Friday, 12 February 2016

डेढ़ साल के बच्चे के दिल के 3 छेद किए बंद

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*चेहरे में चमक और माता-पिता के चेहरे की मुस्कान लौटी
दीपक परोहा
9424514521

कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. अच्युत खांडेकर और उनकी टीम ने जबलपुर शहर में  बच्चों के दिल में छेद बंद करने पिछले कुछ दिनों में 16 आॅपरेशन किए है। इसमें सर्वाधिक चुनौती पूर्ण आॅपरेशन में डेढ़ साल के बच्चे  का था, जिसके दिल में एक नहीं तीन छेद थे। दिल में  छेद होने के कारण वह बेहद कमजोर एवं सुस्त हो गया था। उसके दिल की धड़कने भी कम थी, ऐसे में अपने अनुभव और दक्षता पर भरोसा रखते हुए डॉ अच्युत खांडेकर ने अपनी टीम के साथ सफल इलाज किया। बिना आॅपरेशन किए जांघ से तार डालकर दिल का छेद बंद किया गया। महानगरों की तर्ज पर पहली बार जबलपुर में दिल के छेद बंद कर ने की आधुनिक तकनीक से इलाज  प्रारंभ किया गया है।

डॉ खांडेकर ने बताया कि नरसिंहपुर निवासी डेढ वर्षीय मुन्ना के माता -पिता बुरी तरह निराश हो गए थे। नागपुर सहित कई शहरों में बच्चे का दिखा चुके थे और डॉक्टर भी उसका इलाज करने से बच रहे थे। उनका कहना था कि बच्चा बहुत कमजोर है। कुछ स्वस्थ हो जाए  तभी इलाज किया जाएगा। किन्तु इससे बच्चे के दिल  का छेद और बड़ा होने का खतरा भी बना था। इस बच्चे के दिल में छेद  होने से  दिन -प्रतिदिन कमजोर होता जा रहा था। उसकी चेहरे में चमक खत्म हो चुकी थी। मात्र 20 मिनट में सफलता पूर्वक जांघ से तार डालकर बच्चे के दिल का छेद बंद कर दिया यगा। बालक के चेहरे में एक दिन में ही मुस्कान लौट आई और उसके माता पिता के चेहरे खिल गए।
डॉक्टर अच्युत्य खांडेकर  एक साल से जबलपुर में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वे वर्ष 2010 मे कॉडियोलॉजिस्ट हैं तथा हिन्दुजा मुम्बई में उन्होंने आधुनिक उपचार तकनीकि सीखी है।

ऐसे हुआ इलाज
डॉक्टर खांडेकर ने बताया कि बच्चे की जांघ से कैथेरेटर डाला गया था और दिल के छेट के पास छतरी नुमा पार्ट खोला गया जिससे उसके दिल के छेद बंद हो गया। अब छेद बंद होने के बाद बच्चा अपना सामान्य जीवन जी सकेगा। वह भागदौड़-खेलकूद सामान्य बच्चों की तरह करेगा। इस तरह के आॅपरेशन को करने में मात्र 20 मिनट लगता है। दरअसल यह आॅपरेशन नहीं होता है। बच्चे के दिन में तार द्वारा  एम्पलाजर ट्रांसप्लांट किया गया था। इस तकनीक से इलाज के दौरान ं किसी प्रकार के चीड़-फाड़ की जरूरत नहीं पड़ती है।  यह तकनीक बहुत सुरक्षित है। बच्चों में जन्मजात हार्ट में छेद की विकृति होने पर जल्द से जल्द इलाज करा लेना चाहिए ।



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आतंकी और कातिलों को लगेंगे जीपीएस बैल्ट

 * भोपाल जेल से दो कुख्यात
अपराधियों के भागने के बाद
लिया गया निर्णय
जबलपुर।   मध्य प्रदेश के खूंखार कैदी और जघन्य हत्यारों को जीपीएस बैल्ट लगाए जाने का निर्णय लिया है। केन्द्रीय जेल के ऐसे दो सौ अपराधियों के लिए जीपीएस बैल्ट की जरूरत है जिसके लिए इलेक्ट्रानिक्स कंपनी से संपर्क किया जा रहा है। यदि सब कुछ  ठीक चलता हौ तो कैदियों को जीपीएस बैल्ट लगाया जाएगा। इससे यदि कैदी जेल तोड़कर भागते है तो उनकी जीपीए से लोकेशन का पता चल जाएगा और जल्द ही जेल प्रहरी और पुलिस घेर कर अपराधी को पकड़ कर सीखचों के पीछे डाल देंगे।
मध्य प्रदेश की जेलों में कई दुर्दांत डकैत और अपराधियों के साथ ही आतंकवादी तथा नक्सली बंद है। खंडवा से सिमी के गुर्गे भागने जैेसी संगीन घटनाएं प्रदेश में हो चुकी है। जघंन्य हत्यारे जेल से भागते है तो वे समाज के लिए  घातक है। भोपाल जेल से दो बंदियों के भागने के बाद जेल विभाग ने निर्णय लिया है कि कोई ऐसा सिस्टम विकसित किया जाए कि यदि बंदी भागते भी है तो उनको शीघ्र खोज निकाला जाए। इसके लिए कुख्यात आतंकी ,नक्सलियों तथा हत्या के आरोपियों व अपराधियों को ये बैल्ट बांधा जाएगा।

एक परिकल्पना काफी अर्से से रही है  कि कुख्यात अपराधियों के शरीर में ही जीपीएस पिच फिट की जाए जिससे वे कहीं भी जाते है तो उनकी लोकेशन खोजी जा सके लेकिन जहां ऐसी तकनीकि अभी सहजता से मौजूद नहंी है और न ही मानवाधिकार इसकी अनुमति इतनी आसानी से देगा। इसके चलते ऐसा बेल्ट बनाए जाने की जरूरत समझी गई जिसको कैदी आसानी से उतार नहीं सकता है और कैद के दौरान उसकी लोकेशन पर 24 घंटे मानीटरिंग जेल के कंट्रोल रूप से की जाए।  भागता है तो उसे तत्काल पकड़ लिया जाए।
क्या होगा फायदा
जेल अधिकारियों की माने तो इस बेल्ट से ये फायदा रहेगा कि लगातार रेल के कंट्रोल रूम में उसकी बैरक में मौजूद होने का सिग्नल मिलता रहेगा। यदि वह  भागने की फिराक करता है तथा अपना लोकेशन बदलता है तो तत्काल सिग्नल मिलने पर उसकी गतिविधियां रोकी जाएगी। यदि वह भाग भी निकलता है तो जेल से कुछ ही फासले में उसे तत्काल दबोच लिया जाएगा।
वर्जन
पिछले दिनों जेल अधिकारियों की बैठक में व्यवहारिक तौर से जीपीएस सिस्टम के बैल्ट बांधे जाने को लेकर सहमति जाहिर की गई है। इसको लेकर प्रस्ताव शासन को भेजा जाएगा। अभी इस दिशा में काम चल रहा है अंतिम निर्णय नहीं हुआ है।
एके खरे
एआईजी जेल भोपाल





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 एक बच्चे की मां बिकी हरियाण में 1 लाख में

सिवनी में मानव तस्करी का मामला
3 आरोपी जेल भेज गए
जबलपुर। एक युवती को प्रेम जाल में फंसा कर उसको एक बच्चे की मां बनाने वाले शादी शुदा व्यक्ति का जब युवती से मन भर गया तो उसको हरियाणा में एक लाख रूपए में बेच गया। युवती को करीब 4 माह तक बंधक की तरह रखा गया। वहां से भाग कर आई युवती ने प्रेमी की बेवफाई और अपने हुए अत्याचार की रिपोर्ट पड़ोसी जिला सिवनी के कुरई थाना में दर्ज कराई। पुलिस ने मानव तस्करी तथा बंधक बनाए जाने का प्रकरण दर्ज कर तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है।
जबलपुर सहित आसपास के जिले मंडला, डिंडौरी, बालाघाट तथा सिवनी में लगातार मानव तस्करी के मामले सामने आ रहे है। मध्य  प्रदेश और महाराष्ट्र के सीमवर्ती कुरई थाने के ग्राम  ग्राम जुनारखेड़ा की 23 वर्षीय अनिता (काल्पनिक नाम) की जान पहचान पड़ोसी गांव के थांवरजोड़ी निवासी अर्जुन गौंड से हुई। अर्जुन गौड़ के प्रति अनिता आकर्षित हुई। यह मालूम होने के बावजूद कि अनुर्जन गौंड शादी शुदा है, वह उसके प्रेम जाल में उलझ कर रह गई। प्रेमी ने अनिता का दैहिक शोषण करने लगा। वह गर्भवती हो गई लेकिन इसके बावजूद उसने उससे विवाह नहीं किया। गांव वालों के दबाव और समाज के भयवश अर्जन ने अनिता को पत्नी की तरह बिन ब्याह के रखा  लिया। कुछ माह पहले अनीता ने एक बच्ची को जन्म दिया। बच्ची के जन्म बाद करीब 3 महिला अर्जन के पास अनीता रही। इस बीच वह अनीता से छुटकारा पाने की जुगत में लग गया।
हरियाण के मुकेश से मुलाकात
कुछ  माह पूर्व अुर्जन की हरियाणा निवासी मुकेश अग्रवाल से उसकी कुरई में मुलाकात हुई। मुकेश की पत्नी की मौत हो चुकी थी तथा उसकी दूसरी शादी नहीं हो रही थी तथा वह किसी ऐसी युवती की तलाश में था जो उसके बच्चों की देखरेख करे तथा वह उसे दासता पत्नी की तरह रख सके। इसके लिए वह रकम खर्च करने तैयार था। अर्जुन ने उसे अपनी दासता पत्नी अनीता को दिखाया। अर्जुन की मां भी अपनी अनचाही बहु से छुटकारा पाना चाहती थी। अर्जुन तथा उसकी मां लछमनिया बाई उम्र 52 वर्ष ने अनीता को 1 लाख रूपए में बेचने का इरादा कर लिया और मुकेश अग्रवाल निवासी महेन्द्र से 1 लाख रूपए ले लिए।
घुमाने के बहाने ले गया

करीब  4 माह पहले अर्जुन अनीता तथा उसकी बच्ची को घुमाने के बहाने महेन्द्रगढ़ हरियाणा ले गया जहां पीड़िता को घुमाने के बहाने बच्ची समेत हरियाणा ले गया। यहां उसने  महेन्द्रगढ़ निवासी मुकेश अग्रवाल के घर अनीता और उसकी बच्ची का ेछेड़ कर भाग आया। यहां महेन्द्र अनीता से रात दिन मेहनत मजदूरी कराने लगा। घर का पूरा काम काज वह देखती थी। उससे खेत में भी काम कराया जाता था जबकि रात्रि में मुके श अनीता का अपनी हवस का शिकार बनाता रहा। जी-तोड़ मेहनत और दैहिक शोषण से परेशान अनीता किसी तरह अपनी बच्ची को लेकर वहां से भागने में कामयाब हुई  और यहा कुरई थाने में एफआईआर दर्ज कराई।

वर्जन
पुलिस ने पीड़िता की रिपोर्ट पर अर्जुन, अर्जुन की मां तथा  मुकेश अग्रवाला के खिलाफ मानव तस्करी के तहत भादंवि की धारा 470,471, 344, 34 के तहत अपराध पंजीबद्ध कर तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया है। मामले की विस्तृत जांच की जा रही है।
शिवराज सिंह
टीआई कुरई


राजस्थान में बिकी थी युवती
सिवनी जिले के ही हुगली थाना क्षेत्र की एक युवती को चार माह पहले राजस्थान में बेचा गया था। इस युवती के बचकर आने के बाद मामले का खुलासा हुआ। उल्लेखनीय है कि सिवनी सहित जबलपुर जिले की युवतियों को राजस्थान, हरियाणा, छतरपुर तथा बांदकपुर में बेचे जाने की अनेक घटनाएं हो चुकी है। उक्त क्षेत्र में यहां भगाकर ले जाए जाने वाली युवतियां बिक रही है। अब तक दर्जनों युवतियों के गायब होने का कोई सुराग नहीं मिला है।
हाल ही में मंडला में हुई घटना
हाल ही में एक युवती को दिल्ली में बेचे जाने की घटना हुई। एक एनजीओं के प्रयास से युवती मंडला वापस लौट कर आई । मंडला में बीते एक साल में मानवतस्करी से जुडे 8 मामले प्रकाश में आ चुके है। इसी तरह बालाघाट में करीब 70 अपहरण के मामले है जिसमें  से कुछ मामलों में मानवतस्करी का मामला भी दर्ज किया गया है। उक्त क्षेत्रों से दक्षिण भारत तथा उत्तर भारत में बेरोजगार किशोर एवं बालाओं को काम धंधा दिलानें का झांसा देकर उन्हें बेचने वाले कई गिरोह सक्रिय है।
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 नाक से निकाले सौ से अधिक कीड़े

  जागरूकता के अभाव के कारण बढ़ती है बीमारी

आज से करीब 15 साल पहले जब मै नरसिंहपुर जिले में देवरी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में पदस्थ था तब 16 वर्षीय लड़की अनीता बाई इलाज के लिए अस्पताल पहुंची। उसको कई महीनों से लगातार सर्दी बनी हुई थी तथा नाक से खून बहने लगा था तथा मवाद भी आ रही थी। चैकअप करने पर पता चला कि उसके साइनस में कीड़े भर चुके थे। यही कीडेÞ बाद में दिमाग तक पहुंच सकते थे जो उसकी मौत का कारण बन जाते।
  विक्टोरिया अस्पताल जबलपुर में पदस्थ नाक-कान- गला रोग विशेषज्ञ डॉ.के सी गुप्ता जब देवरी में पदस्थ थे तब उन्होंने इस ग्रामीण बाला का इलाज किया तथा उसकी जान बचाई। डॉ श्री गुप्ता ने बताया कि लड़की की नाक में दवा डालने के बाद कीड़ों को बेहोश किया गया तथा कुछ कीडेÞ दवा से मर भी गए थे। इसके बाद तालू के नीचे से मुंह के रास्ते से एक- एक कर कीड़े निकाले गए। करीब सौ से अधिक कीड़े उसके नाक से निकाले गए।  जानलेवा सर्दी से उसका जान बच गई।
लगातार सर्दी खतरनाक
डॉक्टर गुप्ता का कहना है कि लगातार सर्दी बनी रहना ठीक नहीं है। आमतौर पर लोग  सर्दी होने पर बीमारी का इलाज नहंीं कराते है तथा घरेलू नस्खे से ही बीमारी ठीक करने का प्रयास करते है। सर्दी खरनाक हो जाती है। सर्दी के कारण वैक्टेरियल इंफैक्शन नॉक नलिका के साथ कान में भी इंफैक्शन का कारण बन जाते है।
कान में मैगॉट्स
डॉक्टर गुप्ता का कहना है कि कान में भी फंगस एवं बैक्टीरियल इंफैक्शन अक्सर हो जाता है लेकिन इसका इलाज नहीं कराया जाता है जिससे पर्दे में छेद हो जाता है तथा बहरापन का कारण बन जाता है। उन्होंने बताया कि कान में इंफैक्शन के दौरान कीड़े पड़ने लगते है जिन्हें मैगॉट्स कहते है। ये सफेद रंग के छोटे-छोटे कीड़े व्यक्ति की कॉन का मांस खाकर जिंदा रहते है, ये कीड़े दिमाग में पहुंच जाए तो मरीज की मौत हो जाती है। कान में कीड़े पड़ने के 25 से ज्यादा मामले विक्टोरिया अस्पताल में उनके सामने आए जिसका इलाज किया गया, और लगभग सभी मरीज ठीक हुए है। उन्होंने कहा कि ज्यादा दिन कान या नॉक में घाव बने रहने से उनमें कीड़े पड़ जाते है।
क्यों होता है काम में इंफैक्शन
आखिर कॉन में बच्चों एवं बड़ों को क्यों इंफैक्शन होता है? इस संबंध में उनका कहना है कि जागरूकता का अभाव ही इसका मुख्य कारण है। कान से मैल निकालने की लोगो की आदत होती है। इस मैल को निकालते वक्त दूषित काड़ी का उपयोग बिलकुल नहीं करना चाहिए। नमी युक्त वातावरण में कई बार मामूली इंफैक्शन तथा कान दर्द की शिकायत होना आम बात होती है। ऐसे में लोग बच्चों के काम में कच्चा दूध अथवा  तेल डालते है। यहीं दूध और तेल बाद में रोग का कारण बन जाता है। उन्होंने बताया कि नहाते वक्त कान में गंदा पानी जाने से इंफैक्शन एवं दर्द की शिकायत होती है तथा मामूली दर्द का घरेलू उपचार बड़ी बीमारी का कारण बनता है। कान को बचाकर रखना बेहद जरूरी होता है।
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मैगॉट्स क्या है
डॉ. गुप्ता ने बताया कि कान में इंफैक्शन के दौरान कीड़े पड़ने लगते है जिन्हें मैगॉट्स कहते है। ये सफेद रंग के छोटे-छोटे कीड़े व्यक्ति की कॉन का मांस खाकर जिंदा रहते है, ये कीड़े दिमाग में पहुंच जाए तो मरीज की मौत हो जाती है। कीट के अंडे दरअसल इंफैक्शन के मक्खी अथवा अदौरान कान में मक्खी


उस व्यक्ति का इलाज करने वाले डॉक्टर विक्रम यादव ने इलाज के बाद यह वीडियो यू-टयूब पर अपलोड किया है. उन्होंने बताया कि दरअसल जब वह व्यक्ति सो रहा था तो उस दौरान घरेलू मक्खी उसके कान घुस गई थी. मक्खी ने उसके कान में अपने लार्वा छोड़ दिए जो बाद में सैंकड़ों कीड़े बन गए और उसके कान का मांस खाकर बढ़ने लगे. इनमें से हर कीड़ा करीब 1 सेंटीमीटर लंबा था.

डॉक्टर विक्रम जब इन कीड़ों को उसके कान से चिमटी की मदद से बाहर निकाल रहे थे तो कीड़ों को छटपटाते हुए साफ देखा जा सकता था. इसके बाद उन्होंने कीड़ों को एक प्लास्टिक टयूब में रख दिया, जहां वे रेंगने लगे. इस तरह का इनफेक्शन ट्रॉपिक्स और सब ट्रॉपिक्स में आम है और यह 10 साल से कम उम्र के बच्चों व बीमार लोगों में ज्यादा होता है.







