Wednesday, 6 April 2016

जनहित की लड़ाई में भी प्राफेसरी भी कुर्बान


 डॉ. पीजी नाजपांडे ने अब तक 86 याचिकाओं के जरिए समाज को दिलाई बेहतर व्यवस्था
दीपक परोहा
9033508276
जबलपुर। अपने लिए तो सब जीते हैं किंतु कुछ बिरले ही लोग ऐसे होते हैं, जो समाज या दूसरों के लिए अपनी जिंदगी नाम कर देते हैं। ऐसा ही एक नाम है डॉ. प्रमोद गोविंद नाजपांडे का, जिन्होंने कृषि विवि. की अच्छी भली प्रोफेसरी जनहित के संघर्ष के लिए कुर्बान कर डाली। बुनियादी से लेकर संवैधानिक अधिकारों तक के लिए डॉ. नाजपांडे न तो सड़क पर कभी पीछे रहे और न ही हाईकोर्ट में। स्वयं पैरवी करते हुए वे अब तक 86 जनहित याचिकाओं के जरिए समाज में बेहतर व्यवस्था स्थापित कराने में सफलता अर्जित कर चुके हैं।
पीपुल्स समाचार से चर्चा करते हुए डॉ. नाजपांडे ने बताया कि उनके पिता गोविंद जीएन नाजपांडे अमरेठ मऊ में अधिवक्ता थे। पीजी नाजपांडे मऊ इंदौर वेटनरी कालेज से सन् 1960 में पशु चिक्तिसा स्नातक हुए। इसके बाद उन्होंने नौकरी के माध्यम से आदिवासियों की सेवा के लिए आदिवासी क्षेत्र में नियुक्ति देने की शासन से मांग की। करीब 5 साल सरगुजा क्षेत्र में रहते हुए आदिवासियों के लिए काम किया। श्री नाजपांडे ने बताया कि इस क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाएं नहीं होने के कारण उन्होंने जानवरों के साथ इंसानों का भी यथा संभव इलाज किया। सन् 1965 में श्री नाजपांडे ने नौकरी छोड़कर पैथौलॉजी से स्नाकोत्तर किया। इसके बाद पशुचिकित्सा महाविद्यालय में प्रोफेसर की नौकरी कर ली। कृषि विश्व विद्यालय में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा अन्य मुद्दों को लेकर उन्होंने कर्मचारियों के हितों में संघर्ष शुरू कर दिया। सन् 1967 में वे मध्य प्रदेश के कृषि विद्यालय प्रोफेसर संघ के प्रदेश अध्यक्ष बने तथा लगातार पद में रहते हुए विश्व विद्यालय तथा जनहित के मुद्दों पर कार्य करते रहे। परिणाम स्वरूप उन्हें सन् 1997 में उन्हें बर्खास्त कर दिया। इसके बाद श्री नाजपांडे ने सन् 1998 में नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच का गठन कर उसके बैनर तले जनहित के मुद्दों को सामने लाना शुरू किया जो अनवरत जारी है। संघर्ष के ही चलते उनको नौकरी से न केवल निकाला गया वरन् शासन ने पेंशन भी रोक दी। 
  सैंकड़ों याचिकाएं व शिकायतें की
डॉ. नाजपांडे ने विभिन्न जनहित के मुद्दों को लेकर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में 86 याचिकाएं लगाईं हैं। इसके अतिरिक्त 12 याचिकाएं सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है। नियायम आयोग, आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो, लोकायुक्त, सीबीआई , मानव अधिकार आयोग तथा महिला आयोग व अन्य में सैकड़ों की संख्या में शिकायतें, आवेदन व याचिकाएं विभिन्न पब्लिक इंंटरेस्ट में 
लगाई है। पीजी नाजपांडे जबलपुर में दूध के दाम निर्धारित करने तथा आवश्यक वस्तु  में दूध को शामिल करने की मांग को लेकर लगभग 25 साल से संघर्ष कर रहे हैं और यह मुद्दा सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है।   स्वास्थ, शिक्षा, सड़क, पानी, मिलावट खोरी, जबलपुर विकास, तालाब एवं प्रकृति के संरक्षण, नर्मदा प्रदूषण के खिलाफ श्री नाजपांडे करीब 25 वर्षों से लगातार कार्य कर रहे हैं। 
हाल का चर्चित मुद्दा 
पीजी नाजपांडे ने मध्य प्रदेश शासन के मुख्यमंत्री समेत 11 मंत्रियों के खिलाफ लोकायुक्त द्वारा की गई जांच पड़ताल के बाद प्रकरण दर्ज न किए जाने पर एक याचिका हाईकोर्ट में दायर की। इस याचिका में मंत्रियों के साथ ही 49 आईएएस तथा 12 वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को कटघरे में लाया गया है। हाईकोर्ट ने इस मामले में शासन से स्पष्टीकरण मांगा है और याचिका फिलहाल विचाराधीन है। 
बाक्स..
उपभोक्ता फोरम का प्रदेश
भर में हुआ गठन 
उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिए कानून तो पहले से ही बने थे लेकिन वे न्याय कहां मांगे इसकी व्यवस्था नहीं थी। डॉ नाजपांडे की जनहित याचिका का ही परिणाम है कि जबलपुर सहित पूरे प्रदेश के विभिन्न जिलों में उपभोक्ता फोरम का गठन हुआ। इसी तरह प्रदेश के शहर के भीतर डेयरियों के कारण आम आदमी परेशान हो रहा था, ये लड़ाई भी हाईकोर्ट में लड़ी गई, जिसके परिणाम स्वरूप डेयरियां शहर से बाहर करने के आदेश हाईकोर्ट ने दिए और अब पूरे प्रदेश में शहर में संचालित होने वाली डेयरियों के मामले में जवाबदारी प्रशासन की ही होगी। जबलपुर सहित प्रदेश के अन्य शहरों को इससे राहत मिली है। निजी स्कूलों की मनमानी फीस से हर वर्ग का व्यक्ति परेशान और शोषण का शिकार हो रहा था। जिस पर लगी याचिका के फैसले के तहत अब शासन फीस निर्धारण की कार्रवाई कर रहा है। 

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