Thursday, 11 February 2016

बिन्दु के फेर में जजा की जनगणना हुई गफलत


याचिकाएं तक लगी है हाईकोर्ट में ,  प्रदेश में जनजाति का अनुपात बिगड़ा,  अचानक बढ़ गई जनसंख्या, अपात्र हुए लाभांवित
जबलपुर। सामाजिक एवं आर्थिक जनगणना 2011 में अनुसूचित जनजाति की गणना में हुई गड़बड़ी के कारण प्रदेश में अनुसूचित जनजाति का अनुपात गड़बड़ा गया है। इतना ही नहीं अपात्र लोगों को अनुसूचित जनजाति का बेजा फायदा हुआ है। इस मामले को लेकर पिछले तीन साल से कई याचिकाएं भी हाईकोर्ट में लम्बित है। इस गड़बड़ी की वजह मात्र एक बिन्दी लगाने की गफलत के कारण हुई है।
सूत्रों के अनुसार सामाजिक एवं आर्थिक जनजाति गणना के तहत कुल 43 अनुसूचित जनजातियां शामिल है। इसके तहत जाति क्रमांक 28 में माझी अंग्रेजी में लिखा गया है लेकिन इसी सूची में जहां देवनागरी लिपी में माझी की जगह मांझी लिख दिया गया है।
अनुसूचित जनजाति की सूची में इस त्रुटि के चलते बड़ी संख्या में मांझी समुदाय के लोग भी जनजाति में शामिल कर लिए गए । मध्य प्रदेश में अनेक जिलों में सामाजिक जनगणना में अनुसूचित जाति में मांझी जाति जिसके तहर कश्यप, केवट, मल्लाह आदि आते हैं उन्हें जनजाति में  शामिल कर गणना कर ली गई जबकि कई जिलों में सामाजिक जनगणना में इन मांझी जाति को जनजाति में शामिल नहीं किया गया। परिणाम स्वरूप मांझी जाति के लोग भी खिन्न है। उनका मानना है कि जनजाति में मांझी को शामिल कर लिया गया है लेकिन अनेक जिलों में शामिल नहीं किया गया है।
याचिका में शासन ने स्वीकार
होशंगाबाद के अशोक कुश्राम ने इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में एक याचिका भी लगाई है। इसमें कहा गया कि होशंगाबाद में मांझी जाति के लोगों को भी अनुसूचित जनजाति में शामिल करके उन्हें केन्द्र शासन द्वारा घोषित जनजाति सूची के लोगों की तरह लाभ मिल रहा है। इस याचिका में शासन ने

स्वीकार किया है कि होशंगाबाद में मांझी समाज के लोग अनुसूचित जनजाति में शामिल है।
मोती कश्यप के मामले में
मामला सर्वोच्च न्यायालय
जबलपुर जिले में भी मांझी समाज की कुछ जातियों को जनजाति की सूची में शामिल कर लिया गया। बड़बारा विधायक मोती कश्यप के जनजाति में शामिल न होने के मामले को लेकर हाईकोर्ट में एक याचिका लगाकर उनके चुनाव को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट से मोती कश्यपर को राहत नहीं मिल पाई थी जिसको लेकर मामला सर्वोच्च न्यायालय में गया था। बहरहाल जबलपुर में मांझी जाति को जनजाति में नहंी शामिल किया गया है। इस तरह प्रदेश में एक ही जाति किसी जिलें में जनजाति में शामिल है तो किसी जिले में अनुसूचित जाति अथवा ओबीसी में शामिल है।
प्रदेश में अनुपात गड़बड़ाया
मांझी और माझी को हिन्दी और अग्रेजी में लिखने की त्रुटी का परिणाम यह हुआ है कि जनजाति को अनुपात बुरी तरह गणबड़ा गया है। अनुसूचित जनजाति की जनगणना भी प्रभावित हुई है। यदि आंकड़ों पर गौर किया जाए तो वर्ष 2001 की जनगणना में प्रदेश की कुल जनसंख्या में  20.3 प्रतिशत आदिवासी यानी अनुसूचित जनजाति के लोग मध्य प्रदेश में हैं जो कि देश में सर्वाधिक संख्या है। मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजाति के लोगों की संख्या गणना 2001 में 1 करोड़ 22 लाख 33 हजार 434 थी जबकि मांझी और माझी के फेर में  वर्ष 2011 की गणना में अनुसूचित जनजाति की संख्या में अचानक बढौतरी हो गई। जनजाति का प्रतिशत कुल आबादी में बढ़कर 21.3 प्रतिशत हो गया जबकि उसके अनुपात में सामान्य जाति, अनुसूचित जाति  तथा पिछड़ी जाति का कुल अनुपात तुलना में कम हो गया। वर्ष 2011 की गणना में अनुसूचित जनजाति की कुल संख्या 1 करोड़ 53 लाख 16 हजार 784 हो गई है। वर्ष 2011 की गणना के मुताबिक प्रदेश की कुल आबादी 7 करोड़ 26 लाख 26 हजार 809 है।
पल्ला झाड़ रहे है विभाग
सामाजिक एवं आर्थिक जनगणना विभाग इस गडबड़ी के लिए पल्ला झाड़ रहा है। विभाग का कहना है कि सामाजिक एवं आर्थिक गणना उनके द्वारा कराई गई है जबकि अनुसूचित जाति एवं जनजाति की गणना ग्रामीण विकास मंत्रालय ने करइशर्् है।

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