जिसे मौत के मुंह से छीन कर लाया, उसकी जिंदगी फिर दांव पर
एक मरीज जिसको आॅपरेशन के लिए बेहोश करना उसकी मौत का कारण बन जाएगा। ऐसे मरीज से को दोबार बेहोश करना पड़ा। पहली बार जब डॉक्टर ने बेहोश किया तो उसकी सांस थम गई। रक्त संचार रूकने लगा। बमुश्किल उसे मौत के मुंह से छीन कर लाना पड़ा। मरीज को कहीं और बड़े हॉस्पिटल में दिखाने की सलाह दी गई लेकिन उन्हीं डॉक्टर के सामने दो साल बाद दूसरे हॉस्पिटल में फिर वहीं मरीज आया, और न चाहते हुए हुए मरीज को तमाम खतरे उठाते हुए बेहोश करने की चुनौती सामने आई। यह वाक्या विक्टोरिया अस्पताल जबलपुर के सिविल सर्जन डॉ एके सिंहा के सामने आया।
डॉक्टर सिंहा ने अपने इस केस पर चर्चा करते हुए बताया कि उन दिनों में शहडोल हॉस्पिटल में पदस्थ था। अस्पताल में एक मात्र मे ही निश्चेतक चिकित्सक था। श्याम बेन नामक एक मरीज इलाज के लिए शासकीय अस्पताल शहड़ोल में आया था। मरीज को हार्निया की समस्या थी और उपचार के लिए आॅपरेशन करने की जूरूरत थी। चिकित्सकों ने सभी तरह के टैस्ट करने के उपरांत उसे आॅपरेशन थियेटर में लेकर आए थे। मुझे मरीज को एनेस्थिसिया देने के लिए बुलाया गया। मरीज की रिपोर्ट देखने के बाद सब कुछ नार्मल प्रतीत हो रहा था लेकिन मरीज से उनका काम पूछा गया तो उसने बताया कि शहनाई बजाता है। उसकों सांस लेने में तकलीफ भी होती थी। यह जानकारी के बाद उसको एनेस्थिसिया न देने की बात मैने सर्जन के सामने रखी लेकिन सर्जन ने इसे सामान्य मान लिया। मुझे महसूस हो रहा था कि यदि इस मरीज को एनेस्थिसिया दिया गया तो हो सकता उसकी जान जा सकती है लेकिन उनका इलाज और और आॅपरेशन तो करना था। चिकित्सीय आदर्श मरीज का उपचार करने पर जोर दे रहे थे।
बिगड़ गई हालत
डॉ. सिंहा ने बताया कि मरीज को जैसे ही मुंह से ऐनेस्थिसिया दिया गया और कुछ देर बाद वह बेहोशी में आ गया। मरीज का आॅपरेशन करने के पूर्व जब चिकित्सकों ने उसक ब्लड प्रेशर चैकअप किया तो उनके होश उड़ गए। मरीज का रक्तचाप बेहद कम हो गया था। उसका रक्त संचार थम रहा था। वहीं उससे सांस लेते नहंी बन रहा था। धड़कने भी अनियंत्रित हो गया था। बह बेहोशी की हालत में ही मौत की ओर बढ़ रहा था। एनेस्थिसिया देने के बाद निर्धारित मापदण्डों के मुताबिक मरीज की मानीटरिंग करने वाले साजो सामान एवं मशीनरी उस दौरान शहडोल अस्पताल में नहंी थी।तत्काल मरीज को आॅक्सीजन चढ़ाई गई। उसका रक्तचाप बढ़ाने तथा एनेस्थितिया का एंटी डोज दिया गया गया। कई घंटे बाद मरीज की चेतना वापस लौटना शुरू हुई। उसके होश आने पर बिना आॅपरेशन के ही उसे किसी और अस्पताल में जाने की सलाह देकर छुट्टी दे दी गई।
दो साल बाद फिर सामने
डॉक्टर सिंहा का कुछ दिनों बाद शहडोल हॉस्पिटल में स्थानांतरण मेडिकल कालेज अस्पताल जबलपुर हो गया । वे वहां कार्यरत थे। मेडिकल कॉलेज अस्पताल में पदस्थापना के दौरान एक हार्निया के मरीज के आॅपरेशन के लिए मरीज को एनेस्थिसिया देने फिर आॅपरेशन थियेटर में पहुंचा पड़ा। वही मरीज फिर आॅपरेशन के लिए मौजूद था। शहनाई बजाने के कारण उसके फेफड़े बेहद कमजोर और क्षतिग्रस्त थे। सर्जन को बताया कि इस मरीज को एनेस्थिसिया दिया जाएगा तो उसकी मौत हो जाएगी। इससे स्वयं से सांस लेते भी नहंी बनेगा। डॉ.सिंहा ने बताया कि एक बार यह मरीज मौत के मुंह से बाहर आ चुका है।
