रूद्राक्ष पर अब नेपाल का उत्तराधिकार नहीं
अमरकंट और पचमढ़ी में
खेती के लिए अनुकूल
* डिंडौरी में फल-फूल रहे रूद्राक्ष
जबलपुर। हिन्दुओं में रूद्राक्ष का विशेष महत्व है। रूद्राक्ष जहां भगवान शिव का मुख्य आभूषण है और ऐसी पौराणिक मान्यता है कि शिव के आंशु से ही रूद्राक्ष का जन्म हुआ था। ऐसी मान्यता है कि रूद्राक्ष हिमालय में पाया जाता है। अमूमन अब तक रूद्राक्ष उत्तराखंड तथा नोपाल में ही बड़ी मात्रा में होता है लेकिन पिछले कुछ साल से डिंडौरी में एक शिक्षक ने रूद्राक्ष का पेड़ रौपा है और वह फल-फूल रहा है।
डिंडौरी में रूद्राक्ष के सफलता पूर्वक पेड़ लगने से यह तय समझा जा रहा है कि इस इलाके का मौसम रूद्राक्ष की खेती करने के अनुकूल है।
जानकारों की मांने तो मध्य प्रदेश में अमरकंट, मंडला, डिंडौरी, उमरिया, पचमढ़ी क्षेत्र का मौसम रूद्राक्ष की खेती के लिएअनुकूल है। यहां के किसान रूद्राक्ष के पौधा रोप कर उपज ले सकते है।
रूद्राक्ष की माला
मंत्र जाप के लिए रूद्राक्ष की माला बेहद उपयुक्त होती है। यूं तो रूद्राक्ष एक मुखी से लेकर 11 मुखी तक आते है किन्तु सहजता से पंचमुखी मिलते है। पंचमुखी रूद्राक्ष का पेड़ भी बहुत आसानी से उगता और फल -फूल देता है। इसके लिए पंचमुखी रूद्राक्ष इस क्षेत्र में पैदा किया जा सकता है।
बाजार में बिक्री
रूद्राक्ष की बाजार में बड़ी मात्रा में बिकने आते है लेकिन आस्था रखने वाले ठगी का भी शिकार होते है। लोगों को रूद्राक्ष नकली मिलते है अथवा बिना तिथि और पूजन के वृक्ष से तोड़े हुए मिलते है जिसका धार्मिक महत्व भी नहंी होता है। खासतौर पर पुष्य नक्षत्र में रूद्राक्ष के पेड़ से प्रार्थना कर रूद्राक्ष हासिल करना विशेष फलदायी माना जाता है।
डिंडौरी में लगाया गया
डिंडौरी जिले में कृषि वैज्ञानिक डॉ हरीश दीक्षित ने अपने घर में रूद्राक्ष का पौधा लगाए हुए है। उन्होने यह पौधा प्रयोग के तौर पर लगाया है। वे जानना चाहते है कि डिंडौरी -मंडला की जलवायु में यह पौधा जीवित रह सकता है अथवा नहीं? यह फल-फूल सकता है अथवा नहीं? उनके द्वारा लगाया गया पौधे फल-फूल देने लगे है। इससे यह तय हो गया है कि इस क्षेत्र में रूद्राक्ष की खेती संभव है। उन्होंने ये पौधा कोलकाता से लेकर आए थे।
वर्जन
उत्तराखंड में लोग रूद्राक्ष की खेती कर रहे हैं। प्रदेश में कहीं भी रूद्राक्ष नहीं होता। अमरकंटक डिंडौरी सहित प्रदेश के कुछ ठंडे इलाकों में रूद्राक्ष की खेती संभव है।
डॉ हरीश दीक्षित, कृषि वैज्ञानिक
अमरकंट और पचमढ़ी में
खेती के लिए अनुकूल
* डिंडौरी में फल-फूल रहे रूद्राक्ष
जबलपुर। हिन्दुओं में रूद्राक्ष का विशेष महत्व है। रूद्राक्ष जहां भगवान शिव का मुख्य आभूषण है और ऐसी पौराणिक मान्यता है कि शिव के आंशु से ही रूद्राक्ष का जन्म हुआ था। ऐसी मान्यता है कि रूद्राक्ष हिमालय में पाया जाता है। अमूमन अब तक रूद्राक्ष उत्तराखंड तथा नोपाल में ही बड़ी मात्रा में होता है लेकिन पिछले कुछ साल से डिंडौरी में एक शिक्षक ने रूद्राक्ष का पेड़ रौपा है और वह फल-फूल रहा है।
डिंडौरी में रूद्राक्ष के सफलता पूर्वक पेड़ लगने से यह तय समझा जा रहा है कि इस इलाके का मौसम रूद्राक्ष की खेती करने के अनुकूल है।
जानकारों की मांने तो मध्य प्रदेश में अमरकंट, मंडला, डिंडौरी, उमरिया, पचमढ़ी क्षेत्र का मौसम रूद्राक्ष की खेती के लिएअनुकूल है। यहां के किसान रूद्राक्ष के पौधा रोप कर उपज ले सकते है।
रूद्राक्ष की माला
मंत्र जाप के लिए रूद्राक्ष की माला बेहद उपयुक्त होती है। यूं तो रूद्राक्ष एक मुखी से लेकर 11 मुखी तक आते है किन्तु सहजता से पंचमुखी मिलते है। पंचमुखी रूद्राक्ष का पेड़ भी बहुत आसानी से उगता और फल -फूल देता है। इसके लिए पंचमुखी रूद्राक्ष इस क्षेत्र में पैदा किया जा सकता है।
बाजार में बिक्री
रूद्राक्ष की बाजार में बड़ी मात्रा में बिकने आते है लेकिन आस्था रखने वाले ठगी का भी शिकार होते है। लोगों को रूद्राक्ष नकली मिलते है अथवा बिना तिथि और पूजन के वृक्ष से तोड़े हुए मिलते है जिसका धार्मिक महत्व भी नहंी होता है। खासतौर पर पुष्य नक्षत्र में रूद्राक्ष के पेड़ से प्रार्थना कर रूद्राक्ष हासिल करना विशेष फलदायी माना जाता है।
डिंडौरी में लगाया गया
डिंडौरी जिले में कृषि वैज्ञानिक डॉ हरीश दीक्षित ने अपने घर में रूद्राक्ष का पौधा लगाए हुए है। उन्होने यह पौधा प्रयोग के तौर पर लगाया है। वे जानना चाहते है कि डिंडौरी -मंडला की जलवायु में यह पौधा जीवित रह सकता है अथवा नहीं? यह फल-फूल सकता है अथवा नहीं? उनके द्वारा लगाया गया पौधे फल-फूल देने लगे है। इससे यह तय हो गया है कि इस क्षेत्र में रूद्राक्ष की खेती संभव है। उन्होंने ये पौधा कोलकाता से लेकर आए थे।
वर्जन
उत्तराखंड में लोग रूद्राक्ष की खेती कर रहे हैं। प्रदेश में कहीं भी रूद्राक्ष नहीं होता। अमरकंटक डिंडौरी सहित प्रदेश के कुछ ठंडे इलाकों में रूद्राक्ष की खेती संभव है।
डॉ हरीश दीक्षित, कृषि वैज्ञानिक
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