Wednesday, 21 September 2016

* मप्र राज्य अनुसंधान केन्द्र की नर्सरी में हुए तैयार










जबलपुर। मां नर्मदा के आंचल ग्वारीघाट में प्रदेश का एक मात्र पीला सेमल का पेड़Þ है। वानिकी से जुड़े वैज्ञानिकों की माने तो प्रदेश में एक मात्र ज्ञात पीले सेमल का पेड़ सिर्फ ग्वारीघाट में स्थित है। इस पेड़ की प्रजाति बढ़ाने के लिए मप्र राज्य अनुसंधान केन्द्र में इस पेड़ को लेकर गहन रिसर्च किया गया और अब इस पेड़ की मदद से नर्सरी में एक साल की मेहनत से एक हजार पेड़ तैयार कर लिए गए है।
सेमल जंगली फूलों का राजा भी माना जाता है। बसंत ऋतु के साथ ही जंगल में सेमल और प्लास के फूल  खिलने लगते है।  सेमल के पेड़ अमूमन लाल फूल खिलते है और जंगल में दूर से देखने पर लगता है कि पेड अंगारों से दहक रहा है।

राज्य वन अनुसंधान केन्द्र को हाल ही के  वर्षाे में ज्ञात हुआ कि पीले फूलों वाला भी सेमल होता है और यह पेड़ नर्मदा नदी के किनारे स्थित है। वन अनुसंधान विभाग के वैज्ञानिकों ने पेड़ के बीज एवं ग्राफटिंग की मदद से पीले सेमल के पेड़ तैयार करना शुरू किए।  यह सुखद अनुभव अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिकों के लिए है उन्होंने एक पेड़ से हजार पौधे तैयार कर लिए है।
नर्सरी में तैयार है पौधे
बताया गया कि राज्य वन अनुसंधान केन्द्र की नर्सरी में अति दुर्लश्र पीले सेमल की प्रजाति के एक हजार पौधे तैयार कर लिए गए है। इनको लगातार निगरानी में रखा गया है।

डुमना नेचर पार्क में रोपण
राज्य वन अनुसंधान केन्द्र द्वारा अपने यहां तैयार किए गए पीले सेमल के पेड़ों को डुमना नेचर पार्क में रोपित किया जाएगा। इसके अतिरिक्त कुछ पेड़ राज्य वन अनुसंधान केन्द्र में लगाए जाएगे। वैज्ञानिकों का दावा है कि इसकी मदद से जल्द ही प्रदेश में पीले सेमल की प्रजाति अस्तित्च में आएगी

पीला सेमल कैसे हुआ
वैज्ञानिकों की माने तो मेमल के पेड़ में अमूमन लाल फूल ही होते है। अब तक मध्य प्रदेश सहित देश में कहीं भी पीले सेमल के फूल का पता नहीं चला है। वैज्ञानिकों का कहना है कि हजारों साल में जैनिटिक बदलाव होते है जिसको म्यूटन कहा जाता है जिससे नई प्रजाति का जन्म होता है। ऐसा ही पीले सेमल का जन्म हुआ है ये वैज्ञानिक मान कर चल रहे है।

 लाल सेमल से हुई ग्राफिंग
वैज्ञानिकों ने जहां बीज की मदद से पेड़ तैयार किए है। वहीं उनका मानना है बीज से मुश्किल में ये पेड़ तैयार होते है अत: लाल सेमल से ग्राफ्टिंग कर पीले सेमल के पेड़ तौर किए है और ये पीले फूल ही देंगे।
 सेमल की पहचान
सेमल वृक्ष  जंगल और उसके आसपास कुदरती तौर पर होता है। इस पेड़ के फूल पर पाँच पंखुड़ियां होती है और यह लाल रंग का होता है। सामान्य फूलों से बड़े आकार का होता है।  फूल के बाद सेमल या सेमर के फल होते है तथा इस फल में रूई नुमा फाइवर होते है सेमल की रूई बेहद मुलायम और सफेद रंगे की होती है। इसका बॉटनिकल नेम  ' बामवेक्स सेइबा ' है, जबकि सामान्य रूप से इसे  ' कॉटन ट्री  के नाम से जाना जाता है। सेमल की पत्तियों जबदस्त छांव देने वाली होती है। होली के पहले यानी बसंत ऋतु के पहले पलास के साथ ही सेमल भी फूलते है। सेमल वृक्ष का औषधीय महत्व भी है।


वर्जन
पीला सेमल का पेड़ अपने आप में दुर्लभ है। हम लोगों की जानकारी के अनुसार अब तक पीला सेमल का पेड़ और कहीं नहीं पाया गया है। नर्सरी में इसके 1000 पौधे तैयार किए है।
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 20 करोड़ साल पुराने लिविंग फॉसिल्स प्लांट को बचाने कवायद
* दुनिया में उथल पुथल में बच गए पेड़ है मप्र में ..!

कान्हा और पचमढ़ी मे मिले, हुई पहचान, अब तैयार हो रहे अनेक



दीपक परोहा

जबलपुर। करीब 20 करोड़ साल पुराने पेड़ मध्य प्रदेश के जंगल में मौजूद है। लीविंग फॉसिल्स के रूप में पहचाने गए इन पेड़ों का बमुश्किल संरक्षण किया जा रहा है। जब कभी धरती में डायनासोर का एकछत्र राज हुआ करता था, उस पीरियड़ के भी पेड़ अब भी हमारे यहां मौजूद है और उन पेड़ों को संरक्षित करने के साथ उसकी प्रजाति बढ़ाने का काम राज्यवन अनुसंधान केन्द्र में चल रहा है।
 वैज्ञानिकों का कहना है कि  धरती में 20 करोड़ साल पहले अपार जैविक विविधता मौजूद थी ,प्रचुर उर्वक शक्ति वाली धरती में करोड़ साल पहले महा विनाश लीला हुई। वैज्ञानिकों का मत है कि विशाल उल्का पिंड और धरती में   सुपर वाल्कैनो यानी महा ज्वालामुखी फटे, धरती में जबदस्त उथल पुथल मची,  जिससे समूची पृथ्वी से 90 प्रतिशत से अधिक वनस्पति एवं जीव-जन्तु नष्ट हो गए। इस विनाश में विशालकाय डायनासोर तक विलुप्त हो गए लेकिन इस विनाशलीला के बाद भी कुछ पेड़ पौधे एवं जीवजन्तु धरती में बचे रह गए। लिविंग फॉसिल उन्हीं पेड़ों में एक है।
कान्हा -पचमढ़ी में मिले पेड़
ऐसी ही कुछ वनस्पति को कान्हा और पचमढ़ी में वन अनुसंधान के वैज्ञानिकों ने खोजा है। उनकी पहचान भी

की गई है और इन वनस्पति को जूरासिक पीरियड की माना गया है।  कान्हा में मिले पेड़ जिसे लिविंग फॉसिल्स (जिंदा जीवाश्म) का नाम दिया गया है। इस पेड़ को आदिवासी अपनी भाषा में कल्ला के पेड़ के रूप में जानते है।
वर्जन
लिविंग फॉसिल्स के पेड़ से राज्य वन अनुसंधान केन्द्र में पौधे तैयार किए गए है जिनको रोपणी कान्हा एवं पचमढ़ी में की गई है। वहीं अनुसंधान केन्द्र स्वयं के परिक्षेत्र में पेड़ों को लगाए हुए है।
बड़ी मुश्किल से हुए तैयार
लिविंग फॉसिल्स पर अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि काफी मुश्किल और कई प्रयास के बाद इन पेड़ के पौधे तैयार होते है लेकिन उनको तैयार करने में सफलता मिल चुकी है।

वर्जन
नर्सरी में तैयार किए गए युगो पुराने पेड़ दुर्लभ प्रजाति के है जिसको संरक्षित किया गया है और उसकी नस्ल आगे बढ़ाने प्रयास किए जा रहे है।

डॉ. उदय होमकर
 वैज्ञानिक, राज्यवन अनुसंधान केन्द्र
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 यूकेलिप्टस के क्लोन किसानों का बदलेंगे जीवन

 * सूखे और बंजर जमीन में हरियाली ला रहे क्लोन

* राज्य वन अनुसंधान केन्द्र में क्लोनिंग से तैयार की गई नर्सरी

जबलपुर। राज्य वन अनुसंधान केन्द्र जबलपुर में यूक्लिप्टिस के क्लोनिग कर प्लांट तैयार किए गए है। क्लोन प्लांट की पौधे किसानों की किस्तम बदलने वाले साबित हो सकते है। प्लांट चार सालों में तैयार हो जाएगा और उसको काट कर किसान अच्छी आय अर्जित कर सकते है। वन विभाग सहित अन्य सरकारी एजेंसियां भले ही यूक्लिप्टिस की प्लांटेशन करने से बच रही है लेकिन किसानों के लिए बेहद फायदे का पेड़ साबित हो रहा है। इससे जल्द कोई भी पेड़ तैयार नहीं होता है।
उल्लेखनीय है कि यूक्लिप्टिस यानी नीलगिरी का पेड़ जहां पर्यावरण के लिए बेहद उपयोगी साबित होता है, दूसरी तरफ इस पर होने वाले लगातार अनुसंधान के चलते कई वैज्ञानिक पर्यावरण के लिए खतरा मानते है। यूक्लिप्टिस पेड़ भूमिगत पानी को जिसे तेजी से खीचता है, उसके कारण इसे घातक भी माना जाता है, दूसरी तरफ

 कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यूक्लिप्टिस की पत्तियों से पानी उत्सर्जन प्रक्रिया बेहद मंद है और पानी पेड़ की जड़ों में संचित रहता है और पर्यावरण के लिए बेहद उपयुक्त है।
बहरहाल यूक्लिप्टिस इलाके की खोई हुई हरियाली वापस लाने में नम्बर वन है। इसके चलते इस पर राज्य वन अनुसंधान में बेहद तेजी से अनुसंधान और इसकी नर्सरी तैयार करने का काम चल रहा है और प्रतिवर्ष लाखों प्लांट यहां से बिक रहे है।
 क्लोनिंग की जा रही
यूक्लिप्टिस के प्लांट की सैकड़ा प्रजातियां पाई जाती है। इसके पेड़ 300 फुट तक उंचे होते है लेकिन इनमें से बहुत से पेड़ पर्यावरण के लिए घातक और बेहद उंचाई वाले और तैयार होने में वर्षो लगने से फायदे मंद नहंी है। किसानों के फायदे के लिए  लाखों पेड़ में एक आदर्श पेड़ को तलाश कर उसके टिशू कल्चर के तहत क्लोन प्लांट तैयार किए जाते है। ये क्लोन प्लांट सभी आपस में हूबबू और मदर प्लांट की तरह होते है। अनुसंधान केन्द्र में जो प्लांट तैयार किए गए उसकी सबसे बड़ी खासियत है कि चार साल में 10-12 मीटर उंचे हो जाते है और बिलकुल सीधे होते है। इसकी मोटाई 20 से 30 सेमी तक हो जाती है। बिल्लियों , माचिस उद्योग, कागज उद्योग , दवाई उद्योग में प्लांट की जरूरत बनी हुई है। किसानों के लिए नगद उपज बन गई है।
यहां हो रहे प्लांटेशन
बताया गया कि रीवा, सतना, सीधी, सिंगरौली, दमोह, कटनी, जबलपुर , होशंगाबाद, छिंदवाड़ा, सिवनी, ग्वालियर, सहित अनेक जिलों में किसान यूक्लिप्टिस का उत्पादन कर रहे है।
वर्जन
 वन-वानिकी के क्षेत्र में सागौन , बांस आदि की तुलना में यूक्लिप्टिस का पेड़ लगाना बेहद सरल और फायदे मंद उपज है। अनुसंधान केन्द्र में प्लांट को लेकर गहन अनुसंधान किए गए है लेकिन प्लांट के साथ जियोलाजिकल अनुसंधान नहीं किया जा रहा है। प्लांट पर्यावरण एवं वानकी के लिए बेहद फायदे मंद है।
डॉ. सचिन दीक्षित
 अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिक
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 भूमिहीन किसानों की संख्या प्रदेश में बेहिसाब
जबलपुर। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कृषि को लाभ का धंधा बनाना चाहते है लेकिन यहां के अन्नदाताओं का इस भीषण सूखे और कर्ज ने भूखे मरने की नौबत आ चुकी है। जिन किसानों के पास आधा पौन एकड़ से जमीनें हैं वे अपनी जमीन बेच कर भूमिहीन बनने के रास्ते पर चल पड़े है। यूं भी  मध्य प्रदेश मे वैसे ही भूमिहीन किसानों यानी खेतिहर मजदूर की फौज बहुत बड़ी है राष्ट्रीय सामाजिक और आर्थिक जनगणना 2011 के आंकड़ों से जाहिर है कि बिहार के बाद मध्य प्रदेश में भूमि हीन किसानों की संख्या सर्वाधिक है।
 मध्यप्रदेश में जहां उद्यौग को बढ़ावा देने की नीति पर सरकार लगातार काम कर रही है और नए नए उद्योग एवं पावर प्लॉट के लिए जमीन का अधिगृहण हो रहा है, उसके साथ ही किसान भूमिहीन होते जा रहे है। भूमि अधिकगृहण

बिल 2013 में भले ही किसानों को बाजार मूल्य की चारगुना कीमत मिलेगी लेकिन बड़ी कीमत यह होगी कि सदियों से जो अपनी जमीन में खेती करता रहा है वह अपनी जमीन से वंचित होने की कीमत चुकाएगा और अपने परिवार को भूमिहीन होने की सर्टिफिकेट देगा।

39 प्रतिशत भूमिहीन किसान

लोकसभा में ग्रामीण विकास मंत्री द्वारा सामाजिक-आर्थिक और जाति अधारित जनगणना 2011 के हवाले से जो जवाब प्रस्तुत किए थे उसके मुताबिक मध्य प्रदेश में भूमिहीन परिवारों की प्रतिशत 38.34 प्रतिशत है। सर्वाधिक भूमिहीन  किसान  मजदूर 46.78 प्रतिशत बिहार में  है और देश में तीसरे नम्बर पर आंध्रप्रदेश है जहां इनका प्रतिशत 36.49 है। वहीं सामाजिक आर्थिक एवं जातिगत जनगणना के मुताबिक मध्य प्रदेश में साक्षर लोगों की संख्या काफी है याने पढ़े लिखे भूमिहीन यहां मौजूद है।

नक्सली प्रभावित
जानकारों की माने तो जहां बिहार में भूमिहार और भूमिहीन के बीच संघर्ष की समस्या रही है। वहीं मध्य प्रदेश एवं आंध्र प्रदेश नक्सली समस्याओं से प्रभावित है। भूमिहीन लोगों में बहुत बड़ी संख्या आदिवासियों की होती जा रही है। जहां आदिवासी भूमि संरक्षण के नियम मध्य प्रदेश में है इसके बावजूद यहां आदिवासियों की जमीन हड़पने माफिया सक्रिय है।
किसानों से छिन रही जमीनें
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार देश में 62 प्रतिशत किसानों के पास अब एक हेक्टेयर से कम जमीन बची  है। इतनी कम जमीन में एक परिवार का गुजरा संभव नहंी है जाहिर तौर पर उन्हें खेतिहर मजदूर बनना पड़ रहा है और आकाल जैसी विषम परिस्थिति में वह भूमिहीन होते जा रहे है।  औद्योगिक विकास के नाम पर प्रदेश में भूमि अधिगृहण में तेजी आई है।

केस -
इमलिया जबलपुर में करीब एक दर्जन किसानों की जमीनें जबलपुर के एक उद्यौगपति एवं आरएसएस से जुड़े एक नेता ने स्टील प्लांट के लिए दी गई। इस परिवारों को न नौकरी मिली और न ही मुआवजा दिया गया। उनकी जमीन अधिगृहण कर ली गई। मामला हाईकोर्ट में पहुंचा तो समझौता कर उनको मुआवजा दिया गया।
केस-2
नरसिंहपुर में रिलायंन्स समूह द्वारा लगाए जा रहे पावर प्लांट के लिए व्यापक पैमाने में ंभूमि अधिगृहण की गई और अब

मुआवजा के लिए किसान कोर्ट कचहरी के चक्कर लगा रहे है।

केस-3
 जबलपुर-नागपुर नेशनल हाइवे को चौड़ा करने के लिए हजारों किसानों की शासन ने जमीन अधिगृहण की है और सौ से अधिक किसान  मुआवजा वितरण या बदले में जमीन आवंटन के लिए भटक रहे है।

केस-4
जबलपुर में बरेला क्षेत्र में एक आदिवासी की 50 एकड़ जमीन औने-पौने दाम में शैक्षणिक संस्थान में खरीद ली। इस किसाने के पास अब चंद एकड़ जमीन बची है। आदिवासियों की पिछले 5 साल में 5 हजार  एकड़ से अधिक जमीन जबलपुर में खुर्दबुर्द की गई।
केस-5
सीलिंग एक्ट खत्म होने के बाद भी भूमिहीन हो गए जबलपुर के डेढ़ हजार से अधिक किसानों को सरकार ने जमीनें नहीं लौटाई। यह मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है।

वर्जन

प्रदेश में हजारों किसानों की जमीनें अधिगृहण कर उन्हें भूमिहीन बना दिया यगा है। जमीन े बदले जमीन नहीं दी जा रही है। वहीं भू माफिया लगातार किसानों की जमीन हड़प रहा है। कृषि भूमि कृषक ही खरीदे ऐसे कानून की मध्य प्रदेश में बेहद आवश्यकता है। प्रदेश में कृषि रकवा भी तेजी से कम होता जा रहा है।
पीजी नाजपांडे
नागरिक उपभोक्ता मंच


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अश्वगंधा युक्त दाने चुगने से मुर्गी के
अंडे का घटेगा कोलेस्ट्रोल लेबल

* पशुचिकित्सा विश्वविद्यालय में
     की गई रिसर्च, पौष्टिक दानों का जल्द होगा उत्पादन
 