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 मेनईटर को खुले जंगल में छोड़ने कवायद

 भोपाल में होने वाली पीसीसीएफ
की बैठक में होना है निर्णय
जबलपुर। बांधगढ़ के बफर जोन तथा उससे लगे इलाके में आतंक का कारण बने मेनईटर हो गए दो बाघों को कई महीनों से इंक्लोजर में कैद रखा गया है। इन दोनों बाघों पर लगातार नजर रखी जा रही है। नेशनल पार्क में इन दोनो बाघों को मेनईटर घोषित तो नहीं किया है लेकिन उन्हे मेनईटर ही मान कर इनक्लोजर में रखा है। इस दोनों बाघ ने एक शिक्षक सहित 7 लोगों को मार डाला था।  इनमें एक  बांधवगढ़ का महावत भी था। कई माह इनक्लोजर में रखने के बाद बाघों को खुले जंगल में छोड़ने फिर कवायद शुरू कर दी गई है।
ज्ञात हो कि बरही तथा पान उमरिया क्षेत्र में इन दोनों बाघों ने वर्ष 2014 में काफी आंतक मचा रखा था। इन बाघों पर हाथियों से भी निगाह करने कोशिश कर दी थी लेकिन जब बाघ ने एक हाथी पर ही हमला कर महावत को मार डाला तो इसके बाद हाथी भी इस बाघ के निकट जाने से  बचने लगे थे। खितौली क्षेत्र के इन बाघों ने जब गत वर्ष नवम्बर माह में ग्राम खितौली के शिक्षक अमोस लाकरा को उस वक्त खा लिया जब वह जंगल के निकट शौंच के लिए गया था। इस घटना के बाद वन अधिकारियों का कहना था कि घटना स्थल के समीप बाघ ने किसी मवेशी का शिकार किया था तथा शिक्षक वहां पहुंच गया था जिसके कारण बाघ ने मार डाला। किन्तु बाघ ने शिक्षक को आधा खा लिया था। इस घटना के बाद लोगों के प्रदर्शन एवं हंगामें के बाद रेस्क्यू चलाकर उक्त बाघों को पकड़ा गया था।
तब से है बहेरहा में
इस घटना के बाद बाघों को बेहरहा के इंक्लोजर में बंद  करके रखा गया था। पहले वन अमले की योजना थी बाघों को वन विहार भोपाल सिफ्ट कर दिया जाएगा लेकिन इसके लिए उन्हें अनुमति नहंी मिल पाई। बाघों को लगाकर इंक्लोजर में रखकर उनकी गतिविधियों पर नजर रखी गई। इसके लिए एक आब्जर्वेशन कमेटी बनाई गई थी। इन्क्लोजर में कैमरे लगाए गए थे।  सूत्रों की माने तो बाघों को जंगली जानवर चीतल , सांभर आदि का शिकार करने का मौका दिया गया। उनके शिकार करने का तरीका पूर्ण वाइल्ड लाइफ की तरह था।  इनके स्वभाव में भी बदलाव महसूस किया गया।  इसके पूर्व वे बेहद आक्रमक थे लेकिन अब वे जंगल के जीवन के अनुरूप ढले हुए महसूस किए गए। कमेटी ने रिपोर्ट दी है कि इन टाइगरों को  जंगल में छोड़ा जा कसता है। ।
बांधवगढ़ में नहीं छोड़ा जाएगा
बांधवगढ़ नेशनल पार्क में वैसे ही टाइगरों का घनत्व अधिक है तथा यहां नर बाघ काफी संख्या में है। इसके चलते उनको जंगल में छोड़ने पर टाइगरों में आपसी संघर्ष छिड़ने की आशंका है । इसके चलते उनको संजय गांधी नेशनल पार्क में छोड़ने का इरादा है। मुकुंदपुर  टाइगर सफारी में बाघों को रखने पर भी विचार चल रहा है । इसेक  अतिरिक्त संजय गांधी धुबरी नेशनल पार्क में छोड़ने का विचार चल रहा है। फिलहाल निर्णय नहीं हो पाया है।
वर्जन
बाघों को सिफ्ट करने को लेकर बैठक करके निर्णय लिया जाएगा। फिलहाल क्या निर्णय लिया जाएगा, यह बैठक के उपरांत ही बताया जा सकेगा।
रवि श्रीवास्तव, पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ


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 बिना लायसेंस के चालकों से दुर्घटना
राज्य   2012   2013  2014
यूपी 3635 6893 7240
एमपी 4783 4469 3373
तमिलनाडू 3468 3441 3854
नाबालिगों द्वारा रोड एक्सीडेंट
राज्य 2012 2013 2014
यूपी 5381 5082 3694
एमप 2935 2801 2684
तमिलनाडू 2068 1582 ---
*नोट- उक्त आंकड़े पुलिस द्वारा प्राप्त हुए हैं


एमपी-यूपी के नाबालिग बाइक में फर्राटे लगाने में नम्बर वन
 सर्वाधिक नाबालिग दुर्घटना का हो रहे शिकार, बिना ड्रायविंग लायसेंस वाहन चलाने में भी नम्बर वन

जबलपुर। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में  नाबालिग यंगस्टर में बाइक से धूम मचाने का क्रेज सर्वाधिक है। ये बात राज सभा में प्रस्तुत किए गए आंकड़ो से साबित होती है। दरअसल बाइक तथा अन्य सड़क दुर्घटना का शिकार सबसे अधिक इन्ही दो प्रदेशों में हो रहे है।  नम्बर वन में यूपी तथा नम्बर टू में एमपी है। मध्य प्रदेश में शहरी ही नहीं ग्रामीण व कस्बाई इलाके में भी बाइकर्स की धूम सुर्खियों में रहती है। पुलिस प्रशासन भी इन स्टंडबाज बाइकर्स पर लगाम नहीं ला पा रह है।
प्रदेश शासन ने बढ़ती हुई सड़क दुर्घटना को लेकर चिंतित है। खास तौर पर इस दुर्घटनाओं में नाबालिग बड़ी संख्या में शिकार हो रहे है। इसको लेकर राज्य स्तर पर सड़क सुरक्षा समिति ने एक्शन प्लान भी तैयार किया है जिससे सड़क दुर्घटनाओं में कमी आए। इसके तहत सर्वाधिक दुर्घटना के घनत्व वाले क्षेत्रों को ट्रेफिक इंजीनियरिंग के मुताबिक विकसित किया जाना है। इसके साथ ही यातायात के प्रति जागरूकता लाने ठोस उपाय किए जाने हैे। स्कूल कॉलेजों के समीप ट्रेफिक की विशेष व्यवस्था दी जाएगी। ट्रेफिक संबंधी अधोसंरचान के विकास के साथ शराब की दुकानें मुख्य सड़कों से दूर करना तथा पेट्रोल पम्पों को लेकर भी महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाने है।
35 हजार लायसेंस बने
एक तरफ नाबालिग तेजी से दुर्घटना के शिकार हो रहे है। दूसरी तरफ नाबालिग बड़ी संख्या में वाहन चला रहे है लेकिन उनके पास लायसेंस नहंी हैद्व इसके साथ ही बिना लायसेंस के वाहन चलाए जाने में भी प्रदेश शीर्ष प र है। इसको लेकर परिवहन विभाग द्वारा व्यापक पैमाने में लायसेंस बनाने अभियान भी चलाया जा रहा है। स्कूला, कालेजों में  ड्रायविंग लायसेंस बनाने कैम्प चलाए जा रहे है। इसके साथ ही ब्लाक और पंचायत स्तर पर भी लायसेंस बनाने कैप लग रहे है। प्रदेश में बीते 3 माह में 35 हजार लायसेंस कैम्प लगाकर बनाए गए है।

वर्जन
 मध्य प्रदेश में यातायात के प्रति जागरूकता लाने काफी प्रयास किए जा रहे है। इसके साथ ही ड्रायविंग लायसेंस बनाने का काम तेजी से किया जा रहा है। दुर्घटनाओं में  बालिग एवं नाबालिग दोनों ही शिकार होते है। स्कूलों में अस्थाई लायसेंस बनाने के कैम्प चलाए जा रहे है।
एसएन मिश्रा
प्रमुख सचिव , परिवहन विभाग

वर्जन
सड़क दुर्घटनाआें को कम करने मध्य प्रदेश सरकार तेजी से काम कर रही है। स्कूली बसों आदि के लिए कड़े नियम बनाकर उसका परिपालन कराया जा रहा है। वाहन चलाने की पात्रता रखने वालों के लायसेंस तेजी से बनाए जा रहे है। महिलाओं के लिए लायसेंस फीस फ्री की गई है। स्कूल, कालेज और ग्रामीण क्षेत्रों में कैप लगाकर लायसेंस बनाए जा रहे है।
भूपेन्द्र सिंह
परिवहन मंत्री मप्र

 प्रमुख सचिव परिवहन विभाग मप्र
 मप्र टेलीफोन डायरेक्टरी

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 प्रदेश में पहली बार टाइगरों की गिनती करेगा वन अमला

 नेशनल पार्क एवं  अभ्यारण्य मेंं गिनती शुरू
 
 पांच हजार से अधिक कर्मचारी जुटे
जबलपुर। मध्य प्रदेश में पहली बार वन्य प्राणियों की गिनती प्रदेश के 52 वन मंडलों एवं नेशनल पार्क के वन्य कर्मियोंं द्वारा की जा रही है। सभी नेशनल पार्क  में 31 जनवरी से गिनती शुरू कर दी गई है जो 5 फरवरी तक चलेगी।
वन विभाग द्वारा कान्हा, पेंच, बांधवगढ, पन्ना, संजय गांधी, सतपुड़ा, भोपाल स्थित वन विहार, सहित 11 नेशनल पार्क एवं अम्यारण्य में गिनती  प्रारंभी की गई है जिसमें 5 हजार से अधिक कर्मचारी रखे गए है।
मालूम हो कि इसके पूर्व टाइगरों तथा वन्य प्राणियों की गणना वन्य प्राणी अनुसंधान संस्थान देहरादून द्वारा किया जाता रहा है। प्रदेश में करीब 28 हजार वन्य कर्मियों का भारी भरकम अमला मौजूद है। इसके बावजूद गिनती के लिए बाहर की एजेंसी को बुलवाना पड़ता था। शासन ने इस वर्ष से स्वयं के संसाधनों से गिनती करने का निर्णय लिया। जबलपुर स्थित राज्य वन अनुसंधान केन्द्र को नोडल एजेंसी बनाया गया है। नेशनल पार्क में शाकाहारी एवं मांसाहारी जीव की गणना होकर डाटा यहां पहुंचेगे। इसके बाद दूसरे चरण में 10 फरवरी के बाद वन मंडलों में वन्य प्राणियों की गिनतीहोनी है।
नेशनल पार्क में वन्य प्राणियों की गणना के कार्य के चलते जहां ट्रांजिस्ट लाइन खींच कर वहां कैमरे आदि लगाए  गए है। वहीं वन्य प्राणियों की गिनती के लिए वन कर्मियों के दस्ते नेशनल पार्क एरिया तथा कोर एरिया में घुस रहे है। इसके साथ ही बफर जोन में भी गिनती की जा रही है।
जानकारी के अनुसार मध्य प्रदेश में सर्वाधिक बाघ कान्हा नेशनल पार्क में है जबकि बांधवगढ़ तथा पन्ना नेशनल पार्क में बाघों का घनत्व बेहद अधिक है। पेंच में बड़ी संख्या मे बाघ ,तेन्दुआ और अन्य शाकाहारी जीव चीतल , सांभर, हिरण, भालू तथा अन्य वन्य जीव पाए जाते है। सतपुड़ा नेशनल पार्क में काले हिरणों की संख्या काफी है। वन्य प्राणियों की गणना सैम्पलिंग प्रणाली से की जाना है जिसके तहत वन्य प्राणियों को भौतिक रूप से देखा जाएगा। इसके अतिरिक्त उनके शरीर में मौजूद चिंह, जानवरों के पग मार्क आदि के सैम्पल दर्ज किए जाएंगे।
जबलपुर में हुआ प्रशिक्षण
वन्य प्राणियों की गणना के लिए राज्य वन अनुसंधान केन्द्र में विभिन्न चरण में वन्य प्राणियों की गणना के लिए देहरादून से आए विशेषज्ञों द्वारा प्रशिक्षण भी प ्रदान किया जा चुका है। अब देखना यह है कि वन अमले द्वारा की जाने वाली गणना कितनी सटीक होती है।
टाइगर गणना रही है विवाद में
देश में टाइगरों की गणना हमेश विवाद में रही है। जहां एक तरफ टाइगरों की संख्या कई राज्यों में अनावश्यक बढ़ाए जाने के आरोप है यहां तक एनीमेशन से फर्जी वीडियो तैयार करने तक का आरोप लगा है। इसी के चलते मध्य प्रदेश से टाइगर स्टेट होने का दर्जा भी छिन चुका है। अब नई गणना में कितने टाइगर एवं तेन्दुए आते है यह सामने आएंगे।
सर्वाधिक तेन्दुए मौजूद
मध्य प्रदेश के जंगल में सर्वाधिक तेन्दुए पाए  गए है। इसके पूर्व हुई गणना में इनकी संख्या 4 हजार से उपर थी। लेकिन जानकारों का कहना है कि तेन्दुआ छिप कर रहने वाला प्राणी है जिसके कारण तेन्दुए की गणना बेहद कठिन और जटिल काम है।  यदि सही तरीके से गणना होती है तो प्रदेश में तेन्दुए की संख्या 5 हजार के करीब पहुंच सकती है।

ऐसे होनी है गणना
बताया गया  कि पहले तीन दिन मांसाहारी जीवों यानी तेन्दुआ और टाइगर की गणना होगी। इस दोरान अन्य मांसाहारी जीव मिलते है तो उनकी  भी गणना होगी। वहीं अंतिम तीन दिन शाकाहारी जीवों की गणना होगी। जंगल में शाम जल्द हो जाती है इसके मद्देनजर गणना े दोपहर 2 बजे के बाद बंद कर दी गई।

वर्जन
सभी पार्को में गणना प्रारंभ कर दी गई है। गणना के कार्य के बाद गणना की समीक्षा की जाएगी।
सीएच मुरली कृष्ण
डायरेक्टर राज्य वन अनुसंधान केन्द्र

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देश में । पिछले साल 1.31 लाख से ज्यादा लोगों ने अपनी जान दी। ै। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार पिछले साल राष्ट्रीय की तुलना में शहरों में आत्महत्या की दर ज्यादा थी। जहां मध्यप्रदेश में जबलपुर आत्महत्या  के मामलों में शीर्ष पर हुआ करता था अब उसकी जगह भोपाल ने ली है। यहां 1हजार 64 लोगों ने बीते साल खुदकुशी की। शहरी क्षेत्र में आत्महत्या की दर 12.8 प्रतिशत आंकी गई है।


आत्महत्या  के  मामले में शीर्ष शहर

चेन्नई 2,214
बेंगलुरु 1,906
दिल्ली 1,847
मुंबई 1,196
भोपाल 1,064

प्रदेश में गली गली मिल रहा मौत का सामान

 नींद की गोली खाकर सवा सौ लोगों ने की खुदकुशी


जबलपुर। मध्य प्रदेश में आत्महत्या के आंकड़े चिंताजनक हालत पर पहुंचते जा रहे है। औसतमन प्रतिदिन दो दर्जन लोग आत्म हत्या कर रहे है। मध्य प्रदेश में पौन चार हजार लोगों ने आत्महत्या की है। नेशनल क्राइम ब्यूरों के आंकड़ो के मुताबिक सर्वाधिक मौते इम्पुल इंजैक्शन के सेवन के कारण हुई है। इस मौतों में केवल ढाई हजार मौत का कारण इम्पुल रहा है। इसके साथ ही नींद की गोली खाकर करीब सवा सौ लोग खुदकुशी कर चुके है।
 मध्य प्रदेश में तेजी से आत्महत्याओं का ग्राफ बढ़ा है। इन आत्महत्या के तरीकों पर गौर किया जाए तो लोगों ने सबसे सरल तरीका जहर पीकर खुदकुशी  करना लगता है।  जानकारी के अनुसार इम्पुल सहित अन्य कीटनाशक पीकर ढाई हजार से अधिक लोगों ने मध्य प्रदेश में खुदकुशी है। इसके अतिरिक्त फांसी लगाकर, ट्रेन से कटकर तथा नदी व कुए में कूद कर जान देने की घटानाएं जहर सेवन से आधी है। जहर सेवन के मामले में नींद की गोली खाकर करीब सवा सौ आत्महत्या वर्ष 2014-15 में की गई है। यह संख्या भी बेहद अधिक समझी जा रही है।
बिक रही प्रतिबंधित दवाएं
बताया गया कि कम्पोज तथा ट्राइका जैसी दवाइयां लगभग बैन कर दी गई है। इसके बावजूद ट्राइका सहित अन्य नींद की दवाइयां प्रदेश भर में मेडिकल स्टोर्स में डॉक्टर पर्चे और बिना पर्चे के आसानी से मिल रही है।
दस से अधिक गोलीनहीं मिलेगी
नियम है कि नींद की तथा नशे से संबंधित गोलियां दस से अधिक डॉक्टर के पर्चे में भी नहंी मिलती है। एक बार कोई पर्चा लिखवाने के बाद चाहे तो अलग अलग मेडिकल स्टोर्स से ये दवाइयां खरीद लेता है। दस की जगह सैकड़ा भी गोली आसानी से खरीद सकता है। इन दवाइयों की बिक्री का कोई रिकार्ड नहंी रखा जा रहा है। जानकारों की माने तो नींद की गोली की पर्चा से दवाई देने के बाद मेडिकल स्टोर्स संचालक को गोली देने की जानकारी पर्चे में दर्ज करनी चाहिए जिससे वह इसी पर्चे से दूसरी जगह गोलियां न खरीद  सके।
पचास से अधिक जरूरी
जानकारों की माने तो नींद की गोली खाकर आत्महत्या करने वाले व्यक्ति को 40-50 गोली खानी पड़ती है तभी उसकी मौत होती है। प्रदेश में करीब सवा सौ लोगों ने नींद की गोला खाकर आत्महत्या की है जिससे जाहिर है कि नींद की गोली मिलना आसान काम है।
इम्पुल प्रतिबंधित
इसी तरह बढ़ताी आत्महत्या की  घटनाओं के मद्देनजर सल्फास को पूरी तरह खुली बिक्री प्रतिबंधित है। इसके बावजूद किसी भी किराना स्टोर्स में बिना रोकटोक के चूहा मार दवाई के नाम पर सल्फास मिल जाता है। सर्वाधिक आत्महत्या की घटनाएं इम्पुल इंजैक्शन फोड़ कर पीने से हुई है। इम्पुल इंजेक्शन किसी भी कृषि दुकान में बेहद आसानी से मिलता है। नियम यह है कि इम्पुल इंजेक्शन किसानों को हीउपलब्ध कराया जाता है, वह भी ऋण पुस्तिका में इसका उल्लेख करना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।
जबलपुर आत्महत्या की राजधानी
जबलपुर में बीते साल फांसी लगाकर 585 लोगो ने आत्महत्यांए की। इसी तहर एम्पुल सहित अन्य जहर पीकर 653 तथा नदी व कुए में कूदकर 50 लोगों ने जांच दी है। बीते तीन सालों से जबलपुर पुलिस बढ़ती आत्महत्या की घटनाओं को रोकने संजीवनी अभियान चला रही है। दरअसल नेशनल क्राइम रिकार्ड  ब्यूरों  की वर्ष  2012 की रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि जनसंख्या की तुलना करने पर  आत्महत्या क दर जबलपुर में देश में नम्वर  टू  पर है।  2012 में जबलपुर में 572 आत्महत्याएं हुई थीं ये  45.1 फीसदी था।


