दीपक परोहा
स्वयं को फिजियोथैरेपी के माध्यम से फिजियोथैरेपिस्ट गौरव कोचर ने अपने को चलने फिरने लायक बनाया। स्टेराइड मेडिशन के साइड इफैक्टर से उनके कुल्हें खराब हो गए। कुल्हे बदले जाने के बाद भी विकलांगता बनी रही, ऐसे में फिजियोथैरेपी से उन्होनें अपने कूल्हों में जान डाली। इसके अतिरिक्त उनके द्वारा अनेक लकवा पीड़ित लोगों को अपने पैरों पर खड़ा किया गया है।
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जबलपुर। गौरव कोचर का कहना है कि मै जब अपनी क्लिनिक से निकला तो मुझे आटो की आवाज और सड़क में होने वाला शोरगुल नहीं सुनाई दे रहा था। दुनिया बड़ी अजीब लगी। अचानक सुनाई देना बंद होने से मै घबरा गया। तत्काल नाक काल गला रोग चिकित्सक डॉ. नितिन अड़गांवकर के पास पहुंचे। उन्होंने परीक्षण उपरांत जो बीमारी के संबंध में बताया तो मेरा सोचने की झमता सुन्न पड़ने लगी थी। उन्होंने बताया कि अज्ञात वायरल अटैक से स्थिति निर्मित हुई है। श्रवण संबंधी तंत्रिका तंत्र को वायरस नष्ट कर रहे है। अभी बहरा पन है आगे कुछ भी हो सकता है। उपचार के लिए स्टेराइड के इंजैक्श देने होंगे। मै स्टेराइड के साइड इफैक्ट के बारे में सुन रखा था। इससे विकलांगता तक आ सकती है लेकिन मुझे शारीरिक विकलांगता मंजूर थी लेकिन बहरापन नहीं।
जबलपुर के प्रमुख फिजियो थैरिपिस्ट गौरव कोचर का यह कहना है। उनके साथ ये वाक्या कुछ साल पहले घटित हुआ। कान में सुनाई न पड़ने के कारण इलाज चला, दिल्ली के एम्स हास्पिटल में भी श्री कोचर ने इलाज करवाया, वहां भी चिकित्सक ने इस अज्ञात वायरस के संबंध में कोई विशेष जानकारी नहीं दे पाए। बहरहाल स्टेराइड युक्त दवाइयों से बेहरापन दूर हुआ। श्री कौचर का इस संबंध में स्टराइड को लेकर कहना है कि भले ही इसके साइड इफैक्ट जानलेवा एवं जहर की तरह है लेकिन यह दवाई जादू की तरह है, ये अमृत है और मानव जीवन को बचाने में बेहद कारगर है।
उन्होंने बताया कि सड़क दुर्घटनाओं में खासतौर पर जब ब्रेन इंज्यूरी होती है अथवा मांस पेशिया बुरी तरह डैमेज होती है और उससे विकलांगता
होने का खतरा रहा है तब स्टेराइड या स्टेराड युक्त दवाइयां ही जीवन बचाती है। इस दवाई का साइड डिफैक्ट भी हर किसी को नहंी होता है। किन्तु श्री कोचर दुर्भाग्य शाली रहे इस मामले में। दवाई के प्रभाव से उनके कुल्हे की हड़डी खराब हो गई।
डॉक्टर कोचर को वायरल इफैक्ट के ऐवेसकुलर नेकरोसिस नामक बीमारी हुई जिससे उनको बहरापन आ गया लेकिन यह स्थायी नहीं हो पाया किन्तु कुल्हे खराब होने से विकलांगता आ गई। इसके इलाज के लिए डॉ जितेन्द्र जामदार के हास्पिटल मे कुल्हा रिपलेस्मेंट किया गया। किन्तु इस कुल्हा रिपलेस्टमेंट के बाद फिर अपने पैरों खड़े होने और चलने के लिए जरूरी था कि फिजियोथैरपी की। गौरव कोचर जो स्वयं फियोथैरेपिस्ट है उन्होंने अपने स्टूडेंट के साथ मिलकर स्वयं फिजियोंथैरेपी की इक्ससाइज प्रारंभी की। कुछ महीने में ही वे चलने फिरने लगे ह और अपने मरीजों के लिए प्रेरणा है, बीमारी से लड़ने के लिए फियोथैरेपी के साथ ही उनमें आत्म विश्वास जगाने के लिए उनका स्वयं का उदाहरण है।
बाक्स -1
सन 1998 से कार्यरत
फिजियोथैरेपिस्ट डॉ गौरव कोचरसन 1998 से जबलपुर में विभिन्न रूप से शारीरिक विकलांगता से जूझ रहे मरीजों का इलाज कर रहे है। उनकी मांस पेशियों एवं हड्डियों में उर्जा का संचार कर रहे है। उन्हें अपने पैरों पर खड़ा कर रहे है। नगर के कई अस्पताल में वे कंस्लटेंट है। उनका स्वयं का फिजियोथैरेपी सेंटर भी है। अब तक उन्होंने 25-30 फिजियोथैरिपिस्ट को प्रशिक्षण भी दे चुके है।
