जबलपुर। मां नर्मदा के आंचल ग्वारीघाट में प्रदेश का एक मात्र पीला सेमल का पेड़Þ है। वानिकी से जुड़े वैज्ञानिकों की माने तो प्रदेश में एक मात्र ज्ञात पीले सेमल का पेड़ सिर्फ ग्वारीघाट में स्थित है। इस पेड़ की प्रजाति बढ़ाने के लिए मप्र राज्य अनुसंधान केन्द्र में इस पेड़ को लेकर गहन रिसर्च किया गया और अब इस पेड़ की मदद से नर्सरी में एक साल की मेहनत से एक हजार पेड़ तैयार कर लिए गए है।
सेमल जंगली फूलों का राजा भी माना जाता है। बसंत ऋतु के साथ ही जंगल में सेमल और प्लास के फूल खिलने लगते है। सेमल के पेड़ अमूमन लाल फूल खिलते है और जंगल में दूर से देखने पर लगता है कि पेड अंगारों से दहक रहा है।
राज्य वन अनुसंधान केन्द्र को हाल ही के वर्षाे में ज्ञात हुआ कि पीले फूलों वाला भी सेमल होता है और यह पेड़ नर्मदा नदी के किनारे स्थित है। वन अनुसंधान विभाग के वैज्ञानिकों ने पेड़ के बीज एवं ग्राफटिंग की मदद से पीले सेमल के पेड़ तैयार करना शुरू किए। यह सुखद अनुभव अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिकों के लिए है उन्होंने एक पेड़ से हजार पौधे तैयार कर लिए है।
नर्सरी में तैयार है पौधे
बताया गया कि राज्य वन अनुसंधान केन्द्र की नर्सरी में अति दुर्लश्र पीले सेमल की प्रजाति के एक हजार पौधे तैयार कर लिए गए है। इनको लगातार निगरानी में रखा गया है।
डुमना नेचर पार्क में रोपण
राज्य वन अनुसंधान केन्द्र द्वारा अपने यहां तैयार किए गए पीले सेमल के पेड़ों को डुमना नेचर पार्क में रोपित किया जाएगा। इसके अतिरिक्त कुछ पेड़ राज्य वन अनुसंधान केन्द्र में लगाए जाएगे। वैज्ञानिकों का दावा है कि इसकी मदद से जल्द ही प्रदेश में पीले सेमल की प्रजाति अस्तित्च में आएगी
पीला सेमल कैसे हुआ
वैज्ञानिकों की माने तो मेमल के पेड़ में अमूमन लाल फूल ही होते है। अब तक मध्य प्रदेश सहित देश में कहीं भी पीले सेमल के फूल का पता नहीं चला है। वैज्ञानिकों का कहना है कि हजारों साल में जैनिटिक बदलाव होते है जिसको म्यूटन कहा जाता है जिससे नई प्रजाति का जन्म होता है। ऐसा ही पीले सेमल का जन्म हुआ है ये वैज्ञानिक मान कर चल रहे है।
लाल सेमल से हुई ग्राफिंग
वैज्ञानिकों ने जहां बीज की मदद से पेड़ तैयार किए है। वहीं उनका मानना है बीज से मुश्किल में ये पेड़ तैयार होते है अत: लाल सेमल से ग्राफ्टिंग कर पीले सेमल के पेड़ तौर किए है और ये पीले फूल ही देंगे।
सेमल की पहचान
सेमल वृक्ष जंगल और उसके आसपास कुदरती तौर पर होता है। इस पेड़ के फूल पर पाँच पंखुड़ियां होती है और यह लाल रंग का होता है। सामान्य फूलों से बड़े आकार का होता है। फूल के बाद सेमल या सेमर के फल होते है तथा इस फल में रूई नुमा फाइवर होते है सेमल की रूई बेहद मुलायम और सफेद रंगे की होती है। इसका बॉटनिकल नेम ' बामवेक्स सेइबा ' है, जबकि सामान्य रूप से इसे ' कॉटन ट्री के नाम से जाना जाता है। सेमल की पत्तियों जबदस्त छांव देने वाली होती है। होली के पहले यानी बसंत ऋतु के पहले पलास के साथ ही सेमल भी फूलते है। सेमल वृक्ष का औषधीय महत्व भी है।
वर्जन
पीला सेमल का पेड़ अपने आप में दुर्लभ है। हम लोगों की जानकारी के अनुसार अब तक पीला सेमल का पेड़ और कहीं नहीं पाया गया है। नर्सरी में इसके 1000 पौधे तैयार किए है।
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20 करोड़ साल पुराने लिविंग फॉसिल्स प्लांट को बचाने कवायद
* दुनिया में उथल पुथल में बच गए पेड़ है मप्र में ..!