मेडिकल स्टोर्स वालों को समय समय पर डॉक्टर की पर्ची के बिना नींद की तथा अन्य प्रतिबंधित दवाइयां न देने चेतवानी दी जाती है और शिकायत मिलने पर कार्रवाई भी की जा रही है।
एमएम अग्रवाल
सीएमएमओ जबलपुर

ड्रक कंट्रोलर


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Thursday, 11 February 2016

हत्या, लूट, चोरी और बलात्कार की घटनाएं से रंगा रहा साल ,साल 2015 में बढ़ा अपराधों का ग्राफ



पुलिस की सक्रियता के बावजूद अपराधी रहे बेखौफ



चाकूबाजी और तेजाब के मामले में देश भर में बदनाम रहे इस शहर में वर्ष 2015  में अपराध और अपराधी सिर चढ़कर बोलते रहे। वर्ष भर लोगों के घरों में चोरियां होती रही। लगभग हर माह हत्या , बलात्कार और लूट की संगीन वारदातों की एफआईआर थाने में दर्ज हुई। शहर को संजीवनी नगर और गोसलपुर जैसे नए थाने मिले। इसी वर्ष नए पुलिस अधीक्षक डॉ आशीष ने जिले की कमान संभाली। शहर में कानून व्यवस्था की लगाम करने पुलिस प्रशासन को वर्ष भी कड़ी मशक्कत करनी पड़ी
   वर्ष 2015 के अपराधों के आेंकडे बता रहे है कि शहर में अपराध बढ़ रही हैं। बीते वर्ष की तुलना में 2015 में  बलात्कार, लूट तथा चोरी जैसे संगीन अपराधों में बढ़ौतरी हुई है। संस्कारधानी के नाम से मशहूर जबलपुर जिले की आबादी 24 लाख के आंकड़े के आसपास है, जिसमें 7 तहसीलें और 1474 गांव हैं। शहर की यदि बात की जाए तो नगर निगम के तहत 79 वार्ड और 13 जोन हैं। जिले की सुरक्षा के लिए पुलिस, होमगार्ड, एसएएफ और आरएएफ  की टीमें भी शहर में ही मौजूद रहती हैं। बावजूद इसके अपराधों का ग्राफ साल दर साल बढ़ता जा रहा है।
बाक्स
जिले में मौजूद पुलिस संगठन
जिले में कुल थानों की संख्या                39
जिले में चौकियों की संख्या                  13
एडीशनल एसपी                              6
सीएसपी                                      7
अन्य पुलिस बल                             9000 लगभग
14 हजार अपराध दर्ज
आरोपियों को पकड़ने के लिए पुलिस ने अपनी ओर से भरपूर प्रयास किए, जिनमें उसे काफी हद तक सफलता भी मिली, लेकिन तू डाल डाल मैं पात पात वाली कहावत भी चरितार्थ होती रही। इस साल हत्या को छोड़ दिया जाए तो लगभग सभी तरह के अपराधों में बढौतरी हुई है। माइनर एक्ट के मामले मिलाकर करीब 14 हजार अपराध दर्ज किए हैं।
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वर्ष 2014 और 2015 में हुए अपराध एक नजर में -
अपराध की प्रवृत्ति             2014            2015
हत्या                            92               82
हत्या का प्रयास                 152             195
डकैती                            0                4
्रडकैती का प्रयास                  6                5
लूट                            138             149
घर में हुई चोरी                 580             734
साधारण चोरी                  420              476
वाहन चोरी                     592             798
बलवा                          69               93
बलात्कार                      134              147
फिरौती अपहरण                 6                  0
अन्य अपहरण                  577             432
आर्म्स एक्ट                     655             565
नारकोटिक्स एक्ट               128               64
साइबर क्राइम                   अप्राप्त            21
घटनाएं जो बनीं सुर्खियां
जनवरी-साल के शुरुआती माह जनवरी में 60 लाख रुपए की ठगी का खुलासा किया गया। दुबई के एक शेख के इशारे पर शहर के एक व्यक्ति के साथ 60 लाख रुपए की ठगी की गई थी, जिसमें पुलिस ने आरोपी को गुजरात से पकड़ने में सफलता हासिल की। हालांकि इस मामले में पुलिस के हाथ उस शेख तक नहीं पहुंच पाए, जो ठगी का मुख्य सरगना था।
फरवरी-रांझी थाने में पदस्थ एएसआई की बेटी से एकतरफा प्रेम के चलते मौसेरे भाई ने ही उसकी हत्या कर दी थी। मामले की छानबीन के दौरान पूरा पुलिस विभाग इस घटना से स्तब्ध था, वहीं रिश्तों को क लंकित करने वाली इस घटना ने समाज की बिगड़ती विचारधारा का भी उदाहरण पेश किया था।
मार्च-यह माह पुलिस के लिए चुनौती भरा रहा, जिसमें मदन महल स्टेशन के साइकिल स्टैंड के पूर्व संचालक द्वारा अपनी पत्नी की गोली मारकर हत्या का मामला कई दिनों तक चर्चा का विषय बना रहा। घरेलू कलह के कारण स्टैंड के पूर्व संचालक विवेक दुबे ने आक्रोश में आकर पत्नी को मौत के घाट उतार दिया था। वहीं माढ़ोताल थानांतर्गत सूरतलाई में हाईवे के किनारे रहने वाले परिवार पर आधा दर्जन से ज्यादा नकाबपोशों ने धावा बोलकर 17 लोगों को बंधक बना लिया था। बाद में बदमाश लूट की वारदात को अंजाम देकर फरार हो गए। माह के आखिरी में हिरन नदी कटंगी में एक ही परिवार के तीन लोगों की डूबने से मौत हो गई थी। बच्चे को बचाने के चक्कर में पिता, पुत्र और नाती अकाल मृत्यु के शिकार हो गए थे।
अप्रैल-सिहोरा के खलरी महगवां गांव में आधा दर्जन से ज्यादा सशस्त्र बदमाशों ने लक्ष्मण पटैल के घर चोरी की वारदात को अंजाम दिया था। जिसमें उन्होंने परिवार के सदस्यों को बंधक बनाकर लाखों रुपए के नकदी जेवरात लूट लिए थे।


मई-इस माह की शुरुआत भूकंप के झटकों के साथ हुई थी। हालांकि शहर में इससे ज्यादा नुकसान नहीं हुआ। जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के डीएसडब्ल्यू विभाग के द्वारा अपने ही रिश्तेदार को धमकाने का मामला महीने भर छाया रहा। डीन प्रदीप बिसेन ने खुद को कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन का छोटा भाई बताते हुए रिश्तेदार को उठवा लेने की धमकी दी थी, जिससे प्रदेश की सत्ता में भी काफी खलबली मच गई थी। माह के आखिरी में पुलिस अधीक्षक हरिनारायणाचारी मिश्र के स्थान पर डॉ. आशीष ने पदभार संभाला।
जून-माह के शुरुआती दिनों में एनएसयूआई पर हुए लाठीचार्ज से सियासत गरमा गई। शिक्षा मंत्री के पुतला दहन को लेकर पुलिस और एनएसयूआई कार्यकर्ताओं में झड़प हो गई थी, जिसमें पुलिस ने उन्हें दौड़ा-दौड़ाकर पीटा था। वहीं रेलवे हॉस्पिटल में डॉक्टर की लापरवाही से कर्मचारी की पत्नी की मौत हो गई थी, जिस पर कई दिनों तक बवाल मचा रहा।
जुलाई-शहर में अपराध की दर घटने पर नहीं आ रही थी वहीं छात्रवृत्ति घोटाले के मामले में राधास्वामी इंस्टीट्यूट में ईओडब्ल्यू का छापा पड़ने से कॉलेजों में हड़कंप मच गया। मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. अरुण शर्मा की दिल्ली में संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत से पूरा स्वास्थ्य जगत स्तब्ध था।
रेलवे के जीएम की बेटी की शादी में हर अधिकारी को 50-50 हजार रुपए का गिफ्ट देने का आॅडियो भी सामने आया जिसने रेलवे में खलबली मचा दी।
अगस्त-इस माह में अपराध तो सामान्य रहे, लेकिन जैन समाज द्वारा किया गया आंदोलन प्रदेशभर में चर्चा में रहा। राजस्थान की हाईकोर्ट द्वारा संल्लेखना और संथारा को लेकर दिए गए आदेश के बाद जैन समाज आक्रोशित हो गया और लाखों की संख्या में एकजुट होकर मौन जुलूस निकाला।
सितंबर-केंट के शातिर बदमाश बबलू पंडा ने अपनी दासता पत्नी मंजू सोधे को बीच सड़क पर गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया था। फरारी के दौरान भी उसने अपने ही गुर्गे संजय रजक की भी हत्या कर दी थी। इसी दौरान डीमेट घोटाले में डॉ. एमएस जौहरी की गिरफ्तारी से डॉक्टरों में हड़कंप मचा रहा।
अक्टूबर-नवरात्र और दशहरा के कारण यह माह पुलिस के लिए साल का सबसे संवेदनशील माह रहा। पुलिस के लाख प्रयास करने के बाद भी धार्मिक उन्माद फैलाने वाले सक्रिय रहे, वहीं दशहरा जुलूस में गोसलपुर में काल बनकर आए ट्रक ने 7 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था।

जिससे पूरे शहर और प्रदेश में महीने भर सनसनी मची रही।
नवंबर-यह माह आयकर विभाग के छापों के कारण इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। आयकर विभाग के आधा सैकड़ा अधिकारियों द्वारा करीब एक दर्जन कारोबारियों के कार्यालय और निवास पर एक साथ छापामारी की गई। जिससे उद्योग जगत में दहशत का माहौल रहा। वहीं मुर्रई में आधी रात को एक घर में चोरों ने धावा बोलकर परिवार के सदस्यों को बंधक बना लिया और लूट की वारदात को अंजाम दिया।
दिसंबर-साल का आखिरी महीना होने के अलावा इस माह में कुछ ऐसी घटनाएं भी रहीं, जिन्होंने शहर भर में खलबली मचाए रखी। फिल्म दिलवाले का विरोध हुआ तो वहीं मेडिकल कॉलेज से नवजात बच्चे की चोरी ने प्रबंधन को कटघरे में खड़ा कर दिया। वहीं शहर में गश्त और पुलिस को तकनीक से लैस करने के उद्देश्य से 40 एफआरवी यानी फर्स्ट रिस्पांस व्हीकल प्रदान किए गए, जिससे काफी हद तक अपराधों में खौफ बढ़ रहा है। 

समाज के प्रति भी है पुलिस का दायित्व



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 अशोक तिवारी
 डीएसपी अजाक
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पुलिस विभाग में कर्मठ पुलिस अधिकारी के रूप में पहचाने जाने वाले अशोक तिवारी हाल ही में पदोन्नत होकर डीएसपी अजाक  शाखा में पदस्थ किए गए है। श्री तिवारी 1983 बैच के सब इंस्पेक्टर है। उनकी पदस्थापना  जबलपु, कटनी, सिवनी, छिंदवाड़ा, इंदौर जिलो में रही है। जबलपुर मे बरेला थाना में पद स्थाना के दौरान 1997 में  जबलपुर में आए भीषण भूकम्प से बरेला थाना क्षेत्र स्थित कोसमघाट गांव सहित कई गांव बुरी तरह तहस नहस हो गए थे। इस दौरान अशोक तिवारी ने पुलिस कर्मियों से हट कर एक  समाज सेवक की भूमिका का निर्वाह किया था। वे अब भी समाज सेवा के कार्यो से जुड़े रहने के हर संभव प्रयास करते है।  पीपुल्स संवाददात दीपक परोहा की उनसे हुई  बातचीत के अंश-
प्रश्न-  जबलपुर पुलिस को कैसे आपकी पदस्थाना का लाभ मिलेगा?
जवाब- मैने जबलपुर में लम्बे समय तक सर्विस की है। निश्चित ही जबलपुर में अपराध एवं कानून व्यवस्था की समस्या से अवगत हूं। मै इंदौर से पदोन्नत होने के बाद अजाक शाखा में पदस्थ किया गया  हूं लेकिन जब कभी भी जिला पुलिस को जरूरत रहती है, अजाक से भी पुलिस कर्मियों को बुलाया जाता है।
प्रश्न- अनुसूचित जाति जनजाति संबंधी अपराध की क्या स्थिति है?
जवाब - अनुसूचित जाति जनजाति के व्यकित जब कभी अपराध की घटना का शिकार होते है तो उसकी जांच पड़ताल पूरी संवेदना से की जाती है। थानो में केस डायरी आजक थाने पहुंचती है तथा मुलजिम को न्यायालय में पेश करने तथा की गई विवेचना की पूरी निगरानी रखी जाती है। पुलिस बेहद संवेदनशीलता से जांच पड़ताल करती है। अपराधों के दर में गिरावट भी आई है।
प्रश्न- अमूमन यह कहा जाता है कि  अनुसूचित जनजाति की महिलाओं से दुराचार के अधिकांश मामले झूठे निकलते है?
जवाब- ऐसा नहंी है कि सभी मामले झूठे रहते है। पुलिस पीड़ित महिला की शिकायत पर रिपोर्ट दर्ज करती है और पूरी संवेदनशीलता पूर्वक जांच भी करती है लेकिन कई बार मामला संदेहास्पद होता है लेकिन महिला की बात सुनी जाए इसलिए जांच पड़ताल की जाती है। ऐसे मामलो में साक्ष्य के अभाव में आरोपी बरी भी हो जाते है।
प्रश्न- आप अपनी क्या प्राथमिकता पुलिस में रखते है।
जवाब - मेरा प्रयास रहता है पुलिस के जो अपने काम है, उसे समय पर पूर्ण किए जाए। अपराध नियंत्रण प्राथमिकता होती है । यही प्राथमिका अजाक  में रहेगी लेकिन इसके साथ  समाज में दलितो,ं लावारिस बच्चो, निसहारा महिलाओं, विकलांगों की सेवा करना चाहता हूं। पुलिस को अपने कार्य  से हट कर समाज के ऐसे लोगों के प्रति निश्वार्थ भाव से काम करना चहिए चंूकि पुलिस के मामूली प्रयास से ही ऐसे लोगों की बड़ी मदद हो जाती है।  पुलिस को समुदायिक पुलिसिंग करना चाहिए।  


बिना इंसुलीन के नियंत्रण में आई डायबिटीज

दीपक परोहा
9424514521


  * पांच साल से ले रही थी 50 यूनिट इंसुलिन


 इंट्रो

पिछले एक-दो वर्षो से बाजार में डायबिटीज की आधुनिक औषधी आने लगी है और इस दवा के प्रयोग से चमत्कारिक परिणाम सामने आए है। । एक महिला जिसको पिछले पांच साल से करीब 50 यूनिट इंसुलिन  ले रही थी लेकिन इसके बावजूद शुगर लेबल 500 के करीब बना रहता था। महिला की आंख तथा किडनी खराब होने का खतरा मंडरा रहा था ऐसे में उन्हेंं ओरल दवाइयां दी गई तो इंसुलिन इंजेक्शन लगना बंद हो गया। दरअसल डायबिटीज के इलाज के लिए हो रहे तेजी से बदलाव एवं रिसर्च के साथ चिकित्सक के अपडेट होने का फायदा मरीजो को मिलता है। यह कहना है डायबिटीज विशेषज्ञ डॉ अभिषेक श्रीवास्तव का।
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डा.अभिषेक श्रीवास्तव ने बताया कि कुछ महिना पहले शहर के एक सम्पन्न एवं प्रतिष्ठित परिवार की 50 वर्षीय महिला रूकमणी देवी (काल्पनिक नाम) उनके पास इलाज के लिए आई। उसको हाई डायबिटीज रहती थी। महिला शहर के अन्य कई चिकित्सकों के पास इलाज करवा चुकी थी। नागपुर सहित अन्य शहरों के चक्कर भी लगा चुकी थी। उसकी ब्लड शुगर का लेबल 400-500 के करीब बना रहता था जबकि 40-50 यूनिट इंसुलिन वे प्रतिदिन ले रहीं थी। लगातार ब्लड शुगर बढ़े रहने के कारण अन्य कई बीमारी होने का खतरा बन गया था।
मरीज जब क्लिनिक में पहुंची तो बुरी तरह निराश थी। यह पाया गया कि

 मरीज को इंसुलिन असर करना बंद कर दी थी। आवश्यकता से ज्याद डोज ले रही थी। उनको इंसुलिन बंद करा दिया गया। दो तरह की दवाइयां सिर्फ खाने को दी गई। इसमें एक दवाई पेनक्रियाज को इंसुलिन उत्पादन के लिए प्रेरित करने वाली तथा दूसरी दवाई ब्लड से शुगर का लेबल कम करने वाली थी। इस दवाई का चमत्कार यह हुआ कि वर्षो से जिल महिला का पेनक्रियाज निष्क्रिय पड़ा था वह सक्रिय हो गया। पेनक्रियाज स्वयं इंसुलिन उत्पादन करने लगा तथा रक्त में लगातार मौजूद रहने वाला शुगर लेबल भी कम हो गया। बीते कई माह से महिला को इंसुलिन देने की जरूरत नहंी पड़ रही है। इतना ही नहीं दवाई का डोज भी कम कर दिया गया है।
डॉ श्रीवास्तव का कहना है कि दरअसल डायबिटीज के इलाज के लिए प्रत्येक मरीज को उसके शुगर लेबल के लिए दवाइयां पूरी योजना और लगातार निगरानी में देने की जरूरत रही है।
मोटापा से मिली राहत
डॉ. श्रीवास्तव का कहना है कि शुगर की तरह मोटापा भी एक बड़ी बीमारी है । आम आदमी बढ़ते हुए मोटापा को नजरअंदाज करता और बाद में यही मोटापा शुगर, ब्लड प्रेशर, हृदय रोग, हाइपर टेंशन सहित अनेक बीमारी का कारण बन जाता है। डॉ श्रीवास्तव के पास  उनकी क्लीनिक में आरती मिश्रा आई जो कि युवा अवस्था में ही मोटापे की बीमारी से पीड़ित थी। उसका वजन डेढ सौ किलो हो गया था जबकि उंचाई पांच फुट दो इंच थी। इस उचाई की महिला के औसत वजन से ढाई गुना अधिक वजन था। पैरों में सूजन आने लगी थी। अन्य कई तरह की बीमारी का खतरा मंडरा रहा था। डाइबिटीज की तरह मोटापा कम करने की अनेक अच्छी दवाइयां आने लगी है। महिला को मोटापा की बीमारी वंशानुगत थी। दवाई एवं डाइड से मोटापा नियंत्रित किया गया। वर्तमान में आरती मिश्रा का वजह 100 किलो रह गया है जिसमें और भी कमी आने की पूरी संभावना है।
डॉ  श्रीवास्तव ने बताया कि एक बार मोटापा नियंत्रण में आने बाद दवाइयां बंद की जा सकती है। मरीज संतुलित आहार लेता रहे तो मोटापा दाबारा अटेक नहंी करता है।

