में 10 फरवरी के बाद वन मंडलों में वन्य प्राणियों की गिनतीहोनी है।
नेशनल पार्क में वन्य प्राणियों की गणना के कार्य के चलते जहां ट्रांजिस्ट लाइन खींच कर वहां कैमरे आदि लगाए गए है। वहीं वन्य प्राणियों की गिनती के लिए वन कर्मियों के दस्ते नेशनल पार्क एरिया तथा कोर एरिया में घुस रहे है। इसके साथ ही बफर जोन में भी गिनती की जा रही है।
जानकारी के अनुसार मध्य प्रदेश में सर्वाधिक बाघ कान्हा नेशनल पार्क में है जबकि बांधवगढ़ तथा पन्ना नेशनल पार्क में बाघों का घनत्व बेहद अधिक है। पेंच में बड़ी संख्या मे बाघ ,तेन्दुआ और अन्य शाकाहारी जीव चीतल , सांभर, हिरण, भालू तथा अन्य वन्य जीव पाए जाते है। सतपुड़ा नेशनल पार्क में काले हिरणों की संख्या काफी है। वन्य प्राणियों की गणना सैम्पलिंग प्रणाली से की जाना है जिसके तहत वन्य प्राणियों को भौतिक रूप से देखा जाएगा। इसके अतिरिक्त उनके शरीर में मौजूद चिंह, जानवरों के पग मार्क आदि के सैम्पल दर्ज किए जाएंगे।
जबलपुर में हुआ प्रशिक्षण
वन्य प्राणियों की गणना के लिए राज्य वन अनुसंधान केन्द्र में विभिन्न चरण में वन्य प्राणियों की गणना के लिए देहरादून से आए विशेषज्ञों द्वारा प्रशिक्षण भी प ्रदान किया जा चुका है। अब देखना यह है कि वन अमले द्वारा की जाने वाली गणना कितनी सटीक होती है।
टाइगर गणना रही है विवाद में
देश में टाइगरों की गणना हमेश विवाद में रही है। जहां एक तरफ टाइगरों की संख्या कई राज्यों में अनावश्यक बढ़ाए जाने के आरोप है यहां तक एनीमेशन से फर्जी वीडियो तैयार करने तक का आरोप लगा है। इसी के चलते मध्य प्रदेश से टाइगर स्टेट होने का दर्जा भी छिन चुका है। अब नई गणना में कितने टाइगर एवं तेन्दुए आते है यह सामने आएंगे।
सर्वाधिक तेन्दुए मौजूद
मध्य प्रदेश के जंगल में सर्वाधिक तेन्दुए पाए गए है। इसके पूर्व हुई गणना में इनकी संख्या 4 हजार से उपर थी। लेकिन जानकारों का कहना है कि तेन्दुआ छिप कर रहने वाला प्राणी है जिसके कारण तेन्दुए की गणना बेहद कठिन और जटिल काम है। यदि सही तरीके से गणना होती है तो प्रदेश में तेन्दुए की संख्या 5 हजार के करीब पहुंच सकती है।
ऐसे होनी है गणना
बताया गया कि पहले तीन दिन मांसाहारी जीवों यानी तेन्दुआ और टाइगर की गणना होगी। इस दोरान अन्य मांसाहारी जीव मिलते है तो उनकी भी गणना होगी। वहीं अंतिम तीन दिन शाकाहारी जीवों की गणना होगी। जंगल में शाम जल्द हो जाती है इसके मद्देनजर गणना े दोपहर 2 बजे के बाद बंद कर दी गई।
वर्जन
सभी पार्को में गणना प्रारंभ कर दी गई है। गणना के कार्य के बाद गणना की समीक्षा की जाएगी।
सीएच मुरली कृष्ण
डायरेक्टर राज्य वन अनुसंधान केन्द्र
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देश में । पिछले साल 1.31 लाख से ज्यादा लोगों ने अपनी जान दी। ै। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार पिछले साल राष्ट्रीय की तुलना में शहरों में आत्महत्या की दर ज्यादा थी। जहां मध्यप्रदेश में जबलपुर आत्महत्या के मामलों में शीर्ष पर हुआ करता था अब उसकी जगह भोपाल ने ली है। यहां 1हजार 64 लोगों ने बीते साल खुदकुशी की। शहरी क्षेत्र में आत्महत्या की दर 12.8 प्रतिशत आंकी गई है।
आत्महत्या के मामले में शीर्ष शहर
चेन्नई 2,214
बेंगलुरु 1,906
दिल्ली 1,847
मुंबई 1,196
भोपाल 1,064
आ
प्रदेश में गली गली मिल रहा मौत का सामान
नींद की गोली खाकर सवा सौ लोगों ने की खुदकुशी
जबलपुर। मध्य प्रदेश में आत्महत्या के आंकड़े चिंताजनक हालत पर पहुंचते जा रहे है। औसतमन प्रतिदिन दो दर्जन लोग आत्म हत्या कर रहे है। मध्य प्रदेश में पौन चार हजार लोगों ने आत्महत्या की है। नेशनल क्राइम ब्यूरों के आंकड़ो के मुताबिक सर्वाधिक मौते इम्पुल इंजैक्शन के सेवन के कारण हुई है। इस मौतों में केवल ढाई हजार मौत का कारण इम्पुल रहा है। इसके साथ ही नींद की गोली खाकर करीब सवा सौ लोग खुदकुशी कर चुके है।
मध्य प्रदेश में तेजी से आत्महत्याओं का ग्राफ बढ़ा है। इन आत्महत्या के तरीकों पर गौर किया जाए तो लोगों ने सबसे सरल तरीका जहर पीकर खुदकुशी करना लगता है। जानकारी के अनुसार इम्पुल सहित अन्य कीटनाशक पीकर ढाई हजार से अधिक लोगों ने मध्य प्रदेश में खुदकुशी है। इसके अतिरिक्त फांसी लगाकर, ट्रेन से कटकर तथा नदी व कुए में कूद कर जान देने की घटानाएं जहर सेवन से आधी है। जहर सेवन के मामले में नींद की गोली खाकर करीब सवा सौ आत्महत्या वर्ष 2014-15 में की गई है। यह संख्या भी बेहद अधिक समझी जा रही है।
बिक रही प्रतिबंधित दवाएं