कान्हा और पचमढ़ी मे मिले, हुई पहचान, अब तैयार हो रहे अनेक
दीपक परोहा
जबलपुर। करीब 20 करोड़ साल पुराने पेड़ मध्य प्रदेश के जंगल में मौजूद है। लीविंग फॉसिल्स के रूप में पहचाने गए इन पेड़ों का बमुश्किल संरक्षण किया जा रहा है। जब कभी धरती में डायनासोर का एकछत्र राज हुआ करता था, उस पीरियड़ के भी पेड़ अब भी हमारे यहां मौजूद है और उन पेड़ों को संरक्षित करने के साथ उसकी प्रजाति बढ़ाने का काम राज्यवन अनुसंधान केन्द्र में चल रहा है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि धरती में 20 करोड़ साल पहले अपार जैविक विविधता मौजूद थी ,प्रचुर उर्वक शक्ति वाली धरती में करोड़ साल पहले महा विनाश लीला हुई। वैज्ञानिकों का मत है कि विशाल उल्का पिंड और धरती में सुपर वाल्कैनो यानी महा ज्वालामुखी फटे, धरती में जबदस्त उथल पुथल मची, जिससे समूची पृथ्वी से 90 प्रतिशत से अधिक वनस्पति एवं जीव-जन्तु नष्ट हो गए। इस विनाश में विशालकाय डायनासोर तक विलुप्त हो गए लेकिन इस विनाशलीला के बाद भी कुछ पेड़ पौधे एवं जीवजन्तु धरती में बचे रह गए। लिविंग फॉसिल उन्हीं पेड़ों में एक है।
कान्हा -पचमढ़ी में मिले पेड़
ऐसी ही कुछ वनस्पति को कान्हा और पचमढ़ी में वन अनुसंधान के वैज्ञानिकों ने खोजा है। उनकी पहचान भी
की गई है और इन वनस्पति को जूरासिक पीरियड की माना गया है। कान्हा में मिले पेड़ जिसे लिविंग फॉसिल्स (जिंदा जीवाश्म) का नाम दिया गया है। इस पेड़ को आदिवासी अपनी भाषा में कल्ला के पेड़ के रूप में जानते है।
वर्जन
लिविंग फॉसिल्स के पेड़ से राज्य वन अनुसंधान केन्द्र में पौधे तैयार किए गए है जिनको रोपणी कान्हा एवं पचमढ़ी में की गई है। वहीं अनुसंधान केन्द्र स्वयं के परिक्षेत्र में पेड़ों को लगाए हुए है।
बड़ी मुश्किल से हुए तैयार
लिविंग फॉसिल्स पर अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि काफी मुश्किल और कई प्रयास के बाद इन पेड़ के पौधे तैयार होते है लेकिन उनको तैयार करने में सफलता मिल चुकी है।
वर्जन
नर्सरी में तैयार किए गए युगो पुराने पेड़ दुर्लभ प्रजाति के है जिसको संरक्षित किया गया है और उसकी नस्ल आगे बढ़ाने प्रयास किए जा रहे है।
डॉ. उदय होमकर
वैज्ञानिक, राज्यवन अनुसंधान केन्द्र
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यूकेलिप्टस के क्लोन किसानों का बदलेंगे जीवन
* सूखे और बंजर जमीन में हरियाली ला रहे क्लोन
* राज्य वन अनुसंधान केन्द्र में क्लोनिंग से तैयार की गई नर्सरी
जबलपुर। राज्य वन अनुसंधान केन्द्र जबलपुर में यूक्लिप्टिस के क्लोनिग कर प्लांट तैयार किए गए है। क्लोन प्लांट की पौधे किसानों की किस्तम बदलने वाले साबित हो सकते है। प्लांट चार सालों में तैयार हो जाएगा और उसको काट कर किसान अच्छी आय अर्जित कर सकते है। वन विभाग सहित अन्य सरकारी एजेंसियां भले ही यूक्लिप्टिस की प्लांटेशन करने से बच रही है लेकिन किसानों के लिए बेहद फायदे का पेड़ साबित हो रहा है। इससे जल्द कोई भी पेड़ तैयार नहीं होता है।
