Thursday, 14 April 2016

किसानों की बंजर जमीन लहलहाने लगी


 जैविक खेती से कर दिखाया कमाल



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जबलपुर। बंजर पथरीली जमीन जिसमें नमी तक नहीं ठहरती हैं और सिचाई के भी साधन नहीं हैं, ऐसी जमीन फसल से लहलहाने लगी है। ये चमत्कार जैविक खेती के बदौलत हुआ है।
 मंडल तथा जबलपुर जिले के आदिवासी ग्राम जहां आदिवासी किसानों की जमीनें तो है लेकिन ये बंजर पड़ी हुई है। उनमें चारा भी ठीक तरह से नहीं उगता था। सिंचाई का कोई साधन मौजूद नहीं था, पथरीली और मुरम वाली जमीन में नमी भी नहीं होती है। ऐसी बंजर जमीन पर अब आदिवासी अपनी मेहनत के बलबूते पर उपज ले रहे है। इन आदिवासियों को जैविक खेती ाी सिखाने का काम कर रहे हैं  कृषि वैज्ञानिक, कृषि कालेज के सेवानिवृत प्रोफेसर वीके राव  और उनके साथी। मंडला जिले के लगभग 30 गांव के आदिवासी जैविक तरीके से खेती करना सीख चुके है।
 आदिवासी ग्रामों में सैकड़ौ हैक्टेयर बंजर जमीन में आदिवासियों की पौष्ठिक परम्परागत उपज कोदो, कुटकी के साथ हरी सब्जियां भी उग रही है।
शून्य लगात खेती
यूं तो आधुनिक खेती की दिन प्रतिदिन लागत बढ़ती जा रही है। ऐसे में आदिवासी समाज जो लागत नहीं लगा सकता है। महंगी होती यूरिया और डीएपी जैसी खाद नहीं खरीद सकता है। अपने खेतों के लिए सिंचाई के लिए ट्यूबवेल नहीं लगवा सकते है तथा बिजली पर खर्च नहीं कर सकते है। उनको परम्परागत खेती को वैज्ञानिक तरीके से कराके शून्य लागत पर खेती कराई जा रही है। इसमें आदिवासियों को अपनी उपज से ही बीज और अपने प्राकृति साधनों से ही खाद तैयार करवाई जा रही है।
जमीन का पीएच सुधरवाया

आदिवासी के जमीन में मौजूद अम्लीयता एवं छारियता को संतुलित करने के लिए प्रतिएकड़ 1 हजार क्विंटल नीम एवं गोबर निर्मित खाद डलवाई गई इससे तीन साल में पीएच वैल्यू में गिरावट आई। किसान बिना जिंक सल्फेट आदि डाले अपने खेतों को उपज देने योग्य बना चुकें हैं।  किसानों को जैविक खाद बनाना सिखाया गया। गाय भैंस तथा अन्य जानवरों के गोबर में गुड एवं गौमूत्र मिलाकर सात दिनों में जैविक खाद तैयार करना भी किसान सीख गए है। इसी तरह केचुए से बनी खाद तथा गोबर खाद आधुनिक तकनिक तरीके से किसान तैयार कर रहे हैं। जैविक खेती के कारण अब उनके खेतों में लम्बे समय तक नमी भी बनी रहती है और पानी की समस्या भी खत्म हो गई है।
विज्ञान केन्द्र में प्रशिक्षण
 पर्यावरण संरक्षण एवं अदिवासी विकास केन्द्र के संचालक डॉ वीके राय ने ग्राम हर्रा पटपरा में विज्ञान केन्द्र खोल रखा है जहां आदिवासियों को जैविक खेती सिखाकर उनकी बंजर जमीन में उपज लेने की विद्या सिखाई जा रही है। आदिवासी मंडला के 30 ग्राम सहित दरगड़ा, घाट पिपरिया, सालीवाड़ा, बांकी
चिखला, धावनगोड़ी, जमुनिया, खामखरेली के कृषक इन दिनों विज्ञान केन्द्रों में प्रशिक्षण ले रहे है।
 जैविक खादों के नाम
 केन्द्र में जैविक खेती के प्रशिक्षक गोधनलाल धुर्वे ने बताया कि यहां गोमूत्र नीम सत, अमृतजलम, पांच पत्तीकाढ़ा, फसल वर्द्धक लड्डू , दूध गोमूत्र टानिक जैसे फाल में उपयोग आने वाले जैविक उर्वरक बनाने का विधि सिखाई जाती है। नीमसत फसल को कीट से बचाव के लिए तैयार करवाया जाता है। गौमूत्र का उपयोग खेत में यूरिया की मात्रा बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसी तरह फसल वर्द्धक लड्डू का उपयोग डीएपी की जगह किया जाता है। उन्होंने बताया कि आदिवासी परम्परागत उपज के अतिरिक्त  भिंडी, गिलकी, तरोई, सेम, बरबटी, बैगन तथा अन्य सब्जियों भी अपनी बंजर पड़ी जमीन में पैदा कर रहे है। 

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