बताया गया कि कम्पोज तथा ट्राइका जैसी दवाइयां लगभग बैन कर दी गई है। इसके बावजूद ट्राइका सहित अन्य नींद की दवाइयां प्रदेश भर में मेडिकल स्टोर्स में डॉक्टर पर्चे और बिना पर्चे के आसानी से मिल रही है।
दस से अधिक गोलीनहीं मिलेगी
नियम है कि नींद की तथा नशे से संबंधित गोलियां दस से अधिक डॉक्टर के पर्चे में भी नहंी मिलती है। एक बार कोई पर्चा लिखवाने के बाद चाहे तो अलग अलग मेडिकल स्टोर्स से ये दवाइयां खरीद लेता है। दस की जगह सैकड़ा भी गोली आसानी से खरीद सकता है। इन दवाइयों की बिक्री का कोई रिकार्ड नहंी रखा जा रहा है। जानकारों की माने तो नींद की गोली की पर्चा से दवाई देने के बाद मेडिकल स्टोर्स संचालक को गोली देने की जानकारी पर्चे में दर्ज करनी चाहिए जिससे वह इसी पर्चे से दूसरी जगह गोलियां न खरीद सके।
पचास से अधिक जरूरी
जानकारों की माने तो नींद की गोली खाकर आत्महत्या करने वाले व्यक्ति को 40-50 गोली खानी पड़ती है तभी उसकी मौत होती है। प्रदेश में करीब सवा सौ लोगों ने नींद की गोला खाकर आत्महत्या की है जिससे जाहिर है कि नींद की गोली मिलना आसान काम है।
इम्पुल प्रतिबंधित
इसी तरह बढ़ताी आत्महत्या की घटनाओं के मद्देनजर सल्फास को पूरी तरह खुली बिक्री प्रतिबंधित है। इसके बावजूद किसी भी किराना स्टोर्स में बिना रोकटोक के चूहा मार दवाई के नाम पर सल्फास मिल जाता है। सर्वाधिक आत्महत्या की घटनाएं इम्पुल इंजैक्शन फोड़ कर पीने से हुई है। इम्पुल इंजेक्शन किसी भी कृषि दुकान में बेहद आसानी से मिलता है। नियम यह है कि इम्पुल इंजेक्शन किसानों को हीउपलब्ध कराया जाता है, वह भी ऋण पुस्तिका में इसका उल्लेख करना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।
जबलपुर आत्महत्या की राजधानी
जबलपुर में बीते साल फांसी लगाकर 585 लोगो ने आत्महत्यांए की। इसी तहर एम्पुल सहित अन्य जहर पीकर 653 तथा नदी व कुए में कूदकर 50 लोगों ने जांच दी है। बीते तीन सालों से जबलपुर पुलिस बढ़ती आत्महत्या की घटनाओं को रोकने संजीवनी अभियान चला रही है। दरअसल नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरों की वर्ष 2012 की रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि जनसंख्या की तुलना करने पर आत्महत्या क दर जबलपुर में देश में नम्वर टू पर है। 2012 में जबलपुर में 572 आत्महत्याएं हुई थीं ये 45.1 फीसदी था।
मेडिकल स्टोर्स वालों को समय समय पर डॉक्टर की पर्ची के बिना नींद की तथा अन्य प्रतिबंधित दवाइयां न देने चेतवानी दी जाती है और शिकायत मिलने पर कार्रवाई भी की जा रही है।
एमएम अग्रवाल
सीएमएमओ जबलपुर
ड्रक कंट्रोलर
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*चेहरे में चमक और माता-पिता के चेहरे की मुस्कान लौटी
दीपक परोहा
9424514521
कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. अच्युत खांडेकर और उनकी टीम ने जबलपुर शहर में बच्चों के दिल में छेद बंद करने पिछले कुछ दिनों में 16 आॅपरेशन किए है। इसमें सर्वाधिक चुनौती पूर्ण आॅपरेशन में डेढ़ साल के बच्चे का था, जिसके दिल में एक नहीं तीन छेद थे। दिल में छेद होने के कारण वह बेहद कमजोर एवं सुस्त हो गया था। उसके दिल की धड़कने भी कम थी, ऐसे में अपने अनुभव और दक्षता पर भरोसा रखते हुए डॉ अच्युत खांडेकर ने अपनी टीम के साथ सफल इलाज किया। बिना आॅपरेशन किए जांघ से तार डालकर दिल का छेद बंद किया गया। महानगरों की तर्ज पर पहली बार जबलपुर में दिल के छेद बंद कर ने की आधुनिक तकनीक से इलाज प्रारंभ किया गया है।
डॉ खांडेकर ने बताया कि नरसिंहपुर निवासी डेढ वर्षीय मुन्ना के माता -पिता बुरी तरह निराश हो गए थे। नागपुर सहित कई शहरों में बच्चे का दिखा चुके थे और डॉक्टर भी उसका इलाज करने से बच रहे थे। उनका कहना था कि बच्चा बहुत कमजोर है। कुछ स्वस्थ हो जाए तभी इलाज किया जाएगा। किन्तु इससे बच्चे के दिल का छेद और बड़ा होने का खतरा भी बना था। इस बच्चे के दिल में छेद होने से दिन -प्रतिदिन कमजोर होता जा रहा था। उसकी चेहरे में चमक खत्म हो चुकी थी। मात्र 20 मिनट में सफलता पूर्वक जांघ से तार डालकर बच्चे के दिल का छेद बंद कर दिया यगा। बालक के चेहरे में एक दिन में ही मुस्कान लौट आई और उसके माता पिता के चेहरे खिल गए।
डॉक्टर अच्युत्य खांडेकर एक साल से जबलपुर में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वे वर्ष 2010 मे कॉडियोलॉजिस्ट हैं तथा हिन्दुजा मुम्बई में उन्होंने आधुनिक उपचार तकनीकि सीखी है।
ऐसे हुआ इलाज