उल्लेखनीय है कि यूक्लिप्टिस यानी नीलगिरी का पेड़ जहां पर्यावरण के लिए बेहद उपयोगी साबित होता है, दूसरी तरफ इस पर होने वाले लगातार अनुसंधान के चलते कई वैज्ञानिक पर्यावरण के लिए खतरा मानते है। यूक्लिप्टिस पेड़ भूमिगत पानी को जिसे तेजी से खीचता है, उसके कारण इसे घातक भी माना जाता है, दूसरी तरफ
कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यूक्लिप्टिस की पत्तियों से पानी उत्सर्जन प्रक्रिया बेहद मंद है और पानी पेड़ की जड़ों में संचित रहता है और पर्यावरण के लिए बेहद उपयुक्त है।
बहरहाल यूक्लिप्टिस इलाके की खोई हुई हरियाली वापस लाने में नम्बर वन है। इसके चलते इस पर राज्य वन अनुसंधान में बेहद तेजी से अनुसंधान और इसकी नर्सरी तैयार करने का काम चल रहा है और प्रतिवर्ष लाखों प्लांट यहां से बिक रहे है।
क्लोनिंग की जा रही
यूक्लिप्टिस के प्लांट की सैकड़ा प्रजातियां पाई जाती है। इसके पेड़ 300 फुट तक उंचे होते है लेकिन इनमें से बहुत से पेड़ पर्यावरण के लिए घातक और बेहद उंचाई वाले और तैयार होने में वर्षो लगने से फायदे मंद नहंी है। किसानों के फायदे के लिए लाखों पेड़ में एक आदर्श पेड़ को तलाश कर उसके टिशू कल्चर के तहत क्लोन प्लांट तैयार किए जाते है। ये क्लोन प्लांट सभी आपस में हूबबू और मदर प्लांट की तरह होते है। अनुसंधान केन्द्र में जो प्लांट तैयार किए गए उसकी सबसे बड़ी खासियत है कि चार साल में 10-12 मीटर उंचे हो जाते है और बिलकुल सीधे होते है। इसकी मोटाई 20 से 30 सेमी तक हो जाती है। बिल्लियों , माचिस उद्योग, कागज उद्योग , दवाई उद्योग में प्लांट की जरूरत बनी हुई है। किसानों के लिए नगद उपज बन गई है।
यहां हो रहे प्लांटेशन
बताया गया कि रीवा, सतना, सीधी, सिंगरौली, दमोह, कटनी, जबलपुर , होशंगाबाद, छिंदवाड़ा, सिवनी, ग्वालियर, सहित अनेक जिलों में किसान यूक्लिप्टिस का उत्पादन कर रहे है।
वर्जन
वन-वानिकी के क्षेत्र में सागौन , बांस आदि की तुलना में यूक्लिप्टिस का पेड़ लगाना बेहद सरल और फायदे मंद उपज है। अनुसंधान केन्द्र में प्लांट को लेकर गहन अनुसंधान किए गए है लेकिन प्लांट के साथ जियोलाजिकल अनुसंधान नहीं किया जा रहा है। प्लांट पर्यावरण एवं वानकी के लिए बेहद फायदे मंद है।
डॉ. सचिन दीक्षित
अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिक
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भूमिहीन किसानों की संख्या प्रदेश में बेहिसाब
जबलपुर। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कृषि को लाभ का धंधा बनाना चाहते है लेकिन यहां के अन्नदाताओं का इस भीषण सूखे और कर्ज ने भूखे मरने की नौबत आ चुकी है। जिन किसानों के पास आधा पौन एकड़ से जमीनें हैं वे अपनी जमीन बेच कर भूमिहीन बनने के रास्ते पर चल पड़े है। यूं भी मध्य प्रदेश मे वैसे ही भूमिहीन किसानों यानी खेतिहर मजदूर की फौज बहुत बड़ी है राष्ट्रीय सामाजिक और आर्थिक जनगणना 2011 के आंकड़ों से जाहिर है कि बिहार के बाद मध्य प्रदेश में भूमि हीन किसानों की संख्या सर्वाधिक है।
