* अब भी मिल रही है प्रतिबंधित दवाइयां डेयरी वालों को
जबलपुर। पशुओं के उपयोग के लिए डिक्लोफेनिक दवाइयां गिद्धों की नस्ल बचाने के लिए प्रतिबंधित कर दी गई है लेकिन दूध के कारोबारी डेयरी फार्मर अब भी डिक्लोफेनिक दवाइयों को इस्तेमाल कर रहे है। इसका सबूत जबलपुर में डेयरी में छापे के दौरान मिनी डिक्लोफेनिक दवाइयों की शीशियां मिली। प्रतिबंधित दवाइयों की शीशियां डेयरी में कैसे आई ? यह जांच का विषय बन कर रह गया है लेकिन जांच दल में शामिल पशु चिकित्सकों की माने तो प्रदेश सहित देश में डिक्लोफेनिक दवाइयां अब भी प्रचलन में है।
दरअसल भारतीय पशु अनुसंधान संस्थान तथा बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी ने पहली बार अपने सर्वे में यह उजागर किया कि पशुओं में बीमारी से बचाने के लिए उपयोग किए जाने वाले डिक्लोफिनेक के टीकों के कारण गिद्धों का खात्म हुआ है। मृत गिद्धों की जांच करने पर पाया गया कि उनके गुर्दे में डिक्लोफिनेक की मात्रा मिली जो जिससे उनकी किडनी फेल हुई थी। सन 1990 की तुलना में देश में 10 प्रतिशत गिद्ध की आबादी बची है। इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद से मवेशियों के लिए बनने वाले डिक्लोफेनिक दवाइयां शासन ने प्रतिबंधित कर दी और इसका उत्पादन बंद करा दिया गया। उल्लेखनी है अनुसंधान से स्पष्ट है कि डिक्लोफिनेक खाने वाले मृत हुए मवेशी के मांस खाने के कारण गिद्धों का किडनी खराब हो जाती है। मवेशियों के मांस के माध्यम से गिद्धों में डिक्लोफिनेक पहुंचता है। इसका असर उनकी प्रजनन क्षमता भी पड़ता है।
पहुंच रही है डेयरी वालों के पास
उल्लेखनीय है कि दवा कंपनियों ने मवेशियों के दवा का उत्पादन तो बंद कर दिया लेकिन दवा कंपनी मानव उपयोग के लिए दवाइयों को अलग अलग नाम से उत्पादन करती रही। जानकारों की माने तो मानव उपयोग की दवाइयां डेयरी संचालक मवेशियों को आसानी से मिल जाती है। डेयरीवाले यही दवाइयां जानवर को डोज बढ़ा कर दे देते है। यह दवाइयां सस्ती भी होती है।
उत्तर प्रदेश में हो रहा निर्माण
सूत्रों का कहना है कि मवेशियों के लिए उत्तर प्रदेश में कतिपय कंपनियां डिक्लोफेनिक दवा का उत्पादन कर ही है। दवाई कंपनी मानव के नाम पर दवाइयां बना रही है जबकि उसका उपयोग मवेशियों के लिए हो रहा है। कंपनी के एजेंट डेयरी वालों तक सप्लाई कर देते है। अमूमन ये काम वे ही कंपनियां कर रही है जो आक्सीटोसिन मवेशियों के इस्तेमान के लिए बना रही है जबकि उक्त इंजेक्शन भी प्रतिबंधित है।
दस गुना डोज लगता है
जानकारों के अनुसार मवेशी को डिक्लोफेनिक की 30 एमएल का डोज लगता है जबकि यह डोज दस मनुष्यों के लिए पर्याप्त होता है। पशुपालक मनुष्यों की दवाई की दस गुना डोज मवेशियों के देते है।
वर्जन
मवेशियों को प्रतिबंधित दवाइयां अब भी डेयरियों में पहुंच रही है इसका नाम बदल कर तथा अवैध तरीके से कारोबार हो रहा है।
िमनीष कुलश्रेष्ठ
प्राणी विशेषज्ञ
वर्जन
मवेशियों को दी जाने वाली डिक्लोफेनिक दवाइयां प्रतिबंधित कर दी है। कोई भी पशु चिकित्सक इस दवा को नहीं लिखता है और न ही यह मिलती है। यदि डेयरियों में ये पहुंच रही है तो अवैध तौर से पहुंच रहीहै। ।
डॉ. एबी श्रीवास्तव
पशुरोग विशेषज्ञ , पशु चिकित्सा महाविद्यालय
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