जबलपुर। प्रोटीन की प्रचुर मात्रा और कई तरह के विटामिन की मौजूदगी के बावजूद हृदयरोगियों, शुगर पेसेंट तथा अन्य बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के लिए  अंडे का सेवन घातक  समझा जाता रहा है चूंकि अंडे में कोलेस्ट्रोल की मात्रा अधिक होती है लेकिन नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विश्व विद्यालय के वैज्ञानिकों ने अंडे में 20 प्रतिशत तक कोलेस्ट्रोल कम करने की विधि खोज निकाली है। उन्होंने मुर्गी को देने वाला ऐसा दाना तैयार किया है जिसके खाने से मुर्गी के अंडों में कोलेस्ट्रोल की मात्रा घट जाएगी। इस दाने को अश्वगंधा सहित कुछ अन्य हर्बल औषधीय मिलाकर तैयार किया गया है।
 पशुचिकित्सा विज्ञान विश्व विद्यालय ने इस तरह के दाने को विकसित करने के बाद उसका सफल प्रयोग भी मुर्गियों पर कर लिया है। उनका ये प्रयोग सफल हुआ है। यह देश

के लिए बड़ा प्रयोग है। नाना जी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान  विश्व विद्यालय  जबलपुर  के ट्रैक्नालॉजी सेंटर आगे की योजना पर कार्य कर रहा है। विश्व विद्यालय के डॉ.वीपी साहनी के मार्गदर्शन पर मुर्गी दाना के व्यापक उत्पादन की दिशा में कार्य चल रहा है।
औद्योगिक स्तर पर होगा उत्पादन
इस तकनीक के विकसित किए जाने से निकट भविष्य में मध्यप्रदेश सहित विश्व विद्यालय से जुडेÞ फार्मर  मुर्गीदाना उत्पादन में इस नई तकनीक का इस्तेमाल कर सकेंगे।  नई इजाद की गई तकनीक से मुर्गी दाना  बनाने का प्रशिक्षण देने के साथ फार्मूले को इस्तेमाल करने की इजात प्रदान की जाएगी। इससे औद्योगिक स्तर पर उत्पादन जल्द शुरू हो जाएगा।
क्या होगी दाने की खूबी
कृषि विश्व विद्यालय संचालनालय अनुसंधान केन्द्र के मुताबिक  मुर्गी के दाने में अब तक प्रोटीन एव कार्बोहाइडेÑड की मात्रा बढ़ाने पर ध्यान दिया जाता था  लेकिन अनुसंधान केन्द्र ने मर्गी के स्वास्थ्यवर्धक दाना बनाने पर जोर दिया गया है जिससे मुर्गी एवं उसके अंडे के सेवन से व्यक्ति को औषधीय लाभ भी मिल सके।  इस दिशा में मुर्गीदाना में  अश्वगंधा तथा कलौजी जैसी हरर्बल औषधीय के मिश्रण मिलाकर मुर्गीदाना तैयार किया गया है। इस दाना को खिलाने के बाद जब मुर्गी के अंडे की जांच की गई तो पाया गया कि अंडे  में पहले की तुलना में 20 प्रतिशत घातक कोलेस्ट्रोल कम हो गया है। इस तकनीक को पेटेंट कराने की दिशा में  कार्य किया जा रहा है।  सूत्रों की माने तो इस तरह के दाना खाने वाले मुर्गी के मीट की गुणवत्ता में इजाफा हुआ है, किन्तु यह दावा विश्व विद्यालय के वैज्ञानिक अधिकृत रूप से नहीं कर रहे है।

वर्जन
मुर्गी के दाना में  औषधीय गुण विकसित किया गया है जिससे मुर्गी के अंडे से कोलेस्ट्रोल की मात्रा कम हुई है। विश्व विद्यालय का प्रयास है कि जल्द ही मुर्गी के दानों का औद्योगिक उत्पादन प्रारंभ हो जाए जिससे पोल्ट्री फार्मर इस इस्तेमाल कर आम लोगों  तक  स्वास्थ्य वर्धक अंडे पहुंचा सके।
डॉ.प्रयाग दत्तजुयाल
 कुलपति, पशु विज्ञान विवि जबलपुर
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देश भर में सर्वाधिक बालाएं बंधक बनाई जा रही मप्र से
* कहीं घरेलू नौकरानी बनाया को कहीं देह व्यापार में उतारा , कई बार भी बेंचा गया

जबलपुर। लोकसभा में  राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ो का हवाला पेश किया गया जिससे जाहिर होता है कि देश भर में सर्वाधिक बालाएं मध्य प्रदेश की ही बंधक बनाई जा रही है। मध्य प्रदेश के पिछले गरीब और आदिवासी जिलों से इन नाबालिगों को घरेलू काम अथवा अन्य किसी तरह बहला फुसला का बगवा कर लिया जाता है। इसके बाद उन्हें देश के विभिन्न हिस्सों में बेंच दिया जाता है। ये नाबालिग कहीं बंधुआ मजदूर की तरह घरेलू नौकरानी बनी रहती है तो कहीं इनको देह व्यापार में उतार दिया जाता है।
मध्य प्रदेश की नाबालिगों के व्यापार की लगातार बड़ी घटनाएं प्रकाश में आती रही है। इसके साथ ही प्रदेश में मानव तस्करी रोकने अधिकांश जिलों में सेल बनाई गई लेकिन इसके बावजूद अपराधों में कर्मी नहंी आई है।
नए कानून से मामला उजागर
सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद नागालिग के गुमने के कारण पुलिस को मजबूरी में अपहरण का मामला दर्ज करना पड़ रहा है जिससे मामले कीजांच पड़ताल में गंभीरता आई है लेकिन इसके पूर्व नागालिगों के गुमने पर सिफ गुमशुदगी थाने में दर्ज होती रही है। जहां तक नाबालिगों के गुमने पर अपहरण और मानव तस्करी  के मामले सामने आए है जबकि मध्य प्रदेश से सैकड़ों की संख्या में बालिग लड़कियों को गायब किया जा रहा है और विभिन्न थानों में  सैकड़ों गुमशुदगी के मामले दर्ज है और उनपर गंभीरता से पड़ताल भी नहीं हो रही है।
खुफिया तंत्र फेल
उल्लेखनीय है मंडला, डिंडौरी, सिवनी, बालाघाट,छिंदवाड़ा, कटनी, जबलपुर  उमरिया, शहडोल, सीधी, सिंगरौला, रीवा, दमोह,अनूपपुर सहित मालवांचल से भी  जिलों से लगातार नाबालिग लड़कियां एवं वयस्क लड़कियां गायब हो रही है। मध्य प्रदेश में दर्जनों गिरोह लड़कियों की तस्करी में जुड़े है लेकिन पुलिस के खुफियातंत्र को कोई जानकारी नहीं है। जब कभी कोई लड़की बरामद होती है तो पुलिस के सामने गिरोह की जानकारी सामने आती है लेकिन तब तक अपराधी गायब भी हो जाते है। महाकौशल, विन्ध्यांचल तथा बुन्देलखंड क्षेत्र में लड़कियों को प्रेम जाल में फंसाकर , तथा गरीब लड़कियों को अच्छी नौकरी दिलाने का झांसा देकर उन्हें दक्षिण भारत तथा उत्तरांचल व उत्तर भारत में बेंचा जा रहा है। इसके अतिरिक्त हरियाण और राजस्थान जैसे क्षेत्र जहां लड़कियों का प्रतिशत कम हैं, वहां भी लड़कियों को धडल्ले से बिक्री की जा रही है। जबलपुर शहर में ही एक महिला डॉक्टर ने एक नाबालिग लड़की को अपने घर में घरेलू नौकरी बनाकर बंधक बनाकर रखे हुए थे। इस मामले ने चाइल्स केयर ने बालिका को मुक्त कराया।

147 नाबालिगों की तस्करी
 लोक सभा में मानव तस्करी को लेकर पूछे गए प्रश्न के जवाब में स्वीकार किया गया कि पूरे देश से नाबालिग लड़कियों के गायब होने की घटनाएं हो रही , इसमें मध्य प्रदेश नम्बर वन पर है। मध्य प्रदेश में एक साल में 60 लड़कियां ऐसे बरामद हुई जिनको मानवतस्करी का शिकार बनाया गया था। वहीं उसी वर्ष मध्य प्रदेश सहित देश के प्रमुख नौ राज्यों से 147 नाबालिग लड़कियों की तस्करी के मामले हुए है, जिसमें लड़कियों को बंधन मुक्त कराया गया।
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बालाओं की तस्करी के देश में मामले
राज्य वर्ष 2015 वर्ष 2016
असम ------------ 14
छग     22               14
गुजरात -                         09
हरियाण -                      01
झारखंड  29                 -
मप्र          14 60
यूपी         ---- 01
प.बंगाल 12 06
दिल्ली 06 42
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प्रमुख केस

केस-1 -छिंदवाड़ा में गल्स हॉस्टल में पढ़ने वाली एक बाला को कॉल सेंटर में नौकरी दिलाने का झांसा देकर एक युवक नागपुर ले गया तथा वहां लड़कियों की खरीदफरोख्त करने वाले गिरोह को बेच दिया। कुछ दिनों बाद पूना पुलिस ने एक देह व्यापार के अड़्डे
छापा मारा तो वहां उक्त लड़की मिली जिसने पुलिस एवं मजिस्ट्रेट का आपबीती सुनाई तो लड़की को एक एनजीओ के माध्यम से उसके घर पहुंचाया गया। उसपर देह व्यापार का मामला भी पूना पुलिस ने दर्ज नहंी किया। लड़की के अपहरण एवं  मानवतस्करी का मामला दर्ज नहंी हुआ लेकिन इस खबर के संज्ञान में आने के बाद पुलिस ने खानापूर्ति करते हुए मामला दर्ज किया लेकिन आरोपी का कोई सुराग नहंी लगा।
केस-2
सिवनी के कुरई थाना क्षेत्र की एक नाबालिग लड़की को प्रेम में फंसाने के बाद राजस्थान में बेच दिया गया। लड़की को खरीददार राजस्थान ले गया तथा वहां उसका दैहिक शोषण करता रहा। लड़की को दोबार बेचने की योजना चल रही थी तभी किसी तरह बाला भागकर आ गई। बाद में पुलिस ने लड़की खरीदने वाले युवक को गिरफ्तार कर लिया। उल्लेखनीय है कि इस तरह के दर्जनों मामले अब तक प्रकाश में आ चुके  है। 

मस्तिष्क की गहराई से हटाया गया नसों को गुच्छा



जिसे पॉइजन का केस समझा जा
 रहा था वह न्यूरो प्राब्लम निकला

छतरपुर के 15 वर्षीय राजेश लोधी ( काल्पनिक नाम ) ने दो साल से अधिक समय तर भारी शारीरिक एवं मानसिक वेदना का सामना किया। इस छात्र द्वारा अचानक असामान्य व्यवहार किए जाने पर घर वालों ने पहले यही समझा कि वह बेवजह की ड्रामेबाजी करता है। किन्तु इसके इस व्यवहार में कमी नहंी आई, कुछ समय उपरांत स्कूल में भी ऐसी ही हरकतें होने लगी। उसके शिक्षक और सहपाठी उलाहना देने लगे। घर परिवार वालों ने समझा की भूत-प्रेत लग गए है। बाबा -गुनिया के चक्कर लगाए गए ो लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। पागल खाने में भी इलाज कराया गया किन्तु छात्र की बीमारी कोई नहंी पकड़ पाया। छात्र कभी- कभी चक्कर खाकर गिर जाता था लेकिन कुछ देर बाद  ठीक  हो जाता है। उसकी मिर्गी भी नहंी थी। उसके इस तरह के व्यवहार के कारण उसे काफी कुछ सहना पड़ा।  लेकिन एक दिन ऐसा भी आया कि वह बेहोश होकर गिर गया, इसके बाद उसको उल्टियां होने लगी। सभी ने समझा की शायद अपनी मानसिक परेशानी के कारण जहर खा लिया है। उसका इलाज शुरू हुआ। जबलपुर जहर के सेवन के इलाज के लिए भेजा गया और उसकी असली बीमारी पकड़ ली गई । मस्तिष्क  के अंदरूनी हिस्सों  में नसों  के गुच्छे को आपरेशन कर निकाला गया और अब 4 माह हो गए है राजेश सामान्य हो गया है।
इस चिकित्सकीय मामले के संबंध में न्यूरोसर्जन डॉ.हर्ष सक्सेना ने बताया कि छतरपुर  से  किशोर को जहर सेवन के   कारण नगर के एक अस्पताल में दाखिल कराया गया था।  मरीज के खून , पेशाब ओर उल्टी की  जांच कराई गई लेकिन उसके शरीर में किसी तहत का जहर नहीं पाया गया। जबलपुर में न्यू सर्जन के रूप में  मुझे दिखाया गया है। इस किशोर के परिवार वालों से उसकी समस्या और इलाज के संबंध में परिवार वालों से एक एक जानकारी ली गई।
गले में खाना अटकता था
परिवार वालों के अनुसार राजेश लोधी खाना खाते वक्त अचानक गले में खाना फंसा लेता था तथा लार आदि निकलने लगती थी। वह  तड़पने लगाता था। कुछ मिनट तक

उसका व्यवहार असामान्य एवं डरावना हो जाता था। इसके बाद वह सामान्य हो जाता था तथा फिर खाना खाने लगता था। डॉक्टरों ने चैक करने के बाद उसके गले एवं पेट की नलियों को सामान्य बताया था। इससे परिवार तथा डॉक्टर ने यहीं कहा कि शायद लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ड्रामा करता है।  उसकी इस ड्रामें बाजी के लिए परिवार वाले जमकर फटकार लगाते थे। बताया गया कि  उसकी समस्या धीरे धीरे बढ़ने लगी और स्कूल में भी वह यही हरकत करने लगा। वह मुंह से झाग निकालते हुए गिर जाया करता था।  स्कूल में भी उसको डॉट ही पड़ रही थी और उसकी बीमारी कोई समझ नहीं पा रहा था। उसको फिट भी नहंी आते थे।
झाडफूंक कराई गई
मुंह से झाग निकालने तथा चक्कर खाकर गिरने के कारण घर परिवार वालों ने उपरी हवा लगने की आशंका हुई। लेकिन । जादू -टोना से भी राजेश ठीक नहंी हुआ तो उसका पागल समझ लिया गया। परिवार वाले ग्वालियर स्थित मेंटल हॉस्पिटल में ले गए। जहां उसको मनोवैज्ञानिक व्याधि की आशंका पर इलाज दिया जाने लगा। सभी उसको मानसिक रोगी समझ लिए। उसको कई तरह की दवाइयां भी दी गई लेकिन इस सब के बावजूद उसकी स्थिति  में सुधार नहंी आया।

अचेत मिला तो मचा हडकम्प
करीब 5 माह पहले अचानक राजेश अपने घर में बेहोशी की हालत में मिला। उसके मुंह से लार  निकल रही थी तथा शरीर भी नीला पड़ा हुआ था। तत्काल डॉक्टरों को दिखाया गया। होश आने पर लगातार उल्टियां हो रही थी और शरीरिक लक्षण देखने के बाद डॉक्टरों ने जहर खाने का केस बताया। उसको इलाज के लिए जबलपुर लाया गया लेकिन शरीर में जहर नहंी पाया गया।
एमआरआई कराई गई
डॉ हर्ष सक्सेना ने किशोर की जांच पड़ताल के बाद एमआरआई कराई तो पाया कि ब्रेन के डीप हिस्से में रसौली याने नसों ं का गुच्छा मौजूद है। मतिष्क के इस हिस्से में नसों का गुच्छा होने के कारण मस्तिष्क के अंदरूनी हिस्सों में खून की सप्लाई करने वाली मुख्य नस  दब रही थी। जिससे  मस्तिष्क में खून की सप्लाई भी सामान्य नहीं हो पाती थी, वहीं  गुच्छे के कारण मस्तिष्क पर प्रतिकूल प्रभाव के कारण किशोर का व्यवहार असामान्य हो जाया करता था।
आपरेशन का निर्णय
एंजियोप्लास्टी की की तर्ज पर माइक्रो  सर्जरी करने का निर्णय लिया गया। करीब 6-7 घंटे  माइक्रो सर्जरी चली और मस्तिष्क के गहराई वाले पार्ट में पहुंच कर नसों के गुच्छों को अलग किया गया। ब्रेन की माइक्रो सर्जरी सफल हुई। इस मरीज का नसों का गुच्छा ब्रेन ओपन कर अलग  करना असंभव था लेकिन माइक्रो सर्जरी से आॅपरेशन सफल हो गया। इसका आॅपरेशन हुए चार माह का समय बीत चुका है और अब वह पूरी तरह सामान्य है।



दिल के अंदर अतिरिक्त चैम्बर एवं धमनी को हटाया गया

 दीपक परोहा
9424514521



दुनिया का  काडियो सर्जरी का अनूठा केस

देश के नामी कार्डियक सर्जन डॉ सुदीप चौधरी जिन्होंने भारत सहित दुनिया के कई देशों में जटिल हार्ट सर्जरी की है। उनके पास एक अनूठा केस आया जिसमें मरीज के हृदय में चार चैम्बर की जगह पांच चैम्बर बन गए  थे। इसी तहर एक धमनी भी अतिरिक्त थी। हृदय में अतिरिक्त चैम्बर और अतिरिक्त धमनी के कारण खून अधिक मात्रा में आने के कारण हृदय पर दबाव ज्यादा बना रहता था। इस कारण मरीज का वाल्व भी खराब हो गया था।
इस मरीज की जान बचाने के लिए वाल्व बदलने के साथ हृदय मे बने अतिरिक्त चैम्बर को खत्म करना था, वहंी अतिरिक्त धमनी थी जिससे हृदय के उपर का खून पहुंच रहा था उसको भी बंद करने की चुनौती थी। डॉ सुदीप चौधरी ने मेट्रो हॉस्पिटल में ओपन हार्ट सर्जरी कर चार घंटे में मरीज का हृदय का अतिरिक्त चैम्बर की दीवार निकाल दी। दो चैम्बरों को निकाल कर एक किया। इसके अतिरिक्त हृदय में  पहुंचने वाली अतिरिक्त धमनी को भी ब्लाक कर बंद किया गया।