मध्यप्रदेश में जहां उद्यौग को बढ़ावा देने की नीति पर सरकार लगातार काम कर रही है और नए नए उद्योग एवं पावर प्लॉट के लिए जमीन का अधिगृहण हो रहा है, उसके साथ ही किसान भूमिहीन होते जा रहे है। भूमि अधिकगृहण
बिल 2013 में भले ही किसानों को बाजार मूल्य की चारगुना कीमत मिलेगी लेकिन बड़ी कीमत यह होगी कि सदियों से जो अपनी जमीन में खेती करता रहा है वह अपनी जमीन से वंचित होने की कीमत चुकाएगा और अपने परिवार को भूमिहीन होने की सर्टिफिकेट देगा।
39 प्रतिशत भूमिहीन किसान
लोकसभा में ग्रामीण विकास मंत्री द्वारा सामाजिक-आर्थिक और जाति अधारित जनगणना 2011 के हवाले से जो जवाब प्रस्तुत किए थे उसके मुताबिक मध्य प्रदेश में भूमिहीन परिवारों की प्रतिशत 38.34 प्रतिशत है। सर्वाधिक भूमिहीन किसान मजदूर 46.78 प्रतिशत बिहार में है और देश में तीसरे नम्बर पर आंध्रप्रदेश है जहां इनका प्रतिशत 36.49 है। वहीं सामाजिक आर्थिक एवं जातिगत जनगणना के मुताबिक मध्य प्रदेश में साक्षर लोगों की संख्या काफी है याने पढ़े लिखे भूमिहीन यहां मौजूद है।
नक्सली प्रभावित
जानकारों की माने तो जहां बिहार में भूमिहार और भूमिहीन के बीच संघर्ष की समस्या रही है। वहीं मध्य प्रदेश एवं आंध्र प्रदेश नक्सली समस्याओं से प्रभावित है। भूमिहीन लोगों में बहुत बड़ी संख्या आदिवासियों की होती जा रही है। जहां आदिवासी भूमि संरक्षण के नियम मध्य प्रदेश में है इसके बावजूद यहां आदिवासियों की जमीन हड़पने माफिया सक्रिय है।
किसानों से छिन रही जमीनें
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार देश में 62 प्रतिशत किसानों के पास अब एक हेक्टेयर से कम जमीन बची है। इतनी कम जमीन में एक परिवार का गुजरा संभव नहंी है जाहिर तौर पर उन्हें खेतिहर मजदूर बनना पड़ रहा है और आकाल जैसी विषम परिस्थिति में वह भूमिहीन होते जा रहे है। औद्योगिक विकास के नाम पर प्रदेश में भूमि अधिगृहण में तेजी आई है।
केस -
इमलिया जबलपुर में करीब एक दर्जन किसानों की जमीनें जबलपुर के एक उद्यौगपति एवं आरएसएस से जुड़े एक नेता ने स्टील प्लांट के लिए दी गई। इस परिवारों को न नौकरी मिली और न ही मुआवजा दिया गया। उनकी जमीन अधिगृहण कर ली गई। मामला हाईकोर्ट में पहुंचा तो समझौता कर उनको मुआवजा दिया गया।
केस-2
नरसिंहपुर में रिलायंन्स समूह द्वारा लगाए जा रहे पावर प्लांट के लिए व्यापक पैमाने में ंभूमि अधिगृहण की गई और अब
मुआवजा के लिए किसान कोर्ट कचहरी के चक्कर लगा रहे है।
केस-3
जबलपुर-नागपुर नेशनल हाइवे को चौड़ा करने के लिए हजारों किसानों की शासन ने जमीन अधिगृहण की है और सौ से अधिक किसान मुआवजा वितरण या बदले में जमीन आवंटन के लिए भटक रहे है।
केस-4
