Thursday, 11 February 2016

छह बार गर्भपात होने के बाद सातवीं बार में बन पाई मां


* कभी मां न बन पाने की विडम्बना झेल रही महिला को मिला मातृत्व सुख

 महिलाओं में गर्भपात होना आम बात होती है, कभी स्वेच्छा तो कभी असावधानी गर्भपात का कारण बनता है,लेकिन हर गर्भपात का असर महिला के स्वास्थ्य दिलो दिमाग पर पड़ता है। ऐसी ही एक महिला मेरे पास आई, जिसके वैवाहिक जीवन के 8 वर्ष हो चुके थे तथा उसका 5 बार गर्भपात हो चुका था। वह बच्चा चाहती थी। उसका पूरी सावधानी पूर्वक इलाज कराया गया लेकिन गर्भधारण करने के बाद उसका फिर से गर्भपात हो गया। उसके एग की जांच कराए जाने पर दोष पाया गया। इस स्थिति में महिला पूर्ण स्वस्थ्य होने के बावजूद मां नहीं बन सकती थी। बाद में महिला को एग दान दिलवाने के बाद उसको मां बनने का असर मिला। यह कहना है स्त्रीरोग विशेषज्ञ एवं टेस्ट्यूब बेबी स्पेस्लिस्ट डॉ अर्चना श्रीवास्तव का।
अर्चना श्रीवास्तव ने बताया कि महिला की गर्भाशय सहित प्रजनन के लिए आवश्यक आर्गनपूर्ण विकसित एवं स्वस्थ्य थे लेकिन उसके एग में

अनुवांशिक दोष होने के कारण बच्चा महिला के गर्भ में पूर्ण विकसित कभी भी नहीं हो सकता था। इसके चलते महिला एवं उसके पति की काउंसलिंग कर उन्हें एग दान लेने की सलाह दी गई। काफी समझाने के बाद बाहर से लिए एग से महिला के पति के स्पर्म से फर्टिलाइज करने के बाद अंडे को गर्भ में महिला के गर्भ में स्थापित किया गया। सातवीं बार महिला का गर्भ पूरे नौ माह गर्भ में रहा और उसने एक स्वस्थ्य बच्चे को जन्म दिया।
 भारत में मान्यता प्राप्त
टेस्ट ट्यूब बेबी को भारत में कानूनी मान्यता प्राप्त है। महिला ने अपने गर्भ में इस बच्चे को पाला था, इससे उसे मातृत्व सुख की प्राप्ति हुई। वहीं उसके पति के अंश भी बच्चे में मौजूद है। यह जरूरत है कि  इस बच्चे में महिला के गुणसूत्र नहीं पहुंचे है। बहरहाल इस तरीके की समस्याओं से पीड़ित महिलाओं के लिए एग दान लेना बेहतर विकल्प बन कर उभरा है।
गर्भपात की समस्या
डॉ अर्चना श्रीवास्तव के अनुसार महिलाओं गर्भ धारण बाद औसम 10-15 प्रतिशत मामलो में गर्भपात हो जाता है। महिलाओ का यदि गर्भपात होता है तो उसे चिकित्सक से इलाज जरूरत करना चाहिए। हर तरह के गर्भपात रोकने का इलाज संभव है। महिलाओं का बार बार गर्भपात एवं हॉरमोंन्स असंतुलन मानसिक परेशानी का कारण बन जाता है।