दुनिया में अनूठा केस

डॉ.सुदीप चौधरी ने बताया कि अब तक मेडिकल जनरल में ऐसी बीमारी के कोई भी केस का उल्लेख नहीं है। दुनिया का यह पहला और अनोखा केस था। जबलपुर निवासी सतीश कोल के हृदय रोग से पीड़ित था। 20 वर्षीय सतीश कोल को गंभीर हालत में लाया गया। जांच में ज्ञात हुआ कि उसका वल्व खराब है। इसको बदलने की जरूर थी।
इस मरीज की जांच में चौकाने वाली जानकारी आई कि मरीज के दिल में चार चैम्बर के बजाए पांच चैम्बर बन गए है। एक चैम्बर वॉल अतिरिक्त थी। लेफ्ट वेन्टीक्युलर और ओरटा (महाधमनी ) के बीच वाल्व था लेकिन जन्म से हृदय की खराबी के कारण लेफट वेन्टीक्युलर और ओरटा के बीच से एक नया रास्ता बना गया था। इसमें हृदय में एक और चैम्बर बन गया था तथा उसमें धमनी से रक्त आता था। इसके कारण हृदय रक्त के दबाव से फूल जाता था। इससे कभी भी उसका हार्ट फेल होने की स्थिति बन जाती

चुनौती पूर्ण रहा आपरेशन
डॉ चौधरी ने बताया कि अब तक उन्होंने वाल्व बदलने , धमनी में ब्लाकेज खत्म, बायपास सर्जरी करने के कई केस किए  थे लेकिन हृदय में इस तरह के आॅपरेशन पहले कभी नहंी किया था। आॅपरेशन के दौरान हार्ट से चैम्बर की एक वॉल निकाली गई। इसके साथ ही निर्मित एक अतिरिक्त धमनी को भी बंद किया गया। इसके बाद मरीज का खराब वाल्व बदल दिया गया और अब मरीज की हालत में सुधार आ गया है।
मात्र एक साल जीवित रहता
 डॉ. चौधरी का कहना है कि यह मरीज अपने हृदय के जटिल रोग के कारण बमुश्किल एक साल और जीवित रहता। मरीज के ओरटा में भी एक छेद था जिसको भी बंद किया गया था। इस  आॅपरेशन के हो जाने से मरीज को नया जीवन मिला है। उल्लेखनीय है कि इसके पूर्व मरीज ने जब भी कहीं चैकप कराया गया तो उसको यही बताया गया था कि उसके हृदय में छेद है। दरअसल मरीज की धमनी में भी छेद था जिससे होकर वायपास धमनी निर्मित हो गई थी , उसको भी बंद किया गया। उल्लेखनीय है कि उक्त आॅपरेशन हाल ही में किया गया।
 डॉक्टर टॉक
 आम आदमी को खानपान के कारण हृदय रोग की समस्या आती है लेकिन बहुत से मामले में हृदय रोग जन्मजात भी होता है। इसके साथ ही वंशानुगत भी होता है। ऐसी स्थिति में हृदयरोग का निदान करना जरूरी है। कई हृदयरोगी ओपन हार्ट सर्जरी के नाम से  घबराते है और इलाज नहंी कराते है ।  आॅपनहार्ट सर्जरी से मरीज के जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती है।   

एक्सरे मशीन बांट रही कैंसर



 चिकित्सालयों में धड़ल्ले से उपयोग
 * पुरानी एक्सपायरी मशीनों का भी उपयोग
जबलपुर। एईआरबी के मापदंड को बिना पूरे करे निजी अस्पतालों एवं एक्सरे एवं सीटी स्केन क्लीनिकों में मशीने धड़ल्ले से रेडियेशन फैला रही है। पोर्टेबल एक्सरे मशीन तो बिन मांगे मरीजों को कैंसर का प्रसाद बांट रही है। अस्पतालों में एक्सपायरी डेट की अथवा पुरानी और बिगड़ी  पोर्टेबल मशीन को उपयोग हो रहा है।

 मध्य प्रदेश में हजारों की संख्या में एक्सरे मशीनें अस्पतालों में मौजूद है लेकिन इसमें से आधी भी एईआरबी द्वारा पंजीकृत नहंी है। एक्सरे मशीन उपलब्ध कराने वाली कंपनियां सांठगांठ कर अस्पतालों में लगातार मशीनें भरती जा रही है।
वापस लेने में  रूचि नहीं
सूत्रों की माने तो अस्पतालों में बिगड़ी और पुरानी एक्सरे मशीनें वापस लेने संबंधित कंपनी रूचि नहीं दिखाती है। दरअसल पुरानी कई कंपनियां तो अपना करोबार बंद कर चुकी है और एक्सरे मशीन अस्पताल के कबाड़ खाने से रेडियेश लगातार फेंक रही है। अलबत्ता अस्पतालों में अन्य इलेक्ट्रानिक्स उपकरण जरूर कंपनियां वापस ले रही है।
कैंसर का खतरा
 जानकारी के अनुसार एक्सरे तकनीशियन को को कितना रेडियेशन मिल चुका है। इसका हिसाब किताब नहीं रखा जाता है। दरअसल अन टैक् नीकल लोग को भी एक्सरे रूम में रखा जाता है। एक्सरे करने के दौरान तकनीशियन के लिए लेड एप्रेन होना चाहिए लेकिन इसका भी इस्तेमाल नहंी किया जाता है। यदि लेड एप्रेन है तो भी की अधिकता और जल्द से जल्द एक्सरे कर दूसरे मरीज को बुलाने की होड के कारण सावधानियों की अनदेखी कर्मचारी भी कर  रहे है।
कैसे होती है जांच
अस्पताल और क्लीनिक में होने वाले  रेडिएशन की जांच के लिए रेडिएशन मॉनीटर होना चािहए लेकिन अधिकांश क्लीनिक में ये उपकरण मौजूद नहंी होता है। उल्लेखनीय है कि खासतौर पर जिन अस्पतालों में कोबाल्ट मशीनें है वहां हर कर्मचारी के रेडियेशन का रिकार्ड  होना चाहिए। इन मशीनों की हर छह माह में सर्विसिंग होना चाहिए। लेकिन सर्विसिंग करने वाले इंजीनियरों के न पहुंचने के कारण सालों सर्विसिंग नहंी होती है और ये मशीन कितना रेडियेशन फैला रही है ,इसकी परख भी नहीं होती है।
एईआर बी में दर्ज नहंी
एक्सरे और  सीटी स्कैन मशाीन के लिए  परमाणु ऊर्जा नियामक परिषद (एईआरबी) के तहत पंजीकृत हैं। उनके मापदण्डों के अनुरूप क्लीनिक होना चाहिए। एक्सरे एवं सीट स्कैन मशीन जिस रूम में होना चाहिए उसकी दीवारें लेड कोडेड होना चाएिह जिससे विकिरण बाहर न जाए। किन्तु 35 प्रतिशत मशीने भी न तो पंजीकृत है ओर न ही मशीनों के लिए मापदंड के अनुरूप रूम बने है। यहां तक की जहां जगह मिलती है, वहंी यूनिट खुल जाती है।
 हाईकोर्ट के आदेश है
मालूम हो कि एक्सरे मशीन, कोबाल्ट मशीन, सीटी स्कैन मशीन आदि से आम आदमी की सुरक्षा के मद्देनजर दिल्ली हाईकोर्ट में एक फैसला भी दिया है जिसके तहत सभी राज्यों को भी विकिरण सुरक्षा प्राधिकरण गठित करने को कहा गया था लेकिन आज दिनांक तक ऐसा कोई प्राधिकरण नही बनाया है, अलबत्ता 4 जी मोबाइल टावर अलग से रेडियेशन तेजी से फैलाने लगे है। शहरों में बढ़ती ई वेस्ट कचरे से रेडियेशन का खतरा ओर बढ़ा हुआ है। फोरटेबल एक्सरे मशीने ऐसी आ गई है कि चिकित्सक अस्पताल के किसी भी कोई में सहजता से छिपा कर रख सकता है।
वर्जन
 एक्सरे क्लीनिक तथा सीटी स्कैन क्लीनिक द्वारा अपने कर्मचारियों के साथ ही आम आदमी के जीवन से भी खिलवाड़ किया जा रहा है। निर्धारित मापदण्ड का खुला उल्लंघन हो रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस मामले में सरकार एवं स्वास्थ्य विभाग भी निश्चिंत है। कैंसर के मामलों में हर साल बढ़ौतरी हो रही है।
पीजी नाजपांडे
 नगारिक उपभोक्ता मंच जबलपुर

हाथ, पैर और कुल्हे की चकनाचूर हुई हड्डिों को जोड़ने में लगे 7 घंटे

 हाथ, पैर और कुल्हे की चकनाचूर
  हुई हड्डिों को जोड़ने में लगे 7 घंटे  
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दातून तोड़ने नीम के पेड़ पर चढ़े सेवा निवृत फैक्टरी कर्मचारी के पेड़ से गिरने के कारण उनके हाथ, पैर तथा कुल्हे की हड्डियां बुरी तरह चकनाचूर हो गई। बड़ी उम्र में गिरने से आई चोट के कारण हड्डियों में मल्टी फ्रैक्चर आए थे। मरीज की टूटी हड्डियों को जोड़ने कई बार आॅपरेशन करने के बजाए एक बार में आॅपरेशन कर सभी हड्डियां जोड़ी गई। इस आॅपरेशन में 7 घंटे का लम्बा समय लगा। हड्डियां जोड़ने के लिए  स्टील प्लेट्स, स्क्रू, नट सहित आधा दर्जन से अधिक कलपुर्जों का इस्तेमाल किया गया। यह आॅपरेशन जबलपुर हॉस्पिटल में नगर के अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ. अभय श्रीवास्तव ने किया।
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 डॉ. अभय श्रीवास्तव ने बताया कि 50 साल से अधिक उम्र के व्यक्ति को गिरने और चोट आने से बचने और सावधानी की जरूरत है। सार्इंबाबा कॉलोनी निवासी सेवानिवृत कर्मी विमल सिंह दातून तोड़ते वक्त नीम के पेड़ से गिर गए थे। वे बहुत अधिक उंचाई से नहीं गिरे थे लेकिन उनके कूल्हे, हाथ तथा पैर की हड्डियां में मल्टी फै्रक्चर आए थे। कूल्हा, जांघ तथा पैर की हड्यिां 7 टुकड़ों में बंट गई थी। इसके अलावे छोटे फ्रैक्चर अनेक हुए थे।
 आॅपरेशन चुनौती पूर्ण
 मरीज का आॅपरेशन एक साथ करने का निर्णय लिया गया। इस आॅपरेशन  हड्डियों को अपनी जगह बैठाने के बाद उन्हें स्कू, प्लेट्स एवं रॉड डालकर कसने में काफी समय लगना था। इसके ऐसी रणनीत तैयार की

गई कि बेहद तेजगति से काम किया गया, फिर भी 7 घंटे लग गए ।
 सफल रहा आॅपरेशन
आॅपरेशन के कुछ दिन बाद मरीज का एक्सरे लिया गया है। मरीज की हड्डियां सही बैठी है, वहीं जोड़े गए उपकरण (एंटी बॉडी) अपनी जगह पर फिक्स है।
फिजियो थैरेपी होगी
 आॅपरेशन के  तीन दिन बाद मरीज से हाथ- पैर चलवाए जाने लगे। बैडरेस्ट करते हुए मरीज को व्यायाम कराया गया। मरीज को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया है। फिजियोथैरेपी के बाद मरीज पहले की तरह चलने फिरने लगेगा।

 डॉक्टर टॉक
 वृद्धावस्था में फ्रैक्चर बेहद खतरनाक होता है। वृद्ध व्यक्ति की हड्डियों में लोच कम हो जाता है जिससे दुर्घटना में उसके बुरी तरह टुकड़े-टुकड़े होेने का खतरा अधिक रहता है। इसके साथ ही हड्डियां देरी से भी जुड़ती है। आॅपरेशन कर हड्डियों जोड़ा जाना ही बेहतर विकल्प होता है। मरीज को जल्द ही व्यायाम नहंीं कराना शुरू किया जाए तो उसको विकलांगता का खतरा रहता है। खासतौर पर चिकने टाइल्स बाथरूम में नहीं लगाए जाने चाहिए , अधिकांश वृद्धजन की हड्डियां बाथरूम में गिरने से टूटती है और महीनों उन्हें तकलीफ उठानी पड़ता है। अधेड़ महिलाओं में हड्डी के खोखलापन की शिकायत रहती है। इससे कई बार स्वत: फै्रक्चर हो जाते है अत: महिलाओं को 40 साल की उम्र के बाद अस्थिरोग विशेषज्ञ से दवाइयां एवं खान पान संबंधी सलाह लेनी चाहिए




डिंडौरी में अजूबा..रंग बदल रहे सांप

डिंडौरी में अजूबा..रंग बदल रहे सांप

    सर्प विशेषज्ञ मनीष कुलेश्रेष्ठ के अनुसार दृष्टिभ्रम
    * अंधविश्वास को बढ़ावा देना खतरना
जबलपुर। पड़ोसी जिला डिंडौरी के मेहंदवानी विकाासखंड के ग्राम भुरका में पिछले कई दिनों से एक पहाड़ी में सांपों का झुंड लग रहा है और इस सर्प के रंग बदल रहे है जिसके कारण बड़ी संख्या में लोग एकत्र हो रहे है और नागराज की पूजा अर्चना भी होने लगी है। प्रदेश में विख्यात सर्प विशेषज्ञ मनीष कुलश्रेष्ठ का कहना है सर्प गिरगिट की तरह रंग नहीं बदलते है यह पानी की नमी के कारण दृष्टिभ्रम उत्पन्न हो रहा है।
 प्राप्त जानकारी के अनुसार पहाड़ी में पिछले कई दिनों से सर्प का डेरा लग रहा है। इन सांपों का बार बार रंग भी बदल रहा है। और इसे दैवीय चमत्कार मानकर भजन कीर्तन तक शुरू हो गए है। नरियल प्रसाद  वालों की दुकानें सजने लगी हे।
 नाग नागिन के जोड़े
 क्षेत्र में सर्प के झुंड को लेकर जो चर्चाएं चल रही है उसके मुताबिक नाग नगिनों के यहां पर जोड़े नजर आ रहे है। वहीं जानकारों का कहना है कि सांप नाग प्रजाति के न होकर धामन है और वे जहरीले भी नहंी होते है।
पिछले दिनों लगातार बारिश के चलते अब धूप निकलने के कारण वे बिलों से बाहर आए है। उनकी बिलों में फफंूद तथा नमी बनी हुई है। इस सीजन में ये सर्प केचली छोड़ते है। सर्प के पास लोग नहंी जा रहे दूर से देखने के कारण नई केचली से सूर्य की किरणा परावर्तित होने के कारण रंग बदलती नजर आ रही है, जिसके कारण अंध विश्वास फैल गया है।
ीर्तन में भी जुट गए हैं।

 लखन ने देखा सबसे पहले
बताया गया कि झिरिया गांव निवासी लखन नामक युवक झिरिया में नहाने के लिए गया था तो उसने पहाड़ी चट्Þटान के आसपास सर्प को विचरण करते देखा था। वहीं उसने सर्प के शरीर पर चमक देखी तथा उनका रंग बदलते देखा। इसकी सूचना गांव में दी जिसके कारण लोगों की भीड़ लग गई।
 इलाके में खजाने की अपवाह
 उल्लेखनीय है कि डिंडौरी इलाका आदिवासी इलाका है यहां अंधविश्वास ज्यादा फैलता है। यहां लोग सर्पदंश का इलाज कराने के पहले झाड़फूंक करते है। सर्प के रंग बदलने और उसके चमकने को लेकर लोगों में जमीन के नीचे गड़ा धन होने की अपवाह भी तेजी से फैल गई है।
वर्जन
 सर्प रंग नहीं बदलते है,यह  सिर्फ दृष्टिभ्रम की घटना है। यहां सर्प की मौजूदगी बिल्कुल सामान्य है। वन विभाग को सर्प की सुरक्षा के लिए लोगों को यहां पहुंचने से रोकने की जररूत है। वहीं इस पहाड़ी का संरक्षण किया जाना चाहिए चूंकि यहां सर्प बड़ी संख्या में पाए जाते है।
मनीष कुलश्रेष्ठ
 सर्प विशेषज्ञ

डेंगू के पूरे देश में मौतों का तांडव, आंकड़ों का खेल

 डेंगू के पूरे देश में मौतों का तांडव, आंकड़ों का खेल
 

   मध्य प्रदेश सहित कई राज्यो में रोग
   निगरानी नेटवर्क फेल
जबलपुर। विश्व स्वास्थ्य संगठन हर वर्ष देश में डेंगू से होने वाली मौत को लेकर चिंता जाहिर कर चुका है। वहीं सितम्बर माह के प्रारंभ में भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय अंतर्गत संचालित नेशनल वैक्टर बोर्न डिसीज कंट्रोल प्रोग्राम (एनवीबीडीसीपी) के आंकड़े जाहिर कर रहे है कि रोग सूचना तंत्र एवं रोग निगरानी प्रणाली बेहद लचर है। एनबीडीसीपी के आंकड़ों की माने तो मध्य प्रदेश में डेंगू से 31 अगस्त तक सिर्फ एक मौत हुई है, जबकि मध्य प्रदेश में मौत का आंकड़ा एक दर्जन पर पहुंच चुका है।
 सूत्रों की माने तो एनवीबीडीसीपी के पास जो डेंगू के पॉजीविट केस की जानकारी पहुंच रही है, वे सरकारी लैब से पहुंच रही है। मध्य प्रदेश स्वास्थ्य मंत्रालय ने भले ही सभी पैथोलैब एवं निजी क्षेत्र हॉस्पिटलों को डेंगू के पॉजीटिव मामले आने पर सूचना संबंधी आदेश दिए है लेकिन इनकी जानकारी निजी अस्पताल भेज नहीं रही है और न ही होने वाली मौत को लेकर विस्तृत जानकारी एकत्र की जा रही है।
 जबलपुर में तीन मौंते
 जबलपुर में जहां पाटन में गत गुरूवार को पाटन की महिला रमा विश्वकर्मा की मौत मेडिकल कॉलेज अस्पताल में हुई थी लेकिन मेडिकल प्रबंधन का कहना है कि उनकी रिपोर्ट में महिला को डेंगू पॉजीटिव नहीं आया। इसी तरह मझगवां में एक बच्ची की मौत हुई थी जिसे डायरिया से मोत बताई गई। नगर के एक हॉस्पिटल में गत गुरूवार को सतना के

जैतवारा थाना के ग्राम बैरहना निवासी  देवकी पांडेय पति वृंदावन पांडेय की मौत हो गई। बाढ़ पीड़ित रहे सतना में इसके पूर्व पांच मौते हो चुकी है। इसी तरह शहडोल में दो मौते हो चुकी है, जिसे स्वास्थ्य अमला डेंगू नहीं मान रहा है। मंडला तथा डिंडौरी में भी डेंगू से तीन मौत होने की खबर है।

