102 वर्षीय गिरजा बाई
देश की गुलामी का दौर और बाद में स्वतंत्र भारत की तस्वीर देखने वाली चश्मदीद गिरजाबाई अवस्थी को इस अवस्था में भी वो दौर याद हैं। धुंधली होती स्मृति में आज भी 15 अगस्त 1947 का दिन और भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू की याद जीवित हैं।
गिरजाबाई का जन्म 1913 में बरमान के समीप पुरैना गांव में हुआ था। जब वे 15 वर्ष की हुई तो विवाह तुलसी राम अवस्थी निवासी मढ़ाताल के संग हुआ था। स्वर्गीय तुलसीराम समाचार पत्र बांटने का काम किया करते थे। पराधीन भारत के समाचार पत्रों में उन दिनों गांधी और नेहरू की खबरें प्रमुखता से छपती थी। गिरजाबाई का कहना है कि आजादी की लड़ाई के लिए किसी ने अपना सुहाग तो किसी ने अपनी औलाद तो किसी ने अपना जीवन ही समाप्त कर लिया , ये खबरें उन्हें मिलती रहती थी। अंग्रेजी हूकूमत में हम भय के साए में रहा करते थे, 102 साल की गिरजा बाई अवस्थी ने बताया कि 1942 में भारत छोड़ो अंदोलन के दौरान जब अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम सेनानीयों ने भारत को स्वतंत्र कराने का संकल्प लिया था तब जवाहर लाल नेहरू जेल चले गए थे और रक्षा बंधन का पर्व हुआ आया था। इस दौरान नेहरू जी की बहिन विजय लक्ष्मी की खबर प्रकाशित हुई थी, वह मुझे आज भी याद है। परिजनों ने बताया कि वे उन पंक्तियों को आज भी याद करने की कोशिश करती है और गुनगुनाते हुए रोने लगती है। जिक्र आने पर रोते हुए कविता सुनाने लगी ---
अम्मा मुझ को जल्द बता दे , कब आएगा प्रिय भाई
रात बीतती है, कल प्यारी रक्षा बंधन तिथि आई ।
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मैं उन दिनों नागपुर में विशप कान्वेंट में कक्षा 5 वीं में पढ़ता था। स्कूल में अंग्रेजित छाई हुई थी। यहां हिन्दुस्तानी विद्यार्थियों से जबदस्त भेदभाव हुआ करता था। आगे की डेस्क में अंग्रेज बच्चे तथा बाद की डेस्क में इग्लो इंडियन बच्चे बैठते थे। हिन्दुस्तानियों को पीछे बैठना पड़ता था। अंग्रेजी के टीचर गलती होने पर कहा करता था तुम से तो अच्छे हमारे कुत्ते हैं वो भी अंग्रेजी समझ जाते है। तुम हिन्दुस्तानी कुत्तों से बदतर हो। कितना भी
होशियार छात्र हो उसे गोरे छात्र से अच्छे नम्बर नहीं मिलते थे। जब 15 अगस्त 1947 को स्कूल में स्वतंत्रता की घोषणा हुई तो बच्चे खुशी से झूम उठे लेकिन स्कूल में कोई कार्यक्रम नहंी हुआ। घर आने पर पता चला कि पूरे नागपुर में जश्न चल रहा है। रेलवे ड्रायवर तेज हार्न बजाकर खुशी जाहिर कर रहे थे।
एचके जॉबाज, सेवानिवृत लेफ्टिनेंट कर्नल, ब्रिगेड आॅफ दी गार्ड
