राष्ट्रप्रेम हिलोरे मार रहा था, नए गणतंत्र का था उत्साह
दीपक परोहा
संस्कारधानी यानी जबलपुर को देशप्रेम का लम्बा इतिहास है। आजादी पूर्व राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जबलपुर की गलियों में घूम चुके थे। नेता जी सुभाष चंद्र बोस जबलपुर की जेल में अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बीच रह चुके थे। नेता जी के फार्वड ब्लाक का गठन भी यहां हुआ था। जबलपुर के पहले गणतंत्र दिवस के साक्षियों की माने तो नव स्वाधीनता की चमक नगरवासियों के चेहरे में थी और अपना संविधान मिलने की खुशी उनसे बयान हीं हो पा रही थी। देश के नव निर्माण और नवयुग का सूत्रापात हो गया था। लोग 15 अगस्त को बंटवारे की टीस भुला रहे थे। पहला गणतंत्र दिवस मनाने के लिए शहर को दीवाली की तरह पूर्व संध्या को रोशन किया गया था। कमानिया गेट से लेकर लार्डगंज तक विद्युत छटा की गई थी। यही क्षेत्र जबलपुर का हृदय स्थल तब था और अब भी कहा जाता है।
26 जनवरी 1950 को पहला और यादगार गणतंत्र दिवस मनाया गया। ये पहला गणतंत्र दिवस था, जब कमानियां गेट में बूंदी की मिठाई बंटी। इसके बाद से ही गणतंत्र दिवस पर शिक्षण संस्थाओं एवं अन्य संस्थाओं में गणतंत्र दिवस पर मिठाई बंटने की परंपरा शुरू हुई।
वयोवृद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कोमल चंद जैन ने बताया कि 26 जनवरी, 1950 के दिन सुबह से ही राष्ट्रवादी लोगों की भीड़ श्रीनाथ की तलैया और फुहार में लग गई। लोग गणतंत्र अमर रहे के नारे लगा रहे थे। ध्वजारोहण राष्ट्रगान के साथ हुआ। बाद के वर्षो में गणतंत्र दिवस प्रशासन ने समारोह पूर्वक मनाना शुरू किया था। पहला गणतंत्र दिवस तो स्वतंत्रता दिवस की तरह उत्साह से पूरे शहर में मनाया गया था, वह परंपरा अब भी जारी है लोग जगह जगह घ्वजारोहण करते हैं। आन-बान- शान से तिरंगा लहराते आ रहे है।
बहुत कुछ बदला है 65 साल में
जबलपुर में पहले गणतंत्र दिवस के बाद से अब तक बहुत कुछ बदल गया है, लेकिन कुछ स्मृतियां संजो कर रखी गई है जिसमें कमानिया गेट, घंटाघर
और प्राचीन शासकीय भवन हैं। टाउनहाल, हाईकोर्ट जैसी पुरानी एतिहासिक इमारतें अब भी बुलंद हैें। शहर का हृदय स्थल फुहारा का स्वरूप भी कई बार बदला है। शहर की पहचान फुहारा हुआ करता था। फुहारा सौंदर्यीकरण के लिए तीन बार टूटा और बना। पहले फुहारे में में इतनी भीड़ नहीं हुआ करती थी लेकिन 65 साल में शहर और आबादी बढ़ने के साथ शहर का खूबसूरत फुहारा अराजक बाजार में तब्दील हो गया है। मुख्य शहर कभी गोलबाजार के साथ खत्म हो जाता था अब तो शहर का छोर नर्मदा तक पहुंच गया है।
शहर के शासकीय दफ्तरों में भी काफी बदलाव आए है। वयोवृद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी छोटे लाल सोनी ने बताया कि शहर का मुख्य डाकघर तिलकभूमि तलैया में हुआ करता था। डाक विभाग के अफसर की बड़ी इज्जत हुआ करती थी। यहां पोस्टकार्ड और डाक टिकट लेने दूर दराज के गांवों से लोग आया करते थे अब मुख्य डाकघर सिविल लाइन में बड़ी बिल्डिंग में चलता है। यहां सिर्फ डाकघर भर है जो अब भी पुराने भवन में चल रहा है।
एतिहासिक है कोतवाली थाना
नगर कोतवाली यानी वर्तमान कोतवाली थाना और उसकी बिल्डिंग एतिहासिक इमारतों में शुमार है। यहां अंग्रेज अफसर बैठा करते थे। कोतवाली थाना बिल्डिंग आज भी अपने पुराने स्वरूप में मौजूद है। बाद में टीआई कक्ष तथा सीएसपी कक्ष में मार्बल लगाए गए तथा भीतर की दीवारों में प्लास्टर पुट्टी कर रंगरोगन किया गया। इसी तरह लार्डगंज थाना भी एहितासिक थाना है अब भी लार्डगंज थाने की बिल्डिंग पुराने स्वरूप में हे। यहा भीतरी सज्जा में मामूली बदलाव किया गया है।