बाक्स -2
8 साल की उम्र से आ रही शुभि
धनवंतरी नगर निवासी शुभी शुक्ला के दोनों पैरों में जान डालने में गौरव कोचर कामयाब हुए है। शुभि शुक्ला जब 7-8 वर्ष की थी तो अचानक उसके दोनो पैर लकवा ग्रस्त हो गए। बिस्तर एवं व्हील चेयर से लग गई। उसकी रीड की हड्डी में ट्यूमर था जिसके कारण विकलांगता आ गई।
आॅपरेशन कर ट्यूमर तो निकाल दिया गया लेकिन बेजान हो चुके पैरों में जान नहीं आई। गौरव कोचर ने एक्सरसाइज कराना शुरू किया। करीब एक साल के पयास के बाद पैर हिलना शुरू हुए। इसके बाद धीरे धीरे कर पैरों में जान आने लगी। फिजियोथैरेपी का कमाल यह है कि 10 साल में शुभी शुक्ला एक स्टिक के सहारे से चलने लगी है। धैर्य के साथ चल रहे एक्सरसाइज और मरीज में होने वाले सुधर को देखते हुए पूरी उम्मीद है कि साल डेढ़ साल में स्टिक भी छूट जाएगी ।
बाक्स -2
2013 से चल रहा इलाज
शहडोल निवासी अंजना मिश्रा छत से गिर गई थी। उसकी रीड की हड्डी कई टुकड़े हो गई। रीड की हड्डी का इलाज हुआ लेकिन डॉक्टरों ने कह दिया कि पूरी जिंदगी बिस्तर में ही गुजारनी पड़ेगी। अंजना मिश्रा बैठ भी नहंी पाती थी। कमर के नीचे का पूरा पूरा शरीर सुन्न था। किन्तु इसको धैर्य के साथ फिजियोथैरेपी दी गई। अब अंजना मिश्रा बैठने लगी है। उसके एक पैर में जान आ चुकी है किन्तु दूसरा पैर वह स्वयं से हिलाने लगी है। अंजना मिश्रा का कहना है कि वे लगातार उनके फिजियो थैरेपिस्ट श्री कोचर की सलाह पर अभ्यास कर रहीं है। उन्हें उम्मीद है कि दूसरा पैर भी काम करने लगेगा।
स्वयं को फिजियोथैरेपी के माध्यम से फिजियोथैरेपिस्ट गौरव कोचर ने अपने को चलने फिरने लायक बनाया। स्टेराइड मेडिशन के साइड इफैक्टर से उनके कुल्हें खराब हो गए। कुल्हे बदले जाने के बाद भी विकलांगता बनी रही, ऐसे में फिजियोथैरेपी से उन्होनें अपने कूल्हों में जान डाली। इसके अतिरिक्त उनके द्वारा अनेक लकवा पीड़ित लोगों को अपने पैरों पर खड़ा किया गया है।
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जबलपुर। गौरव कोचर का कहना है कि मै जब अपनी क्लिनिक से निकला तो मुझे आटो की आवाज और सड़क में होने वाला शोरगुल नहीं सुनाई दे रहा था। दुनिया बड़ी अजीब लगी। अचानक सुनाई देना बंद होने से मै घबरा गया। तत्काल नाक काल गला रोग चिकित्सक डॉ. नितिन अड़गांवकर के पास पहुंचे। उन्होंने परीक्षण उपरांत जो बीमारी के संबंध में बताया तो मेरा सोचने की झमता सुन्न पड़ने लगी थी। उन्होंने बताया कि अज्ञात वायरल अटैक से स्थिति निर्मित हुई है। श्रवण संबंधी तंत्रिका तंत्र को वायरस नष्ट कर रहे है। अभी बहरा पन है आगे कुछ भी हो सकता है। उपचार के लिए स्टेराइड के इंजैक्श देने होंगे। मै स्टेराइड के साइड इफैक्ट के बारे में सुन रखा था। इससे विकलांगता तक आ सकती है लेकिन मुझे शारीरिक विकलांगता मंजूर थी लेकिन बहरापन नहीं।
जबलपुर के प्रमुख फिजियो थैरिपिस्ट गौरव कोचर का यह कहना है। उनके साथ ये वाक्या कुछ साल पहले घटित हुआ। कान में सुनाई न पड़ने के कारण इलाज चला, दिल्ली के एम्स हास्पिटल में भी श्री कोचर ने इलाज करवाया, वहां भी चिकित्सक ने इस अज्ञात वायरस के संबंध में कोई विशेष जानकारी नहीं दे पाए। बहरहाल स्टेराइड युक्त दवाइयों से बेहरापन दूर हुआ। श्री कौचर का इस संबंध में स्टराइड को लेकर कहना है कि भले ही इसके साइड इफैक्ट जानलेवा एवं जहर की तरह है लेकिन यह दवाई जादू की तरह है, ये अमृत है और मानव जीवन को बचाने में बेहद कारगर है।
