Wednesday, 14 September 2016

बेटियां जिन पर पिता ही नहीं समाज को नाज है



उड़िया समाज जहां बेटियों से बचपन में ही छुटकारा पाने के लिए माता -पिता जुट जाते है। अब भी अक्षय तृतीय के मौके पर उड़िया मोहल्ले में पुलिस की गश्त लगती है कि कोई बाल विवाह न होने पाए। उडिया मोहल्ला जबलपुर निवासी , डेयरी संचालक एसजी यादव की चार बेटियां थी लेकिन इन्होंने ने बेटी और बेटे में कोई फर्क नहीं समझा। उनकी एक बेटी मधु यादव जो कि अर्जन एवार्ड प्राप्त है तथा भारत की महिला हॉकी टीम का तीन साल तक नेतृत्व किया। उनकी शेष तीनों बेटियां भी नेशनल खिलाड़ी रही है और सभी अच्छे पदों पर नौकरी कर रही है। स्व. जीएस यादव की पत्नी ,पूर्व पार्षद सीता देवी यादव का कहना है कि मधु को कभी उनके पिता ने बेटी नहंी माना था। वे स्वयं हॉकी खेलने के शौकीन थे तथा मधु के साथी तीनों उसकी तीनों बहनों को अपने साथ हॉकी खेलने ले जाते थे। मधु ने जो बचपन से लड़को की तरह पेंट शर्ट पहनना शुरू किया वह आज तक पहन रही है।
 अर्जन  एवार्ड प्राप्त अंतराष्ट्रीय ख्यातिलब्ध मधु यादव कहा कहना है कि उनके पिता ने कभी भी सामाज की रूढियों में न फंस कर लड़के लड़कियों में अंतर नहीं समझा , समाज के लोग लड़कियों को बढ़ावा देने पर उन्हें भला  बुरा  कहते थे , आज उन्हीं बेटियों पर उड़िया समाज नाज कर रहा है। मधु यादव का कहना है मेरी बड़ी बहन वंदना बिदामबाई कॉलेज में स्पोर्ट आफिसर है। वह भारतीय विश्व विद्यालय हॉकी टीम की कप्तान रही है।  मेरी छोटी बहन कंचन यादव महाराष्ट्र स्टेट की हॉकी टीम में खेला करती  थी। उसके छोटी बहन बिन्नू यादव भी अंतराष्ट्रीय खिलाड़ी रही है। दोनों बहने रेलवे में सर्विस कर रही  है।

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