Thursday, 14 April 2016

शहद बदल रही आदिवासियों की जिंदगी



* अब खुद कर रहे अपनी ब्रांडिंग

जबलपुर। शहद सहित अन्य वनोपज का वैज्ञानिक तरीके से दोहन करने से आदिवासियों की जिंदगी में बदलाव आ रहा है। नरसिंहपुर जिला के चिचली तथा आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों पर शहद के रूप में धन वर्षा हो रही है। इसके पहले भी आदिवासी जंगली पहाड़ी क्षेत्र से मधु मक्खियों के छत्ते तोड़कर शहद एकत्र किया करते थे लेकिन व्यापारियों की मुनाफाखोरी के कारण उनकी हालत में कोई सुधार नहीं था और उनको श्रम एवं वनोपज का उचित दाम नहीं मिल रहा था लेकिन सहकारी समिति बनाकर अब वे स्वयं अपनी ब्रांडिंग कर रहे है और शहद का वाजिब मूल्य मिलने से धनवर्षा हो रही है।
उल्लेखनीय है कि नरसिंहपुर जिला के वन ग्राम बड़गांव के आदिवासियों द्वारा वर्षो से वहां से लगी पहाड़ी से मधु मक्खियों के छत्ते तोड़कर शहद एकत्र करना उसकी जीविका का साधन रहा है। समीपस्थ वन क्षेत्र एवं पानी की प्रचुर उपलब्धता के कारण यहां बड़ी संख्या में मधुमक्खियों की कालोनियां रहती है। मार्च तथा अप्रैल माह में मधु मक्ख्यिों के छत्तों की संख्या बेहद बढ़ जाते है। इस सीजन में मधु मक्खियां व्यापक पैमाने में मकरंद एकत्र कर शहद बना लेती है और मई जून माह से छत्तों से शहद एकत्र करने का काम शुरू हो जाता है यूं तो यहां लगभग 6 -7 महीने यही काम चलता है।
 सस्ते में खरीदते रहे है
 आदिवासियों द्वारा 25-50  रूपए किलों के भाव से शहर खरीद लिया करते थे। हजारों लीटर शहद का यहां उत्पादन होता रहा है। किन्तु इसके बावजूद आदिवासी परिवार की हालत दयनीय रही है। इस काम से उनका परिवार तक चलना कठिन हो जाता था।

हाल ही में  गठित हुई समिति
एनजीओं के मार्गदर्शन में इस वन ग्राम के 58 आदिवासियों ने स्व सहायता समूह बनाकर सहकारी समिति गठित की है। जय बड़ा देव बहुउद्देशीय सहकारी समिति मर्यादित बड़ा गांव द्वारा अब स्वयं शहर का उत्पादन कर उसे बेचना शुरू की है। समिति के 58 आदिवासी परिवार न केवल स्वयं शहद एकत्र करते है वरन समीपस्थ आदिवासी ग्राम टुईयापानी ,सांवरी, भोमरी, मिलमाढाना सहित अनके गांवों से आदिवासियों का शहद भी स्वयं खरीद लेत है और उसकी ब्रांडिंग कर शहद बेच रहे है।

मुनाफा कई  दुगना
जहां आदिवासियों को अपना शहर 50 रूपए में बेंचना पड़ता था अब वे अपना 300-400 रूपए प्रति किलो के हिसाब से बेंच रहे है। शहर के उत्पादन के हिसाब से वे मूल्य निर्धारण भी कर रहे है। इससे आदिवासियों की जिंदगी में बदलाव आ रहा है। इस  स्व सहायता समूह बनाकर कार्य करने में प्रत्येक आदिवासी को मात्र 110 रूपए की पूंजी निवेश मात्र करनी पड़ी है।
तेन्दुखेड़ा में होता है प्रशंस्करण
कच्चे शहद को रिफाइन करने का काम तेन्दुखेड़ा में होता है। यहां शहद एकत्र करने वाली कंपनी सहकारी समिति से उनके दाम पर शहद खरीद रही है जिसके चलते शहद की बिक्री की भी कोई समस्या नहंी है।
वैज्ञानिक तरीके से काम
उल्लेखनीय है कि पूर्व में आदिवासी धूआ कर तथा मंत्र आदि पढ़ने के बाद कम्पल ओढ़ कर मधु मक्खियों के दतते तोड़ा करते थे लेकिन सहकारी समिति बनने पर शहद एकत्र करने वालों की को रस्सा, चाकू, ड्रेस , बाल्टी, सीढी आदि आधुनिक किट उपलब्ध कराई जा रही है। जिससे उनका काम भी सरल हो गया है।

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