डॉक्टर खांडेकर ने बताया कि बच्चे की जांघ से कैथेरेटर डाला गया था और दिल के छेट के पास छतरी नुमा पार्ट खोला गया जिससे उसके दिल के छेद बंद हो गया। अब छेद बंद होने के बाद बच्चा अपना सामान्य जीवन जी सकेगा। वह भागदौड़-खेलकूद सामान्य बच्चों की तरह करेगा। इस तरह के आॅपरेशन को करने में मात्र 20 मिनट लगता है। दरअसल यह आॅपरेशन नहीं होता है। बच्चे के दिन में तार द्वारा एम्पलाजर ट्रांसप्लांट किया गया था। इस तकनीक से इलाज के दौरान ं किसी प्रकार के चीड़-फाड़ की जरूरत नहीं पड़ती है। यह तकनीक बहुत सुरक्षित है। बच्चों में जन्मजात हार्ट में छेद की विकृति होने पर जल्द से जल्द इलाज करा लेना चाहिए ।
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आतंकी और कातिलों को लगेंगे जीपीएस बैल्ट
* भोपाल जेल से दो कुख्यात
अपराधियों के भागने के बाद
लिया गया निर्णय
जबलपुर। मध्य प्रदेश के खूंखार कैदी और जघन्य हत्यारों को जीपीएस बैल्ट लगाए जाने का निर्णय लिया है। केन्द्रीय जेल के ऐसे दो सौ अपराधियों के लिए जीपीएस बैल्ट की जरूरत है जिसके लिए इलेक्ट्रानिक्स कंपनी से संपर्क किया जा रहा है। यदि सब कुछ ठीक चलता हौ तो कैदियों को जीपीएस बैल्ट लगाया जाएगा। इससे यदि कैदी जेल तोड़कर भागते है तो उनकी जीपीए से लोकेशन का पता चल जाएगा और जल्द ही जेल प्रहरी और पुलिस घेर कर अपराधी को पकड़ कर सीखचों के पीछे डाल देंगे।
मध्य प्रदेश की जेलों में कई दुर्दांत डकैत और अपराधियों के साथ ही आतंकवादी तथा नक्सली बंद है। खंडवा से सिमी के गुर्गे भागने जैेसी संगीन घटनाएं प्रदेश में हो चुकी है। जघंन्य हत्यारे जेल से भागते है तो वे समाज के लिए घातक है। भोपाल जेल से दो बंदियों के भागने के बाद जेल विभाग ने निर्णय लिया है कि कोई ऐसा सिस्टम विकसित किया जाए कि यदि बंदी भागते भी है तो उनको शीघ्र खोज निकाला जाए। इसके लिए कुख्यात आतंकी ,नक्सलियों तथा हत्या के आरोपियों व अपराधियों को ये बैल्ट बांधा जाएगा।
एक परिकल्पना काफी अर्से से रही है कि कुख्यात अपराधियों के शरीर में ही जीपीएस पिच फिट की जाए जिससे वे कहीं भी जाते है तो उनकी लोकेशन खोजी जा सके लेकिन जहां ऐसी तकनीकि अभी सहजता से मौजूद नहंी है और न ही मानवाधिकार इसकी अनुमति इतनी आसानी से देगा। इसके चलते ऐसा बेल्ट बनाए जाने की जरूरत समझी गई जिसको कैदी आसानी से उतार नहीं सकता है और कैद के दौरान उसकी लोकेशन पर 24 घंटे मानीटरिंग जेल के कंट्रोल रूप से की जाए। भागता है तो उसे तत्काल पकड़ लिया जाए।
क्या होगा फायदा
जेल अधिकारियों की माने तो इस बेल्ट से ये फायदा रहेगा कि लगातार रेल के कंट्रोल रूम में उसकी बैरक में मौजूद होने का सिग्नल मिलता रहेगा। यदि वह भागने की फिराक करता है तथा अपना लोकेशन बदलता है तो तत्काल सिग्नल मिलने पर उसकी गतिविधियां रोकी जाएगी। यदि वह भाग भी निकलता है तो जेल से कुछ ही फासले में उसे तत्काल दबोच लिया जाएगा।
वर्जन
पिछले दिनों जेल अधिकारियों की बैठक में व्यवहारिक तौर से जीपीएस सिस्टम के बैल्ट बांधे जाने को लेकर सहमति जाहिर की गई है। इसको लेकर प्रस्ताव शासन को भेजा जाएगा। अभी इस दिशा में काम चल रहा है अंतिम निर्णय नहीं हुआ है।
एके खरे
एआईजी जेल भोपाल
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एक बच्चे की मां बिकी हरियाण में 1 लाख में
सिवनी में मानव तस्करी का मामला
3 आरोपी जेल भेज गए
जबलपुर। एक युवती को प्रेम जाल में फंसा कर उसको एक बच्चे की मां बनाने वाले शादी शुदा व्यक्ति का जब युवती से मन भर गया तो उसको हरियाणा में एक लाख रूपए में बेच गया। युवती को करीब 4 माह तक बंधक की तरह रखा गया। वहां से भाग कर आई युवती ने प्रेमी की बेवफाई और अपने हुए अत्याचार की रिपोर्ट पड़ोसी जिला सिवनी के कुरई थाना में दर्ज कराई। पुलिस ने मानव तस्करी तथा बंधक बनाए जाने का प्रकरण दर्ज कर तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है।
जबलपुर सहित आसपास के जिले मंडला, डिंडौरी, बालाघाट तथा सिवनी में लगातार मानव तस्करी के मामले सामने आ रहे है। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के सीमवर्ती कुरई थाने के ग्राम ग्राम जुनारखेड़ा की 23 वर्षीय अनिता (काल्पनिक नाम) की जान पहचान पड़ोसी गांव के थांवरजोड़ी निवासी अर्जुन गौंड से हुई। अर्जुन गौड़ के प्रति अनिता आकर्षित हुई। यह मालूम होने के बावजूद कि अनुर्जन गौंड शादी शुदा है, वह उसके प्रेम जाल में उलझ कर रह गई। प्रेमी ने अनिता का दैहिक शोषण करने लगा। वह गर्भवती हो गई लेकिन इसके बावजूद उसने उससे विवाह नहीं किया। गांव वालों के दबाव और समाज के भयवश अर्जन ने अनिता को पत्नी की तरह बिन ब्याह के रखा लिया। कुछ माह पहले अनीता ने एक बच्ची को जन्म दिया। बच्ची के जन्म बाद करीब 3 महिला अर्जन के पास अनीता रही। इस बीच वह अनीता से छुटकारा पाने की जुगत में लग गया।