शहस्त्र दल कमल को बचाने जुटा मझौली




नगर की सुख समृद्धि से जुड़ा है कमल
जबलपुर। दुर्लभ हजार दल के कमल को बचाने के लिए मझौली के नागरिकों ने तालाब को बचाने एक अभियान चलाया है। इस तालाब में जो कमल पाए जाते है, वह आसपास के किसी इलाके में नहीं पाए जाते है। किवदंतियों के मुताबिक यहां शहस्त्र दल के कमल खिलते है जो भगवान विष्णु को अर्पित किया जाता है। मझौली स्थित विष्णु सरोवर पुराना नाम नरिया तालाब की सफाई के लिए क्षेत्रीय लोग पिछले दस दिनों से सघन अभियान चला रहे है तथा तालाब की चोई आदि हटाई जा रही है जिसके पीछे उद्देश्य है कि  यहां होने वाले सहशस्त्र दल कमल को बचाया जाए।
सहशस्त्र दल को लेकर किवदंतियां एवं पौराणिक मान्यता है कि जिस तालाब और सरोवर में सहस्त्र दल कमल खिलते है, वहां देव लोक से देवता तथा गंधर्व आदि स्नान करने आते है। ऐसी मान्यता है कि  सूदूर हिमालय स्थित मानसरोवर में सहस्त्र दल कमल पाया जाता है। मझौली के पुराने बुर्जगों का कहना है कि इस तालाब में सहस्त्रदल कमल पाए जाते है।
अदभुत कमल पाए जाते है
यह सच है कि विष्णु सरोवर में वर्षो से प्रतिवर्ष विलक्षण कमल खिलते है जिसमें सामान्य कमल से कई गुना अधिक दल पाए जाते है। जिसको लोग सहस्त्र दल कमल के रूप में मानते है। जैसे कमल इस तालाब में खिलते है, वैसे कमल प्रदेश के अन्य किसी सरोवर अथवा तालाब में नहीं खिलते है। पुराने बुर्जगों का कहना है कि उन्होंने तालाब में सहस्त्र दल कमल भी खिलते देख चुके है जो कई वर्षो में एक दो बार ही खिलते है जो विष्णु वाराह मंदिर में अर्पित होते है।
ये लोग जुट तालाब बचाने
विष्णु सरोवर के कमलों के पौधों की रक्षा के लिए विश्व हिन्दु परिषद के मदन साहू तथा त्यागी आश्रम के के नव युवक मंडल के नेत्रत्व में सफाई अभियान चल रहा है। पिछले दस दिनों से क्षेत्र के महिला -पुरूष तथा बच्चे तक तालाब में उतर आए है और भरी ठंड में घंटो पानी में रहकर तालाब की चोई हटाने के काम मे जुटे है। तालाब की आधे से अधिक चोई हटा ली गई है।
क्या कहते है वैज्ञानिक
वैज्ञानिकों की माने तो अमूमन अच्छी प्रजाति के कमल में पचास से अधिक दल नहीं पाए जाते है। इससे अधिक दल वाले कमल को अमूमन लोग सहस्त्र दल का कमल बोल देते है। मझौली तालाब में अधिक दल के कमल पाए जाने की खबर मिलती रही है।
वर्जन -2
म्यूटीयन का परिणाम
सैकड़ो-हजारों साल में कभी कभार जैनेटिक परिवर्तन जीव जन्तु एवं प्लांट में होते है। इस परिवर्तन के दौरान अपनी सामान्य प्रकृति से हट कर उत्पत्ति होती है जिसे म्यूटीयन कहा जाता है। कमल के सरोवर में कभी कभार म्यूटियन के प्रभाव से सामान्य से कई गुना अधिक दल वाले कमल हो जाते है जो म्यूटीयन के कारण होते है और ये दुर्लभ होते है। कुछ पीढी बाद वे विलप्त भी होने लगते है। इस तरह के कमल को लोग सहस्त्र दल कमल कहते है।
डॉ किनजिलक सिंह
कृषि  वैज्ञानिक


कीलित किया गया
देश में दुर्लभ कल्चुरी कालीन विष्णु वराह की दुर्लभ प्रतिमा मझौली में स्थित है। विष्णु बराह का यह दुर्लभ एवं एतिहासिक मंदिर यहां स्थित है जो सरोवर से कुछ फासले में है। एसी किवदंतियां है मछुआरों को  जाल में भगवान विष्णु वराह की मूर्ति मिली थी जिसको मंदिर में स्थापित किया गया था लेकिन मूर्ति प्रतिदिन बढ़ती चली गई , अंतत: इसको कीलित किया गया जिसके बाद इसका बढ़ना रूका है। अब भी देश भर से लोग यहां विष्णु वराह के दर्शन करने आते है। 

जबलपुर के सैनिकों के विद्रोह ने हिला दिया था अंग्रेजों को


इतिहास भी छिपाया जा रहा: मेजर जनरल जीडी बख्शी

 हमारा देश दुनिया का बेहतरीन गणतंत्र है, इस  गणतंत्र दिवस पर अपेक्षा है कि देश दुनिया के ताकत बनकर उभरे, इस देश के लोग समृद्धशाली होए। देश को वर्तमान में अपना गणतंत्र बचाने के लिए देश के भीतर और बाहरी मोर्चों पर पूरी इमानदारी से लड़ाई लड़ने की जरूरत है। अंग्रेज जो फूट डालो राज करो का बीजारोपण कर गए है, उससे यहां के राजनेताओं को बचने की जरूरत है। यह कहना है सेवानिवृत मेजर जनरल गगनदीप बख्शी का। पीपुल्स से गणतंत्र दिवस के पूर्व हुई उनसे बातचीत के अंश-
प्रश्न- गणतंत्र दिवस पर आप देश वासियों को क्या संदेश देना चाहते हैं ?
जवाब- हर भारतीय यह सोच बनाए कि हमारा देशउन्नति करे और फले फूले। हम दुनिया को विश्व गुरू ओर विश्व शक्ति के रूप में दुनिया के सामने लाए। हममें यह सामर्थ है इस भारतीय नागरिकों को देश के प्रति कर्तव्यों का ध्यान रखने की जरूरत है। संविधान ने हमे अधिकार दिए  है ,जिसे हम याद रखते हैं लेकिन कर्तव्य को नजर अंदाज कर देते है।
प्रश्न- भारतीय गणतंत्र में जबलपुर का क्या योगदान है?
जवाब- जबलपुर देश के प्रति  जो योगदान है, वह शायद ही किसी और शहर का ऐसा अभूतपूर्व योगदान रहा है। भारतीय इतिहास में अमर योगदान है। सभी लोग 1857 के सैनिक विद्रोह के विषय में जानते है, जो कुछ राजघरानों के नेतृत्व में  सैनिकों ने किया था तथा जबलपुर में भी सैनिक विद्रोह हुआ था लेकिन इस विद्रोह से कहीं अधिक प्रभावशाली विद्रोह सन 1946 में एक विद्रोह हुआ था जिसका इतिहास में भी ज्यादा उल्लेख नहीं है, इस विद्रोह से घबराकर अंग्रेज भारत छोड़ने के लिए मजबूर हुए थे।
प्रश्न - आजादी के पूर्व वर्षो में किस तरह का सैनिक विद्रोह हुआ था?
जवाब- फरवरी 1946 में रायल इंडिया नेवी के सैनिकों ने मुम्बई एवं कोचीन में अंग्रेज शासन के खिलाफ विद्रोह कर 78 जहाजों में तिरंगा फहराकर रैली निकाली थी। इसके बाद ही करांची में रॉयल एयर फोर्स ने भी अंग्रेजों की खिलाफ की थी। अंग्रेजों के दौरान मध्य कमान की छावनी जबलपुर हुआ करती थी। यहां सिग्नल रेजीमेंट के तीन हजार जवानों के अंग्रेजों के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया था। सैनिकों इस असंतोष से अंग्रेज बुरी तरह हिल गए थे। खासतौर पर जबलपुर में हुए विरोध के बाद तो उन्होंने भारत छोड़ने का निर्णय ले लिया चूंकि मुठ्ठी भर अंग्रेज के आगे लाखो भारतीय फौजियों का विद्रोह टिकतने की कोई संभावना नहीं थी। जबलपुर के फौजी विद्रोह ने अंग्रेजों के होश उड़ा दिए।
प्रश्न- क्या हमारे इतिहास को छिपाया जाता रहा है?
जवाब- जी हां भारतीय इतिहास के कई  पहलुओं को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने छिपाया था। आजाद हिन्द फौज के 40 हजार जवान शहीद हुए थे। नेताजी के नेतृत्व में आजाद हिन्द फौज ने रंगून तक भारतीय झंडा पहराया था। आजाद हिन्द फौज के सैनिकों को स्वतंत्र भारत की सेना में शामिल नहीं किया गया। मृत शहीद सैनिकों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नहीं माना गया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस संबंधी फाइले वर्षो गोपनीय बनाकर रखी गई। सन 1946 के सैनिक बगावत को भी छिपाने कोशिश की गई।
प्रश्न- अंग्रेजों के शासन और वर्तमान शासन में क्या समानता है?
जवाब-अंग्रेजों न रूल एण्ड डिवाइड के सिद्धांत पर शासन किया। हिन्दु और मुस्लिमों को आपस में लड़वाया गया। वर्तमान में सत्ता  में आने के लिए राजनेता भी इसी को बढ़ावा दे रहे है। सम्प्रदायिकता के आधार पर वोट बैंक बनाए  जाते है। जाति गत आधार पर चुनाव लड़े जा रहे है। यही दो वर्गो के विभाजन । समानता क्या , हमने तो अंग्रेजों से कहीं अधिक विभाजन वर्गो का कर रहे है। गणतंत्र दिवस पर हमे और राजनेताओं को अखंड भारत का संकल्प लेना चाहिए और इस दिशा में इमानदारी से काम करना चाहिए।
प्रश्न- क्या आरक्षण हमारे संविधान का कमजोर पहलू है?
जवाब- आरक्षण एक  ऐसा विषय है जिसपर गंभीर मंथन एवं समीक्षा की जररूत है। देश आजादी के इतने साल बाद भी आरक्षण की जरूरत क्यों पड़ रही है। देश में दरअसल अर्थिक विषमता बेहद बढ़ गई है। चंद लोगों के हाथों में पूंजी केद्रित होकर रह गई है। यही वजह है कि आरक्षण की जरूरत पड़ रही है। वर्तमान में आर्थिक आरक्षण की बेहद जररूरत है। चाहे किसी भी वर्ग-जाति -धर्म का व्यक्ति  का  गरीब व्यक्ति हो उसको आर्थिक आरक्षण मिलना चाहिए। जहां तक पचास प्रतिशत आरक्षण का  सवाल है , उसका दूसरा पहलू यह है कि ये पचास प्रतिशत प्रतिभा सम्पन्न वर्ग को पतन की ओर ले जाने का प्रयास है।
प्रश्न - देश में कहाँ आरक्षण नहंी है?
जवाब- सेना में आज भी आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। निडर योग्य व्यक्ति की देश की सीमाओं की रक्षा कर सकता  है। इसके चलते सेना में शून्य आरक्षण की व्यवस्था है। ऐसी ही अति और आवश्यक सेवाओं में व्यवस्था होनी चाहिए।
प्रश्न- देश में असहिष्णुता का मुद्दा  उठा हुआ है, इस  संबंध  में आपकी क्या सोच है?
जवाब- असहिष्णुता कोई विषय ही नहीं है। इस राजनेता अपने स्वार्थ के रूप में उपयोग कर रहे है। समाज में भाईचारा बना है। हमारे गणतंत्र में सभी को समान अधिकार है। दरअसल हमे असहिष्णुता की जरूर है, यह असहिष्णुता होनी चाहिए बलात्कारियों के प्रति, आतंकवादियों के प्रति, अपराधियों -समाजद्रोहियों और भ्रष्टाचारियों के प्रति जो देश को  खोखला कर रहे है। उनसे कोई  दया दिखाने की कहीं कोईआवश्यकता  नहीं है ।  

छह बार गर्भपात होने के बाद सातवीं बार में बन पाई मां


* कभी मां न बन पाने की विडम्बना झेल रही महिला को मिला मातृत्व सुख

 महिलाओं में गर्भपात होना आम बात होती है, कभी स्वेच्छा तो कभी असावधानी गर्भपात का कारण बनता है,लेकिन हर गर्भपात का असर महिला के स्वास्थ्य दिलो दिमाग पर पड़ता है। ऐसी ही एक महिला मेरे पास आई, जिसके वैवाहिक जीवन के 8 वर्ष हो चुके थे तथा उसका 5 बार गर्भपात हो चुका था। वह बच्चा चाहती थी। उसका पूरी सावधानी पूर्वक इलाज कराया गया लेकिन गर्भधारण करने के बाद उसका फिर से गर्भपात हो गया। उसके एग की जांच कराए जाने पर दोष पाया गया। इस स्थिति में महिला पूर्ण स्वस्थ्य होने के बावजूद मां नहीं बन सकती थी। बाद में महिला को एग दान दिलवाने के बाद उसको मां बनने का असर मिला। यह कहना है स्त्रीरोग विशेषज्ञ एवं टेस्ट्यूब बेबी स्पेस्लिस्ट डॉ अर्चना श्रीवास्तव का।
अर्चना श्रीवास्तव ने बताया कि महिला की गर्भाशय सहित प्रजनन के लिए आवश्यक आर्गनपूर्ण विकसित एवं स्वस्थ्य थे लेकिन उसके एग में

अनुवांशिक दोष होने के कारण बच्चा महिला के गर्भ में पूर्ण विकसित कभी भी नहीं हो सकता था। इसके चलते महिला एवं उसके पति की काउंसलिंग कर उन्हें एग दान लेने की सलाह दी गई। काफी समझाने के बाद बाहर से लिए एग से महिला के पति के स्पर्म से फर्टिलाइज करने के बाद अंडे को गर्भ में महिला के गर्भ में स्थापित किया गया। सातवीं बार महिला का गर्भ पूरे नौ माह गर्भ में रहा और उसने एक स्वस्थ्य बच्चे को जन्म दिया।
 भारत में मान्यता प्राप्त
टेस्ट ट्यूब बेबी को भारत में कानूनी मान्यता प्राप्त है। महिला ने अपने गर्भ में इस बच्चे को पाला था, इससे उसे मातृत्व सुख की प्राप्ति हुई। वहीं उसके पति के अंश भी बच्चे में मौजूद है। यह जरूरत है कि  इस बच्चे में महिला के गुणसूत्र नहीं पहुंचे है। बहरहाल इस तरीके की समस्याओं से पीड़ित महिलाओं के लिए एग दान लेना बेहतर विकल्प बन कर उभरा है।
गर्भपात की समस्या
डॉ अर्चना श्रीवास्तव के अनुसार महिलाओं गर्भ धारण बाद औसम 10-15 प्रतिशत मामलो में गर्भपात हो जाता है। महिलाओ का यदि गर्भपात होता है तो उसे चिकित्सक से इलाज जरूरत करना चाहिए। हर तरह के गर्भपात रोकने का इलाज संभव है। महिलाओं का बार बार गर्भपात एवं हॉरमोंन्स असंतुलन मानसिक परेशानी का कारण बन जाता है।

स्वत: गर्भपात
डॉ अर्चना ने बताया कि अमूमन महिला के गर्भ में पनपने वाला बच्चा एंटीबाडिज यानी बाहरी तत्व होता है किन्तु प्रकृति ने महिलाओं को यह क्षमता प्रदान की है कि इस बाहरी तत्व को वे अपने शरीर में संरक्षित करती है लेकिन अनेक बाद शरीर इस बाहरी तत्व को गर्भपात के माध्यम से स्वत: बाहर कर देता  है। ऐसे कई मामले का मैने गर्भपात का सफल इलाज किया है। महिला को लगातार बच्चे जन्म के कुछ घंटों तक इलाज देना पड़ता है। अमूमन  गर्भावस्था के 24 हफ्तों के अन्दर शिशु का अंत गर्भ में होता है।
बार बार नहीं होता है
डॉ श्रीवास्तव ने बताया कि अक्सर एक बार भ्रूण नष्ट होने पर यह माना जाता है , महिला में स्वभावगत गर्भपात होने लगता है लेकिन यह भ्रांति है। किसी ने किसी गडबड़ी के कारण ही गर्भपात होता है। एक हिला की बच्चा दानी में दोष होने पर उसकी सर्जरी करके बच्चो दानी का स्वरूप और आकृति में परिवर्तन किया गया जिसके बाद उसका गर्भपात होना बंद हो गया।
आयु का फैक्टर
डॉ श्रीवास्तव के अनुसार अमूमन गर्भधारण के लिए  महिलाओं में 25-28  वर्ष की आयु उपयुक्त होती है। इस दौरान वह पूर्ण स्वस्थ्य होती है। इस दौरान 100 प्रतिशत भ्रण ठहरने की संभावनाएं रहती है। किन्तु आयु बढ़ने के साथ गर्भपात होने का जोखिम ज्यादा रहता है। ऐसेी स्थिति में चिकित्सक की सतत निगरानी जरूरी है। आज गर्भ में दो से अधिक भ्रण विकसित होने पर एक भू्रण को नष्ट भी किया जा सकता है। महिलाओं में 42 वर्ष के बाद गर्भधारण करना जोखिम ज्यादा रहता है।
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गर्भपात के प्रमुख कारण
* महिला का शुगर पेसेंट होना
* थायराइट
* हामोंन्स असंतुलन
* बच्चा दानी छोटी अथवा विकृत होना
* गर्भाशय में ट्यूमर
* उच्च या निम्न रक्तचाप
* स्टिकी रक्त सिंड्रोम या एंटी फोस्फो लिपिड की समस्या
*  यौन संबंधी संक्रमण , बच्चा दानी में इंफैक्शन
* धू्रमपान, नशा एवं गलत दवाइयों का  सेवन
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 पौने चार किलो के बच्चे के कारण
 बच्चा दानी फैली तो फिर नहीं सिकुड़ी
* रक्त स्त्राव रोकने टांके लगाकर रिपेयर करना पड़ा
 डॉ अर्चना श्रीवास्तव के पास एक गर्भवती महिला को डिलीवरी के लिए लाया गया जिसकी आयु 28 वर्ष के उपर थी। सोनोग्राफी कराने पर पता