आंकड़ों में अंतर
 यदि डेंगू के मरीजों की बात की जाए तो मध्य प्रदेश में 500 से अधिक डेंग्ू पॉजीटिव मरीज मिल चुके है जबकि एनवीबीडीसीपी की रिपोर्ट के मुताबिक अगस्त माह अंत तक कुुल 354 पॉजीटिव मरीज मिले है जबकि यदि ये एनवीबीडीसीपी की रिपोर्ट पर भरोसा किस जाए तो आने वाले समय में डेंगू का स्वरूप भयावह होगा।
देश में 36 हजार डेंगू के मामले
Ñ
राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एनवीबीडीसीपी) के मुताबिक डेंगू से देश भर में 36,110 लोग प्रभावित हुए हैं और 70 जानें गई हैं। इनमें से अधिकतम 24 मौतें पश्चिम बंगाल में हुई हैं।  डेंगू के सर्वाधिक मामले  साथ पश्चिम बंगाल, ओड़िशा और केरल में डेंगू मेंदर्ज किए गए है।
बाक्स
 पिछले वर्ष की तुलना में अगस्त तक डेंगू
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राज्य  वर्ष 2015 वर्ष 2016
--- पॉजीटिव- मौत पॉजीटिव-मौत
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आंध 3319 2 980 -- 0
अरूणचल 1993 1 04 --0
असम 1076 1 1267 -02
विहार 1071 0 135 0
छग 384 1 170 0
गुजरात 5570 9 1321- 01
हिमाचल 19 1 2 --0
कर्नाटक 5077 9 4065 6
केरल 4075 25 5638 10
एमपी 2108 08 354 01
महाराष्ट 4936 2 2572 02
ओड़िसा 2450 2 6558 10
पंजाब 14128 18 882  -- 0
राजस्थान


Wednesday, 14 September 2016

नहरों के जाल बजाए अब पाइप लाइनें डालने पर विचार

 प्रदेश में अब  13 बड़े बांध नहीं बनेंगे




* बांध परियोजना के बजाए लिफ्टिंग होगा होगा पानी
* भूमिगत जल धाराओं पर कॉर्पोरेट की गिद्धनजर


जबलपुर। नर्मदा नदी मध्य प्रदेश की जीवन रेखा कही जाती रही है लेकिन अब इससे कहीं अधिक यह भी साबिह हो गया है मध्य प्रदेश के विभिन्न इलाकों की जीवन रेखा की भी जीवन दायी बन गई है। उज्जैन में सिंहस्थ में नर्मदा का जो कंचन जल मिला, और क्षिप्रा को नर्मदा का पानी मिला है लेकिन इसके बावजूद नर्मदा के पानी के दोहन के लिए बनने वाले 13 बड़े बांधों को बनाने का निर्णय बदला जा रहा है। बड़े बांध न बनाने के साथ ही अब नहरों का जाल भी प्रदेश में फैलाने का इरादा सरकार का नहीं है किन्तु नर्मदा के जल लिफ्टिंग के लिए बड़े बड़े पम्प हाउस तथा नहरों की जगह पाइप लाइन डालने की कार्ययोजना नर्मदाघाटी विकास विभाग कर रहा है।

उल्लेखनीय है कि क्षिप्रा नदी में जिस तरह से नर्मदा नदी का जल पहुंचाया गया है। इसके बाद से प्रदेश की अन्य नदियों तक नर्मदा नदी का जल पहुचाने की दिशा में तेजी से विचार चल रहा है। सब कुछ ठीक रहा तो नर्मदा नदी के पानी से प्रदेश की अन्य छोटी नदियों तक पानी पहुंचेगा तथा इन नदियों में छोटो छोटे स्टॉप डेम ओर पम्म हाउस की बदौलत पानी पाइप लाइनों से नहरों तक पहुंचेगा।
भूमि अधिग्रहण कानून
केन्द्र शासन द्वारा लाए गए भूमि अधिग्रहण कानून के बाद से नर्मदा घाटी विकास विभाग को अपने प्रोजेक्टों की समीक्षा करनी पड़ी। करीब 13 ऐसे बड़े बांध जिसमें सरकार को बड़ी मात्रा में भूमि अधिग्रहण करना पड़ेगा जबकि उससे काफी कम रकवे में सिंचाई होगी। भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर जहां अब किसानों को उनकी जमीन के बदले जमीन अथवा  उनकी जमीन का तीन गुना कीमत सरकार को देनी पड़ेगी। इसके चलते योजनाओं की कीमत चार से पांच गुना बढ़ रही है। सरकार के पास विस्थापितों होेने वालों को देने के लिए जमीन का टोटा है।
नहर का जाल भी समस्या
इन बांधों का पानी किसानों के खेत तथा लोगों तक पहुंच सके इसके लिए नहरों का जाल तैयार करना भी एक समस्या है। नहरों के साथ  नहरों के किनारे की जमीन भी खराब होती है। सरकार को नहरों के लिए जमीन अधिगृहण करना पड़ता है जिससे अब नहरों की लागत भी कई गुना बढ़ना तय हो गया। वहीं आने वाले 20 वर्ष में पानी की डिमांड भी दोगुनी के करीब पहुंचेगी। ऐसे में नहरों की जगह पाइप लाइन डालने का विकल्प  खोजा गया है जिससे जमीन और पानी दोनों की बर्बादी बचेगी।
हाईकोर्ट में चल रहे मामले
नर्मदा विस्थापित संघ तथा अन्य संस्थाओं ने दर्जनों प्रकरण बरगी बांध, इंदिरा सागर और सरदार सरोवर को लेकर हाईकोर्ट में लगा रखे है। विस्थापितों के मुआवजा के मामले अब भी उलझे पड़े है और सरकार भी भू अधिग्रहण कानून के चलते अब नर्मदा नदी और उसकी सहायक नदियों में बनने वाले बांधों में करीब 13 प्रोजेक्ट का रद्द करने जा रही है।
यहां नहीं बनेंगे कोई बांध
मंडला जिला में  प्रस्तावित 4 बांध, जबलपुर में अटारिया बांध , नरसिंहपुर में शक्कर नदी पर बांध, होशंगाबाद में तीन बांध अब नहीं बनेंगे। उल्लेखनीय है कि उक्त क्षेत्रों में जहां शानदार जंगल और उपजाऊ जमीन बांध के कारण बर्बाद जा रही थी।

पम्प हाउस बनेंगे
नर्मदा और उसकी सहायक नदियों में कुण्ड तथा स्टॉप डेम आदि के माध्यम से पानी पंपिंग कर उसको पाइप लाइन के द्वारा अब किसानों के खेतों तथा दूर दराज  में पहुंचाने पर कार्य योजना तैयार की जा रही है। बांध से कहीं अधिक मात्रा में पानी लिफ्ट किया जाएगा किन्तु इस योजना में मुख्य समस्या गर्मियों के सीजन में नदी में पानी कम होने पर आएगी लेकिन इसके लिए  पानी स्टोर करने की योजना भी तैयार की जा रही है। सब कुछ ठीक चला तो जल्द ही प्रदेश में किसानों के खेतों तक पाइप लाइने पहुंचने लगेगी। इस योजना के तहत करीब 27 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की योजना विकसिक करना है।
बरगी से पहुंच रहा पानी
नर्मदाघाटी विकास योजना के तहत बने बरगी बांध की नहर से अब हिरण नदी में पानी पहुंचाया जा रहा है जिससे एक बहुत बड़े क्षेत्र की जीवन दायनी हिरन नदी में नर्मदा का जल इस भीषण गर्मी में हिलोरे ले रहा है और लाखों लोगों को पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित हुई है।
कटनी भी पहुंचेगा पानी
बरगी नहर पर पम्प स्टेशन बनाकर अब कटनी की पांच पहुंच नदियों तक पानी पहुंचाए जाने को लेकर एक प्रस्ताव नर्मदा घाटी विकास विभाग को सौंपा गया है। दरअसल कटनी में गर्मियों के कारण पानी की समस्या विकराल रूप ले चुकी है। उल्लेखनीय है इसके अतिरिक्त अन्य कई जिलों से नर्मदा नदी से पानी की मांग को लेकर प्रस्ताव विभाग के पास पहुंचे है। इनको पानी लिफ्टिंग योजना में शामिल करने पर विचार चल रहा है।
बाक्स
मध्य प्रदेश में औद्योगिक विकास को लेकर सरकार जहां एक तरफ तेजी से कार्य कर रही े। दूसरी तरफ उद्योग को पानी उपलब्ध कराए जाने की समस्या बनी हुई है पानी की कर्मी के कारण जहां प्रदेश में कई बड़े उद्योग बंद हो गए है। बांध परियोजनाओं पर लगभग ब्रेक लगने की स्थिति बनी हुई है। ऐसे में उद्यौगिक घरानों की नजर भूमिगत जल धाराओं पर गड़ गई है। गुगल सहित अन्य साधनों की तरह किस क्षेत्र में जमीन के नीचे कितना जल भंडारण है उसका पता लगाकर उन इलाकों में उद्यौगिक घराने जमीन खरीद है। सूत्रों का कहना है कि कटनी इलाके में नदियों की दिशाएं बदलने के बाद जिन इलाकों में जमीन के नीचे जल धाराएं बह रही है वहां उद्योगपति लगातार जमीन खरीद रहे है।

वर्जन
बांध में जमीन की बर्बादी तथा सिचाई क्षेत्र सीमित होने के कारण नर्मदा घाटी विकास के तहत एक दर्जन बांधों को न बनाने के विषय पर निर्णय लिया गया है लेकिन नदियों से पानी दोहन के लिए पानी लिफ्ट करने की योजना तैयार की जा रही है।
रजनीश वैश्य
सचिव, नर्मदा घाटी विकास विभाग

शुगर मैन्टेन होने से बदली लाइफ क्वॉलिटी



* आटो मैटिक ग्लूकोज मॉनिटरिंग सेन्सर का इस्तेमाल से कइयों को फायदा
   * थाइराइडट के मरीज को शुगर का खतरा : डॉ. विशाल कस्तवार

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नगर के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉक्टर विजय कस्तवार के पास किडनी खराब होने के कारण आरके  सिंह (काल्पनिक नाम ) मरीज नियमित तौर से इलाज के लिए आते हैं  ,उन्हें सप्ताह में दो दिन डायलिसिस में रखा जाता है। इस मरीज को हफ्ते में जहां दो दिन डायलिसिस में गुजारने पड़ते थे, वही मरीज की शुगर हर आधा घंटे में कभी भी हाई और लो हुआ करती थी। मरीज का पूरा जीवन नरक हो गया था लेकिन एक छोटे के प्रयास से उसके लाइफ  क्वॉलिटी में सुधार आ गया।
इस संबंध में डॉ.विजय कस्तवार ने बताया कि मरीज की शुगर क्यों कम और ज्यादा होती है, उसकी शुगर कब और क्या खाने पर प्रभावित होती है और कब- कब उसकी शुगर की स्थिति क्या होती है।
मरीज के रक्त में शुगर की मात्रा किसअवधि में  क्या होती है उसके हिसाब से उसको दवाई और डाइड तय करने के लिए मरीज को मात्र दो हजार रूपए कीमत का ग्लूकोज मॉनिटरिंग सेंसर दिया। इससे हर 15 मिनट में रक्त में शुगर का लेबल चैक किया गया। उसके 15 दिन के शुगर के डॉटा का अध्ययन करने पर कई चौकाने वाली जानकारी सामने आई। मरीज को जब भी डायलिसिस पर लाया जाता था तब उसकी शुगर का स्तर घटकर 35-40 एमएल तक पहुंच जाता था। मरीज को लो शुगर 35 तक उतरती थी जबकि हाई होने पर 400 पहुंच जाती थी।


15 साल से थी शुगर
मरीज को पिछले 15 साल से शुगर थी जिसके कारण उसकी किडनी खराब हो गई थी। शुगर नियंत्रित होना बेहद कठिन हो गया था तथा दवाइयां एवं इंसुलिन भी तय नहीं हो पा रही थी। पता चला कि मरीज की शुगर तड़के 5-6 बजे बेहद नीचे पहुंच जाती थी। उसको सुबह उठकर 6 बजे ब्रेकफास्ट करने कहा गया। इसके साथ ही दोपहर को जब शुगर हाई होती थी तब कम भोजन दिया गया । शरीर के शुगर लेबल के हिसाब से भोजन सारणी तय की गई। वहंी जिल दिन डायलिसिस देना होता था तब उस दिन दवाई नहंी दी जाती थी। इससे मरीज का शुगर काफी हद तक नियंत्रित हो गई। इन्सुलिन की जगह उसको दवाइयों दी जाने लगी। इस छोटे से प्रयोग और अध्ययन से मरीज की लाइफ क्वॉलिटी में सुधार आया है।
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थायराइट बन रहा शुगर का कारण
डॉ. कस्तवार  का कहना है कि थायराइड के मरीज को शुगर होने का बना होता है। इसी तरह डायबिटीज के मरीज को थायराइड का खतरा बना रहा है। दुनिया में करीब 13 प्रतिशत शुगर पेसेंट को थायराइड की समस्या होती है। इस संबंध में पीपुल्स संवाददाता से हुई चर्चा के अंश
* - थायराइड की बीमारी अब ज्यादा होने लगी है ,क्या पहले नहंी हुआ करती थी?
**- थायराइड की समस्या पहले भी थी लेकिन इसका प्रतिशत कम था लेकिन अब यह बीमारी आम होती जा रही है। अमूमन पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को आयोडीन की कमी के कारण थायराइड ग्रंथी विकृत हो जाती थी जिसे हाइराइड बढ़ने अथवा घटने की बीमारी होती थी।
* थायराइड की समस्या बढ़ने के मुख्य कारण क्या है?
** दरअसल  थायराइड वंशानुगत हो सकता है लेकिन अध्यन से स्पष्ट हुआ है वायरल इंफैक्शन तथा अन्य बीमारी थायराइड होने का मुख्य कारण बन रहा है। दुनिया भर में लोगों के संपर्क बढ़ने से नए नए वायरस सामने आ रहे है। वायरल इंफैक्शन तेजी से फैल रहे है। इनसे लड़ने के लिए शरीर एंटी बॉयटिक्स बनाता है अथवा हम स्वयं एंटी बॉयटिक्स लेते है। ये एंटीबॉडिज यानी रोगाणु को नष्ट करते है लेकिन कुछ किस्म के एंटीबॉडिज ऐसे भी होते है जो हमारे मानव अंग के सेल्स की तरह होते है और वे उन पर भी अटैक कर उनकी क्षमता को कमजोर कर देता है।
* कौन सी बीमारी ऐसी है जो जिसके साइड इफैक्ट के रूप में थायराइड होता है।
** मुख्यत: वायरल फीवर होता है जिसके वायरस भी थायराइड की तरह होते है और इससे थायराइड पर प्रतिकूल प्रभव पड़ता है।
* थायराइड से शुगर क्यो होती है।
* * यह देखा गया है कि थायराइड की अधिकता एवं कमी के कारण इन्सुलिन तथा पेनक्रियाज पर विपरीत असर करता है जिसके कारण शुगर की बीमारी हो जाती है। इसी तरह इंसुलिन की अधिकता एवं कमी से टायराइड ग्रंथी भी प्रभावित होती है।
* थायराइड किस तरह के होते है और उससे बचाव के क्या उपाय हैं।
* अमूमन हाइपोथायराइड  तथा हायपरथाइराड  होता है। हाइपोथायराइ से मोटापा, बाल झड़ना, आलस,त्वचा में रूखा पन होता है। हायपर थाइराड में थायराइड ग्रंथी बढ़ने से थायराइड हार्मोंस की अधिकता के कारण दिल की धड़कने बढ़ना,घबराहट, अत्यधिक पशीना आना होता है। इससे हृदयरोग का खतरा बढ़ जाता है। ये बीमारियां महिलाओं को अधिक होती है। थायराइड की जांच कराने के उपरांत डॉक्टर की सलाह से नियमित दवाइयां खाने से नियंत्रित रहता है। बाजार में नेचुरल हॉमोंस की दवाइयां उपलब्ध है।

मासूम के एक तिहाई सिर पर कब्जा था ट्यूमर का



* जल्द नहीं निकाला जाता तो
बदल सकता था कैंसर में

* तीन इंच का चीरा लगाकर निकाला ट्यूमर

 दीपक परोहा
942451

डॉ. आशीष टंडन
न्यूरो सर्जन जबलपुर


करीब चार माह पहले मेरो पास मैहर से लगभग बेहोशी की हालत में एक 3 साल के बालक  मुन्ना को लेकर उसके माता पिता मेरे पास लेकर आए थे। बालक को उल्टी , बैचने और चक्कर आया करते थे किन्तु झटके नहीं आते थे। बच्चे का सिर का एक्सरे तथा सीटी स्क्रेन कराया गया। उसके सिर के एक तिहाई हिस्से में ट्यूमर फैला  हुआ था।
उसके सिर का आॅपरेशन कर ट्यूमर निकालना बेहद जरूरी था।
बालक बेहोशी की हालत में लाया गया था जिसके कारण उसका आॅपरेशन करने के पहले यह जानना जरूरी था कि कहीं सिर के टÞ्यूमर में कैंसर तो नहीं है। कैंसर टैस्ट कराया गया। यह एक अच्छी खबर थी कि उसको कैंसर नहंी हुआ था लेकिन और कुछ दिन ट्यूमर सिर पर फैलता तो कैंसर होने का खतरा था।

आंख से दिखना बंद
इस ट्यूमर के कारण नसों में तनाव और दबाव के कारण आंख की नसों पर असर पड़ा था जिसके कारण बालक की आंखों की रौशनी कम हो गई थी और जिस दौरान उसे लाया गया था तक लगभग दिखना ही बंद हो गया था।