हरियाण के मुकेश से मुलाकात
कुछ माह पूर्व अुर्जन की हरियाणा निवासी मुकेश अग्रवाल से उसकी कुरई में मुलाकात हुई। मुकेश की पत्नी की मौत हो चुकी थी तथा उसकी दूसरी शादी नहीं हो रही थी तथा वह किसी ऐसी युवती की तलाश में था जो उसके बच्चों की देखरेख करे तथा वह उसे दासता पत्नी की तरह रख सके। इसके लिए वह रकम खर्च करने तैयार था। अर्जुन ने उसे अपनी दासता पत्नी अनीता को दिखाया। अर्जुन की मां भी अपनी अनचाही बहु से छुटकारा पाना चाहती थी। अर्जुन तथा उसकी मां लछमनिया बाई उम्र 52 वर्ष ने अनीता को 1 लाख रूपए में बेचने का इरादा कर लिया और मुकेश अग्रवाल निवासी महेन्द्र से 1 लाख रूपए ले लिए।
घुमाने के बहाने ले गया
करीब 4 माह पहले अर्जुन अनीता तथा उसकी बच्ची को घुमाने के बहाने महेन्द्रगढ़ हरियाणा ले गया जहां पीड़िता को घुमाने के बहाने बच्ची समेत हरियाणा ले गया। यहां उसने महेन्द्रगढ़ निवासी मुकेश अग्रवाल के घर अनीता और उसकी बच्ची का ेछेड़ कर भाग आया। यहां महेन्द्र अनीता से रात दिन मेहनत मजदूरी कराने लगा। घर का पूरा काम काज वह देखती थी। उससे खेत में भी काम कराया जाता था जबकि रात्रि में मुके श अनीता का अपनी हवस का शिकार बनाता रहा। जी-तोड़ मेहनत और दैहिक शोषण से परेशान अनीता किसी तरह अपनी बच्ची को लेकर वहां से भागने में कामयाब हुई और यहा कुरई थाने में एफआईआर दर्ज कराई।
वर्जन
पुलिस ने पीड़िता की रिपोर्ट पर अर्जुन, अर्जुन की मां तथा मुकेश अग्रवाला के खिलाफ मानव तस्करी के तहत भादंवि की धारा 470,471, 344, 34 के तहत अपराध पंजीबद्ध कर तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया है। मामले की विस्तृत जांच की जा रही है।
शिवराज सिंह
टीआई कुरई
राजस्थान में बिकी थी युवती
सिवनी जिले के ही हुगली थाना क्षेत्र की एक युवती को चार माह पहले राजस्थान में बेचा गया था। इस युवती के बचकर आने के बाद मामले का खुलासा हुआ। उल्लेखनीय है कि सिवनी सहित जबलपुर जिले की युवतियों को राजस्थान, हरियाणा, छतरपुर तथा बांदकपुर में बेचे जाने की अनेक घटनाएं हो चुकी है। उक्त क्षेत्र में यहां भगाकर ले जाए जाने वाली युवतियां बिक रही है। अब तक दर्जनों युवतियों के गायब होने का कोई सुराग नहीं मिला है।
हाल ही में मंडला में हुई घटना
हाल ही में एक युवती को दिल्ली में बेचे जाने की घटना हुई। एक एनजीओं के प्रयास से युवती मंडला वापस लौट कर आई । मंडला में बीते एक साल में मानवतस्करी से जुडे 8 मामले प्रकाश में आ चुके है। इसी तरह बालाघाट में करीब 70 अपहरण के मामले है जिसमें से कुछ मामलों में मानवतस्करी का मामला भी दर्ज किया गया है। उक्त क्षेत्रों से दक्षिण भारत तथा उत्तर भारत में बेरोजगार किशोर एवं बालाओं को काम धंधा दिलानें का झांसा देकर उन्हें बेचने वाले कई गिरोह सक्रिय है।
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नाक से निकाले सौ से अधिक कीड़े
जागरूकता के अभाव के कारण बढ़ती है बीमारी
आज से करीब 15 साल पहले जब मै नरसिंहपुर जिले में देवरी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में पदस्थ था तब 16 वर्षीय लड़की अनीता बाई इलाज के लिए अस्पताल पहुंची। उसको कई महीनों से लगातार सर्दी बनी हुई थी तथा नाक से खून बहने लगा था तथा मवाद भी आ रही थी। चैकअप करने पर पता चला कि उसके साइनस में कीड़े भर चुके थे। यही कीडेÞ बाद में दिमाग तक पहुंच सकते थे जो उसकी मौत का कारण बन जाते।
विक्टोरिया अस्पताल जबलपुर में पदस्थ नाक-कान- गला रोग विशेषज्ञ डॉ.के सी गुप्ता जब देवरी में पदस्थ थे तब उन्होंने इस ग्रामीण बाला का इलाज किया तथा उसकी जान बचाई। डॉ श्री गुप्ता ने बताया कि लड़की की नाक में दवा डालने के बाद कीड़ों को बेहोश किया गया तथा कुछ कीडेÞ दवा से मर भी गए थे। इसके बाद तालू के नीचे से मुंह के रास्ते से एक- एक कर कीड़े निकाले गए। करीब सौ से अधिक कीड़े उसके नाक से निकाले गए। जानलेवा सर्दी से उसका जान बच गई।
लगातार सर्दी खतरनाक
