Sunday, 24 April 2016

.. भिखारियों ,नि:सहाय की खैर खबर लेने वाला



 दो दर्जन से अधिक का इलाज कराया गया
 
जबलपुर। 60 वर्षीय अनिल दुआ,परिवारिक जवाबदारी से निवृत होने के बाद अब अपने जीवन का लक्ष्य पीड़ित मानवता की सेवा लेगा रहे है। परिवार में कैंसर पीड़ित सदस्य का दर्द देखने के बाद उन्होंने कैंसर पीड़ितों की मदद का बीड़ा उठाया और सद् गुरू सेंसर सोसायटी का गठन कर उसके बैनर तले काम शुरू किया किन्तु कैंसर पीड़ितों की मदद के अलावा उन्होंने एक रास्ता सेवा का और चुना। वह है बीमार नि:सहाय और भिखारियों की मदद का।
 यूं तो अनिल दुआ ने पीड़ितों की मदद के लिए सोसायटी बनाई है लेकिन अभीउनके साथ ज्यादा लोग नहंी जुड़े है लेकिन वे आशा के साथ इस काम में जुटे है। उनका निवासी आदर्श नगर में है। प्रतिदिन ग्वारीघाट चले जाते है। इस तीर्थ स्थल में डेढ़ दो सौ भिखारी रहते है। इसमें से अधिकांश जर्जर वृद्ध और अपाहिज होते है। दान सेउनके पेट तो भर जाते है लेकिन किन शारीरिक व्याधि और परेशानी उनके लिए जानलेवा होती है। यदि कोई भिखारी बुखार, वायरल फीवर अथवा अन्य किसी बीमारी से पीड़ित है तो उसको सरकारी अस्पताल तक ले जाने वाला कोई नहीं होते है। दुआ हर भिखारी से उनकी खैरियत और हालचाल पूछते है। यदि कोई बीमार होता है तो उसे  तत्काल समीप स्थित गीताधाम ट्रस्ट हास्पिटल अथवा विक्टोरिया अस्पताल आटो रिक्शा करके ले जाते है। आटो रिक्शा का खर्चा और स्वयं का समय ही उन्हे देना पड़ता है। इस बीमार भिखारी को सहारा मिल जाता है, उसको अपना को रिश्तेनाते दार श्री दुआ लगने लगते और दुआ भी देते है।

केस -1
उदय सोनी उम्र 30 को बचपन में टाइट फाइट हुआ। इससे उनको लाइलाज बीमारी ने घेर लिया। जबलपुर सहित नागपुर तथा अन्य शहरों के डाक्टरों ने इस बीमारी का कोई इलाज न होने के कारण पल्ला झाड़ चुके है। इस बीमार का नाम है मस्कुलर डिसट्रापी। बताया गया कि इस बीमारी को लेकर अभी दुनिया मे रिसर्च चल रहा है। बीमारी के दौरान वायरल के हमले से  मरीज के हाथ पैर सहित समूचे अंग के नर्व कमजोर पड़ गए है। मरीज इलाज कराते कराते इस अवसाद की स्थिति में पहुंच गया कि वह सिर्फ बिस्तर से उठना नहीं चाहता है। उसका पूरा संसार उसके विस्तर के इर्द गिर्द है। इस मरीज के संबंध जानकारी मिलने पर दुआ उनके पास हर हफ्ते मिलने जाते है। उसे प्रोत्साहित कर डाक्टरों के पास ले जाते है। शहर के कई नामी चिकित्सकों के पास ले जा चुके है। वर्तमान में आयुर्वेदिक डॉक्टर का इलाज दिलवा रहे है। मरीज में आत्मखोया हुआ आत्मविश्वास भर रहे है। उसे पढ़ाई लिखाई के लिए प्रेरित कर रहे। इस मरीज का कहना है कि कोई अपना है जो उसकी खैर खबर लेने आता है। मेरे कोई अपना दोस्त या मित्र नहंी है।
केस -2
ग्वारीघाट में  भिखारन निशा गोस्वामी पिछले पांच साल से रह रही है। वह नैनपुर की रहने वाली है। करीब डेढ़ साल पहले उसकी आंख में जदस्त इंफैक्शन हो गया। उसको दिखना बंद हो गया। इसको लेकर वे डॉक्टर डॉ पवन स्थापक के पास पहुंचे। वहां इस महिला का लगभग मुफ्त इलाज हुआ किन्तु भिखारन का दुर्भाग्य था कि डॉ पवन स्थापक ने इलाज चैक करने के बाद बताया कि निशा गोस्वामी की रैटीना की नर्व पूरी तरह डैमेज है अब वह कभी नहंी देख पाएगी। निशा गोस्वामी का कहनाहै कि भले ही वह देख नही पा रही है लेकिन उसकी खैर खबर लेने वाला कोई है।
केस-
37 वर्षीय संतोष चौधरी बरगी नगर निवासी है। वह विवाहित है तथा उसके दो बच्चे भी है । मजदूरी कर जीवन व्यापन करता थो। पैर में टीबी की बीमारी हो गई जिसमें उसके पूरे रूपए खर्च हो गए और  अपाहिज की तरह हो गया। टीबी का इलाज आधा रूक गया। टीवी का आधा इलाज बेहद खतरनाक माना जाता है। किसी तहर वह श्री दुआ के संपर्क में आया। उसे तथा उसको बरगी नगर से लाकर मोहल्ले के पार्क में माली का काम सौंपा तथा वहा एक कमरा दिलवाया जिसमें पूरा परिवार रहता है। इसके बाद  टीबी का छह माह तक लगातार दवाइयां कराई गई। प्रतिदिन फालो किया गया कि वह दवाई ले रहा है अथवा नहंी । अनेकों बार उसे ा। अस्थिरोग विशेषज्ञ डॉक्टर जितेन्द्र जामदार तथा  टीबी हास्पिटल लगातार लेकर जाना पड़ा। संतोष चौधरी का कहना है कि उसकी  रिपोर्ट पाजेटिव आ गई तो अब अपने पैरों पर चलता है और पार्क की देखरेख भी कर रहा है। उसका परिवार प्रशन्नचित है।

वर्जन -
मेरे द्वारा असहाय बीमार को ज्यादातर  शासकीय अस्पताल ले जाता हूं जिससे उसके इलाज में कम से कम खर्चा आए।  मरीज के  खानपान का ध्यान रख जाता है तथा उसमें आत्मविश्वास रखने प्रयास किया जाता है, जिससे वह अपने बीमारी से स्वयं लड़ सके। उसको लाने ले जाने सहित अन्य कुछ कार्य में छिटपुट खर्चा होता है जिसको वे पूरा करने कोशिश करते हैं।
अनिल दुआ
समाज सेवी  

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