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मंै इंदौर में टैक्स टाइल इलाके में रहता था। मेरे पिता राजकुमार टैक्सटाइलर् ीय मिल में नौकरी करते थे। हम मिल के क्वाटर्स में रहते थे। कभी कभी पुलिस वहां से निकलती थी तो मां मुझे छिपा लेती थी। पुलिस वाले हाफ पेंट पहने होते थे। लोगों में अंग्रेजी हुकुमत का जबदस्त भय था। कहीं भी चार पांच से ज्यादा लोगों को एकत्र होने की अनुमति नहीं हुआ करती थी जिसके कारण उनके एरिया में कोई कार्यक्रम आदि नहीं हुआ करते थे। देश के आजाद होने की खबर मुझे अपने पिता से मिली थी। मिल में उस दिन छुट्टी कर दी गई थी और पहली बार यहां एक साथ लोगों की भीड़ लगी थी और वे भारत माता जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे तथा ध्वजा रोहण किया गया था। शहर से दूर इलाका होने के कारण यहा आजादी का बड़ा जश्न नहीं मनाया गया था।
सुरेश पवास, सेवा निवृत जेआर मैनेजर आर्डनेंस फैक्टरी
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मेरा जन्म सन 1939 को अजमेर में हुआ था। मेरे परिवार का सोने चांदी का कारोबार था। पिता जीवन भाई बड़े कारोबारियों में थे। मै जब कक्षा 3 री में पढ़ रहा था। उस दौरान लोगों में जबदस्त देशप्रेम का उत्साह भरा हुआ था। घर में जल्द ही देश आजाद होने की चर्चा चलती थी। अंग्रेजों से लोगों का भय कम होते जा रहा था लेकिन पुलिस का भय लोगों में बना हुआ था। मै भी पुलिस वालों को देखकर घर में छिप जाया करता था। एक दिन अचानक माहौल बदल गया। लोग महात्मा गांधी जिंदाबाद के नारे लगाने लगे, झंड़ा लेकर लोगों की रैली सड़क पर निकल आई। अजमेर में चारो तरफ जश्न का माहौल था, वो दिन था 15 अगस्त 1947 का। बाद में मेरे पिता व्यवसाय कि सिलसिल में जबलपुर आ गए।
केएल सोनी, सेवानिवृत मैनेजर, सेंट्रल बैक
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मै उन दिनों दीक्षितपुरा में रहता था। उम्र करीब 6 वर्ष की थी लेकिन स्कूल नहीं जाता था। माता पिता घर से नहीं निकलने देते थे। रात को पुलिस के घोड़ों की टापे सुनाई देती थी। पहली बार दीक्षितपुरा में मै जिस गली में रहता था। वहां 15 अगस्त को महात्मा गांधी की जयकारे गूंजने लगे थे। लोग तिरंगा झंडा लहराते हुए भारत माता की जय कह रहे थे। वंदेमातरम् गूंज रहा था। मोहल्ले में चोंगे बजने लगे थे। लोग एक दूसरे को मिठाइयां खिला रहे थे तब मुझे पता चला कि देश आजाद हो गया है। अब अंग्रेज भारत छोड़ कर चले जाएंगे। आजादी के कई दिनों बाद तक लोगों में आजादी का उत्साह था। लोगों ने दीवाली की तरह घरों के सामने दीए जलाए थे। उस दौर में बच्चे बच्चे आजादी का मायना जानते थे।
सतीश दबे, सेवानिवृत इंजीनियर
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मेरे पिता रेलवे हरवंश प्रसाद तिवारी रेलवे में नौकरी करते थे। मेरी उम्र आज 86 साल की हो गई है। सन 1947 को जब देश आजाद हुआ था तब मै मॉडल हाई स्कूल में कक्षा 11 वीं पढ़ रहा था। अगस्त के पहले ही देश आजाद होने की खबर फैल चुकी थी और भारत पाकिस्तान के बंटवारे की भी खबर थी। देश आजाद होने के पहले ही लोग पाकिस्तान जाने लगे थे। मेरी कक्षा के कुछ मुस्लिम साथी पढ़ाई छोड़ कर चले गए। इसी तरह बाहर से लोगों के आने का क्रम शुरू हो गया था। आजादी की घोषणा 14 अगस्त की रात को हो गई थी और सुबह से ही जश्न का माहौल शुरू हो गया। पूरे शहर में जगह जगह ध्वजारोहण हुए। लोगों की गांधी टोपी पहले लोगों की भीड़ फुहारा में लगी थी। रात को पूरा शहर रौशनी से जगमगा रहा था।