डॉक्टर गुप्ता का कहना है कि लगातार सर्दी बनी रहना ठीक नहीं है। आमतौर पर लोग सर्दी होने पर बीमारी का इलाज नहंीं कराते है तथा घरेलू नस्खे से ही बीमारी ठीक करने का प्रयास करते है। सर्दी खरनाक हो जाती है। सर्दी के कारण वैक्टेरियल इंफैक्शन नॉक नलिका के साथ कान में भी इंफैक्शन का कारण बन जाते है।
कान में मैगॉट्स
डॉक्टर गुप्ता का कहना है कि कान में भी फंगस एवं बैक्टीरियल इंफैक्शन अक्सर हो जाता है लेकिन इसका इलाज नहीं कराया जाता है जिससे पर्दे में छेद हो जाता है तथा बहरापन का कारण बन जाता है। उन्होंने बताया कि कान में इंफैक्शन के दौरान कीड़े पड़ने लगते है जिन्हें मैगॉट्स कहते है। ये सफेद रंग के छोटे-छोटे कीड़े व्यक्ति की कॉन का मांस खाकर जिंदा रहते है, ये कीड़े दिमाग में पहुंच जाए तो मरीज की मौत हो जाती है। कान में कीड़े पड़ने के 25 से ज्यादा मामले विक्टोरिया अस्पताल में उनके सामने आए जिसका इलाज किया गया, और लगभग सभी मरीज ठीक हुए है। उन्होंने कहा कि ज्यादा दिन कान या नॉक में घाव बने रहने से उनमें कीड़े पड़ जाते है।
क्यों होता है काम में इंफैक्शन
आखिर कॉन में बच्चों एवं बड़ों को क्यों इंफैक्शन होता है? इस संबंध में उनका कहना है कि जागरूकता का अभाव ही इसका मुख्य कारण है। कान से मैल निकालने की लोगो की आदत होती है। इस मैल को निकालते वक्त दूषित काड़ी का उपयोग बिलकुल नहीं करना चाहिए। नमी युक्त वातावरण में कई बार मामूली इंफैक्शन तथा कान दर्द की शिकायत होना आम बात होती है। ऐसे में लोग बच्चों के काम में कच्चा दूध अथवा तेल डालते है। यहीं दूध और तेल बाद में रोग का कारण बन जाता है। उन्होंने बताया कि नहाते वक्त कान में गंदा पानी जाने से इंफैक्शन एवं दर्द की शिकायत होती है तथा मामूली दर्द का घरेलू उपचार बड़ी बीमारी का कारण बनता है। कान को बचाकर रखना बेहद जरूरी होता है।
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मैगॉट्स क्या है
डॉ. गुप्ता ने बताया कि कान में इंफैक्शन के दौरान कीड़े पड़ने लगते है जिन्हें मैगॉट्स कहते है। ये सफेद रंग के छोटे-छोटे कीड़े व्यक्ति की कॉन का मांस खाकर जिंदा रहते है, ये कीड़े दिमाग में पहुंच जाए तो मरीज की मौत हो जाती है। कीट के अंडे दरअसल इंफैक्शन के मक्खी अथवा अदौरान कान में मक्खी
उस व्यक्ति का इलाज करने वाले डॉक्टर विक्रम यादव ने इलाज के बाद यह वीडियो यू-टयूब पर अपलोड किया है. उन्होंने बताया कि दरअसल जब वह व्यक्ति सो रहा था तो उस दौरान घरेलू मक्खी उसके कान घुस गई थी. मक्खी ने उसके कान में अपने लार्वा छोड़ दिए जो बाद में सैंकड़ों कीड़े बन गए और उसके कान का मांस खाकर बढ़ने लगे. इनमें से हर कीड़ा करीब 1 सेंटीमीटर लंबा था.
डॉक्टर विक्रम जब इन कीड़ों को उसके कान से चिमटी की मदद से बाहर निकाल रहे थे तो कीड़ों को छटपटाते हुए साफ देखा जा सकता था. इसके बाद उन्होंने कीड़ों को एक प्लास्टिक टयूब में रख दिया, जहां वे रेंगने लगे. इस तरह का इनफेक्शन ट्रॉपिक्स और सब ट्रॉपिक्स में आम है और यह 10 साल से कम उम्र के बच्चों व बीमार लोगों में ज्यादा होता है.
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मेनईटर को खुले जंगल में छोड़ने कवायद
भोपाल में होने वाली पीसीसीएफ
की बैठक में होना है निर्णय
जबलपुर। बांधगढ़ के बफर जोन तथा उससे लगे इलाके में आतंक का कारण बने मेनईटर हो गए दो बाघों को कई महीनों से इंक्लोजर में कैद रखा गया है। इन दोनों बाघों पर लगातार नजर रखी जा रही है। नेशनल पार्क में इन दोनो बाघों को मेनईटर घोषित तो नहीं किया है लेकिन उन्हे मेनईटर ही मान कर इनक्लोजर में रखा है। इस दोनों बाघ ने एक शिक्षक सहित 7 लोगों को मार डाला था। इनमें एक बांधवगढ़ का महावत भी था। कई माह इनक्लोजर में रखने के बाद बाघों को खुले जंगल में छोड़ने फिर कवायद शुरू कर दी गई है।
ज्ञात हो कि बरही तथा पान उमरिया क्षेत्र में इन दोनों बाघों ने वर्ष 2014 में काफी आंतक मचा रखा था। इन बाघों पर हाथियों से भी निगाह करने कोशिश कर दी थी लेकिन जब बाघ ने एक हाथी पर ही हमला कर महावत को मार डाला तो इसके बाद हाथी भी इस बाघ के निकट जाने से बचने लगे थे। खितौली क्षेत्र के इन बाघों ने जब गत वर्ष नवम्बर माह में ग्राम खितौली के शिक्षक अमोस लाकरा को उस वक्त खा लिया जब वह जंगल के निकट शौंच के लिए गया था। इस घटना के बाद वन अधिकारियों का कहना था कि घटना स्थल के समीप बाघ ने किसी मवेशी का शिकार किया था तथा शिक्षक वहां पहुंच गया था जिसके कारण बाघ ने मार डाला। किन्तु बाघ ने शिक्षक को आधा खा लिया था। इस घटना के बाद लोगों के प्रदर्शन एवं हंगामें के बाद रेस्क्यू चलाकर उक्त बाघों को पकड़ा गया था।