दीपक परोहा
संस्कारधानी यानी जबलपुर को देशप्रेम का लम्बा इतिहास है। आजादी पूर्व राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जबलपुर की गलियों में घूम चुके थे। नेता जी सुभाष चंद्र बोस जबलपुर की जेल में अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बीच रह चुके थे। नेता जी के फार्वड ब्लाक का गठन भी यहां हुआ था। जबलपुर के पहले गणतंत्र दिवस के साक्षियों की माने तो नव स्वाधीनता की चमक नगरवासियों के चेहरे में थी और अपना संविधान मिलने की खुशी उनसे बयान हीं हो पा रही थी। देश के नव निर्माण और नवयुग का सूत्रापात हो गया था। लोग 15 अगस्त को बंटवारे की टीस भुला रहे थे। पहला गणतंत्र दिवस मनाने के लिए शहर को दीवाली की तरह पूर्व संध्या को रोशन किया गया था। कमानिया गेट से लेकर लार्डगंज तक विद्युत छटा की गई थी। यही क्षेत्र जबलपुर का हृदय स्थल तब था और अब भी कहा जाता है।
26 जनवरी 1950 को पहला और यादगार गणतंत्र दिवस मनाया गया। ये पहला गणतंत्र दिवस था, जब कमानियां गेट में बूंदी की मिठाई बंटी। इसके बाद से ही गणतंत्र दिवस पर शिक्षण संस्थाओं एवं अन्य संस्थाओं में गणतंत्र दिवस पर मिठाई बंटने की परंपरा शुरू हुई।
वयोवृद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कोमल चंद जैन ने बताया कि 26 जनवरी, 1950 के दिन सुबह से ही राष्ट्रवादी लोगों की भीड़ श्रीनाथ की तलैया और फुहार में लग गई। लोग गणतंत्र अमर रहे के नारे लगा रहे थे। ध्वजारोहण राष्ट्रगान के साथ हुआ। बाद के वर्षो में गणतंत्र दिवस प्रशासन ने समारोह पूर्वक मनाना शुरू किया था। पहला गणतंत्र दिवस तो स्वतंत्रता दिवस की तरह उत्साह से पूरे शहर में मनाया गया था, वह परंपरा अब भी जारी है लोग जगह जगह घ्वजारोहण करते हैं। आन-बान- शान से तिरंगा लहराते आ रहे है।
बहुत कुछ बदला है 65 साल में
जबलपुर में पहले गणतंत्र दिवस के बाद से अब तक बहुत कुछ बदल गया है, लेकिन कुछ स्मृतियां संजो कर रखी गई है जिसमें कमानिया गेट, घंटाघर
और प्राचीन शासकीय भवन हैं। टाउनहाल, हाईकोर्ट जैसी पुरानी एतिहासिक इमारतें अब भी बुलंद हैें। शहर का हृदय स्थल फुहारा का स्वरूप भी कई बार बदला है। शहर की पहचान फुहारा हुआ करता था। फुहारा सौंदर्यीकरण के लिए तीन बार टूटा और बना। पहले फुहारे में में इतनी भीड़ नहीं हुआ करती थी लेकिन 65 साल में शहर और आबादी बढ़ने के साथ शहर का खूबसूरत फुहारा अराजक बाजार में तब्दील हो गया है। मुख्य शहर कभी गोलबाजार के साथ खत्म हो जाता था अब तो शहर का छोर नर्मदा तक पहुंच गया है।
शहर के शासकीय दफ्तरों में भी काफी बदलाव आए है। वयोवृद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी छोटे लाल सोनी ने बताया कि शहर का मुख्य डाकघर तिलकभूमि तलैया में हुआ करता था। डाक विभाग के अफसर की बड़ी इज्जत हुआ करती थी। यहां पोस्टकार्ड और डाक टिकट लेने दूर दराज के गांवों से लोग आया करते थे अब मुख्य डाकघर सिविल लाइन में बड़ी बिल्डिंग में चलता है। यहां सिर्फ डाकघर भर है जो अब भी पुराने भवन में चल रहा है।
एतिहासिक है कोतवाली थाना
नगर कोतवाली यानी वर्तमान कोतवाली थाना और उसकी बिल्डिंग एतिहासिक इमारतों में शुमार है। यहां अंग्रेज अफसर बैठा करते थे। कोतवाली थाना बिल्डिंग आज भी अपने पुराने स्वरूप में मौजूद है। बाद में टीआई कक्ष तथा सीएसपी कक्ष में मार्बल लगाए गए तथा भीतर की दीवारों में प्लास्टर पुट्टी कर रंगरोगन किया गया। इसी तरह लार्डगंज थाना भी एहितासिक थाना है अब भी लार्डगंज थाने की बिल्डिंग पुराने स्वरूप में हे। यहा भीतरी सज्जा में मामूली बदलाव किया गया है।
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