Wednesday, 14 September 2016

खून के छीटें से पकड़े जाएंगे शिकारी



* शिकारियों के खिलाफ अनुसंधान में आधुनिक तकनीक
जबलपुर। नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्व विद्यालय में हुई कार्यशाला में वन विभाग के अधिकारियों को वन्य प्राणियों के शिकार में अनुसंधान के आधुनिक तरीके से अवगत कराया गया जिसके बाद एक मामले में शिकारी के नाखून के आधार पर वाइल्ड बोर के एक शिकार के मामले में शिकारियों पर प्रकरण दर्ज किया गया। यह पहली बार हुआ कि नाखून में मौजूद सूखे खून के कणों का डीएनए टेस्ट कर मृत वाइल्ड बोर के शिकार होना प्रमाणित हुआ।
 मानव वध के अनुसंधान में डीएनए टेस्ट तथा विसरा जांच लम्बे समय से चल रही है। ठीक इसी तर्ज पर अब वन्य प्राणियों की मौत पर अनुसंधान में आधुनिक विज्ञान का सहारा लिया जा रहा है और वन कर्मियों को अनुसंंधन की बारिकियों से पशु चिकित्सालय के वैज्ञानिकों ने अवगत कराया है। वन्य प्राणियों के शिकार होने  पर अथवा वन्य प्राणियों के शव मिलने पर अमूमम वन विभाग के पशु चिकित्सक मौके पर पीएम करते है।
 जहरखुरानी  की घटनाएं बढ़ी
बाघ एवं तेन्दुए के शिकारी अमूमन जहर खिलाकर शिकार करना ज्यादा पसंद करते है इससे प्राणियों के खाल तथा अन्य अंग नष्ट नहीं होते है। अब तक जहर खुरानी के अनुसंधान के लिए प्राणियों का बिसरा फारेंसिक लैब भेजा जाता रहा है लेकिन जल्द ही प्रदेश की एक मात्र   सेंटर फॉर वाइल्ड लाइफ फारेंसिक एवं हैल्थ लैब जबलपुर में बिसरा जांच प्रारंभ हो जाएगी। इसके लिए प्रशासन स्तर पर तैयारी की जा रही है चूंकि सागर स्थित फारेंसिक लैब में इतने अधिक सैम्पल पहुंचते है कि रिपोर्ट मिलने में महीनों लग रहे ै।
डीएनए टेस्ट हो रहे
 जबलपुर स्थित सीडब्ल्यूएफएच में वन्य प्राणियों के शिकार में डीएनए टेस्ट किए जा रहे है। बताया गया कि जबलपुर में वन मंडल अंतर्गत वन विभाग ने जंगली सूअर के शिकार के मामले में एक संदेही को पकड़ा लेकिन उनके खिलाफ कोई भी सबूत बन विभाग के पास मौजूद नहीं थे, जबकि वन विभाग को उक्त आरोपी के संबंध में पुख्ता जानकारी थी उसने जंगली सूअर का शिकार किया है। शिकारी के घर में मौजूद बका एवं चाकू कहीं भी खून के निशान नहीं मिले। इसके  बाद शिकारियों के हाथों के नाखून को जांच के लिए सीडब्ल्यूएफएच भेजा गया। लम्बी जांच पड़ताल के बाद शिकारी के नाखून में खून के सूखे कण जमे मिले। इन सूखे खून का डीएनए टेस्ट किया गया तथा जंगली सूअर के डीएनए से मिलान किया गया तो दोनों डीएनए सैम्पल मैच होने पर शिकारी पर प्रकरण बनाया गया।
विष्ट जांच पर भी अनुसंधान
 सीडब्ल्यूएफआई में वन्य प्राणियों के शिकार के मामले में जांच संबंधी अनुसंधान कार्य भी किए जा रहे है। वैज्ञानिक प्रयास में लगे है कि वन्य प्राणियों का शिकार कर खाने वाले शिकारी के मल से पता लगाया जाए कि उन्होंने किस प्राणी की मांस खाया है। फिलहाल ऐसे सैम्पल अनुसंधान के लिए नहीं भेजे गए है और न ही अभी ये तकनीकि इजाद की गई है। अलबत्ता मैनीटर टाइगर एवं बांघ की मल से जांच में पता लगाया जाता है कि उसने मानव को खाया है अथवा नहीं।
वर्जन
 मृत वन्य प्राणी तथा शिकारियों के कपड़े, औजार तथा नाखून से सूखे खून के नमूने प्राप्त कर उसका डीएनए टेस्ट कर अनुसंधान किया जाना प्रारंभ कर दिया गया है।

डॉ. एबी श्रीवास्तव
डायरेक्टर सीडब्ल्यूएफएच जबलपुर।
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