तब से है बहेरहा में
इस घटना के बाद बाघों को बेहरहा के इंक्लोजर में बंद करके रखा गया था। पहले वन अमले की योजना थी बाघों को वन विहार भोपाल सिफ्ट कर दिया जाएगा लेकिन इसके लिए उन्हें अनुमति नहंी मिल पाई। बाघों को लगाकर इंक्लोजर में रखकर उनकी गतिविधियों पर नजर रखी गई। इसके लिए एक आब्जर्वेशन कमेटी बनाई गई थी। इन्क्लोजर में कैमरे लगाए गए थे। सूत्रों की माने तो बाघों को जंगली जानवर चीतल , सांभर आदि का शिकार करने का मौका दिया गया। उनके शिकार करने का तरीका पूर्ण वाइल्ड लाइफ की तरह था। इनके स्वभाव में भी बदलाव महसूस किया गया। इसके पूर्व वे बेहद आक्रमक थे लेकिन अब वे जंगल के जीवन के अनुरूप ढले हुए महसूस किए गए। कमेटी ने रिपोर्ट दी है कि इन टाइगरों को जंगल में छोड़ा जा कसता है। ।
बांधवगढ़ में नहीं छोड़ा जाएगा
बांधवगढ़ नेशनल पार्क में वैसे ही टाइगरों का घनत्व अधिक है तथा यहां नर बाघ काफी संख्या में है। इसके चलते उनको जंगल में छोड़ने पर टाइगरों में आपसी संघर्ष छिड़ने की आशंका है । इसके चलते उनको संजय गांधी नेशनल पार्क में छोड़ने का इरादा है। मुकुंदपुर टाइगर सफारी में बाघों को रखने पर भी विचार चल रहा है । इसेक अतिरिक्त संजय गांधी धुबरी नेशनल पार्क में छोड़ने का विचार चल रहा है। फिलहाल निर्णय नहीं हो पाया है।
वर्जन
बाघों को सिफ्ट करने को लेकर बैठक करके निर्णय लिया जाएगा। फिलहाल क्या निर्णय लिया जाएगा, यह बैठक के उपरांत ही बताया जा सकेगा।
रवि श्रीवास्तव, पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ
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बिना लायसेंस के चालकों से दुर्घटना
राज्य 2012 2013 2014
यूपी 3635 6893 7240
एमपी 4783 4469 3373
तमिलनाडू 3468 3441 3854
नाबालिगों द्वारा रोड एक्सीडेंट
राज्य 2012 2013 2014
यूपी 5381 5082 3694
एमप 2935 2801 2684
तमिलनाडू 2068 1582 ---
*नोट- उक्त आंकड़े पुलिस द्वारा प्राप्त हुए हैं
एमपी-यूपी के नाबालिग बाइक में फर्राटे लगाने में नम्बर वन
सर्वाधिक नाबालिग दुर्घटना का हो रहे शिकार, बिना ड्रायविंग लायसेंस वाहन चलाने में भी नम्बर वन
जबलपुर। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में नाबालिग यंगस्टर में बाइक से धूम मचाने का क्रेज सर्वाधिक है। ये बात राज सभा में प्रस्तुत किए गए आंकड़ो से साबित होती है। दरअसल बाइक तथा अन्य सड़क दुर्घटना का शिकार सबसे अधिक इन्ही दो प्रदेशों में हो रहे है। नम्बर वन में यूपी तथा नम्बर टू में एमपी है। मध्य प्रदेश में शहरी ही नहीं ग्रामीण व कस्बाई इलाके में भी बाइकर्स की धूम सुर्खियों में रहती है। पुलिस प्रशासन भी इन स्टंडबाज बाइकर्स पर लगाम नहीं ला पा रह है।
प्रदेश शासन ने बढ़ती हुई सड़क दुर्घटना को लेकर चिंतित है। खास तौर पर इस दुर्घटनाओं में नाबालिग बड़ी संख्या में शिकार हो रहे है। इसको लेकर राज्य स्तर पर सड़क सुरक्षा समिति ने एक्शन प्लान भी तैयार किया है जिससे सड़क दुर्घटनाओं में कमी आए। इसके तहत सर्वाधिक दुर्घटना के घनत्व वाले क्षेत्रों को ट्रेफिक इंजीनियरिंग के मुताबिक विकसित किया जाना है। इसके साथ ही यातायात के प्रति जागरूकता लाने ठोस उपाय किए जाने हैे। स्कूल कॉलेजों के समीप ट्रेफिक की विशेष व्यवस्था दी जाएगी। ट्रेफिक संबंधी अधोसंरचान के विकास के साथ शराब की दुकानें मुख्य सड़कों से दूर करना तथा पेट्रोल पम्पों को लेकर भी महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाने है।
35 हजार लायसेंस बने
एक तरफ नाबालिग तेजी से दुर्घटना के शिकार हो रहे है। दूसरी तरफ नाबालिग बड़ी संख्या में वाहन चला रहे है लेकिन उनके पास लायसेंस नहंी हैद्व इसके साथ ही बिना लायसेंस के वाहन चलाए जाने में भी प्रदेश शीर्ष प र है। इसको लेकर परिवहन विभाग द्वारा व्यापक पैमाने में लायसेंस बनाने अभियान भी चलाया जा रहा है। स्कूला, कालेजों में ड्रायविंग लायसेंस बनाने कैम्प चलाए जा रहे है। इसके साथ ही ब्लाक और पंचायत स्तर पर भी लायसेंस बनाने कैप लग रहे है। प्रदेश में बीते 3 माह में 35 हजार लायसेंस कैम्प लगाकर बनाए गए है।
वर्जन
मध्य प्रदेश में यातायात के प्रति जागरूकता लाने काफी प्रयास किए जा रहे है। इसके साथ ही ड्रायविंग लायसेंस बनाने का काम तेजी से किया जा रहा है। दुर्घटनाओं में बालिग एवं नाबालिग दोनों ही शिकार होते है। स्कूलों में अस्थाई लायसेंस बनाने के कैम्प चलाए जा रहे है।
एसएन मिश्रा
प्रमुख सचिव , परिवहन विभाग
वर्जन
