Thursday, 11 February 2016

रिेकार्ड तेजी से चला विद्युतीकरण




जबलपुर। डब्ल्यूसीआर द्वारा रेलवे विद्वुतीकरण जबलपुर योजना में जिस तेजी से काम किया जा रहा है, वह अब तक का सर्वाधिकत तेजी से विकास कार्य बताया गया है।
रेलवे के मुताबिक रेल विद्युतीकरण, जबलपुर परियोजना को छिवकी से इटारसी रेल खंड जिसमें सतना-रीवा रेल खंड सम्मिलित है, के 653  कि.मी. तथा 1611 ट्रेक किमी. के विद्युतीकरण की जिम्मेदारी दी गई हैं। यह कार्य वर्ष 2012-13 में स्वीकृत हुआ था तथा स्वीकृत राशि  861.33 करोड़ रूपए है। इस रेल खंड का 92 किमी उत्तर मध्य रेलवे तथा 561  किमी. पश्चिम मध्य रेल में आता है। इस रेलखंड के विद्युतीकरण कार्य को 4 भागों में बांटा गया है।
छिवकी-मानिकपुर रेल खंड के तहत मानिकपुर-सतना-रीवा रेल खंड , 3बी, सतना-जबलपुर रेल खंड एवं जबलपुर-इटारसी रेल खंड में पिछले एक वर्ष से  रेल विद्युतीकरण कार्य जोर-शोर  से चल रहा है। वित्त वर्ष 2014-15 के प्रारंभ में 222 किमी  रेल खण्ड का 22 के.व्ही. पर इनरजाइज करने का लक्ष्य रखा था जिसे उसी वर्ष के मध्य में 282 किमी कर दिया गया।

रेल विद्युतीकरण परियोजना में इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सटीक योजना बनाई। जिससे  न केवल 282 किमी का विशाल लक्ष्य को प्राप्त किया गया अपितु लक्ष्य से अधिक 290 किमी का कार्य सम्पन्न हुआ ये  एक कीर्तिमान है।
 50 हजार का इनाम
 रेल विद्युतीकरण,  परियोजना को इस सर्वाधिक उपलब्धि के लिए महाप्रबंधक, केन्द्रीय रेल विद्युतीकरण संगठन, इलाहाबाद द्वारा  50 हजार का नगद पुरस्कार प्रदान किया गया तथा महाप्रबंधक स्तर पर 2 शील्ड प्रदान की गई एवं 5 अधिकारयों तथा 8 कर्मचारियों को रेल सप्ताह के दौरान  पुरस्कृत किया गया । मुख्य परियोजना प्रबंधक स्तर पर भी 24 कर्मचारियों कार् , 2015 में पुरस्कृत किया गया।
2017 तक पूर्ण हो जाएगा
मुख्य परियोजना प्रबंधक, रेल विद्युतीकरण आर.पी.शर्मा,  के अनुसार दिसम्बर, 2017 तक इटारसी-छिवकी खंड पर रेल विद्युतीकरण का कार्य पूर्ण कर लिया जाएगा। इसके साथ ही रेल गाड़ियां बिजली से चलने लगेगी।
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 भविष्य की रेल बिजली भी उत्पादन करेगी
  सोलर एनर्जी तैयार करने
 वाली एक कोच तैयार
जबलपुर। बढ़ती हुई बिजली की जरूरत को देखते हुए रेलवे स्वयं अपनी जरूरतों के लिए बिजली उत्पादन की दिशा में सोचने लगा है। भविष्य में कोच को और सुविधा सम्पन्न और बनाया जाता है तो निश्चित ही उर्जा की और जरूरत पड़ेगी। यदि सब कुछ ठीक ठाक चला तो निकट भविष्य में ट्रेन की बोगियों में ही बिजली उत्पादन होगा। रेलवे के इस स्वप्न को साकार और कोई नहंी अक्षत उर्जा स्त्रोत यानी सौर्य उर्जा एवं बिंड उर्जा ही करेगी।
इस दिशा में पश्चिम मध्य रेलवे ने पहल शुरू कर दी है। यहां एक कोच ऐसा तैयार करवाया गया है जिसकी छत पर सोलर पैनल लगाया गया है। दिन भर सूरज की किरणों से बिजली बनती रहती है। इसी तहर विंड एनर्जी के उपयोग का भी भविष्य में इस्तेमान हो सकता है। इसके लिए प्लेटफार्म की छतों तथा रेलवे अपनी भूमि पर विंड उर्जा उत्पादन की दिशा में काम कर सकता है।  पश्चिम मध्य रेलवे जोन के इंजीनियर इस दिशा में लगातार प्रयोग और शोध कर रहें है। कोटा रेल मंडल में बिन्ड उर्जा से बिजली उत्पादन के लिए गेट पर टावर लगाया गया है। यह टावर सिर्फ प्रयोग के तौर पर लगाया गया है।
भविष्य की बोगियों की मांग
 भविष्य में यदि यात्री की सुविधाओं को बढ़ावा दिया जाता है। ं वाइफाई, मिनी एसी, पेंटी कारों में हीटर तथा उर्जा के अन्य संसाधन बढ़ते है और बोगियों में वर्तमान डिमांड से अधिक बिजली की जरूरत पड़ती है तो प्रदूषण रहित विद्युत उत्पादन ट्रेनों में क्यों न किया जाए? इस पर रेलवे विचार कर रहा है।
छतों पर होगा उत्पादन
बोगियों की छतों पर सोलर प्लेट लगाई जा कसती है और उससे काफी उर्जा उत्पादन होगा। इसको प्रयोग के चलते पश्चिम मध्य रेलवे ने सोलर एनर्जी से लैस एक कोच तैयार भी कर लिया है।  इस बोगी का निर्माण वर्तमान तो पमरे ने बाहर से कराया है लेकिन पश्चिम मध्य रेलवे में ऐसे इंजीनियरों की फौजै
 मौजूद हैं जिन्हें साजो-सामान उपलब्ध हो जाएग तो वे सोलर प्लेट वाली बोगियों की लाइन लगा सकते है।
गर्मी में होगी उपयोगी
गर्मी में ट्रेन में नान एसी में यात्रा करने वाले यात्री को भीषण गर्मी में सफर करना पड़ता है। इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ साइंस ने रेलवे कोच की छतों पर सोलर सीट फिट करने की सलाह दी है जिससे कोच में गर्मी भी कम रहेगी और इसके साथ बोगी में बिजली की आपूर्ति भी होगी। इससे डीजन तथा बिजली की किफायत भी होगी। वर्तमान में एसी कोच में करीब 25 किलोवाट बिजली की खपत होती है जबकि नान एसी कोच में पंखे ओर लाइट के लिए करीब 15 किलोवाट बिजली की जरूरत पड़ती है।
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 बोगियो पर सोलर पैनल लगाने का कार्य फिलहाल एक बोगी में प्रयोग की तौर पर किया गया है। रेलवे की अन्य बोगियों पर सोलर पैनल लगाने का कोई विचार एवं प्रस्ताव नहीं है। भविष्य की संभावनाओं को तलाशते हुए सिर्फ रेलवे इंजीनियर्स प्रयोग कर रहे है। इसी तरह विंड एनर्जी पर भी रेलवे प्रयोग कर रहा है।
 पीयूष माथुर, सीपीआरओ, डब्ल्यूसीआर

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