एक गरीब मां की होनहार बेटी मीना मेहरा
दीपक परोहा
जबलपुर। एक गरीब माँ रात भर पत्थर उबालती रही..बच्चे पानी पीकर सो गए, किसी कवि की ये पंक्तियां तहसीलदार मीरा मेहरा के जीवन में सटीक उतरती है। मीरा मेहरा उसकी बहनें एवं भाइयों का बचपन एवं शिक्षा बेहद गरीबी और फांकेहाली की स्थिति में गुजरा है। उनकी मां कई बार बेर की झाड़ी से बेरी तोड़कर बच्च्चों को खिलाकर उनके पेट भरा करती थीं और कई बार वे कहा करती थीं कि आज बेर का भी जुगाड़ नहीं है, भूखे पेट सोना पड़ेगा।
सिवनी जिले में पदस्थ मीरा मेहरा से जब उनके एजूकेशन और स्कूल के दिनों के बारे में पूछा जाता है तो अपने उन दिनों की याद आने पर आंखें भर आती हैं। मीरा मेहरा का जीवन संघर्ष भरा जरूर रहा लेकिन उन्होंने विभाग में अपनी मेहनत लगन से नाम कमाया है। मीरा मेहरा को जो फांका हाली का सामना करना पड़ा। भूखे रहने का दर्द महसूस किया है, उसके कारण उनके घर में आने वाला कोई गरीब व्यक्ति भूखा नहीं जाता है। धार्मिक आयोजन तथा विभिन्न मौके पर भंडारे आदी करना उनका शौक बन गया है।
पिता खाली हाथ लौटते थे रोज
मीरा मेहरा के पिता कमल सिंह नरसिंहपुर जिले से जबलपुर काम की तलाश में आए थे, प्रिंटिंग प्रेस का काम जानते थे। प्रतिदिन घर से काम के लिए निकलते थे लेकिन कई-कई दिन काम नहीं मिलता था। ऐसे में खाली हाथ की अक्सर घर लौटते थे। उनकी मां श्रीमती सरोज सिंह सिलाई-कढ़ाई कर किसी तरह परिवार को गुजर-बसर करती रहीं।
दुकानदार देता था उधार में किताब
मीरा मेहरा और उसके परिवार की मॉली हालत जानकर बस स्टेंड में एक स्टेशनरी एवं बुक की दुकान संचालक उनको उधार में किताबें एवं कापियां दिया करता था। मीरा मेहरा बताती हैं कि अब न जाने किताब वाला कहां चला गया है, उसकी आज भी उधारी बाकी है।
अच्छा खाने के लिए तरसते थे
मीरा मेहरा की मां सरोज सिंह पड़ोसियों के घर जाकर घरेलू काम कर देती थीं। मीरा तथा उसकी बहनें अपनी मां के साथ पड़ोसियों के घर इस लालच में चली जाती थीं कि शायद उन्हें खाने मिल जाए।
डिप्टी कलेक्टर बन सकती थी
मीरा मेहरा ने पीएससी की परीक्षा दी तो उन्होंने प्रथम वरीयता नायब तहसीलदार के लिए भरा लेकिन जब परीक्षा परिणाम निकला तो उन्हें बताया गया कि उनका प्रावीण्य सूची में स्थान था यदि वे डिप्टी कलेक्टर के लिए फार्म में प्रथम वरीयता डिप्टी कलेक्टर के लिए भरतीं तो वे डिप्टी कलेक्टर बन जातीं। वर्तमान में अपने कार्य के प्रति वे संतुष्ट हैं और उनका प्रयास रहता है कि गरीबों का उत्थान हो और उनके क्षेत्र का कोई भी व्यक्ति भूखे पेट न रहे। वर्तमान में मीरा मेहरा धनौरा जिला सिवनी में तहसीलदार हैं। उनसे बड़ी बहन श्रीमती माया दास महिला बाल विकास अधिकारी, बड़ा भाई अमर सिंह एसबीआई में अधिकारी तथा छोटे भाई राजेन्द्र सिंह इंजीनियरिंग कालेज में स्पोर्टस् आफिसर हैं।
दीपक परोहा