चला कि महिला के बच्चे का वजन सामान्स से अधिक लगभग पौने चार किलो का है। महिला की सामान्य डिलीवरी संभव ही नहीं थी। इस स्थिति में महिला एवं बच्चे दोनों की जान जाना निश्चित था। महिला का सीजरी डिलीवरी की गई। उसने पौने चार किलो वजनी बच्चे का जन्म दिया। बच्चे दानी से बच्चा निकालने के बाद अमूमन कुछ देरी में बच्चादानी पुरानी स्थिति में पहुंच जाती है। किन्तु एटानिक पीपीएच की समस्या उत्पन्न हो गई। महिला की बच्चादानी का स्वरूप वहीं था। ऐसे में लगातार रक्त स्त्राव के चलते महिला की मौत होने का खतरा निर्मत हो गया। महिला को चार बोतल खून चढ़ाना पड़ गया था। उसकी बच्चा दानी को बी लिंच कर रिमूव कर सिला गया तथा उसको उसके पुराने स्वरूप का बनाया गया। इससे जहां महिला का जीवन भी बच गया, वहीं बार में वह फिर से मां भी बनी। 

नामी वैद्य अपने चूरन में मिला रहा था स्टेरोइड्स




 बार- बार मरीज से केस हिस्ट्री पूछने पर पकड़ी गई बीमारी

 जबलपुर के प्रतिष्ठित दमा रोग विशेषज्ञ डॉ परिमल स्वामी को लम्बा मेडिकल अनुभव है। दमा रोग विशेषज्ञ होने के साथ ही वे शुगर सहित अन्य कई बीमारियों में विशेषज्ञता है, प्रदेश के ख्यातिलब्ध चिकित्सक परिमल स्वामी का कहना है कि उनके गुरूओं ने हमेशा सिखाया है कि जब मरीज की बीमारी पकड़ में न आए तो बार बार उससे बीमारी की केस हिस्ट्री के बारे में पूछते रहे और बीमारी पकड़ में आएगी।
डॉ परिमल स्वामी के पास ऐसी ही एक सभ्रांत और धनाड्य परिवार की 35 वर्षीय महिला  श्रीमती कल्पना (काल्पनिक नाम) आई थी। उसको लगतार उल्टियां होती थी। भोजन करना मुश्किल हो गया था।
महिला को क्या बीमारी है, इसके संबंध में पता किया गया तो महिला को सांस की बीमारी के साथ, शुगर तथा आर्थराइट था। उनके घुटने तकलीफ थी। इसके लिए विशेषज्ञ चिकित्सकों की दवाइयां चल रही थी। किन्तु कुछ महीने से उन्हें लगातार उल्टियां हो रही थी।
उल्टियां होने के कारण की खोज
महिला को उल्टियां क्यों हो रही है? इसके लिए खोजबीन करने टेस्ट कराए गए। इसके पूर्व महिला ने नागपुर एवं मुम्बई में अनेक अस्पताल एवं डॉक्टरों से चैकअप करा लिया था लेकिन उनकी सभी रिपोर्ट नार्मल आई। इस आशंका से कि कहीं ब्रेन में ट्यूमर तो नहंी है, उनको एमआरआई ओर सीटी स्क्रेन कराया गया लेकिन सिर सहित शरीर के किसी भी अंग में किसी तरह की व्याधि नहीं पाई गई। उनका ब्लड प्रेशर एवं शुगर का लेबल भी ठीक चल रहा था।
दवाइयां बंद कराई गई
इस आशंका से कि शुगर की ओरल डोज से कहीं उल्टियां तो नहीं हो रही है, उनको शुगर कंट्रोल करने वाली दवाइयां बंद कराई गई। उसके बदले इंन्सूलिन दी जाने लगी किन्तु फिर भी उल्टियां बंद नहीं हुई। यूरिन कल्चर सहित ब्लड टेस्ट , टाइराइड सहित तमाम टेस्ट कराए गए। कलर डॉपलर सहित हृदय रोग संबंधी तथा पेट की बीमारी संबंधी तमाम टेस्ट कराए गए लेकिन फिर भी उनकी उल्टियां बंद नहंी हुई। इतना ही नहीं मनोरोग चिकित्सक से सलाह ली गई लेकिन उन्होंने ने भी अपनी तमाम रिपोर्ट नार्मल बताई।
एक एक दवाइयां चैक की
महिला द्वारा ली जाने वाली एक-एक दवाई को चैक किया गया। किसी भी दवाई का साइड इफैक्ट की कोई संभावना सामने नगर नहीं आई। अनेक बाद उनसे बीमारी एवं दवाइयों के संबंध में पूछा गया लेकिन कुछ नतीजा नहीं निकला।
मरीज ने बताई छोटी से जानकारी
महिला मरीज ने बातीचीत में बताया कि कुछ माह पहले वे बनारस के एक वैद्य की पुडिया खाया करती थी जो गठियावात के लिए लेती थी लेकिन वैद्य की भी दवाइयां बंद है। उन्होंने बताया कि वैद्य काफी नामी है। पूर्व प्रधानमंत्री भी अपने घुटनों के दर्द एवं इलाज के लिए उन्ही वैद्य से दवाइयां लिया करते थे।
वैद्य की पुडिया निकली करामती
डॉ परिमल स्वामी ने वैद्य की पुडिया मंगाकर उसे टेस्ट के लिए लैब में आशंका वश भेजा तो नया रहस्य खुला । वैद्य अपनी आयुर्वेद की दवाइयों में स्टेरोइड्स का उपयोग कर रहा था। जाहिर है कि  स्टेरॉइड्स सेहत के लिए बहुत ही नुकसान दायक होते हैं। लेकिन अस्थमा और आर्थराइटिस से जूझ रहे मरीजों के लिए बहुत ही फायदे मंद होता है। इससे  भूख लगती है,  जिससे वजन तेजी से बढ़ने लगता है। स्टेरॉइड्स शरीर के मेटाबॉलिज्म को प्रभावित करते हैं। दरअसल इस मरीज को बाहर से स्टेराइड्स बाहर से मिल रहा था और परिणाम स्वरूप शरीर में स्टेरॉइडस बनाने वाली ग्रंथी काम करना बंद कर दी थी। वैद्य की दवाई महिला ने बंद कर दी थी जिससे उन्हें उल्टियां होने लगी। उन्हें इस्टेराइड्स की दवाई शुरू की गई तो भूख लगने लगी ओर उल्टियां बंद हो गई। इसके बाद दो तीन माह में उनको इस्टेराइड्स का डोज बंद करा दिया गया। अब महिला स्वस्थ हैं।

क्या है साइड  इफैक्ट
इंस्टेराइड्स के सेवन से मरीज की हड्डियां कमजोर हो जाती है और विकलांगता तक आती है। शुगर तथा अनेक बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। पेट में अल्सर, शरीर में सूजन , हड्डी का घुलना आदि साइड इफैक्ट है।

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जागरूकता के अभाव में बच्चों
को मिलता है तिलतिल मरने का अभिशाप
विक्टोरिया अस्पताल की शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ मंजूलता अग्रवाल का कहना है कि थैलेसीमिया एक अनुवांशिक रोग है, जो कि जागरुकताके अभाव में जन्म लेने वाले बच्चों का अभिशाप के रूप में मिलता है। यदि विवाह के पूर्व रक्त परीक्षण कराया जाए तो संतान में इस दोष की संभावना नहीं होंगी।
 प्रश्न- थैलेसीमिया किस प्रकार का होता है?
जवाब - थैलेसीमिया के दो प्रमुख प्रकार होते हे। ै। यदि पैदा होने वाले बच्चे के माता-पिता दोनों के जींस में माइनर थेलेसीमिया होता है, तो बच्चे में मेजर थेलेसीमिया हो सकता है। ये स्थिति घातक होती है। मेजर थेलेसीमिया के लक्षण तीन माह के बाद नजर आने लगते है। बच्चे को बार बार रक्त चढ़ान पड़ता है। यदि माता-पिता में किसी एक को माइनर थैलेसिमिया है तो बच्चे में भी माइनर थेलेसीमिया होता है किन्तु करीब 25 प्रतिशत बच्चे की माइनर थैलेसीमिया के शिकार होते है। इसम लाल रक्त कणिकाओं की संख्या कम होती है।

प्रश्न- विक्टोरिया में कितने बच्चे आते है।
जवाब- प्रतिमाह करीब 70 बच्चे रूटीन चैकअप के लिए विक्टोरिया पहुंचते है जिनको थैलेसीमिया है। अनके बच्चे के माता पिता निजी अस्पतालों में भी बच्चो को रक्त चढ़वा लेते है। यदि हम विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े पर गौर करते तो देश में करीब 10 हजार नए बच्चों का जन्म थैलेसीमिया रोग के साथ होता है। मध्य प्रदेश में कितने बच्चे इस बीमारी से पीड़ित है , इसका डाटा फिलहाल हमारे पास उपलब्ध नहीं है।
प्रश्न- क्या थैलेसीमिया का पुख्ता इलाज संभव है?
जवाब-  थेलेसीमिया को लेकर लगातार रिसर्च चल रहे है लेकिन फिलहाल हमारे पास जो चिकित्सा पद्धति है, उसमें थैलेसीमिया का कोई स्थाई इलाज नहीं है। थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों के प्रोटीन में हैमोग्लोबिन निर्माण की प्रक्रिया बाधित रहती है , जिससे बच्चे एनिमिक होते है। इस स्थिति में उन्हें बार बार खून चढ़ाना पड़ता है।
प्रश्न- क्या बोन मैरो बदलना इसका स्थाई इलाज नहीं है?
जवाब- बोन मैरो  थेलेसीमिया पीड़ित बच्च्चों का बदला जाता है लेकिन यह काफी महंगा इलाज है।  मेरु रज्जु  यानी बोन मैरो  ट्रांस्प्लांट काफी कठिन प्रक्रिया है। डोलर भी मिलना कठिन काम है। फिलहाल इस तरह से इलाज अभी मुम्बई में संभव है। बोन मेरो का कार्य स्मेन सेल निर्माण का काम है जो कि आरबीसी का निर्माण करती है। इससे रोगी तो ठीक होता है कि लेकिन बाहरी बाड़ी होने के कारण इसके भी साइड इफैक्ट का खतरा बना रहता है और शरीर स्वीकार करता है अथवा नहीं ? इसके लिए समय समय पर दवाइयां देनी पड़ती है।

प्रश्न- यदि माता पिता के एक बच्चे को थैलेसिया है तो क्या दूसरे को भी होगा?
उत्तर- मेरे पास ऐसे भी केस आए है कि एक परिवार के तीन-तीन बच्चों को ये बीमारी है। यदि पहले बच्चे को रोग होता है तो करीब 90 प्रतिशत संभावना है कि दूसरे बच्चे को भी बीमारी हो सकती है। यह जीन्स के दोष के कारण बीमारी होती है।
प्रश्न -गर्भवास्था में  पकड़ी जा सकती है बीमारी?
उत्तर- गर्भावस्था में तीसरे महीने में एक तरह का टेस्ट होता है जिससे यह पता चल जाता है  कि गर्भस्थ शिशु थैलेसीमिया से पीड़ित  तो नहंी है? यदि बच्चा पीड़ित है तो गर्भपात करा लेना बेहतर है।
प्रश्न - थैलेसीमिया के लक्षण क्या है और आखिर क्यो होती है ये बीमारी?
उत्तर  -जैसा की मैने बताया कि यह  अनुवांशिक बीमारी है।  हीमोग्लोबीन दो तरह के प्रोटीन से बनता है अल्फा ग्लोबिन और बीटा ग्लोबिन। थैलीसीमिया इन प्रोटीन में ग्लोबिन निर्माण की प्रक्रिया में खराबी होने से होता है। अमूमन लाल रक्त कोशिकाएं यानी आरबीसी ा निर्माण के बाद  120 दिन तक रक्त में जीवित रहती है, इसके बाद ये नष्ट होती है तथा नई आरबीसी इसकी जगह ले लेती है किन्तु थैलेसीमिया पीड़ित मरीब में लाल रक्त कोशिकाएं 50-60 दिनों में ही नष्ट हो जाती है जिससे शरीर में  हीमोग्लोबिन कम होता जाता है। इस  स्थित में रक्त चढ़ाना पड़ता है। बार बार रक्त चढाए जाने से शरीर में आयरन की मात्रा काफी बढ़ती है। यह लोह तत्व हृदय, यकृत और फेफड़ों सहित अन्य अंगों के लिए घातक होता है। रोग के लक्षण बच्चे की 3 माह की आयु पूर्ण होने के साथ नजर आने लगते है। उसको रक्त की कमी हो जाती है। रक्त की कमी के कारण अंधत्व का शिकार भी बच्च्चा हो सकता है। थैलेसीमिया का टेस्ट की सुविधा आईसीएमआर में उपब्ध है। मेरा मानना है कि विवाह  के पूर्व माता पिता को टेस्ट जरूर करना चाहिए। विदेश में विवाह पूर्व लोग टेस्ट कराते है लेकिन भारत में लोगों में इसके प्रति जागरूकता नहीं है।

एक बच्चे की मां बिकी हरियाण में 1 लाख में


सिवनी में मानव तस्करी का मामला
3 आरोपी जेल भेज गए
जबलपुर। एक युवती को प्रेम जाल में फंसा कर उसको एक बच्चे की मां बनाने वाले शादी शुदा व्यक्ति का जब युवती से मन भर गया तो उसको हरियाणा में एक लाख रूपए में बेच गया। युवती को करीब 4 माह तक बंधक की तरह रखा गया। वहां से भाग कर आई युवती ने प्रेमी की बेवफाई और अपने हुए अत्याचार की रिपोर्ट पड़ोसी जिला सिवनी के कुरई थाना में दर्ज कराई। पुलिस ने मानव तस्करी तथा बंधक बनाए जाने का प्रकरण दर्ज कर तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है।
जबलपुर सहित आसपास के जिले मंडला, डिंडौरी, बालाघाट तथा सिवनी में लगातार मानव तस्करी के मामले सामने आ रहे है। मध्य  प्रदेश और महाराष्ट्र के सीमवर्ती कुरई थाने के ग्राम  ग्राम जुनारखेड़ा की 23 वर्षीय अनिता (काल्पनिक नाम) की जान पहचान पड़ोसी गांव के थांवरजोड़ी निवासी अर्जुन गौंड से हुई। अर्जुन गौड़ के प्रति अनिता आकर्षित हुई। यह मालूम होने के बावजूद कि अनुर्जन गौंड शादी शुदा है, वह उसके प्रेम जाल में उलझ कर रह गई। प्रेमी ने अनिता का दैहिक शोषण करने लगा। वह गर्भवती हो गई लेकिन इसके बावजूद उसने उससे विवाह नहीं किया। गांव वालों के दबाव और समाज के भयवश अर्जन ने अनिता को पत्नी की तरह बिन ब्याह के रखा  लिया। कुछ माह पहले अनीता ने एक बच्ची को जन्म दिया। बच्ची के जन्म बाद करीब 3 महिला अर्जन के पास अनीता रही। इस बीच वह अनीता से छुटकारा पाने की जुगत में लग गया।
हरियाण के मुकेश से मुलाकात
कुछ  माह पूर्व अुर्जन की हरियाणा निवासी मुकेश अग्रवाल से उसकी कुरई में मुलाकात हुई। मुकेश की पत्नी की मौत हो चुकी थी तथा उसकी दूसरी शादी नहीं हो रही थी तथा वह किसी ऐसी युवती की तलाश में था जो उसके बच्चों की देखरेख करे तथा वह उसे दासता पत्नी की तरह रख सके। इसके लिए वह रकम खर्च करने तैयार था। अर्जुन ने उसे अपनी दासता पत्नी अनीता को दिखाया। अर्जुन की मां भी अपनी अनचाही बहु से छुटकारा पाना चाहती थी। अर्जुन तथा उसकी मां लछमनिया बाई उम्र 52 वर्ष ने अनीता को 1 लाख रूपए में बेचने का इरादा कर लिया और मुकेश अग्रवाल निवासी महेन्द्र से 1 लाख रूपए ले लिए।
घुमाने के बहाने ले गया
करीब  4 माह पहले अर्जुन अनीता तथा उसकी बच्ची को घुमाने के बहाने महेन्द्रगढ़ हरियाणा ले गया जहां पीड़िता को घुमाने के बहाने बच्ची समेत हरियाणा ले गया। यहां उसने  महेन्द्रगढ़ निवासी मुकेश अग्रवाल के घर अनीता और उसकी बच्ची का ेछेड़ कर भाग आया। यहां महेन्द्र अनीता से रात दिन मेहनत मजदूरी कराने लगा। घर का पूरा काम काज वह देखती थी। उससे खेत में भी काम कराया जाता था जबकि रात्रि में मुके श अनीता का अपनी हवस का शिकार बनाता रहा। जी-तोड़ मेहनत और दैहिक शोषण से परेशान अनीता किसी तरह अपनी बच्ची को लेकर वहां से भागने में कामयाब हुई  और यहा कुरई थाने में एफआईआर दर्ज कराई।

वर्जन
पुलिस ने पीड़िता की रिपोर्ट पर अर्जुन, अर्जुन की मां तथा  मुकेश अग्रवाला के खिलाफ मानव तस्करी के तहत भादंवि की धारा 470,471, 344, 34 के तहत अपराध पंजीबद्ध कर तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया है। मामले की विस्तृत जांच की जा रही है।
शिवराज सिंह
टीआई कुरई