जबलपुर में बरेला क्षेत्र में एक आदिवासी की 50 एकड़ जमीन औने-पौने दाम में शैक्षणिक संस्थान में खरीद ली। इस किसाने के पास अब चंद एकड़ जमीन बची है। आदिवासियों की पिछले 5 साल में 5 हजार एकड़ से अधिक जमीन जबलपुर में खुर्दबुर्द की गई।
केस-5
सीलिंग एक्ट खत्म होने के बाद भी भूमिहीन हो गए जबलपुर के डेढ़ हजार से अधिक किसानों को सरकार ने जमीनें नहीं लौटाई। यह मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है।
वर्जन
प्रदेश में हजारों किसानों की जमीनें अधिगृहण कर उन्हें भूमिहीन बना दिया यगा है। जमीन े बदले जमीन नहीं दी जा रही है। वहीं भू माफिया लगातार किसानों की जमीन हड़प रहा है। कृषि भूमि कृषक ही खरीदे ऐसे कानून की मध्य प्रदेश में बेहद आवश्यकता है। प्रदेश में कृषि रकवा भी तेजी से कम होता जा रहा है।
पीजी नाजपांडे
नागरिक उपभोक्ता मंच
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अश्वगंधा युक्त दाने चुगने से मुर्गी के
अंडे का घटेगा कोलेस्ट्रोल लेबल
* पशुचिकित्सा विश्वविद्यालय में
की गई रिसर्च, पौष्टिक दानों का जल्द होगा उत्पादन
जबलपुर। प्रोटीन की प्रचुर मात्रा और कई तरह के विटामिन की मौजूदगी के बावजूद हृदयरोगियों, शुगर पेसेंट तथा अन्य बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के लिए अंडे का सेवन घातक समझा जाता रहा है चूंकि अंडे में कोलेस्ट्रोल की मात्रा अधिक होती है लेकिन नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विश्व विद्यालय के वैज्ञानिकों ने अंडे में 20 प्रतिशत तक कोलेस्ट्रोल कम करने की विधि खोज निकाली है। उन्होंने मुर्गी को देने वाला ऐसा दाना तैयार किया है जिसके खाने से मुर्गी के अंडों में कोलेस्ट्रोल की मात्रा घट जाएगी। इस दाने को अश्वगंधा सहित कुछ अन्य हर्बल औषधीय मिलाकर तैयार किया गया है।
पशुचिकित्सा विज्ञान विश्व विद्यालय ने इस तरह के दाने को विकसित करने के बाद उसका सफल प्रयोग भी मुर्गियों पर कर लिया है। उनका ये प्रयोग सफल हुआ है। यह देश
के लिए बड़ा प्रयोग है। नाना जी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्व विद्यालय जबलपुर के ट्रैक्नालॉजी सेंटर आगे की योजना पर कार्य कर रहा है। विश्व विद्यालय के डॉ.वीपी साहनी के मार्गदर्शन पर मुर्गी दाना के व्यापक उत्पादन की दिशा में कार्य चल रहा है।
औद्योगिक स्तर पर होगा उत्पादन
इस तकनीक के विकसित किए जाने से निकट भविष्य में मध्यप्रदेश सहित विश्व विद्यालय से जुडेÞ फार्मर मुर्गीदाना उत्पादन में इस नई तकनीक का इस्तेमाल कर सकेंगे। नई इजाद की गई तकनीक से मुर्गी दाना बनाने का प्रशिक्षण देने के साथ फार्मूले को इस्तेमाल करने की इजात प्रदान की जाएगी। इससे औद्योगिक स्तर पर उत्पादन जल्द शुरू हो जाएगा।
क्या होगी दाने की खूबी
