जबलपुर । उफनाती नर्मदा और बड़े जल स्तर में नदी में नौकायान खतरनाक होने के बावजूद नाव खेते नाविक नजर आ आते है। अंधेरा होने के बाद तो नाव परिवहन बारहों महीने प्रतिबंधित रहती है। इन विषय पस्थितियों में अपनी जान जोखिम में डालकर नाव चलाने पर ही नाविकों के घर के चूल्हे जलते है। नर्मदा में कितना ही पानी हो , भले ही बरगी बांध से पानी छोड़ा गया हो लेकिन नाविकों की नर्मदा के घाटों पर गश्त कभी बंद नहीं होती है। इसके चलते नर्मदा में डूबने वालों की जान बचाने में भी सबसे आगे ये नाबिक रहते है।
उल्लेखनीय है कि बारिश के मौसम में नौकायान खतरनाक होने के कारण प्रशासन ने नर्मदा नदी में नौकायान प्रतिबंध कर रखा है किन्तु पेट की आग के कारण हर जोखिम उठाने नाविक तैयार रहते हैं। उफनाती नर्मदा में भले ही वे तैर कर पार करने का हुनर रखते है लेकिन नौका में यात्रा करने वालों के लिए ये सफर जान जोखिम में डालने से कम नहीं होता है, किन्तु इस सफर के दौरान नाव में नाविकों के अपने स्वयं के गोताखोर मौजूद होते है, जिनको डूबते को बचाने का हुनर उनके खून से मिला है।
ग्वारीघाट में बारिश के महीने पर जोखिम डालने का खेल रोज खेला जाएगा , रात दिन लोगों को नदी के इस पार से उस पार ले जाने का काम वे कर रहे है। भिटोली तथा आसपास के ग्रामीणों के लिए तिलवारा पुल से उसपार पहुंचने का रास्ता करीब 10 किलोमीटर लम्बा पड़ता है। इस लिए वे नाव का रास्ता पकड़ते है। सिर्फ इन लोगों के साथ अपने साामन के साथ मोटर सायकिलें तक होती है।
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अशोक बर्मन का कहना है कि अभी नावों का ठेका होता है और ठेकेदार उन्हें नाव चलाने के लिए किराए पर नाव देते है। दिन भर मेहनत मजदूरी करने पर बमुश्किल डेढ़- दो सौ रूपए ही मिलते है। इससे परिवार का चलना बेहद कठिन होता है। बारिश के दिनों पर घाट में दर्जनों नाव बेकार खड़ी रहती है और सवारी नहीं मिलती है। बारिश में पर्यटक नौकायान नहीं करते है। अमूमन भिटौली तथा आसपास के ग्रामीण ही नाव पर बैठते है। उन्हीं से मिलने वाली रकम से काम चलता है। नाव चलाने से इतनी आय नहीं होती है कि एक परिवार का खर्चा चल जाए। हमें तो सिर्फ यही काम आता है। खाली नाव नर्मदा में चलाकर नजर रखे रहते
है यदि किसी की डूबते व्यक्ति की जान बचाते है तो मन को संतोष होता है और इनाम भी मिल जाता है।
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बेरोजगार युवकों ने अपनाया धंधा
रज्जू बर्मन का कहना है कि ग्वारीघाट में नाव चलाने का कम अब पेशेवर नाविक नहीं कर रहे है। नाविक के परिवार के या क्षेत्र के बेरोजगार ही यह काम करते है। कोई काम नहीं है , नदी के किनारे समय कट जाता है और यदि कोई मिल जाए तो चार पैसे भी कमा लेते है लेकिन नाविक के तौर पर जीवन यापन मुश्किल हैं। मजदूरी करके ज्यादा पैसे मिल जाते है।
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नारियल से कमाई
एक नाविक अतुल बर्मन का कहना है कि नर्मदा में लोग नारियल विसर्जित करते है उसे नर्मदा से निकाल कर फिर से बेचने पर कमाई हो जाती है । दिन भर में 10-20 नारियल भी एकत्र हो जाते है तो उपर की कमाई हो जाती है।
रेत निकासी का काम बंद
पहले तो डोगी और नाव से रेत निकासी का काम होता था। नर्मदा में डुबकी लगाकर रेत निकाला करते थे लेकिन अब यह बंद है और घाटों में रेत भी खत्म हो चुकी है जिससे यह कारोबार भी नाविकों से छिन चुका है।
ट्रस्ट बनने से आशा
नाविकों को आशा जागी है कि घाटों में प्रशासन ट्रेस्ट बना रहा है। इस ट्रेस्ट में नाविकों को शामिल करने की बात कहीं गई है। ट्रस्ट की आय होने पर नाविकों को स्थाई रोजगार मिलेगा। आपदा प्रबंधन टीम में उन्हें शामिल किया जाएगा। इससे रोजगार की संभावना है। इसके साथ ही घाट में नाव के ठेका प्रणाली बंद होने से नाविकों को वास्तविक श्रम मिलेगा।
वर्जन
नाविकों के कल्याण के उद्देश्य से ही ट्रेस्ट बनाने की योजना पर कार्य किया जा रहा है। इससे नाविकों एवं घाट से जीविका चलाने वालों के रोजगार के नई व्यवस्था विकसित की जाएगी। जिससे इनके कल्याण संभव होगा, किन्तु इस प्रकिया में अभी समय लगेगा।
महेश चंद्र चौधरी
कलेक्टर जबलपुर
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