श्री कृष्ण तिवारी, सेवा निवृत डिप्टी चीफ कंट्रोलर रेलवे
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58 वर्ष की आयु में 15 साल पहले मै मिनिस्ट्री आॅफ पावर से राजपत्रित अधिकारी के पद से सेवानिवृत हुआ था। आजादी का जश्न कैसा मना था मुझे नहीं मालूम उन दिनों मेरा परिवार अपनी जान बचाने जुटा था। मेरे पिता जो रावल पिंडी में बीटी शिक्षक थे। उनके साथ हम अपने घर में दुबके थे। इस दौरान के घटनाक्रम का मुझे यह याद है कि मै ट्रेन के छत पर अपने परिवार के साथ था। सीढ़ी लगाकर कोई खाना देने आया था। पाकिस्तान से हम अमृतसर पहुंचे थे। वहां से हरियाणा और कई शहरों का चक्कर लगाते हुए पिताजी हमे दिल्ली ले आए। पिता की नौकरी लग गई और मै स्कूल जाने लगा तथा दिल्ली कालेज से बीए किया। इस दौरान नेहरू जी से भी मुलाकात का अवसर मिला था। हमे आजादी मिली जरूतर लेकिन हमने बटवारे के रूप में बढ़ी कीमत चुकाई, अब भ्रष्टाचार की दीमक आजादी को खोखला कर रही है।
टीएन शर्मा, सेवानिवृत अधिकारी, मिस्टरी आॅफ इंडिया गार्मेट
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स्वाधीनता दिवस को लेकर टिप्पणी
बड़ी कुर्बानियां देने के बाद हमें आजादी मिली है। हमारे बुर्जगों की कुर्बानी का नतीजा है कि हम आजाद है। दुनिया का सबसे बड़ा प्रजातंत्र फल फूल रहा है। कल्पना करिए कि यदि आज सवा करोड़ की जनता गुलाम देश की नागरिक होती तो शायद लोगों को भूखे मरना पड़ता। भारत ने आजादी के बाद हर क्षेत्र में तरक्की की है। हमारे पास आणविक शक्ति विद्यमान है। हम तकनीकि और शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणीय है। स्वतंत्रता दिवस पर हमे संकल्प लेना चाहिए देश की एकता और अखंडता की।
विश्वनाथ दुबे, उद्योगपति
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भारत की स्वतंत्रता ही उसकी शक्ति है जिसका लोहा पूरी दुनिया मान रही है। इतना विशाल प्रजातंत्र दुनिया में किसी स्वतंत्र देश में नहीं है। यहां आम जनता का राज चल रहा है। दुनिया के विकसित देशों में उंचे पदों और बढ़ी कंपनियों में भारतीय व्यक्ति मौजूद है। दुनिया में कहीं भी इंडिया और इंडियन लोगों को सम्मान मिलता है। मिशाल नकनीति तथा आणविक ताकत में हम कम नहीं है। चिकित्सा, शिक्षा और तकनीकी क्षेत्र में विकास के नए आयाम स्थापित किए गए है। यह सब कुछ हमे आजादी के बाद हाशिल हुआ है।
डॉ. धीरावाणी, डायरेक्ट जबलपुर हास्पिटल