जबलपुर। एक गरीब माँ रात भर पत्थर उबालती रही..बच्चे पानी पीकर सो गए, किसी कवि की ये पंक्तियां तहसीलदार मीरा मेहरा के जीवन में सटीक उतरती है। मीरा मेहरा उसकी बहनें एवं भाइयों का बचपन एवं शिक्षा बेहद गरीबी और फांकेहाली की स्थिति में गुजरा है। उनकी मां कई बार बेर की झाड़ी से बेरी तोड़कर बच्च्चों को खिलाकर उनके पेट भरा करती थीं और कई बार वे कहा करती थीं कि आज बेर का भी जुगाड़ नहीं है, भूखे पेट सोना पड़ेगा।
सिवनी जिले में पदस्थ मीरा मेहरा से जब उनके एजूकेशन और स्कूल के दिनों के बारे में पूछा जाता है तो अपने उन दिनों की याद आने पर आंखें भर आती हैं। मीरा मेहरा का जीवन संघर्ष भरा जरूर रहा लेकिन उन्होंने विभाग में अपनी मेहनत लगन से नाम कमाया है। मीरा मेहरा को जो फांका हाली का सामना करना पड़ा। भूखे रहने का दर्द महसूस किया है, उसके कारण उनके घर में आने वाला कोई गरीब व्यक्ति भूखा नहीं जाता है। धार्मिक आयोजन तथा विभिन्न मौके पर भंडारे आदी करना उनका शौक बन गया है।
पिता खाली हाथ लौटते थे रोज
मीरा मेहरा के पिता कमल सिंह नरसिंहपुर जिले से जबलपुर काम की तलाश में आए थे, प्रिंटिंग प्रेस का काम जानते थे। प्रतिदिन घर से काम के लिए निकलते थे लेकिन कई-कई दिन काम नहीं मिलता था। ऐसे में खाली हाथ की अक्सर घर लौटते थे। उनकी मां श्रीमती सरोज सिंह सिलाई-कढ़ाई कर किसी तरह परिवार को गुजर-बसर करती रहीं।
दुकानदार देता था उधार में किताब
मीरा मेहरा और उसके परिवार की मॉली हालत जानकर बस स्टेंड में एक स्टेशनरी एवं बुक की दुकान संचालक उनको उधार में किताबें एवं कापियां दिया करता था। मीरा मेहरा बताती हैं कि अब न जाने किताब वाला कहां चला गया है, उसकी आज भी उधारी बाकी है।
अच्छा खाने के लिए तरसते थे
मीरा मेहरा की मां सरोज सिंह पड़ोसियों के घर जाकर घरेलू काम कर देती थीं। मीरा तथा उसकी बहनें अपनी मां के साथ पड़ोसियों के घर इस लालच में चली जाती थीं कि शायद उन्हें खाने मिल जाए।
डिप्टी कलेक्टर बन सकती थी
मीरा मेहरा ने पीएससी की परीक्षा दी तो उन्होंने प्रथम वरीयता नायब तहसीलदार के लिए भरा लेकिन जब परीक्षा परिणाम निकला तो उन्हें बताया गया कि उनका प्रावीण्य सूची में स्थान था यदि वे डिप्टी कलेक्टर के लिए फार्म में प्रथम वरीयता डिप्टी कलेक्टर के लिए भरतीं तो वे डिप्टी कलेक्टर बन जातीं। वर्तमान में अपने कार्य के प्रति वे संतुष्ट हैं और उनका प्रयास रहता है कि गरीबों का उत्थान हो और उनके क्षेत्र का कोई भी व्यक्ति भूखे पेट न रहे। वर्तमान में मीरा मेहरा धनौरा जिला सिवनी में तहसीलदार हैं। उनसे बड़ी बहन श्रीमती माया दास महिला बाल विकास अधिकारी, बड़ा भाई अमर सिंह एसबीआई में अधिकारी तथा छोटे भाई राजेन्द्र सिंह इंजीनियरिंग कालेज में स्पोर्टस् आफिसर हैं।
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