Wednesday, 6 April 2016

वीरांगना दुर्गावती का मंत्रणा स्थल रहा संग्राम सागर



 
 प्राकृतिक सौंदर्य और पर्यावरण संरक्षण का बेमिसाल नमूना भी है एतिहासिक धरोहर 
जबलपुर। गौंडवंश के गौरव इतिहास में अमर वीरांगना रानी
दुर्गावती को अपने जीवन काल में मुगलों से लगातार संग्राम करना पड़ा, लेकिन जन कल्याण के लिए  दुर्गावती ने अपने कार्यकाल में जबलपुर में जो सरोवर बनवाए थे, उनमें से आज भी कई मौजूद है। वीरांगना की बदौलत ही जल स्त्रोत के मामले में जबलपुर सैकड़ों साल धनाड्य रहा है। कभी 52 तालाबों के गढ़ के रू प में पहचाने जाने वाले विशालकाय सरोवरों में से एक है, संग्राम सागर। मेडिकल कालेज के आगे प्राचीन तांत्रिक मंदिर बाजनामठ के बाजू से स्थित इस प्राकृतिक झील के महत्व को समझते हुए रानी दुर्गावती ने अपने ससुर राजा संग्राम शाह की स्मृति में सरोवर का स्वरूप दिया गया, जो संग्राम सागर तालाब के रूप में कालान्तर में विख्यात हुआ। 
संग्राम सागर के मध्य में छोटा सा टापू है, जिसमें रानी दुर्गावती ने सभा कक्ष बनवाया था। यह उस काल में दुर्गम जंगल के बीच स्थित था। जहां रानी दुर्गावती की सेना पड़ाव डाला करती थी। सरोवर फौजियों की प्यास बुझाया करता था। सरोवर के मध्य बैठकर सामरिक मंत्रणा हुआ करतीं थीं। युद्ध की रणनीतियां भी यहीं तय होती थीं। 
बुलंदी की गवाही
संग्राम सागर ने सैकड़ों साल बाद भी अपनी प्राकृतिक संरचना से सराबोर अपने अस्तित्व को बचाए रखा है। इतने प्राचीन तालाब कम ही मिलते हैं, जितना प्राचीन संग्राम सागर है। इसके मध्य बनाया गया मंत्रणा स्थल अब तो खंडहर में तब्दील हो गया है, जो अपनी बुलंदियों की गवाही देता है। दरअसल मंत्रणा स्थल जाहिर करता है कि गौंड महारानी को प्रकृति एवं जंगल से कितना प्रेम था। 
16 स्वर्ण हांडे लाई थी दहेज में
रानी दुर्गावती सन् 1542 में वधु बनकर गौंडवंश में आई थीं तथा 1564 में शहीद हो गईं। अल्पकाल में ही उन्होंने अपने राज्य को तालाबों के रूप में बहुत कुछ दिया और गौडकाल में सुदृण जल प्रणाली की बेजाड़ नमूना पेश किया। एक किवदंंती के मुताबिक रानी दुर्गावती ने दहेज के रूप में सोलह हंडे स्वर्ण सिक्के लेकर आई थी, जिससे उन्होंने जबलपुर सहित गौंड राज्य में अनेक ताल और सरोवरों को निर्माण कराए और मुगलों से लोहा लेने सामरिक ताकत जुटाई। उसने तीन बार मुगल आक्रमण का सामना किया। दो बार मुगल सेना को परास्त भी किया। 
जबलपुर की श्वांस नलिका 
संग्राम सागर भौगौलिक स्थिति और वास्तु विज्ञान की दृष्टि से बेजोड़ है। दरअसल जबलपुर शहर के पश्चिम में यह स्थित है। संग्राम सागर ग्रेनाइट्स रॉक्स की मदन महल पहाड़ी की दो पर्वत श्रंखलाओं के मध्य है। दोनों पर्वत श्रंखलाए जबलपुर के मध्य से होते हुए पूर्वी छोर रांझी खमरिया तक जाती है। पश्चिमी हवाएं जब चलती थी तो पर्वत श्रंखला के बीच नलिका की तरह बहती थी और जबलपुर शहर में जाकर खुलती थी, जिससे श्वांस नलिका के मुहाने में तालाब होने से शीतल एवं शुद्ध हवाएं जबलपुर को मिलती रहती थी। संग्राम सागर इन हवाओं को शीतल करता था तथा ग्रेनाइट राक्स एवं इनके मध्य स्थित हरियाली हवाओं को फिल्टर करते रहे है और कॉलांतर से यह क्रम चला था। जबलपुर को शहर को अंग्रेज एयर कंडीशनर सिटी कहा करते थे। 
खो देता अस्तित्व
करीब तीन दशक पहले संग्राम सागर अपना अस्तिव तब खो देता जब संग्राम सागर की जगह र्इंट के भट्ठे लगने लगे थे, जिससे जबलपुर की श्वांस नलिका में संग्राम सागर से शीतल ने आकर विषाक्त भट्टों का धुआ पहुंच रहा था लेकिन तत्कालीन कलेक्टर एवं जबलपुर शहर की सामाजिक संगठनों के प्रयास से भट्ठे हटाकर यहां फिर से पानी का भराव शुरू किया गया और संग्राम सागर को फिर जीवन मिल गया और यहां जीवन खिल आया । संग्राम सागर में मछलियां और जलीय जंतुओं का बसेरा हो गया। सिंघाडेÞ की खेती होने लगी और सरोवर कमल गंध से सुगंधित होने लगा है। यहां जीवन खिल उठा। 
इंजीनिरिंग का बेजोड़ नमूना 
आधुनिक तकनीक और विज्ञान के बावजूद सरोवर और बांध निर्माण करने  वालों के तमाम गणित फेल हो रहे है। बांध, सरोवर एव बडेÞ तालाब की आयु आंकलन से कम निकलती है।  सौ साल में ही वे सिल्ट से भर जाते हैं। संग्राम सागर के साथ बने सैकड़ों तालाब बूढे हो गए सिल्ट से भर जाने से मर गए। लेकिन संग्राम सागर जैसे अमर सरोवर बना है। यहां सिल्ट का जमाव नगण्य है। भूगर्भ वैज्ञानिकों की मानें तो रानी दुर्गावती के पहले भी यहां सरोवर स्थित था। दरअसल ग्रेनाइट की पहाड़ी से लगभग चारों तरफ से घिरे इस सरोवर में जब बारिश का पानी पहाड़ी से पहुंचता था तो चट्टानों के प्राकृतिक फिल्टर से होकर सरोवर में आता था। ये उन्नत जल प्रबंधन की भी मिसाल है, कि  संग्राम सागर सैकड़ों साल में भी अपना यौवन नहीं खोया है और गौडवंश की बुलंदी का अजर गवाह बना हुआ है। 
पर्यटन एवं धार्मिक स्थल
संग्राम सागर के ठीक बाजू से राजा संग्राम शाह द्वारा निर्मित बटुक भैरव का तांत्रिक मंदिर बाजनामठ स्थित है जो आस्था का केन्द्र है। यहां प्रति शनिवार श्रद्धालुओं का मेला भरता है। यह पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित हो रहा   है

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