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देश स्वाधीनता जयंती मना रहे है। आजादी के बाद से जनता अच्छे दिन का इंतजार कर रही है। इंतजार की घड़ियां खत्म नहीं हो रही है। एक से दूसरी पीढ़ी बदल गई है। स्वाधीनता संग्राम के दौर के लोग गुजर गए है। भारत युवाओं को देश कहा जाने लगा है। देश स्वाधीनता के साथ लोगों को आशाएं थी उस पर धुंध अब भी छाई है। जिन उद्देश्य को लेकर स्वाधीनता की लड़ाई लड़ी गई थी। इस लक्ष्यपथ पर कितनी गति हासिल की ये मापने वाले अब नहीं रहे। नेशनल कांग्रेस अपनी राष्ट्रीयता की छबि से हट कर सत्ता भोगी बन गई। ऐसा समझा गया कि 15 अगस्त 1947 को गुलाम भारत के सबसे बड़े प्रजातांत्रिक देश के अच्छे दिन आ गए हैं, जनता ने आजादी के साथ भारत पाकिस्तान के बंटवारे का एतिहासिक फसाद भोगा। पंडित जवाहर लाल नेहरू को दो तिहाई से अधिक का बहुमत देकर अपना वजीरेआजम चुना था। वर्ष दर वर्ष बीते 1948 की कश्मीरी संग्राम,1962 में चाइना वार का दंश जनता ने भोगा। कांग्रेस की सफल प्रधानमंत्री और अंतराष्ट्रीय कूटनीतिज्ञ इंदिरा गांधी के मीसा का दौर देखा। 20 वीं शताब्दी के भारत ने आतंकवाद का शैतान, महंगाई का दानव, बेरोजगार का राक्षस, भ्रष्टाचार का वेताल, आर्थिक अंतर की नर्क यह सब भोग रही है आजाद देश की सवा करोड़ जनता । आजादी के लिए गांधी, सुभाष, नेहरु, भगत, चंद्रशेखर ने बलिदान दिए जो अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ थे। इन शैतानों से त्रस्त नए दौर के लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करने वाले एक गांधीवादी को नया गांधी मानने तैयार हो गए। एक दफा ऐसा लगा कि अन्ना हजारे ने राष्ट्रवादिता की रग पर हाथ रख दिया है गांधी टोपी की तरह अन्ना टोपी मीडिया से लोगों के दिलों में छा गई लेकिन यह सिर्फ एक संकेत ही था। ये सकेत था लोगों में भ्रष्टाचार के खिलाफ आक्रोश का, व्यवस्था के खिलाफ जंगे एलान का । लड़ाई अंग्रेजोंं से नही अपने नौकरशाह काले अंग्रेजों से लड़ने तत्पर थे। 11 अगस्त 2011 को तरूणाई ने बूढ़े के नेतृत्व में अंगड़ाई ली तो इसे आजादी के बाद के दूसरे बड़े जनांदोलन की संज्ञा दी गई। स्वाधीन देश के लोकतांत्रिक व्यवस्था ने आजादी की 63 वीं जयंती के पर्व लोगों को मौका दिया इन शैतानों की गुलामी से आजादी के लिए सत्ता परिवर्तन का। इस बार नरेन्द्र मोदी पर भरोसा कर उन्हें स्पष्ट बहुमत नेहरू जी की तरह दिया। फिर जागी है आशा अच्छे दिनों की। इस दूसरी लड़ाई जनता ने अपने मतदान के अधिकार का इस्तेमाल कर जीती है। कट्टर दक्षिण पंथियों, जातिवादी , साम्प्रदायिक जोड़तोड़ को नकारते हुए एक स्वर से नए नेत्रत्व से अपेक्षाएं की गई है। फिर साबित हुआ है कि हम आजाद है, हमारा भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्रजातंत्र है, मेरा भारत महान है। सत्ता के उगते और ढलते सूरज को देखने वाली दिल्ली ने नए भारत की नई संसद देखी। लाल किले में लहराता फिरंगा फिर एकबार दुनिया में भारत की स्वाधीनता का वजूद पेश करेगा इस आशा के साथ की अच्छे दिन आने वाले है।
* जरा याद करो वो कुर्बानी ....