कृषि विश्व विद्यालय संचालनालय अनुसंधान केन्द्र के मुताबिक मुर्गी के दाने में अब तक प्रोटीन एव कार्बोहाइडेÑड की मात्रा बढ़ाने पर ध्यान दिया जाता था लेकिन अनुसंधान केन्द्र ने मर्गी के स्वास्थ्यवर्धक दाना बनाने पर जोर दिया गया है जिससे मुर्गी एवं उसके अंडे के सेवन से व्यक्ति को औषधीय लाभ भी मिल सके। इस दिशा में मुर्गीदाना में अश्वगंधा तथा कलौजी जैसी हरर्बल औषधीय के मिश्रण मिलाकर मुर्गीदाना तैयार किया गया है। इस दाना को खिलाने के बाद जब मुर्गी के अंडे की जांच की गई तो पाया गया कि अंडे में पहले की तुलना में 20 प्रतिशत घातक कोलेस्ट्रोल कम हो गया है। इस तकनीक को पेटेंट कराने की दिशा में कार्य किया जा रहा है। सूत्रों की माने तो इस तरह के दाना खाने वाले मुर्गी के मीट की गुणवत्ता में इजाफा हुआ है, किन्तु यह दावा विश्व विद्यालय के वैज्ञानिक अधिकृत रूप से नहीं कर रहे है।
वर्जन
मुर्गी के दाना में औषधीय गुण विकसित किया गया है जिससे मुर्गी के अंडे से कोलेस्ट्रोल की मात्रा कम हुई है। विश्व विद्यालय का प्रयास है कि जल्द ही मुर्गी के दानों का औद्योगिक उत्पादन प्रारंभ हो जाए जिससे पोल्ट्री फार्मर इस इस्तेमाल कर आम लोगों तक स्वास्थ्य वर्धक अंडे पहुंचा सके।
डॉ.प्रयाग दत्तजुयाल
कुलपति, पशु विज्ञान विवि जबलपुर
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देश भर में सर्वाधिक बालाएं बंधक बनाई जा रही मप्र से
* कहीं घरेलू नौकरानी बनाया को कहीं देह व्यापार में उतारा , कई बार भी बेंचा गया
जबलपुर। लोकसभा में राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ो का हवाला पेश किया गया जिससे जाहिर होता है कि देश भर में सर्वाधिक बालाएं मध्य प्रदेश की ही बंधक बनाई जा रही है। मध्य प्रदेश के पिछले गरीब और आदिवासी जिलों से इन नाबालिगों को घरेलू काम अथवा अन्य किसी तरह बहला फुसला का बगवा कर लिया जाता है। इसके बाद उन्हें देश के विभिन्न हिस्सों में बेंच दिया जाता है। ये नाबालिग कहीं बंधुआ मजदूर की तरह घरेलू नौकरानी बनी रहती है तो कहीं इनको देह व्यापार में उतार दिया जाता है।
मध्य प्रदेश की नाबालिगों के व्यापार की लगातार बड़ी घटनाएं प्रकाश में आती रही है। इसके साथ ही प्रदेश में मानव तस्करी रोकने अधिकांश जिलों में सेल बनाई गई लेकिन इसके बावजूद अपराधों में कर्मी नहंी आई है।
नए कानून से मामला उजागर
सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद नागालिग के गुमने के कारण पुलिस को मजबूरी में अपहरण का मामला दर्ज करना पड़ रहा है जिससे मामले कीजांच पड़ताल में गंभीरता आई है लेकिन इसके पूर्व नागालिगों के गुमने पर सिफ गुमशुदगी थाने में दर्ज होती रही है। जहां तक नाबालिगों के गुमने पर अपहरण और मानव तस्करी के मामले सामने आए है जबकि मध्य प्रदेश से सैकड़ों की संख्या में बालिग लड़कियों को गायब किया जा रहा है और विभिन्न थानों में सैकड़ों गुमशुदगी के मामले दर्ज है और उनपर गंभीरता से पड़ताल भी नहीं हो रही है।
खुफिया तंत्र फेल