राजस्थान में बिकी थी युवती
सिवनी जिले के ही हुगली थाना क्षेत्र की एक युवती को चार माह पहले राजस्थान में बेचा गया था। इस युवती के बचकर आने के बाद मामले का खुलासा हुआ। उल्लेखनीय है कि सिवनी सहित जबलपुर जिले की युवतियों को राजस्थान, हरियाणा, छतरपुर तथा बांदकपुर में बेचे जाने की अनेक घटनाएं हो चुकी है। उक्त क्षेत्र में यहां भगाकर ले जाए जाने वाली युवतियां बिक रही है। अब तक दर्जनों युवतियों के गायब होने का कोई सुराग नहीं मिला है।
हाल ही में मंडला में हुई घटना
हाल ही में एक युवती को दिल्ली में बेचे जाने की घटना हुई। एक एनजीओं के प्रयास से युवती मंडला वापस लौट कर आई । मंडला में बीते एक साल में मानवतस्करी से जुडे 8 मामले प्रकाश में आ चुके है। इसी तरह बालाघाट में करीब 70 अपहरण के मामले है जिसमें  से कुछ मामलों में मानवतस्करी का मामला भी दर्ज किया गया है। उक्त क्षेत्रों से दक्षिण भारत तथा उत्तर भारत में बेरोजगार किशोर एवं बालाओं को काम धंधा दिलानें का झांसा देकर उन्हें बेचने वाले कई गिरोह सक्रिय है। 

मूक बधिर को मुख्यधारा में जोड़ने बचपन से लगी है खुशबु


350 लोगों को कर रही प्रशिक्षित, सौ लोगों को दिला चुकी रोजगार

मूक वधिर को समाज की मुख्यधारा में जोड़ने के लिए 22 वर्षीय खुशबू ने जो कार्य किया है, वो कार्य एक समाज सेवी को करने में अपना पूरा जीवन बिताना पड़ जाता है। खुशबू ने बचपन से सैकड़ो मूक बधिरों के जीवन में खुशबू बेखेरी है। उनको समाज में नौकरी-पेशा दिलाकर सम्मान के साथ जीने के लायक बनाया है। इतना ही नहीं सैकड़ो मूक बधिरों को सांकेतिक भाषा सिखाकर उन्हें अभिव्यक्ति और संवाद के योग्य बनाकर उनके जीने का मकशद दिलाया है।
खुशबू को ये प्रेरणा अपने माता-पिता से मिली है। उसके पिता राकेश कुमार सोनी तथा मां जयवंती सोनी मूक बधिर है। जब से उसने होश संभाला है तो  उसके माता-पिता को उसने बोलते नहीं देखा। हमेशा इशारे में ही बात करते थे। उन्हें सुनाई भी नहीं देता था। उसने स्कूल शिक्षा प्राप्त करना शुरू की और उसके साथ सीखी सांकेतिक भाषा। सांकेतिक भाषा पढ़ना उसके लिए काफी जरूरी हो गया था क्योंकि उसे माता-पिता की बात समझना रहती थी। जब उसने सब कुछ सीख लिया तो उसे हर चीज आसान लगने लगी। अपने माता-पिता के साथ हंसने बोलने लगी। उसके बाद उसे उन्ही से प्रेरणा मिली और प्रेरणा का फल यह हुआ कि उसने सैकड़ो बच्चों को सांकेतिक भाषा सिखाई और उन मूक बधिर बच्चों को रोजगार के काबिल लाकर खड़ा कर दिया। वर्तमान में वह 350 बच्चों का वह ध्यान रख रही है। वहीं सौ लोगों को वह रोजगार दिला चुकी है।
मानसिक बच्चों का ध्यान
खुशबू मंदबुद्वि बच्चों के साथ मूक बधिर बच्चों की देख भाल के अलावा पढ़ाने का काम जस्टिस तन्खा मेमोरियल स्कूल पचपेढ़ी सिविल लाइन में कर रही है। यहां वह चार से पांच घंटे रोज देती है और उसके बाद शाम को लार्डगंज थाना परिसर में स्थापित मूक बधिर केन्द्र में बच्चों को पढ़ाती है।
रोजगार के लिए करती है मजबूत
खुशबू ने मूक बधिर केन्द्र के पचास से अधिक बच्चों को स्क्रीन, प्रिटिंग, डीटीपी ट्रेनिंग सहित अन्य रोजगार से संबंधित कार्यो की ट्रेनिंग दिला रही है। जिससे वे स्वंय का कार्य कर सके या फिर कही नौकरी कर सके।
दया का पात्र नहीं बनाया जाए
खुशबू का कहना है कि मूक बधिर को दया का पात्र न बनाया जाए। इसके  लिए पूरे समाज के साथ सरकार को भी व्यवस्था पर ध्यान दिया जाना चाहिए। स्कूल व कॉलेजों में उनके लिए भी स्थान होना चाहिए जिससे वे पढ़ाई कर सके।
मेरे रंग में रंगने वाली
मेरे रंग में रंगने वाली लाईफ ओके में नाटक आता है। उसमें मूक बधिर का किरदार है। उस किरदार में रोल करने वाली साईड हीरोईन को भी प्रशिक्षण खुशुबू ने मुंबई में रहकर दिया है। उसका कहना है कि वह मूक बधिर के लिए दिन रात सेवा करती रहेगी और उन्हें हर फील्ड में लाकर खड़ा करना चाहती है। इसके लिए उसके माता-पिता पूरा सपोट करते है। उसके पिता ने 79 ने मूक बधिर लोगों को जोड़ा था और उसके कुछ दिन बाद समय के अभाव के कारण कमेटी टूट गई थी। पिता की तरह वह भी एक संस्था बनाएगी और उसमें मूक बधिर लोगों को जोड़ेगी, जिससे उन्हें समाज की मुख्य धारा में जोड़ सके।

सरई के जंगल सुलग रहा आग में



 वन अमला बैठा है आग बुझने के इंतजार में
 माधवपुर बीट और बरटोला में करोड़ों की नुकसान

 जबलपुर। समीपवर्ती डिंडौरी जिले के वन परिक्षेत्र पश्चिम करंजिया मुख्यालय  से करीब 12 किलोमीटर दूर तथा गाडासरई वन डिपों से करीब 2 किलोमीटर दूर पहाड़ी क्षेत्र स्थित घने जंगल में भीषण आग लग गई। यह आग माधवपुर बीट के वन ग्राम जामपानी क्षेत्र में लगी है। आग का दायरा करीब 2 किलोमीटर के क्षेत्र में है।  इस आग में करीब एक सप्ताह से जंगल सुलग रहा है। रात के अंधेरे में जंगल में लगी आग अब भी दिखाई दे रही हे। इसके साथ ही कुछ किलोमीटर दूर स्थित गोरखपुर बीट के वरटोला के जंगल में भी भीषण आग लगी हुई है। वन अमला आग के फैलाव को रोकने का प्रयास कर रहा है। ये आग करीब 5 किलोमीटर दायरे में फैली हुई है।
करंजिया वन क्षेत्र सरई के जंगल के लिए प्रदेश में जाना जाता है। यहां सरई के पेड़ बड़ी संख्या में है। इसके अतिरिक्त अन्य जंगली पेड़ और झाड़ियां आदि है। सरई की लकड़ी ईमारती लकड़ी की श्रेणी में आती है।
करंजिया वन क्षेत्र में पिछले 7 दिनों से आग लगी हुई है। इस आग से भयभीत वन्य प्राणी इधर उधर भाग गए हैं। वन विभाग का कहना है कि जंगल में आग लगने पर वन प्राणी अपनी जान बचा लेते है।  वन में आग लगने पर जहां बड़े जानवर तो भागने में सफल होते है लेकिन छोटे वन्य प्राणी के अपने घर, उनके बच्चे आदि आग से जल जाते है। यह भी सच है कि जंगल की आग में इतनी जबदस्त क्षति जंगल के पर्यावरण पर पड़ता है कि उसकी भरपाई में सालों लग जाते है। ।
 करोड़ों में नुकसान
वन अमले की माने तो करीब दो किलोमीटर के दायरे में लगी आग से झाड़ियों के साथ करीब एक हजार से अधिक छोटे व  सूखे पेड़  जल गए है। काफी उंचाई वाले तथा पुराने पेड़ इस आग से बच गए है। आग लगभग बुझने की स्थिति पर स्वत: पहुंच गई है लेकिन जंगल अब भी सुलग रहा है। यहां से धूंंआ उठता अब भी नजर आ रहा है। रात को आग की लकीर दूर से नजर आती है। इसी तरह समीपस्थ बरटोला के जंगल में  करीब 5 किलोमीटर के दायरे में आग लगी है तथा यहां करोड़ों का वन संपदा नष्ट हुई है। यहां अब भी आग धधक रही है।  


ऐसे लिया गया नियंत्रण में
आग पहाड़ी इलाके में तथा सड़क से दूर गहरे जंगल में लगी है।  वहां तक पानी तथा फायर ब्रिगेड या टेंकर का पहुंचना संभव नहीं था। इसके चलते वन अमले के डिप्टी रेंजर एमएल सोनवानी तथा बीट गार्ड मतिया मार्सकों ने श्रमिकों एवं ग्रामीणों से सहयोग से आग जिस दिशा में फैल रही थी है वहां की झाडियां आदि काट दी गई। घासफूंस साफ कर दी गई। जंगल मेंं आग पत्तों एवं झाडियों से ही फैलती है। वन अमले ने जहां दो किलोमीटर के दायरे से आग आगे नहीं बढ़ने दी लेकिन दो किलोमीटर तक फैली आग को बुझाने भी कोई कोशिश संभव नहीं थी। आग स्वयं धीरे धीरे कर शांत हो रही  है।
बरटोला में अभी भड़क रही आग
इसी तरह कुछ किलोमीटर दूर बरटोला में पिछले पांच दिनों से आग लगी हुई है। यहां आग नियंत्रण के बाहर है। सूचना मिलने पर वन अमला मौके पर पहुंच गया। वन विभाग अपने निजी श्रमिकों की सहायता से झाड़ियों में लगी आग झाड़ियों में हरी पत्तियों की टहनी मार मार कर बुझाने में जुटा है, इसके अतिरिक्त कोई उपाय नहीं किए गए दूसरी तरफ वन विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों ने क्षेत्र का दौरा करना भी उचित नहंी समझा।
पहले भी लग चुकी है है आग
डिंडौरी के वन परिक्षेत्रों मेंं हर वर्ष गर्मियों में इस तरह की अग्नि दुर्घटना आम हो गई हैै। गर्मियों में जंगल में फैले पत्ते एवं सूखी पड़ी झाड़ियों में एक चिंगारी भी आग फैलाने के लिए काफी है। स्थानीय ग्रामीणों की जंगल में दखल आग का मुख्य कारण बन रही है। यहां के वनोपज से आदिवासियों को गुजारा चलता है। इस आग ने उन्हें बैचेन कर दिया है।
आग की आड़ में भ्रष्टाचार



 जंगल में  लगने वाली आग वन विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों की कमाई का जरिया बन जाता है। जहां बड़ी मात्रा में जलाऊ लकड़ी इस मौके पर खुर्दबुर्द की जाती है। वहीं जानकारों का कहना है कि आग बुझाने के नाम पर फर्जी श्रमिकों के नाम पर भुगतान निकाल लिया जाता है जबकि आग स्वत: ही बुझ जाती है।
वर्जन

वन क्षेत्र में आग लगी है, जिसको फैलने से रोकने में हम कामयाब हो गए है। आग फैलने के रास्ते से झाड़ियां आदि हटाई गई। इस काम में ग्रामीणों का सहयोग भी रहा है।
्नँ एमएल सोनवानी
डिप्टी रेंजर, करंजिया  

* छह माह में 10 हजार शौचालय का निर्माण


   * नरेन्द्र मोदी के स्वप्न को साकार करता जबलपुर नगर निगम

जबलपुर। खुले में शौच के लिए न जाना ...स्वच्छ भारत मिशन पर कार्य करने के दिशा में नगर निगम जबलपुर प्रदेश में अव्बल स्थान पर है, जबकि तेजी से शौचालय निर्माण के लिए देश के अग्रणी नगरों में शुमार है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वच्छ भारत के स्वप्न को साकार करने के दिशा में नगर निगम जबलपुर का प्रयास एक मॉडल बनकर सामने आया है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत मात्र छह माह की अल्प अवधि में करीब 10 हजार पक्के शौचालय बनाए गए है जो प्रदेश में रिकार्ड है। करीब 5 हजार शौचालय निर्माणाधीन है। यह काम नगर निगम एनजीओ के साथ जनप्रतिनिधयों का सहयोग लेते हुए कर रहा है। वर्तमान कमिश्नर वेदप्रकाश ने कार्यक्रम में विशेष रूचि दिखा रहे हैं।
 स्वच्छ भारत मिशन के आंकड़ों पर यकीन किया जाए तो जबलपुर नगर निगम ने देश भर में मिशन के तहत  व्यक्तिगत शौचालय निर्माण करने वाले शहरों में शामिल है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा हाल ही में आयोजित स्मार्ट सिटी समिट में इस मिशन को लेकर जबलपुर का उल्लेख किया गया था। इस योजना के तहत कार्य सालभर पहले काम चालू हुआ था लेकिन गति बीते छह महीने में ही पकड़ी है। अब तक नगर निगम 10 हजार व्यक्तिगत शौचालय बनवा चुका है। वहीं 5 हजार शौचालय जल्द बनकर तैयार हो जाएंगे जो निर्माणाधीन हैं तथा 7 हजार की टेण्डर प्रक्रिया विचाराधीन है। ननि द्वारा जारी वित्त वर्ष में शहर में 25 हजार व्यक्तिगत शौचालय बनाए जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
 घर-घर दस्तक
इस कार्य को एनजीओ की सहायता से पूरा करवाया गया है। इस काम में एनजीओ घर-घर जाकर लोगों से शौचालय की जानकारी लेते हैं और इस  योजना के बारे में भी बता रहे हैं। शहर की गंदी बस्तियां जहां गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवार रहते हैं, को इस योजना के तहत लाभ मिल रहा है।
 लागत 13 हजार 6 सौ
इस योजना के तहत बनने वाले व्यक्तिगत शौचालय के निर्माण में आने वाला खर्च 13 हजार 6 सौ रुपये है जिसमें से हितग्राही को मात्र 10 प्रतिशत यानि 1360 रुपये ही देने होते हैं। निर्माण कार्य एनजीओ करवा कर देते हैं। जिसका उन्हें नगर निगम भुगतान करता है। इसके साथ ही एनजीओ को लोगों को प्रेरित करने तथा कागजी कार्रवाई करने के लिये प्रति शौचालय 25 रुपये का भुगतान भी किया जाता हैे।ं हितग्राही सीधे भी नगर निगम से संपर्क  कर रहे हैं और 1350 रुपये की राशि नगर निगम कार्यालय जाकर जमा कर इसकी रसीद लेता है और उनके शौचालय कुछ दिन के भीतर ही तैयार हो रहे है। ।
जून 2014 में हुई शुरू
यह योजना मुख्यमंत्री शहरी स्वच्छता मिशन के नाम से  जून माह 2014 से शुरू हुई थी। जारी वित्त वर्ष में 25 हजार व्यक्तिगत शौचालय निर्माण करने का लक्ष्य रखा गया है। स्मार्ट सिटी के मानकों में भी यह पहले स्थान पर लिया गया है। इसके लिये शहरी विकास मंत्रालय केन्द्र सरकार के द्वारा जारी  स्वच्छ भारत मिशन के  तहत सक्सेसफुल केस स्टोरी के अंतर्गत सम्पूर्ण देश में  व्यक्तिगत शौचालय निर्माण के लिये  जबलपुर का अग्रणी शहर के रूप में  उल्लेख किया गया है।
हेल्प डेस्क भी
इस सेवा के लिये मानस भवन में बाकायदा हेल्प डेस्क है जहां पर कर्मचारी आम जनता की व्यक्तिगत शौचालय संबंधी शिकायतों को दर्ज कर उनके निराकरण की सूचना आवेदक को देते हैं।
वर्जन

 यह सफलता हमारे निगमायुक्त वेदप्रकाश के कुशल मार्गदर्शन तथा एनजीओ की टीमों के  कड़े परिश्रम के बाद हासिल हुई है।  साल भर में हमने 10 हजार व्यक्तिगत शौचायलों का निर्माण किया है।
सुनील दुबे, प्रभारी अधिकारी,
स्वच्छ भारत मिशन,ननिज ।
इस मिशन में हम प्रदेश में अव्बल हैं जबकि देश में हमारी स्थिति अग्रणीय शहरों में हैं। कार्यक्रम में पूरी पारदर्शिता भी रखी जा रही है। जिन लोगों के शौचालय तैयार हुए हैं उनकी फोटो शौचालय के साथ ही वेबसाइड में अपलोड की जा रही है और इसे कोई भी देख सकता है। अब तक करीब 2 हजार लोग और उनके शौचालयों के चित्र वेबसाइड में लोग किए जा चुके है।
वेद प्रकाश
कमिश्नर नगर निगम जबलपुर।
प्रदेश में स्वच्छता मिशन एक नजर में
महानगर निर्माण प्रकिया
जबलपुर 10 हजार निर्माणाधीन
5हजार
भोपाल शून्य निविदा 5 हजार
 इंदौर शून्य निविदा 5हजार
ग्वालियर शून्य निविदा 5हजार
नोट- उपरोक्त आंकडे वेबसाइड में डाले गए हैं। 
आर्डनेंस फैक्टरी की चिमनी बनी पीसा की मीनार
 तेज हवा के झोंकों में झूल रही बंद कराया गया वॉयलर
जबलपुर। आयुध निर्माणी स्थित फस्ट क्लास वायलर की हालत लम्बे अर्से से जर्जर हैै। करीब 130 फुट उंची इसकी चिमनी लोहे की बनी है जो जंग खाकर बुरी तरह खत गई है। शनिवार को तेज आंधी और बारिश के कारण जब चिमनी झूलने लगी तो फैक्टरी में खलबली बच गई। वायलर में काम काज रूक गया। इसका असर फैक्टरी के कामकाज पर पड़ा है। लम्बे अर्से से प्रस्ताविक चिमनी मरम्मत का काम फैक्टरी प्रबंधन एवं एकाउंट शाखा के बीच तालमेल न होने के कारण हो नहीं पा रहा है। एकाउंट शाखा प्रस्ताव को मंजूरी देखकर मुख्यालय नहीं भिजवा रहा है जिससे फैक्टरी में बड़ा हादसा होने का खतरा मंडरा रहा है। मजदूर यूनियनों ने इसको लेकर रोष जाहिर किया है।
जानकारी के अनुसार आर्डनेंस फैक्टरी में बम बनाने का काम में सर्वाधिक महत्वपूर्ण इकाइयों में वायलर होते है। फैक्टरी में तीन वायलर है जिससे बनने वाली स्टीम से फैक्टरी की सभी भारी भरकम मशीनरी को कम्प्रेशर दिया जाता है। फैक्टरी की 60 प्रतिशत मशीनों को कम्प्रेसर इसी यूनिट से मिलता है। करीब 12 बाय 12 फुट के भीमकाय वायलर की चिमनी लगभग 130 फुट उंची है। फैक्टरी में सभी फीलिंग सैक्शनों में वायलर से मिलने वाले कम्प्रेशर के माध्यम से ही फीलिंग का कार्य चलता है।
शनिवार को झूलने लगी थी चिमनी
सूत्रों की माने तो शनिवार को तेज आंधी और बारिश के चलते चिमनी झूलने लगी थी जिसके कारण उसके गिरने की आशंका के कारण फैक्टरी प्रबंधन ने उसे फिलहाल बंद करवा दिया। इससे फैक्टरी का करीब 60 प्रतिशत उत्पादन प्रभावित हुआ है तथा लेवरों का वर्क भी लगभग ठप्प हो गया है।
चिमनी के बाजू में केटीन
बताया गया कि जहां चिमनी स्थित है उसके ठीक बाजू में फैक्टरी की कैंटीन