माथे के पास चीरा
बालक के माथे के पास तीन इंच का चीरा लगाकर दूरबीन तकनीक का इस्तेमाल करके करीब 7-8 घंटे  का आॅपरेशन चला। चूंकि ब्रेन की माइक्रो सर्जरी की गई थी, इससे  दिमाग को नुकसान पहुंचने की संभावना कम हो गई , वहंी बालक जल्द स्वस्थ्य होने की संभावना भी थी। पूरा ट्यूमर बिना किसी परेशानी के निकाल लिया गया।
चार घंटे में सामान्य
बालक को आॅपरेशन के बाद होश आने पर उसका परीक्षण किया गया। आॅपरेशन के चार घंटे बाद ही बालक पूरी तरह सामान्य व्यवहार कर रहा था। उसको अच्छी तरह से सुनाई पड़ रहा था। आंखों में देखने की क्षमता भी बढ़ गई थी और बातचीत भी कर रहा था। आज बालक पूरी तरह स्वस्थ्य है।
 बच्चा गोद में था
चूंकि बच्चा लगभग बेहोशी की हालत में था। अत: उसके सिर का उतना हिस्सा ही निश् चेत  किया गया जितने का आॅपरेशन करना था। आॅपरेशन के दौरान बच्चा अपनी मां की गोद में ही था।
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 ब्रेन हैमरेज के मामल बढ़ रहे

* बच्चों अथवा बड़ों में ब्रेन टÞ्यमर की वजह क्या है?
** अमूमन ट्यूमर होने की कोई विशेष वजह नहंी होती है लेकिन यह समझा जाता है कि  यदि बच्चपन में कोई चोट लगी है अथवा शिशु के जन्म के दौरान सिर पर दबाव पड़ा है तो वह ट्यूमर का कारण होता है।
* अमूमन कितने लोगों को ब्रेन ट्यूमर की शिकायत रहती है।
** एक लाख में तीन व्यक्ति ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित  रहता है।
* क्या ट्यूमर ब्रेन हैमरेज का कारण बनता है।
** टूयमर के कारण ब्रेन हैमरेज नहीं होता है लेकिन ट्यूमर का आकार जब ज्याद बढ़ जाता है तो वह फटजाता है जो हैमरेज का कारण बनता है।
* क्या ब्रेन हैमरेज के मामले बढ़े है?
** ब्रेन हैमरेज के कारणों में तेजी से बढ़े है। प्रतिवर्ष 60-70 मामले तो मेरे पास ही  आ रहे है।
* ब्रेन हेमरेज के कई कारण हो  सकते है।अमूमन ज्यादा शराब  और सिगरेट  पीने वाले को ब्रेन हेमरेज का खतरा बेहद अधिक होता है। सर्वाधिक ब्रेन हेमरेज हाई ब्लड प्रेशर के कारण होता है। शुगर के कारण भी हेमरेज हो रहे है। इसके  अतिरिक्त अन्य कई कारण से होता है।
* हेमरेज से बचने के लिए क्या करना चाहिए?
* शुगर पेसेंट , हृदय रोगी तथा ब्लड प्रेशर वाले मरीजों को डॉक्टर की सलाह से नियमित दवाइयां खानी चाहिए। बिना उनकी अनुमति के अपनी इच्छा से खून बतला करने वाली अथवा केस्ट्रोल नियंत्रण करने वाली दवाइयों का सेवन करना भी ब्रेनहेमरेज का कारण बन सकता है।





*लीवर बस्ट होने के बाद मरीज का सफल आॅपरेशन


 
* दो इंच का चीरा लगाकर दोनों
जांघ की हड़्डी जोड़ी

 * डॉ. विश्वास शर्मा
 डायरेक्टर आदित्य हॉस्पिटल जबलपुर
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 सतना से एक मरीज मेरे पास आया। उसके कमर के नीचे दोनों जांघ की हड़डी बुरी तरह टूट गई थी। यूं तो आॅपरेशन करके हड्डी जोड़ा जाना अब बेहद सामान्य केस हो गए है लेकिन इस मरीज का आॅपरेशन करना बेहद जोखिम पूर्ण काम था। दरअसल मरीज का लीवर बस्ट हो गया था। ऐसे में बेहोशी के लिए दिया जाने वाला इंजेक्शन इसके लिए जानलेवा हो गया था। मरीज को लगातार बेड रेस्ट की भी जरूरत थी। इसके लिए माइक्रो सर्जरी से मरीज के पैर की हड़्डी जोड़ने का निर्णय लिया गया। अमूमन हाथ पैर की सर्जरी में माइक्रो सर्जरी कम की जाती है। चूंकि इसमें  अचूक परिणाम आने की गुंजाइश कम होती है लेकिन इस आॅपरेशन के बेहद शानदार परिणाम आए। ये अनुभव है नगर के नामी हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. विश्वास शर्मा का।

   डॉ. विश्वास ने पीपुल्स से इस केस पर चर्चा करते हुए बताया कि सतना निवासी मरीज विजय मंधानी का गत 17 मई को वहां  एक हादसे का शिकार हो गया था । उसको जबलपुर लाया गया।  यहां आदित्य हॉस्पिटल में रखकर उसका इलाज प्रारंभ किया गया। जांच में पाया गया कि उसके कमर के नीचे  दोनों पैरों की जांघ की हड्डी टूट गई है। एक्सरे में हड्Þडी टूटी अलग नजर आ रही थी। मरीज का चैकअप करने पर स्पष्ट हुआ कि उसका लीवर बस्ट है। ऐसी स्थिति में आॅपरेशन के लिए यदि मरीज को बेहोश किया जाएगा तो फिर उसके होश में आने की संभावना नहीं थी।  इसके चलते उसके जांघ के उसी हिस्से को सुन्न किया गया जहां की हड़डी टूटी हुई थी। इसके बाद कम्प्यूटरीकृत मशीन के माध्यम से मरीज की जांघ में मात्र दो इंच का चीरा लगाया गया। हड़्डी को पहले ही एक दूसरे पर बैठाया जा चुका था। चीरा के रास्ते से स्क्रू के माध्यम से हड्डी को जोड़ा गया। चूंकि आॅपरेशन कम्प्यूटर में आ रही इमेज को देखकर किया गया था जिससे परिणाम बेहतर आए। मरीज का आॅपरेशन के बाद तीन दिनों में घाव भी भर गया है। अब भी मरीज यहां इलाज के लिए भर्ती रखा गया है। उसके लीवर का भी इलाज चल रहा है।

वर्जन
 मेरे जांघ की दोनों हड़्डी बुरी तरह टूट गई थी मेरे शरीर में आॅपरेशन कराने की ताकत  नहीं थी किन्तु डॉक्टरों में मात्र दो इंच जांघ में चीरा लगाया ओर ा तथा हड्डियों को आपस में जोड़ कर स्कू से कस दिया है।  आॅपरेशन किए अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया है।
 विजय मंधानी , रीवा

ग्राम पालागोंदी में लिखी विकास की इबारत


जबलपुर। आदिवासी बाहुल्य जिला बालाघाट के उकवा विकासखंड के ग्राम पालागोंदी के ग्रामीण अब पहाड़ के पसीने से अपनी प्यास बुझाएंगे। पहाड़ से जल रिसाव से निर्मित झरने का पानी अब उनके आंगन तक पहुंच रहा है।
गांव से करीब 4 किलोमीटर दूर इस पहाड़ी झरने का पानी अपने गांव तक पहुंचाने में ग्रामीण कामयाब हुए है। करीब एक माह से चल रहे काम के बाद पानी 12 जून को गांव में पहुंच गया जिससे ग्रामीणों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
 ग्राम पालागोंदी में ग्राम पंचायत की नल-जल योजना के तहत यह कार्य हुआ है किन्तु पहाड़ और झरना गांव से 4 किलोमीटर दूर था , बीच में सघन जंगल भी था ,जिसके कारण उतनी दूर से पानी गांव के फिल्टर टैंक  तक लाना संभव न होने के कारण ग्राम पंचायत यहां नल-जल योजना के तहत कार्य नहीं करना चाहती थी लेकिन आदिवासी ग्रामीण अपने गांव का विकास चाहते थे और उन्होंने नलजल योजना के लिए धरना प्रदर्शन कर अपनी मांग मंजूर करवाई। इसके साथ स्वयं भी श्रमदान कर इस कार्य को पूर्ण कराया।
उल्लेखनीय है कि पहाड़ी से जल रिसवा एक घंटे में करीब 4 गैलन होता है। गर्मियों में इसकी धार बनी हुई है। इसके चलते गांव तक जल पहुंचाने की योजना बनाई गई। ग्रामीणों ने अपनी इच्छा शक्ति और अपने श्रमिशक्ति का परिचय देते हुए असंभव कार्य को संभव बनाया। झरने का पानी गांव तक पहुंचाने के लिए जंगल के बीच से छोटी नहर खोदी गई और ये काम मई के भीषण गर्मी में चला और अंतत: नहर तैयार हो गई। पहाड़ी झरने का पानी गांव तक पहुंच गया।
 रामकली बाई नामक ग्रामीण महिला का कहना है कि अब उन्हें पानी लेने जंगल से होकर झरने तक नहीं जाना पड़ेगा। नल के माध्यम से पानी हमारे घर तक पहुंचेगा। हमारे गांव में विकास की नई शुरूआत हुई है। उसकाल मुंडा झरने का मीठा पानी आएगा। उल्लेखनीय है कि नल जल योजना के तहत इस गांव को 10 लाख की राशि शासन से मंजूर की गई थी। यूं तो  गांव में पेयजल के लिए कुआ एवं नलकूप भी हैं किन्तु गर्मियों के कारण वे सूख गए है। गांव से 4 किलोमीटर दूर पहाड़ी के जिंदा झरना से उन्हें पानी लाना पड़ता था। खासतौर इस वर्ष भीषण सूखे के कारण ग्रामीणों को पानी के लिए काफी भटकना पड़ा है। 

पैर के नसों में ब्लॉकेज नहीं खोले जाते तो काटना पड़ता पैर


* डॉ रामनारायण नेमा
 कॉर्डियोलॉजिस्ट जबलपुर
   करीब तीस साल पहले जब मै मुम्बई में  कार्यरत था, तभी सुरेन्द्र नामक  36 वर्षीय मरीज मेरे पास आया। उसके पैरों में असहनीय दर्द हुआ करता था और उसने कई जगह इलाज भी करवा लिया था। उसके पैर का पंजा काला पड़ रहा था। पैरों में खून की सप्लाई बंद थी। इस स्थिति में उसको गेंगरीन होने का खबरा था तथा उसका पैर कट जाता। उसकी एक पैर की सभी अंगुलिया काली पड़ गई थी। इस मरीज की रक्त वाहिनी धमनी  में ब्लॉके ज थे। नई तकनीक ब्लाक खोलने की आई थी, जिससे उसके ब्लॉकेज खोले गए।
नगर के प्रमुख कार्डिलॉजिस्ट डॉ. रामनारायण नेमा ने बताया कि हार्ट में जिस तरह से स्टेनासिस (नशों का सिकुड़ना) तथा कोलस्टॉल के कारण ब्लॉकेज की समस्या होती है और उसके लिए  एंजियो प्लास्टी की जाती है और धमनी के ब्लॉकेज खोले जाते है। इस तरह के शरीर के विभिन्न अंगों से गुजरने वाली धमियों के सिकुडने से ब्लाकेज होने की समस्या है। इसका अब आधुनिक तकनीक से इलाज किया जाने लगा है। धमनी के  ब्लॉकेज का माइक्रो  कैथेटर से खोला जाता है तथा माइक्रो स्टेंट डाल दिया जाता है। हृदय की धमनियों की तुलना में ये स्टेंट छोटे होते है।

मरीज पूर्ण स्वस्थ  है
श्री नेमा ने बताया कि मुम्बई के इस मरीज के ब्लॉकेज खोलने के बाद माइक्रो स्टेंट डाला गया तो उसके पैर में रक्त प्रवाह पहले की तरह हो गया और उक्त मरीज पूर्ण स्वस्थ हो गया है। वह अपने सभी कार्य सामान्य रूप से कर रही है।
सरवाइकल समझ रहे थे
श्री नेमा का कहना है अमूमन धमनियां सिकुड़ना अनुवांशिक होता है। इसके अतिरिक्त खान पान से भी ये बीमारी होती है। जबलपुर शहर का एक अन्य मरीज ऐसा आया था जिसके गर्दन में दर्द रहा करता था तथा उसे चक्कर आते थे। कई चिकित्सकों ने उसे सरवाइकल की समस्या बताई थी तथा उसका इलाज चल रहा था लेकिन जब उसका चैकप किया गया तो पता चला कि गले की नस सिकुड गई थी। उसको भी गले के ब्लॉकेज को  कैथेटर से खोलने  के बाद स्टेंट डाला गया । श्री नेमा के अनुसार हाथ सहित शरीर के अन्य अंगो में इस तरह की समस्या आती है। लकवा का भी बड़ा कारण नसों का सिकुड़ना होता है और सिर को पहुंचने वाली धमनी का उपचार किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि श्री नेमा जबलपुर में एंजियोप्लाटी करने वाले नामी डॉक्टरों में शुमार हैं। 

बंदरछाप सिक्के के कारण हो रही एक के बाद एक मौत


  * मंडला के अंजनिया पुलिस चौकी क्षेत्र में हत्या और आत्महत्या का मामला
जबलपुर। मुद्रा प्रचलन में कभी बंदरछाप सिक्का था अथवा नहीं, यह भी लोगों को नहीं मालूम लेकिन पिछले लम्बे समय से तंत्र मंत्र का कारोबार करने वालों के लिए  बंदरछाप सिक्का बेहदअहम और दुर्लभ माना जाता है। तंत्रमंत्र एवं पूजन पाठ की सामग्री बेचने वाले लोग फर्जी और नकली बंदरछाप सिक्का बेंचकर भी जमकर लोगों को ठगते रहे है। पड़ोसी जिला मंडला के अंजनिया में बंदरछाप सिक्का एक के बाद एक मौत का कारण बन रहा है। इस सिक्के कारण मर्डर और आत्महत्या की कहानी घूम रही है।
   बंदरछाप सिक्का आखिर क्या है? इस संबंध में तंत्र मंत्र के जानकारों का मानना है कि सैकड़ों साल पहले तांबे का  सिक्का चला करता था जिसमें बंदर की आकृति अंकित थी। इस तरह के तांबे के सिक्के बहुत से लोगों के पास है, तांत्रिक इस सिक्के की मदद से गढ़ा धन, सट्टा लाटरी का नम्बर अर्जित कर लाखों के वारे न्यारे कर सकते है। कई तरह के टोना टोटके में बंदर छाप सिक्का बेहद महत्वपूर्ण है।
हत्या कांड  में बंदरछाप सिक्का
पुलिस सूत्रों का कहना है कि गत 20 अप्रैल को  गंगोरा गांव में 40 वर्षीय कामता हरदा की लाश पाई गई थी। मृतक की लाश गेहंू के खेत में मिल थी। शव करीब 4-5 दिन पुरानी थी। घटना की सूचना मिलने पर पुलिस ने मौके पर पहुंच कर पंचनामा कार्रवाई कर शव को पीएम के लिए भेजा गया। इससे ज्ञात हुआ कि मृतक के गले की हड़ड़ी टूटी हुई थी। उसकी पसली पर भी चोटे आई थी तथा एक किडनी बस्ट हो गई थी। पीएम रिपोर्ट एवं पचनामा से स्पष्ट हो गया था कि मृतक की हत्या की गई।
घर से 100 कदम में मिली लाश
पुलिस को लाश मृतक एवं संदिग्ध आरोपी गिरीश नंदा एवं विजय नंदा के घर से करीब 100 किलोमीटर दूर मिली। पुलिस को जांच पड़ताल में ज्ञात हुआ कि मृतक कामता जादू टोना किया करता था। उसके पास  तांत्रिक एवं जादू टोना की क्रिया में गिरीश नंदा एवं विजय नंदा शामिल साथ रहा करते थे। कामता के पास एक बंदरछाप सिक्का  था जिससे वह सभी क्रियाएं किया करता था। आरोपियों ने उससे सिक्का देने की मांग की थी। इसके चलते पुलिस को संदेह था कि उन्होंने बंदरछाप सिक्के के लिए  हत्या कर दी।
सिक्का बना हत्या का कारण
इस मामले की जांच के लिए  पुलिस अधीक्षक मंडला ने एसआईटी गठित की जिसमें बम्हनी टीआई जीएस मर्सकोल, अंजनिया चौकी प्रभारी सुधांशु तिवारी और हिरदेनगर चौकी प्रभारी आरएस चौहान कोशामिल किया गया।  इस जांंच के संदिग्ध आरोपियों ने पुलिस को 50 हजार रूपए लेकर मामले की जांच दबाने के लिए भी पेशकश की थी जिसके  रिकार्डिग तक पुलिस के पास मौजूद है। संदिग्ध लगातार फरार  थे।
गिरफ्तारी के पहले खुदकुशी
पुलिस संदिग्धों को दो तीन बार थाने में बुलाकर पूछताछ कर चुकी थी। पुलिस चाहती थी कि बंदरछाप सिक्का बरामद हो जाए  तो हत्याकांड की कहानी का खुलासा हो जाए लेकिन सिक्सा पुलिस के हाथ न आग कर एक और मौत का कारण बन गया। पुलिस के बदवाव के चलते  पिछले दिनों दोनो भाई ने कीटनाशक पी लिया। इसके बाद एक भाई विजय ने तो फांसी लगा कर खुदकुशी कर ली।
 बंदरछाप मामले की जांच बंद हो
बंदरछाप सिक्का बरामद करने पुलिस की कड़ी पूछताछ के कारण एक भाई के फांसी लगा लिए जाने से ग्रामीणों में रोष व्याप्त हो गया। उन्होंने तीन सूत्री ज्ञापन भी पुलिस को सौंपा जिसमें बंदरछाप सिक्का और मर्डर की जांच बंद करने तथा दोषी पुलिस कर्मियों पर कार्रवाई  की मांग की गई, जिसपर पुलिस ने थाना प्रभारी तथा दो चौकी प्रभारियों को लाइन अटैच कर दिया है।
वर्जन
कामता की मौत की जांच पड़ताल में हत्या का कारण बंदरछाप सिक्का सामने आ रहा था। एसआईटी के अधिकारियों को लाइन अटैच करने का उदद्ेश्य मामले की जांच में किसी तरह का संदेह न रहे। इस हत्याकांड की जांच नई टीम करेगी।
एपी सिंह
एसपी मंडला