सड़क दुर्घटनाआें को कम करने मध्य प्रदेश सरकार तेजी से काम कर रही है। स्कूली बसों आदि के लिए कड़े नियम बनाकर उसका परिपालन कराया जा रहा है। वाहन चलाने की पात्रता रखने वालों के लायसेंस तेजी से बनाए जा रहे है। महिलाओं के लिए लायसेंस फीस फ्री की गई है। स्कूल, कालेज और ग्रामीण क्षेत्रों में कैप लगाकर लायसेंस बनाए जा रहे है।
भूपेन्द्र सिंह
परिवहन मंत्री मप्र
प्रमुख सचिव परिवहन विभाग मप्र
मप्र टेलीफोन डायरेक्टरी
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प्रदेश में पहली बार टाइगरों की गिनती करेगा वन अमला
नेशनल पार्क एवं अभ्यारण्य मेंं गिनती शुरू
पांच हजार से अधिक कर्मचारी जुटे
जबलपुर। मध्य प्रदेश में पहली बार वन्य प्राणियों की गिनती प्रदेश के 52 वन मंडलों एवं नेशनल पार्क के वन्य कर्मियोंं द्वारा की जा रही है। सभी नेशनल पार्क में 31 जनवरी से गिनती शुरू कर दी गई है जो 5 फरवरी तक चलेगी।
वन विभाग द्वारा कान्हा, पेंच, बांधवगढ, पन्ना, संजय गांधी, सतपुड़ा, भोपाल स्थित वन विहार, सहित 11 नेशनल पार्क एवं अम्यारण्य में गिनती प्रारंभी की गई है जिसमें 5 हजार से अधिक कर्मचारी रखे गए है।
मालूम हो कि इसके पूर्व टाइगरों तथा वन्य प्राणियों की गणना वन्य प्राणी अनुसंधान संस्थान देहरादून द्वारा किया जाता रहा है। प्रदेश में करीब 28 हजार वन्य कर्मियों का भारी भरकम अमला मौजूद है। इसके बावजूद गिनती के लिए बाहर की एजेंसी को बुलवाना पड़ता था। शासन ने इस वर्ष से स्वयं के संसाधनों से गिनती करने का निर्णय लिया। जबलपुर स्थित राज्य वन अनुसंधान केन्द्र को नोडल एजेंसी बनाया गया है। नेशनल पार्क में शाकाहारी एवं मांसाहारी जीव की गणना होकर डाटा यहां पहुंचेगे। इसके बाद दूसरे चरण में 10 फरवरी के बाद वन मंडलों में वन्य प्राणियों की गिनतीहोनी है।
नेशनल पार्क में वन्य प्राणियों की गणना के कार्य के चलते जहां ट्रांजिस्ट लाइन खींच कर वहां कैमरे आदि लगाए गए है। वहीं वन्य प्राणियों की गिनती के लिए वन कर्मियों के दस्ते नेशनल पार्क एरिया तथा कोर एरिया में घुस रहे है। इसके साथ ही बफर जोन में भी गिनती की जा रही है।
जानकारी के अनुसार मध्य प्रदेश में सर्वाधिक बाघ कान्हा नेशनल पार्क में है जबकि बांधवगढ़ तथा पन्ना नेशनल पार्क में बाघों का घनत्व बेहद अधिक है। पेंच में बड़ी संख्या मे बाघ ,तेन्दुआ और अन्य शाकाहारी जीव चीतल , सांभर, हिरण, भालू तथा अन्य वन्य जीव पाए जाते है। सतपुड़ा नेशनल पार्क में काले हिरणों की संख्या काफी है। वन्य प्राणियों की गणना सैम्पलिंग प्रणाली से की जाना है जिसके तहत वन्य प्राणियों को भौतिक रूप से देखा जाएगा। इसके अतिरिक्त उनके शरीर में मौजूद चिंह, जानवरों के पग मार्क आदि के सैम्पल दर्ज किए जाएंगे।
जबलपुर में हुआ प्रशिक्षण
वन्य प्राणियों की गणना के लिए राज्य वन अनुसंधान केन्द्र में विभिन्न चरण में वन्य प्राणियों की गणना के लिए देहरादून से आए विशेषज्ञों द्वारा प्रशिक्षण भी प ्रदान किया जा चुका है। अब देखना यह है कि वन अमले द्वारा की जाने वाली गणना कितनी सटीक होती है।
टाइगर गणना रही है विवाद में
देश में टाइगरों की गणना हमेश विवाद में रही है। जहां एक तरफ टाइगरों की संख्या कई राज्यों में अनावश्यक बढ़ाए जाने के आरोप है यहां तक एनीमेशन से फर्जी वीडियो तैयार करने तक का आरोप लगा है। इसी के चलते मध्य प्रदेश से टाइगर स्टेट होने का दर्जा भी छिन चुका है। अब नई गणना में कितने टाइगर एवं तेन्दुए आते है यह सामने आएंगे।
सर्वाधिक तेन्दुए मौजूद
मध्य प्रदेश के जंगल में सर्वाधिक तेन्दुए पाए गए है। इसके पूर्व हुई गणना में इनकी संख्या 4 हजार से उपर थी। लेकिन जानकारों का कहना है कि तेन्दुआ छिप कर रहने वाला प्राणी है जिसके कारण तेन्दुए की गणना बेहद कठिन और जटिल काम है। यदि सही तरीके से गणना होती है तो प्रदेश में तेन्दुए की संख्या 5 हजार के करीब पहुंच सकती है।
ऐसे होनी है गणना
बताया गया कि पहले तीन दिन मांसाहारी जीवों यानी तेन्दुआ और टाइगर की गणना होगी। इस दोरान अन्य मांसाहारी जीव मिलते है तो उनकी भी गणना होगी। वहीं अंतिम तीन दिन शाकाहारी जीवों की गणना होगी। जंगल में शाम जल्द हो जाती है इसके मद्देनजर गणना े दोपहर 2 बजे के बाद बंद कर दी गई।
वर्जन
सभी पार्को में गणना प्रारंभ कर दी गई है। गणना के कार्य के बाद गणना की समीक्षा की जाएगी।
सीएच मुरली कृष्ण
डायरेक्टर राज्य वन अनुसंधान केन्द्र