है जिसमें रात दिन वर्कर मौजूद रहते है और उनकी संख्या सैकड़ों में होती है। फैक्टरी की केंटीन भी चिमनी के कारण खतरे के निशान पर आ गई है। कर्मियों में इस लावरवाही के कारण जबदस्त रोष व्याप्त है।
कर्मचारी नेता अरूण दुबे, केबी यादव, अनूप गोटिया, अखिलेश पटैल, अमित चौबे, मुकेश विनोदिया, केव्ही चौहान, एसके शर्मा आदि ने निंदा करते हुए शीघ्र चिमनी की शीघ्र मरम्मत करने की व्यवस्था की है।


दो विभागों की जंग का नतीजा
सूत्रों की माने तो आर्डनेंस फैक्टरी प्रबंधन जहां आर्डनेंस बोर्ड के अधीन है जबकि आर्डनेंस फैक्टरी एकाउंट विभाग कलकत्ता स्थित एकाउंट विभाग के अधीन है। आर्डनेंस फैक्टरी प्रबंधन और बोर्ड के अधीन एकाउंट विभाग के कर्मचारी एवं अधिकारी नहीं है जिसके कारण आए दिन वित्तीय मामले को लेकर फैक्टरी प्रबंधन एवं एकाउंट विभाग के अधिकारियों के बीच ठनी रहती है। इसी के चलते पिछले दो माह से फैक्टरी प्रबंधन के चिमनी मरम्मत की फाइल एकाउंट शाखा में लटकी पड़ी है और उसे मुख्यालय नहीं भेजी गई है। इस तहर की खीचतान के शिकार कर्मचारियों को होना पड़ रहा है। यूनियन ने कई बार मांग कर चूकि है कि आर्डनेंस फैक्टरी के एकाउंट विभाग को भी फैक्टरी बोर्ड के अधीन किया जाए। लेकिन वर्तमान व्यवस्था के तहत आर्डनेंस बोर्ड तथा एकाउंट विभाग अलग अलग इकाइयां है तथा उसके उपर नियंत्रण रक्षा मंत्रालय का रहता है।
 

अनुशासन और मेहनत ही अधिकारी की पहचान


 आशीष खरे, एएसपी जबलपुर
 सन 1998 बैच के मध्य प्रदेश पुलिस प्रशासन के अधिकारी आशीष खरे ने जबलपुर में एएसपी क्राइम के पद पर रहते हुए अनेक गंभीर बहुचर्चित  प्रकरणों एवं बड़े गिरोहों की धरपकड़ के लिए ख्याति अर्जित की। श्री खरे का कहना है कि विभाग में अनुशासन और मेहनत ही अधिकारी की पहचान बनाते है। उनका हाल ही में तबादला एएसपी शहर के पद पर किया गया है। इसके पूर्व वे भिंड, शाजापुर, भोपाल, बालाघाट, पीएचक्यू भोपाल में महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं। । श्री खरे से पीपुल्स संवाददाता दीपक परोहा की हुई बातचीत के अंश।
प्रश्न- जबलपुर में आप  एएसपी क्राइम पदस्थ रहें हैं, क्राइम ब्रांच की किसी शहर में क्या उपयोगिता है?
जवाब- कई प्रकरण ऐसे होते है जो बहुचर्चित होने के साथ समाज में एक संदेश भी देते है। प्रकरण का सुलझना और अपराधी का पकड़ा जाना समाज के लिए बेहद आवश्यक होता है। ऐसे गंभीर मामले में जब थाने की पुलिस संसाधनों की समस्या सामने आती है, मामले की जांच का क्षेत्र विस्तृत होता है तब क्राइम ब्रांच बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह करता है। क्राइम ब्रांच का पूरा ध्यान अपराध अंवेषण पर केद्रित होता है। इसके चलते क्राइम  ब्रांच पुलिस में बेहद उपयोगी शाखा के रूप में उभर कर विभाग में आया है।
प्रशन- थाना में लॉ एण्ड आर्डर की समस्या से पुलिस को जूझना पड़ता रहता है, ऐसे में अपराध अंवेषण में पिछड़ जाती है। मामले पेडिंग रहते है, क्या थानों में लॉ एण्ड आर्डर एवं अपराध अंवेषण के लिए अलग अलग विंग क्या होना चाहिए?
जवाब - पुलिस मुख्यालय इस विषय पर काफी अर्से से विचार कर रहा है। मेरा व्यक्तिगत मानना है कि कार्य विभाजन से बेहतर परिणाम आते हैं।
प्रश्न- एक अच्छे पुलिस अधिकारी में क्या खूबी होना चाहिए जिससे वह विभाग में अपना नाम कमा सके?
जवाब- एक पुलिस कर्मी एवं अधिकारी दोनो में अनुशासन में रहते हुए मेहनत

से काम करने का गुण होना चाहिए। इससे वह निश्वित ही नाम कमाएगा।
प्रश्न- आपका यादगार केस कौन सा है?
जवाब- सिविल लाइन जबलपुर में एक मासूम बच्ची आरोही का अपहरण की रिपोर्ट की गई थी, ये काफी चर्चित हुआ। जबलपुर सहित प्रदेश पुलिस के लिए बड़ी चुनौती थी। अपहरण के दिन गृह मंत्री भी शहर में थे, उन्होंने भी मामले को प्रदेश पुलिस के लिए बड़ी चुनौती के रूप में स्वीकार किा। इस गंभीर प्रकरण में पहले से ही बच्ची की मां पर संदेह था लेकिन कोई भी ठोस प्रमाण नहीं थे। मामले की विवेचना में सैकड़ों पुलिस कर्मियों ने रात दिन मेहनत की , अंतत: प्रकरण का पर्दाफाश हुआ। बच्ची की ही मां ने ही मासूम आरोही का कत्ल किया था। इस प्रकरण में क्राइम ब्रांच का विशेष योगदान रहा। ये प्रकरण मेरा यादगार केस है।


दीपक बहरानी अधीक्षक जबलपुर हॉस्पिटल मो.9425155500



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दो दिन की बुखार में दम फूल गया था महिला का

टेस्ट कराने पर स्वाइन फ्लू पॉजेटिव निकला, बचा ली जान
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स्वाइन फ्लू का समय पर इलाज कराया जाए तो यह जानलेवा बीमारी नहीं है। इससे बचाव के लिए  उपाय करना बेहद आवश्यक है। हॉल ही में जबलपुर हॉस्पिटल के अधीक्षक दीपक बहरानी के  पास स्वाइन फ्लू से पीड़ित तीन मरीज इलाज के लिए  पहुंचे थे , तीनों की जिंदगी बच गई है। यहां पिछले सप्ताह ही सदर निवासी 35 वर्षीय महिला नर्गिस (काल्पिनिक नाम )  को इलाज के लिए  लाया गया था जिसका दो दिन बुखार के कारण दम फूलने लगा था तथा सांस नहीं ले पा रही थी, उसे तत्काल अस्पताल में दाखिल किया गया तथा महिला पांच दिन वेंटिलेटर पर रही और स्वास्थ्य होने के बाद घर चली गई। उसकी जान स्वाइन फ्लू से बचा ली गई।
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दीपक परोहा
9424514521
जबलपुर हॉस्टिल नेपियर टाउन के वरिष्ठ चिकित्सक दीपक बेहरानी  ने स्वाइन फ्लू के इलाज के संबंध में अपने अनुभव शेयर करते हुए बताया कि पिछले सप्ताह जबलपुर हास्पिटल में स्वाइन फ्लू के तीन मामले आए और बेहद खुशी की बात है कि तीनों मरीज स्वस्थ्य होकर चले गए है। दरअसल स्वाइन फ्लू को लेकर लोगों में जबदस्त भ्रांति भी व्याप्त है कि बीमारी से मौत होना निश्चित है, यदि रोग के प्रारंभिक लक्षण नजर आते ही इलाज के लिए डॉक्टर के पास पहुंचा जाए तो लोगों की जान बचना तय है। अमूमन होता यह है कि वायरल एवं सर्दी का लोग इलाज नहीं कराना चाहते हैं, स्वयं ठीक होने का इंतजार करते है। यदि एच1एन1 वायरस से सर्दी एवं बुखार है तो उसमें देरी मौत का कारण बन जाती है।
 पिछले तीन सालों से जबलपुर हास्पिटल में स्वाइन फ्लू के मरीज आ रहे है जिसमें 5 में चार मरीजों की जान बचाई जा रही है। स्वाइन फ्लू वास्तव में बेहद खतरनाक बीमारी हो चुकी है। इसके वायरस एच1 एन1 बेहद शक्तिशाली हो चुके है। स्वाइन फ्लू पीड़ित मरीज के सम्पर्क में जैसे ही लोग आते है , उनको भी इंफैक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है।
मेरे पास हाल ही में सदर से 35 वर्षीय महिला को  लाया गया। उसको सांस लेने में भारी परेशानी हो रही थी। सांस नहीं ले पाने के कारण शरीर नीला पड़ रहा था। परिवार वालों ने बताया कि दो दिन से उसे तेज बुखार है और सर्दी खांसी है।  इस लक्षण से मुझे यही संदेह हुआ कि महिला को कहीं स्वाइन फ्लू तो नहीं है? उसको आइसोलेशन कक्ष में भर्ती किया गया तथा वेंटीलेटर में रखकर कृत्रिम सांस दी जाने लगी। उसके एक्सरे कराया गया तो फेफड़ों में सूजन एवं इंफैक्शन नजर आया। फेफड़ों में पानी भी भरा हुआ था। तत्काल टेस्ट कराया गया तो स्वाइन फ्लू की पॉजेटिव रिपोर्ट आई । महिला को टेमीफ्लू तथा अन्य दवाइयों को डोज प्रारंभ किया गया। तीन दिन तक महिला की हालत बेहद गंभीर रही। वह करीब 5 दिन तक वेंटीलेटर में रही । इसके बाद उसे आक्सीजन पर रखा गया । करीब 7 दिन के इलाज  के बाद वह स्वस्थ्य होकर घर चली गई। इसी तरह जबलपुर हास्पिटल में दो अन्य  मरीज स्वस्थ्य होकर गए।

स्वाइन फ्लू  के लक्षण
 स्वाइन फ्लू के लक्षण हैं सर्दी, जुकाम, सूखी खांसी होना, थकान आना , सांस फूलना, सिरदर्द और आंखों से पानी आना। संक्रमण गंभीर होने पर बुखार आता है। वायरल फीवर की तरह स्वाइन फ्लू के भी लक्षण है।
बवाव के उपाय
* सर्दी -खासी से पीड़ित व्यक्ति  से दूरी बनाकर रखे।  सार्वजनिक स्थल पर मास्क का इस्तेमाल करें। स्वाइन फ्लू के मरीज से दूरी बनाकर रखे।  बाहर से घर आने पर हाथों को साबुन से अच्छे से धोएं ।

बिन्दु के फेर में जजा की जनगणना हुई गफलत


याचिकाएं तक लगी है हाईकोर्ट में ,  प्रदेश में जनजाति का अनुपात बिगड़ा,  अचानक बढ़ गई जनसंख्या, अपात्र हुए लाभांवित
जबलपुर। सामाजिक एवं आर्थिक जनगणना 2011 में अनुसूचित जनजाति की गणना में हुई गड़बड़ी के कारण प्रदेश में अनुसूचित जनजाति का अनुपात गड़बड़ा गया है। इतना ही नहीं अपात्र लोगों को अनुसूचित जनजाति का बेजा फायदा हुआ है। इस मामले को लेकर पिछले तीन साल से कई याचिकाएं भी हाईकोर्ट में लम्बित है। इस गड़बड़ी की वजह मात्र एक बिन्दी लगाने की गफलत के कारण हुई है।
सूत्रों के अनुसार सामाजिक एवं आर्थिक जनजाति गणना के तहत कुल 43 अनुसूचित जनजातियां शामिल है। इसके तहत जाति क्रमांक 28 में माझी अंग्रेजी में लिखा गया है लेकिन इसी सूची में जहां देवनागरी लिपी में माझी की जगह मांझी लिख दिया गया है।
अनुसूचित जनजाति की सूची में इस त्रुटि के चलते बड़ी संख्या में मांझी समुदाय के लोग भी जनजाति में शामिल कर लिए गए । मध्य प्रदेश में अनेक जिलों में सामाजिक जनगणना में अनुसूचित जाति में मांझी जाति जिसके तहर कश्यप, केवट, मल्लाह आदि आते हैं उन्हें जनजाति में  शामिल कर गणना कर ली गई जबकि कई जिलों में सामाजिक जनगणना में इन मांझी जाति को जनजाति में शामिल नहीं किया गया। परिणाम स्वरूप मांझी जाति के लोग भी खिन्न है। उनका मानना है कि जनजाति में मांझी को शामिल कर लिया गया है लेकिन अनेक जिलों में शामिल नहीं किया गया है।
याचिका में शासन ने स्वीकार
होशंगाबाद के अशोक कुश्राम ने इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में एक याचिका भी लगाई है। इसमें कहा गया कि होशंगाबाद में मांझी जाति के लोगों को भी अनुसूचित जनजाति में शामिल करके उन्हें केन्द्र शासन द्वारा घोषित जनजाति सूची के लोगों की तरह लाभ मिल रहा है। इस याचिका में शासन ने

स्वीकार किया है कि होशंगाबाद में मांझी समाज के लोग अनुसूचित जनजाति में शामिल है।
मोती कश्यप के मामले में
मामला सर्वोच्च न्यायालय
जबलपुर जिले में भी मांझी समाज की कुछ जातियों को जनजाति की सूची में शामिल कर लिया गया। बड़बारा विधायक मोती कश्यप के जनजाति में शामिल न होने के मामले को लेकर हाईकोर्ट में एक याचिका लगाकर उनके चुनाव को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट से मोती कश्यपर को राहत नहीं मिल पाई थी जिसको लेकर मामला सर्वोच्च न्यायालय में गया था। बहरहाल जबलपुर में मांझी जाति को जनजाति में नहंी शामिल किया गया है। इस तरह प्रदेश में एक ही जाति किसी जिलें में जनजाति में शामिल है तो किसी जिले में अनुसूचित जाति अथवा ओबीसी में शामिल है।
प्रदेश में अनुपात गड़बड़ाया
मांझी और माझी को हिन्दी और अग्रेजी में लिखने की त्रुटी का परिणाम यह हुआ है कि जनजाति को अनुपात बुरी तरह गणबड़ा गया है। अनुसूचित जनजाति की जनगणना भी प्रभावित हुई है। यदि आंकड़ों पर गौर किया जाए तो वर्ष 2001 की जनगणना में प्रदेश की कुल जनसंख्या में  20.3 प्रतिशत आदिवासी यानी अनुसूचित जनजाति के लोग मध्य प्रदेश में हैं जो कि देश में सर्वाधिक संख्या है। मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजाति के लोगों की संख्या गणना 2001 में 1 करोड़ 22 लाख 33 हजार 434 थी जबकि मांझी और माझी के फेर में  वर्ष 2011 की गणना में अनुसूचित जनजाति की संख्या में अचानक बढौतरी हो गई। जनजाति का प्रतिशत कुल आबादी में बढ़कर 21.3 प्रतिशत हो गया जबकि उसके अनुपात में सामान्य जाति, अनुसूचित जाति  तथा पिछड़ी जाति का कुल अनुपात तुलना में कम हो गया। वर्ष 2011 की गणना में अनुसूचित जनजाति की कुल संख्या 1 करोड़ 53 लाख 16 हजार 784 हो गई है। वर्ष 2011 की गणना के मुताबिक प्रदेश की कुल आबादी 7 करोड़ 26 लाख 26 हजार 809 है।
पल्ला झाड़ रहे है विभाग
सामाजिक एवं आर्थिक जनगणना विभाग इस गडबड़ी के लिए पल्ला झाड़ रहा है। विभाग का कहना है कि सामाजिक एवं आर्थिक गणना उनके द्वारा कराई गई है जबकि अनुसूचित जाति एवं जनजाति की गणना ग्रामीण विकास मंत्रालय ने करइशर्् है।

