Wednesday, 14 September 2016

गौडवंश का शानदार एतिहासिक किला, मदनमहल उपेक्षा की गर्त में समा रहा


* सरोकार नहीं जवाबदारों को

जबलपुर। 11 वीं शताब्दी का मदन महल किले में उपेक्षाओं की गर्द चढ़ती जा रही है। समय की छेनी हथौड़ियां इसमें अनगिनत दरारे पैदा कर चुकी है। खंडहर में तब्दील हो रही पुरातत्व धरोहर को सहेजने की तमाम कोशिशे सिर्फ दिखावा बन कर रह गई है। गौडवंश की एतिहासिक धरोहर को जिम्मेदार मोहकमा पर्यटन स्थल के रूप में विकसित नहीं कर पाया गया। पुरातत्व विभाग इसके संरक्षण के लिए कोई ट्रीटमेंट नहीं कर रहा है, जाहिर तौर पर किला भी मदन महल पहाड़ी एक उजाड़ स्थल बन कर रह गया है और किले में हर साल नई दरारें नजर आने लगती है।
 उल्लेखनीय है कि आज से 1000 साल पहले के गोंडवंश के शासकों ने जबलपुर की भौगोलिक सौदर्य एवं इसके सामरिक महत्व को समझते हुए ग्रेनाइट की मजबूत सिलाओं वाली पहाड़ी श्रंखलाओं मं एक चुनिंदा पहाड़ी में  मदन किला बनाया। कालांतर में ये पहाड़ी श्रंखलाओं का नाम ही मदन महल की पहाड़ियां पढ़ गया। जाहिर है नगरीय बसाहट से  सुदूर किले का निर्माण अपनी सामरिक क्षमता और वैभव के प्रतीक के तौर पर स्थापित किया गया। यह किला कभी गौंड सेनापति और उसकी फौज की चौकी हुआ करती थी। यह अश्वशाला एवं गज शला के अस्त्तिव आज भी मौजूद है। मदन महल की पहाड़ी पर पीछे से गजों के चढ़ने और उतरने का रास्ता हुआ करता था।  पहाड़ी के पीछे तालाब हुआ करता था जिसमें गजों को पानी मिलता था, किन्तु अब उस तालाब का अस्तित्व खत्म हो चुका है।


विभाग हो रहे फेल
 मदन महल किले के विकास की अनेक योजनाएं बनी लेकिन विभिन्न कारणों से वे मूर्त रूप नहीं ले पाई। वन विभाग में अपने अधीन मदन महल की पहाड़ी में बांस रोपण करने की योजना तैयार की जिससे समूची पहाड़ी बासो के कुंज के रूप में विकसित किया जा सके। लेकिन इस दिशा में कोई कार्य नहीं हो पाया। वहीं उल्लेखनीय है कि ऐसी ही पहाड़ी में ओशो धाम बनाया गया है जिसे संस्था ने बेहतरीन रमणीय स्थल के रूप में विकसित किया है। इसी तरह जेडीए ने शेलपर्ण विद्यान विकसित किया है जहां पर्यटकों की भी भीड़ लगी रहती है। इसी तरह एक पहाड़ी में पिसनहारी मढ़िया है जो जैनियों का तीर्थ स्थल बना हुआ है। ऐसी ही एक पहाड़ी में शारदा देवी का मंदिर है जहां सावन सोमवार को मेले के दौरान पैर रखने की जगह नहीं बचती है। सवाल उठता है कि पर्यटन विभाग तथा पुरात्व विभाग आखिर मदन महल पहाड़ी

को क्यों विकसित नहीं कर पा रहा है। उपेक्षा का परिणाम है कि प्राकृतिक सौदर्य के खजाने को पर्यटक नहीं पहुंच पार रहे है।
आवारा तत्वों का जमावड़ा
मदन महल की पहाड़ी धूमने भूले भटके कोई पहुंचता है। पूर्व में मदन महल की पहाड़ी घूमने पहुंचने वालों के साथ लूट जैसी कई घटनाएं हो चुकी है। यहां बलात्कार तक की घटनाएं हो चुकी है। दरअसल अपराधिक तत्वों को अड्Þडा पहाड़ी बनी हुई जिसके कारण यह पर्यटन स्थल लोगों की आवाजाही के लिए तरस रहा है।
 ट्रीटमेंट नहंी किया जाता
 मदन महल किला नि:संदेह तौर पर परातत्व विभाग का हिस्सा है भले ही इसके दावे के लिए कोर्ट कचहरी चल रही है लेकिन परातत्व विभाग इस एतिहासिक धरोहर को सहेजने के लिए जरा भी गंभीर नहंी है। अमूमन प्राचीन धरोहर को सहेजने के पुरातत्व विभाग दरारे रोकने, धूप-छांव और बारिश की मार रोकने पुरातत्व वस्तुओं एवं किलों में ट्रीटमेंट करता है लेकिन मदन महल किले में ऐसा कोई कार्य नहंी किया गया। नतीजा यह खंडहर से अब धवस्त होने की कगार में पहुंच रहा है वह तो गौडकालीन स्थापत्य कला का नमूना है कि 11 सौ साल के बाद भी यह बुलंद है और गौड शासक दुर्गावती  की ये निशानी बची हुई है।
 स्ट्रीट लाईटे भी बंद
कुछ साल पहले मदन महल किला को रौशन करने यहां हाई मास्क लाईट लगाई गई थी। इसी तहर किले तक पहुंचने के लिए सड़क पर भी रोशनी की व्यवस्था की गई थी लेकिन यह सब अब बंद पड़ी है। नगर में दिन के उजाले में दूर से दिखाई देने वाले इस किले को लेकर अमूमन बच्चे कोतुहल से पूछते है और  देखने की इच्छा भी जाहिर करते है लेकिन माता -पिता यह कह कर कि जगह  ठीक नहीं हैं, वहां नहीं जाया जा सकता है। उसकी जिज्ञासा को शांत कर देते है।
 पर्यटक नहंी पहुंच रहे
कुछ साल पहले तक यहां प्रतिदिन 100 से अधिक लोग पहुंच जाते थे अब दर्जन भर लोग नहीं पहुंच रहे है। वहीं किले का तल जर्जर हो जाने के कारण यहां प्रवेश पर पुरातत्व विभाग ने रोक लगा दी है। किले के पहले तल से लेकर तृतीय तल तक की दीवारों में दरारें मौजूद हैं और पर्यटकों को उनके करीब पहुंचना खतरनाक प्रतीतज होता है। पर्यटन विभाग, पुरातत्व विभाग अथवा पुलिस विभाग के किसी कर्मचारी की यहां ड़्यटी नहंी रहती है।
वर्जन
मदन महल किला की मरम्मत ,ट्रीटमेंट के लिए सरकार को पुरातत्व विभाग से प्रस्ताव भेजा गया है। इसके साथ किले के आसपास के इलाके में भी कार्य करने योजना का प्रस्ताव बनाया गया है। इसकी स्वीकृति मिलने पर कार्य होगा।
अशोक मेहता
सीए, पुरातत्व विभाग

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