उन्होंने बताया कि सड़क दुर्घटनाओं में खासतौर पर जब ब्रेन इंज्यूरी होती है अथवा मांस पेशिया बुरी तरह डैमेज होती है और उससे विकलांगता
होने का खतरा रहा है तब स्टेराइड या स्टेराड युक्त दवाइयां ही जीवन बचाती है। इस दवाई का साइड डिफैक्ट भी हर किसी को नहंी होता है। किन्तु श्री कोचर दुर्भाग्य शाली रहे इस मामले में। दवाई के प्रभाव से उनके कुल्हे की हड़डी खराब हो गई।
डॉक्टर कोचर को वायरल इफैक्ट के ऐवेसकुलर नेकरोसिस नामक बीमारी हुई जिससे उनको बहरापन आ गया लेकिन यह स्थायी नहीं हो पाया किन्तु कुल्हे खराब होने से विकलांगता आ गई। इसके इलाज के लिए डॉ जितेन्द्र जामदार के हास्पिटल मे कुल्हा रिपलेस्मेंट किया गया। किन्तु इस कुल्हा रिपलेस्टमेंट के बाद फिर अपने पैरों खड़े होने और चलने के लिए जरूरी था कि फिजियोथैरपी की। गौरव कोचर जो स्वयं फियोथैरेपिस्ट है उन्होंने अपने स्टूडेंट के साथ मिलकर स्वयं फिजियोंथैरेपी की इक्ससाइज प्रारंभी की। कुछ महीने में ही वे चलने फिरने लगे ह और अपने मरीजों के लिए प्रेरणा है, बीमारी से लड़ने के लिए फियोथैरेपी के साथ ही उनमें आत्म विश्वास जगाने के लिए उनका स्वयं का उदाहरण है।
बाक्स -1
सन 1998 से कार्यरत
फिजियोथैरेपिस्ट डॉ गौरव कोचरसन 1998 से जबलपुर में विभिन्न रूप से शारीरिक विकलांगता से जूझ रहे मरीजों का इलाज कर रहे है। उनकी मांस पेशियों एवं हड्डियों में उर्जा का संचार कर रहे है। उन्हें अपने पैरों पर खड़ा कर रहे है। नगर के कई अस्पताल में वे कंस्लटेंट है। उनका स्वयं का फिजियोथैरेपी सेंटर भी है। अब तक उन्होंने 25-30 फिजियोथैरिपिस्ट को प्रशिक्षण भी दे चुके है।
बाक्स -2
8 साल की उम्र से आ रही शुभि
धनवंतरी नगर निवासी शुभी शुक्ला के दोनों पैरों में जान डालने में गौरव कोचर कामयाब हुए है। शुभि शुक्ला जब 7-8 वर्ष की थी तो अचानक उसके दोनो पैर लकवा ग्रस्त हो गए। बिस्तर एवं व्हील चेयर से लग गई। उसकी रीड की हड्डी में ट्यूमर था जिसके कारण विकलांगता आ गई।
आॅपरेशन कर ट्यूमर तो निकाल दिया गया लेकिन बेजान हो चुके पैरों में जान नहीं आई। गौरव कोचर ने एक्सरसाइज कराना शुरू किया। करीब एक साल के पयास के बाद पैर हिलना शुरू हुए। इसके बाद धीरे धीरे कर पैरों में जान आने लगी। फिजियोथैरेपी का कमाल यह है कि 10 साल में शुभी शुक्ला एक स्टिक के सहारे से चलने लगी है। धैर्य के साथ चल रहे एक्सरसाइज और मरीज में होने वाले सुधर को देखते हुए पूरी उम्मीद है कि साल डेढ़ साल में स्टिक भी छूट जाएगी ।
बाक्स -2
2013 से चल रहा इलाज
शहडोल निवासी अंजना मिश्रा छत से गिर गई थी। उसकी रीड की हड्डी कई टुकड़े हो गई। रीड की हड्डी का इलाज हुआ लेकिन डॉक्टरों ने कह दिया कि पूरी जिंदगी बिस्तर में ही गुजारनी पड़ेगी। अंजना मिश्रा बैठ भी नहंी पाती थी। कमर के नीचे का पूरा पूरा शरीर सुन्न था। किन्तु इसको धैर्य के साथ फिजियोथैरेपी दी गई। अब अंजना मिश्रा बैठने लगी है। उसके एक पैर में जान आ चुकी है किन्तु दूसरा पैर वह स्वयं से हिलाने लगी है। अंजना मिश्रा का कहना है कि वे लगातार उनके फिजियो थैरेपिस्ट श्री कोचर की सलाह पर अभ्यास कर रहीं है। उन्हें उम्मीद है कि दूसरा पैर भी काम करने लगेगा।