जंगल के राजा को किंग कोबरा से बचाने कवायद


केन्द्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण ने जारी किए निर्देश
जबलपुर। जंगल के राजा को किंग कोबरा से बचाने वन अमला एवं चिड़ियाघर प्रबंधन विशेष रूप से सतर्क है। दरअसल इंदौर चिड़ियाघर में 29 दिसम्बर को किंग कोबरा ने बाड़े में एक सफेद टाइगर को डस कर मार डाला था। विलुप्त होती सफेद टाइगर की मौत ने केन्द्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण को हिलाकर रख दिया था। गर्मी के सीजन में चिड़ियाघर एवं नेशनल पार्क के बाड़ों में सर्प निकलने की घटनाएं बढ़ने के मद्देनजर किंग कोबरा से टाइगर को बचाने विशेष प्रयास शुरू किए गए है।
ज्ञात हो कि ं 29 दिसम्बर को किंग कोबरा ने इंदौर चिड़ियाघर में बाड़े में एक सफेद टाइगर को डस लिया जिससे उसकी मौत हो गई। टाइगर राजन की मौत को लेकर केन्द्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण के आला अधिकारियों ने जांच पड़ताल की और विशेषज्ञों के दल से रिपोर्ट मांगी गई। इस रिपोर्ट के बाद केन्द्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण इस नतीजे पर पहुंचा है कि बाड़े में वाइल्ड एनीमल को रखने अब तक बने नियम निर्देश वैसे ही कड़े हैं लेकिन शेरों को किंग कोबरा से खतरा रहता है और इसके लिए सभी चिड़ियाघर तथा नेशनल पार्क जो इनक्लोजर में शेर-चीतों को रखते हैं, उनकी जहरीले सांप से सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाए।
इस संबंध में केन्द्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण ने समस्त नेशनल पार्क एवं चिड़ियाघरों को सरकुलर भी जारी कर रखा है। इसके तहत चिड़ियाघरों को शेरों की सुरक्षा और खासतौर पर किंग कोबरा जैसे विषधर से बचाने और अधिक इंतजाम करने के निर्देश दिए है। इसके साथ प्रदेश के अनेक चिड़ियाघरों में सर्प विशेषज्ञों एवं सर्प पकड़ने वालों का सहयोग लिया जा रहा है।
सर्प विशेषज्ञ को बुलाया गया
जबलपुर के सर्प विशेषज्ञ मनीष कुलश्रेष्ठ को पन्ना नेशनल पार्क सहित रीवा में वाइट टाइगर प्रोजेक्ट से बुलाया जा चुका है। नेशनल पार्क में जहां टाइगरों को बाड़े में रखा गया हैं, वहां आसपास सर्प की मौजूदगी का पता लगाकर उनके पकड़ा भी जा रहा है। इस कार्य के लिए मनीष कुलश्रेष्ठ द्वारा वन कर्मियों को लगातार प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
 चिड़ियाघर में चूहे न पाले जाए
चिड़ियाघरों में जानवारों को दिए जाने वाले चने एवं अन्य खाद्यान्न डालने पर भी रोक लगाई जाने पर विचार चल रहा है। इस तरह के अनाज  चूहों को आकर्षित करते है और ये चूहे चिड़ियाघरों में जगह जगह बिल बना देते हैं और यही बिल जहरीलें सांप का घर बनता है और चूहे उनकी खुराक बनती है। इंदौर, भोपाल तथा ग्वालियर स्थित चिड़ियाघरों में पहले भी कई बार जहरीले सर्प निकल चुके है। इस सांपों से यहां के जंगली जानवारों पर मौत का खतरा मंडराता रहता है।
वर्जन
नेशनल पार्क से सांप को तो नहीं भगाए जा सकते हैं लेकिन जहां टाइगरों को बाड़े में रखा जाता है, वहां से सर्प न पहुंचे इसकी व्यवस्था बेहद जरूरी है। बाड़े में अमूमन सर्प पकड़ने वाले का घुसना मुश्किल रहता है। शेर के रहने वाली जगह का तापमान भी सांप के अनुकूल रहता है और बाड़े में चूहे भी रहते है जिसके कारण यहां सर्प न पहुंचे इसके इंतजाम बेहद जरूरी है। वर्तमान में इस दिशा में काम चल रहा है।
मनीष कुलश्रेष्ठ
प्राणी विशेषज्ञ 

यदि काम करें तो संसाधन की कमी आड़े नहीं आती


* जीपी पराशर एएसपी जबलपुर
सन 2000 बैच के राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी जीपी पराशर का कहना है कि पुलिस बल की कमी तथा संसाधनों की कमी जैसी बाते कभी आड़े नहीं आएगी यदि काम ईमानदारी पूर्वक किया जाए। श्री पराशर वर्तमान में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक जबलपुर शहर पदस्थ है। इसके पूर्व दमोह में एएसपी थे। श्री पराशर एसडीओपी मैहर, सीएसपी मऊ, इदौर तथा जबलपुर में रह चुके हैं। उनकी पहचान विभाग के कर्मठ पुलिस अधिकारियों में हैं जो मुश्किल से मुश्किल मामलों को सुलझाते रहे हैं। उनसे हुई पीपुल्स संवाददाता दीपक परोहा से बातचीत के अंश-
प्रश्न- जबलपुर शहर में आप सीएसपी पदस्थ रहें है, यहां पुलिस के सामने मुख्य चुनौती किसे मानते हैं।
जवाब- जबलपुर में चैन स्नेचिंग, संपत्ति विवाद और संगठित अपराध के साथ चोरियां एवं ठगी जैसे आपराधिक घटनाएं होती है। इसके साथ मारपीट, अपहरण और चाकू बाजी के अपराध ज्यादा होते है। इसमें नियंत्रण के लिए हर मामले में अपराधी को पकड़ा और सजा दिलाने की चुनौती रहती है और यही पुलिस का मूल काम है। इसको करने में किसी तरह की अलाली नहीं होना चाहिए।
प्रश्न - आपने अपने अधिकार क्षेत्र के थानों के क्या प्राथमिकताएं तय कर रखी है।
जवाव- सभी पुलिस कर्मियों को स्पष्ट निर्देश दिए गए है कि अपने वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशन में बैसिक पुलिसिंग बेहतर से बेहतर तरीके से करे। सभी बीट प्रभारी अपने क्षेत्र में जाएं तथा आमजनता से सतत संवाद कायम रखे। पुलिस गश्त एवं चौकसी में जरा भी लापरवाही न की जाए। अपराधी तत्वों की लगातार धरपकड़ की जाए। पुलिस का काम आम जनता और अधिकारियों को दिखना चाहिए।
प्रश्न- पुलिस थानों में बल की कमी है, संसाधनों का अभाव है, ऐेसे में बेसिक पुलिसिंग आप कैसे करवा पाएंगे।
जवाब- यह सब काम न करने के बहाने है। पुलिस थानों में जितना भी बल मौजूद है उसका तरीके से उपयोग किया जाए, यानी की मैनपावर का मैनेमेंट होना चाहिए। हर काम समय पर और तत्काल किया जाए। ऐसे में बल एवं संसाधन की कोई कमी नहंी रहती है। काम चोरी करना हो तो सौ बहाने मिल जाते है। दर असल हर पुलिस कर्मी की अपनी जवादेही तय की जाए तो वे स्वयं ही काम करते है।
्रप्रश्न- पुलिस का अधिकांश समय कानून व्यवस्था में जाया जाता है जिसके कारण थानों में पेडिंग मामले बढ़े हुए हैं
जवाब- कानून व्यवस्था कायम रखना भी महत्वपूर्ण काम है। जबलपुर शहर में ऐसे कानून व्यवस्था को लेकर विशेष समस्या नहंी आती है लेकिन शहर संवेदनशील है। पुलिस अधीक्षक द्वारा क्राइम मीटिंग ली जाती है, इस दौरान पेडिंंग मामलों पर भी चर्चा होती है। मेरा प्रयास रहता है कि थानों में पेडिंग न रहे, इसलिए लगातार मै मानीटरिंग करता हूं। 

आर्थोपेडिक सर्जरी आधुनिक चिकित्सा का चमत्कार






सन 1990 के दशक प्रदेश के शहरों में आर्थोपेडिक सर्जरी की क्रांतिकारी शुरूआत वाला समझा जाता है। सर्जरी से बोन फैक्चर में लोगों को महीनों के लम्बे इलाज से छुटकारा मिल जाता है। अब तो दो तीन दिनों में ही टूटी हड्डियां सर्जरी के माध्यम से जोड़ी जाने लगी और मरीज हफ्ते भर में नियमित होने लगे है। इंग्लैड, स्विट्जर लैण्ड, मुम्बई में हड्डियों की शल्य चिकित्सा करने का अभुव अर्जित कर डॉ सुधीर तिवारी जबलपुर में आधुनिक तरीके से  अस्थि सर्जरी कर रहे हैं। जबलपुर में आधुनिक शल्य चिकित्सा की शुरूआत करने वालों में  चिकित्सकों में शुमार हैं।
डॉ. तिवारी बताते है कि सन 1992-93 में मल्टी फैक्चर के मामले आने पर जबलपुर के मरीजों को सीधे नागपुर एवं मुम्बई रेफर किया जाता रहा है लेकिन आज जबलपुर में कुल्हे तथा घुटने प्रत्यारोपित  किए जा रहे है।
डॉ सुधीर तिवारी वर्ष 1994 से लेकर आज तक जबलपुर में शल्य चिकित्सा एवं अस्थि रोग का उपचार कर रहे हैं। वर्तमान में जबलपुर हास्पिटल एवं डॉक्टर भंडारी हास्पिटल में सर्जरी करते हैं। उनका कहना है कि उन्होंने कितनी सर्जरी की इसके गिनती कभी नहीं की। चाहे बड़ी से बड़ी सर्जरी हो अथवा छोटी से छोटी सर्जरी उतनी ही तन्मयता और सावधानी पूर्वक नई तकनीकि का इस्तेमाल करके की।
उनके द्वारा की गई यादगार सर्जरी
केस 1-
वर्ष 1993 में इंग्लैड से लौट कर आने पर सतना से एक्सीडेटल मामले का एक केस उनके पास आया था जो पॉली ट्रामा का प्रकरण था। इस मामले में मरीज की घुटने और कूल्हे की हड्डियों में असंख्य फैक्चर थे, हड्डियां जगह जगह से चकनाचूर हो चुकी थी। इस चुनौती पूर्ण आपरेशन में डॉ सुधीर तिवारी एवं उनकी टीम को 14 घंटे लगे। उनके साथ अस्थिरोग  सर्जन डॉ.संजीत बैनजी थे। इसमें सभी हड्डियों को उनके निर्धारित स्थान में बैठाया गया। उच्च तकनीकि का इस्तेमाल कर स्कू्र, नट बोल्ट से हड्डियों को जोड़ा  गया। स्टील की छोटी बाड़ी कई प्लेटें लगाई गइ। इस तहर का आॅपरेशन जबलपुर में पहली बार और सफतला पूर्वक किया गया।
केस -2
जबलपुर के ही एक मरीज के घुटने में कई फैक्चर आए थे। उसके घुटने बदले जाने की स्थिति निर्मित हो गई थी लेकिन इस घुटने में डायनमिक कंडालर स्कू डाला गया जिससे घुटने का मुड़ना संभव हो सका और मरीज के पैर में स्थायी विकृति नहीं आ पाई।
केस -3
कोहनी टूटने में एक या दो फैक्चर अमूमन होते है लेकिन डॉक्टर सुधीर तिवारी के पास एक महिला मरीज आई जिसके कोहनी के 8 तुकड़े हो गए थे। आॅपरेशन करने के दो दिन बाद ही उसकी कोहनी का मूवमेंट शुरू हो गया।
केस-4
स्पोर्ट इंज्यूरी संबंधी मामले के संबंध में डॉ तिवारी ने बताया कि संजू माथन नामक एथलीट जो वर्तमान में सेना में पदस्थ है। उसके अंगूठा लगभग पूरी तरह टूट कर घुम चुका था। उससे तीन माह में पूरी तरह दौड़ने कूदने लायक बनाया गया और बाद में वह नेशनल एवार्ड भी प्राप्त किया। उनका कहना है कि स्पोर्ट इंज्यूरी में उनके द्वारा आर्थो स्कोपी से चिकित्सका की जा रही है। दूरबीन पद्धति से बिना आॅपरेशन किए सर्जरी कर हड्Þडी जोड़ी जाती है जिससे खिलाड़ी जल्द ठीक होए। डॉ तिवारी ने जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में खिलाड़ियों की चिकित्सा इसी तरीके से की।
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उनकी फैलाशिप इग्लैंड में हुई। वे जबलपुर के ही मूल निवासी है और राइट टाउन में स्वयं की क्लिनिक है। उन्होने सेंट जार्ज हास्पिटल लंदन, टिमेली हॉस्पिटल ज्यूरिच स्विटजरलैण्ड , क्लीन मेरी चिल्डन आर्थोपेडि हास्पिटल इग्लैड तथा जसलोक हास्पिटल एंड रिसर्ज सेंटर मुम्बई के कई वर्ष सेवाएं देने के उपरांत अपने गृह नगर में सेवाएं दे रहे है।
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इंटर व्यू --
गंभीर अस्थि रोग से थोड़ी
सावधानी से बचना संभव
 भारत में अस्थिरोग तेजी से बढ़ रहा है। गंभीर अस्थि रोग से थोड़ी सावधानी दिनचर्चा में बरतने से बचा जा सकता है। इससे लोग भविष्य में बड़ी आर्थोपेडिक सर्जरी और बीमारी से बच सकते है। ये कहना है डॉ. सुधीर तिवारी का। उनसे हुई बातचीत के महत्वपूर्ण अंश-
प्रश्न- इन दिनों अस्थि व्याधि संबंधी कौन से बीमारी ज्यादा सामने आ रही है?
जवाब -मध्य प्रदेश सहित पूरे देश में तेजी से आस्टोपोरोसिस नामक बीमारी हो रही है। ये बीमारी बच्चों, प्रौण महिला-पुरूषों एवं वृद्धों में सर्वाधिक हो रही है। हस्थिरोग में हर दसवां मामला इसी बीमारी का होता है। इस बीमारी में मानव की अस्थियों से कैल्सियम की मात्रा घट जाती है जिससे हड्डियां खोखली हो जाती है। यह एक स्वस्थ्य व्यक्ति के लिए बेहद घातक है।
 प्रश्न- इस बीमारी का उपचार क्या है और बचाव के क्या उपाय है?
जवाब- बीमारी विटामिन डी की कमी से होती है तथा बाजार में दवाइयां उपलब्ध है लेकिन हड्डियों में खोखलापन न आए इसके लिए हर व्यक्ति को उपचार करना चाहिए। एक तो हड्डियों की मजबूती के लिए दूध का सेवन बेहद जरूरी है। सस्ते फल संतरा, पाइनएपल, बिही, आवला आदि का सेवन करना चाहिए। विटामिन डी बनाने की शरीर में स्वयं क्षमता होती है। व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह आधा घंटे सनबाथ लेना चाहिए। मालिस एवं सनबाथ लेने

वाले व्यक्ति की हड़डी मजबूत रहती है।
प्रश्न-रूमरथ्राटाइज से लोग तेजी से पीड़ित हो रहे है। इसके मरीज की हड्डियां अकड़ जाती है, असहनीय वेदना से गुजरना पड़ता है, आखिर बीमारी क्यों फैल रही है?
जवाब-  ये मूलत: अस्थिरोग नहीं है लेकिन इफैक्टर हड्डियों पर पड़ता है। दरअसल ये गुप्त संक्रमण हैं, यानी कि किसी बाहरी वैक्टिरिया या वायरस से संक्रमण नहीं होता है वरन मानव का स्वयं का रोग प्रतिरोधन तंत्र स्वयं के शरीर पर अटैक करता है। इसके होने के पीछे मुख्यत: अनियमित दिनचर्चा, वंशानुगत कारण, अत्यधिक तनाव तथा भोजन में पोषक तत्वों की कमी हो सकते है। इसमें संयमित तरीके से दवा देने से रोग से छुटकारा संभव है।
प्रश्न - अधिकांश वृद्धजनों को ओस्ट्रियो आर्थराइट्स , घुटने खराब होना जैसे कई रोग हो जाते है। दुनिया के अन्य देशों की तुलना में भारतीयों में ये बीमारी ज्यादा है क्या?
जवाब- औसतन भारतीय जनों में ओस्टियों आर्थराइट्स ज्यादा होता है। यूं तो वृद्धा अवस्था में सभी को अस्थि व्याधि होती है लेकिन भारतीय लोगों की दिनचर्चा में असावधानी बड़ा कारण है। इस संबंध में मेरा कहना है कि ‘कम वजन, सुखद सफर’ यानी व्यक्ति अपना वजन नियंत्रित रखे, मोटापा से बचे तो कई हड़्डियों संबंधी होने वाली बीमारी और दर्द से छुटकारा मिलेगा। इसके साथ ही पाल्थी एवं उकडू बैठना बिल्कुल भी उचित नहंी है। इससे बचने की कोशिश करना बेहद जरूरी है। भोजन में पौष्टिक पदार्थो की कमी भी हड्डियों की समस्या को बढ़ा रही है। 

चीटियां बना रही पेड़ पर घोसला


प्रकृति के करीब जन्तुओं से लगाते है आदिवासी मौसम की भविष्यवाणी

 जबलपुर । जी हां जंगली लाल चीटियों ने इस वर्ष अभी से पेड़ों पर अपने अंडे को सहेजने के लिए घोसला बना लिए है। चीटिंयों की इस हरकत को लेकर आदिवासी और ग्रामीण लोग मौसम की भविष्यवाणी से जोड़ कर देखते है। ये संकेत बताते हैं कि इस वर्ष मानसून समय पर और जोरदार तरीके से दस्तक देगा यानी की जमकर बारिश होगी।
जहां पिछले वर्ष जंगलों तथा शहरी क्षेत्रों में काले चिड्डे बड़ी संख्या में निकले थे जिसको लेकर अनुमान लगाया जा रहा था कि आकाल जैसी स्थिति निर्मित होगी। मानसून ने लगभग आकाल जैसी ही स्थिति निर्मित कर दी थी।
प्रकृति के बेहद करीब रहने वाले जीव जन्तु के संबंध में एक धारणा एवं काफी हद तक वैज्ञानिक आंकलन भी है कि प्राकृतिक आपदाओं एवं घटनाओं का उनका लभगभ पूर्वाभास हो जाता है यानी की वे उन परिस्थितियों से निपटने तैयारी कर लेते है।
जानकारों का कहना है कि आम तथा अन्य पेड़ों में रहने वाली लाल चिटियां अमूममन पेड़ के नीचे ही अपने घर एवं कॉलोनी बनाती हैं  लेकिन जब वे पेड़ के पत्तों एवं टहनियों के सहारे अपने घर बनाते है तो समझना चाहिए उस वर्ष जंगली उपज बड़ी मात्रा में होनी है तथा उस वर्ष बारिश भी समय पर और जोरदार तरीके से दस्तक देती है। इस हिसाब से आदिवासियों का अनुमान है आम, तेन्दू तथा अचार आदि की जंगली उपज जोरदार होनी है। इसके संकेत
भी नजर आने लगे है। जंगल प्लास के फूलों से लद गए है जो संकेत देते है कि जल्द ही और समय बारिश भी दस्तक देगी।

वर्जन

आदिवासी एवं पुराने कृषक जीव जन्तुओं की हरकत के हिसाब से ही मौसम का पूर्वानुमान लगाते आ रहे है। इसके हिसाब से ही खेती किसानी की तैयारियां करते रहे है। यह परम्परा वर्षो से आदिवासी समाज में अब भी चल रही है। जानवरों का धूल पर लोटना या चिडियां का धूल से स्नान आदि कई हरकतें मौसम संबंधी भविष्यवाणी से जोड़कर ग्रामीण अब भी देखते हैं।
मनीष कुलश्रेष्ठ
 प्राणी विशेषज्ञ