इलाज के लिए रणनीति बनाई
मरीज का इलाज तो करना था इसके लिए उसे फिर एनेस्थिसिया देने का निर्णय लिया गया लेकिन इसे बार मरीज मेडिकल कॉलेज अस्पताल में था। यहा मरीज की निगरानी के लिए आवश्यक साजो सामान उपलब्य थे। मरीज के बेहद कम समय के लिए बेहोश करने लॉयक डोज दिया गया। एनेस्थिसिया देने केसाथ ही उसकी आॅक्सीजन भी चढ़ा दी गई। उसको हृदय की धड़कनों की मानीटर से सतत निगाह रखी गई। उसका रक्त चाप नार्मल बना हुआ था। चिकित्सकों ने जल्द ही आॅपरेशन कर दिया। इसके बाद उसे एंटीडोज देकर जल्द ही होश में लाया गया और एक चुनौती पूर्ण आॅपरेशन हुआ लेकिन इसमें ईश्वरी शक्ति का भी हाथ था जो दूसरी बार मरीज सामान्य हालत में था जबकि मेरा तो अनुमान था कि मरीज हमेशा के लिए गहरी नींद में चला जाएगा।
एनस्थिसिया के खतरे
आज दो प्रकार के एनेस्थिसिया उपलब्ध है। एक है स्थानीय एनेस्थिसिया और दूसरा सामान्य एनेस्थिसिया। स्थानीय एनेस्थिसिया का उपयोग शरीर के थोड़े से भाग को चेतनाशून्य करने के लिए किया जाता है। इसमें कुछ देर के लिए एक निश्चित भाग में संवेदना खत्म हो जाती है। दूसरा प्रकार है सामान्य एनेस्थिसिया। इनका उपयोग प्राय: पूरे शरीर को सुन्न करने के लिए किया जाता है। हम यह भी कह सकते है कि इनका उपयोग बेहोश करने में किया जाता है।
एक मरीज जिसको आॅपरेशन के लिए बेहोश करना उसकी मौत का कारण बन जाएगा। ऐसे मरीज से को दोबार बेहोश करना पड़ा। पहली बार जब डॉक्टर ने बेहोश किया तो उसकी सांस थम गई। रक्त संचार रूकने लगा। बमुश्किल उसे मौत के मुंह से छीन कर लाना पड़ा। मरीज को कहीं और बड़े हॉस्पिटल में दिखाने की सलाह दी गई लेकिन उन्हीं डॉक्टर के सामने दो साल बाद दूसरे हॉस्पिटल में फिर वहीं मरीज आया, और न चाहते हुए हुए मरीज को तमाम खतरे उठाते हुए बेहोश करने की चुनौती सामने आई। यह वाक्या विक्टोरिया अस्पताल जबलपुर के सिविल सर्जन डॉ एके सिंहा के सामने आया।
डॉक्टर सिंहा ने अपने इस केस पर चर्चा करते हुए बताया कि उन दिनों में शहडोल हॉस्पिटल में पदस्थ था। अस्पताल में एक मात्र मे ही निश्चेतक चिकित्सक था। श्याम बेन नामक एक मरीज इलाज के लिए शासकीय अस्पताल शहड़ोल में आया था। मरीज को हार्निया की समस्या थी और उपचार के लिए आॅपरेशन करने की जूरूरत थी। चिकित्सकों ने सभी तरह के टैस्ट करने के उपरांत उसे आॅपरेशन थियेटर में लेकर आए थे। मुझे मरीज को एनेस्थिसिया देने के लिए बुलाया गया। मरीज की रिपोर्ट देखने के बाद सब कुछ नार्मल प्रतीत हो रहा था लेकिन मरीज से उनका काम पूछा गया तो उसने बताया कि शहनाई बजाता है। उसकों सांस लेने में तकलीफ भी होती थी। यह जानकारी के बाद उसको एनेस्थिसिया न देने की बात मैने सर्जन के सामने रखी लेकिन सर्जन ने इसे सामान्य मान लिया। मुझे महसूस हो रहा था कि यदि इस मरीज को एनेस्थिसिया दिया गया तो हो सकता उसकी जान जा सकती है लेकिन उनका इलाज और और आॅपरेशन तो करना था। चिकित्सीय आदर्श मरीज का उपचार करने पर जोर दे रहे थे।