आधे से अधिक सिर पर खून भर गया था मरीज के



* एक महीने के इलाज के बाद लौटी चेतना

डॉ.जितेन्द्र जामदार के अस्पताल गोलबाजार में एक ऐसे मरीज को इलाज के लिए लाया गया था जिसके सिर के ब्रोकाज एरिया में  गहरी चोट आई थी जिससे उसके मस्तिष्क में खून का रिसाव हुआ था। आधे से अधिक मस्तिष्क में खून भर गया था, रक्त का दबाव मस्तिष्क पर पड़ने से मरीज चेतना शून्य हो गया था। वह होश में था लेकिन कुछ सुनाई नहीं देता था, यदि सुनाई देता था तो समझ नहीं पाता था। दरअसल वह संवेदनहीनता की स्थिति में था, लेकिन एक महीने के सतत इलाज से वह सामान्य हो गया।
  डॉ. जितेन्द्र जामदार हॉस्पिटल के जेरियाड्रिक मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. सुजन मिश्रा ने बताया कि दरअसल यह केस काफी कठिन था और इसमें मरीज के सामान्य होने की संभावना न के बराबर थी लेकिन समय पर और समुचित इलाज के कारण चमत्कारिक तौर पर मरीज को आराम मिला।
डॉ. मिश्रा ने बताया कि एक निजी कॉलेज में कार्यरत अमित नामक युवक के सिर के ब्रोकाज एरिया में चोट आई थी। उसको बेहोश की हालत में अस्पताल लाया गया। इस दौरान उसके ब्रेन की स्थिति यह थी कि वह स्वयं से सांस भी नहंीं ले सकता था। ऐसी स्थिति में उसको वेंटीलेटर पर रखा गया तथा कृत्रिम सांस की बदौलत जिंदा रखा गया। सीटी स्केन से स्पष्ट हो गया था कि मतिष्क में जबदस्त रक्त रिसाव हुआ है। इसे रोकने के लिए इंजेक्शन आदि दिए गए। डॉ मिश्रा ने बताया कि मतिष्क का वह हिस्सा जहां से सचेतन क्रियाएं चलना, बोलना, सुनना तथा अचेतन क्रियाएं दिल का धड़कना और सांस लेना होता है।

वह हिस्सा चोट े से प्रभावित हुआ था। शरीर की समस्त क्रियाएं वेंटीलेटर पर निर्भ र थी। इस हिस्से मेंं आई चोट के कारण  दिमाग विचार, बोध, बोली और भावनाओं की अभिव्यक्ति शून्य हो चुका था।  क्लोज्ड हेड इंजरी के ठीक होने पर अमित सामान्य हो पाएगा इसकी भी 5 प्रतिशत संभावनाए थी।

इंट्रासेरेब्रल हेमरेज
मरीज का इंट्रासेरेब्रल हेमरेज का इलाज शुरू हुआ। कुछ दिनों में सेरेब्रल एडेमा (सूजन) ठीक हो गई। मरीज को होश आ गया लेकिन ऐसा समझ में आया कि वह न तो अपने शरीर में स्वत: से कोई हरकत नहीं कर पा रहा है। अपने हाथ की अंगुली भी नहीं उठा पा रहा था। सिर्फ सांस भर स्वत: से लेने लगा था। यानी उसकी अचेतन मस्तिष्क कार्य करने लगा था। लेकिन बोलने , समझने की क्रियाएं शिथिल थी। संभवत: उसे दिखाई एवं सुनाई देता था लेकिन अभिव्यक्ति नहीं कर पा रहा था। वह सेरिब्रोबास्कुलर सिंड्रोम से पीड़ित था।
धैर्य के साथ चला इलाज
मरीक का पूरी धैर्य के साथ चला इलाज चला। डॉ मिश्रा के मुताबिक एक दिन उन्होंने मरीज की ओर देखकर कहा कि खाना स्वादिष्ट नहंीं रहता है, इसलिए ये खा नहीं रहा है , इस पर  उसने भोंह को हिलाते हुए मुस्काने की कोशिश की। यह संकेत बेहद आशान्वित करने वाले थे। ऐसा प्रतीत हुआ मरीज की समझने की शक्ति लौट रही है। मरीजो का लगातार फिजियो  थैरेपी दी गई। मरीज की अंगुलिया चलने लगी थी। वह पियानो बजाया करता था। उसको पियानो दिया गया तो वह बजाने लगा। उससे जाहिर हो गया कि उसकी स्मृति का काफी हिस्सा बचा हुआ है। फिजियोथैरेपी और इलाज के चलते बाद में मरीज बोलने, सुनने लगा तथा अब सामान्य जीवन जी रहा है।
 ये  सावधानी बरते
 डॉ मिश्रा ने बताया कि  सिर पर गंभीर चोट आने पर मरीज को हर हालत में तीन घंटे के भीतर उच्च स्तरीय अस्पताल में पहुंचाया जाना बेहद आवश्यक है। इससे मरीज को होने वाले घातक असर को कम किया जा कसता है और उसकी जान बचाई जा सकती है।

उमरिया में सामुदायिक पुलिसिंग


जबलपुर। उमरिया पुलिस अधीक्षक द्वारा सामुदायिक पुलिससिंग के लिए अभिनव प्रयोग किया है। पुलिस अधीक्षक स्वयं स्कूल में पहुंच कर बच्चों को पढ़ा रहे है। उनके साथ ही उनके स्टॉफ के एएससी, सीएसपी तथा डीएसपी भी स्कूलों को चयन कर स्कूल में बच्चों को पढ़ाई करवा रहे है। पुलिस अधीक्षक स्वयं बच्चों से रूबरू होकर उनसे कहते है कि पुलिस वाला बनना है तो अच्छे से पढ़ाई करो।

समुदायिक पुलिसिंग के तहत गत मंगलवार को पुलिस अधीक्षक चंद्रशेखर सोलंकी एवं एएसपी अमित वर्मा ने ग्राम बड़ेरी स्थित प्राथमिक शाला पहुंचे। वहां उन्होंने बच्चों को का एक पीरियड लिया। पुलिस अधीक्षक ने बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ाने उनसे रूबरू हुए , वहीं उन्होंने गणित तथा विज्ञान संबंधी प्रश्न भी पूछे।
गणित में सही जवाब देने वाले बच्चों को जयोमेट्री बाक्स पुरूस्कार के रूप में दिए। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि यदि वे प्रतिदिन स्कूल पहुंचते हैं तो उनकी पढ़ाई के प्रति रूचि बढ़ेगी। पढ़ लिखकर भविष्य में एसपी -कलेक्टर भी बन सकोगे।
मिशन के तहत कार्य
 पुलिस अधीक्षक ने समस्त पुलिस अधिकारियों को अभियान चलाने के निर्देश दिए है। इसके तहत जिले में शत प्रतिशत बच्चों को स्कूल तक पहुंचाने और महौल कायम करने कहा गया है।  इसके साथ ही स्कूलों में पुलिस अफसर पहुंच कर बच्चों की शिक्षकों की तरह पढ़ाई भी कुछ देर कराएंगे।
 10 वीं में जिले का नाम रौशन किया
 पुलिस अधीक्षक 10 वीं की प्रवीण्य सूची में आने वाले छात्र के घर भी पहुंचे थे। जिला का नाम रौशन करने वाले छात्र का अपनी तरफ से गिफ्ट भी दी थी।
 जीवन से जुड़ा  प्रशंग
 पुलिस अधीक्षक ने छात्रों को बताया कि जब वे  उज्जैन में स्कूल में पढ़ते थे तब जिला कलेक्टर स्कूल पहुंचे थे तथा उन्होंने पढ़ लिख कर अपने जैसे बनने प्रेरित किया था और आज मै जिला में पुलिस अधीक्षक हूं। यहीं प्रेरणा मै सभी विद्यार्थियों को देना चाहता हूं कि वे पढ़ लिखकर ऊंचाइयों पर पहुंचे।

वर्जन
 पुलिस के अधिकारी विभिन्न स्कूलों में जाकर बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रेरित भर नहंी करेंगे , बकायदा शिक्षकों की तरह उन्हें पढ़ाई भी कराएंगे। मैने यह अभियान जिला में हर बच्चों को स्कूल में पहुंचाने की के उद्देश्य से किया है।
चंद्रशेखर सोलंकी
पुलिस अधीक्षक उमरिया

 रेंज में पांच बच्चे गोद लिए
आईजी डीके आर्य के निर्देश पर उमरिया जिला में हर थाने की पुलिस को पांच लावारिस बच्चों को पढ़ाई लिखाई कराने का जिम्मा संभालने के निर्देश दे रखे है। आईजी के निर्देश से आगे बढ़ कर पुलिस हर बच्चों को स्कूल पहुंचाने का अभियान शुरू किया है।

खतरनाक पिकनिक स्पॉट , सुरक्षा के इंतजाम बौने,

पिकनिक स्पॉट द्वारा अब भारी जल भराव देखने उमड़ रही भीड़

 सेल्फी बनी है जानलेवा, सुसाइड पाइन्ट भी बने
जबलपुर। शहर के आसपास ज्यादा पिकनिक स्पॉट खतरनाक जल स्त्रोत के समीप स्थित है। पिछले दिनों हुई बारिश के कारण यहां तेजी से जल स्तर बढ़ा है। उफान मारती नदी और बढ़े जल स्तर को देखने इन दिनों लोग पिकनिक स्पॉट की ओर कूच कर रहे है। जबलपुर के खतरनाक पिकनिक स्पॉट में कुछ चुनिंदा स्थानों पर ही पुलिस ने बल लगाया है लेकिन सुरक्षा के इंतजाम बौने हैं।
 जबलपुर के खतरनाक पिकनिक स्पॉट की बात की जाए तो भौगोलिक स्थिति से खतरनाक स्थल कम खतरनाक है वरन जहां पहुंचना सहज है, वे ज्यादा खतरनाक है। दरअसल पर्यटक वहां आकर सेल्फी अथवा बिना सावधानी बरते नहाने में अपनी जान गवां रहे है।
तिलवाराघाट जहां सर्वाधिक मौते
जबलपुर शहर से करीब 12 किलोमीटर दूर तिलवाराघाट एनएच -7 के किनारे स्थित है। तिलवाराघाट से नर्मदा का बहाव काफी तेज हो जाता है। इस बहाव लम्हेटा तथा धूंआधार तक काफी तेज होता है। तिलवाराघाट में नेशनल हाइवे पर बना नए पुल से लोग नर्मदा का विहंगम दृश्य देखने जाते है। पुल पर 10-12 लोग अमूमन हर वक्त मौजूद रहते है। इसके आगे कुछ ढाबा हैं जहां पिकनिक पर आए लोग पहुंचते है। इसके साथ तिलवारा घाट में स्नान एवं दर्शन के लिए लोग पहुंचते है। दरअसल तिलवाराघाट सुसाइडल पांइट बन चुका है। हाल ही में दो लोगों ने यहां खुदकुशी की। प्रतिमाह 4-5 लोग तिलवारा पुल से छल्लांग लगाते रहते है। इसके चलते यहां पुलिस पाइंट लगाया गया है। नाविकों को भी अलर्ट किया गया है । बहुत से लोगों की जान बचाई गई है। तिलवारा में 90 प्रतिशत मौत की वजह आत्महत्या होती है।
ग्वारीघाट तैनात है होमगार्ड
 ग्वारीघाट जहां इन दिनों पुलिस प्रशासन ने होमगार्ड के नाविक एवं  मोटर वोट तैनात किए है। नर्मदा का जल स्तर बढ़ा होने के बाद सैकड़ा श्रद्धालुओं को स्नान के लिए आना हो रहा है। तिलवाराघाट से लगे उमाघाट तथा इसके बाद जिलहरी घाट स्थित है। जिलहरी घाट में नर्मदा कुण्ड के रूप धारण करती है। यह स्थान तैराको को पहली पसंद है। नहाते वक्त डूबने की सर्वाधिक घटना जिलहरी घाट में होती है। जुलाई माह में तेन्दुखेड़ा के दो युवक सेल्फी के चक्कर में तिलवारा घाट में डूब गए।वहीं गोहलपुर से पिकनिक मानने आए दो युवक जिलहरी घाट में फुटवाल खेलते वक्त पानी में समा गए थे। फिलहाल जिलहरी घाट में तैराक तैनात नहंी किए है और न ही यहां पर सुरक्षा के इंतजाम है।

न्यू भेड़ाघाट
 विश्व प्रसिद्ध धूआधार जो कि भेड़ाघाट थानांतर्गत है। धूआधार के दक्षिणी तट को भी पिकनिक स्पॉट के रूप में कुछ सालों वे लोकप्रिय हुआ है। रोपवे बनने के कारण बड़ी संख्या में लोग न्यू भेड़ाघाट पहुंचे है। यहां से जहां धूआधार के साथ संगमरमरी घाटियों से बहते नर्मदा का विहंगम दृश्य देखने मिलता है। यहां चट्टानों में चढ़कर सेल्फी लेने अथवा चट्टानों में बैठकर नहाने के चक्कर में सर्वाधिक दुर्घटनाएं हुई है। इसके अतिरिक्त यह सुसाइट पाइंट भी बना हुआ है। यहां से गिरने वाले बाले की बचने की न के बराबर उम्मीद रहती है। चरगवां पुलिस ने बारिश में यहां पुलिस पाइंट लगाए है।

धूआधार-पंचवटी
 पिकनिक स्पॉट धूआधर जहां 12 महीने पर्यटकों की भीड रहती है। यहां सुरक्षा के लिए रैलिंग आदि लगाए गए है लेकिन इसके बावजूद अनेक खरनाक पाइंट है जो अभी खुल है और बारिश में कई हिस्से बेहद खतरनाक हो गए है। भेड़ाघाट पुलिस ने धूआधार के निकट पंचवटी घाट में पुलिस चौकी स्थापित है। पंचवटी नौका विहार के लिए विख्यात है। बारिश में नौका विहार प्रतिबंधित है लेकिन नाविक अपनी और पर्यटकों की जान जोखिम में डाल कर नौकाविहार कर  रहे है। धूंआधार भी सुसाइड पाइंट बन चुका है। यहां डूबने से कम आत्तहत्या करने की घटनाएं ज्यादा होती है। अमूमन आत्महत्या करने वाले का पता तब चलता है जब उसका शव उतराता हुआ मिलता है।
बरगी डैम
 बारिश में बरगी डैम पर पर्यटन की मनाही है लेनिक इसके बावजूद यहां सुरक्षा व्यवस्था को ताक में रखकर पर्यटक पहुंच रहे है और डैम की दीवार पर घूमते नजर आ जाते है। बारिश के कारण यहां फिलहाल कम भीड़ है। उल्लेखनीय है कि डैम के जब भी गेट खुलते है तो पर्यटकों का यहां मेला लग जाता है। बरगी डैम में दुर्घटना रोकने के लिए होमगार्ड के नाविकों की तैनाती की गई है।

बगदरी पाइंट
 खतरनाक पिकनिक स्पॉट के रूप में पाटन स्थित बगदरी फॉल 4 अगस्त 2014 को सामने आया था। इस फॉल में गोहलपुर क्षेत्र के एक ही परिवार के 11 लोग अचानक फॉल का पानी बढ़ जाने के कारण पानी में बह गए थे जिसमें से सभी की मौत हो गई। इस घटना के बाद अब तक बगदरी में कोई बड़ी घटना नहीं हुई है। दरअसल यहां लोग कम जाते है। भौगोलिक दृष्टिाकोण से खतरनाक स्पॉट होने के कारण पिछले दिनों ईद के मौके पर यहां पर्यटकों के आने की संभावना को लेकर पुलिस बल लगाया गया था।
 वर्जन
 ग्रामीण क्षेत्र स्थित पिकनिक स्पॉट जो बारिश में खतरनाक हो गए है। उसको लेकर सभी थानों की पुलिस को अलर्ट किया गया है। थाना प्रभारी को पर्यटकों की भीड़ बढ़ने पर उनकी सुरक्षा संबंधी व्यवस्था करने निर्देश दिए गए है।

हर जवान लगाए दो पौधे, एसपी का फरमान


*  उमरिया पुलिस पर्यावरण के लिए अलर्ट

जबलपुर। उमरिया पुलिस अधीक्षक ने सभी पुलिस जवानों को निर्देश दिए है कि वे कम से कम दो पौधे लगाए। इन पौधों की देखरेख भी करें। इस फरमार के साथ ही उमरिया पुलिस ने वृक्षारोपण का वृहद कार्यक्रम शुरू कर दिया है। पुलिस अधीक्षक द्वारा स्वयं ही थाना  तथा एसपी कार्यालय परिसर में पौधा रोपण किया गया है।
दरअसल शहडोल आईजी डीके आर्य द्वारा जोन के सभी पुलिस अधीक्षक को समुदायिक पुलिस के लिए निर्देश दे रखे है। आईजी का मानना है कि पुलिस फोर्स पर  समाज की सीधी नजर रहती है। यदि वह कोई कार्य करता है तो उसकी सीधी प्रतिक्रिया समाज पर पड़ती है। पुलिस और जनता के बीच मधुर संबंध और समाज में सुधारात्मक कार्य करने के लिए समुदायिक पुलिसिंग सतत चलाई जाए।
पर्यावरण बचाए
इसके चलते पुलिस अधीक्षक चंन्द्रशेखर रघुवंशी ने जिला के सभी पुलिस वालों को निर्देश दिए है कि वे पर्यावरण के लिए अलर्ट रहे।  पर्यावरण को तभी बचाया जा सकेगा जब ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाए जाएंगे। इसके लिए उन्होंने सभी पुलिस कर्मियों को कम से कम दो पौधे लगाने और उसकी देखरेख करने के निर्देश दिए है।

 वर्जन
 पौधा रोपण कार्य सिर्फ रश्म अदायगी तक सीमित नहंी रहना चाहिए। यह हर एक मानव की नैतिक जवाबदारी का हिस्सा है कि वह पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य करे। सभी पुलिस कर्मियों को कम से कम दो पौधे लगाने कहा है लेकिन यह जबदस्ती आदेश थोपा नहीं गया है। पुलिस वाले स्वेच्छा से पौधा रोपण कर रहें है।
वंद्रशेखर सोलंकी
 पुलिस अधीक्षक उमरिया।