उल्लेखनीय है मंडला, डिंडौरी, सिवनी, बालाघाट,छिंदवाड़ा, कटनी, जबलपुर उमरिया, शहडोल, सीधी, सिंगरौला, रीवा, दमोह,अनूपपुर सहित मालवांचल से भी जिलों से लगातार नाबालिग लड़कियां एवं वयस्क लड़कियां गायब हो रही है। मध्य प्रदेश में दर्जनों गिरोह लड़कियों की तस्करी में जुड़े है लेकिन पुलिस के खुफियातंत्र को कोई जानकारी नहीं है। जब कभी कोई लड़की बरामद होती है तो पुलिस के सामने गिरोह की जानकारी सामने आती है लेकिन तब तक अपराधी गायब भी हो जाते है। महाकौशल, विन्ध्यांचल तथा बुन्देलखंड क्षेत्र में लड़कियों को प्रेम जाल में फंसाकर , तथा गरीब लड़कियों को अच्छी नौकरी दिलाने का झांसा देकर उन्हें दक्षिण भारत तथा उत्तरांचल व उत्तर भारत में बेंचा जा रहा है। इसके अतिरिक्त हरियाण और राजस्थान जैसे क्षेत्र जहां लड़कियों का प्रतिशत कम हैं, वहां भी लड़कियों को धडल्ले से बिक्री की जा रही है। जबलपुर शहर में ही एक महिला डॉक्टर ने एक नाबालिग लड़की को अपने घर में घरेलू नौकरी बनाकर बंधक बनाकर रखे हुए थे। इस मामले ने चाइल्स केयर ने बालिका को मुक्त कराया।
147 नाबालिगों की तस्करी
लोक सभा में मानव तस्करी को लेकर पूछे गए प्रश्न के जवाब में स्वीकार किया गया कि पूरे देश से नाबालिग लड़कियों के गायब होने की घटनाएं हो रही , इसमें मध्य प्रदेश नम्बर वन पर है। मध्य प्रदेश में एक साल में 60 लड़कियां ऐसे बरामद हुई जिनको मानवतस्करी का शिकार बनाया गया था। वहीं उसी वर्ष मध्य प्रदेश सहित देश के प्रमुख नौ राज्यों से 147 नाबालिग लड़कियों की तस्करी के मामले हुए है, जिसमें लड़कियों को बंधन मुक्त कराया गया।
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बालाओं की तस्करी के देश में मामले
राज्य वर्ष 2015 वर्ष 2016
असम ------------ 14
छग 22 14
गुजरात - 09
हरियाण - 01
झारखंड 29 -
मप्र 14 60
यूपी ---- 01
प.बंगाल 12 06
दिल्ली 06 42
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प्रमुख केस
केस-1 -छिंदवाड़ा में गल्स हॉस्टल में पढ़ने वाली एक बाला को कॉल सेंटर में नौकरी दिलाने का झांसा देकर एक युवक नागपुर ले गया तथा वहां लड़कियों की खरीदफरोख्त करने वाले गिरोह को बेच दिया। कुछ दिनों बाद पूना पुलिस ने एक देह व्यापार के अड़्डे
छापा मारा तो वहां उक्त लड़की मिली जिसने पुलिस एवं मजिस्ट्रेट का आपबीती सुनाई तो लड़की को एक एनजीओ के माध्यम से उसके घर पहुंचाया गया। उसपर देह व्यापार का मामला भी पूना पुलिस ने दर्ज नहंी किया। लड़की के अपहरण एवं मानवतस्करी का मामला दर्ज नहंी हुआ लेकिन इस खबर के संज्ञान में आने के बाद पुलिस ने खानापूर्ति करते हुए मामला दर्ज किया लेकिन आरोपी का कोई सुराग नहंी लगा।
केस-2
सिवनी के कुरई थाना क्षेत्र की एक नाबालिग लड़की को प्रेम में फंसाने के बाद राजस्थान में बेच दिया गया। लड़की को खरीददार राजस्थान ले गया तथा वहां उसका दैहिक शोषण करता रहा। लड़की को दोबार बेचने की योजना चल रही थी तभी किसी तरह बाला भागकर आ गई। बाद में पुलिस ने लड़की खरीदने वाले युवक को गिरफ्तार कर लिया। उल्लेखनीय है कि इस तरह के दर्जनों मामले अब तक प्रकाश में आ चुके है।
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