बिगड़ गई हालत
डॉ. सिंहा ने बताया कि मरीज को जैसे ही मुंह से ऐनेस्थिसिया दिया गया और कुछ देर बाद वह बेहोशी में आ गया। मरीज का आॅपरेशन करने के पूर्व जब चिकित्सकों ने उसक ब्लड प्रेशर चैकअप किया तो उनके होश उड़ गए। मरीज का रक्तचाप बेहद कम हो गया था। उसका रक्त संचार थम रहा था। वहीं उससे सांस लेते नहंी बन रहा था। धड़कने भी अनियंत्रित हो गया था। बह बेहोशी की हालत में ही मौत की ओर बढ़ रहा था। एनेस्थिसिया देने के बाद निर्धारित मापदण्डों के मुताबिक मरीज की मानीटरिंग करने वाले साजो सामान एवं मशीनरी उस दौरान शहडोल अस्पताल में नहंी थी।तत्काल मरीज को आॅक्सीजन चढ़ाई गई। उसका रक्तचाप बढ़ाने तथा एनेस्थितिया का एंटी डोज दिया गया गया। कई घंटे बाद मरीज की चेतना वापस लौटना शुरू हुई। उसके होश आने पर बिना आॅपरेशन के ही उसे किसी और अस्पताल में जाने की सलाह देकर छुट्टी दे दी गई।
दो साल बाद फिर सामने
डॉक्टर सिंहा का कुछ दिनों बाद शहडोल हॉस्पिटल में स्थानांतरण मेडिकल कालेज अस्पताल जबलपुर हो गया । वे वहां कार्यरत थे। मेडिकल कॉलेज अस्पताल में पदस्थापना के दौरान एक हार्निया के मरीज के आॅपरेशन के लिए मरीज को एनेस्थिसिया देने फिर आॅपरेशन थियेटर में पहुंचा पड़ा। वही मरीज फिर आॅपरेशन के लिए मौजूद था। शहनाई बजाने के कारण उसके फेफड़े बेहद कमजोर और क्षतिग्रस्त थे। सर्जन को बताया कि इस मरीज को एनेस्थिसिया दिया जाएगा तो उसकी मौत हो जाएगी। इससे स्वयं से सांस लेते भी नहंी बनेगा। डॉ.सिंहा ने बताया कि एक बार यह मरीज मौत के मुंह से बाहर आ चुका है।
इलाज के लिए रणनीति बनाई
मरीज का इलाज तो करना था इसके लिए उसे फिर एनेस्थिसिया देने का निर्णय लिया गया लेकिन इसे बार मरीज मेडिकल कॉलेज अस्पताल में था। यहा मरीज की निगरानी के लिए आवश्यक साजो सामान उपलब्य थे। मरीज के बेहद कम समय के लिए बेहोश करने लॉयक डोज दिया गया। एनेस्थिसिया देने केसाथ ही उसकी आॅक्सीजन भी चढ़ा दी गई। उसको हृदय की धड़कनों की मानीटर से सतत निगाह रखी गई। उसका रक्त चाप नार्मल बना हुआ था। चिकित्सकों ने जल्द ही आॅपरेशन कर दिया। इसके बाद उसे एंटीडोज देकर जल्द ही होश में लाया गया और एक चुनौती पूर्ण आॅपरेशन हुआ लेकिन इसमें ईश्वरी शक्ति का भी हाथ था जो दूसरी बार मरीज सामान्य हालत में था जबकि मेरा तो अनुमान था कि मरीज हमेशा के लिए गहरी नींद में चला जाएगा।
एनस्थिसिया के खतरे
आज दो प्रकार के एनेस्थिसिया उपलब्ध है। एक है स्थानीय एनेस्थिसिया और दूसरा सामान्य एनेस्थिसिया। स्थानीय एनेस्थिसिया का उपयोग शरीर के थोड़े से भाग को चेतनाशून्य करने के लिए किया जाता है। इसमें कुछ देर के लिए एक निश्चित भाग में संवेदना खत्म हो जाती है। दूसरा प्रकार है सामान्य एनेस्थिसिया। इनका उपयोग प्राय: पूरे शरीर को सुन्न करने के लिए किया जाता है। हम यह भी कह सकते है कि इनका उपयोग बेहोश करने में किया जाता है।
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