गौडवंश का शानदार एतिहासिक किला, मदनमहल उपेक्षा की गर्त में समा रहा


* सरोकार नहीं जवाबदारों को

जबलपुर। 11 वीं शताब्दी का मदन महल किले में उपेक्षाओं की गर्द चढ़ती जा रही है। समय की छेनी हथौड़ियां इसमें अनगिनत दरारे पैदा कर चुकी है। खंडहर में तब्दील हो रही पुरातत्व धरोहर को सहेजने की तमाम कोशिशे सिर्फ दिखावा बन कर रह गई है। गौडवंश की एतिहासिक धरोहर को जिम्मेदार मोहकमा पर्यटन स्थल के रूप में विकसित नहीं कर पाया गया। पुरातत्व विभाग इसके संरक्षण के लिए कोई ट्रीटमेंट नहीं कर रहा है, जाहिर तौर पर किला भी मदन महल पहाड़ी एक उजाड़ स्थल बन कर रह गया है और किले में हर साल नई दरारें नजर आने लगती है।
 उल्लेखनीय है कि आज से 1000 साल पहले के गोंडवंश के शासकों ने जबलपुर की भौगोलिक सौदर्य एवं इसके सामरिक महत्व को समझते हुए ग्रेनाइट की मजबूत सिलाओं वाली पहाड़ी श्रंखलाओं मं एक चुनिंदा पहाड़ी में  मदन किला बनाया। कालांतर में ये पहाड़ी श्रंखलाओं का नाम ही मदन महल की पहाड़ियां पढ़ गया। जाहिर है नगरीय बसाहट से  सुदूर किले का निर्माण अपनी सामरिक क्षमता और वैभव के प्रतीक के तौर पर स्थापित किया गया। यह किला कभी गौंड सेनापति और उसकी फौज की चौकी हुआ करती थी। यह अश्वशाला एवं गज शला के अस्त्तिव आज भी मौजूद है। मदन महल की पहाड़ी पर पीछे से गजों के चढ़ने और उतरने का रास्ता हुआ करता था।  पहाड़ी के पीछे तालाब हुआ करता था जिसमें गजों को पानी मिलता था, किन्तु अब उस तालाब का अस्तित्व खत्म हो चुका है।


विभाग हो रहे फेल
 मदन महल किले के विकास की अनेक योजनाएं बनी लेकिन विभिन्न कारणों से वे मूर्त रूप नहीं ले पाई। वन विभाग में अपने अधीन मदन महल की पहाड़ी में बांस रोपण करने की योजना तैयार की जिससे समूची पहाड़ी बासो के कुंज के रूप में विकसित किया जा सके। लेकिन इस दिशा में कोई कार्य नहीं हो पाया। वहीं उल्लेखनीय है कि ऐसी ही पहाड़ी में ओशो धाम बनाया गया है जिसे संस्था ने बेहतरीन रमणीय स्थल के रूप में विकसित किया है। इसी तरह जेडीए ने शेलपर्ण विद्यान विकसित किया है जहां पर्यटकों की भी भीड़ लगी रहती है। इसी तरह एक पहाड़ी में पिसनहारी मढ़िया है जो जैनियों का तीर्थ स्थल बना हुआ है। ऐसी ही एक पहाड़ी में शारदा देवी का मंदिर है जहां सावन सोमवार को मेले के दौरान पैर रखने की जगह नहीं बचती है। सवाल उठता है कि पर्यटन विभाग तथा पुरात्व विभाग आखिर मदन महल पहाड़ी

को क्यों विकसित नहीं कर पा रहा है। उपेक्षा का परिणाम है कि प्राकृतिक सौदर्य के खजाने को पर्यटक नहीं पहुंच पार रहे है।
आवारा तत्वों का जमावड़ा
मदन महल की पहाड़ी धूमने भूले भटके कोई पहुंचता है। पूर्व में मदन महल की पहाड़ी घूमने पहुंचने वालों के साथ लूट जैसी कई घटनाएं हो चुकी है। यहां बलात्कार तक की घटनाएं हो चुकी है। दरअसल अपराधिक तत्वों को अड्Þडा पहाड़ी बनी हुई जिसके कारण यह पर्यटन स्थल लोगों की आवाजाही के लिए तरस रहा है।
 ट्रीटमेंट नहंी किया जाता
 मदन महल किला नि:संदेह तौर पर परातत्व विभाग का हिस्सा है भले ही इसके दावे के लिए कोर्ट कचहरी चल रही है लेकिन परातत्व विभाग इस एतिहासिक धरोहर को सहेजने के लिए जरा भी गंभीर नहंी है। अमूमन प्राचीन धरोहर को सहेजने के पुरातत्व विभाग दरारे रोकने, धूप-छांव और बारिश की मार रोकने पुरातत्व वस्तुओं एवं किलों में ट्रीटमेंट करता है लेकिन मदन महल किले में ऐसा कोई कार्य नहंी किया गया। नतीजा यह खंडहर से अब धवस्त होने की कगार में पहुंच रहा है वह तो गौडकालीन स्थापत्य कला का नमूना है कि 11 सौ साल के बाद भी यह बुलंद है और गौड शासक दुर्गावती  की ये निशानी बची हुई है।
 स्ट्रीट लाईटे भी बंद
कुछ साल पहले मदन महल किला को रौशन करने यहां हाई मास्क लाईट लगाई गई थी। इसी तहर किले तक पहुंचने के लिए सड़क पर भी रोशनी की व्यवस्था की गई थी लेकिन यह सब अब बंद पड़ी है। नगर में दिन के उजाले में दूर से दिखाई देने वाले इस किले को लेकर अमूमन बच्चे कोतुहल से पूछते है और  देखने की इच्छा भी जाहिर करते है लेकिन माता -पिता यह कह कर कि जगह  ठीक नहीं हैं, वहां नहीं जाया जा सकता है। उसकी जिज्ञासा को शांत कर देते है।
 पर्यटक नहंी पहुंच रहे
कुछ साल पहले तक यहां प्रतिदिन 100 से अधिक लोग पहुंच जाते थे अब दर्जन भर लोग नहीं पहुंच रहे है। वहीं किले का तल जर्जर हो जाने के कारण यहां प्रवेश पर पुरातत्व विभाग ने रोक लगा दी है। किले के पहले तल से लेकर तृतीय तल तक की दीवारों में दरारें मौजूद हैं और पर्यटकों को उनके करीब पहुंचना खतरनाक प्रतीतज होता है। पर्यटन विभाग, पुरातत्व विभाग अथवा पुलिस विभाग के किसी कर्मचारी की यहां ड़्यटी नहंी रहती है।
वर्जन
मदन महल किला की मरम्मत ,ट्रीटमेंट के लिए सरकार को पुरातत्व विभाग से प्रस्ताव भेजा गया है। इसके साथ किले के आसपास के इलाके में भी कार्य करने योजना का प्रस्ताव बनाया गया है। इसकी स्वीकृति मिलने पर कार्य होगा।
अशोक मेहता
सीए, पुरातत्व विभाग

शरीर के पांच अंग फेल होने से जिंदा लाश बन गया



 * बीमारी नहीं पहचान पाने के कारण
 पहुंच गया था मरीज मरणासन्न हालत में

रीवा से 45 वर्षीय राजेन्द्र सिंह (काल्पनिक नाम) को किडनी रोग विशेषज्ञ  डॉ अश्वनी  पाठक  के पास ा इलाज के लिए लाया गया था तब उसके शरीर के प्रमुख पांच अंग लगभग फेल हो चुके थे। उसकी दोनों किडनियों ने काम करना बंद कर दिया था। गुर्दे के साथ लीवर खराब हो गया था। फेफड़ों में पानी भर  चुका था। मतिष्क में संक्रमण फैल गया था ।  शरीर चेतना शून्य अवस्था में पहुंच गया था। मरीज जिंदा लाश की तरह था और उसके बचने की संभावना 0.1 प्रतिशत भर बची थी।
इस मरीज के उपचार को लेकर डॉ. अश्वनी पाठक ने अपने अनुभव बताए कि दरअसल मरीज को क्या बीमारी हुई थी जिसके कारण शरीर के सभी अंग बेकार हो गए थे ? यह समय पर पता नहीं किया गया था जिसके कारण उसकी यह हालत हुई। मरीज को  जीवित रखना पहली प्राथमिकता थी , इसके बाद उसकी बीमारी के कारण लगाकर उपचार शुरू करना था। मरीज को लाइफ सपोर्टिंग सिस्टम पर रखा गया। मरीज वेंटिलेटर में कई दिन रखा। इसके साथ ही इसकी लायलिसिस पर रखा गया। मरीज का लाइफ सपोर्ट सिस्टम में रखते हुए विभिन्न बीमारियों की दवाइयां देना शुरू की गई।
 ल्सूपस बीमारी से पीड़ित
मरीज दरअसल ल्यूपस बीमारी से पीड़ित था। यह बीमारी  इम्यून सिस्टम को कमजोर करने वाली होती है और इसके होने का कोई ठोस कारण सामने नहंी आता है। अमूममन यह मान लिया जाता है कि अनुवांशिक कारण से बीमारी होती है। मरीज का केयर करने के साथ उसके इम्यून सिस्टम को बढ़ाने दवाइयां दी गई। धीरे धीरे मरीज के स्वास्थ्य में सुधार आने लगा। करीब एक माह इलाज के चलते उसकी दोनों किडनी अपनी पुरानी अवस्था में आ गई। उसका लीवर एवं फेफडे काम करने लगे। मतिष्क सहित शरीर के अन्य अंग भी रोग रहित हो गए तो वह पूर्ण स्वस्थ्य हो गया।

लाइफ टाइम केयर की जरूरत
मरीज को बताया गया कि उसे आॅटो-इम्यून  इंफ्लेमेटरी डिसीज हुई थी। भविष्य में कभी बीमारी के लक्षण नजर आए तो संबंधित डॉक्टर को अपनी रिपोर्ट एवं बीमारी की जानकारी देकर सही इलाज लेते रहे।
क्या है बीमारी
 डॉ पाठक ने बताया कि हमारे शरीर में मौजूद  रोग-प्रतिरोधक तंत्र,  भ्रमित होकर शरीर के ही नाजुक अंगों पर हमला कर देता है। हय हमला कभी एक विशेष अंग के उत्तक पर होता है और कभी कभी कई अंगों पर एक के बाद एक हमला होता है। मरीज की ें आंखों में रक्त स्त्राव, किडनी में सूजन खराबी, लीवर में प्रभाव, त्वचा का फटना रक्त बहना, आदि प्रारंभिक लक्षण होते है। शरीर में भीषण दर्द होता है। इसका सही समय पर इलाज नहीं किया जाए तो शरीर के जोड़ों के साथ ही  त्वचा, किडनी, रक्त कोशिकाओं, दिमाग, हृदय और फेफड़ों तक पर घातक प्रभाव पड़ता है। अमूमन प्रारंभिक लक्षण के दौरान असल बीमारी का पता नहीं चल पाता है लेकिन इसके लिए टेस्ट होता है और टेस्ट से बीमारी की पहचान हो जाती है। बीमारी की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए उपचार की व्यवस्था है।

नाविकों की व्यथा



जबलपुर । उफनाती नर्मदा और बड़े जल स्तर में नदी में नौकायान खतरनाक होने के बावजूद नाव खेते नाविक नजर आ आते है। अंधेरा होने के बाद तो नाव परिवहन बारहों महीने प्रतिबंधित रहती है। इन विषय पस्थितियों में अपनी जान जोखिम में डालकर नाव चलाने पर ही नाविकों के घर के चूल्हे जलते है। नर्मदा में कितना ही पानी हो , भले ही बरगी बांध से पानी छोड़ा गया हो लेकिन नाविकों की नर्मदा के घाटों पर गश्त कभी बंद नहीं होती है। इसके चलते नर्मदा में डूबने वालों की जान बचाने में भी सबसे आगे ये नाबिक रहते है।
उल्लेखनीय है कि  बारिश के मौसम में नौकायान खतरनाक होने के कारण प्रशासन ने नर्मदा नदी में नौकायान  प्रतिबंध कर रखा है किन्तु पेट की आग के कारण हर जोखिम उठाने नाविक तैयार रहते हैं। उफनाती नर्मदा में भले ही वे तैर कर पार करने का हुनर रखते है लेकिन नौका में यात्रा करने वालों के लिए  ये  सफर जान जोखिम में डालने से कम नहीं होता है, किन्तु इस सफर के दौरान नाव में नाविकों के अपने स्वयं के गोताखोर मौजूद होते है, जिनको डूबते को  बचाने का हुनर उनके खून से मिला है।
 ग्वारीघाट में बारिश के महीने पर जोखिम डालने का खेल रोज खेला जाएगा , रात दिन लोगों को नदी के इस पार से उस पार ले जाने का काम वे कर रहे है। भिटोली तथा आसपास के ग्रामीणों के लिए तिलवारा पुल से उसपार पहुंचने का रास्ता करीब 10 किलोमीटर लम्बा पड़ता है। इस लिए वे नाव का रास्ता पकड़ते है। सिर्फ इन लोगों के साथ अपने साामन के साथ मोटर सायकिलें तक होती है।

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 अशोक बर्मन का कहना है कि अभी नावों का ठेका होता है और ठेकेदार उन्हें नाव चलाने के लिए किराए पर नाव देते है। दिन भर मेहनत मजदूरी करने पर बमुश्किल डेढ़- दो सौ रूपए ही मिलते है। इससे परिवार का चलना बेहद कठिन होता है। बारिश के दिनों पर  घाट में दर्जनों नाव बेकार खड़ी रहती है और सवारी नहीं मिलती है। बारिश में पर्यटक नौकायान नहीं करते है। अमूमन भिटौली तथा आसपास के ग्रामीण ही नाव पर बैठते है। उन्हीं से मिलने वाली रकम से काम चलता है। नाव चलाने से इतनी आय नहीं होती है कि एक परिवार का खर्चा चल जाए। हमें तो सिर्फ यही काम आता है। खाली नाव नर्मदा में चलाकर नजर रखे रहते

है यदि किसी की डूबते व्यक्ति की  जान बचाते है तो मन को संतोष होता है और इनाम भी मिल जाता है।
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 बेरोजगार युवकों ने अपनाया धंधा
रज्जू बर्मन का कहना है कि ग्वारीघाट में नाव चलाने का कम अब पेशेवर नाविक नहीं कर रहे है। नाविक के परिवार के या क्षेत्र के  बेरोजगार ही यह काम करते है। कोई काम नहीं है , नदी के किनारे समय कट जाता है और यदि कोई मिल जाए तो चार पैसे भी कमा लेते है लेकिन नाविक के तौर पर जीवन यापन मुश्किल हैं। मजदूरी करके ज्यादा पैसे मिल जाते है।
5230
 नारियल से कमाई
एक नाविक अतुल बर्मन का कहना है कि नर्मदा में लोग नारियल विसर्जित करते है उसे नर्मदा से निकाल कर फिर से बेचने पर कमाई हो जाती है । दिन भर में 10-20 नारियल भी एकत्र हो जाते है तो उपर की कमाई हो जाती है।
रेत निकासी का काम बंद
पहले तो डोगी और नाव से रेत निकासी का काम होता था। नर्मदा में डुबकी लगाकर रेत निकाला करते थे लेकिन अब यह बंद है और घाटों में रेत भी खत्म हो चुकी है जिससे यह कारोबार भी नाविकों से छिन चुका है।
 ट्रस्ट बनने से आशा
 नाविकों को आशा जागी है कि घाटों में प्रशासन ट्रेस्ट बना रहा है। इस ट्रेस्ट में नाविकों को शामिल करने की बात कहीं गई है। ट्रस्ट की आय होने पर नाविकों को स्थाई रोजगार मिलेगा। आपदा प्रबंधन टीम में उन्हें शामिल किया जाएगा। इससे रोजगार की संभावना है। इसके साथ ही घाट में नाव के ठेका प्रणाली बंद होने से नाविकों को वास्तविक श्रम मिलेगा।
वर्जन
नाविकों के कल्याण के उद्देश्य से ही ट्रेस्ट बनाने की योजना पर कार्य किया जा रहा है। इससे नाविकों एवं घाट से जीविका चलाने वालों के रोजगार के नई व्यवस्था विकसित की जाएगी। जिससे इनके कल्याण संभव होगा, किन्तु इस प्रकिया में अभी समय लगेगा।
महेश चंद्र चौधरी
कलेक्टर जबलपुर

बच्चा और ट्यूमर दोनों साथ- साथ पल रहे थे गर्भ में



 * मेजर सर्जरी के बाद निकला शिशु

जबलपुर हॉस्पिटल की स्त्री रोग विशेषज्ञ महिला डॉ. प्रज्ञा धीरावाणी  के पास 18 वर्षीय एक गर्भवती महिला कविता  ( काल्पनिक नाम ) को तीन महीना पहले डिलेवरी के लिए लाया गया। महिला को लेबर पेन होना शुरू हो गया था तथा तत्काल डिलेवरी की स्थिति बन रही थी, उसके बच्चादानी का मुंह भी 5 इंच खुल गया था। फिजिकल चौकप के दौरान पाया गया कि महिला दाहिने तरफ पेट पत्थर की तरह कड़ा था , आशंका हुई कि पेट में बच्चा नहीं है वरन बेहद बड़ा ट्यूमर पल रहा है जबकि चैकअप करने पर बॉय तरफ गर्भस्थ शिशु की धड़कन भी सुनाई पड़ी । ट्यूमर ने आधे से अधिक बच्चा दानी को अपने कब्जे में कर रखा था, ऐसा केस पहली मार आया था जब बच्चा और ट्यूमर दोनों बच्चा दानी से जुडेÞ हुए थे। मामला बेहद पेचिदा था, जच्चा-बच्चे की जान बचाने टीम गठित करनी पड़ी।
 डॉ. धीरवाणी ने बताया कि संयोग से महिला को लेबर पेन इतना अधिक नहीं था कि उसकी डिलेवरी तुरंत कराई जाए। इस बीच चैकअप कराने के लिए एक-दो  दिन का समय मिल गया। सोनोग्राफी कराने में पाया गया कि दाहिने तरफ पूरे पेट में उपर से लेकर नीचे तक ट्यूमर फैला हुआ है। यह ट्यूमर बोन ट्यूमर की तरह हार्ड था। जिसकी सर्जरी करने पर महिला की जान जा सकती थी।
बॉयप्सी कराई गई
 महिला की बच्चादानी के बाहर से बॉयप्सी कराने लिए सैम्पल लिया गया। रिपोर्ट जल्द मंगाई गई ट्यमर में  केंसर सेल नहीं थी  यह एक अच्छी खबर थी। इसके साथ ही आॅपरेशन करने के लिए वरिष्ठ सर्जन के साथ डॉ श्रिया दुग्गल तथा डॉ पी मालाकर की  टीम बनाई गई। डिलेवरी के लिए अमूमन पेट में आड़ा चीरा लगाया जाता है किन्तु ट्यूमर के कारण चीरा लगाने के लिए जगह नहीं थी और परिणाम स्वरूप उपर से लेकर नीचे तक लम्बा चीरा लगाने की जरूरत थी, चूंकि टयूमर के कारण बच्चे को बाहर निकालने के लिए जगह नहीं थी। मेजर आॅपरेशन होना था, इसके लिए खून का प्रबंध कराया गया। पांच यूनिट खून की व्यवस्था होने के बाद करीब तीन-चार घंटे आॅपरेशन चला और बालक शिशु को निकाला गया। बच्चे का वजन 2.3 किलो था तथा बच्चा स्वस्थ्य था। आॅपरेशन के बाद महिला को टांके लगा दिए गए जबकि ट्यमर को पेट में ही छोड़ दिया गया।
डेसमॉइड ट्यमर
 महिला के पेट में जो ट्यूमर था वह बच्चा दानी के भीतर नहीं था वरन पेट का ट्यूमर था जिसने आधे से अधिक बच्चादानी को दबा रखा था। वह डेसमॉइड ट्यूमर था। यह दर असल मसल्स ट्शिू  वाला होता है, इस तुरंत निकालने पर शरीर के मसल्स को बड़ी क्षति पहुंचती तथा रक्त स्त्राव बेहद होने पर महिला की जान चली जाती। यह ट्Þयमर गर्भावस्था में हार्मोंस के कारण तेजी से विकसित होता है। डिलेवरी के बा इसके छोटा होने की संभावना थी। महिला के पेट में मौजूद ट्यमर करीब 20 सेमी का था। इसका वजन भी तीन किलो से अधिक था।

