जीवन संघर्ष की मिशाल जानकी बाई
दीपक परोह
जबलपुर। सदर क्षेत्र में 100 रूपए महीना के किराए के झोपड़ीनुमा मकान में रहने वाली 65 वर्षीय जानकी बाई का जीवन एक मिशाल है। जिसने जीवन संघर्ष में कभी थकी नहीं, कभी हार नहीं मानी, हर परिस्थितियों में अपना मनोबल बनाए रखा और अपने दायित्वों का निर्वाह किया। जानकी बाई के पति की मृत्यु तब हो गई जब उसकी गृहस्थी कच्ची थी और उसने मजदूरी करके व कंडे थाप करअपनी पांच बेटी और एक बेटे का न केवल पालन पोषण किया बल्कि उन्हें उच्च शिक्षा दिलाकर अपने पैरों पर खड़ा किया। उसकी एक बेटी तो अतिरिक्त कलेक्टर है जो कटनी जिले में पदस्थ है।
जानकीबाई पासी 65 वर्ष की अवस्था में भी मजदूरी करने का दमखम रखती है और जरूरत पड़ने पर मजदूरी भी करती है। आत्म स्वाभिमान इतना है कि आफिसर और नौकरी पेशा बेटियों या बेटे के यहां न रहकर अपनी झोपड़ी में सच्चा सुख पाती है। अनपढ़ होने के बावजूद उसने अपने बच्चों को अनपढ़ नहीं रहने दिया। बेटा-बेटी में फर्क नहीं किया।
भूख से लम्बी लड़ाई
पांच रूपए महीना किराए के जिस झोपड़ीनुमा मकान में 14 वर्षीय जानकी बाई बहु बन कर आई थी, उसमें अब भी रह रही है। जानकीबाई के ससुर-सास मजदूर थे, जबकि पति भैयालाल फौजी थे। पति की मृत्यु के बाद जानकीबाई के उपर परिवार की जवाबदारी आई और वह मजदूरी करने लगी। आर्मी डेयरी से गोबर लाकर कंडे थापकर बेंचती थी। इस दौरान उसकी बेटियां उमा पासी, सुषमा , ममता, बबली, रानी तथा बेटा राजेश की पढ़ाई चल रही थी। घर मे सिर्फ रात को खाना बनता था। सुबह एक-एक रोटी और नमक की डली खाकर बच्चे स्कूल चले जाते थे तो जानकी बाई मजदूरी पर चली जाती थी। बिना रूके ये दिनचर्या वर्षो चली। सालो जानकीबाई और उसके परिवार ने भूख से संघर्ष किया। जानकी बाई नेअपने बच्चों को मजदूरी में नहीं झौंका। पेट की खातिर सम्मान को चोट नहंी आने दी। उसने बेटियों को पढ़ने स्कूल भेजा।
सभी आत्मनिर्भर
आज जानकी बाई की बड़ी बेटी उमा हाउस वाइफ हैं और उसका भरापूरा परिवार है। सुषमा पासी शिक्षिका है। ममता जिला उद्योग कार्यालय में अधिकारी है। बेटी बबली पासी रेलवे पोस्ट आफिस में सम्मानजन पद पर पदस्थ है। बेटा राजेश पासी एसएएफ में हेड कास्टेबल है। छोटी बेटी रानी पासी पुलिस सब इंस्पेक्टर थी लेकिन बाद में प्रशासनिक सेवा में चली गई। वर्तमान में कटनी जिले में पदस्थ है। सभी बेटे बेटियों का विवाह भी जानकीबाई ने किया।
कमतोड़ मेहनत
जानकीबाई ने अपने जीवन में कमरतोड़ मेहनत की है। यह वे स्वयं कहती है कि मुझे कोई बीमारी नहीं है, लेकिन कड़ी मेहनत के कारण कमर की हड्डी टूट गई है, वहीं एक कष्ट बुढ़ापे में हैं।
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