स्वत: गर्भपात
डॉ अर्चना ने बताया कि अमूमन महिला के गर्भ में पनपने वाला बच्चा एंटीबाडिज यानी बाहरी तत्व होता है किन्तु प्रकृति ने महिलाओं को यह क्षमता प्रदान की है कि इस बाहरी तत्व को वे अपने शरीर में संरक्षित करती है लेकिन अनेक बाद शरीर इस बाहरी तत्व को गर्भपात के माध्यम से स्वत: बाहर कर देता  है। ऐसे कई मामले का मैने गर्भपात का सफल इलाज किया है। महिला को लगातार बच्चे जन्म के कुछ घंटों तक इलाज देना पड़ता है। अमूमन  गर्भावस्था के 24 हफ्तों के अन्दर शिशु का अंत गर्भ में होता है।
बार बार नहीं होता है
डॉ श्रीवास्तव ने बताया कि अक्सर एक बार भ्रूण नष्ट होने पर यह माना जाता है , महिला में स्वभावगत गर्भपात होने लगता है लेकिन यह भ्रांति है। किसी ने किसी गडबड़ी के कारण ही गर्भपात होता है। एक हिला की बच्चा दानी में दोष होने पर उसकी सर्जरी करके बच्चो दानी का स्वरूप और आकृति में परिवर्तन किया गया जिसके बाद उसका गर्भपात होना बंद हो गया।
आयु का फैक्टर
डॉ श्रीवास्तव के अनुसार अमूमन गर्भधारण के लिए  महिलाओं में 25-28  वर्ष की आयु उपयुक्त होती है। इस दौरान वह पूर्ण स्वस्थ्य होती है। इस दौरान 100 प्रतिशत भ्रण ठहरने की संभावनाएं रहती है। किन्तु आयु बढ़ने के साथ गर्भपात होने का जोखिम ज्यादा रहता है। ऐसेी स्थिति में चिकित्सक की सतत निगरानी जरूरी है। आज गर्भ में दो से अधिक भ्रण विकसित होने पर एक भू्रण को नष्ट भी किया जा सकता है। महिलाओं में 42 वर्ष के बाद गर्भधारण करना जोखिम ज्यादा रहता है।
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बाक्स ---------
गर्भपात के प्रमुख कारण
* महिला का शुगर पेसेंट होना
* थायराइट
* हामोंन्स असंतुलन
* बच्चा दानी छोटी अथवा विकृत होना
* गर्भाशय में ट्यूमर
* उच्च या निम्न रक्तचाप
* स्टिकी रक्त सिंड्रोम या एंटी फोस्फो लिपिड की समस्या
*  यौन संबंधी संक्रमण , बच्चा दानी में इंफैक्शन
* धू्रमपान, नशा एवं गलत दवाइयों का  सेवन
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बाक्स
 पौने चार किलो के बच्चे के कारण
 बच्चा दानी फैली तो फिर नहीं सिकुड़ी
* रक्त स्त्राव रोकने टांके लगाकर रिपेयर करना पड़ा
 डॉ अर्चना श्रीवास्तव के पास एक गर्भवती महिला को डिलीवरी के लिए लाया गया जिसकी आयु 28 वर्ष के उपर थी। सोनोग्राफी कराने पर पता

चला कि महिला के बच्चे का वजन सामान्स से अधिक लगभग पौने चार किलो का है। महिला की सामान्य डिलीवरी संभव ही नहीं थी। इस स्थिति में महिला एवं बच्चे दोनों की जान जाना निश्चित था। महिला का सीजरी डिलीवरी की गई। उसने पौने चार किलो वजनी बच्चे का जन्म दिया। बच्चे दानी से बच्चा निकालने के बाद अमूमन कुछ देरी में बच्चादानी पुरानी स्थिति में पहुंच जाती है। किन्तु एटानिक पीपीएच की समस्या उत्पन्न हो गई। महिला की बच्चादानी का स्वरूप वहीं था। ऐसे में लगातार रक्त स्त्राव के चलते महिला की मौत होने का खतरा निर्मत हो गया। महिला को चार बोतल खून चढ़ाना पड़ गया था। उसकी बच्चा दानी को बी लिंच कर रिमूव कर सिला गया तथा उसको उसके पुराने स्वरूप का बनाया गया। इससे जहां महिला का जीवन भी बच गया, वहीं बार में वह फिर से मां भी बनी। 

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