फालोअप किया गया
 महिला को डिलेवरी के बाद फालोअप किया गया। उसका सीटी स्केन कराया गया। डिलेवरी के बाद दवाइयां आदि के चलते काफी हद तक ट्यमर का साइज कम हुआ है। महिला द्वारा भी संपर्क कर ट्Þयमर निकालने की बात कहीं जा रहा है। एक- दो महीना और इंतजार करने के बाद सहजता से  पेट के बाहरी हिस्से में आॅपरेशन कर महिला का ट्यूमर निकाल लिया जाएगा। 

बेटियां जिन पर पिता ही नहीं समाज को नाज है



उड़िया समाज जहां बेटियों से बचपन में ही छुटकारा पाने के लिए माता -पिता जुट जाते है। अब भी अक्षय तृतीय के मौके पर उड़िया मोहल्ले में पुलिस की गश्त लगती है कि कोई बाल विवाह न होने पाए। उडिया मोहल्ला जबलपुर निवासी , डेयरी संचालक एसजी यादव की चार बेटियां थी लेकिन इन्होंने ने बेटी और बेटे में कोई फर्क नहीं समझा। उनकी एक बेटी मधु यादव जो कि अर्जन एवार्ड प्राप्त है तथा भारत की महिला हॉकी टीम का तीन साल तक नेतृत्व किया। उनकी शेष तीनों बेटियां भी नेशनल खिलाड़ी रही है और सभी अच्छे पदों पर नौकरी कर रही है। स्व. जीएस यादव की पत्नी ,पूर्व पार्षद सीता देवी यादव का कहना है कि मधु को कभी उनके पिता ने बेटी नहंी माना था। वे स्वयं हॉकी खेलने के शौकीन थे तथा मधु के साथी तीनों उसकी तीनों बहनों को अपने साथ हॉकी खेलने ले जाते थे। मधु ने जो बचपन से लड़को की तरह पेंट शर्ट पहनना शुरू किया वह आज तक पहन रही है।
 अर्जन  एवार्ड प्राप्त अंतराष्ट्रीय ख्यातिलब्ध मधु यादव कहा कहना है कि उनके पिता ने कभी भी सामाज की रूढियों में न फंस कर लड़के लड़कियों में अंतर नहीं समझा , समाज के लोग लड़कियों को बढ़ावा देने पर उन्हें भला  बुरा  कहते थे , आज उन्हीं बेटियों पर उड़िया समाज नाज कर रहा है। मधु यादव का कहना है मेरी बड़ी बहन वंदना बिदामबाई कॉलेज में स्पोर्ट आफिसर है। वह भारतीय विश्व विद्यालय हॉकी टीम की कप्तान रही है।  मेरी छोटी बहन कंचन यादव महाराष्ट्र स्टेट की हॉकी टीम में खेला करती  थी। उसके छोटी बहन बिन्नू यादव भी अंतराष्ट्रीय खिलाड़ी रही है। दोनों बहने रेलवे में सर्विस कर रही  है।

 जिसे मौत के मुंह से छीन कर लाया, उसकी जिंदगी फिर दांव पर

एक मरीज जिसको आॅपरेशन के लिए बेहोश करना उसकी मौत का कारण बन जाएगा। ऐसे मरीज से को दोबार बेहोश करना पड़ा। पहली बार जब डॉक्टर ने बेहोश किया तो उसकी सांस थम गई। रक्त संचार रूकने लगा। बमुश्किल उसे मौत के मुंह से छीन कर लाना पड़ा। मरीज को कहीं और बड़े हॉस्पिटल में दिखाने की सलाह दी गई लेकिन उन्हीं डॉक्टर के सामने दो साल बाद दूसरे हॉस्पिटल में फिर वहीं मरीज आया, और न चाहते हुए हुए मरीज को तमाम खतरे उठाते हुए बेहोश करने की चुनौती सामने आई।  यह वाक्या विक्टोरिया अस्पताल जबलपुर के सिविल सर्जन  डॉ एके सिंहा के सामने आया।

डॉक्टर सिंहा ने अपने इस केस पर चर्चा करते हुए बताया कि उन दिनों में शहडोल हॉस्पिटल में पदस्थ था। अस्पताल में एक मात्र मे ही निश्चेतक चिकित्सक था। श्याम बेन नामक एक मरीज इलाज के लिए शासकीय अस्पताल शहड़ोल में आया था। मरीज को हार्निया की समस्या थी और उपचार के लिए आॅपरेशन करने की जूरूरत थी। चिकित्सकों ने सभी तरह के टैस्ट करने के उपरांत उसे आॅपरेशन थियेटर में लेकर आए थे। मुझे मरीज को एनेस्थिसिया देने के लिए बुलाया गया। मरीज की रिपोर्ट देखने के बाद सब कुछ नार्मल प्रतीत हो रहा था लेकिन मरीज से उनका काम पूछा गया तो उसने बताया कि शहनाई बजाता है। उसकों सांस लेने में तकलीफ भी होती थी। यह जानकारी के बाद उसको एनेस्थिसिया न देने की बात मैने सर्जन के सामने रखी लेकिन सर्जन ने इसे सामान्य मान लिया। मुझे महसूस हो रहा था कि यदि इस मरीज को एनेस्थिसिया दिया गया तो हो सकता उसकी जान जा सकती है लेकिन उनका इलाज और और आॅपरेशन तो करना था। चिकित्सीय आदर्श मरीज का उपचार करने पर जोर दे रहे थे।
बिगड़ गई हालत
 डॉ. सिंहा ने बताया कि मरीज को जैसे ही मुंह से ऐनेस्थिसिया दिया गया और कुछ देर बाद वह बेहोशी में आ गया। मरीज का आॅपरेशन करने के पूर्व जब चिकित्सकों ने उसक ब्लड प्रेशर चैकअप किया तो उनके होश उड़ गए। मरीज का रक्तचाप बेहद कम हो गया था। उसका रक्त संचार थम रहा था। वहीं उससे सांस लेते नहंी बन रहा था। धड़कने भी अनियंत्रित हो गया था। बह बेहोशी की हालत में ही मौत की ओर बढ़ रहा था। एनेस्थिसिया देने के बाद निर्धारित मापदण्डों के मुताबिक मरीज की मानीटरिंग करने वाले साजो सामान एवं मशीनरी उस दौरान शहडोल अस्पताल में नहंी थी।तत्काल मरीज को आॅक्सीजन चढ़ाई गई। उसका रक्तचाप बढ़ाने तथा एनेस्थितिया का एंटी डोज दिया गया गया। कई घंटे बाद मरीज की चेतना वापस लौटना शुरू हुई। उसके होश आने पर बिना आॅपरेशन के ही उसे किसी और अस्पताल में जाने की सलाह देकर छुट्टी दे दी गई।
दो साल बाद फिर सामने
 डॉक्टर सिंहा का कुछ दिनों बाद शहडोल हॉस्पिटल में स्थानांतरण मेडिकल कालेज अस्पताल जबलपुर हो गया । वे वहां कार्यरत थे। मेडिकल कॉलेज अस्पताल में पदस्थापना के दौरान एक हार्निया के मरीज के आॅपरेशन के लिए मरीज को एनेस्थिसिया देने फिर आॅपरेशन थियेटर में पहुंचा पड़ा। वही मरीज फिर आॅपरेशन के लिए मौजूद था। शहनाई बजाने के कारण उसके फेफड़े बेहद कमजोर और क्षतिग्रस्त थे। सर्जन को बताया कि इस मरीज को एनेस्थिसिया दिया जाएगा तो उसकी मौत हो जाएगी। इससे स्वयं से सांस लेते भी नहंी बनेगा। डॉ.सिंहा ने बताया कि एक बार यह मरीज मौत के मुंह से बाहर आ चुका है।
इलाज के लिए रणनीति बनाई
मरीज का इलाज तो करना था इसके लिए उसे फिर एनेस्थिसिया देने का निर्णय लिया गया लेकिन इसे बार मरीज मेडिकल कॉलेज अस्पताल में था। यहा मरीज की निगरानी के लिए आवश्यक साजो सामान उपलब्य थे। मरीज के बेहद कम समय के लिए बेहोश करने लॉयक डोज दिया गया। एनेस्थिसिया देने केसाथ ही उसकी आॅक्सीजन भी चढ़ा दी गई। उसको हृदय की धड़कनों की मानीटर से सतत निगाह रखी गई। उसका रक्त चाप नार्मल बना हुआ था। चिकित्सकों ने जल्द ही आॅपरेशन कर दिया। इसके बाद उसे एंटीडोज देकर जल्द ही होश में लाया गया और एक चुनौती पूर्ण आॅपरेशन हुआ लेकिन इसमें ईश्वरी शक्ति का भी हाथ था जो दूसरी बार मरीज सामान्य हालत में था जबकि मेरा तो अनुमान था कि मरीज हमेशा के लिए गहरी नींद में चला जाएगा।





एनस्थिसिया के खतरे
आज दो प्रकार के एनेस्थिसिया उपलब्ध है। एक है स्थानीय एनेस्थिसिया और दूसरा सामान्य एनेस्थिसिया। स्थानीय एनेस्थिसिया का उपयोग शरीर के थोड़े से भाग को चेतनाशून्य करने के लिए किया जाता है। इसमें कुछ देर के लिए एक निश्चित भाग में संवेदना खत्म हो जाती है। दूसरा प्रकार है सामान्य एनेस्थिसिया। इनका उपयोग प्राय: पूरे शरीर को सुन्न करने के लिए किया जाता है। हम यह भी कह सकते है कि इनका उपयोग बेहोश करने में किया जाता है।

खून के छीटें से पकड़े जाएंगे शिकारी



* शिकारियों के खिलाफ अनुसंधान में आधुनिक तकनीक
जबलपुर। नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्व विद्यालय में हुई कार्यशाला में वन विभाग के अधिकारियों को वन्य प्राणियों के शिकार में अनुसंधान के आधुनिक तरीके से अवगत कराया गया जिसके बाद एक मामले में शिकारी के नाखून के आधार पर वाइल्ड बोर के एक शिकार के मामले में शिकारियों पर प्रकरण दर्ज किया गया। यह पहली बार हुआ कि नाखून में मौजूद सूखे खून के कणों का डीएनए टेस्ट कर मृत वाइल्ड बोर के शिकार होना प्रमाणित हुआ।
 मानव वध के अनुसंधान में डीएनए टेस्ट तथा विसरा जांच लम्बे समय से चल रही है। ठीक इसी तर्ज पर अब वन्य प्राणियों की मौत पर अनुसंधान में आधुनिक विज्ञान का सहारा लिया जा रहा है और वन कर्मियों को अनुसंंधन की बारिकियों से पशु चिकित्सालय के वैज्ञानिकों ने अवगत कराया है। वन्य प्राणियों के शिकार होने  पर अथवा वन्य प्राणियों के शव मिलने पर अमूमम वन विभाग के पशु चिकित्सक मौके पर पीएम करते है।
 जहरखुरानी  की घटनाएं बढ़ी
बाघ एवं तेन्दुए के शिकारी अमूमन जहर खिलाकर शिकार करना ज्यादा पसंद करते है इससे प्राणियों के खाल तथा अन्य अंग नष्ट नहीं होते है। अब तक जहर खुरानी के अनुसंधान के लिए प्राणियों का बिसरा फारेंसिक लैब भेजा जाता रहा है लेकिन जल्द ही प्रदेश की एक मात्र   सेंटर फॉर वाइल्ड लाइफ फारेंसिक एवं हैल्थ लैब जबलपुर में बिसरा जांच प्रारंभ हो जाएगी। इसके लिए प्रशासन स्तर पर तैयारी की जा रही है चूंकि सागर स्थित फारेंसिक लैब में इतने अधिक सैम्पल पहुंचते है कि रिपोर्ट मिलने में महीनों लग रहे ै।
डीएनए टेस्ट हो रहे
 जबलपुर स्थित सीडब्ल्यूएफएच में वन्य प्राणियों के शिकार में डीएनए टेस्ट किए जा रहे है। बताया गया कि जबलपुर में वन मंडल अंतर्गत वन विभाग ने जंगली सूअर के शिकार के मामले में एक संदेही को पकड़ा लेकिन उनके खिलाफ कोई भी सबूत बन विभाग के पास मौजूद नहीं थे, जबकि वन विभाग को उक्त आरोपी के संबंध में पुख्ता जानकारी थी उसने जंगली सूअर का शिकार किया है। शिकारी के घर में मौजूद बका एवं चाकू कहीं भी खून के निशान नहीं मिले। इसके  बाद शिकारियों के हाथों के नाखून को जांच के लिए सीडब्ल्यूएफएच भेजा गया। लम्बी जांच पड़ताल के बाद शिकारी के नाखून में खून के सूखे कण जमे मिले। इन सूखे खून का डीएनए टेस्ट किया गया तथा जंगली सूअर के डीएनए से मिलान किया गया तो दोनों डीएनए सैम्पल मैच होने पर शिकारी पर प्रकरण बनाया गया।
विष्ट जांच पर भी अनुसंधान
 सीडब्ल्यूएफआई में वन्य प्राणियों के शिकार के मामले में जांच संबंधी अनुसंधान कार्य भी किए जा रहे है। वैज्ञानिक प्रयास में लगे है कि वन्य प्राणियों का शिकार कर खाने वाले शिकारी के मल से पता लगाया जाए कि उन्होंने किस प्राणी की मांस खाया है। फिलहाल ऐसे सैम्पल अनुसंधान के लिए नहीं भेजे गए है और न ही अभी ये तकनीकि इजाद की गई है। अलबत्ता मैनीटर टाइगर एवं बांघ की मल से जांच में पता लगाया जाता है कि उसने मानव को खाया है अथवा नहीं।
वर्जन
 मृत वन्य प्राणी तथा शिकारियों के कपड़े, औजार तथा नाखून से सूखे खून के नमूने प्राप्त कर उसका डीएनए टेस्ट कर अनुसंधान किया जाना प्रारंभ कर दिया गया है।

डॉ. एबी श्रीवास्तव
डायरेक्टर सीडब्ल्यूएफएच जबलपुर।
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प्रदेश के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार 11 नए किस्म के बीजों को शासन से मंजूरी


 * जलवायु परिवर्तन और रोग प्रतिरोधन क्षमता
को ध्यान कर किए गए इजाद

 जबलपुर। मध्य प्रदेश के कृषि वैज्ञानिकों ने आठ फसलों के 11 नए बीज ईजाद  किए है जिसको शासन ने मंजूरी  प्रदान कर दी है और अब किसानों को नए किस्म के बीज मिलने लगेंगे। इन बीजों में  बीमारियों से लड़ने की क्षमता होगी तथा  जलवायु परिवर्तन के हिसाब से कम पानी और कम  दिनों में फसल देंगे। इसके साथ ही नई किस्मों में उपज का भी इजाफा होने का दवा कृषि वैज्ञानिक कर रहे है।
उल्लेखनीय है कि कृषि विश्व विद्यालय में नए बीज को लेकर लम्बे समय से अनुसंधान का कार्य चल रहा था। जिसमें वैज्ञानिकों को बड़ी सफलता तब मिली जबकि शासन ने इस बीजों को स्वीकृति प्रदान कर दी है।
जानकारी के अनुसार जल्द ही किसानों को धान की उपज के लिए 4 उन्न्तत बीज मिलेंगे। इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि ये बीज देशी नक्सल से तौर किए है। इसमें चिन्नौत को और अधिक विकसित किया गया। इसी तरह बालाघाट का विश्व प्रसिद्ध जीरा शंकर को भी उन्नत वैराइटी तैयार की गई। जवाहर  81 तथा जवाहर 767 पहली बार जल्द ही किसानों को उलब्ध होंगे। ये सभी उपज सुगंधित धान के होंगे।
देशी प्रजाति पर जोर
कृषि वैज्ञानिकों ने ऋतु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए लाखों सालों से चले आ रहे देशी दलहन पर विशेष घ्यान दिया। देशी चना की प्रजाति जवाहर 36, जवाहर जई-5, जवाहर राजमंूग-2, रामतिल जेएनएस-30, जवाहर अलसी-79, विकसित की गई। इसी तरह आदिवासियों की विशेष उपज कुटकी की भी एक  किस्म आई है जो ं जवाहर कुटकी-4 है। गन्ना की भी किस्म ओजेएन 95-05 को मंजूरी मिली है।
वर्जन
विश्व विद्यालय में नई किस्मों को ईजाद करने का कार्य सतत चल रहा है। हाल ही में प्रदेश शासन ने जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्व विद्यालय के 11 किस्म के बीजों को स्वीकृ ति प्रदान की है।
 डॉ. विजय सिंह तोमर, कुलपति जेएनकेवीवी