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देश में । पिछले साल 1.31 लाख से ज्यादा लोगों ने अपनी जान दी। ै। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार पिछले साल राष्ट्रीय की तुलना में शहरों में आत्महत्या की दर ज्यादा थी। जहां मध्यप्रदेश में जबलपुर आत्महत्या के मामलों में शीर्ष पर हुआ करता था अब उसकी जगह भोपाल ने ली है। यहां 1हजार 64 लोगों ने बीते साल खुदकुशी की। शहरी क्षेत्र में आत्महत्या की दर 12.8 प्रतिशत आंकी गई है।
आत्महत्या के मामले में शीर्ष शहर
चेन्नई 2,214
बेंगलुरु 1,906
दिल्ली 1,847
मुंबई 1,196
भोपाल 1,064
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प्रदेश में गली गली मिल रहा मौत का सामान
नींद की गोली खाकर सवा सौ लोगों ने की खुदकुशी
जबलपुर। मध्य प्रदेश में आत्महत्या के आंकड़े चिंताजनक हालत पर पहुंचते जा रहे है। औसतमन प्रतिदिन दो दर्जन लोग आत्म हत्या कर रहे है। मध्य प्रदेश में पौन चार हजार लोगों ने आत्महत्या की है। नेशनल क्राइम ब्यूरों के आंकड़ो के मुताबिक सर्वाधिक मौते इम्पुल इंजैक्शन के सेवन के कारण हुई है। इस मौतों में केवल ढाई हजार मौत का कारण इम्पुल रहा है। इसके साथ ही नींद की गोली खाकर करीब सवा सौ लोग खुदकुशी कर चुके है।
मध्य प्रदेश में तेजी से आत्महत्याओं का ग्राफ बढ़ा है। इन आत्महत्या के तरीकों पर गौर किया जाए तो लोगों ने सबसे सरल तरीका जहर पीकर खुदकुशी करना लगता है। जानकारी के अनुसार इम्पुल सहित अन्य कीटनाशक पीकर ढाई हजार से अधिक लोगों ने मध्य प्रदेश में खुदकुशी है। इसके अतिरिक्त फांसी लगाकर, ट्रेन से कटकर तथा नदी व कुए में कूद कर जान देने की घटानाएं जहर सेवन से आधी है। जहर सेवन के मामले में नींद की गोली खाकर करीब सवा सौ आत्महत्या वर्ष 2014-15 में की गई है। यह संख्या भी बेहद अधिक समझी जा रही है।
बिक रही प्रतिबंधित दवाएं
बताया गया कि कम्पोज तथा ट्राइका जैसी दवाइयां लगभग बैन कर दी गई है। इसके बावजूद ट्राइका सहित अन्य नींद की दवाइयां प्रदेश भर में मेडिकल स्टोर्स में डॉक्टर पर्चे और बिना पर्चे के आसानी से मिल रही है।
दस से अधिक गोलीनहीं मिलेगी
नियम है कि नींद की तथा नशे से संबंधित गोलियां दस से अधिक डॉक्टर के पर्चे में भी नहंी मिलती है। एक बार कोई पर्चा लिखवाने के बाद चाहे तो अलग अलग मेडिकल स्टोर्स से ये दवाइयां खरीद लेता है। दस की जगह सैकड़ा भी गोली आसानी से खरीद सकता है। इन दवाइयों की बिक्री का कोई रिकार्ड नहंी रखा जा रहा है। जानकारों की माने तो नींद की गोली की पर्चा से दवाई देने के बाद मेडिकल स्टोर्स संचालक को गोली देने की जानकारी पर्चे में दर्ज करनी चाहिए जिससे वह इसी पर्चे से दूसरी जगह गोलियां न खरीद सके।
पचास से अधिक जरूरी
जानकारों की माने तो नींद की गोली खाकर आत्महत्या करने वाले व्यक्ति को 40-50 गोली खानी पड़ती है तभी उसकी मौत होती है। प्रदेश में करीब सवा सौ लोगों ने नींद की गोला खाकर आत्महत्या की है जिससे जाहिर है कि नींद की गोली मिलना आसान काम है।
इम्पुल प्रतिबंधित
इसी तरह बढ़ताी आत्महत्या की घटनाओं के मद्देनजर सल्फास को पूरी तरह खुली बिक्री प्रतिबंधित है। इसके बावजूद किसी भी किराना स्टोर्स में बिना रोकटोक के चूहा मार दवाई के नाम पर सल्फास मिल जाता है। सर्वाधिक आत्महत्या की घटनाएं इम्पुल इंजैक्शन फोड़ कर पीने से हुई है। इम्पुल इंजेक्शन किसी भी कृषि दुकान में बेहद आसानी से मिलता है। नियम यह है कि इम्पुल इंजेक्शन किसानों को हीउपलब्ध कराया जाता है, वह भी ऋण पुस्तिका में इसका उल्लेख करना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।
जबलपुर आत्महत्या की राजधानी
जबलपुर में बीते साल फांसी लगाकर 585 लोगो ने आत्महत्यांए की। इसी तहर एम्पुल सहित अन्य जहर पीकर 653 तथा नदी व कुए में कूदकर 50 लोगों ने जांच दी है। बीते तीन सालों से जबलपुर पुलिस बढ़ती आत्महत्या की घटनाओं को रोकने संजीवनी अभियान चला रही है। दरअसल नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरों की वर्ष 2012 की रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि जनसंख्या की तुलना करने पर आत्महत्या क दर जबलपुर में देश में नम्वर टू पर है। 2012 में जबलपुर में 572 आत्महत्याएं हुई थीं ये 45.1 फीसदी था।
मेडिकल स्टोर्स वालों को समय समय पर डॉक्टर की पर्ची के बिना नींद की तथा अन्य प्रतिबंधित दवाइयां न देने चेतवानी दी जाती है और शिकायत मिलने पर कार्रवाई भी की जा रही है।
एमएम अग्रवाल
सीएमएमओ जबलपुर
ड्रक कंट्रोलर
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