Thursday, 14 April 2016

आदिवासियों ने खुद तोड़ डालीं शराब भट्टियां



 जबलपुर। समीपवर्ती आदिवासी बाहुल्य जिले मंडला के दो गांव अकछेरा दोना और किंदरी को डिस्कवरी फॉर विलेज डेवलपमेंंट संस्था ‘सपने का गांव ’बनाने के प्रयास में जुटी है। इस संस्था के दो व्यक्तियों के प्रयास से गांव में नशा मुक्ति की नई रौशनी नजर आने लगी है। जहां गांव के आदिवासी परिवारों में घर-घर शराब की भट्टियां थीं, उन्होंने भट्टियां तोड़ दी हैं और शराब मुक्ति की डगर पर बढ़ गए हैं।
आदिवासी समाज में शराब का चलन आम बात है और उनकी सामाजिक जीवन शैली में शराब शामिल रही है लेकिन शराब के दुष्परिणामों से उन्हें अवगत कराया गया है। वे शराब की बुराई को महसूस कर रहे हैं। जब से गांव में महिलाएं, पुरूष और बुजुर्ग शराब पीना छोड़ चुके हैं, गांव में लड़ाई-झगड़े भी खत्म हो गए हैं।
 पुलिस की क्या जरूरत
इस एनजीओ का मानना है कि गांव के लोगों को पुलिस थाने और कोर्ट कचहरी की क्या जरूरत है? इसके चलते गांव की पंचायतों में ही हर फैसले करने के लिए ग्रामीणों को  प्रेरित किया गया है जिसके परिणाम स्वरूप अब गांव में पंचायत लग रही है और ग्रामीण अपने मामले स्वयं निपटा रहे हैं। फिलहाल पिछले कई माह से गांव थाना मुक्त हो गया है। यहां न तो पुलिस आ रही है और न ही ग्रामीण पुलिस थाना जा रहे हैं। एनजीओ ने अपने इस अभियान को थाना मुक्त गांव का नाम दिया था लेकिन अब निर्णय लिया गया है कि थाना मुक्त नहीं इस मुहिम को सपनों के गांव का नाम दिया जाए। ये सपना एनजीओ का नहीं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का सपना है।
ये लोग है गांव में सक्रिय
मंडला शहर से कुछ किलोमीटर के फासले पर स्थित इन दो गांवों को सपनों का गांव जहां शराब, जुआं, तम्बाखू सहित अन्य सामाजिक बुराइयां न हों, अमन चैन कायम हो, हर घर खुशहाल हो और हर युवा के पास काम-धंधा हो। इसके लिए संस्था के चेयरमैन निसार कुरैशी, ग्रामीण बसंत सिंगरहा तथा अन्य रोजगार प्रशिक्षण के कार्यक्रम भी संचालित कर रहे हैं।

वर्जन
गांव में लोगों ने शराब लगभग छोड़ चुके हैं लेकिन लगातार फालोअप करने की जरूरत है तो हम लोग कर रहे हैं। करीब 3 हजार की आबादी उक्त दो गांव की है, जिन्हें आदर्श गांव बनाने का प्रयास किया जा रहा है। गांव में लगातार रोजगार मूलक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।  
निसार कुरैशी,
एनजीओ

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