** फुहारा में रात को ब्लैक आउट कराती थी पुलिस
**स्वतंत्रता संग्राम के वो दिन, सेनानी की जुवानी
दीपक परोहा
जबलपुर। 8 अगस्त सन 1942 को महात्मागांधी द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन के आगाज के साथ ही संस्कारधानी के देश प्रेमियों में आजादी के लिए गजब
का उत्साह हिलोरे मारने लगा था। नेशनल कांग्रेस की इस करो या मरो की इस घोषणा के साथ ही जबलपुर में जबदस्त हलचल मच गई। अंग्रेज हुकुमत इस आंदोलन को पूरी तरह कुचलने तत्पर हो गई। रात होते ही फुहार सहित समूचे इलाके में ब्लैक आउट कर दिया जाता था। सड़कों पर फिरंगी सैनिकों के घोड़ों की टाप भर सुनाई दिया करती थी।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कोमलचंद जैन स्वाधीनता आंदोलन की याद करते हुए बताते है कि उस समय मै कक्षा छटवीं का छात्र था। मेरे बड़े भाई प्रेम चंद जैन तथा नेम चंद जैन दोनों ही घोर राष्ट्रवादी और ब्रिटिश हुकुमत की खिलाफ करने वाले सेनानी थी। श्री कोमलचंद जैन शहर के चंद स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में शुमार है जिन्होंने सन 1942 में करवट लेते आजादी कल लड़ाई के चश्मदीद हैं, 30 जुलाई 1930 में जन्में कोमलचंद जैन किशोर अवस्था में ही स्वाधीनता आंदोलन में कूद गए।
उन्होंने स्मृति पर जोर देते हुए बताया कि तिलकभूमि तलैया में देश प्रेमियों की एक विशाल सभा हुई। इसमें वे भी अपने दोनों भाइयों के साथ वहां पहुंच गए। उस दौरान जबलपुर शहर की मुख्य बस्ती वाला इलाका फुहारा, लार्डगंज, गढ़ा फाटक, कोतवाल तथा अंधेरदेव क्षेत्र तक सिमटा हुआ था। संस्कारधानी में सेठ गोविंदास, पंडित भवानी प्रसाद तिवारीं, सवाईमल जैन के नेतृत्व में स्वतंत्रता आंदोलन का आगाज हुआ था। पुलिस ने श्रीनाथ की तलैया को घेर लिया। वहां एकत्र वंदेमारतम् का नारा लगाते देश भक्तों को घेर कर गिरफ्तार किया गया।
12 वर्षीय कोमलचंद को भी गिरफ्तार कर पुलिस कोतवाली थाना ले आई। पूरी रात लाकप में रखने के बाद केन्द्रीय जेल भेज दिया गया। वहां पर प्रेम चंद, नेम चंद, ज्ञानचंद जैन, हीरालाल सहित सैकड़ों स्वतंत्रता संग्राम सैनानी बंद किए गए। जेल में वंदे मातरम् के नारे जब भी लगते थे तो सेनानियों की पिटाई होती थी। बड़ी गोल में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को रखा गया था।
बासी रोटी का नाश्ता
जेल के दिनों को याद करते हुए कोमलचंद जैन ने बताया कि नाश्ता में एक बासी रोटी सुबह मिलती थी। दोपहर को खाने के लिए चार रोटी मिलती थी। करीब एक माह जेल में कैद में रहने के बाद कोमलचंद जैन को रिहा कर दिया गया लेकिन उनके दोनों भाई करीब दो वर्ष तक जेल में कैद रहे।
जगमग हो गया शहर
कोमलचंद जैन ने बताया कि 15 अगस्त 1947 को आजादी के दिन समूचा शहर दुल्हन की तरह सज गया था। फुहारा बिजली के लट्टू से जगमगा रहा था। लोगों ने दीवाली की तरह घरों में दीपक जलाए थे। जश्न का ऐसा नजारा दोबारा जबलपुर में नहीं देखा गया। पूर शहर फुहारा में उमड़ आया ऐसा लग रहा था। देश भक्तों की टोलियां गांधी टोपी पहने कमानिया पहुंच रही थी तथा ध्वजा रोहण किया गया। उन्होंने बताया कि स्वाधीनता दिवस और आज की संस्कारधानी में बहुत बदलाव आया है। वक्त के साथ उनके साथी एक एक कर गुजरते गए। अब चंद सेनानी बचे है, उनकी खोज-खबर कांग्रेसी नेता लेने लगे है।
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